ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)
युवराज के इलाके की 450 करोड़ रूपए की सड़कें गायब!
कांग्रेस की सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र के बाद उनके पुत्र और कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र की 450 करोड़ रूपए की सड़कें गायब होने पर हंगामा बरपने लगा है। राहुल के संसदीय क्षेत्र में साढ़े चार सौ करोड़ रूपयों की लागत से बनने वाली आठ सड़कें महज दो सालों में ही अस्तित्व खो चुकी हैं। 2006 में बनकर तैयार हुई इन लापता सड़कोें के मामले में संज्ञान लेते हुए राहुल गांधी ने केंद्रीय सड़क निधि से बनाई गई इन सड़कों के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को दिल्ली बुला भेजा है। इसके पूर्व कांग्रेस की राजमाता ने 2006 में उनके संसदीय क्षेत्र की रायबरेली से बरास्ता लालगंज, महाराजगंज सड़क में हुई धांधली पर 25 सितम्बर 2006 को मुकदमा दर्ज करवाया था। जांच में छ: दर्जन अफसर दोषी पाए गए थे, जिनमें से 13 को पुलिस ने धर दबोचा और 59 फरारी काट रहे हैं। मामला चूंकि तेज तर्रार भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ से जुड़ा हुआ है, अत: इस मामले मेें दागी अफसर जल्द ही निलंबित हो सकेंगे। देखना यह है कि अपनी माताश्री की तर्ज पर राहुल बाबा भी एफआईआर दर्ज कराते हैं या फिर किसी की खाल बचाने के लिए . . . ।
जिन्ना प्रकरण में संघ के निशाने पर जसवंत
भाजपा के लिए सरदर्द बन चुके जिन्ना के जिन्न को उतारने के लिए अब संघ ने भी कमर कस ली है। भाजपा से निष्काशित नेता जसवंत सिंह के खिलाफ अब संघ ने भी जहर बुझे तीर चलाने आरंभ कर दिए हैं। संघ के वरिष्ठ चिंतक देवेन्द्र स्वरूप ने पाकिस्तान के कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना के नाती नुस्ली वाडिया के साथ किताब को लेकर जसवंत की सांठगांठ और इस संपूर्ण प्रकरण को बौद्धिक वेश्याचार का दर्जा दे दिया है। यद्यपि वाडिया ने इस मामले में अपनी सफाई अवश्य दे दी है किन्तु मामला अभी ठण्डा पड़ता नहीं दिखता। जिन्ना को लेकर भाजपा के पूर्व पीएम इन वेटिंग एल.के.आड़वाणी भी मुंह की खा चुके हैं। लगता है भारतीय जनता पार्टी और संघ में अब जिन्ना प्रकरण को लेकर आरपार की ही लड़ाई आरंभ हो गई है। संघ के आला नेताओं को साधने की गरज से भाजपा प्रमुख राजनाथ सिंह ने भी यह कहकर सभी को चौंका दिया कि जिन्ना की प्रशंसा करने वालों की भाजपा में कोई जगह नहीं है। लगता है भाजपा में प्रजातंत्र के स्थान पर संघ द्वारा थोपी जाने वाली हिटलरशाही का स्थान सर्वोपरि हो गया है। हालात देखकर लोग यह कहने से नहीं चूक रहे हैं कि भाजपा में अब कोई भी अपने मन की बात कहने के लिए स्वतंत्र नहीं रह गया है।
एक मंत्री के दो परस्पर विरोधी वाक्ये!
केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ के साथ दो परस्पर विरोधी वाक्ये प्रकाश में आए हैं, वह भी अगस्त के माह में ही। हुआ दरअसल यह कि मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में कमल नाथ से संबंधित दो याचिकाओं में नोटिस सर्व नहीं हो सका है। एक में बिना नोटिस के ही जवाब आ गया। सूबे के पूर्व मंत्री चौधरी चंद्रभान सिंह की चायिका पर उच्च न्यायालय ने एक नोटिस कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र जिला छिंदवाड़ा के पते पर भेजा। बताते हैं कि नोटिस बेरंग वापस आ गया कि कमल नाथ वहां नहीं रहते। बाद में कमल नाथ के दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर यह नोटिस भेजने जस्टिस के.के.लाहोटी की कोर्ट ने आदेशित किया। वहीं दूसरी ओर 13 अगस्त को लखनादौन के एक वकील द्वारा लगाई गई याचिका 1878 में नोटिस कमल नाथ को सर्व हुआ ही नहीं और 24 अगस्त को उनकी ओर से जवाब भी उच्च न्यायालय में पेश कर दिया गया। इतना ही नहीं 26 अगस्त को इसकी अंतिम सुनवाई कर केस का निपटारा भी हो गया। लोग गलत नहीं कहते - ``जय जय कमल नाथ``।
सिब्बल की तारीफ के मायने
कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी, युवराज राहुल गांधी, प्रधानमंत्री डॉ.एम.एम.सिंह के अलावा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भी दिल खोलकर केेंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल की तारीफों में कसीदे गढ दिए हैं। राजनैतिक बिसात में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार में उनसे वरिष्ठ मंत्री इन दिनों इस सबके पीछे छिपे मायने खोजने में लगे हुए हैं। लगभग एक दशक से ही राजनैतिक परिदृश्य में उभरकर आए सिब्बल ने कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी को अचानक एसी कौन सी जड़ी सुंघा दी कि विज्ञान और प्रोद्योगिकी जैसे कम महत्व के मंत्रालय के उपरांत अचानक ही उन्हें हाई प्रोफाईल मंत्रालय की कमान सौंप दी गई। राजनैतिक बिसात पर वषोZं से नजर रखने वाले विद्वानों का मानना है कि गुजरे जमाने के राजनैतिक चाणक्य माने जाने वाले कुंवर अर्जुन सिंह की बिदाई के मार्ग प्रशस्त करने वाले सिब्बल को पारितोषक के तौर पर अर्जुन सिंह का ही मंत्रालय सौंपा गया है, एवं अपने एजेंडे पर सधे कदमों से चलने के कारण चहुं ओर ``सिब्बल जिंदाबाद`` के गगनभेदी नारे लग रहे हैं। दरअसल आलाकमान सिब्बल की तारीफ कर यह संदेश भी देने में सफल रहीं हैं कि अर्जुन सिंह जैसे घुर विरोधी को उन्होंने सिब्बल जैसी छोटी तलवार से ठिकाने लगा दिया है, ताकि भविष्य में कोई कांग्रेस सुप्रीमो से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष तौर पर पंगा लेने का साहस न जुटा सके।
मन्ने भी दो युवराज का ईमेल और फेक्स
विधानसभा चुनावों की घोषणा के साथ ही देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली के करीबी सूबे हरियाणा में बासी कढी एक बार फिर उफान मारने लगी है। राज्य के टिकिट के दावेदार कांग्रेस के नेताओं की नजरें टिकिट के मसले पर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी पर आकर टिक गई हैं। देश भर में यह प्रचारित हो ही गया है कि राहुल गांधी का कार्यालय अत्याधुनिक सायबर उपकरणों से सदा ही लैस रहता है। इन परिस्थितियों में हरियाणा में टिकिटार्थियों की जुबान पर बस एक ही बात है -``हमें भी चाहिए राहुल का ई - मेल और फेक्स नंबर।`` चुनाव की आपाधापी के चलते दावेदार यह मानकर चल रहे हैं कि दिल्ली जाकर सत्ता और शक्ति के नए केंद्र 10 जनपथ (राहुल गांधी का सरकारी आवास) में जाकर उनसे रूबरू मुलाकात कर अपना बायोडाटा देने का मौका उन्हें शायद ही मिले। अत: हर उम्मीदवार अब अत्याधुनिक संचार माध्यम इंटर नेट और बीसवीं सदी के अंतिम दशकों के संचार माध्यम फेक्स के माध्यम से अपनी बात बायोडाटा सहित राहुल बाबा तक पहुंचाने की जुगत में हैं।
परिक्रमा बनाम पराक्रम में फंसी भाजपा
