मंगलवार, 11 सितंबर 2012

सूर्य नमस्कार से अलौकिक ज्ञान केसे प्राप्त करें..?


सूर्य नमस्कार से अलौकिक ज्ञान केसे प्राप्त करें..?

(पंडित दयानन्द शास्त्री)

नई दिल्ली (साई)। शांति  या सुख का अनुभव करना या बोध करना अलौकिक ज्ञान प्राप्त करने जैसा है, यह तभी संभव है, जब आप पूर्णतः स्वस्थ हों. अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करने के यंू को कई तरीके हैं, उनमें से ही एक आसान तरीका है सूर्य नमस्कार करना.
सूर्य नमस्कार योगासनों में सर्वश्रेष्ठ प्रक्रिया है. यह अकेला अभ्यास ही साधक को सम्पूर्ण योग व्यायाम का लाभ पहुंचाने में समर्थ है. इसके अभ्यास से साधक का शरीर निरोग और स्वस्थ होकर तेजस्वी हो जाता है. सूर्य नमस्कार स्त्री , पुरूष , बाल , युवा तथा वृद्धों के लिए भी उपयोगी बताया गया है. सूर्य नमस्कार का अभ्यास बारह स्थितियों में किया जाता है, जो निम्नलिखित है-
--- दोनों हाथों को जोड़कर सीधे खड़े हों. नेत्र बंद करें. ध्यान आज्ञा चक्र पर केंद्रित करके सूर्य भगवान का आव्हान मित्राय नमः मंत्र के द्वारा करें.
---- श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए उपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं. ध्यान को गर्दन के पीछे विशुद्धि चक्र पर केंद्रित करें.
---  तीसरी  स्थिति  श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं. हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी  का स्पर्श करें.   घुटने सीधे रहें माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे मणिपूरक चक्र पर केंद्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रूकें कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें.
---- इसी  स्थिति   में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं. छाती को खींचकर आगे  की ओर तानें. गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं. टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ. इस स्थिति में कुछ समय रूकें. ध्यान को स्वाधिष्ठान अथवा विशुद्धि चक्र पर ले जाएं मुखाकृति सामान्य रखें.
-----श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं. दोनांे पैरों की एड़ियां परस्पर मिली  हुई हों. पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें. नितम्बों को अधिक से अधिक उपर उठाएं. गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं. ध्यान सहस्रार चक्र पर केंद्रित करने का अभ्यास करें.
----श्वास भरते हुए शरीर को पृथ्वी के समानांतर, सीधा साष्टांग दण्डवत करें और पहले घुटने, छाती और माथा पृथ्वी पर लगा दें. नितम्बों को थोड़ा उपर उठा दें. श्वास छोड़ दें. ध्यानको अनान्हत चक्र पर टिका दें. श्वास की गति सामान्य करें.
----इस स्थिति में धीरें -धीरें श्वास को भरते हुए छाती को आगे की ओर खींचते हुए हाथें को सीधे कर दें गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं । घुटने पृथ्वी का स्पर्श करते हुए तथा पैरों के पंजे खड़े रहें। मूलाधार को खींचकर वहीं ध्यान को टिका दें।
----यह स्थिति - पांचवीं स्थिति के समान
----यह स्थिति - चौथी स्थिति के समान
-----यह स्थिति - तीसरी स्थिति के समान
------यह स्थिति - दूसरी स्थिति के समान
-----यह स्थिति - पहली स्थिति की भांति रहेगीं.

सूर्य नमस्कार की उपरोक्त बारह स्थितियॉ हमारे शरीर को संपूर्ण अंगों की विकृतियों को दूर करके निरोग बना देती हैं. यह पूरी प्रक्रिया अत्यधिक लाभकारी है. इसके अभ्यासी के हाथों-पैरों के दर्द दूर होकर उनमें सबलता आ जाती है. गर्दन, फेफड़े तथा पसलियों की मांसपेशियां सशक्त हो जाती हैं, शरीर की फालतू चर्बी कम होकर शरीर हल्का-फुल्का हो जाता है. सूर्य नमस्कार के द्वारा त्वचा रोग समाप्त हो जाते हैं अथवा इनके होने की संभावना समाप्त हो जाती है. इस अभ्यास से कब्ज आदि उदर रोग समाप्त हो जाते हैं और पाचनतंत्र की क्रियाशीलता में वृद्धि हो जाती है. इस अभ्यास के द्वारा हमारे शरीर की छोटी-बड़ी सभी नस-नाड़ियां क्रियाशील हो जाती हैं, इसलिए आलस्य, अतिनिद्रा आदि विकार दूर हो जाते हैं. सूर्य नमस्कार की तीसरी व पांचवीं स्थितियां सर्वाइकल एवं स्लिप डिस्क वालें रोगियों के लिए वर्जित हैं. (साई फीचर्स)

अभिषेक के शहर में महज दो हजार हैं आईडिया उपभोक्ता


एक आईडिया जो बदल दे आपकी दुनिया . . .  19

अभिषेक के शहर में महज दो हजार हैं आईडिया उपभोक्ता

(नन्द किशोर)

भोपाल (साई) आईडिया के ब्रांड एम्बेसेडर बिग बी यानी सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के पुत्र जूनियर बी यानी अभिषेक बच्चन अपने शहर मुंबई में महज दो हजार लोगों को ही आईडिया की मोबाईल सेवाएं लेने के लिए लुभा पाए। आईडिया के सबसे कम उपभोक्ता मुंबई जैसे महानगर में ही हैं।
आईडिया के सूत्रों का कहना है कि आईडिया के उपभोक्ताओं के बारे में जानकारी जुटाई गई है जिसमें जो आंकड़ा सामने आया है उसके मुताबिक महाराष्ट्र और गोवा में 48 लाख 81 हजार 444, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 32 लाख 26 हजार 230, आंध्र प्रदेश में 32 लाख 52 हजार 35, केरला में 27 लाख चार हजार 888, तो गुजरात में 26 लाख 23हजार 72 उपभोक्ता हैं।
इसी तरह उत्तर प्रदेश (पश्चिम) में 25 लाख 68 हजार 279, उत्तर प्रदेश (पूर्व) में 9 लाख 67 हजार 862, दिल्ली में 18 लाख 97 हजार 693, हरियाणा में 9 लाख 80 हजार 760, राजस्थान में 8 लाख 24 हजार 805, हिमाचल प्रदेश में 74 हजार 505 और देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में महज दो हजार उपभोक्ताओं ने ही आईडिया पर भरोसा जताया है।
गौरतलब है कि आईडिया के ब्रांड एम्बेसेडर अभिषेक बच्चन पर आईडिया कंपनी ने करोड़ों रूपयों का दांव लगाया था। अब सवाल यह उठता है कि मुंबई में ही जब मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनी आईडिया और अभिषेक पर लोगों ने भरोसा ही नहीं जताया तो बाकी देश में क्या हाल हो रहे होंगे इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

