भ्रष्टमेव जयते !
(असीम त्रिवेदी / विस्फोट डॉट काम)
असीम त्रिवेदी ने
यह लेख तब लिखा था जब उनकी कार्टून साइट को मुंबई के एक कांग्रेसी नेता की शिकायत
पर बैन कर दिया गया था। असीम त्रिवेदी का यह लेख आशीष वशिष्ठ की कोशिशों का परिणाम
था जिसे 8 जनवरी 2012 को जनज्वार पर
प्रकाशित किया गया था। इस लेख में असीम ने सिलसिलेवार तरीके से उन घटनाओं का जिक्र
किया है कि कैसे कांग्रेस के एक नेता आर पी पाण्डेय के इशारे पर गुनहगार बनाया गया
है।
कार्टूनिस्ट के
बारे में भारत में बड़ी गलतफहमी फ़ैली हुई है कि कार्टूनिस्ट का काम है लोगों को
हँसाना। पर दोस्तों,
कार्टूनिस्ट और जोकर में फर्क होता है। कार्टूनिस्ट का काम
लोगों को हंसाना नहीं बल्कि बुराइयों पर चोट करना है। कार्टूनिस्ट आज के समय का
कबीर है। कबीर कहता था ष्सुखिया सब संसार है, खावे और सोवे।।।दुखिया दास कबीर है, जागे और रोवे।ष्
कार्टूनिस्ट जागता है, वो कुछ कर नहीं सकता पर वो सच्ची तस्वीर सामने लाता है, जिससे लोग जागें और
बदलाव की कोशिश करें।
बचपन में स्कूल में
पढ़ा था, ष्साहित्य
समाज का दर्पण है।ष् पढ़ा होगा उन्होंने भी, जिन्होंने साईट बैन की है और मुझ पर
देशद्रोह का केस किया है। पर वो भूल गए, उन सारी बातों की तरह जो हमें बचपन में
स्कूल में सिखाई गयी थीं, जैसे चोरी न करना, झूठ न बोलना, गालियाँ न बकना।
शायद वो बातें हमें इसीलिये पढ़ाई जाती हैं कि बड़े होकर सब भूल जायें। तो साहित्य
और दर्पण का मामला ये है कि आईने में आपको अपना चेहरा वैसा ही तो दिखाई देगा जैसा
कि वो वाकई में है।
ये तो ऐसा है कि आप
शीशे पर ये आरोप लगायें कि भाई तुम बहुत बदसूरत सकल दिखा रहे हो और गुस्से में आकर
शीशा तोड़ दें। इससे तो जो शीशा था वो भी गया, जो सुधार की गुन्जाईस थी वो भी गयी। हर आदमी
शीशे में देखता है कि कहाँ चेहरा गन्दा है, कहाँ बाल नहीं ठीक हैं। ये वो काम था जो
करना चाहिए था और सुधारना चाहिए था देश को, पर ऐसा हुआ नहीं। आईने पर देशद्रोह का मामला
लगा दिया गया। आइने को तोड़ने की तैयारी है। इसीलिये हमारी तरफ एक कहावत है, बन्दर को शीशा नहीं
दिखाना चाहिए। पर सवाल दूसरे का होता तो छोड़ देते, ये मामला तो हमारे
घर का है। शीशा तो दिखाना ही पड़ेगा। और रही बात अंजाम की तो वो भी कबीर बता गया, ष्जो घर फूंके आपना, साथ हमारे आये।ष्
कहा जा रहा है, मैंने राष्ट्रीय
प्रतीकों का अपमान किया है। मेरा ज़वाब है कि जब मैंने कहीं वास्तविक प्रतीकों का
इस्तेमाल ही नहीं किया तो भला अपमान कैसे हो गया। मैंने तो बस ये बताया कि अगर हम
आज के परिवेश में राष्ट्रीय प्रतीकों का पुनर्निर्धारण करें तो हमारे नए प्रतीक
कैसे होने चाहिए। प्रतीकों का निर्धारण वास्तविकता के आधार पर होता है। यदि आप से
कहा जाये कि शांति का प्रतीक ए के 47 रायफल है तो क्या आप मान लेंगे ? वही स्थिति है
हमारे प्रतीकों की,
देश में कही भी सत्य नहीं जीत रहा, जीत रहा है भ्रष्ट।
