बुधवार, 11 जनवरी 2012

गुमराह पंचायत या पंच!


गुमराह पंचायत या पंच!

(लिमटी खरे)

सादगी की प्रतिमूर्ति महात्मा गांधी ने आधी धोती पहनकर अपने अहिंसा के हथियार से उन ब्रितानियों के दांत खट्टे किए जिनके बारे में किंवदंती थी कि ब्रितानियों का सूरज कभी डूबता ही नहीं है। बीसवीं सदी के अंतिम दशकों में महात्मा गांधी की कमी शिद्दत से महसूस की जाने लगी थी। तभी सत्तर के दशक में जयप्रकाश नामक लोकनायक का उदय हुआ। इसके उपरांत इक्कीसवीं सदी में अब अण्णा हजारे में लोग गांधी और जेपी की छवि देख रहे हैं। सांप बिच्छू के मानिंद हो चुकी नेतागिरी के बावजूद अण्णा ने अपने आंदोलन को जिस अहिंसक तरीके से अंजाम दिया वह निश्चित तौर पर सराहनीय कहा जा सकता है। गांधी के इस देश में जनता का जनादेश प्राप्त नुमाईंदे जनता के ही गाढ़े पसीने की कमाई में किस कदर आग लगा रहे हैं, उसे सिर्फ देश ही नहीं वरन् विदेशों में भी देखा जा रहा है।

