गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

कब तक क्षमा करोगे शिशुपाल को

कब तक क्षमा करोगे शिशुपाल को
आप भारत गणराज्य के जिम्मेदार मन्त्री हैं थुरूर साहेब
थुरूर को क्यों झेल रही है कांग्रेस!


(लिमटी खरे)

सोशल नेटविर्कंग वेवसाईट टि्वटर और शशि थुरूर दोनों ही एक दूसरे के पूरक हो चुके हैं। हालात देखकर लगता है कि आजाद भारत के गणराज्य में विदेश राज्य मन्त्री शशि थुरूर सोते जागते बस टि्वटर के ही सपने देखते रहते हैं। उन्हें भारत सरकार के कामकाज से कोई खास लेना देना नहीं है। वे बस इस वेव साईट पर अपने प्रशंसकों से रूबरू होते रहते हैं। वे इस वेव साईट को प्रचार प्रसार का एक अच्छा माध्यम भी मानते हैं। हमने अपने पूर्व आलेखों में साफ तौर पर कहा था कि बदनामी से बचने के लिए भारत सरकार को टि्वटर खरीद लेना चाहिए, और अपने सारे के सारे काम काज इस पर ही निष्पादित करने चाहिए। पहली बार उंट पहाड के नीचे आता दिख रहा है। आईपीएल में लगे धन के मामले में जब ललित मोदी ने टि्वटर पर चीजें सार्वजनिक की तो थुरूर तिलमिला उठे।

आईपीएल कमिश्नर ललित मोदी ने अपने टि्वटर के पेज पर जब आईपीएल में कोिच्च टीम के हिस्सेदारों के नाम उजागर किए तब हंगामा मचा। इस फेहरिस्त में ब्यूटीशियन सुनन्दा पुष्कर का नाम भी है। इस टीम को रोन्देवू स्पोर्टस क्लब ने 1533 करोड रूपए की बोली लगाकर खरीदा है। इसमें सुनन्दा की हिस्सेदारी सत्तर करोड रूपए बताई गई है, जिन्हें यह फ्री इक्वीटी के तौर पर दी गई है। इसमें 25 फीसदी रोन्देवू तो 19 फीसदी शेयर सुनन्दा के पास है। हाल ही में सुनन्दा शशि थुरूर की तीसरी बीवी बनने की खबरों की अफवाहों से चर्चा में आईं हैं। मोदी का आरोप है कि थुरूर के दबाव में यह हिस्सेदारी सुनन्दा को दी गई है।
 
केन्द्रीय मन्त्री जतिन प्रसाद के ब्याह से चर्चा में आईं हैं सुनन्दा पुष्कर। दरअसल जतिन की शादी में केन्द्रीय विदेश राज्यमन्त्री शशि थुरूर अपनी एक महिला मित्र के गले में हाथ डाले घूम रहे थे। यह महिला मित्र और कोई नहीं सुनन्दा पुष्कर ही थीं। वूमेन कालेज श्रीनगर से ग्रेजुएट सुनन्दा 2005 मेें टीकाम इंवेस्टमेंट कंपनी में सेल्स मैनेजर थीं। इसके बाद वे दुबई में जाकर निर्माण करोबार से जुड गईं थीं। सुनन्दा के पिता सेवानिवृत लेिफ्टनेंट कर्नल पीएन दास श्रीनगर जाकर सेटल हो गए थे। सुनन्दा दिल्ली के एक होटल में काम करती थी, तभी उसने कश्मीरी युवक से शादी की पर शादी परवान न चढ सकी और दोनों का तलाक हो गया। इसके बाद उसने दुबई में शादी की, सुनन्दा के पति की दिल्ली में सडक दुघZटना में मौत हो गई थी। अगर थुरूर की वे जीवन संगनी बनती हैं तो यह उनकी तीसरी शादी होगी। इसी तरह चर्चा है कि थुरूर भी अपनी सात समन्दर पार वाली पित्न से तलाक लेने वाले हैं सो थुरूर की भी यह तीसरी शादी होगी।
 
