पेंच की तर्ज पर फोरलेन मार्ग निर्माण
(लिमटी खरे)
महाकौशल के क्षत्रप कमल नाथ केंद्रीय राजनीति में स्थापित और सर्वमान्य नेता हैं इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। केंद्र या राज्य में सरकार चाहे कांग्रेस की हो या भाजपा की, कमल नाथ की मंशाएं मूर्तरूप पाती ही हैं। केंद्र में जब भाजपा सरकार थी और मण्डला के भाजपाई सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते थे, उस वक्त केंद्र से एक स्टेडियम की स्वीकृति दिलाकर कमल नाथ ने भाजपा के मुंह पर करारा तमाचा जड़ा था। मध्य प्रदेश में नेशनल हाईवे की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। एक उद्देश्य विशेष के चलते एमपी के भाजपाई निजाम प्रभात झा ने दो बार कमल नाथ के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान और मानवा श्रंखला का आगाज किया। कहते हैं अद्रश्य उद्देश्य के पूरे होते ही कमल नाथ को घेरने की बात धरी रह गई। तीन दशकों के बाद भी सिवनी में पेंच का एक बूंद पानी नहीं आया। उसी तर्ज पर फोरलेन का निर्माण हो रहा है। दिल थामकर बैठिए अभी तो इसमें फच्चर फंसे हुए महज तीन साल ही हुए हैं, दशक भी पूरा नहीं हो पाया है अभी।
मध्य प्रदेश में भगवान शिव के सिवनी जिले में किसानों के लिए बनाई गई महात्वाकांक्षी पेंच सिंचाई परियोजना की तर्ज पर ही फोरलेन मार्ग के निर्माण का काम गति पा रहा है। एक के बाद एक हादसों में निरीह लोगों की बलि चढ़ती जा रही है पर मोटी चमड़ी वाले जनसेवकों (सांसद और विधायकों) की तंद्रा तोड़ने में इन लोगों की बलि भी काम नहीं आ पा रही है। सिवनी जिले सहित समूचे मध्य प्रदेश के सांसद विधायक, यह काम कौन सा मेरे घर का है की तर्ज पर ताक पर रखे हुए हैं। कांग्रेस और भाजपा भी इन अकाल मौतों पर विज्ञप्ति पर विज्ञप्ति जारी करने से नहीं चूक रही है। दोनों ही दलों के नेता अपने अपने विधायक, सांसदों से इस मामले को उठाने की बात भी नहीं कह पा रही है।
पिछले दिनों सिवनी और छिंदवाड़ा जिले की महात्वाकांक्षी पेंच सिंचाई परियोजना के बारे में सियासत गर्माई थी। मध्य प्रदेश सरकार के सिंचाई विभाग के प्रमुख सचिव राधेश्याम जुलानिया द्वारा सिवनी के सर्किट हाउस में किसानों के साथ दबंगई दिखाने की बात राष्ट्रीय स्तर पर उछली और लोगों की जुबां पर छा गई थी। मध्य प्रदेश काडर के अखिल भारतीय सेवा के दिल्ली में पदस्थ अनेक अधिकारियों ने जुलानिया की दबंगई को इंटरनेट पर देखकर तबियत से छींटाकशी की थी।
पेंच मामले में कांग्रेस का कहना है कि सिवनी जिले के कांग्रेसी क्षत्रप विधायक और मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ठाकुर इस मामले को पिछले तीन दशकों से उठा रहे हैं। केंद्र में कांग्रेस के एमपी के क्षत्रप कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा जिले में पेंच व्यपवर्तन योजना मूर्त रूप क्यों नहीं ले पा रही है यह बात किसी से छिपी नहीं है। कमल नाथ स्थापित कद्दावर नेता हैं, मध्य प्रदेश में सरकार चाहे जिसकी हो या केंद्र में कमल नाथ अपनी हर मंशा को अमली जामा पहनाने में सक्षम हैं। केंद्रीय राजनीति में महाकौशल के इकलौते क्षत्रप फग्गन सिंह कुलस्ते के संसदीय क्षेत्र में कमल नाथ ने भाजपा की सरकार में ही एक स्टेडियम बनवा दिया। यह कमल नाथ का राजनैतिक कौशल था या राजनैतिक सौहाद्र यह तो वे और भाजपा ही बेहतर जानती होगी, किन्तु नाथ की इस चतुराई के कुलस्ते भी कायल हुए बिना नहीं रहे होंगे।
