रविवार, 10 जनवरी 2010

टि्वटर को खरीद क्यों नहीं लेती भारत सरकार!


टि्वटर को खरीद क्यों नहीं लेती भारत सरकार!

थुरूर कांग्रेस की तो टि्वटर थुरूर की कमजोरी

शिशुपाल के सौ अपराध क्षमा हो रहे हैं थुरूर के

(लिमटी खरे)

भारत के विदेश राज्यमंत्री शशि थुरूर और विवादों का न टूटने वाला नाता गहराता जा रहा है। थुरूर एक के बाद एक हमले कर कांग्रेसनीत संप्रग सरकार को मुश्किलों में डालने से नहीं चूक रहे हैं। कभी वे हवाई जहाज की इकानामी क्लास को मवेशी का बाडा तो कभी काम के बोझ तले दबे होने की पीडा उजागर करते हैं। अपने ही विभाग के कबीना मंत्री के फैसले के खिलाफ भी वे खुलकर सार्वजनिक तौर पर बयानबाजी से बाज नहीं आ रहे हैं। थुरूर की इन नादानियों को कमतर आंककर कांग्रेस नेतृत्व हल्की फुल्की झिडकी लगाकर ही संतोष कर लेती है। मोटी चमडी वाले थुरूर पर इन छोटी मोटी डांट का असर होता नहीं दिख रहा है।


हाल ही में एसोसिएशन ऑफ इंडियन डिप्लोमेट और इंडियन कांउसिल ऑफ वल्र्ड अफेयर्स के एक कार्यक्रम में शिरकत के दौरान विदेश राज्य मंत्री शशि थुरूर ने भारत पर डेढ सौ से अधिक साल तक राज करने वाले ब्रिटेन के लेबर एमपी बी.पारेख के द्वारा देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और प्रियदर्शनी इंदिरा गांधी की विदेश नीति की आलोचना का न केवल समर्थन किया है, वरन् इसमें अपनी और से कशीदे भी गढे हैं।

बकौल थुरूर, सभ्यता की विरासत की अभिव्यक्ति में महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू ने असाधारण योगदान दिया है, साथ ही दोनों ने दुनिया में भारत का स्थान बनाया है, लेकिन विदेश नीति के संचालन के लिए हमें यह नकारात्मक छवि भी दी है कि यह नीति अन्य लोगों के व्यवहार पर नैतिकता भरी टिप्पणी पर ही संचालित होती है। वैसे कांग्रेस ने इसे नेहरू की विदेश नीति की आलोचना के तौर पर लिया है।


थुरूर चूंकि भारत गणराज्य के विदेश राज्य मंत्री जैसे जिम्मेदार ओहदे पर हैं, इस लिहाज से उनके द्वारा कही गई बात भारत सरकार की बात ही मानी जाएगी। वैसे भी शशि थुरूर भारत के राजनयिक रहे हैं, और उनकी जिन्दगी का बहुत बडा हिस्सा उन्होंने भारत के बाहर ही गुजारा है। थुरूर अगर नेहरू और इंदिरा गांधी की विदेश नीति की आलोचना कर रहे हैं तो इस बात में दम अवश्य होगा। अब भारत सरकार या सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस को नैतिकता के आधार पर यह स्पष्ट करना ही होगा कि नेहरू और इंदिरा गांधी की विदेश नीति सही थी या उसमें थुरूर ने जो गिल्तयां निकालीं हैं वे सही हैं। इस मामले में कांग्रेस या भारत सरकार मौन रहती है तो यह दोनों ही की मौन स्वीकृति के तौर पर लिया जा सकता है।

इतना सब होने पर विपक्ष चुप्पी साधे बैठा है। दरअसल विपक्ष भी नहीं चाहता है कि थुरूर को मंत्री पद से हटाया जाए। एक अकेला विदेश राज्य मंत्री ही विपक्ष की भूमिका का निर्वहन जो कर रहा है। अपनी ही सरकार की नीतियों पर तल्ख टिप्पणियां भले ही थुरूर को सुर्खियों में रखे हुए हो पर इससे नुकसान में तो कांग्रेस ही आ रही है।

गौरतलब है कि पूर्व में थुरूर ने कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी के दिल्ली से मुंबई तक के इकानामी क्लास के हवाई सफर के तत्काल बाद इकानामी क्लास को केटल क्लास अर्थात मवेशी का बाडा की संज्ञा दे दी थी। सोशल नेटविर्कंग वेव साईट टि्वटर का मोह बडबोले शशि थुरूर आज तक नहीं छोड पाए हैं। विदेश मंत्री एम.एस.कृष्णा के वीजा नियमों को कडा करने के फैसले के उपरांत थुरूर ने उस पर भी टिप्पणी कर दी थी।

एक के बाद एक गिल्त करने के बाद भी थुरूर का भारत सरकार के जिम्मेदार मंत्री पद पर बने रहना सभी को आश्चर्यचकित किए हुए है। जिस तरह महाभारत काल मेें शिशुपाल के सौ अपराधों को एक के बाद एक कृष्ण ने क्षमा किए थे, लगता है उसी तर्ज पर कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी थुरूर के बडबोलेपन को नजर अंदाज करती जा रहीं हैं। वैसे भी राजनयिक से जनसेवक बने शशि थुरूर कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी की पसंद हैं। संभवत: यही कारण है कि कांग्रेस को एक के बाद एक नुकसान पहुंचाने वाले शशि थुरूर पर लगाम कसने से पुत्रमोह में अंधी कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी भी कठोर कदम उठाने से हिचक ही रहीं हैं।

हालात देखकर लगने लगा है कि बडबोले विदेश राज्यमंत्री शशि थुरूर के लिए सरकारी कामकाज से ज्यादा टि्वटर पर अपने लाखों प्रशंसकों के सवालों का जवाब देना और उल जलूल बातें बोलकर मीडिया की सुर्खियों में बने रहना ज्यादा अहम हो गया है। शशि थुरूर की इन हरकतों के बाद भी अगर कांग्रेस उन्हें मंत्री के तौर पर झेल रही है तो यह साबित होता है कि थुरूर कांग्रेस की मजबूरी बन गए हैं, कारण चाहे जो भी हो। इसके अलावा दूसरी बात यह साफ तौर पर उभरकर सामने आ रही है कि थुरूर के लिए अनर्गल बयान बाजी और टि्वटर प्रेम एक अच्छा शगल बनकर रह गया है।

हमारी नजर में थुरूर के इस तरह के कदमों का कांग्रेस के पास कोई ईलाज नहीं है। अब दो ही रास्ते बचते हैं, अव्वल तो यह कि कांग्रेसनीत केंद्र सरकार टि्वटर नाम की सोशल नेटविर्कंग वेव साईट को ही खरीद ले और उसे नेशनल इंफरमेंशन सेंटर (एनआईसी) के हवाले कर दे, ताकि सरकारी नोटशीट और लिखापढी भी अब इसके माध्यम से संचालित हों, ताकि कांग्रेस के लाडले थुरूर का टि्वटर से मन भी बहलता रहेगा और कांग्रेस भी बदनामी से बच जाएगी। दूसरे यह कि भारत में इस वेव साईट को ही प्रतिबंधित कर दिया जाए। इससे थुरूर की मन की बातें भारत छोडकर शेष दुनिया में तो पढा जा सकेगा पर भारत में मीडिया में थुरूर के बडबोलेपन को स्थान नहीं मिल सकेगा। इस तरह थुरूर का टि्वटर प्रेम भी जिंदा रहेगा और कांग्रेस की लाज भी बच जाएगी।