सोमवार, 7 मार्च 2011

प्लास्टिक के पाउच में अब भी बिक रहा है जहर

किसी को परवाह नहीं भारत सरकार के नियम कायदों 
अरबों रूपए रोजाना का है गुटखों का व्यवसाय
 
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। देश की सबसे बड़ी अदालत की सख्ती के बाद भी केंद्र सरकार गुटखा, पान मसाला लाबी के आगे घुटने टेकती नजर आ रही है। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के नए नियमों के बाद भी देश भर में गुटखा पान मसाला धडल्ले से बिक रहा है, और तो और शिक्षण संस्थाएं भी इसकी जद से परे नहीं हैं। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के उपरांत केंद्र सरकार ने एक मार्च से प्लास्टिक पाउच में गुटखा पान मसाला बेचने पर पाबंदी लगा दी थी, जिसे अमली जामा अब तक नहीं पहनाया जा सका है।
 
 ज्ञातव्य है कि राजस्थान हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अस्थमा केयर सोसायटी द्वारा दायर याचिका पर फैसला देते हुए प्लास्टिक पाउच के विषैलेपन के मद्देनजर इस पर पाबंदी लगा दी थी। इसके बाद पान मसाला उत्पादकों ने सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे खटखटाए थे। सर्वोच्च न्यायलय की जस्टिस जी.एस.सिंघवी और अशोक कुमार गांगुली की बैंच ने सरकार को आड़े हाथों लेते हुए पिछले महीने ही इसमें रियायत देने से साफ इंकार कर दिया था।
 
आरोपित है कि मेग्नीशियम कार्बोनेट युक्त जहरीले गुटखा और पान मसालों की गिरफ्त में आज देश के अस्सी फीसदी लोग आ चुके हैं। वाणिज्य मंत्रालय के सूत्रों का दावा है कि देश में गुटखा व्यवसाय हर साल दस हजार करोड़ से ज्यादा का करोबार करता है। वैसे भी प्लास्टिक के पाउच में इनका विक्रय स्वास्थ्य के साथ ही साथ पर्यावरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है।

केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि भारत सरकार ने इस साल चार फरवरी को प्लास्टिक के कचरे से निपटने के लिए नए नियम बनाए हैं। इन नियम कायदों के तहत प्लास्टिक के पाउच में बिकने वाले गुटखों और पान मसालों का विक्रय प्रतिबंधित किया गया है।
देश के हर राज्य मेें जहरीले पान मसाले सरेआम बिकते नजर आ रहे हैं। हद तो तब हो जाती है जब ये पाउच शिक्षण संस्थानों के इर्द गिर्द सरेआम बिकते नजर आते हैं। अनेक शैक्षणिक स्थलों के परिसर में बने काम्पलेक्स में पान परचून की दुकानों में इनका विक्रय सरेराह किया जाता है।
बदल दिए पुराने नियम

केंद्र सरकार ने प्रदूषण पर रोक लगाने की गरज से पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम 1986 में अनेक महत्वपूर्ण तब्दीली करते हुए प्लास्टिक वेस्ट अधिनियम 2011 बनाया है। नई गाईडलाईन में प्लास्टिक की पूर्व की निर्धारित मोटाई 20 माईक्रोन को दुगना कर अब 40 कर दिया गया है, जिससे अब इससे पतले प्लास्टिक का विक्रय प्रतिबंधित कर दिया है। सरकार ने इसके लिए प्लास्टिक मैन्यूफेक्चर एण्ड यूजेस अधिनियम 1999 में 2003 वर्ष में किए गए बदलावों में पुनः तब्दीली कर अब कड़ा कर दिया है, जिसके तहत प्लास्टिक निर्माताओं को ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टेंडर्ड का पालन करना आवश्यक होगा। इसके साथ ही साथ अब चुनिंदा रंग या पारदर्शी प्लास्टिक का उपयोग ही किया जा सकेगा।
बेखबर हैं सूबों की सरकारें

केंद्र सरकार के इस दिशा निर्देश से सूबों की सरकारें भी बेखबर ही हैं। फारेस्ट इन्वायरमेंट मिनिस्ट्री के सूत्रों का कहना है कि मध्य प्रदेश सहित समस्त प्रदेशों को दिशा निर्देश फरवरी में ही भेज दिए गए थे, किन्तु राज्यों की सरकारें भी गुटखा लाबी के आगे बेबस ही नजर रही है, यही कारण है कि देश भर में गुटखा का व्यवसाय धड़ल्ले से चल रहा है।
कीमत न बढ़ना आश्चर्यजनक!

पान मसाला उद्योग की एक विशेषता यह है कि 1989 में एक रूपए मंे बिकने वाला पाउच आज भी एक रूपए में ही बिक रहा है। बीस साल में मंहगाई चरम पर पहुंच गई है। चालीस रूपए किलो वाली सुपारी अब दो सौ तो केवड़ा साठ हजार रूपए किलो से तीन लाख रूपए किलो और चंदन के तेल ने पांच हजार रूपए प्रति लिटर से सत्तर हजार की तेजी दर्ज करा ली है। मजे की बात है कि इस पर मंहगाई का कोई असर नहीं पड़ा है।
मुंह के केंसर का कारक है गुटखा

राजधानी के स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार की अनदेखी से बढ़ रही पाउच के उपयोग की आदत से ओरल सबम्यूकल फायब्रोसिस यानी मुंह के केंसर का खतरा चार सौ गुना बढ़ जाता है। इसमें शुरूआत में मुंह खुलना कम होता है, फिर एकदम ही बंद हो जाता है।
लाबिंग के लिए है संगठन

