ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)
राहुल मनमोहन में ठनी!
कांग्रेस के भविष्य के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह में लगता है ठन गई है। अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार की उदारीकरण की नीति राहुल को भा नहीं रही है। पिछले दिनों राहुल गांधी ने उदारीकरण की तल्ख शब्दों में आलोचना करने वाले जर्मनी के एक व्याख्याता थामस पोग को न्योता दिया। मौका था राजीव गांधी इंस्टीट्यूट आॅफ कंटेपरेरी स्टडीज में व्याख्यान का। गौरतलब है कि कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी इसके ट्रस्टी हैं। राहुल के द्वारा उदारीकरण के आलोचक को बुलाना अपने आप में इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि मनमोहन सिंह उदारीकरण के खासे हिमायती हैं। वैसे भी मनमोहन सिंह की खामोशी से राहुल गांधी बुरी तरह बौखलाए हुए हैं। देश भर से राहुल गांधी को सरकार और कांग्रेस के बारे में जो फीडबैक मिल रहा है वह उत्साहजनक कतई नहीं माना जा सकता है।
शिवराज बने भ्रष्टाचार के ईमानदार संरक्षक
जिन सरकारी कर्मचारियों पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान को अगला चुनाव जितवाने का भरोसा है वे सरकारी कर्मचारी ही उनका सरेआम माखौल उड़वाने में जुट गए हैं। हाल ही में मध्य प्रदेश स्थापना दिवस पर एमपी की बेटियों को महिमा मण्डित करने के लिए सरकारी होर्डिंग्स लगवाए गए। इन होर्डिंग्स में एक अजीब ही नजारा देखने को मिला। सरकारी होर्डिंग में महान कवियत्रि सुभद्रा कुमारी चैहान, कांग्रेस की वरिष्ठ नेत्री स्व.जमुना देवी, भाजपा की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती, के साथ ही साथ टीनू जोशी को भी प्रदेश की गौरवशाली पुत्री का दर्जा दिया गया है। अब लोग हैरान हैं कि लोकतंत्र के लुटेरे का खिताब पा चुके आईएएस टीनू जोशी दंपत्ति को शिवराज सरकार भला रोल माडल क्यों बना रही है।
कमल को चुभने लगा शिव का त्रिशूल
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान जब भी दिल्ली यात्रा पर गए और पत्रकारों से रूबरू हुए तब तब वे कमल चालीसा (केंद्रीय मंत्री कमल नाथ का गुणगान) करना नहीं भूले। बाद बाद में नेशनल हाईवे की दुर्दशा पर वे कमल नाथ के खिलाफ हो गए थे। मध्य प्रदेश सरकार का शायद ही कोई एसा मंत्री होगा जो कमल नाथ के खिलाफ बोला हो। इस बार कमल नाथ ने तो गजब ही कर दिया। अपने संसदीय क्षेत्र जिला छिंदवाड़ा में उन्होंने मध्य प्रदेश सरकार के भ्रष्टाचार पर जमकर प्रहार किए। उन्होंने कहा कि शिवराज सरकार सड़कों की बरबादी का रोना रोती है। केंद्रीय मंत्री रहते कमल नाथ ने शिवराज सिंह को बीस हजार करोड़ रूपए दिए थे। शिवराज चुप हैं, रक्षात्मक मुद्र में खड़े दिख रहे हैं। मतलब साफ है कि केंद्र की मदद को उन्होंने घोला और पी लिया है।
मराठा क्षत्रप ने कांग्रेस से बनाई दूर
केंद्र सरकार में भागीदार राकांपा के सुप्रीमो शरद पंवार इन दिनों सरकार और कांग्रेस को आड़े हाथों लिए हुए हैं। पंवार न जाने क्यों फिर से कांग्रेस के घुर विरोधियों के सतत संपर्क में हैं। सोनिया गांधी को विदेशी मूल का जतलाकर यह मुद्दा हवा में उछाल पंवार ने कांग्रेस से किनारा कर एनसीपी का गठन किया था। उस वक्त पंवार को पानी पी पी कर कोसने वाले सोनिया के निष्ठावान कांग्रेसी बाद में पंवार की देहरी चूमते नजर आए। महाराष्ट्र में सत्ता पर काबिज होना हो या फिर केंद्र सरकार में भागीदारी। सारे गिले शिकवे भुलाकर कांग्रेस ने पंवार को गले ही लगाया। पंवार के उस तीर का यह असर हुआ कि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री पद से काफी दूर हो गईं। अब पंवार एक बार फिर नई मुहिम पर हैं। नए समीकरणों में लगने लगा है कि अगले चुनावों में नया राजग और संप्रग से इतर नया गठबंधन अस्तित्व में आ ही जाएगा।
