शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

हरवंश सिंह के जिले का कितना विकास हुआ है इनसे पूछ लो: नाथ


हरवंश सिंह के जिले का कितना विकास हुआ है इनसे पूछ लो: नाथ

मै तो छिंदवाड़ा जिले का ही हूँ: हरवंश सिंह

(हिमांशु कौशल)

सिवनी (साई)। सिवनी को नीचा दिखाने के लिये केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ ने कहा कि छिंदवाड़ा जिले में जो विकास हो रहा है वो आसपास के जिलों का नहीं हो रहा। इस दौरान उनके बाजू में केवलारी विधायक ठाकुर हरवंश सिंह भी बैठे थे तो उन्होंने हरवंश सिंह की ओर इशारा कर कहा कि देखें हरवंश सिंह बाजू में बैठे हैं इनसे पूछ लो इनके जिले का कितना विकास हुआ इस पर हरवंश सिंह ने यह कह दिया कि मैं तो छिंदवाड़ा जिले का ही हूँ।
उक्त वाकया श्री नाथ की पत्रकार वार्ता में 03 सितंबर को हुआ जिसे बहुत से अखबारों ने कवर कर 04 सितंबर के अंक में प्रकाशित किया है। जब यह खबर प्रकाशित हो गयी तो श्री हरवंश सिंह के निज सचिव विज्ञप्ति जारी करते हैं कि नैनपुर-केवलारी-सिवनी-छिंदवाड़ा ब्राडगेज का ठेका हो गया है और विस उपाध्यक्ष श्री सिंह ने रामटेक-गोटेगाँव रेल लाइन की भी मांग की है।
उल्लेखनीय है कि श्री हरवंश सिंह बहुत ही चालाक नेता है। जब जिले के हित मे कोई बड़ा आंदोलन होना होता है तो ये कह देते हैं कि मैं तो संवैधानिक पद पर हूँ आंदोलन में शामिल नहीं हो सकता। फोरलेन को लेकर जितने भी आंदोलन हुए उनमें श्री सिंह संवैधानिक पद पर होने का बहाना बना शामिल नहीं हुए वहीं अन्य जिलों में कांग्रेस ने जो आंदोलन किये उनमें श्री सिंह शामिल होते रहे।
इसी प्रकार जब श्री सिंह को लगता है तो वे ये कह देते हैं कि सिवनी मेरा अपना जिला है और भले ही मैं केवलारी विधानसभा से जीत रहा हूँ पर सिवनी वालों का भी मुझे बहुत प्यार
मिला है और गत दिवस जब छिंदवाड़ा में मौका आया तो श्री सिंह ने यह कह दिया कि मैं तो छिंदवाड़ा जिला का ही हूँ। और जब श्री सिंह द्वारा कही गयी उक्त बात अन्य अखबारों गत दिवस ही प्रकाशित हो गयी तो आज उन्होंने यह विज्ञप्ति जारी कर दी कि छिंदवाड़ा-नैनपुर ब्राड गेज का ठेका हो गया है और उन्होंने रामटेक गोटेगाँव रेल लाइन की भी मांग की है।
विस उपाध्यक्ष द्वारा करवायी गयी विज्ञप्ति में बताया गया है कि उनकी रेल प्रबंधन अधिकारियों के साथ रेलवे सेलून (डिब्बा) में नैनपुर-छिंदवाड़ा ब्राडगेज के संबंध में चर्चा हुई। जिसमें रेल्वे बोर्ड के मेम्बर श्री एके मिश्रा ने उन्हें जानकारी दी किछिंदवाड़ा से सिवनी तक मिट्टी के कार्य (अर्थ वर्क) की निविदा भी आमंत्रित की जा चुकी है, जिससे शीघ्र ही एजेंसी तय कर कार्यादेश दिया जावेगा। उन्होंने अवगत कराया कि छिंदवाड़ा से नैनपुर तक का कार्य लगभग 02 वर्ष के अंदर पूरा हो जावेगा और इस मार्ग पर आने वाले पुल-पुलियों एवं बड़े पुलों का भी शीघ्र ठेका दिया जावेगा। वर्तमान में पुल-पुलियों एवं बड़े पुलों का सर्वे, तकनीकी परीक्षण, रिपोर्ट एवं प्राक्कलन की तैयारी चल रही है।
श्री मिश्रा द्वारा चर्चा के दौरान श्री सिंह को यह भी बताया गया है कि छिंदवाड़ा से नैनपुर ब्राडगेज रेल लाईन 140 किमी के अंतर्गत छिंदवाड़ा से सिवनी के अर्थ वर्क के लिए राशि रूपये 4200 करोड़ का ठेका किया गया है जिसमें निर्माण की अवधि दो वर्ष रखी गयी है जिसके पश्चात इस मार्ग पर आने वाले पुल-पुलियों एवं बड़े पुलों का भी शीघ्र ठेका किया जावेगा। साथ ही उन्होंने अवगत कराया कि आगामी दिसम्बर से मार्च के बीच सिवनी से नैनपुर तक की भी निविदा कर शीघ्र अर्थ वर्क प्रारंभ किया जावेगा।
श्री हरवंश सिंह के निवेदन पर रेल मंत्री ने श्री सिंह को बताया कि अर्थ वर्क, पुल-पुलियों के निर्माण के पश्चात 02 वर्ष में अंदर अन्य सभी कार्य रेल पटरी एवं स्टेशन आदि का कार्य भी पूर्ण किया जावेगा। विधान सभा उपाध्यक्ष एवं केवलारी विधायक श्री हरवंश सिंह ने चर्चा के दौरान रामटेक से गोटेगांव रेल्वे लाईन के सर्वे एवं स्वीकृति की भी मांग रखी।
उक्त चर्चा के दौरान ही विधान सभा उपाध्यक्ष एवं  केवलारी विधायक श्री हरवंश सिंह जी ने केन्द्रीय रेल मंत्री से सिवनी व केवलारी रेल्वे स्टेशन के आदर्श रेल्वे स्टेशन बनाने की भी मांग की है जिस पर विचार करने का भी आश्वासन रेल मंत्री एवं अधिकारियों द्वारा संयुक्त रूप से दिया गया है।
श्री सिंह द्वारा जारी करवायी गयी उक्त विज्ञप्ति के संबंध में एक चर्चा यह भी है कि विस उपाध्यक्ष और रेलवे बोर्ड के अधिकारियो व रेल मंत्री के बीच इस तरह कीकोई बातचीत हुई ही नहीं है किन्तु जब अखबार में अखबारों में यह बात प्रकाशित हो गयी कि श्री सिंह ने पत्रकार वार्ता में स्वयं को छिंदवाड़ा जिले का बताया तो इस माहौल को ठंडा करने श्री सिंह ने रेलवे बोर्ड के अधिकारियों से बातचीत की और आज विज्ञप्ति जारी करा दी कि उन्होंने सेलूून में बात की थी।
उल्लेखनीय है कि श्री सिंह की मीडिया पॉलिसी में यह शामिल है कि जब भी वे जिले के लिये कोई मांग करने जाते हैं तो कुछ कांग्रेसियों के डेलीगेशन को साथ लेकर जाते हैं जिसकी बकायदा विज्ञप्ति प्रकाशित होती है और डेलीगेशन ने क्या ज्ञापन सौपा, क्या बातचीत हुई इसकी विज्ञप्ति भी अगले दिन प्रकाशित होती है। किन्तु इस जब श्री सिंह छिंदवाड़ा गये तो उन्होंने इस आशय की कोई विज्ञप्ति जारी नहीं की कि वे ब्राडगेज की बात करने छिंदवाड़ा जा रहे हैं और जब उन्होंने रेलवे सेलून में छिंदवाड़ा-नैनपुर के संबंध में रेलवे के अधिकारियों से बात की तो उसकी विज्ञप्ति भी उन्होंने 02 दिन बाद जारी करायी।