(क्रमशः जारी)

अमरबेल: गंजेपन का उपाय


हर्बल खजाना ----------------- 19

अमरबेल: गंजेपन का उपाय

(डॉ दीपक आचार्य)

अहमदाबाद (साई)। जंगलों, सडक, खेत खलिहानों के किनारे लगे वृक्षों पर परजीवी अमरबेल का जाल अक्सर देखा जा सकता है, वास्तव में जिस पेड पर यह लग जाती है, वह पेड धीरे धीरे सूखने लगता है। खैर, इसकी पत्तियों मे पर्णहरिम का अभाव होता है जिस वजह से यह पीले रंग की दिखाई देती है। इसके अनेक औषधिय गुण भी है।
अमरबेल का वानस्पतिक नाम कस्कूटा रिफ़्लेक्सा है। पूरे पौधे का काढा घाव धोने के लिए बेहतर है और यह टिंक्चर की तरह काम करता है। डाग गुजरात के आदिवासी हर्बल जानकार इसके बीजों और पूरे पौधे को कुचलकर आर्थराईटिस के रोगी को दर्द वाले हिस्सों पर पट्टी लगाकर बाँध दिया जाए तो काफ़ी फ़ायदा होता है।
गंजेपन को दूर करने के लिए पातालकोट के आदिवासी मानते है कि यदि आम के पेड पर लगी अमरबेल को पानी में उबाल लिया जाए और उस पानी से स्नान किया जाए तो बाल पुनःः उगने लगते है हलाँकि डाँग के आदिवासी अमरबेल को कूटकर उसे तिल के तेल में २० मिनट तक उबालते है और इस तेल को कम बाल या गंजे सर पर लगाने की सलाह देते है।
अमरबेल को कुचलकर इसमें शहद और घी मिलाकर पुराने घावों पर लगाया जाए तो घाव जल्दी भरने लगता है। आधुनिक अध्ययनों से पता चलता है कि इस पौधे का अर्क पेट के कैंसर से लड़ने में मदद कर सकता है। कई ग्रामीण अंचलों मे इसका काढा गर्भपात कराने के लिये दाईयों द्वारा दिया जाता है। (साई फीचर्स)

(लेखक हर्बल मामलों के जाने माने विशेषज्ञ हैं)

भ्रष्टमेव जयते !


भ्रष्टमेव जयते !

(असीम त्रिवेदी / विस्फोट डॉट काम)