पेंच परियोजना केंद्र और राज्य के बीच 1984 से हिचकोले खा रही है। वस्तुतः छिंदवाड़ा जिले में चौरई विकासखण्ड के माचागौरा में पेंच नदी पर पेंच व्यपवर्तन परियोजना प्रस्तावित है। छिंदवाड़ा और सिवनी जिले में सिंचाई की महात्वाकांक्षी ‘‘पेंच सिंचाई परियोजना‘‘ दो दशकों तक सरकारी कार्यालयों की सीढ़ियां चढ़ने उतरने के बाद अंततः फाईलों में दफन हो ही गई। भाजपा की मध्य प्रदेश सरकार की सहमति के उपरांत केंद्र सरकार ने इसकी फाईल बंद कर दी है। यद्यपि मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार इस मामले में अभी भी कुहासा साफ करने को तैयार नहीं है। नब्बे के दशक में बनाई गई इस परियोजना को रोके रखने के मामले में क्षेत्रीय सांसद की भूमिका पर सवालिया निशान खड़ा किया जा रहा है।
ज्ञातव्य है कि यह परियोजना 1984 में आरंभ हुई थी। इसका विस्तृत प्राक्कलन 1984 में तैयार किया गया था, उस समय इसकी लागत 91.6 करोड़ रूपए आंकी गई थी। इस योजना पर वास्तविक काम 1988 में आरंभ हुआ। 14 साल तक राजनैतिक मकड़जाल में उलझी इस योजना की लागत 1998 में लगभग छः गुना बढ़कर 543.20 करोड़ रूपए हो गई थी। इस परियोजना का आश्चर्यजनक पहलू यह है कि केंद्र और प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता रहते हुए भी क्षेत्रीय सांसद कमल नाथ ने इसे अब तक केंद्र की अनुमति दिलवाने में नाकामी ही हासिल की है।
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि 29 सितंबर 2003 को मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा अंतिम समय में इस परियोजना की पुर्नरीक्षित अनुमति प्रदान की थी। इसके उपरांत 22 फरवरी 2006 को केंद्रीय जल आयोग ने इस योजना में 583.40 करोड़ रूपयों की स्वीकृति प्रदान की थी। इसके लगभग ढाई बरस के उपरांत 15 जुलाई 2008 को मिट्टी के बांध के लिए निविदा आमंत्रित की गई थीं। 23 सितंबर 2008 को निविदा प्रक्रिया पूरी की जाकर ठेकेदार का चयन कर लिया गया था। इसी बीच 28 सितंबर को निविदा प्रक्रिया से असंतुष्ट हैदराबाद के ठेकेदार द्वारा उच्च न्यायालय से इस पर स्थगन ले लिया गया था।
सूत्रों ने बताया कि इसके निर्माण के काम के लिए हैदराबाद की कांति कंस्ट्रक्शन कंपनी में ज्वाईंट वेंचर में निविदा जमा की थी। इसमें 55 फीसदी कांति तथा 45 फीसदी साझेदारी पीएलआर प्रोजेक्ट प्राईवेट लिमिटेड की थी। इसमें अनुभव के कम मूल्यांकन पर ठेका कांति के स्थान पर एस.के.जैन इंफ्रास्टक्चर को दे दिया गया था। 27 अगस्त 2009 को उच्च न्यायालय ने स्थगन पर ही स्थगन देकर परियोजना के मार्ग प्रशस्त कर दिए थे।