संघ के दवाब में अपने नीतिगत फैसले न ले सकने वाली भारतीय जनता पार्टी के अंदर अब एक नई बहस छिड़ गई है। पार्टी के अगली पंक्ति के नेता अब ``गणेश परिक्रम और व्यक्तिगत पराक्रम`` के बीच के फासले को ढूंढनें में व्यस्त हैं। भारतीय जनता पार्टी में राष्ट्रीय के साथ ही साथ प्रदेश और जिला स्तर पर अंदरूनी लड़ाईयां सतह पर आने लगी हैं। एक दूसरे पर प्रत्यक्ष और परोक्ष आरोप प्रत्यारोप के उपरांत अब अपनी अपनी खाल बचाने के लिए पार्टी के छीजते (लुढकते) जनाधार के बारे में यहां वहां मुंह मारने से नहीं चूक रहे हैं नेताओं के समर्थक। भाजपा के वे नेता जो यह जानते हैं कि संघ की शरण में जाने पर उनके हर दुखाों का अंत हो जाएगा, वे इस मसले में संघ के दरवाजे पर अपनी पेशानी रगडकर भाजपा के आला नेताओं के कपड़े उतारने से भी नहीं चूक रहे हैं। अंर्तद्वंद में फंसी भाजपा की मध्यम श्रेणी वाली पंक्ति के पास अब कोई रास्ता प्रतीत नहीं हो रहा है, जिस पर चलकर वह नीतियों, आदशोZं, सिद्धांतों पर चलने वाली अपनी पुरानी भारतीय जनता पार्टी को वापस पा सकें।
अनेक रोल में हैं बिग बी
रूपहले पर्दे पर डबल रोल वाले किरदार न जाने कितने अभिनेताओं ने निभाए होंगे। सदी के सपुरस्टार अमिताभ बच्चन ने महान फिल्म में ट्रिपल रोल निभाया था। अब सोशल नेटविर्कंग वेवसाईट टि्वटर में बिग बी के नाम से अनेकों एकाउंट न केवल बने हुए हैं वरन उन पर प्रशंसकों की तादाद भी बहुतायत में है। यह समझना बहुत ही दुष्कर है कि बिग बी का कौन सा प्रोफाईल असली है। अलग अलग खातों को देखकर यह लगता है कि बिग बी शायद ही किसी खाते में खुद लिख रहे हों। जानकारों का कहना है कि टि्वटर को लोकप्रिय बनाने की गरज से लोगों ने बिग बी के अनेक खाते बना दिए हैं। एसा नहीं कि सिर्फ बिग बी के ही अनेक खाते हैं। वालीवुड के हीरो हीरोईनों के इसमें कई रोल अर्थात कई खाते बने हुए हैं, इनमें आश्चर्यजनक बात यह है कि सभी में उनके प्रशंसकों की तादाद असामान्य तौर पर अधिक ही है। कहा जा सकता है जय हो नेट देवता जय हो टि्वटर पुजारी की।
जब पकडी गई चोरी
आम चुनावों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पीएम इन वेटिंग को पिछले दिनों शर्मसार होना पड़ा। दरअसल एल.के.आड़वाणी बुरे समय में अपने पुराने मित्रों के साथ पृथ्वीराज रोड़ स्थित अपने पुराने मित्रों के साथ समय गुजार रहे थे पिछले दिनों। बताते हैं कि उस दिन दिल्ली के भाजपा के वरिष्ठ नेता विजय कुमार मल्होत्रा और एल.के.आड़वाणी एक सुहानी शाम में उस दिन आड़वाणी के घर चाट पकोड़ों का लत्फ उठा रहे थे। तब माहौल को हल्का फुल्का बनाने की गरज से एकाएक आड़वाणी को याद आया और उन्होंने तपाक से मल्होत्रा जी से कहा याद है विजय जी जब 1967 मेें आप मुख्य कार्यकारी पार्षद हुआ करते थे, तब हम दोनों ही शाम को नियम से पंडारा रोड़ जाया करते थे, तब क्या आपको याद है कि मुझे कौन सी लजीज चीज बेहद पसंद हुआ करती थी। विजय मल्होत्रा ने भी आड़वाणी को खुश करने उत्तर दिया हां . . . `` चिकन मलाई टिक्का``। आड़वाणी को शायद इस उत्तर की उम्मीद नहीं थी। वे धीरे से बोले -``हां आपकी याददाश्त को मानना ही पड़ेगा, मुझे . . . मलाई टिक्का बेहद पसंद था। दोनों के चेहरों की हवाईयां उड़ी हुईं थीं। पता नहीं किसकी चोरी पकड़ी गई थी उस वक्त।
दिग्गी का बोलबाला रहेगा महाराष्ट्र में
इस साल अक्टूबर में महाराष्ट्र में होने वाले चुनावों में कांग्रेस में नेता अगर किसी की परिक्रमा करेंगे तो वे हैं, तेजी से उभरकर सामने आए सबसे ताकतवर महासचिव राजा दिग्विजय सिंह की। वर्तमान में सूबे में कांग्रेस ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई है, जिसने पांच साल सफलता के साथ पूरे कर लिए हैं। कांग्रेसी सूत्रों का कहना है कि इस बार सूबे में जिताउ उम्मीदवारों पर ही कांग्रेस दांव लगाने वाली है। इसके लिए बाकायदा विभिन्न सर्वे एजेंसीज को हायर कर तीन स्तरों में सर्वेक्षण का दूसरा चरण पूरा कर लिया गया है। पहले चरण में चुनाव की घोषणा के बाद फिजां में तैरने वाले प्रमुख नाम तो दूसरे चरण में जीत की संभावना वाले नामों की पेनल तैयार करवा ली गई है। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की मंशा के अनुरूप उनके अघोषित राजनैतिक गुरू दिग्विजय सिंह ने महाराष्ट्र सूबे में युवा उम्मीदवारों को प्रमुखता देते हुए अपनी सूची को अंतिम रूप दे दिया है। वहीं महामहिम राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के पुत्र राजेंद्र सिंह ने भी अमरावती से टिकिट मांगकर सभी को चौंका दिया है। इतिहास का यह पहला मौका होगा जबकि किसी पदस्थ महामहिम के सगे संबंधी ने टिकिट की मांग की हो। यह अलहदा बात है कि पूर्व राष्ट्रपति डॉ.शंकर दयाल शर्मा की पित्न विमला शर्मा एमपी से विधायक रहीं हैं, किन्तु 1992 से 1997 तक डॉ. शर्मा के महामहिम रहते उन्होंने कोई भी चुनाव नहीं लड़ा।