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देश की सबसे बड़ी पंचायत के चलने में हर दिन का औसतन खर्च छः करोड़ 35 लाख रूपए बैठता है। इस पंचायत के पंच यानी सांसदों द्वारा जनता के गाढ़े पसीने की कमाई के पैसों को पानी में बहा दिया जाना निःसंदेह निंदनीय ही माना जाएगा। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के अस्तित्व में आने के उपरांत जून 2004 से 2010 तक कुल 352 बैठकें ही संपन्न हो पाईं। देश के संविधान निर्माताओं ने जब संसदीय लोकतंत्र की परिकल्पना की होगी तब निश्चित रूप से उन्होंने एक खुशहाल भारत का सपना देखा होगा, लेकिन आज की संसद देखकर लगता है कि संसद का मकसद सिर्फ और सिर्फ हंगामा खड़ा करना ही रह गया है। देखा जाए तो संसद बनती है सांसदों से, और अगर सांसदों का चरित्र और चेहरा बदल जाए तो उसका सीधा असर संसद की गरिमा और संसद के कार्यकलापों पर पड़ना स्वाभाविक ही है।
गणतंत्र की स्थापना के साथ ही जो लोग राजनीति में आए थे, वे आजादी के संघर्ष में तपे हुए थे। उनका उद्देश्य त्याग कर जनसेवा करने का था। कालांतर में इसका स्वरूप विकृत हुआ और यह लाभ कमाने का अच्छा जरिया बन गई। एक लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए कम से कम दस से बीस करोड़ रूपयों की आवश्यक्ता होती है। यक्ष प्रश्न यह है कि इतना पैसा व्हाईट मनी के बतौर किसी के पास नहीं है, जाहिर है इसी के चलते चुनाव लड़ने वाले या तो आपराधिक चरित्र के लोगों से गलबहियां करते दिखते हैं या खुद इस चरित्र के लोग राजनीति में आ जाते हैं। अध्ययनों से साफ है कि देश में वर्तमान में 543 सांसदों वाली लोकसभा में करोड़पति सांसदों की तादाद 300 के उपर है।
संसद के मुख्य सात कमों में कार्यपालिका का नियंत्रण, कानून बनाना, वित्त का नियंत्रण, संवैधानिक काम, विमर्श आरंभ करना, न्यायिक कार्य और निर्वाचन संबंधी काम शामिल हैं। एक समय था जब संसद के सत्रों का पचास प्रतिशत से अधिक समय कानून बनाने में व्यतीत होता था। पिछले अनेक सालों में इसकी तादाद घटकर महज 15 प्रतिशत ही रह गई है। शून्य काल को काफी गंभीरता से लिया जाता था आरंभिक वर्षों में किन्तु कालांतर में शून्यकाल को तवज्जो देना ही बंद करने की प्रथा सी चल पड़ी है।
संसद के दोनों सदनों और संसदीय कार्य मंत्रालय का वर्ष 2010-11 के लिए कुल बजट अनुमानतः 535 करोड़ रुपये था। एक साल में संसद तीन बार यानी बजट सत्र, मानसून सत्र और शीतकालीन सत्र के लिए बैठती है। पिछले पांच साल में हर साल संसद की औसतन 70 बैठकें हुई हैं। इस तरह एक सत्र की एक दिन की कार्यवाही पर 765 करोड़ रुपये का खर्च आता है। 2010 - 2011 के बजट, मानसून और शीतकालीन, तीनों सत्रों को मिलाकर वर्ष भर में कुल 80 बैठकें हुईं, जिनमें से व्यवधान और स्थगन के चलते 27 दिन कोई कामकाज नहीं हुआ। इस तरह लोकसभा ने 33 फ़ीसदी यानी करीब एक तिहाई समय बर्बाद कर दिया।
बाईस नवंबर को आरंभ हुए शीतकालीन सत्र भी लगभग ही हंगामे की भेंट चढ़ चुका है। एक समय था जब बांग्लादेश इसके लिए मशहूर हुआ करता था जहां विपक्षी दलों के बरसों लंबे बायकाट के कारण संसदीय साख में भारी गिरावट आई। वर्तमान में संसद सत्र पर हर घंटे खर्च होने वाली 25 लाख रुपए की रकम प्रासंगिक नहीं रह गई है। वर्तमान में धरने, प्रदर्शन, बंद, हड़ताल, की तुलना में संसदीय हंगामा अपनी पसंद के मुद्दों की ओर ध्यान खींचने का आसान जरिया बन रहा है। जिसके फलस्वरूप संसदीय परंपराओं तथा गरिमाओं का क्षरण स्वाभाविक ही है।