असीम त्रिवेदी ने यह लेख तब लिखा था जब उनकी कार्टून साइट को मुंबई के एक कांग्रेसी नेता की शिकायत पर बैन कर दिया गया था। असीम त्रिवेदी का यह लेख आशीष वशिष्ठ की कोशिशों का परिणाम था जिसे 8 जनवरी 2012 को जनज्वार पर प्रकाशित किया गया था। इस लेख में असीम ने सिलसिलेवार तरीके से उन घटनाओं का जिक्र किया है कि कैसे कांग्रेस के एक नेता आर पी पाण्डेय के इशारे पर गुनहगार बनाया गया है।
कार्टूनिस्ट के बारे में भारत में बड़ी गलतफहमी फ़ैली हुई है कि कार्टूनिस्ट का काम है लोगों को हँसाना। पर दोस्तों, कार्टूनिस्ट और जोकर में फर्क होता है। कार्टूनिस्ट का काम लोगों को हंसाना नहीं बल्कि बुराइयों पर चोट करना है। कार्टूनिस्ट आज के समय का कबीर है। कबीर कहता था ष्सुखिया सब संसार है, खावे और सोवे।।।दुखिया दास कबीर है, जागे और रोवे।ष् कार्टूनिस्ट जागता है, वो कुछ कर नहीं सकता पर वो सच्ची तस्वीर सामने लाता है, जिससे लोग जागें और बदलाव की कोशिश करें।
बचपन में स्कूल में पढ़ा था, ष्साहित्य समाज का दर्पण है।ष् पढ़ा होगा उन्होंने भी, जिन्होंने साईट बैन की है और मुझ पर देशद्रोह का केस किया है। पर वो भूल गए, उन सारी बातों की तरह जो हमें बचपन में स्कूल में सिखाई गयी थीं, जैसे चोरी न करना, झूठ न बोलना, गालियाँ न बकना। शायद वो बातें हमें इसीलिये पढ़ाई जाती हैं कि बड़े होकर सब भूल जायें। तो साहित्य और दर्पण का मामला ये है कि आईने में आपको अपना चेहरा वैसा ही तो दिखाई देगा जैसा कि वो वाकई में है।
ये तो ऐसा है कि आप शीशे पर ये आरोप लगायें कि भाई तुम बहुत बदसूरत सकल दिखा रहे हो और गुस्से में आकर शीशा तोड़ दें। इससे तो जो शीशा था वो भी गया, जो सुधार की गुन्जाईस थी वो भी गयी। हर आदमी शीशे में देखता है कि कहाँ चेहरा गन्दा है, कहाँ बाल नहीं ठीक हैं। ये वो काम था जो करना चाहिए था और सुधारना चाहिए था देश को, पर ऐसा हुआ नहीं। आईने पर देशद्रोह का मामला लगा दिया गया। आइने को तोड़ने की तैयारी है। इसीलिये हमारी तरफ एक कहावत है, बन्दर को शीशा नहीं दिखाना चाहिए। पर सवाल दूसरे का होता तो छोड़ देते, ये मामला तो हमारे घर का है। शीशा तो दिखाना ही पड़ेगा। और रही बात अंजाम की तो वो भी कबीर बता गया, ष्जो घर फूंके आपना, साथ हमारे आये।ष्
कहा जा रहा है, मैंने राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान किया है। मेरा ज़वाब है कि जब मैंने कहीं वास्तविक प्रतीकों का इस्तेमाल ही नहीं किया तो भला अपमान कैसे हो गया। मैंने तो बस ये बताया कि अगर हम आज के परिवेश में राष्ट्रीय प्रतीकों का पुनर्निर्धारण करें तो हमारे नए प्रतीक कैसे होने चाहिए। प्रतीकों का निर्धारण वास्तविकता के आधार पर होता है। यदि आप से कहा जाये कि शांति का प्रतीक ए के 47 रायफल है तो क्या आप मान लेंगे ? वही स्थिति है हमारे प्रतीकों की, देश में कही भी सत्य नहीं जीत रहा, जीत रहा है भ्रष्ट।
तो क्या हमारे नए प्रतीक में सत्यमेव जयते कि जगह भ्रष्टमेव जयते नहीं हो जाना चाहिए। आरोप है कि मैंने संसद को नेशनल टोइलेट बना दिया है, पर अपने दिल से पूछिए कि संसद को नेशनल टोइलेट किसने बनाया है ? मैंने या फिर लोकतंत्र का मज़ाक उड़ाने वाले नेताओं ने, रुपये लेकर सवाल पूछने वाले जन प्रतिनिधियों ने, भारी भारी घोटाले करके भी संसद में पहुच जाने वाले लोगों ने और खुद को जनता का सेवक नहीं बल्कि राजा समझने वाले सांसदों ने। आरजेडी सांसद राम कृपाल यादव राज्यसभा में ये कार्टून लहराकर बताते हैं कि लोकतंत्र का अपमान है।
मुझे खबरों के जरिये पता चला कि मेरे कार्टूनों से आहत होकर आरपी पाण्डेय नाम के किसी वकील ने मेरी वेबसाइट को मुंबई अपराध शाखा में शिकायत कर बंद कराया है। लेकिन वकील आरपी पाण्डेय के जो पोस्टर मुंबई में बड़े-बड़े होर्डिंगों के जरिये गवाही दे रहे हैं उससे साफ़ है कि सबसे पहले वे एक कांग्रेसी नेता हैं और उन्होंने अपनी ताकत का इस्तेमाल कर हमारी वेबसाइट को बंद कराया है।
उन्हें लोकतंत्र का अपमान तब नज़र नहीं आता जब उन्ही की पार्टी के राजनीती यादव उसी सदन में लोकपाल बिल की कापी फाड़ते हैं, जब उन्ही की पार्टी के अध्यक्ष लालू प्रसाद खुले आम बयान देते हैं कि भारत में चुनाव मुद्दों से नहीं, धर्म और जाति के समीकरणों से जीते जाते हैं जब पूरी संसद देश के 125 करोड़ लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करके लोकपाल के नाम पर जोकपाल लेकर आती है और उसे भी पास नहीं होने देती। मेरे एक और कार्टून पर लोगों को आपत्ति है जिसमे मैंने भारत माँ का गैंग रेप दिखाया है। दोस्तों कभी आपने सोचा है कि भारत माता कौन है ? भारत माता कोई धार्मिक या पौराणिक देवी नहीं हैं, कि मंदिर बना कर उसमे अगरबत्ती सुलगाएं और प्रसाद चढ़ाएं। डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया में नेहरू जी लिखते है, ष्कोई और नहीं बल्कि हम आप और भारत के सारे नागरिक ही भारत माता हैं।
भारत माता की जय का मतलब है इन्ही देशवासियों कि जय।।!ष् और इसलिए इन देशवाशियों पर अत्याचार का मतलब है भारत माता पर अत्याचार। मैंने वही तो कार्टून में दिखाया है कि किस तरह राजनेता और प्रशासनिक अधिकारी भारत माँ पर अत्याचार कर रहे हैं। फिर इसमें गलत क्या है। क्या सच दिखाना गलत है। अगर आपको इस तस्वीर से आपत्ति है तो जाइये देश को बदलिए ये तस्वीर आपने आप सुधर जायेगी।
जगजीत सिंह की एक नज़्म बहुत हिट थी।। बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी। भारत सरकार ने इसे बहुत गहरे से ले लिया और तय किया कि वो बात को निकलने ही नहीं देंगे। अब बात निकलेगी नहीं, आपके मुह में ही दब जायेगी। मुझे इस बात का एहसास तब हुआ जब अन्ना जी के अनशन के पहले ही दिन मुंबई पुलिस क्राइम ब्रांच द्वारा मेरी एंटी करप्शन वेब साईट को बैन कर दिया गया और सबसे ख़ास बात ये रही कि ये फैसला लेने के पहले मुझसे एक बार बात करना तक मुनासिब नहीं समझा गया।
एक पुलिस अधिकारी ने स्वयं को संविधान मानते हुए निर्णय लिया कि साईट पर मौजूद कार्टून्स आपत्तिजनक हैं और तुरंत साईट को बैन करा दिया। ये सब इतनी तेज़ी से हुआ कि अन्ना जी के अनशन के पहले दिन दोपहर १२ बजे तक ये साईट बैन हो चुकी थी। बाद में पता लगा कि एक वकील आर आरपी पांडेय की अर्जी पर हुआ जो कि वकील होने के अलावा मुंबई कांग्रेस के उत्तरी जिला महासचिव भी हैं।
अगर इतनी तेज़ी प्रशासन ने भ्रस्टाचार के मामलों में दिखाई होती तो हमें कभी इस तरह करप्शन के खिलाफ सड़क पर न उतरना पड़ता। मुझ पर आरोप है कि मैंने संविधान का अपमान किया है तो जो मुंबई पुलिस ने किया वो क्या है। मेरे डोमेन प्रोवाईडर बिग रॉक का कहना है कि जब तक पुलिस उन्हें आदेश नहीं देगी वो साईट नहीं चालू करेंगे। मै समझ नहीं पा रहा हूँ कि एक आर्टिस्ट का काम क्या एक पुलिस ऑफीसर की सहमति का मोहताज़ है, क्या हमें कोई भी कार्टून बनाकर पहले पुलिस डिपार्टमेंट से पास कराना पडेगा।
पुलिस ने खुद ही आरोप बनाया, खुद ही जांच कर ली और खुद ही सज़ा दे दी, वो भी मुझे एक छोटा सा एसएम्एस तक किये बिना। मेरी सारी मेहनत उस साईट के साथ दफन हो गयी होती अगर मेरे पास उसका बैकअप न होता। ये ऐसा है कि पुलिस को मै बता दूँ कि आपने चोरी कि है और पुलिस बिना मामला दर्ज किये, बिना आपसे बात किये सीधे आपको गोली मार दे। क्या इसे लोकतंत्र कहते हैं, क्या यही है हमारा संविधान ?
लोकतंत्र में ही नहीं राजशाही में भी कलाकारों का महत्व रहा है। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने भी अपने दरबार में नवरत्न रखे थे। अकबर के समय भी बीरबल बादशाह-सलामत की गलतियों पर अपने व्यंग्य से चोट किया करते थे। और यहाँ तो कोई सम्राट भी नहीं है। आज तो लोकतंत्र है। हम सब राजा हैं, हम सब सम्राट हैं। कबीर कहता था ष्निंदक नियरे राखिये, आगन कुटी छबाय।ष् गनीमत है कि कबीर के टाइम में इंटरनेट नहीं था वरना सबसे पहले कबीर की ही वेबसाईट बैन होती फिर उसके मुह पर भी बैन लग जाता। जैसे-जैसे दूसरे देशों में फ्री स्पीच को समर्थन मिलता गया, हमारे यहाँ उलटा होता गया। और रही बात मेरी इंटेशन की तो ये कार्टून्स देखकर कोई बच्चा भी बता सकता है कि इनका कारण देशद्रोह नहीं देशप्रेम है और इनका मकसद हकीकत सामने लाकर लोगों को भ्रस्टाचार के खिलाफ एकजुट करना है।।! इधर इस मामले से खामखा टीम अन्ना को जोड़ा जा रहा है।
ये जो भी कार्टून्स मैंने बनाये हैं, सिर्फ अपनी सोच से बनाये हैं और इनके परिणाम के लिए भी सिर्फ मै भागी होउंगा। इनमे टीम अन्ना की कोई प्रेरणा या सहमति नहीं है।।।मै अन्ना जी का तहे दिल से सम्मान करता हूँ और उनका समर्थक होने के नाते मै कभी नहीं चाहूँगा कि इन कार्टून्स को उनके खिलाफ इस्तेमाल किया जाये और आन्दोलन को कमज़ोर करने की साजिश रची जाये।

