. . . तो क्यों अलापते हो आपदा प्रबंधन का राग
(लिमटी खरे)
मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में रानी अवंती बाई सागर परियोजना के डूब वाले इलाके में 6 अप्रेल को चाईम्स एविएशन के एक विमान के गिरने की खबर से सनसनी फैल गई थी। इसके पहले इसी साल मकर संक्रांति के दिन इसी जिले के अरी के पास के जंगलों में सेना के एक विमान के क्रेश होने की खबर भी पंख लगाकर उड चुकी है। इस विमान का तो आज तक पता नहीं चल सका है, यह विमान सेना का था या अन्य किसी निजी या सरकारी उपक्रम का यह तो पता नहीं चल सका है, पर यह एक किंवदंती बनकर रह गया है।हरियाणा की चाईम्स एविएशन कंपनी जिसका एक बेस सागर के पास ढाना में भी है, वहां से प्रशिक्षु पायलट रितुराज ने अबाउट टर्न के लिए बालाघाट के बैहर के लिए उडान भरी थी। शाम ढलते ही उसका सब ओर से संपर्क टूट गया। कुछ मछुआरों ने इसे गढाघाट के समीप जल समाधि लेते देखा था।इसके बाद जबलपुर और सिवनी जिला प्रशासन ने तत्परता के साथ इसकी खोज आरंभ करवा दी थी। विशाखापट्टनम, आगरा आदि से प्रशिक्षित गोताखोरों को बुलवाया गया। इन गोताखोरों का राजसी अंदाज तो देखिए बिना साजो सामान के ही ये सिवनी पहुंच गए। फिर जब इनके उपकरण आए तब इन्होंने काम चालू किया। पर अफसोस निराशा ही हाथ लगी। इसके बाद अत्याधुनिक समझा जाने वाला ``सोनार`` रडार भी नाकाफी साबित हुआ।रितुराज के परिजनों पर क्या बीती होगी इसकी कल्पना मात्र से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। रितुराज के परिजनों ने हार नहीं मानी। उन्होंने निजी तोर पर सी लाईन डाईविंग कंपनी के प्रशिक्षित गोताखोरों को इसके लिए पाबंद किया। इन गोताखोरों ने पचास से भी अधिक गोते लगाने के बाद 52 दिनों के पश्चात आखिरकार विमान को आखिरकार ढूंढ ही लिया।एक निजी समाचार चेनल ने ``बेटे की खातिर`` शीर्षक से इस कार्यक्रम की जीवंत तस्वीरें दिखाईं। कितने आश्चर्य की बात है कि प्रशासन ने जब अपने स्तर पर अभियान चलाया था, तब पूरा इलाका सील कर ग्रामीणों को दूर रखा था। उन्हीं ग्रामीणों की निशानदेही और उत्साह भरे सहयोग के चलते रितुराज का शव और विमान निकाला जा सका।रितुराज के मामा सतीश सिंह ने इस पूरे आपरेशन में जबलपुर जिलाधिकारी के सहयोग को अवश्य रेखांकित किया है। बकौल सतीश सिंह गांव वालों ने जहां बताया था, वहीं वह विमान मिला। यह अलहदा बात है कि गर्मी के चलते बरगी बांध का जलस्तर काफी कम हो गया है, जिसके चलते गोताखोरों को विमान ढूंढने में आसानी हुई। हीलियम गैस वाले बैलून से निजी तौर पर गोताखोरों ने वह काम कर दिखाया जिसे सरकारी तौर पर अंजाम दिया जाना था।इस पूरे आपरेशन में चाईम्स एविएशन की भूमिका भी संदिग्ध ही मानी जा सकती है। पूरे आपरेशन में चाईम्स एविएशन की ओर से कोई प्रतिक्रिया तक व्यक्त न किया जाना उनकी मानवता के प्रति संवेदनाअों को रेखांकित करने के लिए काफी कहा जा सकता है।