संसदीय कायर्वाही के आंकड़े उत्साहजनक किसी भी दृष्टिकोण से नहीं कहे जा सकते हैं। सन 2009 में शुरू हुई पंद्रहवीं लोकसभा में 200 प्रस्तावित विधेयकों में से अब तक सिर्फ 57 विधेयक पारित हो सके हैं। इनमें भी 17 फीसदी विधेयक ऐसे थे जिन पर पांच मिनट से भी कम समय के लिए चर्चा हुई। ऐसी चर्चाओं की सार्थकता का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है। इस बार के संसद के मौजूदा सत्र में 21 बैठकें होनी थीं, किन्तु नौ दिन इसमें व्यर्थ ही चले गए। इस बीच 31 विधेयकों के पारित होने और लोकपाल विधेयक समेत 23 बिलों को पेश किए जाने की बात अभी भविष्य के गर्भ में ही है।
विडम्बना है कि जनसेवकों ने संसद को कठपुतली के मानिंद नचाना आरंभ कर दिया है। एक समय जब राजग सरकार थी तब कांग्रेस का विपक्ष के बतौर यही बर्ताव हुआ करता था। कांग्रेस ने तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नाडीस पर आरोप लगाकर संसद में लंबे समय तक इसी तरह गतिरोध पैदा किया था। आज पात्र बदल चुके हैं। आज फर्नाडीस के स्थान पर पलनिअप्पम चिदम्बरम हैं और कांग्रेस की जगह भाजपा।
पिछले दो दशकों में इस साल के आरंभ का बजट सत्र सबसे संक्षिप्त था। इस सत्र में अनुदान मांगों के लिए 81 फीसदी बजटीय मांगों पर चर्चा ही नहीं हो पाई। इसमें वित्त विधेयक सहित पांच विधेयक पारित ही नहीं हो सके। इसमें लेजिस्लेशन पर लोक सभा में कुल प्रोडक्टिव टाईम का महज 12 तो राज्य सभा में कुल समय का इससे आधा यानी छः फीसदी समय ही खर्च किया गया था।
जनता के जनादेश प्राप्त नुमाईंदे जनता की कितनी परवाह करते हैं इस बात का अंदाजा पिछले साल के शीत कालीन सत्र से ही लगाया जा सकता है। 2010 के शीतकालीन सत्र में लोकसभा में 23 दिनों में से महज सात घंटे 30 मिनिट ही काम हो पाया था। सांसदों ने 124 घंटे 30 मिनिट का समय बर्बाद कर दिया था। राज्य सभा का आलम भी यही रहा। उच्च सदन में 23 दिनों में से महज 2 घंटे 44 मिनिट ही काम हो पाया था, इसमें 130 से ज्यादा घंटे बर्बाद हुए थे। इस दौरान सरकार का डेढ़ सौ करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ था। अमूमन एक सत्र में 15 से 20 विधेयक पारित कर लिए जाते हैं किन्तु इस सत्र में महज पांच विधेयक ही पारित किए जा सके थे।
पूर्व लोकसभाध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी सांसदों के इस हंगामाई व्यवहार से खासे व्यथित नजर आते थे। जब उनसे नहीं रहा गया तो 20 फरवरी 2009 को उन्होंने संसद में ही सांसदों के खिलाफ कड़ी टिप्पणी की थी। बकौल सोमदा -‘‘मैने कई बार अपील की है, किन्तु बहुत दुख है कि (सांसदों पर) कोई असर नहीं हुआ है। आप (सांसद) पब्लिक मनी का एक भी पैसा पाने के अधिकारी नहीं हैं। संसदीय लोकतंत्र में संसद देश का सर्वोच्च संसथान है, यह लोकतंत्र का प्रतीक है। यहां देश के कानून बनाए जाते हैं। यहां से देश का शासन चलता है। जब आपको काम करने का मौका मिलता है तब आप काम नहीं करते, इसका क्या फायदा! हलांकि बाद में उन्होंने अपने वक्तव्य पर खेद भी प्रकट किया था किन्तु उस वक्त तो उनका दुख सामने आ ही गया था।
देखा जाए तो इस साल का शीतकालीन सत्र इसलिए भी अधिक महात्वपूर्ण था क्योंकि इसमें देश और सरकार को हिला देने वाले अण्णा हजारे के द्वारा लोकपाल बिल पारित करवाने की बात कही गई थी। भाजपा भले ही अण्णा के साथ खड़ी नजर आए किन्तु जब बात लोकपाल बिल पारित करवाने की आती है तब वह संसद में हंगामा कर गतिरोध पैदा करती नजर आती है। भाजपा ने इतना हंगामा बरपाया पर महिला आरक्षण बिल को भी वह परवान चढ़वाने में सफल नहीं हो पाई।
