सूर्य नमस्कार से
अलौकिक ज्ञान केसे प्राप्त करें..?
(पंडित दयानन्द शास्त्री)
नई दिल्ली (साई)।
शांति या सुख का अनुभव करना या बोध करना
अलौकिक ज्ञान प्राप्त करने जैसा है, यह तभी संभव है, जब आप पूर्णतः
स्वस्थ हों. अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करने के यंू को कई तरीके हैं, उनमें से ही एक
आसान तरीका है सूर्य नमस्कार करना.
सूर्य नमस्कार
योगासनों में सर्वश्रेष्ठ प्रक्रिया है. यह अकेला अभ्यास ही साधक को सम्पूर्ण योग
व्यायाम का लाभ पहुंचाने में समर्थ है. इसके अभ्यास से साधक का शरीर निरोग और
स्वस्थ होकर तेजस्वी हो जाता है. सूर्य नमस्कार स्त्री , पुरूष , बाल , युवा तथा वृद्धों
के लिए भी उपयोगी बताया गया है. सूर्य नमस्कार का अभ्यास बारह स्थितियों में किया
जाता है, जो
निम्नलिखित है-
--- दोनों हाथों को जोड़कर सीधे खड़े हों. नेत्र
बंद करें. ध्यान आज्ञा चक्र पर केंद्रित करके सूर्य भगवान का आव्हान मित्राय नमः
मंत्र के द्वारा करें.
---- श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से
सटाते हुए उपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं. ध्यान को गर्दन
के पीछे विशुद्धि चक्र पर केंद्रित करें.
--- तीसरी स्थिति
श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं. हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए
नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का
स्पर्श करें. घुटने सीधे रहें माथा
घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे मणिपूरक चक्र पर केंद्रित करते हुए
कुछ क्षण इसी स्थिति में रूकें कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें.
---- इसी
स्थिति में श्वास को भरते हुए
बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं. छाती को खींचकर आगे की ओर तानें. गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं.
टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ. इस स्थिति में कुछ
समय रूकें. ध्यान को स्वाधिष्ठान अथवा विशुद्धि चक्र पर ले जाएं मुखाकृति सामान्य
रखें.
-----श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए
दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं. दोनांे पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों. पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और
एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें. नितम्बों को अधिक से अधिक उपर उठाएं.
गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं. ध्यान सहस्रार चक्र पर केंद्रित
करने का अभ्यास करें.
----श्वास भरते हुए शरीर को पृथ्वी के समानांतर, सीधा साष्टांग
दण्डवत करें और पहले घुटने, छाती और माथा पृथ्वी पर लगा दें. नितम्बों
को थोड़ा उपर उठा दें. श्वास छोड़ दें. ध्यानको अनान्हत चक्र पर टिका दें. श्वास की
गति सामान्य करें.
----इस स्थिति में धीरें -धीरें श्वास को भरते
हुए छाती को आगे की ओर खींचते हुए हाथें को सीधे कर दें गर्दन को पीछे की ओर ले
जाएं । घुटने पृथ्वी का स्पर्श करते हुए तथा पैरों के पंजे खड़े रहें। मूलाधार को
खींचकर वहीं ध्यान को टिका दें।
----यह स्थिति - पांचवीं स्थिति के समान
----यह स्थिति - चौथी स्थिति के समान
-----यह स्थिति - तीसरी स्थिति के समान
------यह स्थिति - दूसरी स्थिति के समान
-----यह स्थिति - पहली स्थिति की भांति रहेगीं.
सूर्य नमस्कार की
उपरोक्त बारह स्थितियॉ हमारे शरीर को संपूर्ण अंगों की विकृतियों को दूर करके
निरोग बना देती हैं. यह पूरी प्रक्रिया अत्यधिक लाभकारी है. इसके अभ्यासी के
हाथों-पैरों के दर्द दूर होकर उनमें सबलता आ जाती है. गर्दन, फेफड़े तथा पसलियों
की मांसपेशियां सशक्त हो जाती हैं, शरीर की फालतू चर्बी कम होकर शरीर
हल्का-फुल्का हो जाता है. सूर्य नमस्कार के द्वारा त्वचा रोग समाप्त हो जाते हैं
अथवा इनके होने की संभावना समाप्त हो जाती है. इस अभ्यास से कब्ज आदि उदर रोग
समाप्त हो जाते हैं और पाचनतंत्र की क्रियाशीलता में वृद्धि हो जाती है. इस अभ्यास
के द्वारा हमारे शरीर की छोटी-बड़ी सभी नस-नाड़ियां क्रियाशील हो जाती हैं, इसलिए आलस्य, अतिनिद्रा आदि
विकार दूर हो जाते हैं. सूर्य नमस्कार की तीसरी व पांचवीं स्थितियां सर्वाइकल एवं
स्लिप डिस्क वालें रोगियों के लिए वर्जित हैं. (साई फीचर्स)
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