गुरुवार, 15 सितंबर 2011

दो सदियों से सत्ता का केंद्र बना हुआ है व्हाईट हाउस

दो सदियों से सत्ता का केंद्र बना हुआ है व्हाईट हाउस




(लिमटी खरे)




दुनिया जिसे डरकर सलाम करती है वह है अमेरिका। अमेरिका को यूं ही दुनिया का चौधरी नहीं कहा जाता। अमेरिका जब चाहे जिस देश पर जाकर अपनी सेना से वहां दमन फैला सकता है। जी हां यह सच है। जिसने भी अमेरिका की तरफ आंख तरेरी है। अमेरिका ने उसे नेस्तनाबूत कर दिया है। दुनिया में किसी भी देश के अंदर इतना साहस नहीं है कि वह अमेरिका की जायज नाजायज ज्यादतियों का विरोध कर सके। अगर उसके फौजी दस्ते किसी देश में रूककर रसद या तेल आदि चाहते हैं तो वह सब देना उस देश की मजबूरी में शामिल है। देखा जाए तो गुलामों की मेहनत का नतीजा है विश्व के चौधरी का सरकारी आवास। इसे बड़े जतन से बनवाया था वाशिंगटन ने किन्तु वे इसमें रह नहीं पाए। दुनिया के चौधरी के इस आवास में चोरों ने कई मर्तबा सेंध भी लगाई है। तत्कालीन रसिया महामहिम राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के कारण यह जमकर चर्चाओं में रहा है। इसकी नींव 1792 में रखी गई थी।


दुनिया के चौधरी अमेरिका के प्रथम पुरूष का सरकारी आवास व्हाईट हाउस में पहली बार अश्वेत राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कदम रखा। व्हाईट हाउस पिछले 200 सालों से विश्व की सत्ता और असीमित शक्ति का केंद्र बना हुआ है। इन दो शताब्दियों में इस सरकारी आवास ने न जाने कितने उतार चढाव देखे हैं। इसकी दीवारों में चुनी गई ईंटों में न जाने कितने राज दफन हैं। ये सब गवाह हैं डिप्लोमेसी, सियासी अच्छाईयों और बुराईयों के, दयालुता और क्रूरता के।


इसके निर्माण में एक दशक से कम का समय लगा। आठ साल में अस्तित्व में आए इस व्हाईट हाउस का नामकरण अलग अलग रूप से किया जाता रहा है, कभी इसे प्रेजिटेंड पेलेस, तो कभी प्रेजिडेंशियल मेंशन तो कभी प्रेजिटेंड हाउस के नाम से पुकारा जाता रहा है। सन 1811 में इसे पहली बार व्हाईट हाउस के नाम से जाना गया। इसके निर्माण में लगभग 600 कामगारों का उपयोग किया गया था। बताते हैं कि इनमें से दो तिहाई से अधिक कामगार गुलाम हुआ करते थे, जिन्हें साठ डालर प्रति साल के हिसाब से मेहनताना मिलता था।


इस इमारत की नींव 13 अक्टूबर 1792 में रखी गई थी। विडम्बना ही कही जाएगी कि जार्ज वाशिंग्टन की देखरेख में 1800 तक चले इसके निर्माण के उपरांत वे इसमें रहने का सुख नही पा सके थे। इस भवन में रहने वाले प्रथम राष्ट्रपति थे जॉन एडम्स। अमेरिका गणराज्य के पहले राष्ट्रपति जार्ज वाशिंगटन ने पोटोमैक नदी के किनारे पेंसिलवेनिया एवेन्यू में एक जगह का चयन कर दिसंबर 1790 में एक कानून पारित करवाकर इसके निर्माण की बुनियाद रखी थी। इस विशाल भवन का आर्किटेक्ट भी कोई और नहीं वरन आयरिश नक्शेकार जेम्स हॉबन थे। कुल नौ प्रस्तावों के चयन के उपरांत हॉबन को बेहतरीन डिजाईन के लिए स्वर्ण पदक से सम्मानित भी किया गया था।