यहां उल्लेखनीय है कि जार्ज पंचम ने आज से सौ साल पहले दिल्ली के एक छोर पर दरबार लगाया था. वह भी 11 दिसंबर ही था और अण्णा ने भी यही दिन चुना है। पिछले साल नवंबर दिसंबर में यही अन्ना हजारे यहां आये थे तो उनके इर्द गिर्द कुल जमा दो पांच सौ लोग थे। लेकिन आज साल भर बाद न केवल जंतर मंतर अन्ना हजारे के जलवे देख रहा है बल्कि राजनीति भी लुटियन्स जोन से निकलकर जंतर मंतर पर दस्तक दे रही है।
समय के साथ राजनेता कैसी पलटी मारते हैं इसकी मिसाल भी चंद माहों में ही देखने को मिली। इसी साल सितंबर में रामलीला मैदान पर अन्ना हजारे ने जब अनशन शुरू किया तो संसद में खड़े होकर शरद यादव ने अन्ना हजारे की ऐसी खबर ली थी कि राजनीति बनाम सिविल सोसायटी की जंग में वे राजनीति के हीरो नजर आये थे। लेकिन उन्हीं शरद यादव ने आज अन्ना के मंच से अन्ना हजारे को हीरो माना। बकौल शरद यादव भ्रष्टाचार की जो मुहिम चल पड़ी है आदरणीय अन्ना हजारे उसके नेता है। वैसे शरद यादव ऐसे नेता जरूर नजर आते हैं जो भाषण देने की कला में माहिर है। अटल बिहारी बाजनेयी के उपरांत एनडीए में ऐसा वाकपटु नेता दूसरा बचा नहीं है।
एक के बाद एक तारीख देने वाले अण्णा हजारे ने अब 22 दिसंबर तक का अल्टीमेटम दे दिया है। अण्णा ने सरकार पर देश को धोखा देने का आरोप लगाया और कहा कि अगर 22 दिसंबर तक उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वे 27 दिसंबर से आंदोलन करेंगे। इस बार अण्णा के सुर में सोनिया और राहुल गांधी के लिए भी खासी तल्खी दिखी। राहुल के गरीब की झोपड़ी में रात गुजारने के प्रहसन पर उन्होंने कटाक्ष करते हुए कह ही डाला कि एक दिन झोपड़ी में रहकर कोई प्रधानमंत्री नहीं बन जाता। वहीं सोनिया को बीमर कहकर उन्होंने कांग्रेस के नेतृत्व को ही कटघरे में खड़ा कर दिया।
सरकार पर अण्ण बेहद आक्रोषित हैं। अण्ण का कहना है कि कांग्रेस अपने ही प्रधानमंत्री को कुछ नहीं समझ रही है। पीएम का पत्र ही कचरे के डब्बे के हवाले कर दिया जाता है। तीस सदस्यीय संसदीय समिति के 17 लोगों के विरोध में होने के बाद भी प्रतिवेदन संसद पहुंच जाता है, क्या यही लोकतंत्र है?
लोकपाल बिल लोक सभा में 04 अगस्त 2011 को पेश किया गया था और इसे संसद की स्थायी समिति को 8 अगस्त को भेजा गया था। इस बिल का उद्देश्य एक ऐसा कानून बनाना है जो सरकार में विभिन्न पदों पर बैठे लोगों के भ्रष्टाचार के बारे में जांच करेगा। इस कमेटी के सामने विचार के लिए दस हज़ार सुझाव आये। अन्ना हजारे की टीम ने भी समिति के सामने कई बार हाज़िर होकर अपनी बात रखी 23 सितम्बर 2011 के दिन पहली बैठक हुई और अंतिम बैठक 7 दिसंबर को हुई। इस बीच कमेटी के सामने कई न्यायविद, भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश, गैरसरकारी संगठनों के प्रतिनधि, टीम अन्ना के प्रतिनिधि, स्वयं अन्ना हजारे, धार्मिक संगठन, सीबीआई, सीवीसी आदि बहुत सारे लोग पेश हुए। रिपोर्ट संसद में पेश होने के बाद समिति के अध्यक्ष, अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्रकारों से बात की और बताया कि सरकार के बहुत सारे सुझाव खारिज कर दिए गए हैं। जो ड्राफ्ट कमेटी के पास आया था उसको पूरी तरह से स्वीकार करने का कोई कारण नहीं था। करीब ढाई महीने की बैठकों के बाद जो सिफारिशें सरकार को दी गयी हैं उनमें टीम अन्ना समेत बहुत सारे लोगों के सुझाव हैं। किसी भी संगठन की बात को पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया गया है।