अब विमान निकाला जा चुका है। इसके बाद नागर विमानन मंत्रालय या संचालक नागर विमानन (डीजीसीए) क्या कदम उठाता है, यह तो भविष्य के गर्त में है, किन्तु इसके अंदर के ब्लेक बाक्स से काफी कुछ राज खुल सकते हैं। विमान में ब्लेक बाक्स उसकी टेल में होता है, क्योकि माना जाता है कि विमान के उस भाग को क्षति अपेक्षाकृत कम मामलों में होती है। क्या विमान में कम ईंधन था, या तकनीकि तौर पर विमान दुरूस्त नहीं था, या इस हादसे के पीछे और कोई कारण है? इन बातों पर से पर्दा तो तब उठ सकेगा जब डीजीसीए इसकी विधिवत जांच की घोषणा कर जांच करवाएगा।महाकौशल के जबलपुर जिले में विशाल जलसंग्रह क्षमता वाला बरगी बांध है तो सिवनी जिले में एशिया का सबसे बडा मिट्टी का बांध भीमगढ में संजय सरोवर परियोजना है। इन दोनों के निर्माण के दौरान आपदा प्रबंधन की जगह ठीक उसी तरह रखी गई होगी जिस तरह पुरूषों के लिए बनने वाले पैंट में पहले बटन और अब मियानी के लिए जगह छोडी जाती है।किसी भी बांध के बनाए जाते समय पानी के भराव क्षेत्र में से जंगलों का सफाया अमूमन कर ही दिया जाता है, क्योंकि एसा नहीं करने पर मूल्यवान लकडी के पानी में डूबकर सडने की आशंका बनी रहती है। निश्चित तौर पर रानी अवंतिबाई सागर परियोजना के निर्माण के दौरान भी यही किया गया होगा। अब तो इसे बने इतना समय बीत चुका है कि इसे बनाने वाले सरकारी मुलाजिम सेवानिवृत हो चुके होंगे, इसलिए उनकी जवाबदेही तय करने से समस्या का हल नहीं हो सकता है। किन्तु आने वाले समय के लिए इससे सबक लिया जाकर नए बांधों या गर्मी में भराव क्षेत्र कम होने पर लकडी के डूंढ आदि को काट दिया जाना ही श्रेयस्कर होगा।विडम्बना ही कही जाएगी कि रितुराज के हादसे ने आपदा प्रबंधन की पोल खोलकर रख दी है। याद नहीं पडता आज तक आपदा प्रबंधन को लेकर कभी मॉक िड्रल भी हुआ हो। आपदा प्रबंधन के लिए तैनात कर्मचारी भी अब अपना मूल दायित्व भूल चुके हों तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
कमल नाथ ने दिखाए आक्रमक तेवर
कहा कागज पर नहीं जमीन पर चाहिए सड़क
पांच सालों से ठप्प पड़ी है, स्विर्णम चतुर्भुज योजना
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। माना जा रहा था कि केंद्र में भूतल परिवहन मंत्री बनने के उपरांत कमल नाथ अपनी नाराजगी जरूर दिखाएंगी, वस्तुत: एसा हुआ नहीं। कार्यभार संभालते ही अधिकारियों के साथ बैठक में कमल नाथ ने तीखे तेवर अिख्तयार किए। पिछले पांच सालों के कार्यकाल को देखकर उन्होंने साफ तौर पर कह दिया है कि उन्हें सड़क जमीन पर चाहिए कागजों में नहीं।कमल नाथ के करीबी सूत्रों का दावा है कि विभागीय कामकाज की समीक्षा के साथ ही वे अचरज में पड़ गए कि पिछले पांच सालों में कागजों पर तो योजनाएं फल फूल रहीं हैं, किन्तु वास्तविकता में इसमें एक इंच भी काम नहीं हुआ है। तेज गति से परिणाममूलक काम करने के आदी कमल नाथ के साथ विभागीय अफसर बहुत अधिक कंफर्टेबल नहीं दिखे।उधर कांग्रेस के सत्ता के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ से जुड़े सूत्रों का कहना है कि पिछले पांच सालों में इस विभाग का काम कच्छप गति से चल रहा था, जिसे दुरूस्त करने और पटरी पर लाने की महती जिम्मेदारी कमल नाथ को सौंपी गई है। ज्ञातव्य है कि इस विभाग का जिम्मा पिछली मर्तबा द्रमुक कोटे से टी.