0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . . 65
. . . तो निरस्त हो जाएगी पावर प्लांट की पर्यावरणीय अनुमति
आधे अधूरे कार्यकारी सारांश पर मिली प्रथम चरण की अनुमति
हवा हवाई कार्यकारी संक्षेप प्रस्तुत किया है झाबुआ पावर ने
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली (साई)। देश के मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के छटवीं सूची में अधिसूचित आदिवासी बाहुल्य घंसौर विकास खण्ड के ग्राम बरेला में स्थापित किए जाने वाले 1260 मेगावाट के कोल आधारित पावर प्लांट में संयंत्र प्रबंधन ने आनन फानन में दो चरणों में जमा कराए गए कार्यकारी सारांश या संक्षेप में अनगिनत गल्तियां हैं जिसे देखकर कहा जा सकता है कि संयंत्र प्रबंधन ने जल्दबाजी का परिचय देते हुए हवा हवाई कार्यकारी सारांश जमा कराया है।
मजे की बात तो यह है कि दोनों चरणों के कार्यकारी संक्षेप या सारांश में उल्लेखित गल्तियों पर ना तो मध्य प्रदेश सरकार के प्रदूषण नियंत्रण मंण्डल की ही नजर गई और ना ही केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इस पर गौर फरमाना उचित समझा है। संभवतःः यही कारण है कि केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने नस्ती नंबर जे - 13012 / 105 / 2008 वन ए और टू (टी) पत्र के साथ दिनांक 17 फरवरी 2010 को कोल आधारित 660 मेगावाट के पावर प्लांट के प्रथम चरण की पर्यावरणीय अनुमति प्राप्त कर ली है।
मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के सूत्रों का कहना है कि सबसे अधिक आश्चर्य तो तब हुआ जब केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा आधे अधूरे कार्यकारी सारांश पर ही पर्यावरणीय अनुमति दे दी गई। पहले चरण के कार्यकारी सारांश में संयंत्र प्रबंधन द्वारा कोई नक्शा या संयंत्र का लोकेशन मैप और प्रक्रिया प्रवाह चित्र ही प्रस्तुत नहीं किया गया है। बावजूद इसके फारेस्ट एण्ड एनवायरमेंट मिनिस्ट्री से इसका क्लियरेंस मिलना अपने आप में एक मिसाल ही कही जा सकती है।
घोर आश्चर्य की बात तो तब सामने आई जब यह पता चला कि उक्त संयंत्र को संरक्षित वन में स्थापित किया जा रहा है। यह बात कोई और नहीं वरन् संयंत्र के दूसरे चरण का कार्यकारी सारांश उजागर करता है। पहले चरण में संरक्षित वनों के मामले में संयंत्र प्रबंधन ने पूरी तरह मौन ही साधा गया था। पहले चरण में राष्ट्रीय उद्यान और स्मारक का आसपान न होना दर्शाया गया था। दूसरे चरण में इसके स्थान पर ऐतिहासिक और पुरातात्विक स्थल का दस किलोमीटर की परिधि मे न होना दर्शाया गया है।
पीसीबी के सूत्र इस बात पर गहरा आश्चर्य व्यक्त कर रहे हैं कि संरक्षित वन के बारे में मौन साधने के बाद भी केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के आला अधिकारियों का ध्यान उस और क्यों नहीं गया? बावजूद सवाल जवाब करने के मंत्रालय ने इसके प्रथम चरण को पर्यावरणीय अनुमति दे दी गई। अब जबकि दूसरे चरण का कार्यकारी सारांश इस बात को प्रदर्शित कर रहा है तब केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय प्रथम चरण की अनुमति को निरस्त कर सकता है?
सूत्रों ने कहा कि नए कार्यकारी सारांश के पांचवें पेज में संयंत्र प्रबंधन ने कहा है कि इस संयंत्र के इर्द गिर्द एक दो नहीं एक दर्जन संरक्षित वन हैं। इसमें उत्तर से दक्षिण में तीन किलोमीटर रोटो संरक्षित वन, उत्तर से उत्तर पूर्व में साढ़े सात किलोमीटर पर बरवाक्चार संरक्षित वन, उत्तर पश्चिम में नौ किलोमीटर पर काटोरी संरक्षित वन, उत्तर पश्चिम में तीन किलोमीटर पर धूमा संरक्षित वन है।
इसके अलावा दक्षिण में साढ़े सात किलोमीटर पर घंसौर संरक्षित वन, पश्चिम उत्तर पश्चिम में डेढ़ किलोमीटर पर भाटेखारी संरक्षित वन, पूर्व दक्षिण पूर्व में साढ़े तीन किलोमीटर पर बिछुआ संरक्षित वन, दक्षिण पश्चिम में आठ किलोमीटर पर जेतपुर संरक्षित वन, ग्राम बरेला में लगने वाले संयंत्र खुद ही संरक्षित वन में स्थापित है। पूर्व दक्षिण पूर्व में आठ किलोमीटर में प्रतापगढ़ आरक्षित वन है।
संयंत्र प्रबंधन द्वारा मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल को सौंपे गए 15 पेज के अपने कार्यकारी संक्षेप के पांचवें पेज पर स्वयं ही इस बात को स्वीकार किया है कि संयंत्र से शून्य किलोमीटर दूरी पर बरेला संरक्षित वन है। शून्य किलोमीटर का सीधा तात्पर्य यही हुआ कि गौतम थापर के स्वामित्व वाला अवंथा समूह का सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा छटवीं अनुसूची में अधिसूचित सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य घंसौर विकासखण्ड के ग्राम बरेला में लगाए जाने वाले कोल आधारित पावर प्लांट को संरक्षित वन में ही संस्थापित करने का तानाबाना केंद्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की देखरेख में मध्य प्रदेश शासन के प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के द्वारा बुना जा रहा है।
(क्रमशः जारी)