बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

किससे डर रहे हैं, जनादेश प्राप्त नुमाईंदे


किससे डर रहे हैं, जनादेश प्राप्त नुमाईंदे

लिमटी खरे

सांसद या विधायक जनसेवक कहलाता है। जनता के द्वारा चुना गया प्रतिनिधि जनता का सेवक होता है। क्या उसे सुरक्षा की आवश्यक्ता आम आदमी से ज्यादा है? ब्लेक कैट, जेड प्लय, आदि सुरक्षा घेरों में ये जनता के चुने हुए नुमाईंदे अपने आप को महफूज पाते हैं। ये भूल जाते हैं कि भारत गणराज्य के पहले वजीरे आजम जवाहर लाल नेहरू खुली कार में बिना सुरक्षा के ही घूमा करते थे। आज जिन्होंने इन जनसेवकों को चुना है वह भी बिना सुरक्षा के ही निर्भीक होकर घूम रही है। कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी के परिवार के हर सदस्य यहां तक कि उनके दमाद को भी सुरक्षा मुहैया करवाई है सरकार ने! देश आज प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह से यह पूछ रहा है कि सोनिया गांधी के दमाद राबर्ट वढ़ेरा का देश के विकास में क्या योगदान है? यही ना कि वे सोनिया गांधी के दमाद हैं? उनके इस काबिलियत पर उन्हें व्हीव्हीआईपी ट्रीटमेंट मिलना क्या उचित है? क्या यही है देश के संविधान की समान नागरिक संहिता का अनुपालन!

आज के समय में एक सांसद और विधायक के उपर वेतन, भत्ते आदि में जितना खर्च किया जा रहा है वह विलासिता पूर्ण जीवन शैली के लिए पर्याप्त माना जा सकता है। जनता के चुने हुए नुमाईंदों को एक वर्दीधारी गनमैन रखना अब स्टेटस सिंबाल के मानिंद हो चुका है। उनकी सुरक्षा में तैनात पुलिस के जवान सालों साल उनके साथ ही रहते हैं, अनेक मामले तो एसे भी देखे गए हैं जिसमें ये अपने सांसद या विधायक भले ही वे जीतें या हारें उन्हीं के साथ रहकर सेवानिवृत हो जाते हैं। दरअसल, सत्ता के मद का स्वाद ये भी चख लेते हैं, और उसके बाद ये व्हीव्हीआईपी की सुरक्षा में कम उनके निज सचिव, टेलीफोन आपरेटर, अर्दली की भूमिका में आ जाते हैं।
अतिविशिष्ट और विशिष्ट लोगों का सुरक्षा कव्हर में लगा फोर्स और उस पर होने वाला भारी भरकम खर्च का
भोगमान अंततः जनता के सर ही आता है। यह मुद्दा अब देश की सबसे बड़ी अदालत तक पहुंच चुका है। देखा जाए तो जिस व्यक्ति को खुद के लिए अलग से सुरक्षा चाहिए उसका खर्च उसी से वसूला जाना चाहिए चाहे जनसेवक हो, लोकसेवक (सरकारी कर्मचारी) या आम आदमी।
भारत गणराज्य के लोकतंत्र की स्थापना के समय इस बात को विशेष तौर पर ध्यान में रखा गया था कि लोकतंत्र में सुरक्षा का अधिकार हर किसी को बराबरी से है। संविधान के अनुच्छेद 15(1) में स्पष्ट कहा गया है कि भारत में जन्मे सभी नागरिकों के अधिकार समान हैं और किसी को जन्म, खानदान, वंश, जाति, लिंग, धर्म, वर्ग और क्षेत्र के आधार पर विशिष्ट नहीं माना जाएगा, इसके बावजूद देश में विशिष्ट और अति विशिष्ट के रूप में लोगों की भरमार है।
आज एसपीजी का बजट दो सौ करोड़ के आसपास है। करोड़ों रूपए व्हीआईपी और व्हीव्हीआईपी सुरक्षा में खर्च हो रहे हैं। क्या भारत की जनता इसी लिए हर बात पर टेक्स दे रही है कि जनता के द्वारा चुने गए ये नुमाईंदे उन्हीं के टेक्स पर मलाई काटें। देश पर आतंकवादी, अलगाववादी, नक्सलवादी हमलों पर हमले करते जा रहे हैं, और जनता के चुने हुए नुमाईंदे रियाया की हिफ़ाजत करने के बजाए अपनी सुरक्षा को चाक चौबंद करने पर आमदा हैं। नेताओं को एक्स, वाय, जे़ड और जे़ड प्लस श्रेणी की सुविधाओं की दरकार आखिर क्यों है? क्या वे अपने लोगों से इस कदर खौफ़जदा हैं कि उन्हें सुरक्षा की जरूरत है? या फिर स्टेटस सिंबाल बन चुकी सुरक्षा की श्रेणियों को अपनाकर नेता अपना रूआब गांठना चाहते हैं।