आरटीआई से घबराई कांग्रेस
देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस अपने विरोधियों से उतनी खौफजदा नहीं है जितनी की वह सूचना के अधिकार कानून से नजर आ रही है। राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) के दबाव में सरकार ने आरटीआई को आनन फानन लागू तो कर दिया है, पर यह अब उसके गले की फांस बनती जा रही है। अरविंद केजरीवाल जिस तरह सरकार पर वार पर वार करते जा रहे हैं उससे सरकार बैकफुट पर ही नजर आ रही है। सोनिया गांधी नाराज हैं क्योंकि देश भर में आरटीआई को आजीविका का साधन भी बनाया जा रहा है। जिला स्तर पर आरटीआई एक्टिविस्ट किसी के खिलाफ आवेदन देकर बाहर ही बाहर मामला रफा दफा कर देते हैं। अब सरकार जिला स्तर पर भी आरटीआई के आवेदन लगाकर वापस लेने के मामलों की तहकीकात करती नजर आ रही है।
मीडिया के प्रति गड़करी का उमड़ता प्रेम
अध्यक्ष बनने के उपरांत मीडिया से ‘सुरक्षित अंतर ठेवा‘ की राजनीति करने वाले भाजपा के सरताज नितिन गड़करी अब मीडिया से गलबहियां डालने उतारू दिख रहे हैं। दीपावली मिलन समारोह में गड़करी पत्रकारों से चाहे वह छोटा हो या बड़ा सबसे समान भाव से मिलते दिखे। नागपुर से लोकसभा चुनाव लड़ने का मन बना चुके गड़करी चाह रहे हैं कि उनकी अध्यक्षता में ही लोकसभा चुनाव संपन्न हों। गड़करी का टर्म लोकसभा के पहले ही समाप्त हो रहा है। संघ की अगर मेहरबानी रही तो ही वे दूसरी पारी खेल पाएंगे। बहरहाल गड़करी ने पत्रकारों को बताया कि उन्होंने दस किलो वजन घटा लिया है। मीडिया के लोग भी इस पार्टी का लुत्फ उठाते रहे क्योंकि पता नहीं गड़करी इसके बाद कब उन्हें न्योता दें।
मन के मंत्रियों ने हवा में उड़ाए 546 करोड़!
जनता के सेवक होने का दावा करते हैं सांसद विधायक। जनता की सेवा करने के बजाए जनता के द्वारा दिए गए करों से संचित राजस्व पर तबियत से एश करते हैं सांसद विधायक। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मण्डली ने जनता के गाढ़े पसीने की कमाई में से 546 करोड़ रूपए विदेश यात्रा में फूंक दिए। राजग सरकार ने पांच साल में मंत्रियों की विदेश यात्रा पर सिर्फ 268 करोड़ रूपए खर्च किए थे। प्रधानमंत्री डाॅ.मनमोहन सिंह भ्रष्टाचार के ईमानदार संरक्षक माने जाते हैं। उनके कार्यालय ने पीएमओ ने पांच साल में सिर्फ 85 करोड़ रूपए ही व्यय किए, यह आंकड़ा वैश्विक मंदी में मार झेल रहे गरीब भारत का है। यूपीए की दूसरी पारी में पीएमओ ने ज्यादा नहीं महज सत्तर करोड़ रूपए ही खर्च किए हैं। अभी दो साल का वक्त और बाकी है, चुनावों में यह आंकड़ा इस बार डेढ़ सौ करोड़ के उपर पहुंचने की उम्मीद है।
आड़वाणी की रथ यात्रा मतलब फ्लाप शो
7, रेसकोर्स रोड़ (प्रधानमंत्री का सरकारी आवास) को अपना आशियाना बनाने की तमन्ना दिल में रखने वाले भाजपा के तिरासी साल के उमर दराज नेता एल.के.आड़वाणी ने अब अपनी यात्रा का अंतिम दांव भी फेंका लेकिन वह फुस्स ही निकला। रथ यात्रा जहां जहां से भी गुजरी वहां वहां न तो वांछित भीड़ ही जुटी और न ही मीडिया ने आड़वाणी को ज्यादा तवज्जो ही दी। एक पंथ दो काज की नीति को अपनाकर आड़वाणी ने अपनी पुत्री प्रतिभा को स्थापित करने का जतन भी कर लिया और देश की नब्ज भी टटोल ली। यह सब करते समय वे खुद ही अपने कद को नीचे गिरा चुके हैं। भाजपा और संघ में चल रही चर्चाओं के अनुसार आड़वाणी ने इस यात्रा के जरिए अपनी पुत्री को जरूर स्थापित करने का प्रयास किया हो, पर उन्होंने अपनी इमेज खराब कर ली है।
टूजी स्पेक्ट्र घोटाले का सर्वाधिक फायदा आईडिया को!