बहरहाल समूचे घटनाक्रम को देखकर एक बात साफ होने लगी है कि अपने जीवन का आधे से ज्यादा समय विदेशों में बिताने वाले शशि थुरूर के मन में लक्ष्मी के प्रति मोह हद से ज्यादा बढ चुका है। शशि थुरूर भूल जाते हैं कि वे अब ब्यूरोक्रेट नहीं हैं, आम नागरिक नहीं हैं, वे भारत गणराज्य के जिम्मेदार मन्त्री पद की आसनी पर हैं, जहां ये सारी बातें शोभा नहीं देती। शादी ब्याह करना, निभना न निभना उनका नितान्त निजी मामला हो सकता है, पर जहां तक रही रूपयों पैसों की बात तो उसमें कोई भी बात निजी नहीं रह जाती जबकि आप जनसेवक हों। आईपीएल में हो रही धनवषाZ से सभी उसकी ओर आकषिZत हो रहे हैं। क्रिकेट की दीवानी समूची दुनिया है। भारत में इसका जादू सर चढकर बोल रहा है। आईपीएल में पैसे बन रहे हैं। इस पर खेला जाने वाला सट्टा भी अरबों खरबों को पार कर गया है। क्या राजनेता, क्या उद्योगपति क्या रूपहले पर्दे के सितारे। सभी एक ही भाषा में राग अलाप रहे हैं। शाहरूक ने तो यह तक कह दिया कि अगर उनकी टीम जीती तो वे नंगे होकर स्टेडियम में नाच करेंगे। शाहरूक के बयान के बाद भी भारत सरकार चुप बैठी है। अरे भई हिन्दुस्तान संसकारों के कारण जाना जाता है, यहां नग्नता का कोई स्थान नहीं है। वैसे भी इस मर्तबा मामला कुछ फसव्वल वाला लग रहा है। सार्वजनिक पद पर बैठे एक जनसेवक खासकर जब वह भारत गणराज्य का जिम्मेदार मन्त्री हो तब उससे तो सटीक राजनैतिक आचरण, उत्तम चरित्र और जवाबदेही तथा पारदर्शिता की उम्मीद बेमानी नहीं होगी। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि इस मामले में शशि थुरूर का परफारमेंस ऋणात्मक ही रहा है। जिस तरह थुरूर एकाएक राजनैतिक परिदृश्य में आए और मन्त्रीपद की आसनी से नवाजे गए वह भारतीय राजनीति में ही सम्भव है। थुरूर जैसे गैर जिम्मेदार मन्त्री ने अब तक कभी भी परिपक्वता नहीं दिखाई है।
 
थुरूर कहते हैं कि मोदी ने गोपनीयता के नियमों का उल्लंघन किया है जिसमें कहा गया है कि आईपीएल की टीमों के मालिकों के बारे में कोई जानकारी उजागर न करने की शर्त रखी गई थी। सवाल यह उठता है कि जब पारदर्शिता का दायरा न्यायधीशों की कुर्सी तक पसर चुका हो तब पर्दे के पीछे के इन मालिकों के चेहरों के नकाब क्यों नहीं उतरना चाहिए। अगर इसमें मालिकों की गोपनीयता की शर्त रखी गई है तो जाहिर है कि इसमें गलत धंधों में लिप्त लोगों का पैसा लगा होगा तभी उन्होंने आईपीएल में इस तरह की शर्त रखवाई।
 