कितने आश्चर्य की बात है कि हम अपने अतिविशिष्ट (व्हीव्हीआईपी) और विशिष्ट (व्हीआईपी) लोगों की सुरक्षा पर हर साल करोड़ों फूंक देते हैं। शायद ही दुनिया का कोई अमीर या गरीब देश एसा हो जो सत्ताधारियों को इतनी भारी भरकम सुरक्षा प्रदान करता हो। हिन्दुस्तान ही शायद इकलौता देश होगा जहां सत्ताधारियों के बच्चों और नाती पोतों तक को जेड प्लस केटेगरी की सुरक्षा प्रदान की गई हो।
क्या आम जनता की गाढ़ी कमाई (टेक्स) से वसूली रकम का यह आपराधिक दुरूपयोग नहीं है। जब इस तरह के जेड प्लस सुरक्षा कवच में कोई बच्चा नर्सरी स्कूल जाएगा तो उसकी सुरक्षा मंे आठ कारों का काफिला और भारी संख्या में सुरक्षा बल का मौजूद रहना, सुरक्षा तंत्र का भद्दा मजाक नहीं है?
दिल्ली उच्च न्यायालय में जमा किए गए आंकड़ों से साफ हो जाता है कि भारत में व्हीआईपी सुरक्षा पर कुल 250 करोड़ रूपए सालाना की लागत आती है, वहीं बाकी बची 125 करोड़ की जनता की जान माल के लिए महज 200 करोड़ रूपए ही मुहैया हो पाते हैं। यह कहां का न्याय कहा जाएगा?
देश में जेड़ सुरक्षा श्रेणी के 70, वाई के 245 एवं एक्स के 85 से अधिक नेता हैं। आंकड़े चौकाने वाले अवश्य हैं किन्तु इनमें सत्यता है कि देश के प्रधानमंत्री, पूर्व प्रधानमंत्रियों और नेहरू गांधी परिवार की सुरक्षा के लिए विशेष रूप से उतपन्न की गई एसपीजी का चालू माली साल का बजट 180 करोड़ रूपए है। इसके अलावा एनएसजी का सालाना बजट 160 करोड़ रूपए सालाना है।
वहीं खुफिया एजेंसियों की अगर मानी जाए तो देश के 400 मेें से 125 नेताओं को सुरक्षा की आवश्यक्ता नहीं है, तथा 135 नेताओं की मौजूदा श्रेणी को कम किया जा सकता है। एक अनुमान के अनुसार एक नेता को मुहैया सुरक्षा में औसतन तीस हजार रूपए मासिक का खर्च आता है।
पूरे परिदृश्य पर अगर नज़र डाली जाए तो देश के लगभग 13 हजार से ज्यादा व्हीआईपी की सुरक्षा में तैनात 46 हजार सुरक्षाकर्मियों में कमी कर राज्य स्तर पर एनएसजी कमांडो तैनात किए जा सकते हैं, जो मुंबई हमले जैसी घटनाआंे में त्वरित कदम उठा सकते हैं।
सुरक्षा पाने वालों की फेहरिस्त में केंद्रीय मंत्रियों के अलावा, सांसद, पत्रकार, सेवा निवृत प्रशासनिक अधिकारी भी आते हैं, साफ है कि रसूख वाला ही भयाक्रांत है। क्या यह समय नहीं है जब विशिष्ट अथवा असुरक्षित व्यक्ति को नए सिरे से परिभाषित किया जाए। अगर रसूख वालों को ही जान माल का खतरा है, तो देश के बाकी 125 करोड़ लोगों में शामिल गरीब, मजदूर, किसान आखिर किसके किसकी जमानत पर अपनी जान माल रखें?
सालों पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने सुरक्षा संबंधी सवालों पर दो टूक टिप्पणी करते हुए कहा था कि नेता कोई राष्ट्रीय संपत्ति नहीं हैं, जो कि उन्हें संरक्षित किया जाए। वहीं सर्वोच्च पदों पर बैठे नेताओं के अलावा संरक्षित ‘‘राष्ट्र रत्नों‘‘ में कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी एवं उनका पूरा परिवार (पुत्री प्रियंका के विवाह के बाद उनके परिवार को भी), राजग के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आड़वाणी, प्रकाश सिंह बादल का पूरा परिवार, अमर सिंह, राम विलास पासवान, मायावती, नरेंद्र मोदी, जय ललिता, ई.अहमद, शरद यादव, एच.डी.देवगोड़ा, मुरली मनोहर जोशी, रामेश्वर ठाकुर, सज्जन कुमार, वृजभूषण शरण, आर.एल.भाटिया, प्रमोद तिवारी, बी.एल.जोशी आदि शामिल हैं। (साई फीचर्स)