प्रकृति का शोषण नहीं दोहन करना चाहिए: चौहान


प्रकृति का शोषण नहीं दोहन करना चाहिए: चौहान

(रश्मि सिन्हा)

नई दिल्ली (साई)। प्रकृति का शोषण नहीं दोहन करना चाहिए। प्रकृति को अपनत्व के भाव से देखने की जरूरत है जो कि अभी तक देखा नहीं गया है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान आज यहां नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में प्रदेश में निवेशकों को आमंत्रित करने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। कार्यक्रम में मध्यप्रदेश के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री श्री अजय विश्नोई भी शामिल थे।
श्री चौहान ने निवेशकों को नवीन एवं नवीकरणीय  ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश करने के लिए आमंत्रित करते हुए कहा कि सूर्य के प्रकाश को ऊर्जा में बदला जा सकता है और प्रदेश में इस क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं। इस कार्य के लिए प्रदेश सरकार कटिबद्ध है। इसको राज्य सरकार एक मिशन मानकर चला रही है। श्री चौहान ने बताया कि गुजरात और राजस्थान के बाद मध्यप्रदेश में सूर्य का प्रकाश काफी लम्बे समय तक आता है जिसका  दोहन किया जाना चाहिये। श्री चौहान ने बताया कि पहले मध्यप्रदेश पिछड़े राज्यों की श्रेणी आता था लेकिन अब पिछले आठ साल में हुए विकास कार्यों से अब विकसित राज्यों की श्रेणी में आ गया है। प्रदेश की विकास दर पिछले साल 11.89 प्रतिशत थी और कृषि में विकासदर 18 प्रतिशत हो गयी है। कृषि को  लाभ का धंधा बना दिया है । ऊर्जा के क्षेत्र में भी काफी तरक्की हुई है। आज मध्यप्रदेश 8 हजार मेगावार बिजली का उत्पादन कर रहा है। सन् 2013 तक हर गॉव में 24 घंटे बिजली आपूर्ति का लक्ष्य तय कर कार्य शुरू कर दिये हैं।
श्री चौहान ने बताया कि मध्यप्रदेश नवीकरणीय ऊर्जा- सोलर, वायु, बायोमास, और छोटी पनबिजली योजनाओं को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार ने एक नई योजना बनायी है जिसके अंतर्गत राज्य सरकार द्वारा नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन के लिए विभिन्न रियायतों सहित सरकार द्वारा इस क्षेत्र में उद्योग लगाने के लिए चिन्हित स्थान और अन्य सुविधाएं तय की गयी हैं।
नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री श्री अजय विश्नोई ने निवेशकों को नई नीति के बारे में  बताया और शासन द्वारा इस क्षेत्र में उद्योग लगाने के लिए निवेशकों को हर संभव सहायता देने का आश्वासन दिया। इस अवसर पर राज्य सरकार के ऊर्जा सचिव श्री एस.आर. मोहन्ती, उद्योग आयुक्त श्री राकेश चतुर्वेदी, ऊर्जा विकास निगम के अध्यक्ष श्री विजेन्द्र सिंह सिसोदिया और मध्यप्रदेश ऊर्जा विकास निगम के प्रबंध संचालक श्री मनु श्रीवास्तव भी उपस्थित थे।

चौहान ने की दत्त से भेंट


चौहान ने की दत्त से भेंट

(विपिन सिंह राजपूत)

नई दिल्ली (साई)। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान से दिल्ली में ओलम्पिक पदक विजेता पहलवान श्री योगेश्वर दत्त ने सौजन्य भेंट की। श्री चौहान ने श्री योगेश्वर दत्त को बरफी खिलाई और विश्व कुश्ती में देश का नाम रोशन करने की बधाई दी। उन्होंने मध्यप्रदेश मेें कुश्ती अकादमी में सहयोग करने का आग्रह किया जिसे श्री योगेश्वर दत्त ने सहर्ष स्वीकार किया।

रामगोपाल का भूत रिटर्न


रामगोपाल का भूत रिटर्न

(दीपक अग्रवाल)

मुंबई (साई)। 2003 में रिलिज हुई रामगोपाल वर्मा की फिल्म भूत का सिक्वल भी तैयार हो गया है। भूत रिटर्न्स नाम से रिलीज होने जा रही इस पिल्म का पोस्टर लांच किया गया। पोस्टर में बच्ची की तस्वीर को देखर आपका सर घूम जाएगा। वर्मा ने अपनी चर्चित फिल्म भूत रिटर्न्स का यह इनोवेटिव पोस्टर जारी किया है। ओठों से खून निकलती इस बच्ची के पोस्टर में ऑप्टिकल इलूज़न टेक्नीक का इस्तेमाल किया गया है।
इससे बच्ची की आंखों के आसपास देखने पर दृष्टि भ्रम होता है। बच्ची की चार-चार आंखें व दो नाक नजर आती हैं। वर्मा फिल्म के इस पोस्टर के जरिए दर्शकों को 2003 में रिलीज हुई भूत के इस सीक्वल की एक झलक दिखाना चाहते हैं। भूत रिटर्न्स में मनीषा कोइराला और साउथ के ऐक्टर जेडी चक्रवर्ती हैं। फिल्म 12 अक्टूबर को रिलीज होगी। इसे तमिल और तेलुगू में भी रिलीज किया जाएगा।

जल-जमनी: जमा दे पानी भी


हर्बल खजाना ----------------- 17

जल-जमनी: जमा दे पानी भी

(डॉ दीपक आचार्य)

अहमदाबाद (साई)। जंगलों, खेतों की बाड, छायादार स्थानों और घरों के इर्द-गिर्द पायी जाने वाली इस अनोखी वनस्पति को न जाने आपने कितनी बार देखा हो लेकिन इसकी औषधिय महत्ता को कम लोग ही जानते है। इस वनस्पति का वैज्ञानिक नाम कोक्युलस हिरसुटस है।
जल को जमा देने के गुण की वजह से इसे जल-जमनी कहा जाता है। यदि इसकी कुछ पत्तियों को लेकर कुचल लिया जाए और इसे पानी में मिला दिया जाए तो कुछ ही देर में पानी जम जाता है अर्थात पानी एक जैली की तरह हो जाता है। आदिवासीयों का मानना है कि इस मिश्रण को यदि मिश्री के साथ प्रतिदिन लिया जाए तो पौरुषत्व प्राप्त होता है।
य़ही फ़ार्मुला गोनोरिया के रोगी के लिये भी बडा कारगर है। पत्तियों के काढे का सेवन दस्त, ल्युकोरिया और पेशाब संबंधित तमाम रोगों के निवारण के लिये किया जाता है। पातालकोट के आदिवासी जल-जमनी की पत्तियों और जडों को अच्छी तरह पीसकर जोडों के दर्द में आराम के लिये उपयोग में लाते है। यदि इसी मिश्रण में अदरख और शक्कर मिलाकर लिया जाए तो यह अपचन और कब्जियत में फ़ायदा देता है।
डाँग- गुजरात के आदिवासी सर्पदंश होने पर दंशित व्यक्ति को जल-जमनी की जडें (१० ग्राम) और काली मिर्च (४ ग्राम) को पानी में पीसकर रोगी को प्रत्येक १५ मिनट के अंतराल से पिलाते है। आदिवासियों का मानना है कि इस मिश्रण को देने से उल्टियाँ होती है और जहर का असर कम होने लगता है। (साई फीचर्स)