तो क्या हमारे नए
प्रतीक में सत्यमेव जयते कि जगह भ्रष्टमेव जयते नहीं हो जाना चाहिए। आरोप है कि
मैंने संसद को नेशनल टोइलेट बना दिया है, पर अपने दिल से पूछिए कि संसद को नेशनल
टोइलेट किसने बनाया है ? मैंने या फिर लोकतंत्र का मज़ाक उड़ाने वाले नेताओं ने, रुपये लेकर सवाल
पूछने वाले जन प्रतिनिधियों ने, भारी भारी घोटाले करके भी संसद में पहुच
जाने वाले लोगों ने और खुद को जनता का सेवक नहीं बल्कि राजा समझने वाले सांसदों
ने। आरजेडी सांसद राम कृपाल यादव राज्यसभा में ये कार्टून लहराकर बताते हैं कि
लोकतंत्र का अपमान है।
मुझे खबरों के
जरिये पता चला कि मेरे कार्टूनों से आहत होकर आरपी पाण्डेय नाम के किसी वकील ने
मेरी वेबसाइट को मुंबई अपराध शाखा में शिकायत कर बंद कराया है। लेकिन वकील आरपी
पाण्डेय के जो पोस्टर मुंबई में बड़े-बड़े होर्डिंगों के जरिये गवाही दे रहे हैं
उससे साफ़ है कि सबसे पहले वे एक कांग्रेसी नेता हैं और उन्होंने अपनी ताकत का
इस्तेमाल कर हमारी वेबसाइट को बंद कराया है।
उन्हें लोकतंत्र का
अपमान तब नज़र नहीं आता जब उन्ही की पार्टी के राजनीती यादव उसी सदन में लोकपाल बिल
की कापी फाड़ते हैं,
जब उन्ही की पार्टी के अध्यक्ष लालू प्रसाद खुले आम बयान देते
हैं कि भारत में चुनाव मुद्दों से नहीं, धर्म और जाति के समीकरणों से जीते जाते हैं
जब पूरी संसद देश के 125 करोड़ लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करके लोकपाल के नाम पर
जोकपाल लेकर आती है और उसे भी पास नहीं होने देती। मेरे एक और कार्टून पर लोगों को
आपत्ति है जिसमे मैंने भारत माँ का गैंग रेप दिखाया है। दोस्तों कभी आपने सोचा है
कि भारत माता कौन है ? भारत माता कोई धार्मिक या पौराणिक देवी नहीं हैं, कि मंदिर बना कर
उसमे अगरबत्ती सुलगाएं और प्रसाद चढ़ाएं। डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया में नेहरू जी लिखते है, ष्कोई और नहीं
बल्कि हम आप और भारत के सारे नागरिक ही भारत माता हैं।
भारत माता की जय का
मतलब है इन्ही देशवासियों कि जय।।!ष् और इसलिए इन देशवाशियों पर अत्याचार का मतलब
है भारत माता पर अत्याचार। मैंने वही तो कार्टून में दिखाया है कि किस तरह राजनेता
और प्रशासनिक अधिकारी भारत माँ पर अत्याचार कर रहे हैं। फिर इसमें गलत क्या है।
क्या सच दिखाना गलत है। अगर आपको इस तस्वीर से आपत्ति है तो जाइये देश को बदलिए ये
तस्वीर आपने आप सुधर जायेगी।
जगजीत सिंह की एक
नज़्म बहुत हिट थी।। बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी। भारत सरकार ने इसे बहुत गहरे
से ले लिया और तय किया कि वो बात को निकलने ही नहीं देंगे। अब बात निकलेगी नहीं, आपके मुह में ही दब
जायेगी। मुझे इस बात का एहसास तब हुआ जब अन्ना जी के अनशन के पहले ही दिन मुंबई
पुलिस क्राइम ब्रांच द्वारा मेरी एंटी करप्शन वेब साईट को बैन कर दिया गया और सबसे
