सोमवार, 8 अक्तूबर 2012

रेल किराये की दर होगी मंहगाई के आधार पर


रेल किराये की दर होगी मंहगाई के आधार पर

(महेंद्र देशमुख)

नई दिल्ली (साई)। भारतीय रेलवे को वित्तीय संकट से बचाने के लिए सरकार ब्लूप्रिंट तैयार कर रही है। पहले रेल मंत्रालय कांग्रेस के सहयोगी दलों के पास था। उन्होंने रेलवे की फाइनैंशल हेल्थ का ख्याल किए बिना आम लोगों के हितों को ज्यादा तवज्जो दी। इससे रेवेन्यू बढ़ाने के उपायों और इनवेस्टमेंट की रफ्तार थम गई है।
फाइनैंस मिनिस्ट्री की लीडरशिप में प्लानिंग कमिशन और रेलवे कई उपायों पर काम कर रहे हैं। इनमें किराए को इनफ्लेशन से जोड़ना, इनवेस्टमेंट की रफ्तार बनाए रखने के लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप, माल ढुलाई के लिए गोल्डन क्वाड्रीलैटरल नेटवर्क तैयार करना और फंड जेनरेट करने के लिए लैंड रिसोर्सेज से पैसा जुटाना शामिल हैं।
रेल्वे बोर्ड के उच्च पदस्थ सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि इसकी डेड लाईन अभी निर्धारित नहीं की गई है। इसके साथ ही साथ रेल्वे का टर्न अराउंड बोर्ड का अगला एजेंडा है। ऑर्गेनाइजेशन में नई जान फूंकने के लिए जल्द प्लान तैयार किया जाएगा।
रेल मंत्रालय, प्लानिंग कमिशन और फाइनैंस मिनिस्ट्री ने इसके लिए पहले ही बातचीत शुरू कर दी है। भारतीय रेलवे का ऑपरेटिंग रेश्यो (प्रत्येक 100 रुपए कमाने पर किया जाने वाला खर्च) जहां 2004-05 में 91 रुपए था, वह 2011-12 में बढ़कर 95 रुपए हो गया है। इसका मतलब यह है कि इंटरेस्ट कॉस्ट देने के बाद रेलवे इतना सरप्लस जेनरेट नहीं करता है, जिससे इनवेस्टमेंट किया जा सके।
2011-12 में 1।03 लाख करोड़ रुपए के टर्नओवर में रेलवे के पास केवल 1,500 करोड़ रुपए का सरप्लस था। ऐसे में अपने प्लान की फंडिंग के लिए ऑर्गेनाइजेशन को करीब 9,100 करोड़ रुपए के लिए आंतरिक स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ा। सैम पित्रोदा की अगुवाई में बने एक्सपर्ट ग्रुप ने इस साल की शुरुआत में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि अगले पांच साल में भारतीय रेलवे को 8।39 लाख करोड़ रुपए के इनवेस्टमेंट की जरूरत होगी। रेलवे की वित्तीय सेहत सुधारने की शुरुआत सर्विस टैक्स लगाने के साथ ही कर दी गई है।
यूपीए के पूर्व सहयोगी तृणमूल कांग्रेस के चलते इसे होल्ड पर रखा गया था। कुछ समय पहले तक उसके पास यह पोर्टफोलियो था। यूपीए-1 और यूपीए-2 दोनों के ही दौरान रेलवे मंत्रालय कांग्रेस सरकार को सपोर्ट देने वाले सहयोगी दलों को दिया गया, जिन्होंने किराए में बढ़ोतरी नहीं की। तृणमूल कांग्रेस के दिनेश त्रिवेदी को ममता बनर्जी की इच्छा के उलट किराया बढ़ाने के कारण रेल मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था। अब रेल मंत्रालय कांग्रेस के पास है। वह इसे फाइनैंशल क्राइसिस से बचाने के उपाय कर रही है।

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