(लेखक हर्बल मामलों के जाने माने विशेषज्ञ हैं)

अधिग्रहण की खबरों से गिर गए थे आईडिया के शेयर


एक आईडिया जो बदल दे आपकी दुनिया . . .  17

अधिग्रहण की खबरों से गिर गए थे आईडिया के शेयर

साल की शुरूआत में आईडिया सेल्युलर के शेयर में आई थी 4.52 फीसदी की गिरावट

(नन्द किशोर)

भोपाल (साई) दूरसंचार सेवा प्रदाता कम्पनी आईडिया सेल्युलर द्वारा विलय और अधिग्रहण सम्बंधी नियमों का उल्लंघन करने की खबर आने और छह सर्किलों में उनके लाइसेंस रद्द किए जाने की आशंका के बीच इस साल के आरंभ में इसके शेयरों में बम्बई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) में 4.84 फीसदी की गिरावट देखी गई। उस वक्त कहा जा रहा था कि अक्टूबर 2008 में स्पाइस टेलीकॉम के अधिग्रहण में अनियमितता बरतने के कारण आईडिया पर 300 करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया जा सकता है। अतिरिक्त महाधिवक्ता ने दूरसंचार विभाग से कहा था कि कानून के मुताबिक लाइसेंस हासिल करने वाली कम्पनी तीन साल तक हिस्सेदारी नहीं बेच सकती है, जिसका आईडिया और स्पाइस ने उल्लंघन किया है।
महाधिवक्ता ने विभाग से कहा है कि चूकि स्पाइस को जनवरी 2008 में ही लाइसेंस आवंटित किया जा चुका था। इसलिए इसलिए सेवा शुरू नहीं किये जाने के कारण स्पाइस का अधिग्रहण करने वाली आइडिया को 300 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया जाना चाहिए। आईडिया और स्पाइस को 25 जनवरी, 2008 को क्रमशः दो और चार सर्किलों के लाइसेंस आवंटित किए गए थे, इसलिए दोनों कम्पनियां जनवरी 2011 तक विलय नहीं कर सकती थीं। आईडिया ने 2008 में स्पाइस कम्युनिकेशंस में बहुमत हिस्सेदारी खरीद ली थी।
कानून अधिकारी ने कहा कि कम्पनी ने एक ही सर्किल में दो कम्पनियों में 10 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी रखकर भी कानून का उल्लंघन किया है। आईडिया ने एक बयान जारी कर हालांकि कानून का उल्लंघन करने के आरोप को खारिज किया है और कहा है कि दूरसंचार विभाग की अनुमति से विलय किया गया था।

(क्रमशः जारी)

वास्तु की नजर में कोणार्क का सूर्य मंदिर


वास्तु की नजर में कोणार्क का सूर्य मंदिर

(पंडित दयानन्द शास्त्री)

नई दिल्ली (साई)। भारत में अनेक धर्म एवं जातियां हैं तथा वे सभी किसी न किसी शक्ति की पूजा आराधना करते हैं। सबकी विधियां अलग हैं परंतु सभी एक ऐसे एकांत स्थान पर आराधना करते हैं, जहां पूर्ण रूप से ध्यान लगा सकें, मन एकाग्र हो पाए। इसीलिए मंदिर निर्माण में वास्तु का बहुत ध्यान रखा जाता है। यदि हम भारत के प्राचीन मंदिरों पर नजर डालें तो पता चलता है कि सभी का वास्तुशिल्प बहुत अधिक सुदृढ़ था। वहां भक्तों को आज भी आत्मिक शांति प्राप्त होती है। वैष्णों देवी मंदिर, ब्रदीविशाल जी का मंदिर, तिरुपति बालाजी का मंदिर,
नाथद्वारा  स्थित श्रीनाथ जी का मंदिर व उज्जैन स्थित भगवान महाकाल का मंदिर कुछ ऐसे मंदिर हैं जिनकी ख्याति व मान्यता दूर दूर तक, यहां तक कि विदेशों में भी, है। ये सभी मंदिर वास्तु नियमानुसार बने हैं तथा प्राचीनकाल से वैसी ही स्थिति में खड़े हैं।
इसका विमीण 1250 ए. डी. में पूर्वी गंगा राजा नरसिंह देव - 1 (ए. डी. 1238 - 64) के कार्यकाल में किया गया था।
राजा के आदेश अनुसार बारह सौ वास्तुकारों और कारीगरों को तैयार किया गया व राजा ने इसे बनवाने के लिए खूब धन लगाया परंतु निर्माण उचित प्रकार से नहीं हो पा रहा था व भव्यता का अभाव था तब राजा ने कडे शब्दों में एक निश्चित तिथि तक मंदिर का निर्माण कार्य संपूर्ण करने का आदेश दिया. मंदिर का कार्य बिसु महाराणा के निर्देश अनुसार हो रहा था और उसके वास्तुकारों ने पूर्ण रूप से अपना सारा कौशल इस निर्माण मे लगा दिया था परंतु कोई हल नजर न आया. बिसु महाराणा का पुत्र धर्म पाद जो केवल बारह वर्ष का था मंदिर के कार्य हेतु आगे आया उसे निर्माण के बारे में ज्यादा व्यवहारिक ज्ञान तो नही था परंतु उसे मंदिर स्थापत्य के शास्त्रों का पूर्ण ज्ञान था और उसने इस कार्य को करना चाहा. उसने तब तक के हुए निर्माण कार्य का गहन निरीक्षण किया तथा मंदिर के अंतिम केन्द्रीय शिला लगाने की समस्या को दूर कर दिखाया व सभी को आश्चर्यचकित कर दिया किंतु इसके तुरन्त बाद ही इस विलक्षण प्रतिभावान का शव मिला. कहते हैं कि धर्मपाद ने अपनी जाति के हितार्थ के लिए अपनी जान दी. यह सोचकर कि उसके इस कार्य से सारे स्थपतियों की अपकीर्ति होगी व राजा उन पर क्रोधीत होगा ओर उन्हे सजा मिलेगी उसने मंदिर के शिखर से कूदकर आत्महत्या कर ली.
एक अन्य स्थानीय अनुश्रुति है कि मंदिर के शिखर में कुंभर पाथर नामक चुंबकीय शक्ति से युक्त पत्थर लगा था और उसके प्रभाव स्वरूप इसके निकट से समुद्र में जानेवाले जहाज व नौकाएँ स्वयं ही खिंची चली आती थीं व टकराकर नष्ट हो जाती थीं. इसके अतिरिक्त कहा जाता है कि काला पहाड़ नामक प्रसिद्ध आक्रमणकारी ने इस मंदिर को ध्वस्त किया था  किंतु परन्तु इस घटना का कोई एतिहासिक विवरण नहीं मिलता.
इसमें कोणार्क सूर्य मंदिर के दोनों और 12 पहियों की दो कतारें है। इनके बारे में कुछ लोगों का मत है कि 24 पहिए एक दिन में 24 घण्घ्टों का प्रतीक है, जबकि अन्घ्य का कहना है कि ये 12 माह का प्रतीक हैं। यहां स्थित सात अश्घ्व सप्घ्ताह के सात दिन दर्शाते हैं। समुद्री यात्रा करने वाले लोग एक समय इसे ब्घ्लैक पगोडा कहते थे, क्घ्योंकि ऐसा माना जाता है कि यह जहाज़ों को किनारे की ओर आकर्षित करता था और उनका नाश कर देता था।   