वैसे देखा जाए तो शशि थुरूर का विवादों से साक्षात्कार उनके मन्त्री बनने के बाद ही हुआ है। वैश्विक आर्थिक मन्दी के दौर में जब कांग्रेस की राजमाता सोनिया गांधी ने दिल्ली से मुम्बई की यात्रा विमान में बीस सीट खाली छुडवाकर इकानामी क्लास में की तो शशि थुरूर ने इसके बाद टि्वटर पर टिप्पणी करते हुए इकानामी क्लास को केटल क्लास (मवेशी का बाडा) की संज्ञा दे डाली। विदेश दौरे से लोटने पर उन्होंने काम के बोझ की बात भी बात कही थी। बार बार चेताने के बाद भी थुरूर का टि्वटर प्रेम बरकार ही है। पता नहीं कांग्रेस उन्हें सहन क्योें कर रही है। भगवान श्रीकृष्ण ने शिशुपाल की सौ गिल्तयों को माफ किया था, पर उसके बाद उसे दण्डित किया था। अब यह बात तो कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी ही जाने कि वे थुरूर की कितनी गिल्तयों को सहने का प्रण ले चुकीं हैं।
 
इसी तरह ठहरे हुए पानी में कंकर मारकर लहरें पैदा करने वाले ललित मोदी भी कम विवादित नहीं रहे हैं। अस्सी के दशक में विदेश में पढाई के दौरान अमेरिका के डरहम काउंटी में जज द्वारा उन पर 1985 में चार सौ ग्राम कोकीन रखने और अपहरण करने का आरोप मढा गया था, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया था, और प्ली बारगेन के माध्यम से सजा से बच गए थे। मोदी पर 2005 में राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष बनने के दौरान घालमेल करने का आरोप है। आईपीएल के दौरान भारत के सम्मान के प्रतीक तिरंगे पर शराब रखकर पिलवाने का मामला अभी पुलिस के पास विचाराधीन ही है। इसके अलावा भाजपा की वसुंधरा राजे की सरकार के कार्यकाल में उन पर भारतीय पुलिस और प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों से दुर्वयवहार के अनेक आरोप हैं। बात निकली है तो दूर तलक जाएगी की तर्ज पर अब मोदी पर भी महिला मित्र का दांव फेंका गया है। बताते हैं कि मोदी ने अक्रीकी माडल ग्रेब्रीला दैमित्री का वीजा रद्द करवाने का प्रयास किया था। मोदी और इस माडल के सम्बंधों के बारे में अब तरह तरह की चर्चाएं आम होती जा रहीं हैं।
 
शशि थुरूर को बचाने अब उनके पक्ष में उनकी कथित प्रेयसी सुनन्दा पुष्कर आ गईं हैं। सुनन्दा का कहना है कि शशि थुरूर एक ईमानदार और उसूलों पर चलने वाले इंसान हैं। मीडिया में आईं खबरों के अनुसार सुनन्दा इस वक्त दुबई में हैं और वे टीम में उनकी हिस्सेदारी में थुरूर की कोई भूमिका है। उन्होंने कहा कि वे पहले कोलकता नाईट राईडर्स से जुडना चाह रहीं थीं, और अब अपनी सेवाएं केिच्च की टीम को दे रहीं हैं। उधर शाहरूख खान इस बात का खण्डन कर रहे हैं कि सुनन्दा ने कभी उनसे जुडने की पेशकश की थी।
 
इस मामले का सबसे गम्भीरतम पक्ष यह है कि विपक्ष ने आरोप लगाया है कि आईपीएल की टीम को खरीदने के लिए भारत गणराज्य के मन्त्री शशि थुरूर ने अपने पद का इस्तेमाल किया और उसके एवज में मिलने वाली मेहनताने (रिश्वत) को उन्होंने अपनी होने वाली पित्न सुनन्दा की झोली में डलवा दिया। शशि थुरूर और सुनन्दा चौधरी दोनों ही आपस में एक दूसरे को अच्छे से जानते हैं यह बात पूरी तरह स्थापित हो चकी है। इस लिहाज से अगर देखा जाए तो यह मामला एक मन्त्री द्वारा निजी लाभ के लिए पद के दुरूपयोग का है, नैतिकता के नाते प्रधानमन्त्री डॉ. मन मोहन सिंह को वापस लौटते ही तत्काल प्रभाव से थुरूर को पद से प्रथक कर देना चाहिए। कांग्रेस के पास यह एक अच्छा मौका है, थुरूर से पीछा छुडाने का।
 