(साई फीचर्स)

संसद में उपस्थिति में कमजोर हैं माननीय


संसद में उपस्थिति में कमजोर हैं माननीय



(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। जनता सांसदों को चुनकर लोकसभा में इसलिए भेजती है ताकि सांसद उनकी बात संसद में रखें, उनके हितों के फैसले लेने में संसद का सहयोग करें। देशहित और जनहित के जुड़ी हर बात के लिए फैसला लेने में महत्वपूर्ण है संसद। संसद देश की सबसे बड़ी पंचायत मानी जाती है, इस पंचायत से पंचों (सांसदों) के गायब रहने का रिवाज सा बन गया है। सांसदों की अनुपस्थिति में संसद की बैठक स्थगित होना आम बात है इससे देश का कीमती वक्त और धन का अपव्यय ही होता है।
संसद में उपस्थिति के मामले में माननीय सांसदों की फेहरिस्त में अगर देखा जाए तो हंसोड़ सांसद नवजोत सिंह सिद्धू वर्ष 2009 - 2011 में 24 तो 2010 - 2001 में महज 24 फीसदी ही उपस्थित रहे। इसी तरह सुरेश कलमाड़ी 13/63, युवा सांसद जितेंद्र सिंह 46/63, मेनका गांधी 52/61, वरूण गांधी 37/59, सोनिया गांधी 24/53, राहुल गांधी 19/55, शरद यादव 52/69, लाल कृष्ण आड़वाणी 68/33, अशोक तंवर 57/72, अनंत कुमार 58/74, राजनाथ सिंह 57/67, मुरली मनोहर जोशी 64/75, कैलाश जोशी 57/69 एवं यशोधरा राजे सिंधिया ने 2011 में 43 तो 2010 में 79 फीसदी ही उपस्थित दर्ज कराई है। इस तरह कुल देखा जाए तो इन सालों में कुल औसत अधिकांश उपस्थिति 72/84 ही रही।

