मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

पूरी तरह समृद्ध है महाकौशल का आंचल


0 महाकौशल प्रांत का सपना . . . 3

पूरी तरह समृद्ध है महाकौशल का आंचल

प्राकृतिक और हर तरह के संसाधनों में आत्मनिर्भर होगा महाकौशल


(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। महाकौशल प्रांत का अगर निर्माण किया जाता है तो यह प्रांत हर मामले में आत्मनिर्भर साबित हो सकता है। प्राकृतिक और नैसर्गिक संसाधनों के मामले में महाकौशल क्षेत्र का कोई सानी नहीं है। वनोपज के अथाह भण्डार को अपने दामन में सहेजने वाले महाकौशल के नेताओं को चाहिए कि वे महाकौशल की माटी के उपकार का कर्ज चुकाने इस प्रांत के प्रथक गठन के मार्ग प्रशस्त करें।

महाकौशल क्षेत्र में भगवान की अनुपम कृति के बतौर आदिवासी बाहुल्य छिंदवाड़ा जिले का पतालकोट है। इस क्षेत्र में भारिया नामक जनजाति सालों से गुजर बसर कर ही है। इस जनजाति का रहन सहन अपने आप में अनोखा और शोध का विषय है। इसी तरह प्रदेश की ताम्र परियोजना बालाघाट जिले में बैहर क्षेत्र तो छिंदवाड़ा जिले में सौंसर में है।
महाकौशल प्रांत से ही मध्य प्रदेश की जीवनरेखा पुण्य सलिला नर्मदा नदी का उद्गम डिंडोरी के अमरकंटक में तो पुण्य सलिला बैनगंगा का उद्गम सिवनी जिले के मुण्डारा में है। नर्मदा पर बने विशाल जलसंग्रह वाले रानी अवंती बाई सागर परियोजना के बरगी बांध और बैनगंगा पर बने संजय सरोवर परियोजना के एशिया के सबसे बड़े मिट्टी के बांध भीमगढ़ का नजारा ही अकल्पनीय है।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त साफ्ट संगमरमर की खदानें भेड़ाघाट में हैं। भेड़ाघाट में ही नर्मदा नदी पर बने जल प्रपात के नयनाभिराम दृश्य देखने के लिए देश विदेश से सैलानी यहां आते हैं। पान में लगाने वाला और दीवारों को सफेद करने वाला चूना भी इसी प्रांत के कटनी और मण्डला जिले में बहुतायत में पाया जाता है।

प्राकृतिक संसाधनों के मामले में महाकौशल का कोई सानी नहीं है। सतपुड़ा की वादियों में छिंदवाड़ा, सिवनी, मण्डला, डिंडोरी, बालाघाट जिलों के जंगलों की धरती वनोपज से लदी फदी है। जिसका अगर ठीक तरीके से दोहन कर लिया जाए तो देश विदेश में महाकौशल प्रांत धूम मचा सकता है। आयुर्वेद औषधियों के काम आने वाली जड़ी बूटियां भी इन्हीं जिलों में बहुतायत में पाई जाती है। महाकौशल प्रांत में ही आर्युवेदिक विश्विद्यालय की स्थापना की जाकर आयुष पद्यति को तेजी से बढ़ावा दिया जा सकता है।

(क्रमशः जारी)

नेहरू गांधी के अलावा कोई नहीं रहा सफल प्रधानमंत्री


बजट तक शायद चलें मनमोहन . . . 46

नेहरू गांधी के अलावा कोई नहीं रहा सफल प्रधानमंत्री

जनता के पैसे से खेली जा रही है होली


(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। केंद्र सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत काम करने वाले विज्ञापन दृश्य प्रचार निदेशालय (डीएवीपी) के द्वारा सौ करोड़ रूपयों से नेहरू गांधी परिवार (महात्मा गांधी नहीं) को महिमा मण्डित करने का प्रयास किया जा रहा है। विपक्ष भी इस मामले में अपनी मौन सहमति देकर शांत बैठा हुआ है। भारत निर्माण के तहत दो घंटे की एक सीडी तैयार करवाई जा रही है सौ करोड़ रूपए फूंककर।

डीएवीपी के सूत्रों ने बताया कि गीत एवं नाटक प्रभाग द्वारा बनाई गई इस सीडी में आजादी के उपरांत भारत गणराज्य के समग्र विकास का समूचा श्रेय नेहरू गांधी परिवार के वंशज जवाहर लाल नेहरू, उनकी पुत्री प्रियदर्शनी श्रीमति इंदिरा गांधी और उनके नवासे राजीव गांधी को दिया गया है। सूत्रों का कहना है कि नेहरू गांधी परिवार को महिमा मण्डित करने के लिए इतिहास को जमकर तोड़ मरोड़कर पेश किया गया है।