भ्रष्टमेव जयते !


भ्रष्टमेव जयते !

(असीम त्रिवेदी / विस्फोट डॉट काम)

असीम त्रिवेदी ने यह लेख तब लिखा था जब उनकी कार्टून साइट को मुंबई के एक कांग्रेसी नेता की शिकायत पर बैन कर दिया गया था। असीम त्रिवेदी का यह लेख आशीष वशिष्ठ की कोशिशों का परिणाम था जिसे 8 जनवरी 2012 को जनज्वार पर प्रकाशित किया गया था। इस लेख में असीम ने सिलसिलेवार तरीके से उन घटनाओं का जिक्र किया है कि कैसे कांग्रेस के एक नेता आर पी पाण्डेय के इशारे पर गुनहगार बनाया गया है।
कार्टूनिस्ट के बारे में भारत में बड़ी गलतफहमी फ़ैली हुई है कि कार्टूनिस्ट का काम है लोगों को हँसाना। पर दोस्तों, कार्टूनिस्ट और जोकर में फर्क होता है। कार्टूनिस्ट का काम लोगों को हंसाना नहीं बल्कि बुराइयों पर चोट करना है। कार्टूनिस्ट आज के समय का कबीर है। कबीर कहता था ष्सुखिया सब संसार है, खावे और सोवे।।।दुखिया दास कबीर है, जागे और रोवे।ष् कार्टूनिस्ट जागता है, वो कुछ कर नहीं सकता पर वो सच्ची तस्वीर सामने लाता है, जिससे लोग जागें और बदलाव की कोशिश करें।
बचपन में स्कूल में पढ़ा था, ष्साहित्य समाज का दर्पण है।ष् पढ़ा होगा उन्होंने भी, जिन्होंने साईट बैन की है और मुझ पर देशद्रोह का केस किया है। पर वो भूल गए, उन सारी बातों की तरह जो हमें बचपन में स्कूल में सिखाई गयी थीं, जैसे चोरी न करना, झूठ न बोलना, गालियाँ न बकना। शायद वो बातें हमें इसीलिये पढ़ाई जाती हैं कि बड़े होकर सब भूल जायें। तो साहित्य और दर्पण का मामला ये है कि आईने में आपको अपना चेहरा वैसा ही तो दिखाई देगा जैसा कि वो वाकई में है।
ये तो ऐसा है कि आप शीशे पर ये आरोप लगायें कि भाई तुम बहुत बदसूरत सकल दिखा रहे हो और गुस्से में आकर शीशा तोड़ दें। इससे तो जो शीशा था वो भी गया, जो सुधार की गुन्जाईस थी वो भी गयी। हर आदमी शीशे में देखता है कि कहाँ चेहरा गन्दा है, कहाँ बाल नहीं ठीक हैं। ये वो काम था जो करना चाहिए था और सुधारना चाहिए था देश को, पर ऐसा हुआ नहीं। आईने पर देशद्रोह का मामला लगा दिया गया। आइने को तोड़ने की तैयारी है। इसीलिये हमारी तरफ एक कहावत है, बन्दर को शीशा नहीं दिखाना चाहिए। पर सवाल दूसरे का होता तो छोड़ देते, ये मामला तो हमारे घर का है। शीशा तो दिखाना ही पड़ेगा। और रही बात अंजाम की तो वो भी कबीर बता गया, ष्जो घर फूंके आपना, साथ हमारे आये।ष्
कहा जा रहा है, मैंने राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान किया है। मेरा ज़वाब है कि जब मैंने कहीं वास्तविक प्रतीकों का इस्तेमाल ही नहीं किया तो भला अपमान कैसे हो गया। मैंने तो बस ये बताया कि अगर हम आज के परिवेश में राष्ट्रीय प्रतीकों का पुनर्निर्धारण करें तो हमारे नए प्रतीक कैसे होने चाहिए। प्रतीकों का निर्धारण वास्तविकता के आधार पर होता है। यदि आप से कहा जाये कि शांति का प्रतीक ए के 47 रायफल है तो क्या आप मान लेंगे ? वही स्थिति है हमारे प्रतीकों की, देश में कही भी सत्य नहीं जीत रहा, जीत रहा है भ्रष्ट।
तो क्या हमारे नए प्रतीक में सत्यमेव जयते कि जगह भ्रष्टमेव जयते नहीं हो जाना चाहिए। आरोप है कि मैंने संसद को नेशनल टोइलेट बना दिया है, पर अपने दिल से पूछिए कि संसद को नेशनल टोइलेट किसने बनाया है ? मैंने या फिर लोकतंत्र का मज़ाक उड़ाने वाले नेताओं ने, रुपये लेकर सवाल पूछने वाले जन प्रतिनिधियों ने, भारी भारी घोटाले करके भी संसद में पहुच जाने वाले लोगों ने और खुद को जनता का सेवक नहीं बल्कि राजा समझने वाले सांसदों ने। आरजेडी सांसद राम कृपाल यादव राज्यसभा में ये कार्टून लहराकर बताते हैं कि लोकतंत्र का अपमान है।
मुझे खबरों के जरिये पता चला कि मेरे कार्टूनों से आहत होकर आरपी पाण्डेय नाम के किसी वकील ने मेरी वेबसाइट को मुंबई अपराध शाखा में शिकायत कर बंद कराया है। लेकिन वकील आरपी पाण्डेय के जो पोस्टर मुंबई में बड़े-बड़े होर्डिंगों के जरिये गवाही दे रहे हैं उससे साफ़ है कि सबसे पहले वे एक कांग्रेसी नेता हैं और उन्होंने अपनी ताकत का इस्तेमाल कर हमारी वेबसाइट को बंद कराया है।