सूर्य मंदिर कोणार्क

कोणार्क का सूर्य मंदिर पुरी के पवित्र शहर के पास पूर्वी ओडिशा राज्घ्य में स्थित है और यह सूर्य देवता को समर्पित है। यह सूर्य देवता के रथ के आकार में बना एक भव्घ्य भवन है; इसके 24 पहिए सांकेतिक डिजाइनों से सज्जित हैं और इसे छरू अश्घ्वखींच रहे हैं। यह ओडिशा की मध्घ्यकालीन वास्घ्तुकला का अनोखा नमूना है और भारत का सबसे प्रसिद्ध ब्राह्मण तीर्थ है।
यह जगन्नाथ पुरी से 36 किलोमीटर दूर समुद्र के निकट बना हुआ है। कभी यह सूर्य उपासना का प्रधान पीठ हुआ करता था। इसका निर्माण सन् 1200 ई. में उत्कल नरेश लांगुला नरसिंह देव जी ने किया था। इसे 12 वर्ष में लगभग 1 हजार से अधिक शिल्पियों ने कड़ी मेहनत से तैयार किया था। इस मंदिर की नक्काशी, कारीगरी एवं खुदाई का कौशल देखकर प्रत्येक व्यक्ति दंग रह जाता है। इस मंदिर का निर्माण एक रथ आकृति में करवाया गया था। इसमें 24 पहिए हैं। प्रत्येक पहिए में 8 आरा हैं और इस पहिए का व्यास लगभग 10 फुट है। सभी पहियों का शिल्प उत्कृष्ट कला का नमूना है। सभी पहिए एक लाट से जुड़े हुए हैं। दोनों तरफ 12-12 पहिए हैं।
स्थापत्य कला के रूप में यह विश्व की अनमोल कृति है. मंदिर सूर्य देवता को समर्पित अभिकल्पना मे सूर्य देव के रथ के रूप में प्रतिबिंबित किया गया है. उत्कृष्ट नक्काशी द्वारा संपूर्ण मंदिर स्थल को एक बारह जोड़ी चक्रों वाले सात घोड़ों से खींचे जाते सूर्य देव के रथ के का रूप दर्शाया गया है़. परंतु अनेक विपदाओं को झेलते हुए अब इनमें से एक ही अश्व (घोड़ा) बचा है. मंदिर के यह बारह चक्र वर्ष के बारह महीनों को प्रतिबिंबित करते हैं तथा प्रत्येक चक्र आठ अरों से मिल कर बना है जो दिन के आठ पहर को दर्शाते हैं इस रथ के पहिए कोणार्क की पहचान हैं.
यह मंदिर तीन मंडपों में बना हुआ है। दो मंडप ढह चुके हैं। आजादी से पूर्व एक अंग्रेज अधिकारी ने जहां प्रतिमा थी उस मुख्य मंडप को रेत व पत्थर भरवाकर चारों तरफ से बंद करवा दिया। सभी दरवाजों को भी चुनाई करवाकर स्थायी रूप से बंद करवा दिया ताकि यह मंदिर व मंडप सुरक्षित रह सकें। इस मंदिर में सूर्य भगवान की तीन प्रतिमाएं हैं- बाल्यावस्था - उदित सूर्य - इनकी ऊंचाई लगभग 8 फुट है। युवावस्था - मध्याह्न सूर्य - इनकी ऊंचाई लगभग साढ़े 9 फुट है। प्रौढ़ावस्था - अस्त सूर्य - इनकी ऊंचाई लगभग साढ़े 3 फुट है। इस मंदिर में मुख्य प्रवेश द्वार के दोनों तरफ दोनों हाथियों को ऐश्वर्य पूर्व शेर ने दबा रखा है। यह प्रतिमा एक ही पत्थर से बनी है। लगभग 28 टन वजनी इस प्रतिमा की लंबाई 8.4 फुट, चौड़ाई 4.9 फुट और ऊंचाई 9.2 फुट है।
कोणार्क का मंदिर न केवल अपनी वास्घ्तुकलात्घ्मक भव्घ्यता के लिए जाना जाता है बल्कि यह शिल्घ्पकला के गुंथन और बारीकी के लिए भी प्रसिद्ध है। यह कलिंग वास्घ्तुकला की उपलब्धियों का उच्घ्चतम बिन्घ्दु है जो भव्घ्यता, उल्घ्लास और जीवन के सभी पक्षों का अनोखा ताल मेल प्रदर्शित करता है।
इस मंदिर मे सूर्य देव की भव्य यात्रा को दर्शाया गया है मंदिर में सूर्य भगवान की तीन प्रतिमाएं स्थापित है जो उनकी बाल्यावस्था उदित सूर्य, युवावस्था मध्याह्न सूर्य और प्रौढावस्था अस्त सूर्य को दर्शाती हैं. मंदिर तीन मंडपों में बना है जिसमें से दो मण्डप नष्ट हो चुके हैं. मंदिर के प्रवेश पर दो सिंहों की मूर्तियां हैं जो हाथियों पर आक्रामक होते हुए रक्षा में तत्पर दिखाई देती हैं. दोनों हाथी जो मानव के ऊपर स्थापित हैं ये प्रतिमाएं एक ही पत्थर की बनीं हैं दिखने में बहुत ही सुंदर प्रतीत होती हैं. मंदिर के दक्षिणी भाग में दो सुसज्जित घोड़े बने हैं जिनकी शोभा से प्रभावित हो उड़ीसा की सरकार ने इन्हें अपने राजचिह्न के रूप में अपना लिया है.
मंदिर के दक्षिण भाग में दो सुसज्जित एवं अलंकृत घोड़े बने हुए हैं। प्रत्येक घोड़ा 10 फुट लंबा एवं 7 फुट चौड़ा है। इन्हें उड़ीसा सरकार ने अपनी राजकीय मोहर के रूप में स्वीकार किया है। मंदिर परिसर में नृत्यशाला, मायादेवी मंदिर और छाया देवी मदिर एवं आग्नेय क्षेत्र में विशाल कुआं हैं। आठ सौ वर्ष पुराना यह मंदिर बिना किस सीमेंट या मसाले के पत्थर व लोहे से बनाया गया था। यह मंदिर अपने वास्तु दोषों के कारण समय से पूर्व ही कान्तिविहीन हो गया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि जहां कहीं भी वास्तु दोष होगा, वहां वह अपना प्रभाव अवश्य दिखाएगा। चाहे वह कोई देवालय हो अथवा आम व्यक्ति का निवास स्थान।
