सोमवार, 8 अक्तूबर 2012

केजरीवाल के हसीन सपने


केजरीवाल के हसीन सपने

(शेष नारायण सिंह / विस्फोट डॉट काम)

नई दिल्ली (साई)। अन्ना हजारे के पूर्व शिष्य अरविंद केजरीवाल ने अपनी राजनीतिक पार्टी की शुरुआत कर दी है। नई दिल्ली के वीपी हाउस में अपने समर्थकों के बीच उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा के विधिवत शुभारंभ की घोषणा कर दी है। राजनीतिक दल का नामकरण भले ही २६ नवम्बर को होगा लेकिन पार्टी के माहौल बनाने का काम शुरू हो गया है। वीपी हाउस में पार्टी की घोषणा के वक्त अरविंद केजरीवाल के साथ कुछ ऐसे लोग भी आये जिनके बारे में माना जाता है कि वे गंभीर लोग हैं। इसलिए उम्मीद की जा रही है कि २६ नवम्बर को जब उनकी पार्टी का ऐलान होगा तो कुछ नया ज़रूर होगा।
जिस वीपी हाउस में अरविन्द केजरीवाल ने पार्टी बनाने का हसीन सपना देखा है उस वीपी हाउस में बार बार राजनीतिक इतिहास लिखा गया है। यहाँ कई बार राजनीतिक परिवर्तन की इबारत लिखी गयी है। हो सकता है कि गांधी जयन्ती के दिन अरविंद केजरीवाल के जिन मित्रों का जमावड़ा हुआ था वे किसी नई राजनीतिक शक्ति की शुरुआत के कारण बनें भी लेकिन इस सम्मलेन में कुछ कागज़ पत्र भी जारी किये गए जिनके आधार पर करीब डेढ़ महीने तक बहस  होगी और उसके बाद राजनीतिक पार्टी के गठन की विधिवत घोषणा की जायेगी।
किसी भी पार्टी की घोषणा के पहले उसके बारे में कुछ कहना बहुत ही मुश्किल काम होता है। इसलिए अभी तो सिर्फ अरविंद केजरीवाल और वीपी हाउस में इकठ्ठा हुए उनके साथियों के सपनों के बारे में बात की जायेगी। देश भर के बड़े अखबारों ने केजरीवाल की पार्टी की शुरुआत को बहुत महत्व दिया है और देश के सबसे बड़े अखबार दैनिक जागरण ने अरविंद केजरीवाल की पार्टी की खबर को भी खूब प्राथमिकता दी है।
ज़ाहिर है, हिन्दी क्षेत्रों में इस पार्टी के बारे में बहस शुरू हो चुकी है। जिस दिन पार्टी की घोषणा हुई उसके अगले दिन अखबार ने लिखा था कि अन्ना की जगह महात्मा गांधी और लालबहादुर शास्त्री के पोस्टर लगे मंच से केजरीवाल ने कहा कि, श्सभी दलों ने मिलकर जन लोकपाल आंदोलन को बार-बार धोखा दिया। हमें चुनौती दी गई कि खुद चुनाव लड़कर बनवा लो। आज हम इस मंच से एलान करते हैं कि हम चुनावी राजनीति में कूद रहे हैं। जनता राजनीति में कूद रही है।श् उनके साथ मंच पर राजनीतिक चिन्तक योगेंद्र यादव भी मौजूद थे। उन्होंने कहा कि आज के ज़माने में राजनीति ज़रूरी है, इससे अलग नहीं रहा जा सकता।
केजरीवाल ने पार्टी के विज़न डाकुमेंट, एजेंडा और उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया का मसौदा पेश किया है। अभी कल तक अन्ना हजारे की जयजयकार कर रहे अरविंद केजरीवाल ने उनके एक अहम सवाल का जवाब  भी दिया और अपने भाषण में ऐलान किया कि, श्बार-बार सवाल पूछा जा रहा है कि पैसा कहां से आएगा? लेकिन, ईमानदारी से चुनाव लड़ने के लिए पैसे की जरूरत नहीं होती। मौजूदा नेताओं ने ऐसा माहौल बना दिया है कि राजनीति सिर्फ गुंडों का काम बनकर रह गई है। हमें साबित करना है कि यह देशभक्तों का काम है।श्
जानकार बताते हैं कि उनकी नई पार्टी में केजरीवाल के अलावा प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, गोपाल राय, मनीष सिसोदिया और संजय सिंह को आलाकमान का रुतबा हासिल होगा। जो कागजपत्र पेश किये गए उन पर नज़र डालने से साफ़ समझ में आ जाता है कि अगर यह राजनीतिक पार्टी सत्ता में आ गयी तो बहुत जल्द एक ऐसी व्यवस्था कायम हो जायेगी जो हर तरह से आदर्श होगी।चुनाव में टिकट देने के मामले में इस पार्टी का बहुत ही साफ़ रुख होगा। एक परिवार के एक ही सदस्य चुनाव लड़ने दिया जाएगा। पार्टी का कोई भी सांसद, विधायक लाल बत्ती का इस्तेमाल नहीं करेगा। सांसद और विधायक सुरक्षा और सरकारी बंगला नहीं लेंगे। हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त जज पार्टी पदाधिकारियों पर लगने वाले आरोप की जांच किया करेगें। पार्टी को मिलने वाले सभी चन्दों का हिसाब पार्टी की वेबसाइट पर डाला जाएगा। दिल्ली की मुख्यमंत्री से नाराज़ और बिजली के बिल में हो रही अनाप शनाप वृद्धि के खिलाफ दिल्ली में आन्दोलन छेड़ा जाएगा।
