बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

. . . तो निरस्त हो जाएगी पावर प्लांट की पर्यावरणीय अनुमति


0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . .  65

. . . तो निरस्त हो जाएगी पावर प्लांट की पर्यावरणीय अनुमति

आधे अधूरे कार्यकारी सारांश पर मिली प्रथम चरण की अनुमति

हवा हवाई कार्यकारी संक्षेप प्रस्तुत किया है झाबुआ पावर ने



(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। देश के मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के छटवीं सूची में अधिसूचित आदिवासी बाहुल्य घंसौर विकास खण्ड के ग्राम बरेला में स्थापित किए जाने वाले 1260 मेगावाट के कोल आधारित पावर प्लांट में संयंत्र प्रबंधन ने आनन फानन में दो चरणों में जमा कराए गए कार्यकारी सारांश या संक्षेप में अनगिनत गल्तियां हैं जिसे देखकर कहा जा सकता है कि संयंत्र प्रबंधन ने जल्दबाजी का परिचय देते हुए हवा हवाई कार्यकारी सारांश जमा कराया है।
मजे की बात तो यह है कि दोनों चरणों के कार्यकारी संक्षेप या सारांश में उल्लेखित गल्तियों पर ना तो मध्य प्रदेश सरकार के प्रदूषण नियंत्रण मंण्डल की ही नजर गई और ना ही केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इस पर गौर फरमाना उचित समझा है। संभवतःः यही कारण है कि केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने नस्ती नंबर जे - 13012 / 105 / 2008 वन ए और टू (टी) पत्र के साथ दिनांक 17 फरवरी 2010 को कोल आधारित 660 मेगावाट के पावर प्लांट के प्रथम चरण की पर्यावरणीय अनुमति प्राप्त कर ली है।
मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के सूत्रों का कहना है कि सबसे अधिक आश्चर्य तो तब हुआ जब केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा आधे अधूरे कार्यकारी सारांश पर ही पर्यावरणीय अनुमति दे दी गई। पहले चरण के कार्यकारी सारांश में संयंत्र प्रबंधन द्वारा कोई नक्शा या संयंत्र का लोकेशन मैप और प्रक्रिया प्रवाह चित्र ही प्रस्तुत नहीं किया गया है। बावजूद इसके फारेस्ट एण्ड एनवायरमेंट मिनिस्ट्री से इसका क्लियरेंस मिलना अपने आप में एक मिसाल ही कही जा सकती है।
घोर आश्चर्य की बात तो तब सामने आई जब यह पता चला कि उक्त संयंत्र को संरक्षित वन में स्थापित किया जा रहा है। यह बात कोई और नहीं वरन् संयंत्र के दूसरे चरण का कार्यकारी सारांश उजागर करता है। पहले चरण में संरक्षित वनों के मामले में संयंत्र प्रबंधन ने पूरी तरह मौन ही साधा गया था। पहले चरण में राष्ट्रीय उद्यान और स्मारक का आसपान न होना दर्शाया गया था। दूसरे चरण में इसके स्थान पर ऐतिहासिक और पुरातात्विक स्थल का दस किलोमीटर की परिधि मे न होना दर्शाया गया है।
पीसीबी के सूत्र इस बात पर गहरा आश्चर्य व्यक्त कर रहे हैं कि संरक्षित वन के बारे में मौन साधने के बाद भी केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के आला अधिकारियों का ध्यान उस और क्यों नहीं गया? बावजूद सवाल जवाब करने के मंत्रालय ने इसके प्रथम चरण को पर्यावरणीय अनुमति दे दी गई। अब जबकि दूसरे चरण का कार्यकारी सारांश इस बात को प्रदर्शित कर रहा है तब केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय प्रथम चरण की अनुमति को निरस्त कर सकता है?
सूत्रों ने कहा कि नए कार्यकारी सारांश के पांचवें पेज में संयंत्र प्रबंधन ने कहा है कि इस संयंत्र के इर्द गिर्द एक दो नहीं एक दर्जन संरक्षित वन हैं। इसमें उत्तर से दक्षिण में तीन किलोमीटर रोटो संरक्षित वन, उत्तर से उत्तर पूर्व में साढ़े सात किलोमीटर पर बरवाक्चार संरक्षित वन, उत्तर पश्चिम में नौ किलोमीटर पर काटोरी संरक्षित वन, उत्तर पश्चिम में तीन किलोमीटर पर धूमा संरक्षित वन है।
इसके अलावा दक्षिण में साढ़े सात किलोमीटर पर घंसौर संरक्षित वन, पश्चिम उत्तर पश्चिम में डेढ़ किलोमीटर पर भाटेखारी संरक्षित वन, पूर्व दक्षिण पूर्व में साढ़े तीन किलोमीटर पर बिछुआ संरक्षित वन, दक्षिण पश्चिम में आठ किलोमीटर पर जेतपुर संरक्षित वन, ग्राम बरेला में लगने वाले संयंत्र खुद ही संरक्षित वन में स्थापित है। पूर्व दक्षिण पूर्व में आठ किलोमीटर में प्रतापगढ़ आरक्षित वन है।
संयंत्र प्रबंधन द्वारा मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल को सौंपे गए 15 पेज के अपने कार्यकारी संक्षेप के पांचवें पेज पर स्वयं ही इस बात को स्वीकार किया है कि संयंत्र से शून्य किलोमीटर दूरी पर बरेला संरक्षित वन है। शून्य किलोमीटर का सीधा तात्पर्य यही हुआ कि गौतम थापर के स्वामित्व वाला अवंथा समूह का सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा छटवीं अनुसूची में अधिसूचित सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य घंसौर विकासखण्ड के ग्राम बरेला में लगाए जाने वाले कोल आधारित पावर प्लांट को संरक्षित वन में ही संस्थापित करने का तानाबाना केंद्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की देखरेख में मध्य प्रदेश शासन के प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के द्वारा बुना जा रहा है।