देखा जाए तो छिंदवाड़ा जिले के चौरई विकास खण्ड के ग्राम माचागौरा के समीप पेंच नदी पर पेंच व्यपवर्तन परियोजना प्रस्तावित थी। वृहद स्तर की इस परियोजना के लिए 543 करोड़ रूपए 2009 में ही प्राप्त हो चुके थे। पेंच नदी पर 6330 मीटर लंबा मिट्टी का बांध और 373 मीटर पक्का बांध का निर्माण प्रस्तावित था। इस बांध में 577 मिलियन घन मीटर जल संग्रहित होना अनुमानित था।
इस परियोजना से सिवनी और छिंदवाड़ा जिले में सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध करवाने के लिए 543 किलोमीटर नहर का निर्माण भी प्रस्तावित था। इसमें सिवनी जिले के 134 गांव की 44 हजार 439 हेक्टेयर जमीन और छिंदवाड़ा जिले के 108 गांवों की 44 हजार 939 हेक्टेयर जमीन तक सिंचाई के लिए पानी पहुंचने वाला था। इतना ही नहीं कमांड के क्षेत्र में 7.40 मिलियन घन मीटर जल प्रदाय किया जाना भी प्रस्तावित था।
इंडो जर्मन बायलेटरल डेवलपमेंट कोऑपरेशन के तहत पेंच वृहद परियोजना मध्य प्रदेश सरकार की ओर से केंद्र सरकार को सालों पहले भेजी जा चुकी थी। इसके लिए सांसद कमल नाथ ने केंद्र में वाणिज्य और उद्योग मंत्री रहते हुए अप्रेल 2006 में जापान बैंक ऑफ इंटरनेशनल कार्पोरेशन से आर्थिक इमदाद भी दिलवा दी थी। आश्चर्य तो इस बात पर होता है कि छिंदवाड़ा में लगातार शासन करने वाले केंद्रीय मंत्री कमल नाथ के अलावा छिंदवाड़ा के सांसद रहे सुंदर लाल पटवा, सिवनी के सांसद सुश्री विमला वर्मा, प्रहलाद सिंह पटेल, राम नरेश त्रिपाठी, श्रीमति नीता पटेरिया एवं के.डी.देशमुख द्वारा दोनों जिलों के 242 गांवों की 89378 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की चिंता क्यों नहीं की? क्यों इनके द्वारा केंद्र सरकार से इसे मंजूरी दिलाई गई। यक्ष प्रश्न आज भी यह है कि दो दशकों तक केंद्र और राज्य सरकार के बीच यह महात्वाकांक्षी परियोजना आखिर हिचकोले क्यों खाती रही?
केंद्रीय जल संसाधन विभाग के सूत्रों का कहना है कि अब इस परियोजना की बढ़ी लागत से घबराकर प्रदेश सरकार ने इसे बंद करने की गुहार केंद्र से की है। सूत्रों ने कहा कि नई भूअर्जन नीति में मुआवजा चार गुना हो जाने से इसकी लागत काफी अधिक बढ़ जाएगी। वैसे भी पुर्नरीक्षित प्राक्कलन में इसकी निर्माण लागत काफी बढ़ गई है।
गौरतलब है कि नब्बे के दशक में प्रस्तावित इस योजना की लागत दो दशकों में बढ़ना आश्चर्यजनक कतई नहीं माना जा सकता है। अब सवाल यह है कि दो दशकों में जनता के गाढ़े पसीने की कमाई से संचित राजस्व जो इस मद में व्यय किया गया है उसकी भरपाई किससे की जाएगी? अपने निहित स्वार्थ साधने के लिए नेताओं द्वारा जानबूझकर कराए गए इस विलंब पर तो जवाबदार नेताओं के खिलाफ ‘जनता के धन के आपराधिक दुरूपयोग‘ का मामला चलाया जाना चाहिए। इस मामले को भी अण्णा हजारे की अदालत में भेजने की मांग अब जोर पकड़ने लगी है। लोगों का कहना है कि इस परियोजना के बंद होने में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही बराबरी के हकदार हैं।