सामाजिक जिम्मेदारी का नहीं हो रहा निर्वहन


0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . .  49

सामाजिक जिम्मेदारी का नहीं हो रहा निर्वहन

प्रशासन की आंाखों में धूल झोंक रहा झाबुआ पावर लिमिटेड



(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। मशहूर उद्योगपति गौतम थापर जिनका राजनैतिक क्षेत्र में इकबाल जमकर बुलंद है, के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा केंद्र सरकार की छटवीं अनुसूची में अधिसूचित मध्य प्रदेश के सिवनी जिले की आदिवासी बहुल्य घंसौर तहसील में लगने वाले कोल आधारित पावर प्लांट में नियम कायदों को ताक पर सरेआम रखा जा रहा है और विकास के नाम पर मध्य प्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और केंद्र में राज करने वाली कांग्रेस दोनों ही दल जानबूझकर आंखें बंद किए हुए हैं।
मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा सामाजिक पहलू और सामाजिक जिम्मेदारी के नाम पर कागजी घोड़े दौड़ाए जा रहे हैं। आरोपित है कि इस संयंत्र के पहले चरण के कागजात में तो सामाजिक जिम्मेदारी और पहलू के बारे में उल्लेख किया गया था किन्तु जब दूसरे चरण की बारी आई तो इस मद में राशि का प्रावधान करने से मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड ने अपने हाथ ही खींच लिए।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक पहले चरण में सामाजिक पहलू के बारे में मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड ने वादा किया था कि वह स्थानीय लोगों को रोजगार मुहैया करवाएगा। यह रोजगार देने का काम निर्माण और कार्यकारी दोनों ही अवस्थाओं में उपलब्ध कराया जाना प्रस्तावित था।
विडम्बना ही कही जाएगी कि निर्माण अवस्था में दो साल बीत जाने के बाद भी स्थानीय लोग आज भी मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के संयंत्र प्रबंधन का मुंह ताकने पर मजबूर हैं। 22 नवंबर 2011 को संयंत्र के पास ग्राम गोरखपुर में हुई लोक सुनवाई में भी अनेक ग्रामीणों ने संयंत्र प्रबंधन द्वारा निर्माण अवस्था में रोजगार नहीं दिए जाने की शिकायतों को पुरजोर तरीके से उठाया था, किन्तु जिला प्रशासन सिवनी और मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के क्षेत्रीय कार्यालय जबलपुर से आए आला अधिकारियों की उपस्थिति के बाद भी संयंत्र प्रबंधन ने उनकी बातों को दबा दिया गया। इन ग्रामीणों की आवाज नक्कारखाने में तूती की ही आवाज साबित हुई।
 कुल मिलाकर सिवनी जिले की आदिवासी बाहुल्य तहसील घंसौर में पर्यावरण बिगड़े, प्रदूषण फैले, क्षेत्र झुलसे या आदिवासियों के साथ अन्याय हो इस बात से मध्य प्रदेश सरकार के प्रदूषण नियंत्रण मण्डल और केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को कुछ लेना देना नहीं है। यह सब देखने सुनने के बाद भी केंद्र सरकार का वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, मध्य प्रदेश सरकार, मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल, जिला प्रशासन सिवनी सहित भाजपा के सांसद के।डी।देशमुख विधायक श्रीमति नीता पटेरिया, कमल मस्कोले, एवं क्षेत्रीय विधायक जो स्वयं भी आदिवासी समुदाय से हैं श्रीमति शशि ठाकुर, कांग्रेस के क्षेत्रीय सांसद बसोरी सिंह मसराम एवं सिवनी जिले के हितचिंतक माने जाने वाले केवलारी विधायक एवं विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ठाकुर चुपचाप नियम कायदों का माखौल सरेआम उड़ते देख रहे हैं।

(क्रमशः जारी)

ममता से घबराए हैं मनमोहन


बजट तक शायद चलें मनमोहन. . . 71

ममता से घबराए हैं मनमोहन

मध्यावधि की पक्षघर लग रहीं हैं ममता



(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के निजाम मनमोहन सिंह और कांग्रेस दोनों ही के लिए ममता बनर्जी बुरी तरह से खतरा बनती जा रहीं हैं। ममता बनर्जी चाह रहीं है कि मध्यावधि चुनाव हो जाए, किन्तु कांग्रेस को मध्यावधि चुनाव में खतरा ही महसूस हो रहा है। ममता बनर्जी की धमकियों से अब मनमोहन सिंह की पेशानी पर कड़ाके की सर्दी में भी पसीने की बूंदे साफ दिखाई पड़ने लगी हैं। ममता ने अगर संप्रग का साथ छोड़ा तो ठीकरा मनमोहन सिंह पर फूटना तय माना जा रहा है।
प्रधानमंत्री कार्यालय के सूत्रों का कहना है कि संप्रग सरकार की मुसीबतें बढ़ने वाली हैं। सूत्रों ने कहा कि ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार को अलविदा कहने का मन पूरी तरह बना लिया है। सूत्रों की मानें तो ममता बनर्जी ने कांग्रेस के आला नेताओं को साफ कह दिया है कि पांच राज्यों में होने वाले चुनावों के परिणाम के बाद कांग्रेस को आत्मावलोकन करना चाहिए, कि वह कितने पानी में खड़ी हुई है।
उधर, ममता के करीबी सूत्रों का कहना है कि ममता बनर्जी को मशविरा दिया है कि त्रणमूल कांग्रेस के लिए केंद्रीय राजनीति में अपना ग्राफ बनाने के लिए यह समय मुफीद है। सूत्रों का कहना है कि अगर ममता बनर्जी दिल्ली में अपना किला मजबूत करना चाहती हैं तो उन्हें मध्यावधि चुनाव के लिए मार्ग प्रशस्त करना चाहिए और फिर चुनावी महासमर में उतरना उनके लिए श्रेष्यस्कर ही होगा। ममता बनर्जी को आम चुनावों के लिए निर्धारित 2014 तक रूकने के लिए मना कर दिया गया है। ममता चाहें तो कांग्रेस पर मध्यावधि चुनाव के लिए दबाव बनाना आरंभ कर दें।
ममता के करीबी सूत्रों का पश्चिम बंगाल पर एकछत्र राज करने के बाद अब ममता बनर्जी की महात्वाकांक्षाएं भी हिलोरे मारने लगी हैं। ममता अब मायावती की तरह ही केंद्र सरकार पर दबाव बनाकर अपने हित साधने का प्रयास करना चाह रही हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि जिस तरह राजग सरकार में चंद्राबाबू नायडू ने बाहर से समर्थन दिया था, उसी तर्ज पर ममता बनर्जी भी अपने मंत्रियों को वापस लेकर सरकार से बाहर रहकर ही केंद्र में समर्थन दे सकती हैं।
त्रणमूल क्षत्रप ममता बनर्जी के इस तरह के बर्ताव ने कांग्रेस के आला नेताओं की घिघ्घी बांधकर रख दी है। कांग्रेस के रणनीतिकार अब इस जोड़तोड़ में लग गए हैं कि किस तरह ममता के इस नए तांडव से निपटा जाए। सबसे ज्यादा घबराए तो प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह लग रहे हैं, क्योंकि अगर स्थिति बिगड़ी तो इसका ठीकरा मनमोहन सिंह पर फूटना तय ही माना जा रहा है।

