शुक्रवार, 7 अगस्त 2009

अब न होगा कोई अंगूठा टेक!

(लिमटी खरे)


``मैं भारत के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा के सिद्धांत को दृढ़तापूर्वक मानता हूं। मैं यह मानता हूं कि इस लक्ष्य को पाने का सिर्फ यही रास्ता है कि हम बच्चों को उपयोगी औद्योगिक शिक्षा दें और उसके द्वारा उनकी शारीरिक, मानसिक तथा आध्याित्मक शक्तियों का विकास करें।``
उक्त कथन किसी ओर का नहीं उन्हीं राष्ट्रपिता मोहन दास करमचंद गांधी का था, जिनके चित्रों को भारत सरकार द्वारा देश की मुद्रा पर छापा जाता है। बापू के कथन को आजाद भारत की सरकारों ने किस कदर आत्मसात किया है, यह बात किसी से छिपी नहीं है।
आजादी के बाद भारत पर शासन करने वाली सरकारों ने किस तेजी से लोगों को बुनियादी सुविधाएं मुहैया करवाई हैं, उसका जीता जागता उदहारण है ``अनिवार्य शिक्षा विधेयक``। विडम्बना ही कही जाएगी कि शिक्षा को अनिवार्य बनाने में देश पर आधी सदी से अधिक राज करने वाली अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को बासठ साल लग गए।
बहरहाल ``देर आयद, दुरूस्त आयद`` की तर्ज पर ही सही देश में शिक्षा की अनिवार्यता को लागू किया गया है, जिसकी प्रशंसा करने भर से काम नहीं चलने वाला। केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री इसे पास करवाने के बाद फूले नहीं समा रहे होंगे। ``अभी तो यह अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई है`` जुमले को दृष्टिगत रखते हुए अब केंद्र और राज्य सरकारों की जवाबदेही पहले से कई गुना अधिक बढ़ गई है।
जब यह विधेयक पास हुआ तब राज्य सभा में सांसदों की उपस्थिति 230 में से महज 54 और लोकसभा में 543 में से केवल 113 थी। अर्थात कुल 773 में से 167 संसद सदस्यों ने इस चर्चा में भाग लेने की जहमत उठाई। महज 21 फीसदी संसदों की उपस्थिति के साथ ही अनिवार्य शिक्षा के प्रति देश की सबसे बडी पंचायत के सदस्यों की जवाबदेही साफ हो गई है।
मीडिया की चुप्पी भी इस मामले में आश्चर्य जनक ही लग रही है। इससे आम भारतीय के दिलो दिमाग में एक प्रश्न का घुमड़ना स्वाभाविक ही है कि जिस विधेयक के लिए देश ने बासठ साल इंतजार किया उसका इतना फीका स्वागत! यह सब कहीं इस विधेयक के सफल क्रियान्वयन के मार्ग के शूल तो नहीं दर्शा रहा है।
इस विधेयक को लेकर राजनैतिक फिजाएं गर्म हो चुकी थीं। अनेक राजनेता प्रत्यक्ष और परोक्ष तौर पर शिक्षा के व्यवसायिक अड्डों के मालिक बने हुए हैं। इस बिल के आने के उपरांत उनकी शिक्षा की दुकानों में टाट के पैबंद शायद ही उन्हें शोभा दें। जानकार इस मामले में शिक्षा में निवेश घटने और विद्यालयों की गुणवत्ता घटने की दुहाई भी दे रहे थे।