(क्रमशः जारी)

कांग्रेस फटे पत्ते में नहीं पूछ रही मनमोहन को


बजट तक शायद चलें मनमोहन. . . 87

कांग्रेस फटे पत्ते में नहीं पूछ रही मनमोहन को

विधानसभा चुनावों में आराम फरमा रहे प्रधानमंत्री



(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। पंजाब में प्रधानमंत्री सरदार मनमोहन सिंह कांग्रेस के लिए अ सरदारही साबित हो रहे हैं। देश में सबसे ताकतवर संवैधानिक पद पर सिख्ख के बैठे होने के बाद भी कांग्रेस द्वारा उनका उपयोग पंजाब में बिल्कुल भी नहीं किया गया। पिछले बार कांग्रेस के प्रमुख चेहरे रहे मनमोहन को अब कांग्रेस द्वारा ही फटे पत्ते में नहीं पूछ रही है। कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री की 7, रेसकोर्स (प्रधानमंत्री आवास) से बिदाई के दिन नजदीकी है।
उल्लेखनीय है कि 2004 में जब मनमोहन सिंह पर विश्वास जतलाकर सोनिया गांधी ने उन्हें प्रधानमंत्री बनाया था तब समूचे पंजाब में उत्साह की लहर दौड़ी थी। उस वक्त सरदारों ने अंबाला से लेकर अमृतसर तक भांगड़ा किया था। नेहरू गांधी परिवार पर लगे 84 के दंगों के रिसते घाव भी पंजाब के लोगों के भरने लगे थे। लोगों को लगा कि मनमोहन को पीएम बनाकर कांग्रेस ने उनके घावों पर मरहम लगाया है।
कांग्रेस के अंदरखाते में चल रही चर्चाओं के अनुसार संप्रग की दूसरी पारी में मनमोहन सिंह की छवि बेहद दागदार होकर उभरी है। लोग पहले उन्हें ईमानदार समझते थे और अब उन्हें भ्रष्टाचार का ईमानदार संरक्षकसमझा जाने लगा है। सुरसा की तरह बढ़ती मंहगाई ने मनमोहन की छवि जमकर दागदार हुई है। लोग उन्हें अब कमजोर प्रधानमंत्री के तौर पर देख रहे हैं।
पंजाब कांग्रेस कमेटी के सूत्रों ने कहा कि सूबे में प्रत्याशियों ने राहुल और सोनिया के साथ ही साथ प्रियंका की सभाएं चाहीं थीं। आश्चर्य की बात तो यह है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए महज दो सभाएं लुधियाना और अमृतसर में ही चाही गईं। मनमोहन जुंडाली यह कहकर अपना दामन बचा रही है कि अच्छा हुआ कि मनमोहन सिंह को आराम करने का मौका तो मिल गया, किन्तु कांग्रेस इसे मनमोहन सिंह की जमकर हुई अवनति से तौल रही है।