दस सांसद भी नहीं ला पाए सिवनी में ब्राडगेज


0 सिवनी से नहीं चल पाएगी पेंच व्हेली ट्रेन . . . 3

दस सांसद भी नहीं ला पाए सिवनी में ब्राडगेज

(संजीव प्रताप सिंह)

सिवनी (साई)। सिवनी का यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि दस संसद सदस्य देने वाले इस जिले का ब्राडगेज से जोड़ने का जतन किसी भी सांसद ने नहीं किया। सिवनी के नेताओं ने जिस चालाकी से परिसीमन में दिखावटी विरोध कर लोकसभा सीट का अवसान करवा दिया उससे अब बड़ी रेल लाईन आने की धूल धुसारित हुई संभावनाओं के कुचक्र का तानाबाना जारी ही माना जा रहा है।
गौरतलब है कि 1962 में सुरक्षित सिवनी लोकसभा सीट पर कांग्रेस के नारायण राव वाड़ीवा विजयी हुए थे। इसके उपरांत 1967 और 1971 में यह लोकसभा सीट अस्तित्व में नहीं थी। 1977 में दुबारा अस्तित्व में आई सिवनी लोकसभा सीट पर भारतीय लोकतंत्र के निर्मल चंद जैन तो 1980 में कांग्रेस के गार्गीशंकर मिश्र यहां से जीते थे। पंडित गार्गीशंकर मिश्र केंद्र में मंत्री भी रहे हैं। 1894 के चुनावों में एक बार फिर पंडित गार्गी शंकर मिश्र पर सिवनी की जनता ने भरोसा जताया था।
1989 के आम चुनावों में गार्गीशंकर मिश्र के बजाए जनता द्वारा युवा तुर्क और भाजपा के बागी प्रहलाद सिंह पटेल पर भरोसा करते हुए उन्हें लोकसभा की दहलीज तक पहुंचाया। प्रहलाद सिंह पटेल ने संस्कारधानी जबलपुर से छात्र राजनीति की शुरूआत की थी। इसके बाद 1991 में हुए आम चुनावों में जनता ने कांग्रेस की वरिष्ठ नेत्री सुश्री विमला वर्मा पर दांव खेला और फिर 1996 में हुए चुनावों में विमला वर्मा से लोगों का मोह भंग हुआ तो दुबारा प्रहलाद पटेल को जिता दिया गया।
1998 में एक बार फिर विमला वर्मा ने बाजी मारी किन्तु साल भर बाद हुए मध्यावधि चुनावों में 1999 में भाजपा के रामनरेश त्रिपाठी की लाटरी निकल गई। फिर आईं 2004 में श्रीमति नीता पटेरिया। श्रीमति पटेरिया सिवनी लोकसभा की अंतिम सांसद साबित हुईं। विडम्बना यह है कि दस लोकसभा सदस्यों ने भी सिवनी की किस्मत में ब्राडगेज नहीं लिखने का जतन किया।
इन सांसदों ने क्या प्रयास किए यह तो वे ही जाने पर यह सच है कि इनके प्रयास ईमानदारी से नहीं किए गए थे जिसके परिणामस्वरूप आज भी सिवनी वासी ब्राडगेज से वंचित हैं। वहीं सिवनी की सीमा से लगे महाराष्ट्र के नागपुर, एमपी के छिंदवाड़ा, बालाघाट, जबलपुर और नरसिंहपुर जिलों में ब्राडगेज पर रेलगाड़ी फर्राटे भर रही है।
वहीं दूसरी ओर देखा जाए तो छिंदवाड़ा के सांसद कमल नाथ ने परासिया आमला ब्राडगेज को न केवल छिंदवाड़ा तक लाया गया वरन् पेंच नेशनल पार्क के करीब से जाने वाले नागपुर छिंदवाड़ा रेलखण्ड का अमान परिवर्तन भी करवा दिया। यही नहीं अपने प्रभाव वाले बालाघाट जिले के लिए भी कमल नाथ ने सौगातों की पोटली खोली। बालाघाट को भी ब्राडगेज से उन्होंने जोड़ ही दिया। पता नहीं क्यों सिवनी पर उन्होंने सदा ही कुदृष्टि रखी है? सिवनी में कमल चालीसा का पाठ करने वाले अनगिनत अनुयाईयों के बाद भी कमल नाथ का सिवनी के लिए प्रसन्न न होना आश्चर्य का ही विषय माना जा रहा है।

(क्रमशः जारी)

दिखावटी जनसुनवाई के अस्तित्व पर लगे प्रश्न


0 रिजर्व फारेस्ट में कैसे बन रहा पावर प्लांट . . . 03

दिखावटी जनसुनवाई के अस्तित्व पर लगे प्रश्न

(एस.के.खरे)

सिवनी (साई)। देश के हृदय प्रदेश की संस्कारधानी से महज सौ किलोमीटर दूर स्थापित होने वाले देश के मशहूर थापर ग्रुप के सहयोगी प्रतिष्ठान झाबुआ पावर लिमिटेड केे कोल आधारित पावर प्लांट के द्वितीय चरण की जनसुनवाई का काम गुपचुप तरीके से चालू है। 22 नवंबर 2009 को शासकीय हाई स्कूल गोरखपुर, तहसील घंसौर एवं जिला सिवनी में प्रातः 11 बजे होने वाली जनसुनवाई की मुनादी भी नहीं पिटवाया जाना अनेक संदेहों को जन्म दे रहा है। इस बारे में मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की वेब साईट भी लगता है झाबुआ पावर लिमिटेड के कथित एहसानों से दब चुकी है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार आदिवासी बाहुल्य तहसील घंसौर के ग्राम बरेला में स्थापित होने वाले पावर प्लांट के पहले चरण में पूर्व में ही गुपचुप तरीके से 600 मेगावाट की संस्थापना की जनसुनवाई पूरी कर ली गई थी। इस जनसुनवाई में क्या क्या हुआ इसका विवरण मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की वेब साईट पर उपलब्ध तो है किन्तु जरूरी एवं काम की कार्यवाही की छायाप्रति इतनी उजली डाली गई है कि उसे पढ़ा भी नहीं जा सकता है।
मध्य प्रदेश प्रदूषण मण्डल के क्षेत्रीय अधिकारी जबलपुर पुष्पेंद्र सिंह और तत्कालीन अतिरिक्ति जिला दण्डाधिकारी श्रीमति अलका श्रीवास्तव के हस्ताक्षरों से युक्त इस प्रतिवेदन में क्या क्या हुआ यह तो वर्णित है, इसमें चालीस आपत्तियां भी दर्ज हैं, किन्तु इस आपत्तियों को पठनीय किसी भी दृष्टिकोण से नहीं कहा जा सकता है। यह शोध का ही विषय है कि सरकारी वेब साईट में लोक जनसुनवाई की कार्यवाही को पारदर्शिता के साथ प्रदर्शित क्यों नहीं किया गया है। इसके पूर्व में भी हुई जनसुनवाईयों के बारे में भी मण्डल का रवैया संदिग्ध ही रहा है।
मण्डल की वेब साईट पर 352 नंबर पर अब इसके दूसरे चरण की लोक जनसुनवाई का मामला अंकित है। इसमें हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में कंपनी की प्रस्तावना को क्लिक करने पर पेज केन नॉट बी डिस्पलेड प्रदर्शित हो जाता है। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में शिवराज सरकार का यह पक्षपात पूर्ण रवैया समझ से परे ही कहा जा सकता है। पूर्व की जनसुनवाई में आई आपत्तियों का निराकरण क्या किया गया है इस बारे में मण्डल, मध्य प्रदेश सरकार और कंपनी ने अपने मुंह सिले हुए हैं।
गौरतलब है कि इसके पूर्व भी पहले चरण में 600 मेगावाट के प्रस्तावित कोल और सुपर क्रिस्टल टेक्नोलॉजी आधारित पावर प्लांट की जनसुनवाई के मामले में भी पहले तो मण्डल की वेब साईट मौन रही फिर जब शोर शराबा हुआ तब जाकर पांच दिन पूर्व मण्डल ने इसकी कार्यवाही को सार्वजनिक किया था।
यहां उल्लेखनीय तथ्य यह है कि इस जनसुनवाई के दौरान आई आपत्तियों पर प्रदूषण निवारण मंडल अथवा केंद्र सरकार के वन एवं पर्यावरण ने क्या कार्यवाही की इस बारे में समूची केंद्र और मध्य प्रदेश सरकार ही मौन बैठी है। केंद्र में कांग्रेसनीत संप्रग सरकार और मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार का मौन चहुंओर संदिग्ध ही माना जा रहा है।