सीडी को देखकर लगने लगा है कि देश में 1947 के उपरांत महज तीन ही प्रधानमंत्री हुए हैं। इस सीडी में भाजपा के वजीरे आजम अटल बिहारी बाजपेयी और लाल बहादुर शास्त्री को महज तीन सेकंड दिए गए हैं। वृत्त चित्र में उनके नामों का भी उल्लेख नहीं किया गया है, महज उनके चित्र दिखाए गए हैं।

इस वृत्त चित्र में पूर्व प्रधानमंत्रियों विश्वनाथ प्रताप सिंह, पी.व्ही.नरसिंहराव, मोरारजी देसाई, इंद्र कुमार गुजराल, चौधरी चरण सिंह, चंद्रशेखर, एच.डी.देवगौड़ा आदि की पूरी तरह अनदेखी की गई है। इस डाक्यूमेंट्री में विकास और परिवर्तन का श्रेय नेहरू गांध्ी के वंशजों को दिया गया है। इसमें इंदिरा गांधी द्वारा रखी गई मजबूत बुनियाद पर राजीव गांधी ने आधुनिक भारत का निर्माण किया जाना दर्शाया गया है।

बताया जाता है कि कांग्रेस की राजमाता के इशारों पर बनी इस सौ करोड़ रूपए की सीडी के माध्यम से कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के लिए वजीरे आजम बनने के मार्ग प्रशस्त किए जा रहे हैं। अटल बिहारी बाजपेयी सहित गैर कांग्रेसी वजीरे आजम के बारे में जिकर न होना आश्चर्यजनक ही है। उससे अधिक आश्चर्य जनक तथ्य यह है कि इस मामले में विपक्ष पूरी तरह सन्निपात की स्थिति में है।

(क्रमशः जारी)

पहले महीने फर्राटे से दौड़ता है आईडिया का नेट


एक आईडिया जो बदल दे आपकी दुनिया . . .  32

पहले महीने फर्राटे से दौड़ता है आईडिया का नेट

दूसरे महीने से पैसेंजर गाड़ी को भी दे देता है मात


(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। आदित्य बिरला के स्वामित्व वाली आईडिया सेल्यूलर के इंटरनेट की अजब कहानी सामने आ रही है। ग्रामीण इलाकों से प्राप्त जानकारी के अनुसार आईडिया का इंटरनेट पहले महीने तो शताब्दी या सुपर फास्ट रेलगाड़ी के मानिंद चलता है, क्योंकि यह प्रमोशनल स्कीम के तहत निशुल्क होता है, किन्तु जैसे ही महीना पूरा होता है इसकी चाल पैसेंजर रेल गाड़ी से भी धीरे हो जाती है।

ग्र्रामीण इलाकों से आ रही खबरों के अनुसार आईडिया के नेट सेटर लेने पर पहले महीने की प्रमोशनल स्कीम के तहत इंटरनेट सुपर डुपर हिट तरीके से चलता है। जैसे ही उपभोक्ता द्वारा पहला रीचार्ज करवाया जाता है उसके बाद से उसे सर्वर नॉट फाउंड का ही संदेश देखने को मिलता है। दिन भर में सैकड़ों बार कनेक्ट करने पर भी आईडिया का नेट नहीं जुड़ पाता है।

उपभोक्ताओं को लुभाने के लिए जरूर यह बताया जाता है कि जिलों के ग्रामीण अंचलों में भी आईडिया का नेटवर्क है, किन्तु जब इंटरनेट जोड़ने की बात आती है तो उपभोक्ताओं के पसीने निकल जाते हैं। अनेक जिलों में तो टूजी सेवा होने के बाद भी आईडिया के कारिंदे थ्री जी का प्रलोभन देकर कनेक्शन बेच रहे हैं। पहले महीने तो उपभोक्ताओं को थ्री जी से भी तेज स्पीड मिलती है किन्तु अगले ही महीने से उपभोक्ता अपने आप को ठगा सा ही महसूस करता है।

(क्रमशः जारी)


राष्ट्रभाषा हिन्दी या हिंग्लिश!


राष्ट्रभाषा हिन्दी या हिंग्लिश!