गुटखा कारोबारियों ने सरकार पर दबाव बनाने के लिए बाकायदा अपना एक संगठन भी खड़ा कर रखा है। ‘‘जी 10‘‘ नामक यह संगठन आयकर, केंद्रीय उत्पाद शुल्क और अन्य महकमों से निपटने के लिए बनाया गया है। इस संगठन का मूल काम केंद्र सरकार में अपने कारोबार के लिए लाबिंग और अफसरान को नियम कायदों के पेंच में उलझाना है। कर चोरी करने वाले इन कारोबारियों ने इस संगठन को खुले हाथ से चंदा देकर आर्थिक तौर पर सुद्रढ़ बना दिया है।
प्रशासन भी है बेखबर

देश के हर सूबे के जिलों में जिला प्रशासन के आला अफसरान भी बात बात पर गुटखा पाउच फांकते नजर आते हैं। जांच में इस बात का खुलासा हो चुका है कि मैग्नीशियम कार्बोनेट नाम का तत्व गुटखा पान मसाला पाउच के अंदर मिलाकर बेचा जाता है, जबकि खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम के तहत खाद्य पदार्थ में निकोटिन अथवा तम्बाखू का प्रयोग कतई नहीं किया जाना चाहिए।

शीला सरकार गरीबों को 80 रूपए में देंगी रसोई गैस


दिल्ली में केरोसीन के बदले अब रसोई गैस

होटल व्यवसाईयों की होगी चांदी

 
(लिमटी खरे)
 
नई दिल्ली। तीसरी बार दिल्ली की कुर्सी पर बैठने वाली शीला दीक्षित जल्द ही गरीबों के लिए खजाना खोलने वाली हैं। दिल्ली सरकार द्वारा गरीब गुरबों को मिट्टी के तेल के बजाए अब रसोई गैस उपलब्ध कराने की योजना बना रही है। गरीबों को यह सिलेंडर महज अस्सी रूपए में मुहैया होगा, शेष सब्सीडी दिल्ली सरकार भुगतेगी।
मुख्यमंत्री ने बताया कि इस मसले में दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच बातचीत जारी है। गौरतलब होगा कि केंद्र सरकार ने गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों के लिए सीधी सब्सीडी देने का एलान किया था। खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग के आला दर्जे के सूत्रों का कहना है कि वर्तमान में सरकार द्वारा बीपीएल परिवार के लिए दो सौ साठ रूपए की सब्सीडी दी जा रही है। वर्तमान में गैस का सिलेण्डर साढ़े तीन सौ रूपयों में दिल्ली में उपलब्ध होता है और अगर इन परिवारों के लिए रसोई गैस का सिलेण्डर महज अस्सी रूपए में मिलेगा तब शेष राशि सरकार द्वारा सब्सीडी के तौर पर दी जाएगी।
होटल व्यवसाईयों के हांेगे मजे
 
हाल में मिल रहे केरोसीन का एक बड़ा हिस्सा ट्रांसपोटर्स द्वारा डीजल के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, सस्सा होने के कारण डीजल से चलने वाले वाहनों में सरकारी सब्सीडी वाला केरोसीन धडल्ले से भरा जा रहा है। नई व्यवस्था लागू हो जाने से होटल व्यवसाईयों के मजे हो जाएंगे। दिल्ली में वर्तमान में होटल संचालकों द्वारा घरेलू उपयोग वाले रसोई गैस के सिलेण्डर को चार सौ रूपयों तक खरीदा जाता है। अगर यह अस्सी रूपए में बीपीएल परिवार को उपल्बध होगा तो फिर होटल व्यवसाई इसे डेढ से दो सौ रूपयों में आसानी से खरीद सकेंगे।
यह है जमीनी हकीकत
 
दिल्ली में दो लाख अठ्ठाईस लाख बीपीएल कार्ड और सत्तर हजार नौ सौ चोपन अंत्योदय योजना के कार्ड धारक तथा अठ्ठाईस हजार झुग्गी पुनर्वास कालोनी के कार्ड धारक हैं। वर्तमान में दिल्ली में साढ़े तीन सौ रूपयों में मिलने वाला सिलण्डर बीपीएल परिवार को महज अस्सी रूपए में मिल सकेगा।

अप्रेल से वकीलों को भी देना होगा सेवाकर

वकीलों पर सेवाकर का शिकंजा 
चार्टर्ड एकाउंटेंट भी होंगे सेवाकर की जद में
 
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। यद्यपि अभी 2011 - 2012 के आम बजट पर बहस होना शेष है पर लगने लगा है कि आने वाले दिनों में वकील और चार्टर्ड एकाउंटेंट पर कर की गाज गिर सकती है। सरकार द्वारा राजस्व में बढ़ोत्तरी के लिए अब वकील और चार्टर्ड एकाउंटेंट पर भी शिकंजा कसना आरंभ कर दिया है। इस साल अप्रेल से इन दोनों ही व्यवसायिक सेवा वालों को सेवाकर देना होगा।
वित्त मंत्रालय के सूत्रों का दावा है कि बढ़ती मंहगाई और सरकारी खर्चों को पूरा करने के लिए अब वित्त मंत्री के पास नए करारोपण के अतिरिक्त कोई ओर विकलप नहीं बचा है। यही कारण है कि इन दोनों ही प्रोफेशनल्स पर सेवाकर आहूत करने का प्रावधान अभी लंबित है, जिसे बजट के उपरांत लागू किया जा सकता है।
सूत्रों ने आगे बताया कि वैसे तो इन दोनों ही पर सेवाकर लगाने का मसला 2009 में लाया गया था, किन्तु वकीलों के भारी विरोध के बाद सरकार ने अपने कदम वापस खींच लिए थे। इसके साथ ही साथ सरकार द्वारा न्यायिक सेवा के लिए एक नियामक आयोग के गठन पर भी विचार कर रही है ताकि वकीलों की मश्कें कसी जा सकें।