शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

समझना होगा इंटरनेट के इन्द्रजाल को

समझना होगा इंटरनेट के इन्द्रजाल को

सायबर क्राईम के लिए हो गया है उपजाउ माहौल तैयार

(लिमटी खरे)

अब समय आ गया है कि इस बात पर सर जोडकर बैठा जाए और विश्लेषण किया जाए कि इंटरनेट का सही इस्तेमाल कैसे किया जाए। इंटरनेट की उमर अब 41 साल हो गई है। सितम्बर 1969 में अमेरिका में इसका जन्म हुआ था। लास एंजेलिस के कैलीफोनिZया विश्वविद्यालय में एक कंप्यूटर ने दूसरे कंप्यूटर को ईमेल सन्देश सफलता पूर्वक प्रेषित किया था। इसके बाद इंटरनेट ने पीछे मुडकर कभी नहीं देखा।

इसके बाद पडाव दर पडाव तय करके इंटरनेट ने नित नई उंचाईंया तय की हैं। अब तो मामला ईमेल से कोसों आगे बढकर चेटिंग और सोशल नेटविर्कंग वेव साईट्स तक पहुंच गया है। इंटरनेट पर अब वचुZअल स्पेस पर एकाधिकार की जंग, विज्ञापनदाताओं को आकषिZत करने की होड के अलावा ऑनलाईन बाजार में अपने आप को बेहतर साबित करने की कवायद भी साफ दिखाई पडने लगी है।

चिन्ताजनक पहलू यह है कि आज इंटरनेट अपने उद्देश्य से भटकता दिखाई देने लगा है। आज लोग इंटरनेट को पोर्न साईट्स (सेक्स से सम्बंधित अश्लील साईट्स) का अड्डा और टाईम पास का जरिया समझने लगे हैं। बच्चों से लेकर युवा, प्रोढ यहां तक कि वृद्ध मन को आकषिZत करने वाले पोनोZग्राफी सबसे अधिक देखी जाने वाली साईट्स में स्थान पा चुकी हैं। आज छोटे छोटे शहरों में भी अगर इंटरनेट पार्लर का सर्वेक्षण किया जाए तो यहां आठ साल से साठ साल तक के आयुवर्ग के लोगों का आना जाना रहता है। छोटे छोटे बच्चों का कंप्यूटर फ्रेण्डली होना अच्छा है, किन्तु उनका रूझान पोर्न साईट्स की ओर होना शुभ संकेत नहीं हैं।

इस बात में कोई सन्देह नहीं है कि इंटरनेट को सूचना क्रान्ति का सबसे सशक्त माध्यम माना जाता है। इस पर एक ओर नित नई जानकारियां, दुर्लभ वीडीयो मिलते हैं। कल तक अखबारों या पत्रिकाओं की कतरनें सहेजकर रखना होता था, आज जमाना बदल गया है। कोई भी जानकारी आपको बस एक िक्लक पर ही उपलब्ध हो जाती है। यह सब इंटरनेट का ही कमाल माना जाएगा। गांधी के विचार हों या माक्र्स की थ्योरी या फिर हिटलर की सोच, आज सर्च इंजन पर सिर्फ टाईप कर दीजिए, पलक झपकते ही इसके हजारों लिंक आपके सामने होंगे, जिनके माध्यम से आप उनके वेब पेज तक पहुंच सकते हैं, वह भी बिल्कुल मुफ्त।

मीडिया ने भी इंटरनेट के साथ कदम ताल मिलाया है। कल तक प्रिंट मीडिया का बोलबाला था। अनेक समाचार पत्र इतने लोकप्रिय हुआ करते थे कि लोग दो दिन बाद भी उसे पढा करते थे। अस्सी के दशक तक प्रिंट को जबर्दस्त सफलता मिली। इसके बाद बाजार में आया इलेक्ट्रानिक मीडिया। समाचार चेनल्स ने लोगों को लाईव कवरेज दिखाया तो इसका जादू सर चढकर बोलने लगा, मगर प्रिंट का अपना एक वजूद था, जो आज भी बना हुआ है। इसके बाद अब वेब पत्रकारिता ने लोगों को अकषिZत किया है। वेव बेस्ड समाचार एजेंसी, समाचार वेब साईट्स को जबर्दस्त सफलता मिल रही है।