तेरहवीं सदी का यह सूर्य मंदिर एक महान रचना है. यह मंदिर भारत के उत्कृष्ट स्मारक स्थलों में गिना जाता है यहां की  स्थापत्य कला  वैभव से पूर्ण आश्चर्यचकित करने वाली है. मंदिर अद्वितीय सुंदरता तथा अनेकों शिल्प आकृतियां जो देवताओं, दरबार की छवियों, मानवों, वाद्यकों, शिकार व युद्ध चित्रों से भरी हुई हैं. इसके अतिरिक्त मंदिर में महीन बेल बूटे तथा ज्यामितीय नमूने अलंकृत हैं यह मंदिर कामुक मुद्राओं युक्त शिल्पाकृतियों के लिये भी प्रसिद्ध है. जिसमें आकर्षक रूप से एक यथार्थवाद का संगम दिखाई देता है.
 मंदिर की प्रत्येक इंच, अद्वितीय सुंदरता और शोभा की शिल्पाकृतियों से परिपूर्ण है। इसके विषय भी मोहक हैं, जो सहस्रों शिल्प आकृतियां भगवानों, देवताओं, गंधर्वों, मानवों, वाद्यकों, प्रेमी युगलों, दरबार की छवियों, शिकार एवं युद्ध के चित्रों से भरी हैं। इनके बीच बीच में पशु-पक्षियों (लगभग दो हज़ार हाथी, केवल मुख्य मंदिर के आधार की पट्टी पर भ्रमण करते हुए) और पौराणिक जीवों, के अलावा महीन और पेचीदा बेल बूटे तथा ज्यामितीय नमूने अलंकृत हैं। उड़िया शिल्पकला की हीरे जैसी उत्कृष्त गुणवत्ता पूरे परिसर में अलग दिखाई देती है।
 मंदिर की प्रत्येक इंच, अद्वितीय सुंदरता और शोभा की शिल्पाकृतियों से परिपूर्ण है। इसके विषय भी मोहक हैं, जो सहस्रों शिल्प आकृतियां भगवानों, देवताओं, गंधर्वों, मानवों, वाद्यकों, प्रेमी युगलों, दरबार की छवियों, शिकार एवं युद्ध के चित्रों से भरी हैं। इनके बीच बीच में पशु-पक्षियों (लगभग दो हज़ार हाथी, केवल मुख्य मंदिर के आधार की पट्टी पर भ्रमण करते हुए) और पौराणिक जीवों, के अलावा महीन और पेचीदा बेल बूटे तथा ज्यामितीय नमूने अलंकृत हैं। उड़िया शिल्पकला की हीरे जैसी उत्कृष्त गुणवत्ता पूरे परिसर में अलग दिखाई देती है।
यह मंदिर अपनी कामुक मुद्राओं वाली शिल्पाकृतियों के लिये भी प्रसिद्ध है।इस प्रकार की आकृतियां मुख्यतः द्वारमण्डप के द्वितीय स्तर पर मिलती हैं। इस आकृतियों का विषय स्पष्ट किंतु अत्यंत कोमलता एवं लय में संजो कर दिखाया गया है। जीवन का यही दृष्टिकोण, कोणार्क के अन्य सभी शिल्प निर्माणों में भी दिखाई देता है। हजारों मानव, पशु एवं दिव्य लोग इस जीवन रूपी मेले में कार्यरत हुए दिखाई देते हैं, जिसमें आकर्षक रूप से एक यथार्थवाद का संगम किया हुआ है। यह उड़ीसा की सर्वाेत्तम कृति है। इसकी उत्कृष्ट शिल्प-कला, नक्काशी, एवं पशुओं तथा मानव आकृतियों का सटीक प्रदर्शन, इसे अन्य मंदिरों से कहीं बेहतर सिद्ध करता है।
कोणार्क के सूर्य मंदिर का महत्त्व----
यह मंदिर सूर्यदेव (अर्क) को समर्पित था, जिन्हें स्थानीय लोग बिरंचि-नारायण कहते थे। यह जिस क्षेत्र में स्थित था, उसे अर्क-क्षेत्र या पद्म-क्षेत्र कहा जाता था। पुराणानुसार, श्रीकृष्ण के पुत्र साम्बको उनके श्राप से कोढ़ रोग हो गया था। साम्ब ने मित्रवन में चंद्रभागा नदी के सागर संगम पर कोणार्क में, बारह वर्ष तपस्या की, और सूर्य देव को प्रसन्न किया। सूर्यदेव, जो सभी रोगों के नाशक थे, ने इसका रोग भी अन्त किया। उनके सम्मान में, साम्ब ने एक मंदिर निर्माण का निश्चय किया। अपने रोग-नाश के उपरांत, चंद्रभाग नदी में स्नान करते हुए, उसे सूर्यदेव की एक मूर्ति मिली। यह मूर्ति सूर्यदेव के शरीर के ही भाग से, देवशिल्पी श्री विश्वकर्मा ने बनायी थी। साम्ब ने अपने बनवाये मित्रवन में एक मंदिर में, इस मूर्ति की स्थापना की। तब से यह स्थान पवित्र माना जाने लगा।
 ध्वस्त होने का  कारण अनेक वास्तु दोष----
-यह मंदिर अपने वास्तु दोषों के कारण मात्र 800 वर्षों में ही ध्वस्त हो गया। यह इमारत वास्तु-नियमों के विरुद्ध बनी थी। इस कारण ही यह समय से पहले ही ऋगवेदकाल एवं पाषाण कला का अनुपम उदाहरण होते हुए भी समय से पूर्व धराशायी हो गया। इस मंदिर के मुख्य वास्तु दोष हैंरू-
-वास्तु नियमों के विरुद्ध बना होने से विश्व की प्राचीनतम इमारतों में से एक यह सूर्य मंदिर, जो ऋग्वेद काल एवं पाषाण कलाकृति का अनुपम व बेजोड़ उदाहरण है , समय से पूर्व ही धाराशायी हो गया। यह मंदिर अपना वास्तविक रूप खो चुका है। वर्तमान में यह विश्व सांस्कृतिक विरासत के रूप में संरक्षित है। इससे थोड़ी दूर पर समुद्र है जो चंद्रभागा के नाम से प्रसिद्ध है। यह स्थान भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र की दंतकथा के कारण भी प्रसिद्ध है।
-कोणार्क सूर्य मंदिर के मुख्य वास्तु दोष दक्षिण-पश्चिम कोण में छाया देवी मंदिर की नींव प्रधानालय की अपेक्षा काफी कम ऊंचाई में है। उसके र्नैत्य भाग में मायादेवी का मंदिर और नीचे भाग में है। पूर्व से देखने पर पता लगता है कि ईशान, आग्नेय को काटकर वायव्य, र्नैत्य की ओर बढ़ा हुआ है। प्रधान मंदिर के पूर्वी द्वार के सामने नृत्यशाला है जिससे पूर्व द्वार अनुपयोगी सिद्ध हुआ।