(क्रमशः जारी)

मुख्यमंत्री कार्यालय भी करने लगा पत्रकारों में भेद!


लाजपत ने लूट लिया जनसंपर्क ------------------ 58

मुख्यमंत्री कार्यालय भी करने लगा पत्रकारों में भेद!

(अखिलेश तिवारी)

भोपाल (साई)। विज्ञापनों की बंदरबाट और अपनी बदनियत के लिए बदनाम जनसंपर्क अब पत्रकारों के बीच पोस्टकार्ड और अंर्तेदेशियका फासला रखने लगा हैं वहीं प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के श्याम्ला हिल्स स्थित प्रेस अधिकारी भी मुख्यमंत्री व मीडिया के बीच संवाद को लेकर समय लेने की प्रक्रिया करने में भी संकोच दिखाते हैं।
मामला कुछ इस तरह हैं कि स्वर्णिम मध्यप्रदेश को लेकर साप्ताहिक लोकहित खबर मैं शिवराज-मेरा मध्यप्रदेश पर केंद्रित विशेष अंक का प्रकाशन पांच मार्च को किया जाना हैं जिसको लेकर इंटरनल न्यूज एंड इन्फारमेशन (आई.एन.आई.) द्वारा उदयमान मध्यप्रदेश के मंत्रियों की विषेश कार्यप्रणाली एवं उपलब्धियों की तथ्य परख सामग्री का समावेश भी किया जाना हैं।
 इस दिशा में प्रदेश के मंत्रियों से विशेश संवाद हेतु पत्र लिखकर निवेदन किया गया व संदेश पत्र भी मांगा गया इस पर समस्त मंत्रियों ने अपनी स्वीकृति देते हुये आई.एन.आई. के इस प्रयास की शुभकामनाएं देते हुये चर्चा कर सहयोग प्रदान किया लेकिन दूसरी ओर प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान के प्रेस अधिकारी डा. भूपेन्द्र गौतम ने दुरभाष पर संपर्क करने पर विषेष अंक के शीर्षक को समझे बिना ही सलाह दे डाली की जनसंपर्क संचनालय से जानकारी लेकर छाप दो उन्होंने अंक की डमी फाइल भी देखना उचित नहीं समझा और सलाह मशविरा देने बैठ गये अपनी इसी आदत के लिए इंदौरी पत्रकारों के बीच चर्चा में रहे प्रेस अधिकारी गौतम प्रदेश के सफल मुख्यमंत्री के निवास पर जाकर भी अपने मिजाज को बदल नहीं पाये।
देखा जाए तो पत्रकारों के बीच ऊंच-नीच का मापदंड रखने वाले प्रेस अधिकारी गौतम को चाहिए था कि वे साप्ताहिक लोकहित खबर की उस फाइल को देखकर अपनी राय रखते तब समझ में आता लेकिन उन्होंने बिना देखे जिस तरह से दुरभाष पर चर्चा की उससे यह लगता है कि पत्रकारों के बीच ऊंच-नीच का पैमाना बरकरार हैं।
खैर प्रदेश के मुख्यमंत्री से चर्चा करने में हमारी असफलता का हमें अफसोस नहीं हैं बल्कि इस बात की खुशी हैं कि उदयमान मध्यप्रदेश के उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, लोक स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा, ऊर्जा मंत्री राजेन्द्र शुक्ल, कृषि कल्याण मंत्री रामकृष्ण कुसमारिया, नगरीय प्रषासन मंत्री बाबुलाल गौर, लोक सेवा प्रबंधन राज्य मंत्री ब्रजेन्द्र प्रताप सिंह सहित कई मंत्रियों से उपलब्ध सामग्री और संवाद प्रकाशन के लिए एकत्रित हो सका।
वहीं विपक्ष के कुछ जिम्मेदार नेताओं से भी प्रदेश सरकार के कार्यों को लेकर चर्चा हुई। मुख्यमंत्री के प्रेस अधिकारी डा. भूपेन्द्र गौतम का व्यवहार गैर जिम्मेदाराना श्रेणी में आता हैं उन्हें समझना चाहिए कि हम कोई आर्थिक लाभ के लिए नहीं तरस रहे हैं.......नहीं हमने जनसंपर्क विभाग से कोई सहयोग लेने की हिमाकत की हैं......हम चाहते भी नहीं हैं.......22 वर्ष की विषुद्ध पत्रकारिता में हमनें पत्रकारिता के उच्च मापदंडों का पालन ही किया हैं चाहें फिर हमें हाषिए पर ही जाना पड़ा हो और भी कुछ बताया जाना चाहिए लेकिन हम अपने मूल्यांकन का प्रमाण पत्र डा. गौतम को देना नहीं चाहते पर इस व्यवहार से एक बात तय हैं कि मुख्यमंत्री के प्रेस अधिकारी डा. गौतम की इस मानसिकता के चलते जनता और सरकार के बीच सषक्त सेतू का काम करने वाले पत्रकार भ्रमित हो सकते हैं ऐसे में जब श्याम्ला हिल्स में आम आदमी का मुख्यमंत्री निवास करता हैं। (जैसा अखिलेश तिवारी ने अपने फेसबुक अकांउट पर पोस्ट किया है)

हेलीकाप्टर सौदे में इटली का रूख हुआ सकारात्मक!


