सोमवार, 1 अगस्त 2011

खतो खिताब वाले नेताओं से खफा हैं युवराज


ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)

खतो खिताब वाले नेताओं से खफा हैं युवराज
समस्याओं के लिए ध्यान आकर्षित कराने के लिए रोजाना चिट्ठी पत्री लिखने वाले नेताओं से कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी आजिज आ चुके हैं। लगता है राहुल के कार्यालय में रोजाना बड़ी संख्या में पत्र और फेक्स आ रहे हैं, जिससे वे खासे परेशान हैं। उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी ने इशारों ही इशारों में खतो खिताब वाले नेताओं को नसीहत दे डाली। राहुल का कहना है कि पत्र लिखने या ज्ञापन देने से समस्या का हल नहीं होने वाला है। यह महज एक रस्म अदायगी ही है। चंद्रशेखर आजाद की तरह गरजते हुए राहुल गांधी ने कहा कि पत्र लिखने के बजाए सड़कों पर उतरकर आंदोलन के माध्यम से सरकार को झुकने पर मजबूर किया जाना चाहिए। राहुल के करीबी सूत्रों का कहना है कि मांग पूरी न होने पर फलां तारीख से आंदोलन की चेतावनी देने के बजाए तत्काल ही आंदोलन आरंभ किए जाने के पक्षधर हैं राहुल। अब देखना यह है कि इस देश के विज्ञप्तिवीर कांग्रेस के नेताओं पर राहुल की नसीहत का कितना असर होता है।

अण्णा की तूती बोल रही है सिब्बल के घर!
देश के मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने भले ही इक्कीसवीं सदी के योग गुरू बाबा रामदेव के अभियान की हवा निकाल दी हो, पर उनके संसदीय क्षेत्र में अण्ण हजारे का जलजला बना हुआ है। एक निजी संस्था द्वारा कराए जनमत संग्रह में यह बात उभर कर सामने आई है कि चांदनी चैक इलाके में लोकपाल के मसले पर अधिकतर लोग अण्णा हजारे का साथ दे रहे हैं। देश में भ्रष्टाचार से आजिज आ चुके लोग अब अण्णा को अपना बुजुर्ग मानते हुए उनमें महात्मा गांधी की छवि भी देख रहे हैं। लोगों का मानना है कि अण्णा के प्रयासों से नव भारत के निर्माण के मार्ग प्रशस्त होते दिख रहे हैं। कपिल सिब्बल राजनैतिक गोटियां बिठाने में भले ही महारथ हासिल रखते हों पर उनके संसदीय क्षेत्र में तो लोग अण्णा के अभियान के समर्थन में जबर्दस्त उत्साह दिखा रहे हैं। कहातव है न -‘‘दिया तले अंधेरा।‘‘

तो यह है एमपी सूचना केंद्र का हाल सखे
मध्य प्रदेश सरकार के जनसंपर्क विभाग का दिल्ली स्थित कार्यालय इन दिनों जनसंपर्क विभाग के आला अधिकारियों के परिजनों और भातरीय जनता पार्टी का मीडिया सेंटर बनकर रह गया है। आरोपित है कि इस कार्यालय से भाजपा और उसके अनुषांगिक संगठनों का पब्लिसिटी मटेरियल वितरित किया जा रहा है। हाल ही में एमपी के जनसंपर्क और शिक्षा मंत्री लक्ष्मी कांत शर्मा के पार्टी के एक प्रोग्राम में दिए गए वक्तव्य को इस कार्यालय द्वारा सरकारी तौर पर जारी किया गया। इतना ही नहीं जनसंपर्क विभाग के एक अधिकारी के रिश्तेदार की कला प्रदर्शनी की खबर को भी फोटो सहित जारी किया गया। अमूमन दिल्ली कार्यालय की विज्ञप्तियों को भोपाल मुख्यालय द्वारा बांटा जाता है, पर इन दोनों निजी प्रोग्राम की खबरें मुख्यालय ने जारी नहीं की। मीडिया में चर्चा है कि यह कार्यालय मध्य प्रदेश सरकार का है या भारतीय जनता पार्टी की एमपी शाखा का मीडिया सेल!

