अपराधियों के लिए शरण स्थली बना सिवनी!
(लिमटी खरे)
मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र सीमा पर
अवस्थित भगवान शिव के नाम पर बसे सिवनी के निवासी अब अपने आप को महफूज महसूस नहीं
कर रहे हैं। पिछले आधे दशक में ही जो घटनाएं यहां घटी हैं उनसे नागरिकों में भय का
वातावरण बन गया है। एक के बाद एक घटनाओं ने साबित कर दिया है कि जिन्दा बम के
मुहाने पर ही बैठा है सिवनी जिला। नेशनल हाईवे पर होने के कारण वारदात कर यहां से
भागना भी बहुत ही आसान होता है। जब तक मामले की सूचना पुलिस को मिलती है तब तक
अपराधी कई किलोमीटर की दूरी नाप चुका होता है।
अस्सी के दशक के आगाज के पूर्व धूमा
डकैती कांड जिसमें अमर सिंह और सज्जाद को फांसी हुई थी याद प्रोढ़ होती पीढ़ी को
अवश्य ही होगी। इसके बाद वारदातें हुईं हैं, पर इन वारदातों को छिटपुट की संज्ञा दी
जा सकती है। इसके बाद संध्या जैन मर्डर केस और परवेज भाई मर्डर केस, भोमा टोला रेप काण्ड आदि के बाद एक बार
फिर सिवनी में शांति छा गई थी। फिर एकाएक उंट काण्ड का शोर हुआ।
इसके उपरांत अचानक ही बुधवारी बाजार के
करीब पुराने दरोगा मोहल्ला में एक व्यक्ति के बम धमाकों में चिथड़े उड़ गए। कहते हैं, बोहरा समुदाय का असगर घर में ही बारूद
बना रहा था। वह तो उपर वाले की नियामत थी कि कोई अनहोनी नहीं घटी, वरना उसी वक्त आधी बुधवारी तबाह हो
जाती। इसी तरह मुंबई के एक टेक्सी चालक का शव मारकर लखनवाड़ा थाना क्षेत्र में फेंक
दिया गया था, जिसके बारे में पता बाद में चला। उस दौरान तत्कालीन एसपी मीना़क्षी
शर्मा का कहना था कि चूंकि यह हाईवे पर है अतःि यहां अपराध कर भागना आसान है।
सिवनी में दक्षिण भारत से आए भानुकिरण ने सिवनी में ना केवल अपना राशन कार्ड
बनवाया वरन वह सिवनी के लोगों से खसा घुल मिल गया था। कहते हैं भानु किरण पर हत्या
के मुकदमे हैं।
इस साल फरवरी माह में अचानक ही सिवनी की
परिस्थितियों और फिजां में जहर घुला और कर्फयू के साए में लोग घरों में दुुबके
रहे। आश्चर्य तो इस बात पर हुआ जब यह पता चला कि 08 फरवरी को सिवनी में समाचार पत्र नहीं
बंटे, और तो और मीडिया को भी शाम चार बजे तक घर से निकलने की इजाजत नहीं दी
गई।
पत्रकारों के हितों को साधने के लिए
सिवनी में अनेक पत्रकार संगठन कार्यरत हैं। इन संगठनों ने भी शासन प्रशासन के
सामने अपना मुंह नहीं खोला। किसी भी संगठन या पत्रकार ने झूठे मुंह ही इस घटना की
निंदा करते हुए एक पत्र तक प्रदेश के मुख्यमंत्री या जनसंपर्क मंत्री को लिखने की
जहमत नहीं उठाए। किस आधार पर माना जाए कि ये संगठन पत्रकारों का हित साध रहे हैं।
क्या ये संगठन बस नाम के लिए पत्रकारों के हित साधने की बात करते हैं।
कर्फयू कांड के बाद सिवनी में एसटीएफ ने
छापा मारकर लगभग डेढ़ सौ जिंदा बम और दो माउजर बरामद किए। पुलिस सूत्र तो यहां तक
दावा करते हैं कि होलिका दहन के दिन भी पुलिस को लगभग पचास बम मिले। इसमें एक