हेलीकाप्टर सौदे में इटली का रूख हुआ सकारात्मक!

(शरद)

नई दिल्ली (साई)। इटली के अभियोजक अगस्टावैस्टलैंड हेलीकॉप्टर सौदे की छानबीन के सिलसिले में सीबीआई के दल से मिलने पर सहमत हो गये हैं। इससे सीबीआई की जांच को बल मिला है। इस दल में सीबीआई के उप महानिरीक्षक, एक कानूनी सलाहकार और रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं। इस बीच, इटली की कंपनी फिनमेक्कानिका ने कहा है कि ब्रिटेन स्थित उसकी सहायक कंपनी अगस्टावैस्टलैंड इस मामले में भारतीय अधिकारियों के साथ सहयोग करेगी।  
उधर, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरॅन ने भारत को ऑगस्टावैस्टलैंड हेलीकॉप्टर सौदे की जांच में पूरा सहयोग देने का भरोसा दिया है। भारत और ब्रिटेन ने द्विपक्षीय असैन्य परमाणु सहयोग समझौते के बारे में बातचीत शुरू करने का फैसला किया है। ये जानकारी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भारत यात्रा पर आए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन के साथ शिष्टमंडल स्तर की बातचीत के बाद संवाददाताओं को दी। दोनों देशों ने बैठक में परमाणु ऊर्जा सहयोग, सुरक्षा, आतंकवाद और व्यापार सहित कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में आपसी संबंधों की समीक्षा की।
यहां देश के रक्षामंत्री ए के एंटनी ने कहा है कि हेलीकॉप्टर सौदे में सरकार कुछ भी छुपाना नहीं चाहती और संसद में इस मुद्दे पर चर्चा के लिए तैयार है। कल नई दिल्ली में श्री एंटनी ने कहा कि इस मुद्दे पर रक्षा मंत्रालय और विदेश मंत्रालय के बीच कोई मतभेद नहीं है।
उन्होंने कहा कि इस मामले में कोई मतभेद नहीं है। जब भी हमने विदेश मंत्रालय से सहयोग मांगा है, हमें मिला है। सरकार के सभी अंग पूरे तालमेल के साथ काम कर रहे हैं। वहीं संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ ने कहा कि सरकार हेलीकॉप्टर सौदे में कथित घोटाले की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति बनाने पर विचार कर सकती है, बशर्ते सभी पक्ष इस बात से संतुष्ट हों। कमल नाथ ने कहा कि हम खुद चाहते हैं इसमें सही जांच हो और हम इसलिए सबसे चर्चा करके कि कैसी जांच होनी चाहिए, इसमें कोई शक उसके बाद में न हो।

सगी बहनों के साथ बलात्कार के बाद की हत्या


सगी बहनों के साथ बलात्कार के बाद की हत्या

(अशीष कौशल)

नागपुर (साई)। महाराष्ट्र के भंडारा जिले के मुरवाडी गांव में तीन बहनों के साथ कथित बलात्कार और उनकी हत्या करने की बात प्रकाश में आई है। मासूम बालिकाएं ग्यारह साल के कम उम्र की बताई जा रही हैं एवं वे वेलंटाईन डे से घर से लापता थीं। इनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज है। इस वहशीयाना हरकत को अंजाम देने के उपरांत इनकी हत्या भी कर दी गई।
पुलिस सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि यह घटना उस 14 फरवरी की है, जब पूरी दुनिया में महिलाओं के खिलाफ हिंसा रोकने के लिए वन बिलियन राइजिंग मूवमेंट चल रहा था। बेहद गरीब परिवार की इन बच्चियों को खाने का लालच देकर घर से कुछ ही दूर ढाबे पर बुलाकर यह वारदात को अंजाम दिया गया।
उधर मृतक बच्चों के परिवार के सूत्रों ने साई न्यूज को बताया कि बच्चियों की मां घरों में छोटे-मोटे काम करती है। देर शाम तक जब बच्चियां घर नहीं लौंटीं, तो परेशान मां ने पुलिस में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाई। अगली सुबह पुलिस ने बच्चियों के शवों को ढाबे के पास स्थित कुएं से बरामद किया। जिस जगह बच्चियों की चप्पलें पड़ी मिलीं, वहां शराब को बोतलें भी बरामद हुईं। बावजूद इसके पुलिस इसके केस को खुदकुशी का रंग देने की कोशिश में जुटी रही। गांव वालों के प्रदर्शन के बाद जब बच्चियों का पोस्टमॉर्टम किया गया, तो उनसे रेप और अप्राकृतिक यौनाचार की पुष्टि हुई।

वन अधिकार अधिनियम के तहत प्रशिक्षण


वन अधिकार अधिनियम के तहत प्रशिक्षण

(शिवेश नामदेव)