आर.बालू के पास था।सूत्रों ने बताया कि कमल नाथ को मानव संसाधन विकास मंत्रालय का कार्यभार सौंपे जाने की तैयारी कर ली गई थी, किन्तु सडकों के हालात और मध्य प्रदेश के अन्य क्षत्रपों के दबाव के चलते उन्हें भूतल परिवहन का जिम्मा सौंपा गया है। वैसे भी सडक विकास मंत्रालय का काम गति पकड़े इसलिए कमल नाथ को इसकी जवाबदारी दी गई है।गौरतलब होगा कि अफसरशाही पर लगाम कसकर बिखरे हुए तारों को समेटकर पटरी पर लाने के लिए कमल नाथ काफी माहिर माने जाते हैं। वैसे भी भूतल परिवहन में नौकरशाही का जाल बुरी तरह फैला हुआ है। हर कदम पर एक नई उलझन का सामना करना होता है, कभी अधिग्रहण का तो कभी रक्षित वन (रिजर्व फारेस्ट) की झंझट।इतना ही नहीं इस मंत्रालय के काम में राज्य सरकारों का भी पूरा पूरा दखल होता है। पिछली बार बालू यह कहकर बच जाया करते थे कि राज्य सरकारें उन्हें वांछित सहयोग प्रदान नहीं कर रही हैं, किन्तु कमल नाथ की बात ही कुछ ओर है। वे राज्यों के मुख्यमंत्रियों को अपने दरबार में बुलाकर योजनाओं के सफल क्रियान्वयन का खाका रखकर मुख्यमंत्रियों को फसाने में माहिर माने जाते हैं।
जेतली से बुरी तरह खफा है संघ
दो माह तक ``कीप मम`` की नसीहत दी भाजपाईयो को
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा विधानसभा के बाद आम चुनावों में भाजपा के प्रमुख रणनीतिकार अरूण जेतली को कड़ी फटकार लगाई है। साथ ही संघ ने भाजपा की हार पर टिप्पणी करने वाले बयानवीर नेताओं को कम से कम दो माह तक मुंह बंद रखने की हिदायत भी दी है।ज्ञातव्य है कि भाजपा और संघ द्वारा आम चुनावों में हार की समीक्षा अपने अपने स्तर पर की जा रही है। एक ओर संघ ने एक कमेटी बनाकर हार के कारणों की समीक्षा आरंभ की है तो दूसरी ओर भाजपा नेता समीक्षा को अपने नजररिए से देखकर मीडिया को इंटरव्यू दे रहे हैं। हाल ही में एक अंग्रेजी समाचार पत्र में अरूण जेतली के साक्षात्कार संघ को नागवार गुजरा। सूत्रों ने बताया कि इसके तुरंत बाद ही संघ ने जेतली से जवाब तलब किया। संघ के सहकार्यवाहक भैयाजी जोशी ने तो साफ तोर पर जेतली को समीक्षा पूरी होने तक मीडिया से पर्याप्त दूरी बनाने का मशिविरा दे डाला।सूत्रों के अनुसार तीन चरणों हार की समीक्षा की जा रही है। राज्यवार समीक्षा लगभग दो माह में पूरी होने की उम्मीद है। इसक दूसरे चरण में संघ द्वारा भाजपा के साथ बैठकर हार के कारणों का चिंतन किया जाएगा। और तीसरे चरण में हार की वजहों को दूर करने का प्रयास किया जाएगा।सूत्रों ने यह भी बताया कि दो एक माह में ही भारतीय जनता पार्टी में व्यापक फेरबदल होना तय है। संघ अब युवाओं को आगे लाने की हिमायत कर रहा है। नेता प्रतिपक्ष के लिए संघ की पहली पसंद सुषमा स्वराज हैं, जो आने वाले कुछ महीनों में आड़वाणी का स्थान ले लेंगी।
रविवार, 31 मई 2009
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