अंग्रेजी हिन्दी के सम्मिश्रण को दी सरकार ने मान्यता


(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। हिन्दी को देश की राष्ट्रभाषा के तौर पर मान्यता मिली हुई है। हिन्दी के विकास के लिए अलग से विभाग का गठन भी किया गया है। देश पर पश्चिमी सभ्यता किस कदर हावी हो चुकी है और किस तरह लोग पश्चिमी देशों पर निर्भर होते जा रहे हैं उसका नायब उदहारण है हाल ही में केंद्र सरकार के एक परिपत्र में देखने को मिला। जिस तरह निजी कोरियर कंपनियों को बढ़ावा देने के लिए पोस्टल विभाग की कार्यप्रणाली में ढील पोल लाई गई। राज्यों में सड़क परिवहन को बंद करने के लिए नेशनल परमिट की अवैध यात्री बसों को सड़कों पर दौड़ने दिया गया उसी तरह अब राष्ट्रभाषा हिन्दी का अस्तित्व भी खतरे में ही दिखाई देने लगा है।

कठिन हिंदी शब्दों से आने वाली समस्याओं से पार पाने के लिए सरकार ने अनुभाग अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे आसानी से समझ में आने और भाषा को प्रोत्साहन देने के लिए वैसे शब्दों की जगह हिन्दी और अंग्रेजी के सम्मिश्रण हिंग्लिशशब्दों का प्रयोग करें। यह आदेश गृह मंत्रालय की राजभाषा इकाई ने जारी किया। इसे हाल में विभिन्न कार्यालयों में फिर से भेजा गया है। इसमें आधिकारिक तौर पर उल्लेख किया गया है कि विशुद्ध हिंदी के इस्तेमाल से आम जनता में अरुचि पैदा होती है।

परिपत्र में अनुशंसा की गई है कि आधिकारिक कामों के लिए कठिन हिंदी शब्दों की जगह देवनागरी लिपि में अंग्रेजी के वैकल्पिक शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता है। गृह मंत्रालय में आधिकारिक भाषा विभाग ने उदाहरण देते हुए कहा कि मिसिलकी जगह फाइल का इस्तेमाल किया जा सकता है। प्रत्याभूतिकी जगह गारंटी’, ‘कुंजीपटलकी जगह की-बोर्ड और संगणककी जगह कंप्यूटरका इस्तेमाल किया जा सकता है।

इसमें लोकप्रिय हिंदी शब्दों और वैकल्पिक अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल करने की भी वकालत की गई है ताकि भाषा को और आकर्षक तथा दफ्तरों और आम जनता के बीच इसे लोकप्रिय बनाया जा सके। परिपत्र में कहा गया है कि जब भी आधिकारिक काम के दौरान अनुवाद की भाषा के तौर पर हिंदी का इस्तेमाल किया जाता है तो यह कठिन और जटिल बन जाती है। अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद की प्रक्रिया में बदलाव करने की तत्काल आवश्यकता है। शब्दशरू हिंदी करने की बजाय अनुवाद में मूल पाठ का भावानुवाद होना चाहिए।

आधिकारिक पत्राचार में उर्दू, अंग्रेजी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के लोकप्रिय शब्दों के इस्तेमाल को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। हिंदी के शुद्ध शब्द साहित्यिक उद्देश्यों के लिए होने चाहिए, जबकि काम के लिए व्यावहारिक मिश्रितशब्दों का इस्तेमाल होना चाहिए। इसमें कहा गया है कि शुद्ध हिंदी में अनुवाद करने की बजाय देवनागरी लिपि में अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल करना ज्यादा बेहतर है।

बिजली संकट की जद में राजधानी


बिजली संकट की जद में राजधानी

प्लास्टिक कोटेड हो रहे बिजली के तार


(नंद किशोर)

भोपाल। देश के हृदय प्रदेश की राजधानी भोपाल में अभी बिजली कटौती का सिलसिला थमता नहीं दिख रहा है। कहने को मैनटनेंस के नाम पर होने वाली बिजली कटौती वास्तव में अनशेड्यूल्ड कटौती की श्रेणी में ही आ रही है। बिजली चोरी रोकने की गरज से राजधानी के सप्लाई वाले बिजली के तारों पर प्लास्टिक चढ़ाने का काम किया जा रहा है ताकि खंबों के बीच के तारों से बिजली की चोरी रोकी जा सके।

राजधानीवासियों को अभी एक साल तक बिजली कटौती की मार झेलनी पड़ेगी। यह तकलीफ उन्हें चल रहे 214 करोड़ रुपए की लागत के एक बड़े प्रोजेक्ट (आरएपीडीए) के कारण उठानी पड़ेगी। इस प्रोजेक्ट के तहत सिस्टम को दुरुस्त किया जा रहा है। इसके कारण दिन के वक्त क्षेत्रवार बिजली कटौती की जा रही है। यह प्रोजेक्ट एक साल और चलेगा। इसके तहत पुराने केबल (बिजली के तार) को रबर कोटेड किया जा रहा है। बिजली चोरी के लिहाज से संवेदनशील माने जाने वाले इलाकों में हाई वोल्टेज डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम लगाए जा रहे हैं।