विश्व भर में सबसे ताकतवर मानी जाने वाली शक्सियत के इस सरकारी आवास के स्वरूप में भी समय समय पर परिवर्तन किया जाता रहा है। 1805 में तत्कालीन राष्ट्रपति थॉमस जेफरसन ने इसमें कुछ अतिरिक्त कक्षों का निर्माण करवाया था। 1814 में ब्रिटिश सेना ने इसके कुछ हिस्सों को आग के हवाले भी कर दिया था। इसके बाद 1817 में तत्कालीन महामहिम जम्स मुनरो ने इसकी मरम्मत का काम करवाया था। इतना ही नहीं 1929 में भी आग के चलते इसके पश्चिमी भाग को काफी नुकसान उठाना पड़ा था।


व्हाईट हाउस को समय समय पर महामहिमों की इच्छा के अनुरूप जनता के लिए भी खोला जाता रहा है। सबसे पहले थामस जेफरसन ने 1805 में पदभार ग्रहण करते समय यहां रियाया को आमंत्रित किया गया था। यह क्रम 1885 तक बदस्तूर जारी रहा। इसके बाद ग्रोवर क्लीवलैड ने इस प्रथा पर विराम लगा दिया। इसके बाद विवादित महामहिम बिल क्लिंटन ने नए साल के मौके पर जनता के लिए कुछ समय हेतु इसे खोलने की परंपरा का आगाज किया।


व्हाईट हाउस सबसे अधिक चर्चाओं में बिल क्लिंटन के कार्यकाल में ही आया। मोनिका लेविंस्की और क्लिंटन के अवैध संबंधें के चलते दुनिया भर की नजरें व्हाईट हाउस पर आ टिकीं थीं। इन दोनों के प्रेम प्रसंगों पर न जाने कितने लेखकोें ने मनगढंत कहानियां गढ़कर खासी कमाई भी कर ली थी। जिन किताबों में क्लिंटन मोनिका के प्रेम प्रसंग हैं, उनमें व्हाईट हाउस के अंदर का वर्णन भी किया गया है, जो लोगों के मन में कोतुहल बढ़ा देता है।


18 एकड़ क्षेत्र में बने अमेरिका के प्रथम नागरिक का सरकारी आवास कुल 168 फिट लंबा और 137 फिट चौड़ा है। यह दक्षिण दिशा में 70 फिट तथा उत्तर दिशा में साठ फिट उंचा है। इसकी बाहरी दीवारों को सफेद रंग से रंगने के लिए 300 गेलन पेंट का उपयोग किया जाता है। इस भवन में कुल 132 कमरे हैं, जिनमें 16 बेडरूम, एक मुख्य रसोई, एक आहार रसोई, 35 गुसलखानों का शुमार है। भूतल मंे एक प्रमुख गलियारे के अलावा अनेकानेक विश्राम कक्ष, मीटिंग हाल, गुसल आदि मिलाकर इसका कुल कारपेट एरिया 55 हजार वर्ग फुट है।


विश्व के सबसे शक्तिशाली महानायक के इस सरकारी आवास में अनेकानेक बार सेंध भी लग चुकी है। 1974 में अमेरिकन आर्मी का एक चोरी गया हेलीकाप्टर इस परिसर में उतरा गया था, इसके अलावा 20 मई 1994 में उल्का विमान भी इस भवन की सैर कर चुका है। 1995 की आतंकवादी घटना और 11 सितम्बर (9/11) की घटना के बाद इस इमारत की चौकसी बढ़ा दी गई है। अमेरिका के इस भवन में होने वाले घटनाएं अंदर ही दफन कर दी जाती हैं। मोनिका प्रकरण के अलावा और कोई भी राज बाहर नहीं आ सका है। पिछले दिनों बराक ओबामा की बियर डिप्लोमेसीके कुछ फोटो व्हाईट हाउस ने जारी किए थे जिसमें ओबामा अपने मित्रों के साथ लान में बैठकर बियर पी रहे थे, ने लोगों के मन में इस भवन के प्रति उत्सुक्ता और बढ़ा दी थी।

