रविवार, 22 अगस्त 2010

फोरलेन विवाद का सच ------------------ 14

एमपी वाईल्ड लाईफ बोर्ड ने दी थी सड़क बनाने पर सहमति
 
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण विभाग ने फसाया है फच्चर
 
वन क्षेत्र में सड़क निर्माण की अनुमति नहीं जारी हुई अब तक
 
अगर सड़क रूकी तो स्वर्णिम चतुर्भुज की अवधारणा ही हो जाएगी गलत साबित
 
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 23 अगस्त। सिवनी जिले से होकर गुजरने वाली फोरलेन सड़क को बनाने के लिए मध्य प्रदेश वाईल्ड लाईफ बोर्ड ने अपनी सहमति देकर प्रस्ताव को अनुमोदन के लिए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को भेजा था। केंद्रीय वन एवं पयावरण विभाग ने मध्य प्रदेश सरकार से प्राप्त सारे प्रस्तावों को ठंडे बस्ते के हवाले कर दिया है। यही कारण है कि इस सड़क के कुछ हिस्सों में पड़ने वाले रक्षित वन और पेंच नेशनल पार्क के क्षेत्र में सड़क का काम रोका गया है।
 
वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि मध्य प्रदेश सरकार की ओर से इस तरह के प्रस्ताव मंत्रालय को प्राप्त हुए हैं जिनमें 1545 में निर्मित लगभग चार सौ पेंसठ साल पुराने इस मार्ग को बरकरार रखने की बात कही गई है। मध्य प्रदेश के वन विभाग और मध्य प्रदेश वाईल्ड लाईफ बोर्ड ने भी इस सड़क के निर्माण में वन्य जीवों पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव से ज्यादा इस बात की चिंता जताई गई है जिसमें कहा गया है कि अगर मार्ग को रोक दिया गया तो उत्तर से दक्षिण जाने वाले लोगों को बहुत लंबा चक्कर लगाना पड़ सकता है।
 
गौरतलब होगा कि देश के चार महानगरों को आपस में जोड़ने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के शासनकाल में स्वर्णिम चतुर्भुज योजना को प्रस्तावि किया गया था। इस योजना में बाद में उत्तर दक्षिण और पूर्व पश्चिम गलियारे को भी शामिल किया गया था। इस योजना को इस बात को ध्यान में रखकर बनाया गया था कि इस मार्ग के बनने के बाद लोगों का समय और इंधन की बचत हो सके। यही कारण है कि इसका एलाईंमेट बहुत ही बारीकी से बनाया गया था। मार्ग में पड़ने वाले अनेक मोड़ों को भी समाप्त कर सड़क को सीधा ही रखने का प्रयास किया गया था।
 
अगर इस सड़क को लखनादौन से नागपुर, बरास्ता सिवनी, कुरई खवासा होकर नहीं गुजारा जाता है तो लखनादौन से नागपुर की दूरी बढ़ जाएगी, जिससे स्वर्णिम चतुर्भुज योजना की मूल अवधारणा ही गलत साबित हो जाएगी। बताया जाता है कि एक तरफ एनएचएआई द्वारा यह कहा जा रहा है कि कुरई घाटी में बनने वाले फ्लाई ओवर के निर्माण में आने वाला 900 करोड़ रूपए का खर्च वहन करना विभाग के लिए आसान नहीं है, वहीं दूसरी तरफ इस काम के लगभग दो साल से रूके होने के कारण ठेकेदारों द्वारा विभाग से वसूली की जाने वाली पेनाल्टी की राशि भी करोड़ों में पहुंच चुकी है।
 
बताया जाता है कि रक्षित वन और पेंच राष्ट्रीय उद्यान के भाग में सड़क न बन पाने के पीछे वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश की नाराजगी ही प्रमुख है। रमेश के करीबी सूत्रों का कहना है कि इस मामले में अब तक किसी ने भी जयराम रमेश से मिलकर वास्तविकता से आवगत कराने की जहमत नहीं उठाई है।

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