बिजली लाइनों और सिस्टम के अन्य जरूरी हिस्से का मेंटेनेंस भी किया जा रहा है। कुछ क्षेत्रों में एक दिन के अंतराल में ही कटौती की जा रही है, जिससे लोगों में नाराजगी है। इस मामले में बिजली कंपनी के अफसरों का तर्क है कि मेंटेनेंस के लिए की जाने वाली कटौती की सूचना पहले ही दे दी जाती है, जहां निर्धारित दिन को मेंटेनेंस नहीं हो पाता वहां अगले दिन या उसके बाद बिजली सप्लाई नहीं की जाती।

रात तीन बजे बिजली गुल, बिजली कंपनी ने हाल ही में कुछ क्षेत्रों में देर रात तीन बजे ही बिजली गुल कर दी, इसकी वजह भी मेंटेनेंस बताई गई। कंपनी ने एक दिसंबर को बीडीए क्वाटर्स, खजूरी गांव, एसओएस बाल ग्राम, मां सरस्वती कॉलेज, सुरभि विहार समेत कई इलाकों में रात तीन बजे ही बिजली काट दी थी।

इसके पहले 18 और 27 अक्टूबर, 28 और 30 नवंबर को वीआईपी गेस्ट हाउस, वरेला गांव, मदर इंडिया कॉलोनी, हाउसिंग बोर्ड कोटरा, डी सेक्टर नेहरू नगर, बाबा नगर, मिसरोद, अंसल प्रधान, सुरेंद्र विहार, सोनागिरी ए और बी सेक्टर, इंद्रपुरी सी सेक्टर, वाल्मी क्षेत्र में कटौती हुई। इतना ही नहीं 18 अक्टूबर, 22-25 नवंबर को भी मेंटेनेंस के नाम पर टीबी हॉस्पिटल, लवकुश अपार्टमेंट, वाजपेयी नगर, ईदगाह हिल्स, पीएनबी कॉलोनी, महाजन बंगला, डॉक्टर क्वाटर्स, एक्सीलेंस कॉलेज, यशोदा विहार, कृष्णा विहार, तुलसी परिसर, क्रिस्टल कैंपस, अभिनव होम्स, सौम्य विहार, अमृतपुरी, टैगोर नगर, समन्वय नगर, पर्यावरण परिसर, चिनार वुडलैंड, छत्रपति कॉलोनी, अमलतास, तो 26 नवंबर और फिर 1 दिसंबर को हलालपुर, सावन नगर, स्वागत गार्डन, ओम नगर, गुलशन गार्डन, रचना नगर, गौतम नगर, बैंक कॉलोनी में बिजली कटौती की गई थी।

केंद्रीय परियोजनाओं को अब नहीं मिलेगी जमीन


केंद्रीय परियोजनाओं को अब नहीं मिलेगी जमीन

शिवराज की केंद्र से ठनी


(अंशुल गुप्ता)

भोपाल। कहने को तो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा मध्य प्रदेश को औद्योगिक तौर पर संपन्न बनाने के लिए सूबे में दिल खोलकर जमीनों का आवंटन किया जा रहा है वहीं दूसरी ओर मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में अब वे केंद्र सरकार के किसी भी संस्थान को एक इंच भी जमीन देने के मूड में नहीं दिख रहे हैं। हाल ही में अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान एम्स ने पचास एकड़ अतिरिक्त भूमि की मांग की थी जिसे राज्य सरकार ने ठुकरा दिया है।

शासन ने यह कदम इसलिए उठाया है कि उसने जिन संस्थानों को भी जमीनों का आवंटन किया है, वो उनके यहां फालतू पड़ी जमीन को लौटाना नहीं चाहते। मुख्य सचिव अवनि वैश्य ने एम्स के प्रतिनिधियों को राज्य सरकार के रूख से अवगत भी करा दिया है। मुख्य सचिव ने अपने उच्चाधिकारियों को भी निर्देश दिए हैं कि वे जमीन आवंटन के मामले में सख्ती बरतें।

एम्स के संबंध में उन्होंने कहा कि पहले ही एम्स को 144 एकड़ जमीन का आवंटन किया जा चुका है, जबकि जहां भी एम्स बने हुए हैं, वहां किसी को भी 100 एकड़ से ज्यादा जमीन नहीं दी गई है। इसलिए एम्स को और जमीन देने की जरूरत नहीं है। एम्स परिसर के विस्तार में रोड़ा हाईटेंशन लाइन के निराकरण और फोर लेन सड़क के विस्तार में सहयोग का जरूर मुख्य सचिव ने आश्वासन दिया।