इस विधेयक में सबसे गोलमोल बात यह है कि शिक्षा को अनिवार्य तो कर दिया गया है, किन्तु उसके लिए जरूरी धनराशि की व्यवस्था की स्पष्ट व्याख्या नहीं की गई है। इसके साथ ही साथ केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय किस आधार पर होगा यह बात भी साफ नहीं की गई है। बासठ साल बाद भी गोल मोल तरीके से इस तरह के महात्वपूर्ण मुद्दे को पेश करने से सरकार की मंशा पर संदेह होना स्वाभाविक ही है।
गौरतलब होगा कि इससे पूर्व साठ के दशक में दौलत सिंह कोठारी और अस्सी के दशक में राममूर्ति कमेटी ने भी अपने प्रतिवेदन में ``पड़ोस के स्कूल`` की अवधारणा पर बल दिया था। विडम्बना से कम नहीं है कि आधी शताब्दी बीत जाने के बाद अब पड़ोस के स्कूल की अवधारणा मूर्तरूप लेती दिख रही है। इस विधेयक में यह प्रावधान रखा गया है कि कोई भी स्कूल भले ही वह किसी भी अभिजात्य वर्ग के लिए क्यों न हो में 25 फीसदी सीटें गरीब गुरबों के बच्चों के लिए सुरक्षित रखना होगा। वैसे देश के ``अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त`` का दर्जा पा चुके स्कूलों में क्या गरीब बच्चे प्रवेश पा सकेंगे, यह बात संभव प्रतीत नहीं होती है।
वैसे एक बात यह भी सच है कि नब्बे के दशक से ही आई संचार क्रांति के बाद अब डरविन की थ्योरी पर विचार करने की अवश्यक्ता है। बकोल डरविन अपना अस्तित्व वही बचाकर रख सकता है, जो बदलाव के अनुरूप अपने आप को ढाल सकता हो। यह भी सच है कि बदलाव शिक्षा के रास्ते ही संभव है। विकसित देशों की तुलना में हमारे पिछड़ेपन का एक बड़ा कारण देश में अशिक्षितों की तादाद ज्यादा होना है।
वैसे देश के कानूनों को अगर बारीकी से देखा जाए तो उनसे बेहतर कानून जनता के हित में और कोई नहीं हो सकते हैं। सवाल यह है कि कानून के पालन की परवाह करने वाले निजाम कितने हैंर्षोर्षो कानून का पालन सुनिश्चित कराने वाले ही जब कानून को ठेंगा दिखाने की पहल करेंगें तो कानून के मायने क्या रह जाएंगे।
शिक्षा को मौलिक अधिकार में शामिल करना वह भी कानून के रूप में, निश्चित तौर पर एक बड़ा कदम है। इसके लिए यूपीए सरकार बधाई की पात्र है। अब इसे अक्षरश: लागू करवाना भी केंद्र और राज्य सरकारों की जवाबदारी ही है। देश के नागरिकों को चाहिए कि इस महात्वाकांक्षी कानून का पालन सुनिश्चित करने में स्कूल, बच्चों और स्कूलों के बीच समन्वय का वातावरण निर्मित करें।