अंधा बांटे रेवड़ी चीन्ह चीन्ह के देय

अंधा बांटे रेवड़ी चीन्ह चीन्ह के देय


सूचना केंद्र ने फिर दिखाया कमाल


तीन को मिला पुरूस्कार जारी हुई महज एक की खबर और फोटो


(लिमटी खरे)


नई दिल्ली। देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली के अत्यंत मंहगे और दिल्ली के दिल कहे जाने वाले कनाट सर्कस में मध्य प्रदेश सरकार के सूचना केंद्र की कार्यप्रणाली गजब ढा रही है। भाजपामय हो चुके इस सरकारी कार्यालय द्वारा अब तो समाचार जारी करने में भी पक्षपात किया जाने लगा है। हाल ही में पुरूस्कृत हुए मध्य प्रदेश के तीन लोगों के बजाए सूचना केंद्र ने महज एक ही प्रतिभागी के पुरूस्कार के बारे में खबर और फोटो जारी की है।


मध्य प्रदेश सूचना केंद्र द्वारा जारी आधिकारिक खबर के अनुसार मध्यप्रदेश, भोपाल की प्रसिद्ध लेखिका डॉ0 स्वाति तिवारी को उनकी कृति अकेले होते लोगके लिए राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग द्वारा द्वितीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पुरस्कार के रूप में डॉ0 तिवारी को प्रशस्ति पत्र, शाल और 40 हजार रूपये की राशि भेंट की गयी। यह पुरस्कार आज यहां नई दिल्ली में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के कार्यालय में आयोजित समारोह में आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री के.जी. बालाकृष्णन द्वारा प्रदान किया गया। 


खबर में कहा गया है कि वर्तमान में डॉ0 स्वाति तिवारी मध्यप्रदेश जनसंपर्क संचालनालय में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा प्रकाशित मध्यप्रदेश संदेश में सहयोगी सम्पादक के रूप में कार्यरत हैं। डॉ0 स्वाति तिवारी मध्यप्रदेश के धार जिले से हैं। उनके द्वारा अभी तक 16 पुस्तकंे लिखी जा चुकी हैं और विभिन्न मानवीय विषयों पर लगभग 200 कहानियां लिखी हैं जिसका प्रकाशन देश के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में हुआ है।   


उल्लेखनीय है कि वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित पुस्तक अकेले होते लोगवृद्धावस्था के मानवाधिकारों के हनन पर मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ सम्मानजनक वृद्धावस्था का आग्रह करते हुए वृद्धों को जीवन के अकेलेपन से बचाने का प्रयास करती हैं। यह पुस्तक भारतीय समाज को उसकी जड़ों के खोखले होने के खतरों को उकेरती है। वृद्धाश्रमों के बजाय परिवारों में वृद्धों के स्थान को सुनिश्चित किए जाने के लिए आगाह करती है। 


बताया जाता है कि इस समारोह में मध्य प्रदेश के एक अधिकारी मनोहर बाथम जो कि केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल में महानिरीक्षक के पद पर हैं एवं एक शिक्षा विद डॉ.चंचला चंद्रशेखकर को भी सम्मानित किया गया है। वस्तुतः यह पुरूस्कार राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग द्वारा मानव अधिकारों पर हिन्दी में द्विवार्षिक सृजनात्मक लेखन के लिए वर्ष 2008 - 2009 के लिए प्रदान किया गया है। जनसंपर्क द्वारा जारी समाचार में इसका उल्लेख करने के बजाए विभाग में ही पदस्थ अतिरिक्ति संचालक की अर्धांग्नी का महिमा मण्डन ज्यादा किया गया है। गौरतलब है कि तिवारी दंपत्ति दो वर्ष पूर्व दिल्ली में सूचना केंद्र में ही पदस्थ थे। उस दौरान मध्य प्रदेश की भारतीय प्रशासनिक सेवा की अधिकारी अरूणा शर्मा आयोग की सदस्य सचिव भी रहीं हैं।







हिन्दी दिवस में आंग्ल संबोधन!