यह मामला अब देश की सबसे बडी अदालत तक पहुंच चुका है। अधिवक्ता अजय अग्रवाल द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में दायर याचिका में कहा गया है कि कोिच्च टीम को खरीदने के लिए कथित तौर पर हवाला के माध्यम से काले धन को इसमें शामिल किए जाने की आशंका है। अग्रवाल ने इस मामले में न्यायालय के विशेष जांच दल या फिर सीबीआई से इसे करवाने की गुहार लगाई है।
 
जानकारों का कहना है कि थुरूर मोदी विवाद के जरिए सियासी हिसाब किताब भी बराबर किए जा रहे हैं। इस विवाद के तार दरअसल कांग्रेस, भाजपा और राष्ट्रवादी कांग्रेस के क्रिकेट से जुडे नेताओं की बेटरी में जाकर ही मिल रहे हैं। इस विवाद को उर्जा वहीं से मिल रही है। कहा जा रहा है कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के कुछ दिग्गजों ने मोदी को शह दी है। ये सभी कोिच्च की टीम की इतनी अधिक बोली को पचा नहीं पा रहे हैं। इन बिग गन्स का सीधा सम्बंध मुम्बई और अहमदाबाद के अनेक कार्पोरेट घरानों से है।
 
दूसरी ओर भाजपा के साथ मोदी की गलबहिंयां देखकर कांग्रेस रक्षात्मक मुद्रा में दिखाई दे रही है। कहा जा रहा है कि केरल की टीम के साथ वहां के लोगों का भावनात्मक लगाव है। केरल में अगले साल विधानसभा चुनाव भी हैं। यही कारण है कि शशि थुरूर के द्वारा अत्त मचाने के बाद भी कांग्रेस उन्हें गोदी में ही खिला रही है। कांग्रेस को भय है कि कहीं कोिच्च टीम के विवाद से राज्य में कांग्रेस के खिलाफ माहौल न बन जाए जिसका खामियाजा उसे अगले चुनावों में उठाना पडे। इसी के मद्देनज़र कांग्रेस अध्यक्ष ने विदेश मन्त्री एम.एस.कृष्णा और कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला दोनों को 10 जनपथ बुला भेजा। इसके बाद सोनिया ने अपने तारणहार प्रणव मुखर्जी को तलब किया है। इनके बीच शशि थुरूर को लेकर क्या रणनीति तय हुई यह तो वक्त के साथ ही सामने आ सकेगी।