उन्हें लोकतंत्र का अपमान तब नज़र नहीं आता जब उन्ही की पार्टी के राजनीती यादव उसी सदन में लोकपाल बिल की कापी फाड़ते हैं, जब उन्ही की पार्टी के अध्यक्ष लालू प्रसाद खुले आम बयान देते हैं कि भारत में चुनाव मुद्दों से नहीं, धर्म और जाति के समीकरणों से जीते जाते हैं जब पूरी संसद देश के 125 करोड़ लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करके लोकपाल के नाम पर जोकपाल लेकर आती है और उसे भी पास नहीं होने देती। मेरे एक और कार्टून पर लोगों को आपत्ति है जिसमे मैंने भारत माँ का गैंग रेप दिखाया है। दोस्तों कभी आपने सोचा है कि भारत माता कौन है ? भारत माता कोई धार्मिक या पौराणिक देवी नहीं हैं, कि मंदिर बना कर उसमे अगरबत्ती सुलगाएं और प्रसाद चढ़ाएं। डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया में नेहरू जी लिखते है, ष्कोई और नहीं बल्कि हम आप और भारत के सारे नागरिक ही भारत माता हैं।
भारत माता की जय का मतलब है इन्ही देशवासियों कि जय।।!ष् और इसलिए इन देशवाशियों पर अत्याचार का मतलब है भारत माता पर अत्याचार। मैंने वही तो कार्टून में दिखाया है कि किस तरह राजनेता और प्रशासनिक अधिकारी भारत माँ पर अत्याचार कर रहे हैं। फिर इसमें गलत क्या है। क्या सच दिखाना गलत है। अगर आपको इस तस्वीर से आपत्ति है तो जाइये देश को बदलिए ये तस्वीर आपने आप सुधर जायेगी।
जगजीत सिंह की एक नज़्म बहुत हिट थी।। बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी। भारत सरकार ने इसे बहुत गहरे से ले लिया और तय किया कि वो बात को निकलने ही नहीं देंगे। अब बात निकलेगी नहीं, आपके मुह में ही दब जायेगी। मुझे इस बात का एहसास तब हुआ जब अन्ना जी के अनशन के पहले ही दिन मुंबई पुलिस क्राइम ब्रांच द्वारा मेरी एंटी करप्शन वेब साईट को बैन कर दिया गया और सबसे ख़ास बात ये रही कि ये फैसला लेने के पहले मुझसे एक बार बात करना तक मुनासिब नहीं समझा गया।
एक पुलिस अधिकारी ने स्वयं को संविधान मानते हुए निर्णय लिया कि साईट पर मौजूद कार्टून्स आपत्तिजनक हैं और तुरंत साईट को बैन करा दिया। ये सब इतनी तेज़ी से हुआ कि अन्ना जी के अनशन के पहले दिन दोपहर १२ बजे तक ये साईट बैन हो चुकी थी। बाद में पता लगा कि एक वकील आर आरपी पांडेय की अर्जी पर हुआ जो कि वकील होने के अलावा मुंबई कांग्रेस के उत्तरी जिला महासचिव भी हैं।
अगर इतनी तेज़ी प्रशासन ने भ्रस्टाचार के मामलों में दिखाई होती तो हमें कभी इस तरह करप्शन के खिलाफ सड़क पर न उतरना पड़ता। मुझ पर आरोप है कि मैंने संविधान का अपमान किया है तो जो मुंबई पुलिस ने किया वो क्या है। मेरे डोमेन प्रोवाईडर बिग रॉक का कहना है कि जब तक पुलिस उन्हें आदेश नहीं देगी वो साईट नहीं चालू करेंगे। मै समझ नहीं पा रहा हूँ कि एक आर्टिस्ट का काम क्या एक पुलिस ऑफीसर की सहमति का मोहताज़ है, क्या हमें कोई भी कार्टून बनाकर पहले पुलिस डिपार्टमेंट से पास कराना पडेगा।
पुलिस ने खुद ही आरोप बनाया, खुद ही जांच कर ली और खुद ही सज़ा दे दी, वो भी मुझे एक छोटा सा एसएम्एस तक किये बिना। मेरी सारी मेहनत उस साईट के साथ दफन हो गयी होती अगर मेरे पास उसका बैकअप न होता। ये ऐसा है कि पुलिस को मै बता दूँ कि आपने चोरी कि है और पुलिस बिना मामला दर्ज किये, बिना आपसे बात किये सीधे आपको गोली मार दे। क्या इसे लोकतंत्र कहते हैं, क्या यही है हमारा संविधान ?
लोकतंत्र में ही नहीं राजशाही में भी कलाकारों का महत्व रहा है। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने भी अपने दरबार में नवरत्न रखे थे। अकबर के समय भी बीरबल बादशाह-सलामत की गलतियों पर अपने व्यंग्य से चोट किया करते थे। और यहाँ तो कोई सम्राट भी नहीं है। आज तो लोकतंत्र है। हम सब राजा हैं, हम सब सम्राट हैं। कबीर कहता था ष्निंदक नियरे राखिये, आगन कुटी छबाय।ष् गनीमत है कि कबीर के टाइम में इंटरनेट नहीं था वरना सबसे पहले कबीर की ही वेबसाईट बैन होती फिर उसके मुह पर भी बैन लग जाता। जैसे-जैसे दूसरे देशों में फ्री स्पीच को समर्थन मिलता गया, हमारे यहाँ उलटा होता गया। और रही बात मेरी इंटेशन की तो ये कार्टून्स देखकर कोई बच्चा भी बता सकता है कि इनका कारण देशद्रोह नहीं देशप्रेम है और इनका मकसद हकीकत सामने लाकर लोगों को भ्रस्टाचार के खिलाफ एकजुट करना है।।! इधर इस मामले से खामखा टीम अन्ना को जोड़ा जा रहा है।
ये जो भी कार्टून्स मैंने बनाये हैं, सिर्फ अपनी सोच से बनाये हैं और इनके परिणाम के लिए भी सिर्फ मै भागी होउंगा। इनमे टीम अन्ना की कोई प्रेरणा या सहमति नहीं है।।।मै अन्ना जी का तहे दिल से सम्मान करता हूँ और उनका समर्थक होने के नाते मै कभी नहीं चाहूँगा कि इन कार्टून्स को उनके खिलाफ इस्तेमाल किया जाये और आन्दोलन को कमज़ोर करने की साजिश रची जाये।