मौका हिन्दी के प्रोत्साहन के लिए पुरूस्कारों का था। पुरूस्कार भी दिए जा रहे थे उन्हें जिन्होंने हिन्दी में बेहतरीन काम किए हैं। पुरूस्कार पाने वाले लोग अपने आप को गोरवान्वित महसूस कर रहे थे। अचानक ही हिन्दी की चिन्दी तब उड़ती नजर आई जब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री के.जी. बालाकृष्णन ने अपना उद्बोधन आरंभ किया। बालाकृष्णन ने अपने उद्बोधन में हिन्दी के विकास का जिकर किया। वक्ता हक्का बक्का थे क्योंकि समूचा उद्बोधन अंग्रेजी भाषा में था। हिन्दी दिवस पर मुख्य वक्ता का अंग्रेजी में उद्बोधन सुनने के बाद लोगों को लगने लगा कि हिन्दी की दुर्दशा का कारण आखिर क्या है?

क्रेशर और खदानों के मजदूरो की जान से खिलवाड़

क्रेशर और खदानों के मजदूरो की जान से खिलवाड़

सिलिकोसिस की जानलेवा बीमारी की जद में हैं अधिकांश मजदूर

मालिकों द्वारा नहीं कराया जाता मजदूरों का नियमित स्वास्थ्य परीक्षण

(लिमटी खरे)


नई दिल्ली। देश भर में गिट्टी बनाने के लिए पत्थर तोड़ने वाले क्रेशर और कोयला एवं पत्थर खदानों व रेत का काम करने वाले मजदूरों का जीवन अब खतरे से खाली नहीं है। नियमित स्वास्थ्य जांच के अभाव में यहां काम करने वाले मजदूर सिलिकोसिसनामक बीमारी की जद में आ चुके हैं। मध्य प्रदेश में मंदसौर, पन्ना, झाबुआ, अलीराजपुर, जबलपुर, कटनी आदि में सिलिकोसिस के मजदूर बहुतायत में मिलने की संभावनाएं जताई जा रही हैं।


राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के सूत्रों का कहना है कि देश भर से इस तरह की शिकायतें मिल रहीं है। सूत्रों ने कहा कि पूर्व में आयोग द्वारा 22 नवंबर 2010 में मंदसौर के तीन परिवार जो सिलिकोसिस से पीड़ित थे को तीन तीन लाख रूपए का मुआवजा देने के निर्देश दिए थे। मानव अधिकार आयोग के पास आने वाली शिकायतों के अंबार में मध्य प्रदेश पहले दस राज्यों में अपने आप को रख रहा है।


चिकित्सकों के अनुसार यह बीमारी इतनी खतरनाक है कि इस बीमारी के होने पर इसका कोई उपचार ही नहीं है। बस इससे बचाव ही इसका एकमात्र रास्ता है। चिकित्सकों ने बताया कि सांस तेज चलना, सीने में जकड़न, वजन में कमी, खांसी का ठीक न होना इसके प्रमुख लक्षण हैं। दरअसल पत्थर तोड़ने के दौरान निकलने वाली धूल के कण जब स्वांस के माध्यम से अंदर जाते हैं, तब ये फैंफड़ों में जाकर जम जाते हैं।


सूत्रों ने बताया कि आयोग जल्द ही देश भर के जिला कलेक्टर्स को निर्देश जारी करने वाला है जिसमें उनके जिलों में चल रहे स्लेट उद्योग, क्रेशर, पत्थर फोड़ने के काम, मार्बल उद्योग यहां तक कि पन्ना की हीरे की खदानों तक में काम करने वाले मजदूरों का बाकायदा स्वास्थ्य परीक्षण समय समय पर करवाया जाए। इसके लिए इन उद्योगों के मालिकों को ही पाबंद किया जाए।