आदिमत्थू राजा के कार्यकाल में हुए भारत गणराज्य के अब तक के सबसे बड़े टेलीकाम घोटाले में सबसे अधिक मलाई काटी है आदित्य बिरला कंपनी के स्वामित्व वाली मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनी आईडिया ने। इस मामले में एक सदस्यी जांच समिति के समक्ष अनेक सनसनीखेज बातें लाईं गईं जिससे जांच समीति इस निश्कर्ष पर पहुंची कि यह घोटाला मानो आईडिया के साथ एक अन्य मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनी के इशारे पर ही किया गया हो। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच रिपोर्ट के मुताबिक इस घोटाले से एयरटेल और आईडिया जैसी टेलीकॉम कंपनियों को सबसे ज्यादा फायदा मिला है। इस मामले पर रिटायर जज शिवराज पाटिल की एक सदस्यीय जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि टेलिकॉम मिनिस्ट्री के मनमाने फैसलों से भारती एयरटेल और आइडिया सेल्युलर जैसे ऑपरेटरों को स्पेक्ट्रम हासिल करने में मदद मिली।
वाकई मजबूर लग रहे हैं मनमोहन
प्रधानमंत्री और कांग्रेस पार्टी के बीच अब चूहा बिल्ली की लड़ाई आरंभ हो गई है। घोटालों के ईमानदार संरक्षक बन चुके डाॅ.मनमोहन सिंह से पीछा छुड़ाने की जद्दोजहद अब कांग्रेस में चल पड़ी है। उधर मनमोहन सिंह अपने आप को मजबूर और लाचार बताने से नहीं चूक रहे हैं। प्रधानमंत्री बनने से अब तक वे अपने पसंद के नेताओं को मंत्री नहीं बना पए हैं। मनमोहन कई बार इशारों ही इशारों में इस बात को जतला भी चुके हैं। कांग्रेस में नरसिंहराव के बाद गैर नेहरू गांधी परिवार (महात्मा गांधी नहीं) से हटकर प्रधानमंत्री बनने का रिकार्ड बना चुके मनमोहन काफी व्यथित ही नजर आ रहे हैं। जिस तरह मध्य प्रदेश के तत्कालीन निजाम राजा दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में रसातल में जा चुकी कांग्रेस अब उबर नहीं पा रही है, ठीक उसी तरह कांग्रेसियों का मानना है कि मनमोहन के नेतृत्व में देश भर में कांग्रेस की स्थिति कमोबेश यही होने के आसार बनने लगे हैं।
एमपी में दिखने लगा प्रभात!