सिवनी (साई)। वन अधिकार अधिनियम 2006 के अंतर्गत वन अधिकार समिति के सचिव एवं ग्राम पंचायत के सचिवों को पर्यावरणीय मुद्दों एवं अनुसूचित जनजाति और अन्य परम्परागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता ) अधिनियम 2006 एवं संशोधित नियम 2012 के क्रियान्वयन हेतु उपखण्ड स्तरीय एवं वनाधिकार समितियों के सदस्योें का एक दिवसीय प्रशिक्षण दिनांक 18 से 23 फरवरी 2013 तक आयोजन की श्रृंखला में प्रथम प्रशिक्षण दिनांक 18 फरवरी 2013 को प्रातः 9ः30 बजे से 5ः30 बजे तक जिला पंचायत सिवनी के सभाकक्ष में सम्पन्न हुआ। इस प्रशिक्षण के प्रथम चरण पर्यावरणीय मुद्दे पर पर्यावरण विद श्री प्रदीप शर्मा, आर्थिक योजनकार एवं समन्वयक वन अधिकार योजना एवं श्री आलोक नायक, शोघ अधिकारी, पर्यावरण नियोजन एवं समन्वय संगठन भोपाल द्वारा पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन आजीविकास से संबंधित मुद्दों पर व्याख्यान दिया गया। साथ ही श्रीमती प्रियंका दास, मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत, सिवनी द्वारा ग्रामीण विकास एवं पर्यावरण विषय पर, श्री वाय.पी.सिंह, वनमण्डलाधिकारी, उत्तर सिवनी वनमण्डल एवं विषय विशेषज्ञ श्री एच.के.त्रिवेदी, कार्यपालन यंत्री, जलसंसाधन, श्री आर.बी.सिंह, उपवनमण्डलाधिकारी, डा.श्रीमती जे.पी.जैन, पशु चिकित्सा अधिकारी, श्री रवि गजभिये, उपसंचालक, मत्स्योद्योग एवं श्री टी.सी.मर्सकोले, सहायक कृषि विस्तार अधिकारी, सिवनी द्वारा क्रमशः जल संसाधन, पशुपालन, मत्स्योद्योग, कृषि एवं मत्स्य विभाग से संबंधित योजनाओं पर अपना व्याख्यान दिया गया।
प्रशिक्षण के द्वितीय चरण अनुसूचित जनजाति और अन्य परम्परागत न निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 संशोधन नियम, 2012 के प्रावधानों एवं प्रक्रिया का प्रशिक्षण जिला स्तरीय एवं उपखण्ड स्तरीय तथा वन अधिकार समिति के सदस्यों को मास्टर ट्रेनर्स के माध्यम से प्रशिक्षण दिया गया। इस प्रशिक्षण में वन अधिकारी संशोधन नियम 2012 अंतर्गत संस्थाओं की भूमिका एवं कार्य, वन भूमि के अधिकारों के लिए दावा प्रारूप, संशोधित नियम 2012 के संदर्भ में वन अधिकार अधिनियम के क्रियान्वयन हेतु कार्ययोजन एवं संशोधित नियम के तहत नवीन व्यक्तिगत एवं सामुहिक दावे प्राप्त करने की प्रक्रिया पर जिले के मास्टर टेªनर्स द्वारा पावर पाईंट के माध्यम से प्रशिक्षण दिया गया। इस प्रशिक्षण में जनप्रतिनिधि के रूप में श्रीमती किरण अवधिया, अध्यक्ष, जनपद पंचायत, सिवनी, श्रीमती रैनवती मानेश्वर, सदस्य जिला पंचायत, सिवनी, श्री गहन सिंह भलावी, सदस्य जिला पंचायत आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।
इसी श्रृंखला में दिनांक 19 फरवरी 2013 को उपखण्ड केवलारी में उत्कृष्ट विद्यालय केवलारी में वन अधिकार अधिनियम 2006 के अंतर्गत वन अधिकार समिति के सचिव एवं ग्राम पंचायत के सचिवों को पर्यावरणीय मुद्दों एवं अनुसूचित जनजाति और अन्य परम्परागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता ) अधिनियम 2006 एवं संशोधित नियम 2012 के क्रियान्वयन हेतु उपखण्ड स्तरीय एवं वनाधिकार समितियों के सदस्योें का एक दिवसीय प्रशिक्षण सम्पन्न हुआ। इस प्रशिक्षण में एप्को भोपाल के परियोजना समन्वयक   श्री प्रदीप शर्मा एवं शोघ अधिकारी श्री आलोक नायक तथा श्री के.बी.सिंह, अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) केवलारी द्वारा पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन आजीविका से संबंधित मुद्दों पर अपना व्याख्यान दिया गया। इसी प्रकार विषय विशेषज्ञ के रूप में श्री आर.बी.सिंह, उपवनमण्डलाधिकारी, श्री उदय प्रताप सिंह, मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जनपद पंचायत, केवलारी, श्री एस.आर.गुप्ता, वरिष्ठ कृषि अधिकारी, श्री एच.एस.मसराम, मत्स्य निरीक्षक, डा.एम.के.जैन, पशुचिकित्सा विभाग, श्री एम.एल. राजपूत, उद्यानिकी विभाग एवं श्री आर.के.बोकड़े, रेशम विभाग द्वारा विभागीय योजना से संबंधित व्याख्यान दिये गये। प्रशिक्षण के द्वितीय चरण में प्रशिक्षण के द्वितीय चरण अनुसूचित जनजाति और अन्य परम्परागत न निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 संशोधन नियम, 2012 के प्रावधानों एवं प्रक्रिया का प्रशिक्षण उपखण्ड स्तरीय तथा वन अधिकार समिति के सदस्यों को मास्टर ट्रेनर्स के माध्यम से प्रशिक्षण दिया गया। इस प्रशिक्षण में वन अधिकारी संशोधन नियम 2012 अंतर्गत संस्थाओं की भूमिका एवं कार्य, वन भूमि के अधिकारों के लिए दावा प्रारूप, संशोधित नियम 2012 के संदर्भ में वन अधिकार अधिनियम के क्रियान्वयन हेतु कार्ययोजन एवं संशोधित नियम के तहत नवीन व्यक्तिगत एवं सामुहिक दावे प्राप्त करने की प्रक्रिया पर जिले के मास्टर टेªनर्स द्वारा पावर पाईंट के माध्यम से प्रशिक्षण दिया गया। अंत में सहायक आयुक्त, आदिवासी विकास, सिवनी श्री अशोक शेण्डे द्वारा वन अधिकार अधिनियम के संदर्भ में ग्रामसभाओं की कार्यवाही की वीडियोग्राफी करायी जाकर इसकी साफ्ट कापी उपलब्ध कराने एवं वन अधिकार अधिनियम अंतर्गत व्यक्तिगत एवं सामुदायिक दावे पूर्ण कराने हेतु संशोधित नियम 2012 अनुसार कार्यवाही की अपेक्षा समस्त उपखण्ड स्तरीय एवं वन अधिकार समिति सदस्यों से की गई।
उक्तानुसार प्रशिक्षण की श्रृंखला में दिनांक 20 फरवरी 2013 को उपखण्ड बरघाट में जनपद पंचायत के सभाकक्ष में प्रातः 9ः30 बजे से वन अधिकार अधिनियम 2006 के अंतर्गत वन अधिकार समिति के सचिव एवं ग्राम पंचायत के सचिवों को पर्यावरणीय मुद्दों एवं अनुसूचित जनजाति और अन्य परम्परागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता ) अधिनियम 2006 एवं संशोधित नियम 2012 के क्रियान्वयन हेतु उपखण्ड स्तरीय एवं वनाधिकार समितियों के सदस्योें का एक दिवसीय प्रशिक्षण आयोजित है।