(क्रमशः जारी)

सर्दी का सितम: जम गया देश


सर्दी का सितम: जम गया देश



(शरद खरे)

नई दिल्ली (साई)। हाड़ गलाने वाली और खून जमा देने वाली सर्द हवाओं ने देश की रफ्तार पर ब्रेक लगा दिया है। उत्तर और पूर्वोत्तर के पहाड़ी इलाकों से आने वाली सर्द हवाओं ने मौसम को और अधिक ठंडा कर दिया है। हिमाचल प्रदेश में हिमपात ने पारा गिरा दिया है। जम्मू काश्मीर में अधिकांश इलाकों में तापमान जमाव बिन्दु से नीचे पहुंचने पर झीलों में पानी जमने लगा है। मैदानी इलाकों में भी सर्दी का खासा असर देखने को मिल रहा है।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में तो मंगलवार सुबह न्यूनतम तापमान औसत से 3 डिग्री नीचे 4.7 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। हिमाचल प्रदेश में हिमपात के अगले दिन मंगलवार की सुबह धूप खिली लेकिन सर्दी बढ़ गई है। कुल्लू जिले के मनाली में मंगलवार सुबह न्यूनतम तापमान 0 से 7 डिग्री सेल्सियस नीचे दर्ज किया गया, जो इस मौसम का अब तक का सबसे कम तापमान है। मंगलवार सुबह तक शिमला में 0.8 सेंटीमीटर हिमपात हुआ। वहां न्यूनतम तापमान 0 से 2.1 डिग्री नीचे दर्ज किया गया। शिमला में सोमवार को 24.6 सेंटीमीटर हिमपात हुआ। किन्नौर जिले के काल्पा में न्यूनतम तापमान 0 से 9.3 डिग्री सेल्सियस नीचे दर्ज किया गया। धर्मशाला में 2.1 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया।
मौसम विभाग के अधिकारियों ने बताया कि अमृतसर मंे मंगलवार को तापमान सामान्य से 5 डिग्री नीचे चला गया और शून्य से दो डिग्री कम दर्ज किया गया। इस बीच, लुधियाना में भी ठंड बढ़ गई है वहां तापमान सामान्य से दो डिग्री कम 3.8 डिग्री दर्ज हुआ है। वहीं, पटियाला में तापमान चार डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया।
कश्मीर घाटी की अधिकतर झीलों और जल के दूसरे स्रोतों के जमने का सिलसिला शुरू हो गया है। कश्मीर में इस मौसम में पहली बार अधिकतम तापमान 0 से नीचे गया है। सोमवार को श्रीनगर में तापमान शून्य से 2.8 डिग्री सेल्सियस नीचे रहा। तापमान के 0 से नीचे जाने के कारण श्रीनगर, जम्मू एवं कश्मीर के अन्य हिस्सों में सर्दी बढ़ गई है। न्यूनतम तापमान के भी गिरने के आसार हैं। तापमान गिरने से श्रीनगर स्थित डल झील जमनी शुरू हो गई है।
उत्तर प्रदेश में ज्यादातर इलाकों में सर्द हवाओं के चलने के कारण शीतलहर का प्रकोप जारी है। राजधानी लखनऊ का न्यूनतम तापमान 8 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया जो सामान्य से 1 डिग्री अधिक था। पिछले 24 घंटों के दौरान गोरखपुर सहित पूर्वांचल के कुछ हिस्सों में हल्की बूंदाबांदी भी हुई। यहां आने वाले दिनों में सर्दी और बढ़ेगी। पर्वतीय इलाकों में हो रही बर्फबारी के कारण सर्द हवाओं का प्रकोप जारी रहेगा। अगले कुछ दिनों में न्यूनतम तापमान में गिरावट की संभावना है। अगले 24 घंटों के दौरान लखनऊ सहित प्रदेश के ज्यादातर हिस्सों में धूप खिलने की संभावना न के बराबर है। बादल छाए रहेंगे, कुछ स्थानांे पर हल्की बूंदाबादी हो सकती है।
मध्य प्रदेश से साई ब्यूरो नन्द किशोर ने खबर दी है कि एमपी पर उत्तरी राज्यों में हुई बर्फबारी का असर नजर आने लगा है। तापमान में गिरावट के साथ सर्द हवाओं ने ठिठुरन बढ़ा दी है। राज्य के अनेक हिस्सों में न्यूनतम तापमान में 3 से 6 डिग्री सेल्सियस तक की गिरावट दर्ज की गई है। राज्य के अधिकतर इलाकों में मंगलवार सुबह धुंध और कोहरा छाया हुआ था। सर्द हवाएं कंपकंपी पैदा कर देने वाली थी। इतना ही नहीं आसमान पर बादलों का डेरा होने के कारण सूरज की लुकाछुपी के चलते धूप भी अपना असर नहीं दिखा पाई। यही कारण है कि राज्य के अधिकतर हिस्सों में न्यूनतम तापमान 5 से 7 डिग्री सेल्सियस के बीच पहुंच गया है।
ब्यूरो से अंशुल गुप्ता ने बताया कि कश्मीर में हुई बर्फबारी और उत्तरी भारत से आ रही सर्द हवाओं के चलते प्रदेश में शीतलहर और तेज हो गई है। कई स्थानों पर कंपकंपाने वाली ठंड पड़ रही है। अत्यधिक ठंड से भिण्ड में एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई और आधा दर्जन मोर भी ठंड से मारे गये। मौसम केन्द्र का कहना है कि अगले दो दिनों तक न्यूनतम तापमान में और कमी आएगी। कोहरे और ठंड के कारण सामान्य जनजीवन भी प्रभावित हो रहा है।
प्रदेश में रबी की फसलों पर भी विपरीत असर पड़ने के आसार हैं। अस्पतालों में मौसमी बीमारियों के रोगियों की संख्या भी बढ़ रही है। क्षेत्रीय मौसम केन्द्र भोपाल के अनुसार प्रदेश के लगभग सभी शहरों में अधिकतम और न्यूनतम तापमान में 2 से 6 डिग्री की गिरावट आई है। दमोह और दतिया में पारा 4 डिग्री तक लुढ़क गया है, वहीं मंदसौर जिले में तापमान 4 दशमलव एक डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया।