अरविंद केजरीवाल की पार्टी के बारे में जो कुछ भी अब तक पता चला है  उसके आधार पर उनकी प्रस्तावित पार्टी से बहुत उम्मीदें नहीं बनतीं। आम आदमी का नाम लेकर शुरू की जा रही पार्टी के शुरुआती कार्यक्रम में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसके बल पर बहुत उम्मीद बन सके। लेकिन पार्टी के शुरू करने वालों को बहुत उम्मीदें हैं। केजरीवाल के साथी और गंभीर राजनीतिक कार्यकर्ता गोपाल राय से बात चीत करने का मौक़ा मिला।उनका कहना है कि इस देश में जब तक गाँवसभा में बैठे हुए आम आदमी को अपने आस पास का विकास करने का अधिकार नहीं मिलेगा, तब तक इस देश में सही मायने में लोकशाही की स्थापना नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों की नौकरशाही को जवाहरलाल नेहरू ने अपना लिया था। वहीं बहुत बड़ी गलती हो गयी थी। नौकरशाही के  बारे में उनकी पार्टी नए सिरे से विचार करेगी। लेकिन अभी यह साफ़ नहीं है कि नई नौकरशाही का स्वरुप क्या होगा। इस पर विचार चल रहा है। गोपाल राय से बात करके ऐसा लगता है कि केजरीवाल की पार्टी वही सब करना चाहती है जो महात्मा गाँधी के हिंद स्वराज और ग्राम स्वराज में राजनीतिक कार्य का मकसद बताया गया है। यह अलग बात है कि पूरी बातचीत में उन्होंने महात्मा गांधी का नाम एक बार भी नहीं लिया।
टीम केजरीवाल का आरोप है कि अभी जो व्यवस्था है उसमें सरकारें शुद्धरूप से वीआईपी का काम करती हैं। लेकिन यह ज़रूरी है कि उनको इस तरह से ढाला जाए कि वे आम आदमी का काम के लिए अपने आपको तैयार करें। पार्टी की तैयारी के बारे में भी अरविंद की टीम में काफी हद तक सहमति बन चुकी है। हरावल दस्ता तो वही होगा जो जनलोकपाल के लिए अन्ना हजारे के आन्दोलन में उनके साथ था। लेकिन इसमें उन लोगों को नहीं लिया जाएगा जो अब अलग हो चुके हैं। इस वर्ग में किरण बेदी जैसे लोगों का नाम है। रामदेव से भी अब इन लोगों का कोई लेना देना नहीं है। यह बात तो पहले ही साफ़ हो चुकी है जब टाइम्स नाउ चौनल पर रामदेव के ख़ास साथी वेद प्रताप वैदिक ने अरविंद और उनके साथियों का मजाक उड़ाया था। दूसरा वर्ग उन लोगों का होगा जो किसी भी तरह के जनांदोलनों में काम कर रहे हैं वे भी पार्टी में कार्यकर्ता के रूप में शामिल किये जायेगें। तीसरा वर्ग उन लोगों का होगा जो भ्रष्टाचार से ऊब चुके हैं और जो नई पार्टी एके साथ रहेगें लेकिन बहुत सक्रिय नहीं रहेगें। वास्तव में यही वर्ग पार्टी का जनाधार होगा।
अभी तक के अरविंद केजरीवाल की जो सोच है उसके लागू होने पर देश में एक बहुत बड़ा आन्दोलन शुरू हो सकता है। लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि  भारत का मध्यवर्ग इस पार्टी को कितनी गंभीरता से लेता है। भ्रष्टाचार के खिलाफ जो आन्दोलन चला था उसमें तो यह लोग सफल नहीं रहे थे। इनके ऊपर आरोप लगते रहे हैं कि इन्होने जनता के भ्रष्टाचार विरोधी गुस्से को शासक वर्गों के हित के लिए तबाह कर दिया था और आम आदमी में निराशा भर दी थी। अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन से देश के मध्य वर्ग में बहुत ही ज्यादा उत्साह जगा था और लगने लगा था कि भ्रष्टाचार पर आम आदमी की नज़र है, वह ऊब चुका है और अब निर्णायक प्रहार की मुद्रा में है। आम आदमी जब तक मैदान नहीं लेता, न तो उसका भविष्य बदलता है और न ही उसके देश या राष्ट्र का कल्याण होता है। शायद इसीलिए जब भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे ने आवाज़ बुलंद की तो पूरे देश में लोग उनकी हाँ में हां मिला बैठे। लगभग पूरा मध्यवर्ग अन्ना और अरविंद केजरीवाल के साथ था। भ्रष्टाचार के प्रतीक के रूप में केंद्र की कांग्रेस की सरकार को घेर कर जनमत की ताक़त हमले बोल रही थी लेकिन इसी बीच अन्ना हजारे के आन्दोलन की परतें खुलना शुरू हो गईं।
यह भी शक़ हुआ था कि कहीं भ्रष्टाचार के खिलाफ उबल रहे जनआक्रोश को दिशा भ्रमित करने के लिए धन्नासेठों ने अन्ना हजारे और उनकी टीम के ज़रिये हस्तक्षेप किया हो। यह डर बेबुनियाद नहीं है क्योंकि ऐसा बार बार हुआ है। आम आदमी को अरविंद केजरीवाल की टीम से बहुत उम्मीदें हैं। यह तो भविष्य ही बताएगा कि आम आदमी अरविन्द केजरीवाल की पार्टी सिर्फ उनके हसीन सपना बनकर रह जाएगी या फिर वह आम आदमी के उम्मीदों को पूरा करेगी।

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