गुरुवार, 12 जनवरी 2012

प्रश्न पूछने में बेहद आलसी हैं सांसद


प्रश्न पूछने में बेहद आलसी हैं सांसद



(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। देश की सबसे बड़ी और ताकतवर पंचायत में सांसदों द्वारा जनहित के प्रश्न पूछने में भी कोताही ही बरती जाती है। देखा जाए तो प्रश्नकाल संसद का सबसे महत्वपूर्ण विधायी कार्य होता है। पैसा लेकर प्रश्न पूछने जैसी घटनाओं ने संसद की गरिमा को तार तार कर दिया है। अनेक मर्तबा तो सांसदों द्वारा प्रश्न सूची तो सौंप दी जाती है पर प्रश्नकाल के दौरान वे सदन से ही गायब रहा करते हैं। प्रश्न पूछने के मामले में माननीयों का आलम देखकर लगता है कि देश में सरकार सब कुछ ठीक ठाक काम कर रही है। प्रश्न यह उठता है कि अगर सरकार ठीक काम कर रही है तो फिर संसद में गतिरोध या हंगामा किस बात का?
वर्ष 2009 - 2010 में कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी, महासचिव राहुल गांधी, लाल कृष्ण आड़वाणी, कल्याण सिंह, लालू प्रसाद यादव, जितेंद प्रसाद ने तो एक भी प्रश्न नहीं दागे। यह सब कुछ मिली जुली नूरा कुश्ती की ओर साफ इशारा है। मेनका गांधी ने 10/127, वरूण गांधी ने 79/247, शरद यादव ने 0/40, नवजोत सिंह सिद्धू ने कम उपस्थिति के बाद भी 15/44, सुरेश कलमाड़ी ने 0/12, अशोक तंवर ने 3/0, अनंत कुमार ने 37/42, मुरली मनोहर जोशी ने 105/162, कैलाश जोशी ने 39/14 तो यशोधरा राजे सिंधिया ने 0/79 प्रश्न पूछे।
इन दोनों ही वित्तीय वर्षों में वित्त से संबंधित सर्वाधिक प्रश्न सांसदों ने पूछे। वित्त के क्रमशः 1083/1226, जनता के स्वास्थ्य से जुड़े 899/1011, कृषि प्रधान देश होने के बाद भी इससे जुड़े प्रश्नों की संख्या 765/1068, देश की आत्मा गांव में बसती है पर माननीयों ने इस विषय पर 616/594, उर्जा के 355/542 प्रश्न दागे। सबसे कम प्रश्न संसदीय कार्य और प्रधानमंत्री से संबंधित ही रहे जो 2/4 ही थे।

1 टिप्पणी:

S.N SHUKLA ने कहा…

सार्थक प्रस्तुति, आभार.
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधार कर अपना स्नेहाशीष प्रदान करें, आभारी होऊंगा.