इसी तर्ज पर अब उत्तर दक्षिण फोरलेन गलियारे में सड़क निर्माण का काम कराया जा रहा है। यह सड़क सिवनी जिले में इतनी जर्जर हो चुकी है कि इस पर चलना सर्कस के बाजीगरों के बस की ही बात रह गई है। उल्लेखनीय होगा कि अटल बिहारी बाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में गढ़ी गई स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना का अंग उत्तर दक्षिण गलियारा नेताओं के न चाहने के बाद भी सिवनी जिले से होकर ही गुजरा, क्योंकि सड़क का एलाईमेंट बदलना नेताओं के लिए दुष्कर कार्य था। इसके बाद इस सड़क में अंड़गों की बौछारे आरंभ हो गईं। तत्कालीन जिलाधिकारी पिरकीपण्डला नरहरि के 18 दिसंबर 2008 के आदेश क्रमांक 3266/फो.ले./2008 जिसे 19 दिसंबर को पृष्ठांकित किया गया था के द्वारा राज्य सरकार से आदेश मिलने की प्रत्याशा में पूर्व कलेक्टर द्वारा सिवनी जिले में मोहगांव से खवासा तक के भाग में सड़क चौड़ीकरण हेतु जारी वन एवं गैर वन क्षेत्रों की वनों की कटाई पर रोक लगा दी थी। इसके उपरांत सड़क की राजनीति के गर्म तवे पर न जाने कितने ही शैफ (मुख्य रसोईए) आए और अपनी अपनी रोटियां सैंकते चले गए। न्यायालयीन प्रक्रियाओं के चलते इस सड़क पर हाथ लगाने से हर कोई घबरा रहा था।
ज्ञातव्य है कि पिछले साल सितम्बर माह में हरवंश ंिसह ठाकुर ने जिला मुख्यालय सिवनी में एतिहासिक दलसागर तालाब के किनारे इस मार्ग जीर्णोद्वार के काम का बाकायदा भूमिपूजन कर यह जानकारी दी थी कि यह राशि दो माह पूर्व अर्थात जुलाई में ही स्वीकृत करा ली गई थी। बारिश के उपरांत आबादी के अंदर सड़कों का काम तेजी से आरंभ हो जाएगा। हरवंश सिंह की इस पहल से नागरिकों में हर्ष व्याप्त था कि कम से कम शहरों के अंदर की सड़कों का हाल तो सुधर जाएगा। पूरा साल बीत गया किन्तु शहरों की सड़कें सुधरना तो दूर अब तो उनके धुर्रे ही उड़ चुके हैं। आलम यह है कि पिछले दिनों कुरई के ब्लाक कांग्रेस अध्यक्ष ने सड़क पर भरे गड्ढ़े के पानी से बाकायदा स्नान किया और इसका वीडियो यूट्यूब पर सुपर डुपर हिट बना हुआ है।
अब असली मरण तो आम जनता की होती है। अब तो लदे फदे ट्रक भी गड्ढ़े बचाने के चक्कर में सड़कों पर लोट रहे हैं। इसके साथ ही साथ रख रखाव के अभाव में यह मार्ग भी अब बली लेने लगा है। गड्ढ़ों में एक के बाद एक दुर्घटनाएं और असमय काल कलवित होने की घटनाओं के बाद भी न तो एनएचएआई ही जागा है और ना ही सांसद विधायक साहेबान भी। सांसद के.डी.देशमुख ने तो इस बात को भी स्वीकारा है कि उन्होने इस मामले को संसद में अब तक नहीं उठाया है। सवाल यह उठता है कि संसद में इस मामले को उठाने की जवाबदेही आखिर किसकी है? देखा जाए तो यह मार्ग सिवनी मण्डला के कांग्रेसी सांसद बसोरी मसराम, सिवनी बालाघाट के सांसद के.डी.देशमुख के साथ ही साथ भाजपा विधायक शशि ठाकुर, नीता पटेरिया, कमल मस्कोले के साथ ही साथ कांग्रेस के क्षत्रप और केवलारी विधायक हरवंश सिंह ठाकुर के विधानसभा क्षेत्र से होकर भी गुजरता है। जनता ने जनादेश देकर इन्हें चुना है, फिर ये जनादेश का अपमान करने का साहस आखिर कैसे जुटा पा रहे हैं?