फाईलों से बच्चे पैदा करने की तकनीक!
क्या इंसानों के बच्चे इंसान के अलावा और कोई पैदा कर सकता है? आपका उत्तर नकारात्मक ही होगा। जी नहीं! नस्तियांे यानी फाईलों से बच्चे पैदा करने की नई तकनीक इजाद हो चुकी है। यह इजाद की है राजस्थान की अशोक गहलोद के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने! एक बच्चे को पैदा होने में नौ माह का समय लगता है पर उदयपुर में सीता नामक महिला ने एक साल में एक दो नहीं चोबीस मर्तबा बच्चों को जन्म दिया! इतना ही नहीं यहां 32 पुरूषों ने भी अपने पेट से बच्चे पैदा किए हैं। है न हैरत वाली बात। दरअसल, गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाली महिलाओं को डिलेवरी के समय मिलने वाली राशि को गटकने यह तकनीक इजाद की गई है। हद तो तब हो गई जब गर्भावस्था वार्ड की प्रमुख द्वारा खुद साल में 11 बार बच्चों को जन्म दिया गया। गहलोत सरकार के इस कारनामे पर एआईसीसी मुख्यालय में दबी जुबान से चर्चा हो रही है।

दिग्गी की घेरा बंदी शुरू!
अपने बयानों के कारण सदा ही चर्चा में रहने वाले कांग्रेस के सबसे ताकतवर महासचिव राजा दिग्विजय सिंह के खिलाफ घराना पत्रकारिता के जनक एक समाचार पत्र समूह ने अघोषित मुहिम छेड़ दी है। चैदह साल पुराने एक मामले को उक्त समूह के एक वरिष्ठ सहयोगी के रिश्तेदार के माध्यम से उठाया गया है। दिग्विजय सिंह और उनके सांसद भाई लक्ष्मण सिंह सहित नौ लोगों के खिलाफ कांग्रेस नेत्री सरला मिश्रा की मौत के साक्ष्य छिपाने एक अदालत में मुकदमा दायर किया गया है। गौरतलब है कि सरला मिश्रा की भोपाल में संदिग्ध परिस्थितियों में 14 फरवरी 1997 में मौत हो गई थी। इस वक्त राजा दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। भोपाल के तात्या टोपे नगर पुलिस ने तीन साल बाद इसकी क्लोजर रिपोर्ट लगा दी थी। यद्यपि इस मामले में ज्यादा दम नहीं दिखाई दे रही है पर समाचार पत्र समूह की इस मामले में दिलचस्पी समझ से परे ही है।

अमिताभ - अमर में दरार
सियासत का स्वाद चख चुके सदी के महानायक अमिताभ बच्चन जब बदहाली के दौर से गुजर रहे थे, तब उनके तारणहार बनकर आए थे, अमर सिंह। अमर सिंह और बिग बी की जुगलबंदी के अनेक किस्से विद्यमान हैं। कहते हैं अभिषेक और एश्वर्य को दांपत्य सूत्र में बांधने में अमर सिंह ने महती भूमिका निभाई थी। ‘नोट फाॅर वोट‘ मामले में नाम सामने आने के बाद अपने अपने फन में महारथ हासिल रखने वाले दोनों धुरंधरों के बीच खाई गहराने लगी है। अमिताभ ने अमर सिंह की कंपनी प्रमोटेड एनर्जी डेवलपमेंट कंपनी लिमिटेड से त्याग पत्र दे दिया है। अमर सिंह भी भला पलटवार करने से पीछे क्यों रहते उन्होने भी अमिताभ बच्चन की एबी कार्पोरेशन को बाॅय बाॅय कह ही दिया। अब सियासी गलियारों में इसके निहितार्थ ढूंढे जा रहे हैं।

सबको पता है जी. . .।
एक कंपनी का विज्ञापन है जिसकी पंच लाईन है सबको पता है जी. . .। इसी तर्ज पर अब टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले में पूर्व दूरसंचार मंत्री आदिमत्थू राजा ने वजीरे आजम डाॅ.मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बरम को भी लपेट दिया है। राजा का कहना है कि स्पेक्ट्रम आवंटन की विक्री वजीरे आजम की मौजूदगी में की गई थी। इतना ही नहीं तत्कालीन वित्त मंत्री चिदम्बरम ने इस मामले में लाईसेंसी द्वारा हिस्सेदारी बेचने की जानकारी भी मनमोहन को दी थी। सीबीआई अदालत में राजा द्वारा दिए गए बयान के बाद कांग्रेस मुख्यालय में सन्नाटा पसर गया है। पी एम की स्थिति स्पष्ट करने न तो कांग्रेस ही आगे आ रही है और ना ही सरकारी प्रवक्ता ही कोई दिलचस्पी दिखा रहे हैं। भाजपा ने भी एक बार प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से त्यागपत्र की मांग कर औपचारिकता पूरी कर ली है। सच है -‘हमाम में सब नंगे हैं।‘