-मंदिर का निर्माण रथ आकृति होने से पूर्व, दिशा, एवं आग्नेय एवं ईशान कोण खंडित हो गए।
-पूर्व से देखने पर पता लगता है, कि ईशान एवं आग्नेय कोणों को काटकर यह वायव्य एवं नैऋर्त्य कोणों की ओर बढ़ गया है।
-प्रधान मंदिर के पूर्वी द्वार के सामने नृत्यशाला है, जिससे पूर्वी द्वार अवरोधित होने के कारण अनुपयोगी सिद्ध होता है।
-नैऋर्त्य कोण में छायादेवी के मंदिर की नींव प्रधानालय से अपेक्षाकृत नीची है। उससे नैऋर्त्य भाग में मायादेवी का मंदिर और नीचा है।
-क्षेत्र में विशाल कुआं स्थित है।
-दक्षिण एवं पूर्व दिशाओं में विशाल द्वार हैं, जिस कारण मंदिर का वैभव एवं ख्याति क्षीण हो गई हैं।
-मंदिर का निर्माण रथ की आकृति में होने के कारण पूर्व, ईशान व आग्नेय दिशाएं खंडित हो गई हैं। आग्नेय क्षेत्र में विशाल कुआं स्थित है। मायादेवी और छाया देवी के मंदिर प्रधान मंदिर से कम ऊंचाई पर र्नैत्य क्षेत्र में हैं। दक्षिण व पूर्व दिशा में विशाल द्वार हैं जिसके कारण मंदिर का वैभव व ख्याति क्षीण हो गई है।
-भारत के ईशान और पूर्वी भाग पश्चिम से कुछ नीचे झुके हुए तथा बढ़े हुए होने के कारण ही यह देश अपने आध्यात्म, संस्कृति दर्शन तथा उच्च जीवन मूल्यों एवं धर्म से समस्त विश्व को सदैव प्रभावित करता रहा है। वास्तु का प्रभाव मंदिरों पर भी होता है, विश्व प्रसिध्द तिरूपति बालाजी का मंदिर वास्तु सिध्दांतों का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है, वास्तुशास्त्र की दृष्टि से यह मंदिर शत प्रतिशत सही बना हुआ है।
इसी कारण यह संसार का सबसे धनी एवं ऐश्वर्य सम्पन्न मंदिर है जिसकी मासिक आप करोड़ों रुपये है। यह मंदिर तीन ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ है किन्तु उत्तर और ईशान नीचा है। वहां पुष्करणी नदी है, उत्तर में आकाश गंगा तालाब स्थित है जिसके जल से नित्य भगवान की मूर्ति को सृजन  कराया जाता है। मंदिरों पूर्वमुखी है और मूर्ति पश्चिम में पूर्व मुखी रखी गई है।
-इसके ठीक विपरीत कोणार्क का सूर्य मंदिर है। अपनी जीवनदायिनी किरणों से समस्त विश्व को ऊर्जा, ताप और तेज प्रदान करने वाले भुवन भास्कर सूर्य के इस प्राचीन अत्यन्त भव्य मंदिर की वह भव्यता, वैभव और समृध्दि अधिक समय तक क्यों नहीं टिक पायीं? इसका कारण वहां पर पाये गये अनेक वास्तु दोष हैं। मुख्यतः मंदिर का निर्माण स्थल अपने चारों ओर के क्षेत्र से नीचा है। मंदिर के भूखण्ड में उत्तरी वायव्य एवं दक्षिणी नैऋत्य बढ़ा हुआ है जिनसे उत्तरी ईशान एवं दक्षिणी आग्नेय छोटे हो गये हैं। रथनुमा आकार के कारण मंदिर का ईशान और आग्नेय कट गये हैं तथा आग्नेय में कुआं है। इसी कारण भव्य और समृध्द होने पर भी इस मंदिर की ख्याति, मान्यता एवं लोकप्रियता नहीं बढ़ सकी।
-कुछ विद्वान मुख्य मंदिर के टूटने का कारण इसकी विशालता व डिजाइन में दोष बताते हैं जो रेतीली भूमि में बनने के कारण धंसने लगा था लेकिन इस बारे में एक राय नहों है। कुछ का यह मानना है कि यह मंदिर कभी पूर्ण नहीं हुआ जब कि आईने अकबरी में अबुल फजल ने मंदिर का भ्रमण करके इसकी कीर्ति का वर्णन किया है। कुछ विद्वानों का मत है कि काफी समय तक यह मंदिर अपने मूल स्वरूप में ही था। बिन्टिश पुराविद् फर्गुसन ने जब 1837 में इसका भ्रमण किया था तो उस समय मुख्य मंदिर का एक कोना बचा हुआ था जिसकी ऊँचाई उस समय 45 मीटर बताई गई। कुछ विद्वान मुख्य मंदिर के खंडित होने का कारण पन्कृति की मार यथा भूकंप व समुद्री तूफान आदि को मानते हैं लेकिन इस क्षेत्र में भूकंप के बाद भी निकटवर्ती मंदिर कैसे बचे रह गए यह विचारणीय है। गिरने का अन्य कारण इसमें कम गुणवत्ता का पत्थर प्रयोग  होना भी है जो काल के थपेडों व इसके भार को न झेल सका। किंतु एक सर्वस्वीकार्य तथ्य के अनुसार समुदन् से खारे पानी की वाष्प युक्त हवा के लगातार थपेडों से मंदिर में लगे पत्थरों का क्षरण होता चला गया और मुख्य मंदिर ध्वस्त हो गया।
चुम्बकपत्थर----
मंदिर के इतिहास के जानकार यह भी दावा करते हैं कि पहले सूर्य मंदिर के शिखर पर एक चुम्बकीय पत्थर लगा था. इस पत्थर के प्रभाव से कोणार्क के समुद्र से गुजरने वाले सागरपोत इस ओर खिंचे चले आते थे, जिससे उन्हें भारी क्षति हो जाती थी. कुछ जानकारों का यह भी कहना है कि इस पत्थर के कारण पोतों के चुंबकीय दिशा निरूपण यंत्र सही दिशा नहीं बताते थे. इस कारण अपने पोतों को बचाने के लिए मुसलिम नाविक इस पत्थर को निकाल ले गये. मंदिर के शिखर पर लगा यह पत्थर एक केंद्रीय शिला का कार्य कर रहा था, जिससे मंदिर की दीवारों के सभी पत्थर संतुलन में थे. इसके हटने के कारण, मंदिर की दीवारों का संतुलन बिगड़ गया और वे गिर पड़ीं.
(साई फीचर्स)