प्रभात अर्थात सवेरा अब मध्य प्रदेश में दिखने लगा है। सख्त मिजाज भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा ने अंततः दिखा ही दिया कि उनका अनुशासन का डंडा, मुख्यमंत्री के ढुल मुल रवैए से कहीं ज्यादा कड़क है। उज्जैन में भाजपा उपाध्यक्ष रघुनंदन शर्मा ने मुख्यमंत्री को घोषणाीवर कह मारा। फिर क्या था प्रभात झा ने तत्काल कार्यवाही कर शर्मा को चलता कर दिया। अगर वे एसा नहीं करते तो पार्टी के अन्य कार्यकर्ताओं के हौसले बुलंद होते। प्रभात झा ने परोक्ष तौर पर यह संदेश भी दे दिया है कि अप्रिय निर्णय लेने में वे शिवराज जैसे नहीं हैं। शिवराज के मंत्री बाबूलाल गौर, कैलाश विजयवर्गीय, राघव जी, सरताज सिंह आदि सरकार की कार्यप्रणाली पर ही प्रश्नचिन्ह लगा चुके हैं। शिवराज तो अपने मंत्रियों की मुश्कें नहीं कस पाए पर प्रभात झा ने चमत्कारिक तरीके से शर्मा को रूखसत कर कड़ा संदेश दे डाला।
डीआईजी की बगावत, पागल करार!
उत्तर प्रदेश में अयोध्या को भगवान राम की जन्म स्थली के बतौर मानते हैं सनातन पंथी। कहते हैं राम की भूमि में राम राज्य रहा करता था। अब कहा जाने लगा है कि जबसे मायावती ने कमान संभाली है तबसे वहां राम का राज्य कभी का चला गया है। हाल ही में उत्तर प्रदेश के अग्निशमन विभाग (फायर सर्विस) में पदस्थ डीआईजी देवेंद्र दत्त मिश्र को भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने पर पागल करार दे दिया गया। फायर विभाग में करोड़ों के घपले के आरोप लगाकर उन्होंने सनसनी फैलाई तो उन्हें मानसिक बीमार करार दे दिया गया। दुबे ने सभी नस्तियों में प्रतिकूल टिप्पणियां कर मीडिया को अपना दर्द बताया। उप महानिरीक्षक स्तर के अधिकारी ने जब इस तरह के संगीन आरोप लगाए तो उसकी जांच के बजाए उन्हें ही पागल करार दिया जाना मायाराज का नायाब नमूना ही माना जा रहा है।
सबसे बड़ी रंगोली में कांग्रेंस भाजपा का मिलन
कांग्रेस और भाजपा वैसे तो विरोधी पार्टियां हैं। कभी कभी एसे मौके आते हैं जब कांग्रेस और भाजपा एक ही मंच पर दिखाई पड़ते हैं। देश के हृदय प्रदेश में भगवान शिव का जिला है सिवनी। इसके जिला मुख्यालय में एक अजूबा हुआ। युवाओं ने स्थानीय दैनिक संवाद कुंज के सहयोग से पेंतालीस हजार वर्ग फुट में सबसे बड़ी रंगोली डाली। इस विशाल रांगोली को एशिया बुक आॅफ वल्र्ड रिकार्डस के लिए नामांकित किया गया है। इसमें सिवनी की प्रमुख समस्याओं ब्राडगेज, फोरलेन, पेंच परियोजना आदि को बेहतरीन तरीके से रेखांकित किया गया। यह दर्शाया गया कि कांग्रेस और भाजपा की नूरा कुश्ती में किस तरह जिले के विकास की ये परियोजनाएं दम तोड़ चुकी हैं। कांग्रेस और भाजपा के विधायक यहां मौजूद रहे किन्तु दोनों ही दलों के जनसेवकों को लेश मात्र भी शर्म नहीं आई कि वे किस तरह उन्हें मिले जनादेश का अपमान कर रहे हैं।
पुच्छल तारा
डीजल पेट्रोल के दामों में आग लगी हुई है। जब चाहे तब दाम बढ़ जाते हैं। वाहन चालक परेशान हैं पता नहीं सुबह उठें और दाम बढ़े मिलें। मध्य प्रदेश से शिवी कुमारी ने एक मजेदार ईमेल भेजा है। शिवी लिखती हैं कि 23 रूपए के पेट्रोल पर 46 रूपए का कर आहूत किया है केंद्र और राज्य सरकारों ने। आम आदमी की तो कमर ही टूट चुकी है इससे। आश्चर्य तो इस बात का है कि मूल कीमत से दोगुना टेक्स लगाने के बाद भी तेल कंपनियां घाटे में कैसे हो सकती हैं। भारत गणराज्य में किसी विश्वद्यालय को इस बारे में शोध या पीएचडी अवश्य ही करवाना चाहिए।