मास्टर माईंड को एकता कालोनी से धर दबोचा गया। कुछ लोग हड्डी गोदाम में पकड़ाए।
कहते हैं बम कांड का सरगना एक डेढ़ माह से एसटीएफ के सर्वलेंस में था। उसके तार उपर
तक कहां तक जुड़े हैं यह बात तो भगवान ही जाने, पर सिवनी के लिए खतरे की घंटी अवश्य ही
बन गई है।
सिवनी में केंद्र और प्रदेश सरकार की
अनेक योजनाएं संचालित हो रही हैं। इन योजनाओं का काम मध्य प्रदेश के बाहर से आए
ठेकेदारों द्वारा लिया गया है। ये ठेकेदार अपने साथ पूरा लाव लश्कर लेकर आते हैं।
इन ठेकेदारों के कर्मचारियों में असमाजिक तत्वों का होना आम बात है क्योंकि परदेस
में जब कोई विपदा आती है तो ये असमाजिक तत्व ही इनके तारण हार बनते हैं। स्थानीय
स्तर पर नेतागिरी और अन्य दबावों को ये ठेेकदार कुछ प्रपंच तो कुछ धनबल के माध्यम
से निपटाते हैं, शेष मामलों में इनके साथ आए चमत्कारी कारिंदे ही खेल दिखाते हैं।
यही देश के मशहूर उद्योगपति गौतम थापर
के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड
द्वारा सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य घंसौर विकासखण्ड में लगाए जा रहे पावर
प्लांट के अंदर काम करने वाले कर्मचारी भी किस प्रात के और किस तासीर के हैं यह
कहा नहीं जा सकता है। उनमें से कितनों का आपराधिक रिकार्ड है यह भी किसी को नहीं
पता। इस संयंत्र में काम करने वाले ठेकेदारों के बारे में भी किसी को पता नहीं है।
यह संयंत्र वर्ष 2008 से आरंभ हुआ है। तबसे अब तक यहां पदस्थ
रहे पुलिस कर्मियों ने ना तो संयंत्र प्रबंधन और ना ही ठेकेदारों से अपने यहां काम
करने वालों की कोई सूची बुलवाई ना ही कोई पता साजी करने का प्रयास किया है। एसा
नही कि घंसौर थाने में संयंत्र प्रबंधन के लोगों का आना जाना ना हो। लगभग दो दर्जन
लोग तो अब तक यहां चिमनी के निर्माण का काम करते करते ही चिमनी से गिरकर दम तोड़
चुके हैं। इन मजदूरों का मर्ग घंसौर थाने में अवश्य ही कायम हुआ होगा।
मृतक कहां के निवासी थे यह बात तो पुलिस के रिकार्ड में दर्ज होगी पर यह बात
कि वह आया तो उसकी आमद या मुसाफिरी दर्ज क्यों नहीं है इस बारे में पुलिस के आला
अधिकारियों ने पूछने की जहमत नहीं उठाई। घंसौर में एक अबोध दुधमुंही के साथ हुई
दुष्कर्म की घटना पुलिस को आईना दिखाने के लिए पर्याप्त मानी जा सकती है। पुलिस
प्रशासन को चाहिए कि वह यहां पदस्थ रहे संबंधित पूर्व अधिकारियों के इस कृत्य के
लिए पुलिस मुख्यालय को आवगत अवश्य करवाएं। साथ ही भविष्य में इस तरह की घटनाओं की
पुनरावृत्ति ना हो इसके लिए भी वक्त रहते माकूल कदम उठाए। लगता नहीं है कि फिरोज
द्वारा किए गए दुष्कर्म के उपरांत भी पुलिस प्रशासन ने कोई सबक लेकर संयंत्र
प्रबंधन की मश्कें कसीं होंगी। यह काम बहुत मुश्किल प्रतीत होता है क्योंकि इसमें
राजनैतिक संरक्षण प्राप्त लोग अपना हित साध रहे हैं, इसलिए कार्यवाही निष्पक्ष और त्वरित शायद ही हो।