बुधवार, 4 जनवरी 2012

राहुल की अपरिपक्वता बचा रही मनमोहन को


बजट तक शायद चलें मनमोहन . . . 66

राहुल की अपरिपक्वता बचा रही मनमोहन को

किस्मत के धनी हैं मनमोहन



(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। देश के अब तक के सबसे लाचार और बेबस वजीरे आजम तथा भ्रष्टाचार के ईमानदार संरक्षक होने का अघोषित खिताब पा चुके डॉ.मनमोहन सिंह का भाग्य बेहद प्रबल है, यही कारण है कि इतने विरोध के बाद भी अब तक इस कुर्सी पर विराजमान हैं। जानकारों का मानना है कि कांग्रेस की नजर में भविष्य के वजीरे आजम राहुल गांधी की अपरिपक्वता मनमोहन सिंह के लिए वरदार ही साबित हो रही है।
देश में पिछले दो सालों से अराजकता की स्थिति बनी हुई है। निरंकुश मंत्री और नौकरशाहों को रियाया की मानो फिकर ही नहीं रह गई है। जिसे मौका मिल रहा है देश को लूटने मे ही लगा हुआ है। इक्कीसवीं सदी के पहले ही दशक में जितने घपले घोटाले भ्रष्टाचार के मामले जनता के सामने प्रमाणिक तरीके से आए उसके बाद तो देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस को जनता से नजरें मिलाने का दुस्साहस कतई नहीं करना चाहिए।
कांग्रेस अब पूरी तरह राहुल की बैसाखी पर ही चल रही है। राहुल भी राजनैतिक तौर पर अभी परिपक्व नहीं कहे जा सकते हैं। गौरतलब है कि वर्ष 2011 के दरम्यान कांग्रेस की राजमाता और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की चेयरपर्सन श्रीमति सोनिया गांधी को रहस्यमय बीमारी (जो अब तक सार्वजनिक नहीं की गई, अफवाहों में जिसे कैंसर माना गया था) ने अपनी चपेट में ले लिया था।
इस बीमारी के कारण सोनिया गांधी को लंबे समय तक देश के बाहर ही रहना पड़ा था। देश में आरक्षण की हिमायती सोनिया गांधी को अपने देश के चिकित्सकों पर विश्वास नहीं था। यही कारण था कि उन्होंने दुनिया के चौधरी अमेरिका की शरण में जाकर करोड़ों अरबों रूपए फूंककर अपना इलाज करवाया। इस पूरे इलाज का भोगमान किसने भोगा है यह बात भी अभी तक भविष्य के गर्भ में ही है।
सोनिया की अनुपस्थिति का लाभ लेने में नाकाम रहे विपक्ष की जुगलबंदी भी कांग्रेस के साथ अच्छी ही दिखाई पड़ी। एक तरफ कांग्रेस के नेता अपनी राजमाता की अनुपस्थिति में असहाय महसूस करते रहे वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के प्रबंधकों ने विपक्ष को अच्छी तरह साधे रखा ताकि कोई बखेड़ा खड़ा न हो पाए।
इस मौके का फायदा उठाने से राहुल गांधी चूक ही गए। अगर सोनिया की अनुपस्थिति में राहुल गांधी कांग्रेस का नेतृत्व कर अपने आप को साबित कर पाते तो उनके नेतृत्व में देश के कांग्रेसी चलने को राजी हो जाते। कहा जा रहा है कि यह तो चतुर सुजान मनमोहन सिंह का कुशल प्रबंधन था कि राहुल गांधी को सियासी गलियारों से दूर गांव की मिट्टी की सौंधी गंध लेने दौड़ाए रखा गया।

(क्रमशः जारी)

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