(क्रमशः जारी)

कृपालु महाराज के ’पेम मंदिर का 17 फरवरी को लोकार्पण


कृपालु महाराज के पेम मंदिर का 17 फरवरी को लोकार्पण

(चन्द्रसेन वर्मा)

लखनऊ (साई)। ग्य्ाारह साल में 100 करोड की लागत से बने कृपालु महाराज के पेम मंदिर का लोकार्पण 17 फरवरी को वैदिक मंत्र्ाोच्चारण के बीच किय्ाा जाएगा. य्ाह मंदिर वृंदावन में भगवान कृष्ण और राधा के पेम को दर्शाता है. इस मंदिर के निर्माण में 11 साल का समय्ा और करीब 100 करोड रुपए की धनराशि लगी है. इसमें इटालिय्ान करारा संगमरमर का इस्तेमाल किय्ाा गय्ाा है. इसे राजस्थान और उत्तर पदेश के एक हजार शिल्पकारों ने कडी मेहनत के बाद बनाय्ाा है.
जगदगुरू कृपालु परिषद श्य्ाामा श्य्ााम धाम पेम मंदिर के पचारक स्वामी मुकुंदानंद ने आज य्ाहां एक संवाददाता सम्मेलन में बताय्ाा कि भगवान कृष्ण और राधा के इस पेम मंदिर का शिलान्य्ाास 14 जनवरी 2001 को कृपालु जी महाराज ने लाखों श्रद्धालुओं की मौजूदगी में किय्ाा था.
उसी दिन से राजस्थान और उत्तर पदेश के एक हजार शिल्पकार अपने साथ हजारों सहय्ाोगी मजदूरों के साथ इस मंदिर के निर्माण कायर््ा में लग गए. ग्य्ाारह साल के कठोर श्रम के बाद तैय्ाार हुआ य्ाह भव्य्ा पेम मंदिर सफेद इटालिय्ान करारा संगमरमर से तराशा गय्ाा है.
वृदांवन के चटिकारा मार्ग पर स्थित य्ाह अद्वितीय्ा मंदिर पाचीन भारतीय्ा शिल्पकला के पुनःजागृत होने का संकेत देता है और कृपालु महाराज का इस कृष्ण नगरी को य्ाह एक उपहार है. उन्होंने बताय्ाा कि वृदांवन में बना य्ाह भव्य्ा मंदिर 54 एकड में बना है तथा इसकी ऊंचाई 125 फुट, लंबाई 122 फुट तथा चौडाई 115 फुट है.
इसमें खूबसूरत फव्वारे, राधा कृष्ण की मनोहर झ्ाांकिय्ाा, श्री गोवर्धनधारण लीला, कालिय्ाा नाग दमन लीला, झ्ाूलन लीला की झ्ाांकिय्ाां खूबसूरत उद्यानों के बीच सजाई गय्ाी है. मंदिर के पचारक स्वामी मुकंदानंद ने बताय्ाा कि इस मंदिर के निर्माण में 11 साल का समय्ा तो लगा ही है. साथ ही साथ करीब 100 करोड रुपए की धनराशि लगी है जो कृपालु जी महाराज के देश विदेश के हजारों भक्तों ने सहय्ाोग के रूप में दी है.
इस मंदिर का लोकार्पण 17 फरवरी को कृपालु महाराज के द्वारा किय्ाा जाएगा. इससे पहले 15 फरवरी को सुबह सात बजे कलश य्ाात्र्ाा निकाली जाएगी. दूसरे दिन 16 फरवरी को शोभा य्ाात्र्ाा व 17 फरवरी को मंदिर की पाण पतिष्ठा, द्वीप पज्ज्वलन और देवी दर्शन का कायर््ाक्रम होगा. उसके बाद पहली आरती और बैलून शोञ का आय्ाोजन किय्ाा जाएगा.
उन्होंने बताय्ाा कि इस मंदिर के लोकार्पण के अवसर पर देश विदेश के हजारों श्रद्धालु भाग लेंगे. जिनके ठहरने का इंतजाम मंदिर पशासन की ओर से किय्ाा गय्ाा है. उन्होंने बताय्ाा कि पेम मंदिर वास्तुकला के माध्य्ाम से दिव्य्ा पेम को साकार करता है. वर्ण, जाति देश आदि का भेद मिटाकर संपूर्ण विश्व को दिव्य्ा पेम आनंद मंदिर में आमंत्र्ाित करने के लिए इस मंदिर के द्वार सभी दिशाओं में खुलते है.
मंदिर के मुख्य्ा पवेश द्वारों पर अष्ठ मय्ाूरों के नक्काशीदार तोरण बनाए गए हैं तथा पूरे मंदिर की बाहरी दीवारों पर राधाकृष्ण की लीलाओं को शिल्पांकित किय्ाा गय्ाा है. इसी पकार मंदिर की भीतरी दीवारों पर राधाकृष्ण और कृपालु महाराज की विविध झ्ाांकिय्ाों को पस्तुत किय्ाा गय्ाा है. मंदिर में 94 स्तंभ हैं जो राधाकृष्ण की विभिन्न लीलाओं से सजाए गए हैं.
उन्होंने बताय्ाा कि गर्भगृह के बाहर और अंदर पाचीन भारतीय्ा वास्तुशिल्प की उत्कृष्ट पच्चीकारी और नक्काशी की गई है. संगमरमर की प्लेटों पर राधा गोविंद गीत सरल भाषा में उकेरे गए हैं. कृपालु महाराज ने संपूर्ण जगत में पेम तत्व की सर्वोच्चता को स्थापित करने के लिए वृदांवन में इस मंदिर की स्थापना कराई है.