सोनिया बिन नहीं लग रहा पीएम का मन!


सोनिया बिन नहीं लग रहा पीएम का मन!

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह एक बार फिर अपने आप को असहाय ही महसूस करने लगे हैं। कोल गेट की तलवार उनके सर पर लटक रही है। कोयले की सुलगती आग को कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी ने थामा तब जाकर मनमोहन के मन में चैन आया पर अचानक ही वे सब कुछ छोड़कर अमरीका अपने इलाज के लिए रवाना हो गईं। सोनिया के जाते ही मनमोहन के चेहरे की हवाईयां एक बार फिर उड़ने लगी हैं।
कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ के सूत्रों का कहना है कि पहले तो सोनिया गांधी ने विपक्षी दलों से मिलकर उनका पक्ष जानना चाहा कि आखिर विपक्ष इस मामले में क्या चाहता है। विमर्श के उपरांत जब चर्चा का लब्बो लुआब यह निकलकर आया कि कोल ब्लाक रद्द कर दिए जाएं तब सोनिया इसके लिए राजी हो गईं। सोनिया ने सर्वोच्च न्यायालय के एक सिटिंग जज से इसकी जांच का मन भी बना लिया था।
इस सब कवायद के उपरांत सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी और प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह से भेंट की। इन दोनों से भेंट के उपरांत ना जाने कौन सा नाटकीय मोड इस पूरे मामले में आया कि सोनिया ने सभी को अधर में छोड़ा और विदेश कूच कर गईं। विपक्ष असमंजस में है कि जब चर्चा का सिरा सोनिया ने अपने हाथ में थामा था, फिर उनके चेकप के लिए विदेश जाने के उपरांत अब वे अपनी बात कहें तो किससे?
उधर, सोनिया के जाते ही मनमोहन सिंह के चेहरे की हवाईयां भी उड़ने लगी हैं। पीएम को भरोसा था कि इस विषम और प्रतिकूल परिस्थितियों में सोनिया ही उनकी तारणहार साबित होंगी। वैसे भी सोनिया ने विपक्षी दलों को अपने घर बुलाकर चर्चा का रास्ता खोला था। उस वक्त लगने लगा था कि गतिरोध टूट जाए किन्तु अब उनके रहस्यमयी बीमारी के इलाज के लिए विदेश रवाना होते ही पीएम असहाय ही दिख रहे हैं।
उधर, सीबीआई ने किसके इशारे पर महाराष्ट्र की सूबाई कांग्रेस के क्षत्रप कहे जाने वाले दर्डा बंधुओं पर छापे की गाज गिराई है यह भी शोध का ही विषय है। कहा जा रहा है कि चूंकि अब महाराष्ट्र में दर्डा बंधुओं के स्वामित्व वाले लोकमत समूह का एकाधिकार समाप्त हो गया है। महाराष्ट्र में हिन्दी और मराठी भाषा में दैनिक भास्कर समूह ने धमाकेदार आमद दी है, इसलिए अब कांग्रेस के अंदर लोकमत समूह का खौफ भी समाप्त हो चुका है।
वहीं दूसरी ओर सांसद विजय दर्डा द्वारा हाल ही में गुजरात के निजाम नरेंद्र मोदी को शेर भी कहा गया था। माना जा रहा है कि विजय दर्डा के कद को साईज में लाने की गरज से ही कांग्रेस के इशारे पर राजेंद्र और विजय दर्डा पर सीबीआई की नजरें इनायत हुई हैं। इन छापों से दर्डा बंधु मुश्किलों में घिरे दिख रहे हैं।
महाराष्ट्र के सियासी हल्कों में चल रही चर्चाओं को अगर सच माना जाए तो कोयले की इस दलाली में अनेक सफेदपोश जनसेवकों, नौकरशाहों के साथ ही साथ इनकी देहरी पर पैसों की थाप पर मुजरा करने वाले अनेक मीडिया मुगलों के चेहरों पर भी इसकी कालिख लगने से इंकार नहीं किया जा सकता है। कहा जा रहा है कि अब लोकमत समूह के मालिक दर्डा बंधुओं द्वारा दैनिक भास्कर के 865 करोड़ के कोयले घोटाले पर से परतें उठाना आरंभ किया जा रहा है।

दिग्विजय कमल नाथ में बढ़ीं दूरियां!


दिग्विजय कमल नाथ में बढ़ीं दूरियां!

(नन्द किशोर)

भोपाल (साई)। एक समय मध्य प्रदेश में बडे भाई (कमल नाथ) और छोटे भाई (राजा दिग्विजय सिंह) की जुगल जोड़ी ने दस साल लगातार राज किया। दोनों ही की आपसी समझबूझ इतनी गजब की थी कि उस वक्त के राजनैतिक चाणक्य कुंवर अर्जुन सिंह भी इनकी जुगल जोड़ी को हिला नहीं पाए थे। पिछले कुछ समय से राजा दिग्विजय सिंह और कमल नाथ के बीच सामंजस्य का अभाव साफ देखा जा रहा है।
2003 में मध्य प्रदेश में कांग्रेस के पांव उखड़़ने के बाद केंद्र की राजनीति में कूच कर गए राजा दिग्विजय सिंह ने अपना कद प्रदेश स्तर से नेशनल लेबल का कर लिया है। राजनैतिक दांव पेंच में माहिर राजा दिग्विजय सिंह इस समय भी कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्रों 10 जनपथ (श्रीमति सोनिया गांधी का सरकारी आवास) और 12, तुगलक लेन (राहुल गांधी का सरकारी आवास) की आंखों के नूर बने हुए हैं।
बताया जाता है कि केंद्र में सियासी क्षत्रप बन चुके कमल नाथ के मन में मध्य प्रदेश का निजाम बनने की तमन्नाएं आज भी हिलोरे मार रही हैं। यहां उल्लेखनीय है कि वर्ष 1993 और 1998 में दिग्विजय सिंह अगर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे तो कमल नाथ की बदौलत।
कल तक ग्वालियर के महाराजा ज्योतिरादित्य सिंधिया को परोक्ष तौर पर पानी पी पी कर कोसने वाले राजा दिग्विजय सिंह का सुर अब बदला बदला नजर आ रहा है। एमपी में कांग्रेस को जिलाने के लिए अब राजा को महाराजा से भी कोई परहेज नहीं है। राजा का मानना है कि अगर पार्टी आलाकमान मध्यप्रदेश के वर्ष 2013 में होने वाले विधानसभा चुनावों में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में उतारता है, तो वह उनका पूरा समर्थन करेंगे।
राजा के महाराजा के प्रति इस तरह की सार्वजनिक बयानबाजी से कांग्रेस की सियासत में तेजी से उबाल दिख रहा है। राजा के इस कथन के बाद कमल नाथ समर्थक असमंजस में हैं कि आखिर छोटे भाई को हो क्या गया है, जो बड़े भाई को छोड़कर अब भतीजे की तरफदारी में उतर आए हैं।
नाथ समर्थक एक वरिष्ठ नेता ने नाम उजागर ना करने की शर्त पर समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से कहा कि बड़े भाई और छोटे भाई के बीच अब रिश्तों की मिठास पहले जैसी नहीं रही। इतना ही नहीं दिग्गी राजा ने तो अब बाकायदा कमल नाथ के प्रभाव वाले महाकौशल में भी दखल आरंभ कर दी है। वैसे भी एक दशक से महाकौशल में राजा दिग्विजय सिंह और कमल नाथ ने एक साथ आमद नहीं देकर संकेत अवश्य दे दिया है कि दोनों की विचारधाराओं में अब पटाव नहीं रहा।

ठाकरे दिग्गी आमने सामने


ठाकरे दिग्गी आमने सामने

(दीपक अग्रवाल)

मुंबई (साई)। क्षेत्रवाद, भाषावाद की आग अब और तेज होती दिख रही है। एक तरफ शिवसेना और मनसे द्वारा आपला मानुष की हिमायत की जा रही है तो दूसरी ओर कांग्रेस के महासचिव राजा दिग्विजय सिंह ने ठाकरे ब्रदर्स के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है। दिग्गी राजा कभी ठाकरे ब्रदर्स को एमपी के बालाघाट, तो कभी धार तो कभी बिहार का निरूपित करते हैं।
उधर, वेमनस्य का बीज बोकर बट वृक्ष खड़ा करने की चाहत में ठाकरे ब्रदर्स अब एक होते दिख रहे हैं। नफ़रत की आंधी चलाने वाले भतीजे को चाचा का साथ मिल गया है। शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे, राज ठाकरे के समर्थन में उतर आए हैं। उन्होंने बिहार के नेताओं को धमकी भरे अंदाज़ में नसीहत दी है और कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह पर अभद्र टिप्पणी की है।
कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह को निशाना बनाते हुए बाल ठाकरे ने लिखा है कि बिहार के मुद्दे पर कांग्रेस के नेता बेवजह ज्ञान देते रहते हैं, दिग्विजय सिंह तो बिना पैसे के नाचने वाले नर्तक हैं। बाल ठाकरे ने शिवसेना के मुखपत्र सामना में लेख लिखकर कहा है कि बिहार के नेता अपनी ज़ुबान बंद रखें। ठाकरे बिहारी नहीं बल्कि असली मराठी हैं और ज़रूरत पड़ी तो शिवाजी के ख़ून का असर दिखा देंगे।
ठाकरे ने नीतीश कुमार को नसीहत दी है कि वे इस पचड़े से दूर रहें। क्योंकि कादिर मुंबई में हुई हिंसा का आरोपी है। उसने अमर जवान ज्योति पर तोड़फोड़ करके शहीदों का अपमान किया है। ऐसे लोग किसी भी राज्य के हों, लेकिन देश के नहीं होते। लिहाज़ा, कोई भी ऐसे आरोपियों की वकालत ना करे।