सिक्वल फिल्मों का साल रहेगा 2013


सिक्वल फिल्मों का साल रहेगा 2013

(नेहा घई पण्डित)

नई दिल्ली (साई)। साल 2013 को सिक्वल फिल्मों का साल कहा जाए तो गलत नहीं होगा। जनवरी में फिल्म रेस 2, फरवरी में मर्डर 3 और मार्च में साहब, बीवी और गैंगस्टर रिटर्न्स। लगभग हर महीने किसी न किसी फिल्म का अगला सिक्वल रिलीज होने जा रहा है।
अक्सर सुनने में आता है कि बॉलीवुड में सिक्वल फिल्मों का सिलसिला हॉलीवुड यानी अंग्रेजी फिल्मों से आया है लेकिन मेरा मानना है कि सिक्वल कहानियां और हमारे देश का गहरा और पुराना रिश्ता है। अब आप सोच रहे होंगे कि भला इन दोनों में पुराना रिश्ता कैसे है? पुराणों-ग्रंथों में भगवान के अवतार का सिक्वल दर्शाया गया है जिसमें ज़्यादातर बार भगवान ने पहले अवतार के अंत में ही बता दिया कि वो अगला अवतार कब लेंगे।
राम ने कृष्ण का अवतार लिया, शिव के 12 अवतार हुए और दुर्गा सप्तशति भी देवी के 9 अवतारों का जिक्र करती है। पुरणों की इन कहानियों को लोगों ने चाव से पढ़ा..और आज भी कही-सुनी जाती हैं। ईश्वर एक रुप अनेक का ये फॉर्मूला भला फिल्म इंडस्ट्री कैसे छोड़ सकती है। जब एक फिल्म हिट हो जाए तो निर्माता-निर्देशक उसके नाम को और भी भुनाना चाहते हैं। कई बार यह फिर से फिल्म को हिट करा देता है और कुछ बार फिल्म का डब्बा भी बज जाता है।
बॉलीवुड में कई फिल्मों के सिक्वल बन रहे हैं इसका कारण है कि जब दर्शक किसी एक फिल्म को देख कर पसंद कर लेता है तो फिल्म बनाने वालों को इतना तो पता होता ही है कि इस तरह की कहानी लोगों को पसंद आई है। उसके अगले भाग में उस कहानी में कुछ और फेर-बदल करके दर्शकों को फिर से परोसा जा सकता है। कई बार देखने में आया है कि किसी फिल्म का सिक्वल उसकी पहली फिल्म से ज्यादा चला हो और यह भी हुआ है कि फिल्म का सिक्वल बुरी तरह पिट गया हो।
फिल्म अभिनेता सलमान खान कहते हैं कि जब दबंग 2 रिलीज होने वाली थी तब मैं बहुत दुविधा में था कि लोग इस फिल्म को पसंद करेंगे या नहीं। सिक्वल फिल्मों में सबसे खतरनाक बात यह होती है कि दर्शक अपने मन में क्या सोचकर फिल्म देखने आ रहा है इसका पता नहीं होता। अगर हम बिलकुल पहली फिल्म जैसी फिल्म बनाएंगे तो लोग कहेंगे कि इसमें कुछ नया नहीं है। अगर फिल्म में कुछ नया करेंगे तो लोग कहेंगे कि यह तो पुरानी फिल्म के जैसी नहीं है। कुल मिलाकर आपको अपनी कहानी और पात्रों को बहुत संभालकर कुछ नया करना पड़ता है। इससे दर्शक फिल्म से जुड़ा हुआ भी महसूस करते हैं और कहानी में कुछ फेर-बदल से नयापन भी होता है।
फिल्म इंडस्ट्री में पिछले कुछ सालों में सिक्वल बनाने का चलन बढ़ गया है। फिल्म निर्माता और निर्देशक एक फिल्म की लोकप्रियता को दोबारा भुनाने के चक्कर में अक्सर यह नहीं देखते की एक फिल्म का कहानी जहां समाप्त हो रही है क्या वहीं से किसी कहानी की शुरूआत हो सकती है। फिल्म अभिनेता और निर्देशक फरहान अख्तर ने 1978 में आई अमिताभ बच्चन की फिल्म डॉन को नए अंदाज में बनाया। यह फिल्म हिट हुई और इसकी कहानी में कुछ ऐसी बातें छोड़ दी गईं जिससे अगली फिल्म में इस कहानी को और इन छोड़ी हुई घटनाएं को इस्तमाल करके नई फिल्म बनाई जा सके। नतीजा यह हुआ कि डॉन 2 अपनी पहली फिल्म से भी ज्यादा हिट रही। 2003 में जॉन एब्राहिम और बिपाशा बासु की फिल्म जिस्म ने दर्शकों के बीच अपनी अच्छी पकड़ बनाई। इस फिल्म का लोकप्रिय पहलू इसकी रोमांच और मादक्ता से भरी कहानी थी। वहीं 2012 में इस फिल्म की सिक्वल जिस्म 2 ने शुरूआत में अपने बोल्ड अवतार के कारण लोगों में दिलचस्पी जरूर पैदा की मगर रिलीज के कुछ ही समय बाद दर्शकों ने इसे नकार दिया। जहां पहली फिल्म में कहानी बहुत अच्छे से प्रस्तुत की गई वहीं दूसरी फिल्म में सिर्फ मादक्ता और अशलीलता ही नजर आई।
फिल्में बनाना एक बेहद मुश्किल और महंगा काम है। फिल्म अगर हिट हुई तो दोगुना या चारगुना फायदा होता है लेकिन अगर फिल्म पिट गई तो नुकसान भी इतना ही होता है। यही कारण है कि निर्माता और निर्देशक यह सोचते हैं कि देखी और परखी कहानी पर ही दांव लगाना चाहते हैं। उन्हे लगता है जब दांव लगाना ही है तो क्यों न ऐसे घोड़े पर लगाया जाए जो रेस में दौड़ चुका है।   यानी अगर फिल्म बनाना है और पैसा भी अच्छा मिले तो ऐसा ही विषय लिया जाए जिसे बाजार में पसंद किया गया हो। पैसा कमाने की रेस में वह अक्सर फिल्म की कहानी, उसकी पहली फिल्म से जुड़ी घटनाओं को एक नए अंदाज में पेश करना भूल जाते हैं। उन्हें याद रखना चाहिए कि दर्शक घर में खाने पर आए मेहमान की तरह होते हैं, खाने में नमक अगर थोड़ा कम या ज्यादा हो गया तो उन्हे मजा नहीं आएगा।   