अंग्रेजी में तो नेट पर न जाने कितनी समाचार की साईट्स हैं, पर अब हिन्दी में भी इन साईट्स ने धमाल मचाया हुआ है। वेब और प्रिंट मीडिया की खासियत यह है कि आप जब चाहे तब जौन सी चाहे वो खबर देख सकते हैं, पर समाचार चेनल्स में अगर आप उसे देखने से वंचित रह गए तो फिर आपको वह नहीं मिल सकता है।

इसके साथ ही साथ दस साल पहले अस्तित्व में आए ब्लाग का जादू लोगों के सर चढकर बोलने लगा। पहले लोगों को ब्लाग के मायने नहीं पता थे, आज हर विधा के ब्लाग से भरा पडा है इंटरनेट का संसार। ब्लाग एग्रीकेटर्स ने तो ब्लागर्स को नया स्पन्दन दिया है। आलम यह है कि ब्लागर्स के ब्लाग पर जाकर अब तो समाचार पत्र पत्रिकाएं खबरें, आलेख, काव्य संग्रह, कहानी, वृतान्त आदि को लिफ्ट कर उन्हें प्रोत्साहित कर रहे हैं।

अखबरों की दुनिया में पितृ पुरूष की छवि वाले ``जनसत्ता`` अखबार ने तो रोजाना ही एक न एक ब्लाग को अपने संपादकीय पेज में स्थान देना आरम्भ किया है। इसके अलावा कुछ ब्लागर्स ने प्रिंट में छपे ब्लाग्स को एक जगह एकत्र कर अनुकरणीय प्रयास आरम्भ किया है, जिससे सभी यह देख सकते हैं कि किस ब्लाग को कहां सराहा गया है।

इंटरनेट के अच्छे के साथ बुरे पहलू भी हैं। सरकारों की अनदेखी के चलते सोशल नेटविर्कंग वेवसाईट्स पर तंबाखू और धूम्रपान को बढावा देने के विज्ञापनों को खासा स्थान दिया जा रहा है। अनेक विज्ञापन तो इतने लुभावने होते हैं कि युवाओं के कोमल मन में सिगरेट का कश लगाने की कसक पैदा हो जाती है। सोशल नेटविर्कंग साईट पर स्मोकिंग के अनुभव बांटने वाली कम्यूनिटी काफी चर्चित हो हो रही हैं।

तम्बाकू नियन्त्रण के लिए बने कानून ``सिगरेट एण्ड अटर टौबैको प्रॉडक्ट्स (प्रोहिबिशन ऑफ एडवराटाईजमेन्ट एण्ड रेगुलेशन ऑफ ट्रेड एण्ड कामर्स, प्रोडक्शन, सप्लाई एण्ड डिस्टीब्यूशन) एक्ट 2003 के तहत उत्पादनों के विज्ञापन हेतु बनाई गई आचार संहिता के उल्लंघन पर पांच साल के कारावास का भी प्रावधान है। बावजूद इसके नेट पर इन प्रतिबंधित चीजों को परोसा जा रहा है।

इस सबसे उलट इंटरनेट के माध्यम से साईबर अपराध को बढावा मिल रहा है। इंटरनेट का इन्द्रजाल इतना अधिक पसर चुका है कि अब इस पर आसानी से नज़र नहीं रखी जा सकती है, जिसका फायदा अपराधी आसानी से उठा रहे हैं। आज अपराधी कंप्यूटर लिट्रेट और कंप्यूटर फ्रेण्डली हो गए हैं। साईबर अपराध के प्रति भारत क्या किसी भी देश की सरकार संजीदा नहीं है जो कि आश्चर्य और भविष्य में होने वाली घटनाओं के लिए सशंकित होने की बात है। भारत में भी साईबर अपराध को बहुत गभीरता से नहीं लिया जा रहा है।

आज इंटरनेट को सत्तर फीसदीं लोगों ने सेक्स और पोर्न देखने सुनने का जरिया बना लिया है। दुनिया भर के देशों को चाहिए कि अब इंटरनेट पर परोसी जाने वाली अश्लीलता को रोकने कानून बनाएं। जागरूकता अभियान चलाकर इंटरनेट के सही इस्तेमाल के मार्ग प्रशस्त किए जाएं। वर्तमान समय में महती जरूरत इस बात की है कि भटकाव के मार्ग पर अग्रसर इंटरनेट को सही दिशा में कैसे लाया जाए।