बाबा रामदेव का राष्ट्रधर्म
(लिमटी खरे)
जब भी किसी के पास अकूत दौलत और शोहरत आती है तो उसका रूझान राजनीति की ओर होना स्वाभाविक ही है। बीसवीं सदी के रूपहले पर्दे के महानायक रहे अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, राज बब्बर, गोविंदा से लेकर लिकर किंग विजय माल्या तक इससे अछूते नहीं हैं। अब इसी कड़ी में बाबा रामदेव का पदापर्ण होने वाला है।
बाबा रामदेव मीडिया की सुर्खियों में बने रहना खूब जानते हैं। स्वयंभू योग गुरू बनकर भारत के आध्याित्मक क्षितिज पर स्थान बनाने वाले बाबा रामदेव ने कम समय में योग के माध्यम से अकूत दौलत एकत्र की इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है।
राजीव गाधी का सपना था कि इक्कीसवीं सदी का भारत आत्मनिर्भर और सूचना और प्रोद्योगिकी के मामले में आत्मनिर्भर हो। कांग्रेस राजीव गाधी का यह सपना साकार तो नहीं कर सकी किन्तु बाबा रामदेव ने इक्कीसवीं सदी में भारत के लोगों को योग का दीवाना बना दिया है। यह सच है कि बाबा ने योग को नए क्लेवर में प्रस्तुत किया है।
एक सधे हुए व्यापारी की तरह बाबा रामदेव ने पहले अपनी योग की ``दुकान`` को फैलाना आरंभ किया। फिर घर घर में खासी दखल बना चुके न्यूज चेनल्स के माध्यम से अपने आप को जनता के बीच परोसा। बाबा खुद की पीठ थपथपाना भी खूब जानते हैं। किसी मदारी के तमाशे की तरह उनके योग शिवरों में मरीज अपने अपने को निरोगी होने के दावों को बढ़ा चढ़ा कर प्रस्तुत करते और बाबा वाहवाही बटोरते।
बाबा रामदेव के लिए राष्ट्रधर्म कितना महात्वपूर्ण है, इस बात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि बाबा ने कौल लिया था कि जब तक वे संपूर्ण भारत को निरोगी नहीं बना देंगे तब तक वे देश की धरती के बाहर पांव नहीं रखेंगे। विदेश की वादियों का लोभ बाबा छोड नहीं सके और चल पडे विदेश।
देश में बाबा की ``कंपनी`` के बने उत्पाद मंहगे दामों पर धडल्ले से बिक रहे हैं। कोई कहता है बाबा इन उत्पादों के बदले मलाई काट रहे हैं। यह है बाबा का राष्ट्रधर्म। गरीब गुरबों को जहां खाने को एक निवाला तक नहीं है, क्या वह गरीब बाबा के बेशकीमति उत्पादों का लाभ उठा पाएगा।
रही बात बाबा के शिविरों की तो यह भी अमीरों के लिए ही होते हैं। बाबा के शिविर निशुल्क नहीं होते हैं। इसमें प्रवेश के लिए तगडी फीस देना होता है। बाबा के हरिद्वारा वाले आश्रम में लगने वाले विशेष शिविरों के लिए भी बाकायदाा `पेकेज` लिया जाता है, जिसमें कितने दिन और रात का रूकना खाना पीना है यह सब शामिल होता है।
भारत जैसे गरीब देश में बाबा के उत्पाद बिक रहे हैं, फिर बाबा ने पश्चिम की ओर रूख किया है। देश को गुलामी की जंजीरों में बांधने वाले ब्रितानी अब बाबा रामदेव के उत्पादों से स्वास्थ्य लाभ कर सकेंगे। लंदन में बाबा ने बेलग्रेव रोड पर नेचुरल हेल्थ शाप का उद्घाटन किया है। कल तक देश को निरोगी बनाने का दावा करने वाले रामदेव बाबा अब पश्चिमी देशों की ओर कूच कर रहे हैं, यही है बाबा रामदेव का राष्ट्रधर्म।
इसके पूर्व बाबा ने स्काटलेंड में 20 लाख पाउंड में जमीन खरीदकर वहां आश्रम की स्थापना के लिए भूमिपूजन कर चुके हैं। यह भूखण्ड सवा वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। वैश्विक मंदी के चलते इसके स्वामी ने इसे बेच दिया और मंदी के इस दौर में बाबा रामदेव जैसी शिख्सयत ने इसे खरीदा है तो बाबा की अंटी (जेब के माल) का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।
बाबा रामेदव के हरिद्वार स्थित पतांजली योग संस्थान मेें जाना आम आदमी के लिए आसान नहीं है। कहा जाता है कि अगर कोई बाबा की दवाओं की एजेंसी (जिला स्तर पर) लेना चाहे तो उसे एक मुश्त आठ लाख रूपए की दवाएं खरीदनी होती हैं। इतने मंहगे तरीके से अगर बाबा देश के गरीब गुरबों का इलाज करना चाह रहे हैं तो इससे बेहतर तो नीम हकीम ही हैं, जो कम से कम गरीबों की जेब देखकर ही अपनी फीस और दवाअों की कीमत निर्धारित करते हैं।
प्रसिद्धि और आकूत दौलत के बाद बाबा के मन में राजनैतिक महात्वाकांक्षाएं हिलोरे मारना स्वाभाविक ही है। लोकसभा चुनावों के पूर्व बाबा रामदेव ने भाजपा के सुर में सुर मिलाते हुए कहा था कि विदेशों में जमा काला धन वापस लाने वे सडकों पर उतरेंगे।
चुनाव हुए महीनों बीत गए पर बाबा सडकों पर नहीं उतरे। हां बाबा रामदेव हवा में उडकर विदेशों की खाक अवश्य छान रहे हैं। बाबा रामदेव ने देश में हर क्षेत्र में छाई बदहाली की नस दबाकर राजनेताओं के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। बाबा ने लोकसभा में अपने अनुयायी को भेजने की बात फिजां में उछालकर जनमानस टटोलने का प्रयास किया है।
5 जनवरी को पतांजली योगपीठ में ढाई करोड अनुयाईयों को इकट्ठा करने की बाबा की हुंकार से राजनेताओं की नींद में खलल पडना स्वाभाविक ही है। आने वाले समय में राजनेताओं द्वारा बाबा रामदेव के खिलाफ मुहिम आरंभ कर दी जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
वैसे बाबा के राष्ट्रधर्म पर हर राष्ट्र वासी को संशय होना स्वाभाविक ही है। जब बाबा रामदेव अपने पुराने कौल पर कायम नहीं रह पाए तो आने वाले समय में अगर वे या उनके अनुयायी देश की कमान संभाल लेंगे तब देश का क्या होगा इस बात का अंदाजा लगाना सहज नहीं होगा।