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0 फोरलेन विवाद

दो प्रोजेक्ट की बढ़ाई गई समयावधि

0 अगले साल पूरा हो सकेगा एनएस कारीडोर का काम

(लिमटी खरे)


नई दिल्ली। स्विर्णम चतुभुZज के अंतर्गत बनने वाले दो अन्य गलियारों में उत्तर दक्षिण गलियारे का मार्ग मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के उपरांत सिवनी जिले से होकर जाएगा अथवा इसे किसी अन्य जिले से होकर गुजारा जाएगा इस बारे में सरकारी सफाई के अभाव में अटकलों का बाजार बुरी तरह गर्मा चुका है।
गौरतलब होगा कि 1995 में जब इस मार्ग के निर्माण की बात गर्भ में भी नहीं थी, उस समय सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दाखिल कर देश भर में वन्य जीवों और पेड़ों के संरक्षण की गरज से एक याचिका दायर की गई थी। इसके उपरांत अनेक याचिकाओं के दायर होने से इसमें क्लब कर दी गईं थीं।
इसी बीच अटल बिहारी बाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में देश के चारों महानगरों देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली, कोलकता, देश की व्यवसायिक राजधानी मुंबई ओर चेन्नई को जोड़ने के लिए स्विर्णम चतुर्भुज योजना का श्रीगणेश किया गया था। इसके बाद उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम को जोड़ने के लिए भी गलियारों को आरंभ करवाया गया था।
उत्तर दक्षिण गलियारा मध्य प्रदेश के ग्वालियर, सागर, नरसिंहपुर और सिवनी जिलों से होकर गुजर रहा है। कुछ दिनों पूर्व एक गैर सरकारी संस्था द्वारा सर्वोच्च न्यायलय की अधिकार प्राप्त समिति ``सीईसी`` के समक्ष एक याचिका प्रस्तुत की थी। इसके साथ ही साथ सीईसी ने मध्य प्रदेश शासन और जिला कलेक्टर सिवनी को अनुरोध पत्र जारी कर पेड़ों की कटाई रोकने का अनुरोध किया गया था। जिस पर तत्कालीन जिला कलेक्टर पिरकीपण्डला नरहरि द्वारा 18 दिसंबर 2008 को कटाई पर स्थगन दे दिया गया था।
इंटरनेट पर मौजूद एनएचएआई की वेब साईट पर प्रोजेक्ट इंप्लीमेंटेशन फेज दो में क्रमांक 64 में साफ तौर पर दर्शाया गया है कि लखनादौन से महाराष्ट्र बार्डर तक किलोमीटर 547.4 से किलोमीटर 596.75 के 49.3 किलोमीटर के मार्ग निर्माण का काम मार्च 2007 में आरंभ करवाया गया था एवं इसे सितंबर 2009 तक पूरा हो जाना था। इस मार्ग की समयावधि बढ़ाकर सितंबर 2010 कर दी गई है।
इसी तरह क्रमांक 67 पर उल्लेखित राजमार्ग चौराहा से लखनादौन तक के किलोमीटर 351 से 405.7 के 54.7 किलोमीटर के मार्ग निर्माण का काम अपे्रल 2006 में आरंभ करवाया गया था, एवं यह काम अक्टूबर 2008 में पूरा हो जाना चाहिए था, किन्तु इसे भी दिसंबर 2010 तक बढ़ा दिया गया है।
इसके अलावा क्रमांक 88 पर उल्लेख किया गया है कि लखनादौन से महाराष्ट्र बार्डर तक के काम में किलोमीटर 596.75 से 653.225 तक के 54.47 किलोमीटर के काम को दिसंबर 2007 में आरंभ करवाया गया था एवं इसे जून 2010 में पूरा होना है, इसकी समयावधि यथावत रखी गई है।

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वीआरएस की राह पर प्रवेश शर्मा

0 मोहम्मद सुलेमान जा सकते हैं भूतल परिवहन मंत्रालय में

(लिमटी खरे)


नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में सिवनी सहित अनेक जिलों की कमान संभालने वाले भारतीय प्रशासनिक सेवा के मध्य प्रदेश के 1982 बैच के अधिकारी जल्द ही स्वेच्छिक सेवानिवृति ले सकते हैं। वर्तमान में श्री शर्मा मध्य प्रदेश सरकार के कृषि एवं सहकारिता विभाग में प्रमुख सचिव हैं।
श्री शर्मा के करीबी सूत्रों का दावा है कि वे जल्द ही एशियाई विकास बैंक (एडीबी) को अपनी सेवाएं सौंप सकते हैं, इसके लिए प्रवेश शर्मा को स्वैच्छिक सेवा निवृति लेना अत्यावश्यक ही होगा। सूत्रों ने आगे बताया कि एडीबी द्वारा भी श्री शर्मा के स्वागत की तैयारियां आरंभ कर दी हैं। एडीबी द्वारा देश की व्यवसायिक राजधानी दिल्ली में इंडिया रेसीडेंट मिशन में वरिष्ठ कृषि विशेषज्ञ का पद सृजित कर दिया है, जिसे जल्द ही प्रवेश शर्मा संभाल सकते हैं।

