सोमवार, 16 अप्रैल 2012

सूर्य की तपन से सूखे लब


सूर्य की तपन से सूखे लब

(अभय नायक)

रायपुर (साई)। जैसे जैसे अपे्रल माह में भगवान भास्कर का तांडव बढ़ता जा रहा है लोगों के ओंठ भी पानी को तरसते जा रहे हैं। नगर निगम रायपुर के प्यास बुझाने के दावों की कलई अब धीरे धीरे खुलने लगी है। अनेक स्थानों पर पानी का प्रदाय ना हो पाने से विस्फोटक स्थिति बन रही है। अप्रेल में यह हाल है तो मई माह की कल्पना मात्र से ही रूह सिहर जाती है।
गर्मी आते ही शहर के कई क्षेत्रों में पानी के लिए मारामारी मच गई है। अब तक टैंकरों के लिए टेंडर भी नहीं हो पाया है। फिल्टर प्लांट में भी हाई पॉवर मोटर पंप कभी भी जवाब दे जाते हैं। इससे अधिकतर टंकियों में पर्याप्त पानी नहीं भर पाता और लोगों के घरों में नलों की धार पतली हो गई है। लोग निगम प्रशासन को कोस रहे हैं।
निगम के दावों के विपरीत हकीकत यह है कि जरूरत वाले इलाकों में लोग सुबह व शाम टैंकर का इंतजार करते देखे जा सकते हैं। गुढि़यारी के गोगांव, कबीरनगर, कोटा, विकासनगर, डंगनिया, टाटीबंध, मोवा, सड्डू व दलदल सिवनी से टैंकरों की लगातार मांग आ रही है। लोगों की शिकायत है कि बार-बार कहने के बाद भी टैंकर समय पर नहीं पहुंच रहे। नगर निगम के अधिकारियों व कर्मचारियों की मिलीभगत से उन्हीं क्षेत्रों में टैंकर पहुंचाए जा रहे हैं जहां उनकी मर्जी हो। नलघर में बार-बार फोन लगाने के बाद भी रिसीव नहीं करने की शिकायत लोगों की है।
गौरतलब है कि 303.64 करोड़ की जल आवर्धन योजना लक्ष्य से दो साल पीछे चल रही है। राजधानी बनने के 11 साल बाद भी कई इलाकों में पाइप लाइन तक नहीं बिछ पाई है। यहां पूरी गर्मी टैंकरों के भरोसे ही काटनी पड़ती है। पिछली परिषद ने टैंकर पर तीन से साढ़े तीन करोड़ रुपए खर्च कर दिए थे।
इसके अलावा वर्ष 2010 में चार करोड़ रुपए फूंक दिए। यानी दो साल में साढ़े सात करोड़ रुपए टैंकरों पर बहा दिए गए। पूर्व महापौर सुनील सोनी वाली परिषद ने पांच साल में दो करोड़ 86 लाख रुपए खर्च किए थे। इस साल भी एक बड़ा इलाका गर्मियों में टैंकरों के ही भरोसे रहने वाला है।

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