राहुल ने बुझाई लालटेन!
मंत्रीमण्डल फेरबदल के पहले लालू प्रसाद यादव और सोनिया गांधी के बीच हुई गुफ्तगू से कयास लगने लगे थे कि इस बार लालू यादव की लाटरी लग सकती है। विस्तार हुआ पर लालू का कहीं पता नहीं था। पतासाजी पर ज्ञात हुआ कि लालू यादव की लालटेन को राहुल गांधी ने फूंक मारकर बुझा दिया था। राहुल को मशविरा दिया गया है कि लालू के बजाए पासवान क्यों नहीं? और अगर समझौते की नौबत ही आए तो मुलायम क्या बुरे हैं। लालू के पास चार तो मुलायम के पास 22 सांसद हैं। वैसे कांग्रेस के युवराज की पहली पसंद अजीत सिंह थे। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव यानी मिशन 2012 के लिए राहुल गांधी के लिए अजीत सिंह से अच्छा कोई सहयोगी नहीं साबित हो सकता है, पर क्या करें अजीत के आगे सिंह लगा है जो राहुल के अघोषित राजनैतिक गुरू दिग्विजय ‘सिंह‘ के लिए मुफीद नहीं लग रहा है।

ब्रितानी हुकूमत की यादें ताजा कीं बिसेन ने
देश के हृदय प्रदेश में सुशासन है, यह दावा सूबे के निजाम शिवराज सिंह चैहान का है, जो सरासर गलत है। पिछले दिनों राज्य के सहकारिता मंत्री गोरी शंकर बिसेन ने जो तांडव किया है, उसकी गूंज दिल्ली में उठ रही है। बाकी मामलों को तो छोडि़ए, बिसेन ने एक आदिवासी पटवारी को विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ठाकुर और भाजपा के अन्य विधायकों की उपस्थिति में ‘जाति सूचक‘ शब्दों का प्रयोग कर मंच पर ही नर्सरी के बच्चे के मानिंद ‘उठक बैठक‘ लगवा दी। सिविल सर्विसेस के हिसाब से नियमों के प्रतिकूल ही है। मामला सिवनी जिले का है, सिवनी को छोड़कर समूचे प्रदेश में इसकी गूंज हो रही है। बिसेन के पुतले फुक रहे हैं पर सिवनी में आदिवासी के अपमान पर कांग्रेस ने महज ज्ञापन देकर ही रस्म अदायगी करना मुनासिब समझा है।

69 साल बाद फिर होगा जबर्दस्त आंदोलन!
अगस्त माह भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। 14 और 15 अगस्त की दर्मयानी रात आजाद हुआ था भारत। इसके पहले अगस्त 1942 में महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन का आगाज किया था। उस वक्त देश में सामंती सोच वाले लोगों ने भी बापू का साथ दिया और ब्रितानियों को खदेड़ दिया था। 16 अगस्त 2011 को अण्ण हजारे अनशन पर बैठने वाले हैं। आज ब्रितानी हुकूमत तो नहीं पर सोनिया गांधी, राहुल गांधी को हाथ में लकड़ी और लालटेन लेकर राह दिखाने वाले राजा दिग्विजय सिंह की सामंती सोच और भ्रष्ट सरकार के सामने अण्णा का अनशन है। अण्णा इसे आजादी की दूसरी लड़ाई ही मान रहे है, वह भी अपने के ही खिलाफ। सरकार ने अण्णा को अनशन करने से रोकने सारे प्रबंध कर लिए हैं। 1942 के बाद अब 2011 का यह आंदोलन एतिहासिक हो जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

राजमाता की चैखट चूमता सरकारी तंत्र
जबसे सोनिया गांधी ने कांग्रेस की नैया की पतवार अपने हाथों में ली है तबसे देश में एक तरह से प्रजातंत्र का स्थान हिटलरशाही ने ही ले लिया है। जो भी सोनिया गांधी के खिलाफ कुछ कहने का साहस जुटाता है फौरन ही सरकारी तंत्र राशन पानी लेकर उस पर चढ़ दौड़ता है। मामला चाहे विपक्ष का हो या मीडिया का। हर मामले में सरकार ने सोनिया की मुखालफत करने वालों की कमर तोड़ने का ही प्रयास किया है। सोनिया के खिलाफ बाबा रामदेव ने मुंह खोला तो उनका हश्र किसी से छिपा नहीं है। हाल ही में लंदन जाने के पहले भाजपा के निजाम नितिन गड़करी ने सोनिया के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। गड़करी ने कहा कि काले धन के मामले में सरकार इसलिए चुप बैठी है क्योंकि कांग्रेस के नेताओं जिनमें सोनिया गांधी शामिल हैं, का धन विदेश में जमा है। फिर क्या था, नितिन पुत्र निखिल गड़करी की फर्म पर दनादन पड़ गए आयकर छापे।