पेशाब में जलन दूर करे बरगद


हर्बल खजाना ----------------- 25

पेशाब में जलन दूर करे बरगद



(डॉ दीपक आचार्य)

अहमदाबाद (साई)। बरगद भारत का राष्ट्रीय वृक्ष है। बरगद को अक्षय वट भी कहा जाता है, क्योंकि यह पेड कभी नष्ट नहीं होता है।  बरगद का वृक्ष घना एवं फैला हुआ होता है। इसकी शाखाओं से जड़े निकलकर हवा में लटकती हैं तथा बढ़ते हुए जमीन के अंदर घुस जाती हैं एंव स्तंभ बन जाती हैं।
बरगद का वानस्पतिक नाम फाइकस बेंघालेंसिस है। बरगद के वृक्ष की शाखाएँ और जड़ें एक बड़े हिस्सेक में एक नए पेड़ के समान लगने लगती हैं। इस विशेषता और लंबे जीवन के कारण इस पेड़ को अनश्वंर माना जाता है। पातालकोट के आदिवासियों का मानना है कि तीन महीने तक अगर बरगद के दूध (लेटेक्स) की दो बूंद बताशे में डालकर खाने से पौरूष्त्व बढ़ता है।
बरगद की हवाई जड़ों में एँटीऑक्सीडेंट सबसे ज्यादा होता है।  इसके इसी गुण के कारण वृद्धावस्था की ओर ले जाने वाले कारकों को दूर भगाया जा सकता है। लगभग १० ग्राम बरगद की छाल, कत्था और २ ग्राम कालीमिर्च को बारीक पीसकर पाउडर बनाया जाए और मंजन किया जाए तो दांतों का हिलना, सडी बदबू आदि दूर होकर दांत साफ और सफ़ेदी प्राप्त करते हैं।
पेशाब में जलन होने पर १० ग्राम ग्राम बरगद की हवाई जडों का बारीक चूर्ण, सफ़ेद जीरा और इलायची (२ - २ ग्राम) का बारीक चूर्ण एक साथ गाय के ताजे दूध के साथ लिया जाए तो अतिशीघ्र लाभ होता है। पातालकोट के आदिवासियों के अनुसार बरगद की जटाओं के बारीक रेशों को पीसकर लेप बनाया जाए और रोज सोते समय स्तनों पर मालिश करने से कुछ हफ्तों में स्तनों का ढीलापन दूर हो जाता है। 

(साई फीचर्स)