सोमवार, 16 अप्रैल 2012

दम तोड़ रही उत्तराखण्ड में विद्युत परियोजनाएं


दम तोड़ रही उत्तराखण्ड में विद्युत परियोजनाएं

(चंद्र शेखर जोशी)

देहरादून (साई)।उत्तराखंड में पिछले तीन सालों में पांच जल विद्युत परियोजनाएं हमेशा के लिए बंद कर दी गई। एक अनशन पर केंद्र सरकार को यह निर्णय लेना पड़ा। राज्य सरकार अपने संसाधनों पर की जा रही इस चोट का ढंग से विरोध तक नहीं कर पा रही थी। अब नई सरकार बनने के बाद हालात बदले हैं। राज्य सरकार ने खुलकर अपनी बात रखने की हिम्मत दिखाई है। बदले राजनीतिक हालात में इसके पीछे केंद्र की सहमति समझी जा रही है।
जब 2008 में जीडी अग्रवाल पहली बार अनशन पर बैठे तो उनकी मांग थी, गोमुख से उत्तरकाशी तक गंगा का अविरल प्रवाह। भाजपा की राज्य सरकार ने हाई कमान के निर्देश पर उत्तराखंड जल विद्युत निगम की भागीरथी पर निर्माणाधीन पाला मनेरी और भैरोघाटी परियोजनाओं को स्थगित कर दिया। भाजपा की मंशा साफ दिखाई दे रही थी, वह अयोध्या के बाद गंगा को राजनीतिक मुद्दा बनाना चाहती थी। केंद्र की कांग्रेस सरकार ने भी एक दो जांचों की औपचारिकता पूरी की और राज्य सरकार के स्थगन को आधार बनाकर दोनों परियोजनाओं को हमेशा के लिए बंद कर दिया। यहां तक कि इस मामले में केंद्र सरकार द्वारा खुद गठित की गई इंपावर्ड कमेटी की सिफारिशों पर भी गौर नहीं किया गया। उसके बाद कुंभ से ठीक पहले एक और जांच बैठाकर लोहारीनाग पाला परियोजना को भी हमेशा के लिए बंद कर दिया गया।
इन परियोजनाओं को स्थगित करने और बंद करने की जो पहल भाजपा और कांग्रेस की सरकारें कर रही थी, उसके पीछे मंशा एक दूसरे को राजनीतिक लाभ लेने से रोकने की थी। दो राजनीतिक दलों की निहित स्वार्थ की राजनीति में भागीरथी की तीन परियोजनाओं को हमेशा के लिए बंद क्या कर दिया, गंगा के नाम पर राजनीति करने वालों को अपनी मांग को विस्तार देने का मौका मिल गया।
पहले मांग सिर्फ गोमुख से उत्तरकाशी तक अविरल धारा की थी, अब अलकनंदा समेत गंगा की सभी सहायक नदियों में परियोजनाएं बंद करने की हो गई। इस क्रम में आइआइटी रुड़की की टीम ने अलकनंदा की जांच की और कोटली भेल श्रृंखला की चार में दो परियोजनाओं को भी हमेशा के लिए बंद कर दिया गया। एक अनशन में मांग मानी गई तो अगले अनशन में मांगों में विस्तार हो गया।
उधर, भाजपा और कांग्रेस की मूल चिंता एक दूसरे को राजनीतिक लाभ देने से रोकने की थी। राष्ट्र को होने वाली ऊर्जा हानि राजनीति के पीछे चली गई। न ही कड़े पर्यावरणीय मानक तय किए गए, ताकि नदियों का पारिस्थितिक तंत्र भी बचा रहे और मौजूद जल संसाधन का उपयोग ऊर्जा उत्पादन के लिए किया जा सके। अब राज्य में भी कांग्रेस की सरकार है। हर छोटी से छोटी बात पर हाई कमान का मुंह ताकने वाली बहुगुणा सरकार ने जिस तरह सत्ता संभालते ही जल विद्युत परियोजनाओं पर अपना पक्ष रखा है, उससे लगता है कि उसे केंद्र की हरी झंडी मिली हुई है। 

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