गुरुवार, 16 अगस्त 2012

पंवार से भयाक्रांत हैं सोनिया!


पंवार से भयाक्रांत हैं सोनिया!

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। कांग्रेस के हरदिल अजीज़ मराठा क्षत्रप विलासराव देशमुख के अवसान के बाद कांग्रेस के अंदर मराठा क्षत्रप शरद पंवार को लेकर भय का वातावरण और गहरा गया है। इससे पहले पंवार के तल्ख तेवरों ने सोनिया गांधी को हिलाकर रख दिया था। पिछले कुछ घटनाक्रम कमोबेश इसी ओर इशारा कर रहे हैं।
शरद पंवार के करीबी सूत्रों का दावा है कि पंवार की तल्खी इस बात को लेकर है कि उनकी पुत्री सुप्रिया सुले को लाल बत्ती क्यों नहीं दी जा रही है। पंवार की हर संभव कोशिश है कि उनकी लाल बत्ती और रसूख बरकरार रहने के साथ ही साथ उनकी पुत्री सुप्रिया को भी महिमा मण्डित किया जा सके। पंवार द्वारा अंदर ही अंदर राहुल गांधी को प्रोजेक्ट किए जाने का उदहारण देते हुए अपनी पुत्री को आगे बढ़ाना आरंभ कर दिया है।
पिछले दिनों देश के महामहिम उपराष्ट्रपति चुनावों के एन पहले गरीब गुरूबों की पार्टी होने का दावा करने वाली कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी द्वारा राजधानी दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में दिए गए आलीशान भोज में जो समीकरण दिखे उससे लगने लगा है कि जल्द ही सुप्रिया सुले भी केंद्रीय मंत्रीमण्डल का हिस्सा बनने जा रही हैं।
पांच सितारा होटल में हुए इस लंच में सुप्रिया सुले को ना केवल सोनिया गांधी ने अपनी टेबिल पर स्थान दिया वरन् उन्हें बीच बीच में खाने के लिए पूछा भी। वहां उपस्थित लोगों के अनुसार यह सब कुछ पंवार द्वारा बरीक नजरों से देखा जा रहा था। कांग्रेस पंवार के भय से इस कदर खौफजदा है कि उसने राकांपा के तारिक अनवर को प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह की टेबिल पर बिठाया।
कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ (बतौर सांसद श्रीमति सोनिया गांधी को आवंटित सरकारी आवास) के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया, को बताया कि दरअसल, महाराष्ट्र में भी कांग्रेस की हालत पतली होती जा रही है, और उस समय विलास राव देशमुख की हालत नाजुक होने से दूसरे मराठा क्षत्रप सुशील कुमार शिंदे को देश का गृह मंत्री बनाकर समीकरण को संतुलित करने का प्रयास किया गया था।
सूत्रों की मानें तो कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी की नजरों में शिंदे की अहमियत वैसे तो देशमुख से कम ही है, पर अन्य कोई विकल्प ना होने के चलते मजबूरी में शिंदे को गृह मंत्री जैसा बड़ा ओहदा दिया है। बताते हैं कि इस खेल में बड़े उद्योगपतियों का भी हाथ है। अब जबकि देशमुख का अवसान हो चुका है तब शरद पंवार अगर अपना दबाव बढ़ा देते हैं तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

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