कांग्रेस की नजरें हैं येचुरी की आसनी पर
सीताराम येचुरी को अब दुबारा संसदीय सौंध पहुंचना मुश्किल ही दिख रहा है। इन परिस्थितियों में संसद की पर्यटन, परिवहन और संस्कृति की स्थाई समिति के अध्यक्ष सीताराम येचुरी के खाली होने वाले सिंहासन पर कांग्रेस ने नजरें गड़ाना आरंभ कर दिया है। दरअसल ये समितियां देश के मलाईदार विभागों पर्यटन, संस्कृति, नागर विमानन, भूतल परिवहन और जहाजरानी मंत्रालयों की निगरानी करती है। कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि अगर अपने ही किसी बंदे को इस समिति का मुखिया बनवा दिया जाए तो अंदर की बात अंदर ही रह जाएगी और ‘मैनेजमेंट‘ में ज्यादा सर नहीं खपाना पड़ेगा। अब इंतजार है येचुरी की रूखसती का और तो और कांग्रेस ने इनके लिए नामों की फेहरिस्त भी तय करके राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी की अंतिम मुहर के लिए भेज भी दी है।

राजनैतिक अवकाश पर हैं अहमद!
सियासी गलियारों में यह चर्चा आम हो गई है कि क्या कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल इन दिनों राजनैतिक अवकाश पर हैं? कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ से छन छन कर बाहर आ रही खबरों पर अगर यकीन किया जाए तो अहमद पटेल ने इस बार के मंत्रीमण्डल फेरबदल से अपने आप को बरी ही रखा है। सूत्रों का कहना है कि राजनैतिक समझ बूझ के धनी अहमद राज्य सभा से चुने जाने की जोड़तोड़ में व्यस्त हैं। इससे सबसे ज्यादा नुकसान में वे रहे जो अहमद को सीढ़ी बनाकर लाल बत्ती का ख्वाब देख रहे थे, और फायदे में वे जिनकी अहमद से नहीं बनती थी। मध्य प्रदेश के एक नेता अहमद पटेल की गैरमौजूदगी के चलते लाल बत्ती से महरूम रह गए। सियासी बिछात पर अहमद की अनुपस्थिति पर शोध जारी है।

आधा प्रजातंत्र आधी हिटलरशाही
कांग्र्रेस के अंदर प्रजातंत्र कितने फीसदी है? जवाब होगा शायद है ही नहीं। यह अवधारणा शायद गलत हो। मध्य प्रदेश में पिछले साल हुए पार्टी के जिलाध्यक्षों के चुनाव के बाद भी चुने हुए अधिकांश नेताओं को पदभार ग्रहण करने के लिए एड़ी चोटी का जोर और पूजा पाठ का सहारा लेना पड़ा। प्रदेश का कांग्रेसी निजाम बदला तो फिर नई व्यवस्था लागू हो गई। संगठन में इस कदर मचैना मचा है कि इसकी गूंज दिल्ली तक सुनाई पड़ रही है। कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष कांतिलाल भूरिया की सहमति के बिना ही 27 जुलाई को भोपाल और विदिशा के चुनाव करने का फरमान जारी हो गया। भूरिया लाल पीले हो उठे। संगठन में उन्होंने उपर तक अपनी बात बरास्ता महामंत्री राजा दिग्विजय सिंह पहुंचाई। फिर क्या था लादे गए इन चुनावों को कर दिया गया निरस्त।

पुच्छल तारा
केंद्र में कांग्रेसनीत संप्रग सरकार है। इसके सात साल के कार्यकाल में मंहगाई ने सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं। गरीब गुरबों को दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। भारत के इन हालातों पर विदेशों में बैठे भारतीय भी चिंता जता रहे हैं। अमेरिका के डेट्रायट से दीपन सिंग ने एक मजेदार ईमेल भेजा है। दीपन लिखते हैं कि एक आदमी ने दिल्ली की यमुना में एक मछली पकड़ी। उसे घर लाया, घर आकर देखा न तेल, न नमक, न जीरा, न मिर्च, न गैस, न आटा, न बिजली, मतलब कुछ भी नहीं। निराश हुए उस आदमी ने वापस जाकर यमुना में उस मछली को वापस फेंक दिया। जैसे ही वह मछली वापस पानी में गई, डुबकी लगाई और जोर से उछलते हुए चिल्लाई -‘‘कांग्रेस जिंदाबाद।‘‘