प्रतिदिन चलेगी छिंदवाड़ा दिल्ली रेल गाड़ी


प्रतिदिन चलेगी छिंदवाड़ा दिल्ली रेल गाड़ी

(संजीव प्रताप सिंह)

सिवनी (साई)। महाकौशल के क्षत्रप केंद्रीय मंत्री कमल नाथ द्वारा छिंदवाड़ा से नई दिल्ली के लिए प्रतिदिन एक एक्सप्रेस रेल गाड़ी की शुरूआत करवाने से क्षेत्र में हर्ष की लहर व्याप्त है। इसके पहले छिंदवाड़ा से भोपाल जाने वाली पेंचव्हेली फास्ट पैसेंजर को इंदौर तक बढ़ा देने से लोगों का आवागमन बहुत ही सुलभ हो गया है। छिंदवाड़ा से दिल्ली के लिए यह रेल 3 सितम्बर से रोजाना तो दिल्ली से छिंदवाड़ा की रेल 7 सितम्बर से रोजाना आरंभ होगी।
भारतीय रेल के इतिहास में संभवतः यह पहला ही प्रकरण होगा कि जब रेल खण्ड का निर्माण हुए बिना ही उसे विद्युतीकरण के लिए मंजूर कर दिया गया हो। आमला से बरास्ता परासिया, छिंदवाड़ा नागपुर के रेलखण्ड का विद्युतीकरण मंजूर कर दिया गया है, यह उपलब्धि कमल नाथ के ही खाते में जाएगी। गौरतलब है कि इटारसी से जबलपुर के रेलखण्ड के सालों पुराने होने के बाद भी इसका विद्युतीकरण अब तक लंबित है।
रेल मंत्रालय के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि भारत सरकार के रेल मंत्रालय ने छिंदवाड़ा जिले के परासिया रेल्वे स्टेशन को माडल स्टेशन बनाने और आमला छिंदवाड़ा नागपुर के रेलखण्ड के विद्युतीकरण की अनुमति प्रदान की है। उल्लेखनीय है कि नागपुर से छिंदवाड़ा रेल खण्ड के अमान परिवर्तन की पहल 2006 में रेल मंत्री के बतौर लालू प्रसाद यादव ने की थी।
लगभग 150 किलोमीटर की इस परियोजना की लागत उस वक्त 381 करोड़ रूपए बताई गई थी। इस परियोजना में मार्ग में पेंच, सतपुड़ा और मेलघाट टाईगर रिजर्व का कारीडोर आ रहा है किन्तु यात्रियों की सुविधाओं के मद्देनजर इस कारीडोर को भी अनदेखा कर एक नजीर पेश की गई है, जिसकी कहीं सराहना तो कहीं निंदा हो रही है।
3 सितम्बर को छिंदवाड़ा में आयोजित इस विशेष प्रोग्राम में रेल मंत्री मुकुल राय, छिंदवाड़ा के सांसद कमल नाथ मध्य प्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ठाकुर भी भाग लेंगे। यहां उल्लेखनीय है कि हरवंश सिंह ठाकुर छिंदवाड़ा में जन्मे हैं और बाद में वे सिवनी आकर यहीं बस गए। हरवंश सिंह ठाकुर सिवनी जिले के केवलारी विधानसभा से चौथी बार लगाता विजयी हुए हैं।
सिवनी जिले की सीमा से लगे छिंदवाड़ा, बालाघाट, नरसिंहपुर, जबलपुर एवं नागपुर जिलों में ब्राड गेज का संचालन किया जा रहा है। आदिवासी दृष्टि से पिछड़े मण्डला जिले में भी ब्राडगेज की पदचाप सुनाई देने लगी है। सिवनी में ब्राडगेज के बजाए हरवंश सिंह के नेतृत्व में हर बार कांग्रेस के नेता आश्वासन की सौगात सालों से लाकर बड़े बड़े बधाई और शुभकामनाओं के विज्ञापन छपवाकर जनता को बरगला रहे हैं।
वर्ष 2006 में लालू यादव ने छिंदवाड़ा से सिवनी होकर नैनपुर के रेलखण्ड के अमान परिवर्तन का आश्वासन दिया था, कांग्रेस भाजपा के नेताओं ने इसकी खूब वाहवाही लूटी। आज 6 सालों बाद भी एक इंच काम नहीं हुआ है, जिससे साबित होता है कि कांग्रेस के नेता और विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ठाकुर ने सिवनी वासियों को किस कदर छला है।
3 सितम्बर को छिंदवाड़ा के प्रोग्राम में हरवंश सिंह एक बार फिर मौजूद रहे। जिला कांग्रेस कमेटी सिवनी में व्याप्त चर्चाओं के अनुसार पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के शासनकाल में स्वर्णिम चर्तुर्भुज सड़क परियोजना के अंग उत्तर दक्षिण फोरलेन गलियारे में वर्ष 2008 से रूका काम भी सिंह के इशारे पर ही रोका गया है।
वहीं दूसरी ओर छिंदवाड़ा से सिवनी और नरसिंहपुर से छिंदवाड़ा होकर नागपुर के मार्ग का काम युद्ध स्तर पर जारी है। यहां गौरतलब बात यह है कि सिवनी से नागपुर के मार्ग का काम इसलिए रोका गया है क्योंकि यह मार्ग पेंच कान्हा के काल्पनिक वाईल्ड लाईफ कारीडोर के बीच से होकर गुजर रहा है। वहीं दूसरी ओर छिंदवाड़ा से नागपुर का सड़क और रेल मार्ग सतपुड़ा पेंच और मेलघाट के वाईल्ड लाईफ कारीडोर को कई मर्तबा काट रहा है।
कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि चुनाव के पूर्व हरवंश सिंह विधानसभा उपाध्यक्ष का चोला उतारकर फेंकने के इच्छुक हैं। कहते हैं कि 2008 के बाद भाजपा का विरोध करने से बचने के लिए उन्होंने यह संवैधानिक पद धारण कर लिया था, किन्तु अब चुनाव आने के साथ ही वे सक्रिय होना चाह रहे हैं। यही कारण होगा कि वे अपने वर्तमान कथित राजनैतिक आका कमल नाथ को प्रसन्न करने के लिए सिवनी के हित संवंर्धन को त्यागकर छिंदवाड़ा के इस प्रोग्राम में तालीठोंकने जा रहे हैं।