यूं तो साल 2013 में लगभग हर महीने ही किसी न किसी फिल्म का सिक्वल आने वाला है मगर यह तीन ऐसी फिल्में जिनका इंतजार न सिर्फ दर्शकों को है बल्कि क्रिटिक्स भी इन फिल्मों से बड़ी उम्मीदें लगाए हुए हैं । धूम 3 - यशराज बैनर की इस फिल्म का सिक्वल फिल्मों की श्रेणी में सबसे ज्यादा इंतजार है मगर यह फिल्म साल के अंत में रिलीज होगी। पिछली फिल्मों की तरह इस फिल्म में भी अभिषेक बच्चन और उदय चोपड़ा अपने-अपने किरदारों में नजर आऐंगे लेकिन फिल्म का खास आकर्षण होंगे आमिर खान जो पहली बार एक नाकारात्मक भूमिका अदा कर रहे हैं। वअन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई 2 - 2010 में आई फिल्म वअन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई का यह अगला भाग है। इस फिल्म में मुंबई में पनपते डॉन कल्चल को दिखाया गया है। नई फिल्म में कोई भी पुराना कलाकार नहीं होगा। फिल्म की कहानी वहीं से शुरू होगी जहां पिछली फिल्म की कहानी खत्म हुई थी। पिछली फिल्म के अंत में इमरान हाशमि ने (जो कि दाउद इब्राहिम की भूमिका में थे) पुराने डॉन को मारकर सत्ता अपने हाथ में कर ली थी। इस फिल्म में दाउद का किरदार अक्षय कुमार निभाएंगे। फिल्म की कहानी दाउद के डॉन बनने के सफर पर होगी। 

क्रिश 3 - रितिक रोशन की यह फिल्म उनके पिता राकेश रोशन ही बना रहे हैं। बाप-बेटे की जोड़ी की इस फिल्म से न सिर्फ उन्हें बल्कि दर्शकों को भी बहुत उम्मीदें हैं। फिल्म के पिछले दो भाग बच्चों को बीच बेहद लोकप्रिय रहे हैं। क्रिश की जादूई शक्ति और कारनामें उन्हें रोमांचित करते हैं।
यह भी हैं इस साल रिलीज होने के लिए कतार मेंसाहब बीवी और गैंगस्टर रिटर्न्स
शूटआउट एट वड़ाला
आशिकी 2
यमला पगला दिवाना 2
रागिनी एमएसएस 2


फिल्में जिनके सिक्वल हिट रहे
मुन्नाभाई एमबीबीएस - लगे रहो मुन्नाभाई
धूम  - धूम 2
दबंग - दबंग 2
डॉन - डॉन 2
कोई मिल गया - क्रिश 2
गोलमाल - गोलमाल रिटर्न्स - गोलमाल 3
रेस - रेस 2
हाउसफुल - हाउसफुल 2