वर्तमान में भोपाल में केंद्र सरकार के अनेक संस्थानों के पास हजारों एकड़ सरकारी जमीन है। राज्य सरकार ने भोपाल में ही सबसे ज्यादा भेल को 2281 एकड़ जमीन उपलब्ध करवाई है। इसके अलावा केंद्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र नवीं बाग पर 50 एकड़ जमीन आवंटित की गई है। अब भले ही इन संस्थानों में जमीन उपयोग में नहीं आ पा रही हो, पर इसकी वापसी केंद्र सरकार की सहमति से ही राज्य को वापस मिल पाएगी।

अब तकनीकि पेंच में फंसा ‘आधार‘


0 दो दो रूपए में बिक रहे आधार के फार्म . . 3

अब तकनीकि पेंच में फंसा आधार


(शिवेश नामदेव)

सिवनी।  बुजुर्गाे और बच्चों का आधार कार्ड (यूनिक आइडेंटिफिकेशन नंबर) बनाने में एक तकनीकी पेच सामने आ रहा है। आधार बनाने वाली एजेंसियों को फिंगर प्रिंट्स और आंखों की पुतलियों की इमेज लेने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इसकी वजह यह है कि पांच साल से कम उम्र के बच्चों के फिंगर प्रिंट्स और आंखों की पुतली का विकास नहीं हो पाता, जबकि बुढ़ापे में फिंगर प्रिंट्स घिस जाती हैं और आंखों की पुतली का रंग बदल जाता है।

प्रदेश में आधार का काम संभाल रहे डाक भवन के डीजीएम कार्यालय के सूत्रों ने बताया कि हर उम्र के लोगों का आधार कार्ड बनाया जा रहा है। इनमें बच्चे और बूढ़े भी शामिल हैं। हालांकि कई बार 70 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्गाे का फिंगर प्रिंट और आंखों की पुतली की सही जांच नहीं हो पाती, लेकिन इन तकनीकी दिक्कतों के बाद भी हम सभी का आधार कार्ड बना रहे हैं। सूत्रों ने कहा कि पहचान के लिए उनका फोटो ले रहे हैं। भोपाल और राज्य के अन्य जिलों के डाकघरों में आधार बनाने का काम कर रही 4जी-आइडेंटिटी सॉल्यूशंस के स्टेट हेड अभिषेक अवस्थी ने बताया कि 1 साल से 100 साल तक की उम्र के लोगों का आधार कार्ड बनाया जा रहा है।

5 साल से कम उम्र के बच्चों और बुजुर्गाे के फिंगर प्रिंट्स और आंखों की पुतली की पहचान लेने में थोड़ी दिक्कत तो आ रही है, लेकिन यह तो एक प्राकृतिक मामला है और इसके लिए कोई कुछ नहीं कर सकता। इसके लिए वैसे तो चार-पांच बार सैंपल लिया जाना चाहिए पर एसा हो नहीं रहा है। उधर भोपाल के डाकघरों में आधार बना रहे एजेंसी के कर्मचारी भी इस बात को स्वीकार कर रहे हैं। कर्मचारियों ने बताया कि 5 साल से कम उम्र के बच्चों के फिंगर प्रिंट्स और पुतली का रिकॉर्ड नहीं रखे जा रहे हैं। बच्चों के मामले में अभिभावकों की पहचान को सहारा लिया जा रहा है।

नेत्र रोग विशेषज्ञ मानते हैं कि कि बचपन या बुढ़ापे में लिया हुआ रिकॉर्ड उसकी पहचान में काम नहीं आता। वह बताती हैं कि आंखों की आइरिस (पुतली) का रंग वक्त के साथ बदलता है। बचपन में यह हल्के भूरे रंग का और बुढ़ापे में धुंधला सा हो जाता है। हालांकि फिंगर प्रिंट्स स्पेशलिस्ट्स का मानना है कि बचपन हो या बुढ़ापा, व्यक्ति की उंगलियों के निशान कभी नहीं बदलते। केवल उम्र के साथ इनका आकार बढ़ और घट सकता है। हालांकि इनका रिकॉर्ड दर्ज करने में फिंगर प्रिंट्स स्कैनर की बहुत बड़ी भूमिका होती है। हो सकता है कि आधार बनाने में इस्तेमाल होने वाले फिंगर प्रिंट स्कैनर उतने अच्छे न हों।