मुहूर्त का महत्व
(पंडित दयानन्द शास्त्री)
नई दिल्ली (साई)।
आस्थावान भारतीय समाज तथा ज्योतिष शास्त्र में मुहूर्त का अत्यधिक महत्व है। यहां
तक कि लोक संस्कृति में भी परंपरा से सदा मुहूर्त के अनुसार ही किसी काम को करना
शुभ माना गया है। हमारे सभी शास्त्रों में उसका उल्लेख मिलता है। भारतीय लोक
संस्कृति में मुहूर्त तथा शुभ शकुनों का प्रतिपालन किया जाता है।
ज्योतिष के अनुसार
मुहूर्तों में पंचांग के सभी अंगों का आकलन करके, तिथि-वार-नक्षत्र-योग
तथा शुभ लग्नों का सम्बल तथा साक्षी के अनुसार उनके सामंजस्य से बनने वाले
मुहूर्तों का निर्णय किया जाता है। किस वार, तिथि में कौन सा नक्षत्र किस काम के लिए
अनुकूल या प्रतिकूल माना गया है, इस विषय में भारतीय ऋषियों ने अनेकों
महाग्रंथों का निर्माण किया है जिनमें मुहूर्त मार्तण्ड, मुहूर्त गणपति
मुहूर्त चिंतामणि,
मुहूर्त पारिजात, धर्म सिंधु, निर्णय सिंधु आदि
अनेक ग्रंथ प्रचलित तथा सार्थक हैं। जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत तथा भारत का धर्म
समाज मुहूर्तों का प्रतिपालन करता है।
भारतीय संस्कृति व
समाज में जीवन का दूसरा नाम ही श्मुहूर्तश् है। भारतीय जीवन की नैसर्गिक व्यवस्था
में भी मुहूर्त की शुभता तथा अशुभता का आकलन करके उसकी अशुभता को शुभता में
परिवर्तन करने के प्रयोग भी किये जाते हैं। महिलाओं के जीवन में रजो दर्शन
परमात्मा प्रदत्त तन-धर्म के रूप में कभी भी हो सकता है किंतु उसकी शुभता के लिए
रजोदर्शन स्नान की व्यवस्था, मुहूर्त प्रकरण में इस प्रकार दी गयी है-
सोम, बुध, गुरु तथा शुक्रवार, अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, उत्तरा भाद्रपद, रेवती नक्षत्र शुभ
माने गये हैं।
मासों में वैशाख, ज्येष्ठ, श्रवण, अश्विनी, मार्गशीर्ष, माघ, फाल्गुन श्रेष्ठ
माने गये हैं। शुक्ल पक्ष को श्रेष्ठ माना गया है, दिन का समय श्रेष्ठ
है। इसी प्रकार- गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्त, सूतिका स्नान, जातकर्म-नामकरण, मूल नक्षत्र, नामकरण शांति, जल पूजा, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, कर्णवेधन, चूड़ाकरण, मुंडन, विद्यारंभ
यज्ञोपवीत, विवाह तथा
द्विरागंमनादि मुहूर्त अति अनिवार्य रूप में भारतीय हिंदू समाज मानता है। इसके
अतिरिक्त भवन निर्माण में, भी नींव, द्वार गृह प्रवेश, चूल्हा भट्टी के
मुहूर्त, नक्षत्र, वार, तिथि तथा शुभ योगों
की साक्षी से संपन्न किये जाते हैं विपरीत दिन, तिथि नक्षत्रों
अथवा योगों में किये कार्यों का शुभारंभ श्रेष्ठ नहीं होता उनके अशुभ परिणामों के
कारण सर्वथा बर्बादी देखी गयी है।
भरणी नक्षत्र के
कुयोगों के लिए तो लोक भाषा में ही कहा गया है- श्श्जन्मे सो जीवै नहीं, बसै सो ऊजड़ होय।
नारी पहरे चूड़ला, निश्चय
विधवा होयघ्श्श् सर्व साधारण में प्रचलित इस दोहे से मुहूर्त की महत्ता स्वयं
प्रकट हो रही है कि मुहूर्त की जानकारी और उसका पालन जीवन के लिए अवश्यम्यावी है।
पंचक रूपी पांच नक्षत्रों का नाम सुनते ही हर व्यक्ति कंपायमान हो जाता है।
पंचकों के पांच-श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तरा भाद्रप्रद
तथा रेवती नक्षत्रों में, होने वाले शुभ- अशुभ कार्य को पांच गुणा करने की शक्ति है अतः
