शुक्रवार, 1 जून 2012

भाजपा में खदबदाता असंतोष सड़कों पर!


भाजपा में खदबदाता असंतोष सड़कों पर!

गड़करी, आड़वाणी में खिची तलवारें

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। चाल, चरित्र और चेहरा एवं कथित अनुशासन के लिए मशहूर भारतीय जनता पार्टी के अंदर खदबदाता असंतोष अब सड़कों पर आ गया है। अपनी उपेक्षा से नाराज लाल कृष्ण आड़वाणी ने अब पार्टी मंच से इतर ब्लाग के जरिए अपनी व्यथा सार्वजनिक की तो उधर, गड़करी ने अब आड़वाणी की उपेक्षा आरंभ कर दी है। गड़करी की जुंडाली सार्वजनिक तौर पर आड़वाणी को लानत मलानत भेजने का काम करने में जुट गई है।
कांग्रेस के पेट्रोल की कीमतों के बढ़ाने का विरोध करने के लिए भाजपा ने 31 मई का दिन चुना। इसी दिन अपनी उपेक्षा से दुखी राजग के पीएम इन वेटिंग रहे एल.के.आड़वाणी ने ब्लाग पर भाजपा के बारे में उल जलूल लिखकर सनसनी पैदा कर दी। आड़वाणी के निशाने पर इस समय भाजपा के निजाम नितिन गड़करी हैं।
भाजपा के शीर्ष नेता आड़वाणी ने अपने ब्लाग पर लिखा है कि भाजपा के रवैए से लोग निराश हैं, इन परिस्थितियों में भाजपा को आत्म विश्लेषण की महती आवश्यक्ता है। चर्चा है कि आड़वाणी को उम्मीद थी कि इस बार भी उन्हें 2014 के आम चुनावों के लिए भाजपा के चेहरे के बतौर इस्तेमाल किया जाएगा। वस्तुतः एसा हुआ नहीं।
भाजपा में चल रही चर्चाओं के अनुसार आड़वाणी को अगर पुनः पीएम इन वेटिंग बना दिया जाता तो वे भाजपा की कार्यप्रणाली से कतई नाखुश नहीं रहते, और ना ही आत्म विश्लेषण का सुझाव देते। एक पदाधिकारी ने अपना नाम उजागर ना करने की शर्त पर कहा कि उमर दराज आड़वाणी अगर वाकई भाजपा की हालत से दुखी हैं तो उन्हें इस बारे में पहले ही चिंता करनी चाहिए थी। भाजपा के इस तरह के हालात रातों रात तो बने नहीं हैं।
उत्तर प्रदेश चुनावों के नतीजे आने के महीनों बाद आड़वाणी यूपी चुनाव का विश्लेषण कर लिख रहे हैं कि पार्टी में जोश की कमी यूपी चुनाव है। यूपी मंे बसपा के नकारे गए कुशवाह को पार्टी में लेना आत्मघाती ही साबित हुआ है। इसी तरह झारखण्ड और कर्नाटक के मसलों पर भाजपा के रवैए से भाजपा का भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान कमजोर ही साबित हो रहा है।
कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में स्वास्थ्य घोटाले के आरोपी बाबू सिंह कुशवाहा को भाजपा में शामिल करना, भ्रष्टाचार के आरोपों में आकंठ डूबे तत्कालीन मुख्यमंत्री येदियुरप्पा के खिलाफ कड़ा कदम ना उठाना आड़वाणी की नाराजगी की वजहंें प्रमुख तौर पर सामने आ रही हैं।
इसके अलावा झारखण्ड में राज्य सभा चुनावों में भाजपा की जिस तरह भद्द पिटी है उससे पार्टी का नाम ही खराब हुआ है। सूबे में एस.एस.अहलूवालिया के स्थान पर विधायकों की खरीद फरोख्त के आरोपी अंशुमान को टिकिट देना फिर वापस अहलूवालिया को लाना और अहलूवालिया का हार जाना पार्टी की साख पर खासा धब्बा है।
31 मई को भारत बंद के उपरांत दिल्ली स्थित नितिन गड़करी के निवास पर हुई समीक्षा बैठक में आड़वाणी की अनुपस्थिति पर भी विश्लेषक शोध में जुट गए हैं। एक तरफ कहा जा रहा है कि इस बैठक का आड़वाणी ने बहिष्कार किया तो दूसरी ओर यह बात भी फिजां में तैर गई है कि आड़वाणी की गड़करी द्वारा जानबूझकर उपेक्षा की जा रही है। इस बैठक में आड़वाणी को आमंत्रित ही नहीं किया गया था।
उधर, झारखण्ड प्रकरण में आड़वाणी के वीटो से नाखुश अंशुमान मिश्रा ने भी आड़वाणी के खिलाफ तलवार निकाल ली है। भाजपाई सूत्रों का कहना है कि अंशुमान मिश्रा ने राजग के पीएम इन वेटिंग रहे एल.के.आड़वाणी को एक कड़ा और खुला पत्र लिखा है। इस पत्र में अंशुमान ने अपने सारे अरमान निकाल लिए हैं। पत्र में लिखा गया है कि अब आपकी (आड़वाणी की) उम्र नाती पोते खिलाने की है, आप अब राजनीति से तौबा कर वानप्रस्थ आश्रम का लाभ उठाएं। आप नाहक ही राजनैतिक अड़ंगेबाजी को अंजाम ना दें।
इस तरह आरोप प्रत्यारोप के दौर में भाजपा के अंदर मची कलह अब सड़कों पर आने से संघ बेहद खफा नजर आ रहा है। माना जा रहा है कि गड़करी की दूसरी पारी में इसके पहले की वे कड़े और अप्रिय फैसले लें उन्हें हर तरफ से हताश करने का प्रयास जारी है। एकाएक बलात हाशए पर ढकेल दिए गए आड़वाणी को अब चहुंओर अंधकार ही नजर आ रहा होगा तभी उन्होंने अब अपने सारे घोड़े छोड़ दिए हैं।

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