0 सुलेमान जा सकते हैं सरफेस ट्रांसपोर्ट मिनिस्ट्री में

वहीं दूसरी और भारतीय प्रशासनिक सेवा के मध्य प्रदेश काडर के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी मोहम्मद सुलेमान भी जल्द ही केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्रालय में अपनी आमद दे सकते हैं। सरफेस ट्रांसपोर्ट मिनिस्ट्री के सूत्रों के मुताबिक चूंकि मोहम्मद सुलेमान मध्य प्रदेश में काफी समय से सचिव लोक निर्माण और सड़क विकास प्राधिकरण के प्रबंध संचालक भी हैं।

0 पचौरी और दास सूचिबद्ध

भारतीय पुलिस सेवा के मध्य प्रदेश काडर के 1993 बेच के अधिकारी पी.एन.पचौरी और पी.के.दास को केंद्र सरकार द्वारा सूचिबद्ध कर लिया गया है।

0 शर्मा शिक्षा निदेशक नियुक्त
छत्तीसगढ़ काडर की 1994 बैच की भारतीय प्रशासनिक सेवा की अधिकारी ऋचा शर्मा को केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर भेजने के उपरांत प्राथमिक शिक्षा निदेशक के बतौर नियुक्ति दी गई है।

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अब संगठन पर चलेगा सोनिया का कोड़ा

0 आजाद, मोईली, सामी, रमेश, चव्हाण, वासिनिक आदि पर गिरेजी गाज

0 एक व्यक्ति एक पद का सिद्धांत होगा कड़़ाई से लागू

0 राहुल का वर्चस्व होगा नई कार्यकारिणी में

(लिमटी खरे)


नई दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी का ध्यान इन दिनों संगठन में जान फूंकने की ओर दिखने लगा है। एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत को जल्दी ही कड़ाई से लागू कराने की मुहिम छेड़ी जाने वाली है, इससे अनेक केंद्रीय मंत्रियों के पैरों तले से संगठन की जमीन खींचकर दूसरे नेताओं को जिम्मेदारी देने की कवायद की जा रही है।
कांग्रेस की सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ के करीबी सूत्रों का दावा है कि कांग्रेस अध्यक्ष अब संगठन को दुरूस्त करने का उपक्रम करने वाली हैं। इसके लिए उन्होंने कांग्रेस के ताकतवर महासचिव दिग्विजय सिंह, अहमद पटेल और अपने पुराने विश्वस्त विसेंट जार्ज को सक्रिय कर दिया है।
सूत्रों ने कहा कि सोनिया गांधी की ये तीनों ही बैसाखियां रोजना देश भर से आने वाले कार्यकर्ताओं और नेताओं से अपने अपने घरों पर ही मिलने का काम करके शाम को समूचे घटनाक्रम की संक्षिप्त जानकारी (ब्रीफ नोट) अपने मशविरे के साथ राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी को प्रेषित कर देती हैं।
सूत्रों की माने तों केंद्रीय मंत्री ए.के.अंटोनी जो कि महाराष्ट्र के प्रभारी हैं, को छोड़कर शेष मंत्रियों के पास से संगठन का दायित्व वापस लिया जाने वाला है। इनमें जयराम रमेश, गुलाम नवी आजाद, पृथ्वीराज चौव्हाण, वी.नारायण सामी, मुकुल वासनिक, वीरप्पप मोईली को पार्टी मुख्यालय 24 अकबर रोड़ से मुक्त कर आधा दर्जन नए चेहरों को संगठन में महात्वपूर्ण जवाबदारी सोंपी जाएगी।
सोनिया की नई टीम में राहुल फेक्टर साफ दिखाई देगा। इसमें युवाओं को ज्यादा तरजीह मिलने की उम्मीद है। राहुल के निशाने पर इस समय बिहार और उत्तर प्रदेश है, सो इन दोनों सूबों को खासी तरजीह इसमें मिलने की संभावनाएं भी जताई जा रही हैं। कांग्रेस के मीडिया प्रभाग का कायाकल्प भी होने की उम्मीद जताई जा रही है। इसके साथ ही साथ शिवराज पाटिल, बी.एल.पुनिया और शकील अहमद को भी संगठन में स्थान मिलने की चर्चाएं हैं।