पंचकों में नहीं करने वाले मुहूर्त अथवा कार्य इस प्रकार माने गये हैं- दक्षिण की
यात्रा, भवन
निर्माण, तृण तथा
काष्ट का संग्रह, चारपाई का
बनाना या उसकी दावण-रस्सी का कसना, पलंग खरीदना व बनवाना तथा मकान पर छत डालना।
पंचकों में अन्य
शुभ कार्य किये जाते हैं तो उनमें पांच गुणा वृद्धि की क्षमता होती है लोक
प्रसिद्ध विवाह या शुभ मुहूर्त बसंत पंचमी तथा फुलेरादूज पंचकों में ही पड़ते हैं
जो शुभ माने गये हैं किसी का पंचकों में मरण होने से पंचकों की विधिपूर्वक शांति
अवश्य करवानी चाहिए। इसी प्रकार सोलह संस्कारों के अतिरिक्त नव उद्योग, व्यापार, विवाह, कोई भी नवीन कार्य, यात्रा आदि के लिए
शुभ नक्षत्रों का चयन किया जाता है अतः उनकी साक्षी से किये गये कार्य सर्वथा सफल
होते हैं।
बहुत से लोग, जनपद के ज्योतिषी, सकलजन तथा पत्रकार
भी, पुष्य
नक्षत्र को सर्वश्रेष्ठ तथा शुभ मानते हैं। वे बिना सोचे समझे पुष्य नक्षत्र में
कार्य संपन्नता को महत्व दे देते हैं। किंतु पुष्य नक्षत्र भी अशुभ योगों से
ग्रसित तथा अभिशापित है। पुष्य नक्षत्र शुक्रवार का दिन उत्पात देने वाला होता है।
शुक्रवार को इस नक्षत्र में किया गया मुहूर्त सर्वथा असफल ही नहीं, उत्पातकारी भी होता
है। यह अनेक बार का अनुभव है।
एक बार हमारे विशेष
संपर्की व्यापारी ने जोधपुर से प्रकाशित होने वाले मासिक पत्र में दिये गये
शुक्र-पुष्य के योग में, मना करते हुए भी अपनी ज्वेलरी शॉप का मुहूर्त करवा लिया
जिसमें अनेक उपाय करने तथा अनेक बार पुनः पुनः पूजा मुहूर्त करने पर भी भीषण घाटा
हुआ वह प्रतिष्ठान सफल नहीं हुआ। अंत में उसको सर्वथा बंद करना पड़ा। इसी प्रकार किसी
विद्वान ने एक मकान का गृह प्रवेश मुहूर्त शुक्रवार के दिन पुष्य नक्षत्र में
निकाल दिया।
कार्यारंभ करते ही
भवन बनाने वाला ठेकेदार ऊपर की मंजिल से चौक में गिर गया। तत्काल मृत्यु को
प्राप्त हो गया। अतः पुष्य नक्षत्र में शुक्रवार के दिन का तो सर्वथा त्याग करना
ही उचित है। बुधवार को भी पुष्य नक्षत्र नपुंसक होता है। अतः इस योग को भी टालना
चाहिए, इसमें किया
गया मुहूर्त भी विवशता में असफलता देता है। पुष्य नक्षत्र शुक्र तथा बुध के
अतिरिक्त सामान्यतया श्रेष्ठ होता है। रवि तथा गुरु पुष्य योग सर्वार्थ सिद्धिकारक
माना गया है।
इसके अतिरिक्त
विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि विवाह में पुष्य नक्षत्र सर्वथा अमान्य तथा
अभिशापित है। अतः पुष्य नक्षत्र में विवाह कभी नहीं करना चाहिए। मुहूर्त प्रकरण
में ऋण का लेना देना भी निषेध माना गया है, रविवार, मंगलवार, संक्राति का दिन, वृद्धि योग, द्विपुष्कर योग, त्रिपुष्कर योग, हस्त नक्षत्र में
लिया गया ऋण कभी नहीं चुकाया जाता।
ऐसी स्थिति में
श्रीगणेश ऋण हरण-स्तोत्र का पाठ तथा- श्श्ऊँ गौं गणेशं ऋण छिन्दीवरेण्यं हँु नमः
फट्।श्श् का नित्य नियम से जप करना चाहिए। मानव के जीवन में जन्म से लेकर जीवन
पर्यन्त मुहूर्तों का विशेष महत्व है अतः यात्रा के लिए पग उठाने से लेकर मरण
पर्यन्त तक- धर्म-अर्थ- काम-मोक्ष की कामना में मुहूर्त प्रकरण चलता रहता है और
मुहूर्त की साक्षी से किया गया शुभारंभ सर्वथा शुभता तथा सफलता प्रदान करता है।
(साई फीचर्स)