. . . तो भगवा धारण कर लेना चाहिए हुड्डा को
हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा आम इंसान हैं, या उनके मुख में माता सरस्वती का वास है! यही प्रश्न आजकल हरियाणा के हर बंदे की जुबां पर है। हुड्डा द्वारा पिछले दिनों की गई भविष्यवाणियां आश्चर्यजनक तौर पर सोलह आना सच साबित हुईं हैं। पिछले दिनों भाजपा के साथ इनेलो के गठबंधन पर हुड्डा ने कहा था कि शून्य गुणा शून्य बराबर शून्य। हुआ भी यही लोकसभा चुनावों में दोनों ही औंधे मुंह गिर गए, और सूबे में अपना खाता भी न खोल सके। इसके बाद हुड्डा के श्रीमुख से निकला कि हजकां और बसपा का हनीमून ज्यादा दिन नहीं चलेगा। हुआ भी यही ढाई महीने के भीतर ही दोनों ने अलग अलग राह पकड़ ली। अब सूबे के निजाम ने भविष्यवाणी की है कि सूबे में एक बार फिर कांग्रेस पार्टी भारी बहुमतों के साथ वापस सरकार बनाएगी। हरियाणावासी अब कहने को मजबूर हो गए हैं कि अगर हुड्डा की भविष्यवाणी सच साबित हो गई तो फिर हुड्डा को अबकी बार मुख्यमंत्री निवास छोडकर भगवा वस्त्र धारण कर लेना चाहिए, क्योंकि राजनैतिक तौर पर भविष्यवाणियां तो सैकड़ों की तादाद में की जाती हैं, किन्तु कम ही सच साबित होती हैं, शेष को ठंडे बस्ते के हवाले ही कर दिया जाता है। जनता के सामने वे ही चर्चित की जातीं हैं, जो अक्षरश: सत्य साबित हुई हों।
निशंक की कुर्सी हिलाने की जुगत में खण्डूरी
उत्तराखण्ड में सत्ताच्युत हुए मुख्यमंत्री भुवन चंद खण्डूरी द्वारा अब मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को कुर्सी से उतारने के प्रयास तेज कर दिए हैं। खण्डूरी के प्रयास इतनी दु्रत गति से बिना सोचे समझे हो रहे कि निशंक के एक ही पलटवार से उनके होश फाख्ता हो गए हैं। खण्डूरी ने गढ़वाल जाकर अफसरों को इस तरह बुला भेजा मानो बतौर मुख्यमंत्री वे दरबार सजा रहे हों। खण्डूरी सार्वजनिक तौर पर यह कहते घूम रहे थे कि वे भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे थे, और यही भ्रष्टाचार राज्य के विकास के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा बनकर उभर गया है। निशंक समझ गए कि खण्डूरी का इशारा उन्हीं की तरफ है। निशंक भी आखिर कब तक सहते, उन्होंने भी खण्डूरी से पूछ ही लिया कि खण्डूरी ने कितने भ्रष्टाचारियों को ठिकाने लगाया है बस फिर क्या था, उंची आवाज में चिल्लाने वाले खण्डूरी को सांप सूंघ गया और एक बार फिर बियावन में खामोशी पसर चुकी है।
पुच्छल तारा
देश की सबसे बड़ी अदालत सर्वोच्च न्यायायल द्वारा गठित की गई है केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी)। बताते हैं कि सीईसी का काम सुप्रीम कोर्ट में दखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की मदद के लिए मौका मुआयना कर वास्तविक प्रतिवेदन सर्वोच्च न्यायालय को सौंपना है। वाईल्ड लाईफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया नामक एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) की याचिका पर भी सीईसी ने अपना प्रतिवेदन सुप्रीम कोर्ट को सौंपा है। इस मामले में कांग्रेस का एक प्रतिनिधमण्डल केदं्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश से मिला, और वापस आकर उसने मीटिंग का ब्योरा दिया। कांग्रेस द्वारा जारी अधिकृत विज्ञप्ति में जयराम रमेश के हवाले से कहा गया है कि सीईसी के विशेष आमंत्रित सदस्य को पुन: स्थल निरीक्षण करने भेजा जाएगा। सवाल यह उठता है कि सीईसी जयराम रमेश के इशारे पर काम करने गठित की गई है, या फिर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के पालन के लिए।
शनिवार, 12 सितंबर 2009
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