ख़ास बात ये रही कि ये फैसला लेने के पहले मुझसे एक बार बात करना तक मुनासिब नहीं
समझा गया।
एक पुलिस अधिकारी
ने स्वयं को संविधान मानते हुए निर्णय लिया कि साईट पर मौजूद कार्टून्स आपत्तिजनक
हैं और तुरंत साईट को बैन करा दिया। ये सब इतनी तेज़ी से हुआ कि अन्ना जी के अनशन
के पहले दिन दोपहर १२ बजे तक ये साईट बैन हो चुकी थी। बाद में पता लगा कि एक वकील
आर आरपी पांडेय की अर्जी पर हुआ जो कि वकील होने के अलावा मुंबई कांग्रेस के
उत्तरी जिला महासचिव भी हैं।
अगर इतनी तेज़ी
प्रशासन ने भ्रस्टाचार के मामलों में दिखाई होती तो हमें कभी इस तरह करप्शन के
खिलाफ सड़क पर न उतरना पड़ता। मुझ पर आरोप है कि मैंने संविधान का अपमान किया है तो
जो मुंबई पुलिस ने किया वो क्या है। मेरे डोमेन प्रोवाईडर बिग रॉक का कहना है कि
जब तक पुलिस उन्हें आदेश नहीं देगी वो साईट नहीं चालू करेंगे। मै समझ नहीं पा रहा
हूँ कि एक आर्टिस्ट का काम क्या एक पुलिस ऑफीसर की सहमति का मोहताज़ है, क्या हमें कोई भी
कार्टून बनाकर पहले पुलिस डिपार्टमेंट से पास कराना पडेगा।
पुलिस ने खुद ही
आरोप बनाया, खुद ही
जांच कर ली और खुद ही सज़ा दे दी, वो भी मुझे एक छोटा सा एसएम्एस तक किये
बिना। मेरी सारी मेहनत उस साईट के साथ दफन हो गयी होती अगर मेरे पास उसका बैकअप न
होता। ये ऐसा है कि पुलिस को मै बता दूँ कि आपने चोरी कि है और पुलिस बिना मामला
दर्ज किये, बिना आपसे
बात किये सीधे आपको गोली मार दे। क्या इसे लोकतंत्र कहते हैं, क्या यही है हमारा
संविधान ?
लोकतंत्र में ही
नहीं राजशाही में भी कलाकारों का महत्व रहा है। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने भी
अपने दरबार में नवरत्न रखे थे। अकबर के समय भी बीरबल बादशाह-सलामत की गलतियों पर
अपने व्यंग्य से चोट किया करते थे। और यहाँ तो कोई सम्राट भी नहीं है। आज तो
लोकतंत्र है। हम सब राजा हैं, हम सब सम्राट हैं। कबीर कहता था ष्निंदक
नियरे राखिये, आगन कुटी
छबाय।ष् गनीमत है कि कबीर के टाइम में इंटरनेट नहीं था वरना सबसे पहले कबीर की ही
वेबसाईट बैन होती फिर उसके मुह पर भी बैन लग जाता। जैसे-जैसे दूसरे देशों में फ्री
स्पीच को समर्थन मिलता गया, हमारे यहाँ उलटा होता गया। और रही बात मेरी
इंटेशन की तो ये कार्टून्स देखकर कोई बच्चा भी बता सकता है कि इनका कारण देशद्रोह
नहीं देशप्रेम है और इनका मकसद हकीकत सामने लाकर लोगों को भ्रस्टाचार के खिलाफ
एकजुट करना है।।! इधर इस मामले से खामखा टीम अन्ना को जोड़ा जा रहा है।
ये जो भी कार्टून्स
मैंने बनाये हैं, सिर्फ अपनी
सोच से बनाये हैं और इनके परिणाम के लिए भी सिर्फ मै भागी होउंगा। इनमे टीम अन्ना
की कोई प्रेरणा या सहमति नहीं है।।।मै अन्ना जी का तहे दिल से सम्मान करता हूँ और
उनका समर्थक होने के नाते मै कभी नहीं चाहूँगा कि इन कार्टून्स को उनके खिलाफ
इस्तेमाल किया जाये और आन्दोलन को कमज़ोर करने की साजिश रची जाये।