मध्य प्रदेश के घोषणावीर सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि भले ही सूरज पश्चिम से उग आए पर यह सड़क सिवनी से होकर ही गुजरेगी। इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय में मध्य प्रदेश सरकार अपना वकील भी खड़ा करेगी। सवोच्च न्यायालय ने इस साल के आरंभ में मामले को खारिज करते हुए वाईल्ड लाईफ बोर्ड के पास भेज दिया है। सूरज आज पूर्व से ही निकल रहा है। न तो शिवराज सरकार का वकील ही सर्वोच्च न्यायालय में गया और न ही सड़क बन पाई।
इतना ही नहीं पिछले साल भाजपा प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा द्वारा नेशनल हाईवे की बदहाली के उपरांत सूबे से गुजरने वाले नेशनल हाईवे पर पड़ने गांव, कस्बे और शहरों में हस्ताक्षर अभियान के उपरांत मानव श्रंखला बनाने की घोषणा की थी। इसके बाद यह योजना टॉय टॉय फिस्स हो गई। इस वक्त भूतल परिवहन मंत्री की आसनी पर प्रदेश के क्षत्रप कमल नाथ काबिज थे। कमल नाथ के रहते शिवराज सिंह चौहान भी सड़कों की दुर्दशा का रोना रोते रहे हैं। कमल नाथ के हटते ही प्रदेश भाजपा और सरकार का एजेंडा मानो बदल ही गया हो। मंत्रीमण्डल फेरदबल के बाद महज जो बार ही सरकार ने सड़कों की बदहाली का रोना रोया है। सरकार ने केंद्र को पत्र लिखकर 10 एनएच वापस मांग लिए हैं। यहां उल्लेखनीय होगा कि भोपाल से महज सत्तर किलोमीटर दूर होशंगाबाद की यात्रा इन दिनों चार से पांच घंटों में पूरी हो पा रही है, जिसमें मुख्यमंत्री का विधानसभा क्षेत्र भी आता है।
महाराष्ट्र सीमा पर स्थित सिवनी जिले में महज पचास किलोमीटर बनी सड़क पर भी अस्थाई टोल नाका लगाकर टोल वसूली आरंभ हो गई थी। स्थानीय लोगों के विरोध के बाद यह वसूली स्थगित कर दी गई है, पर जल्द ही पुनः टोल वसूली आरंभ की जाने के संकेत मिले हैं। कमल नाथ ने शिवराज पर निशाना साधते हुए यह भी कह दिया था कि उन्होंने सड़क सुधार के लिए बीस हजार करोड़ रूपए दिए थे उसका क्या हुआ?
तीन दशकों में भागीरथी प्रयास के बाद सिवनी के विकास के भागीरथी पुरूष हरवंश सिंह ठाकुर अपने आका कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र की महात्वाकांक्षी पेंच परियोजना का एक बूंद पानी भी सिवनी नहीं ला पाए। तीन दशकों में सिवनी और छिंदवाड़ा के सांसद विधायकों ने इस मामले को लोकसभा या विधानसभा में उठाने की जहमत नहीं उठाई। तीन दशकों में पेंच में एक ईंट भी नहीं लग पाई है। उसी तर्ज पर अब केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री सी.पी.जोशी ने कांग्रेस के प्रतिनिधिमण्डल को दो टूक कह दिया कि कमल नाथ से समय लेकर दिल्ली आ जाओ सड़का का मामला सुलटा लिया जाएगा। सवाल जस का तस ही खड़ा हुआ है। यह मामला कमल नाथ के भूतल परिवहन मंत्री के रहते ही खड़ा हुआ था, जब वे खुद मंत्री रहते इस मामले को नहीं निपटा पाए तो भला अब उनकी मध्यस्था में सी.पी.जोशी इसके कैसे सुलटा लेंगे? लगता है एक बार फिर सिवनी वासियों को पेंच के मानिंद ही सड़क का लाईलप्पा मिलने वाला है। अभी तो यह आगाज है अभी एक दशक भी पूरा नहीं हुआ है। धेर्य और संयम सिवनीवासियों का गहना है, हमे अभी कम से कम सत्ताईस साल और इंतजार करना ही होगा सड़क के निर्माण के लिए। तब तक यह सड़क बलि मांग रही है, निरीह राहगीर इस सड़क में हादसों में असमय ही मौत के साए में जाते रहेंगे।