पेंच के मामले में सख्त हुए जयराम रमेश

पेंच के मामले में सख्त हुए जयराम रमेश

नहीं लगने देंगे पेंच में पावर प्रोजेक्ट 

कमल नाथ और रमेश की टकराहट बढी

फोरलेन के बाद अब पावर प्लांट में फसाया फच्चर

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 15 अप्रेल। केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन राज्य मन्त्री जयराम रमेश और भूतल परिवहन मन्त्री जयराम रमेश के बीच चल रही तनातनी अब और बढती दिखाई दे रही है। पिछले कार्यकाल में तत्कालीन वाणिज्य और उद्योग मन्त्री कमल नाथ के अधीन वाणिज्य राज्य मन्त्री रहे जयराम रमेश के मन में उस कार्यकाल की कोई दुखद याद उन्हें आज भी साल रही है, तभी वे कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र मध्य प्रदेश के जिला छिन्दवाडा और सिवनी के तहत आने वाले पेंच नेशनल पार्क पर अपनी नज़रें गडाए हुए हैं।
राजधानी में पत्रकारों से रूबरू जयराम रमेश ने कहा कि वन एवं पर्यावरण मन्त्रालय की नीति बहुत ही स्पष्ट है। एसी किसी परियोजना को अनुमति नहीं दी जाएगी जिसमें संरक्षित क्षेत्र के पानी का व्यवसायिक उपयोग संभावित हो। रूडयार्ड किपलिंग की जंगल बुक के मोगली की कर्मभूमि रही मध्य प्रदेश का पेंच नेशनल पार्क अब जयराम रमेश की आंख में खटक रहा है। गौरतलब है कि इस अभ्यरण का एक छोर कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र जिला छिन्दवाडा तो दूसरा भगवान शिव के जिले सिवनी में है।
इस अभ्यारण के निकट प्रस्तावित विद्युत परियोजना के बारे में पूछे जाने पर जयराम रमेश कहते हैं कि अदाणी समूह की 1320 मेगावाट क्षमता की बिजली परियोजना प्रस्तावित है। उन्होंने पेंच संरक्षित क्षेत्र के पानी का व्यवसायिक इस्तेमाल हो सकने की संभावना को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि उनहोंन हिमाचल प्रदेश की प्रस्तावित उस योजना को पर्यावरण मंजूरी देने के आवेदन को अस्वीकार कर दिया है जिसमें संरक्षित क्षेत्र के पानी का व्यवसायिक उपयोग होना दर्शाया गया था।
जयराम रमेश ने जिन परियोजनाओं को अनुमति देने से इंकार किया है, उनमें गुजरात के जामनगर में पोशिट्रा बन्दरगाह के निर्माण के लिए गल्फ ऑफ कच्छ मेरीन नेशनल पार्क के हिस्सों को मांगा गया था, इसके अलावा हिमाचल के माजथल वाईल्ड लाईफ सेंचुरी में अंबुजा सीमेंट द्वारा पानी लेने के मामले, आंध्र में कोलुरू झील सेंचुरी इलाके की एक योजना शामिल है।
रमेश के करीबी सूत्रों का कहना है कि मनमोहन सिंह के पिछले कार्यकाल में वाणिज्य और उद्योग मन्त्री रहे कमल नाथ ने जयराम रमेश के अधिकारों में बहुत ज्यादा कटौती कर रखी थी। सूत्रों का कहना है कि रमेश के अधिकांश प्रस्तावों को नाथ द्वारा अस्वीकृत कर लौटा दिया जाता था। इतना ही नहीं अनेकों बार अधिकारियों के सामने भी जयराम रमेश को जलील होना पडा था। अपने मन में उस पीडा को सालों दबाए बैठे रमेश को इस बार भाग्य से वन एवं पर्यावरण मन्त्रालय मिल गया है। गौरतलब है कि नाथ के पास यह मन्त्रालय नरसिंम्हाराव की सरकार के वक्त था। अब नाथ से खार खाए अधिकारी ही एक हाथ में लालटेन और एक हाथ में लाठी लेकर जयराम रमेश को कमल नाथ के खिलाफ रास्ता दिखा रहे हैं।
पिछले साल स्विर्णम चतुZभुज के अंग रहे उत्तर दक्षिण गलियारे में भी पेंच नेशनल पार्क को लेकर पर्यावरण का ही फच्चर फंसाया गया था। सूत्रों की मानें तो वन मन्त्रालय के अधिकारियों ने जयराम रमेश को बता दिया कि पेंच से होकर कान्हा तक के गलियारे में वन्य जीव विचरण करते हैं, और नक्शे में भी पेंच नेशनल पार्क को कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र का हिस्सा दर्शाया दिया गया है। फिर क्या था, जयराम रमेश नहा धोकर इस फोरलेन मार्ग के पीछे लग गए। सूत्रों के अनुसार अब पेंच का नाम आते ही जयराम रमेश के कान तक लाल हो जाते हैं और वे लाल बत्ती दिखाने के मार्ग ही खोजने में लग जाते हैं।