भ्रष्टमेव जयते !


भ्रष्टमेव जयते !

(असीम त्रिवेदी / विस्फोट डॉट काम)

असीम त्रिवेदी ने यह लेख तब लिखा था जब उनकी कार्टून साइट को मुंबई के एक कांग्रेसी नेता की शिकायत पर बैन कर दिया गया था। असीम त्रिवेदी का यह लेख आशीष वशिष्ठ की कोशिशों का परिणाम था जिसे 8 जनवरी 2012 को जनज्वार पर प्रकाशित किया गया था। इस लेख में असीम ने सिलसिलेवार तरीके से उन घटनाओं का जिक्र किया है कि कैसे कांग्रेस के एक नेता आर पी पाण्डेय के इशारे पर गुनहगार बनाया गया है।
कार्टूनिस्ट के बारे में भारत में बड़ी गलतफहमी फ़ैली हुई है कि कार्टूनिस्ट का काम है लोगों को हँसाना। पर दोस्तों, कार्टूनिस्ट और जोकर में फर्क होता है। कार्टूनिस्ट का काम लोगों को हंसाना नहीं बल्कि बुराइयों पर चोट करना है। कार्टूनिस्ट आज के समय का कबीर है। कबीर कहता था ष्सुखिया सब संसार है, खावे और सोवे।।।दुखिया दास कबीर है, जागे और रोवे।ष् कार्टूनिस्ट जागता है, वो कुछ कर नहीं सकता पर वो सच्ची तस्वीर सामने लाता है, जिससे लोग जागें और बदलाव की कोशिश करें।
बचपन में स्कूल में पढ़ा था, ष्साहित्य समाज का दर्पण है।ष् पढ़ा होगा उन्होंने भी, जिन्होंने साईट बैन की है और मुझ पर देशद्रोह का केस किया है। पर वो भूल गए, उन सारी बातों की तरह जो हमें बचपन में स्कूल में सिखाई गयी थीं, जैसे चोरी न करना, झूठ न बोलना, गालियाँ न बकना। शायद वो बातें हमें इसीलिये पढ़ाई जाती हैं कि बड़े होकर सब भूल जायें। तो साहित्य और दर्पण का मामला ये है कि आईने में आपको अपना चेहरा वैसा ही तो दिखाई देगा जैसा कि वो वाकई में है।
ये तो ऐसा है कि आप शीशे पर ये आरोप लगायें कि भाई तुम बहुत बदसूरत सकल दिखा रहे हो और गुस्से में आकर शीशा तोड़ दें। इससे तो जो शीशा था वो भी गया, जो सुधार की गुन्जाईस थी वो भी गयी। हर आदमी शीशे में देखता है कि कहाँ चेहरा गन्दा है, कहाँ बाल नहीं ठीक हैं। ये वो काम था जो करना चाहिए था और सुधारना चाहिए था देश को, पर ऐसा हुआ नहीं। आईने पर देशद्रोह का मामला लगा दिया गया। आइने को तोड़ने की तैयारी है। इसीलिये हमारी तरफ एक कहावत है, बन्दर को शीशा नहीं दिखाना चाहिए। पर सवाल दूसरे का होता तो छोड़ देते, ये मामला तो हमारे घर का है। शीशा तो दिखाना ही पड़ेगा। और रही बात अंजाम की तो वो भी कबीर बता गया, ष्जो घर फूंके आपना, साथ हमारे आये।ष्
कहा जा रहा है, मैंने राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान किया है। मेरा ज़वाब है कि जब मैंने कहीं वास्तविक प्रतीकों का इस्तेमाल ही नहीं किया तो भला अपमान कैसे हो गया। मैंने तो बस ये बताया कि अगर हम आज के परिवेश में राष्ट्रीय प्रतीकों का पुनर्निर्धारण करें तो हमारे नए प्रतीक कैसे होने चाहिए। प्रतीकों का निर्धारण वास्तविकता के आधार पर होता है। यदि आप से कहा जाये कि शांति का प्रतीक ए के 47 रायफल है तो क्या आप मान लेंगे ? वही स्थिति है हमारे प्रतीकों की, देश में कही भी सत्य नहीं जीत रहा, जीत रहा है भ्रष्ट।
तो क्या हमारे नए प्रतीक में सत्यमेव जयते कि जगह भ्रष्टमेव जयते नहीं हो जाना चाहिए। आरोप है कि मैंने संसद को नेशनल टोइलेट बना दिया है, पर अपने दिल से पूछिए कि संसद को नेशनल टोइलेट किसने बनाया है ? मैंने या फिर लोकतंत्र का मज़ाक उड़ाने वाले नेताओं ने, रुपये लेकर सवाल पूछने वाले जन प्रतिनिधियों ने, भारी भारी घोटाले करके भी संसद में पहुच जाने वाले लोगों ने और खुद को जनता का सेवक नहीं बल्कि राजा समझने वाले सांसदों ने। आरजेडी सांसद राम कृपाल यादव राज्यसभा में ये कार्टून लहराकर बताते हैं कि लोकतंत्र का अपमान है।
मुझे खबरों के जरिये पता चला कि मेरे कार्टूनों से आहत होकर आरपी पाण्डेय नाम के किसी वकील ने मेरी वेबसाइट को मुंबई अपराध शाखा में शिकायत कर बंद कराया है। लेकिन वकील आरपी पाण्डेय के जो पोस्टर मुंबई में बड़े-बड़े होर्डिंगों के जरिये गवाही दे रहे हैं उससे साफ़ है कि सबसे पहले वे एक कांग्रेसी नेता हैं और उन्होंने अपनी ताकत का इस्तेमाल कर हमारी वेबसाइट को बंद कराया है।
