बुधवार, 21 दिसंबर 2011

जयराम रमेश ने भी आनन फानन निपटाई झाबुआ पावर की नस्ती


0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . . 35

जयराम रमेश ने भी आनन फानन निपटाई झाबुआ पावर की नस्ती

फरवरी 201 में मिल गई थी पर्यावरण स्वीकृति



(फीरोज खान)

नई दिल्ली (साई)। मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा छटवीं सूची में अधिसूचित मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य विकासखण्ड घंसौर में स्थापित होने वाले 1200 मेगावाट (अब 1260 मेगावाट) के कोल आधारित पावर प्लांट के प्रथम चरण को लगभग दो वर्ष पूर्व केंद्र सरकार से पर्यावरण की अनुमति मिल गई।

केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि तत्कालीन मंत्री जयराम रमेश ने मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड को पर्यावरण की अनुमति जल्द दिलाने में विशेष भूमिका अदा की है। सूत्रों ने बताया कि मंत्रालय ने 17 फरवरी 2010 को नस्ती क्रमांक जे - 13012 / 105 / 2008 पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगा दी थी।

गौरतलब है कि 22 अगस्त 2009 को घंसौर तहसील में हुई लोकसुनवाई में अनेक विसंगतियां प्रकाश में लाई गईं थीं। इसके बावजूद भी मध्य प्रदेश प्रदूषण मण्डल द्वारा अपने प्रतिवेदन में उन बातों का जिकर न करना आश्चर्यजनक ही माना जा रहा है। आरोपित है कि 22 अगस्त को संपन्न होने वाली लोकसुनवाई के बारे में मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल द्वारा अपनी वेब साईट पर इसकी जानकारी काफी शोर शराबा होने के बाद पांच दिन पूर्व 17 अगस्त 2009 को डाला था।

इतना ही नहीं लोकसुनवाई का कार्यवाही विवरण भी मण्डल की वेब साईट पर काफी विलंब से और अपठनीय ही डाला गया है जिससे यह जानना अत्यंत दुष्कर ही है कि इस लोकसुनवाई में किसने क्या क्या अपत्ति प्रस्तुत की थी। घंसौर के ग्राम बरेला के प्राथमिक शाला भवन में आयोजित इस लोकसुनवाई में मध्य प्रदेश प्रदूषण मण्डल के जबलुपर क्षेत्र के क्षेत्रीय अधिकारी पुष्पेंद्र सिंह और जिला प्रशासन सिवनी की ओर से अतिरिक्ति जिला दण्डाधिकारी श्रीमति अलका श्रीवास्तव उपस्थित थीं।

मण्डल के सूत्रों के अनुसार कार्यवाही विवरण में कहा गया है कि मौके पर उपस्थित एडीएम श्रीमति अलका श्रीवास्तव द्वारा जन समुदाय को आश्वस्त किया गया था कि जो आपत्तियां दर्ज करवाई गईं हैं, उन्हें मध्य प्रदेश प्रदूषण मण्डल के माध्यम से मूल रूप में ही केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को भेज दिया जाएगा। इसके बाद मंत्रालय की विशेषज्ञ समिति ने इन आपत्तियों पर क्या किया इस बारे में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, मध्य प्रदेश सरकार, मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल, जिला प्रशासन सहित राजनैतिक दल और पर्यावरण का बीड़ा उठाने वाली संस्थाएं पूरी तरह मौन साधे बैठीं हैं।

(क्रमशः जारी)

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