उन्हें लोकतंत्र का अपमान तब नज़र नहीं आता जब उन्ही की पार्टी के राजनीती यादव उसी सदन में लोकपाल बिल की कापी फाड़ते हैं, जब उन्ही की पार्टी के अध्यक्ष लालू प्रसाद खुले आम बयान देते हैं कि भारत में चुनाव मुद्दों से नहीं, धर्म और जाति के समीकरणों से जीते जाते हैं जब पूरी संसद देश के 125 करोड़ लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करके लोकपाल के नाम पर जोकपाल लेकर आती है और उसे भी पास नहीं होने देती। मेरे एक और कार्टून पर लोगों को आपत्ति है जिसमे मैंने भारत माँ का गैंग रेप दिखाया है। दोस्तों कभी आपने सोचा है कि भारत माता कौन है ? भारत माता कोई धार्मिक या पौराणिक देवी नहीं हैं, कि मंदिर बना कर उसमे अगरबत्ती सुलगाएं और प्रसाद चढ़ाएं। डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया में नेहरू जी लिखते है, ष्कोई और नहीं बल्कि हम आप और भारत के सारे नागरिक ही भारत माता हैं।
भारत माता की जय का मतलब है इन्ही देशवासियों कि जय।।!ष् और इसलिए इन देशवाशियों पर अत्याचार का मतलब है भारत माता पर अत्याचार। मैंने वही तो कार्टून में दिखाया है कि किस तरह राजनेता और प्रशासनिक अधिकारी भारत माँ पर अत्याचार कर रहे हैं। फिर इसमें गलत क्या है। क्या सच दिखाना गलत है। अगर आपको इस तस्वीर से आपत्ति है तो जाइये देश को बदलिए ये तस्वीर आपने आप सुधर जायेगी।
जगजीत सिंह की एक नज़्म बहुत हिट थी।। बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी। भारत सरकार ने इसे बहुत गहरे से ले लिया और तय किया कि वो बात को निकलने ही नहीं देंगे। अब बात निकलेगी नहीं, आपके मुह में ही दब जायेगी। मुझे इस बात का एहसास तब हुआ जब अन्ना जी के अनशन के पहले ही दिन मुंबई पुलिस क्राइम ब्रांच द्वारा मेरी एंटी करप्शन वेब साईट को बैन कर दिया गया और सबसे ख़ास बात ये रही कि ये फैसला लेने के पहले मुझसे एक बार बात करना तक मुनासिब नहीं समझा गया।
एक पुलिस अधिकारी ने स्वयं को संविधान मानते हुए निर्णय लिया कि साईट पर मौजूद कार्टून्स आपत्तिजनक हैं और तुरंत साईट को बैन करा दिया। ये सब इतनी तेज़ी से हुआ कि अन्ना जी के अनशन के पहले दिन दोपहर १२ बजे तक ये साईट बैन हो चुकी थी। बाद में पता लगा कि एक वकील आर आरपी पांडेय की अर्जी पर हुआ जो कि वकील होने के अलावा मुंबई कांग्रेस के उत्तरी जिला महासचिव भी हैं।
अगर इतनी तेज़ी प्रशासन ने भ्रस्टाचार के मामलों में दिखाई होती तो हमें कभी इस तरह करप्शन के खिलाफ सड़क पर न उतरना पड़ता। मुझ पर आरोप है कि मैंने संविधान का अपमान किया है तो जो मुंबई पुलिस ने किया वो क्या है। मेरे डोमेन प्रोवाईडर बिग रॉक का कहना है कि जब तक पुलिस उन्हें आदेश नहीं देगी वो साईट नहीं चालू करेंगे। मै समझ नहीं पा रहा हूँ कि एक आर्टिस्ट का काम क्या एक पुलिस ऑफीसर की सहमति का मोहताज़ है, क्या हमें कोई भी कार्टून बनाकर पहले पुलिस डिपार्टमेंट से पास कराना पडेगा।
पुलिस ने खुद ही आरोप बनाया, खुद ही जांच कर ली और खुद ही सज़ा दे दी, वो भी मुझे एक छोटा सा एसएम्एस तक किये बिना। मेरी सारी मेहनत उस साईट के साथ दफन हो गयी होती अगर मेरे पास उसका बैकअप न होता। ये ऐसा है कि पुलिस को मै बता दूँ कि आपने चोरी कि है और पुलिस बिना मामला दर्ज किये, बिना आपसे बात किये सीधे आपको गोली मार दे। क्या इसे लोकतंत्र कहते हैं, क्या यही है हमारा संविधान ?
लोकतंत्र में ही नहीं राजशाही में भी कलाकारों का महत्व रहा है। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने भी अपने दरबार में नवरत्न रखे थे। अकबर के समय भी बीरबल बादशाह-सलामत की गलतियों पर अपने व्यंग्य से चोट किया करते थे। और यहाँ तो कोई सम्राट भी नहीं है। आज तो लोकतंत्र है। हम सब राजा हैं, हम सब सम्राट हैं। कबीर कहता था ष्निंदक नियरे राखिये, आगन कुटी छबाय।ष् गनीमत है कि कबीर के टाइम में इंटरनेट नहीं था वरना सबसे पहले कबीर की ही वेबसाईट बैन होती फिर उसके मुह पर भी बैन लग जाता। जैसे-जैसे दूसरे देशों में फ्री स्पीच को समर्थन मिलता गया, हमारे यहाँ उलटा होता गया। और रही बात मेरी इंटेशन की तो ये कार्टून्स देखकर कोई बच्चा भी बता सकता है कि इनका कारण देशद्रोह नहीं देशप्रेम है और इनका मकसद हकीकत सामने लाकर लोगों को भ्रस्टाचार के खिलाफ एकजुट करना है।।! इधर इस मामले से खामखा टीम अन्ना को जोड़ा जा रहा है।
ये जो भी कार्टून्स मैंने बनाये हैं, सिर्फ अपनी सोच से बनाये हैं और इनके परिणाम के लिए भी सिर्फ मै भागी होउंगा। इनमे टीम अन्ना की कोई प्रेरणा या सहमति नहीं है।।।मै अन्ना जी का तहे दिल से सम्मान करता हूँ और उनका समर्थक होने के नाते मै कभी नहीं चाहूँगा कि इन कार्टून्स को उनके खिलाफ इस्तेमाल किया जाये और आन्दोलन को कमज़ोर करने की साजिश रची जाये।

शिव के राज में हाल बेहाल


शिव के राज में हाल बेहाल

(सुरेंद्र जायस्वाल)

जबलपुर (साई)। मध्य प्रदेश पोलिसे की खाकी पर इन दिनों जो धब्बे लग रहे है वे मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री के पोलिसे को सिंग्हम बनाने के सपने को तार तार कर दिया है। २० दिन में मध्य प्रदेश पोलिसे के तीन थाना प्रभारियो पर बलात्कार के आरोप लगने से पोलिसे महकमे में सनंसनी है ।
ये सभी आरोपी पोलिसे के बड़े ओहदे पर है और इन पर अपराध मिटने की जिम्मेवारी है लकिन ये अपराध मिटने की ही आड़ में अपराध कर रहे है , ताजा मामला आदिवासी जिले डिंडोरी का है , रविवार को पीड़ित युवती ने अजाक थाने में आकर बताया कि उसकी छोटी बहन काफी समय से लापता है, जिसकी गुमशुदगी की शिकायत करंजिया थाने में की गई।
युवती के अनुसार करंजिया थाना प्रभारी आरएस पन्द्रे ने कार्रवाई करने के बदले उसका शारीरिक शोषण किया। युवती का कहना है कि थाना प्रभारी रामस्वरूप पन्द्रे ने छह बार बलात्कार किया। इसके बाद पीड़ित युवती ने मामले की शिकायत करने जबलपुर के एक थाने की ओर रुख किया। मामला डिंडौरी जिले से जुड़ा होने के कारण शनिवार को जबलपुर पुलिस, युवती को डिंडौरी पुलिस के पास ले आई।
प्राप्त जानकारी के अनुसार बलपुर में मेडिकल की पढाई कर डठठै की छात्र उसकी बहिन ने लिखवाई थी , थ्प्त् में उसका मोबाइल नंबर भी था , थाना करंजिया के थाना प्रभारी रामस्वरूप पन्द्रे ने इस मोबाइल नम्बर पर कई बार बात की और बहिन को ढूढने के बहाने इस मेडिकल की छात्र को शाहपुरा बुलाया और पचास हजार रूपये की मांग की , जब माग पूरी ना हुई तो टी आइ आर एस पंद्रे ने वन विभाग के रेस्ट हिउसे में इसका बलात्कार किया। यह सिलसिला लगातार एक साल से चल रहा है

शिव के बुखार से तप रही कांग्रेस


शिव के बुखार से तप रही कांग्रेस

(नन्द किशोर)

भोपाल (साई)। मध्य प्रदेश कांग्रेस का शरीर इस समय बेहद तप रहा है। यह बुखार है शिव के नाम का। इस बुखार को उतारने के लिए नेता गुटबाजी छोड़ने की कड़वी कुनैन की गोली खाने को तैयार नहीं हैं। मध्य प्रदेश में कांग्रेस शिवराज फोबियासे उबर नहीं पा रही है और पार्टी ऐसा मंत्र तलाश रही है, जिसके जरिए वह इसके असर को कम कर सके। यही कारण है कि पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ताकत बने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की नाकामियों को हथियार बनाने का मन बना लिया है।
राज्य में आगामी विधानसभा चुनाव होने में भले ही एक वर्ष से ज्यादा का समय हो, मगर कांग्रेस अभी से तैयारियों में जुट गई है ताकि भाजपा से पिछली हारों का हिसाब बराबर किया जा सके। राजधानी भोपाल में तीन दिन तक चली पार्टी की प्रतिनिधि बैठक में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की छाया साफ नजर आई।
कांग्रेस ने राज्य के दूरदराज के इलाके की जमीनी हकीकत जानने के लिए सभी स्तरों के जिम्मेदार पदाधिकारियों की इन बैठकों में हिस्सेदारी रही। सभी ने पार्टी के भीतर चल रही गुटबाजी व समर्पित कार्यकर्ता की उपेक्षा का मामला पूरी ताकत से उठाया। कुछ कार्यकर्ताओं ने तो चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद के दावेदार के नाम का ऐलान करने का सुझाव दिया ताकि आमजनों के बीच कांग्रेस के भावी मुख्यमंत्री को लेकर किसी तरह का संशय न रहे। ऐसा होने से कांग्रेस को लाभ होगा।
इस बैठक में तीनों दिन प्रदेश प्रभारी व पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव बी.के. हरिप्रसाद मौजूद रहे और उन्होंने कार्यकर्ताओं से साफ कहा कि वह प्रदेश सरकार और खासकर शिवराज की नाकामियों को आम लोगों के बीच जाकर गिनाएं। हरि प्रसाद का कहना है कि राज्य में अराजकता का माहौल है, भ्रष्टाचार, अपराध, महिला अत्याचार के मामलों में प्रदेश अव्वल हैं। सत्ता का विरोध करने वालों की राजनीतिक हत्या कर उनकी आवाज को दबाया जाता है। इस प्रदेश की पहचान मर्डर प्रदेशकी बनती जा रही है।
पार्टी में गुटबाजी एक बार फिर इस बैठक में नजर आई। बैठक में हरि प्रसाद के अलावा दिग्विजय सिंह ही पहुंचे, वहीं दीगर प्रमुख नेताओं ने दूरी बनाई रखी। हरि प्रसाद पार्टी में गुटबाजी की बात को साफ नकारते हैं। कांग्रेस के कार्यकर्ता मध्य प्रदेश कोटे से मंत्री कमल नाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के इस बैठक में ना पहुंच पाने के सवाल पर बगलें झांकते ही नजर आए।
कांग्रेस की सरकार के साथ शिवराज की नाकामियों को उजागर करने के लिए बनी रणनीति पर भाजपा चुटकी लेती है। पार्टी के प्रवक्ता ब्रजेश लूनावत का कहना है कि लगातार मिल रही हार से कांग्रेस बौखलाई हुई है और यही कारण है कि वह व्यक्तिगत आरोपों का सहारा लेती है। पहले विधानसभा चुनाव, फिर उपचुनाव व अनुसूचित जाति बहुल नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हुआ है। यह सब शिवराज सरकार की जनहितकारी योजनाओं के चलते हुआ है।