 मौसम केंद्र ने अगले चौबीस घंटों के दौरान ग्वालियर, चम्बल, रीवा, उज्जैन और सागर संभागों में कहीं-कहीं शीत-लहर चलने की संभावना जताई है। इन संभागों में कहीं-कहीं न्यूनतम तापमान चार डिग्री सेल्सियस या उससे कम दर्ज किए जाने का अनुमान जताया गया है। पिछले चौबीस घंटों में सबसे कम न्यूनतम तापमान चार डिग्री सेल्सियस दमोह और दतिया में दर्ज किया गया। वहीं, सागर और उज्जैन संभाग शीत-लहर से प्रभावित रहे।
मंदसौर से समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के ब्यूरो ने खबर दी है कि मंदसौर जिले में पड़ रही कड़ाके की ठंड से सामान्य जन-जीवन प्रभावित हुआ है। ठंड के चलते अशवीन सरसो धनीया जैसी फसले प्रभावित होने की आशंका है। लगातार गिरते तापक्रम के साथ जिले के कई स्थानों पर पक्षीयों के मरने की खबरे भी मिल रही है। ठंड के चलते शिक्षा विभाग ने पिछले सप्ताह ही सुबह की पारी में लगने वाले प्राथमिक विद्यालयो में अध्यापन कार्य स्थगीत करने के आदेश दे दिये है। बीती रात न्यूतम तापमान 4 दशमलव एक रहा। जो इस वर्ष का सबसे कम तापमान है।
देहरादून से साई ब्यूरो अर्जुन कुमार ने बताया कि प्रदेष के सीमांत जिलों पिथौरागढ़ चमोली और उत्तरकाषी के दूर दराज के इलाकों में बर्फबारी और बारिष से जन जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। सर्द हवाओं और ठिठुरन भरी ठण्ड से समूचे राज्य में आम जन जीवन बुरी तरह प्रभावित हो गया है। राज्य के कई हिस्सों में बिजली और जलापूर्ति बाधित हो गई है। साथ ही तकरीबन सभी चोटियां बर्फ से ढकी दिखाई पड़ रही हैं।
मौसम विभाग के निदेषक आनन्द शर्मा ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया है कि मुनस्यारी में करीब एक फीट, जबकि नैनीताल में दो इंच बर्फ गिरने की खबर है। उन्होंने आने वाले दिनों मंे मौसम में सुधार की संभावना व्यक्त की है। राज्य आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबन्धन केंद्र के अनुसार थल-मुनस्यारी-पिथौरागढ़, मसूरी-धनोल्टी-चम्बा, धरासू-बड़कोट और कुछ अन्य प्रमुख मार्ग बर्फबारी के कारण बन्द हैं।
साथ ही सुदूरवर्ती इलाकों में कई गांवों का जिला मुख्यालयों से सम्पर्क कट गया है। जिला प्रषासन सड़कों को दुरुस्त करने में जुटा हुआ है। रुद्रप्रयाग जिले के चोपता, दुगलबिट्टा में भारी बर्फबारी से ऊखीमठ-मण्डल-गोपेष्वर मोटर मार्ग अवरुद्ध हो गया है। साई ब्यूरो के संवाददाता के अनुसार यहां पर बर्फ का लुत्फ लेने के लिए सैलानियों का तांता लगा हुआ है।
उधर, जयपुर साई ब्यूरो से शैलेन्द्र ने समाचार दिया है कि देश के उत्तरी हिस्सों में भारी बर्फबारी के कारण पूरा प्रदेश शीतलहर की चपेट में है । कड़ाके की सर्दी और कोहरे ने जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है । उत्तरी राजस्थान जबरदस्त सर्दी की चपेट में है जहां कुछ स्थानों पर पारा जमावबिन्दु या उससे भी नीचे पहुंच गया है । मैदानी इलाकों में सीकर जिले का फतेहपुर कस्बा सबसे ठंडा स्थान रहा जहां तापमान जमाव बिन्दु 2 दशमलव 3 डिग्री सैल्सियस नीचे लुढ़क गया ।
सीकर से साई संवाददाता ने बताया कि जिले में कड़ाके की सर्दी ने लोगों की दिनचर्या प्रभावित की है । उधर राज्य का एकमात्र पर्वतीय पर्यटन स्थल माउंट आबू भी शीतलहर की गिरफ्त में है वहां रात का तापमान जमावबिन्दु से 2 दशमलव 6 डिग्री नीचे पहुंच गया । साई ब्यूरो के संवाददाता के अनुसार सर्दी और कोहरे के कारण लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है । मौसम विभाग के अनुसार चूरू में भी आज न्यूनतम तापमान शून्य दशमलव 6 डिग्री रहा ।
पाली में शून्य दशमलव 8, पिलानी में एक, बीकानेर में दो दशमलव पांच, सवाईमाधोपुर में दो दशमलव सात और वनस्थली में तीन दशमलव सात डिग्री न्यूनतम तापमान दर्ज किया गया । तेज़ सर्दी के कारण जयपुर, झुंझुनू, सिरोही और चूरू में जिला कलेक्टर ने स्कूलों में कल से तीन दिन का अवकाश घोषित कर दिया है ।
पशुपालन विभाग ने कड़ाके की सर्दी को देखते हुए पशुपालकों को अपने जानवरों को सर्दी से बचाने की सलाह दी है । कृषि विभाग ने भी पाला पड़ने की आशंका के मद्देनजर किसानों को फसलों की सुरक्षा के इंतजाम करने को कहा है । तेज ठंड और कोहरे के कारण राज्य से लगती अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर भी अंतिरिक्त चौकसी बरती जा रही है ।
उत्तर प्रदेश में ठंड के कारण बुरे हाल हैं। लखनऊ साई ब्यूरो से दीपांकर श्रीवास्तव ने बताया कि समूचे उत्तर प्रदेश में शीत लहर का कहर जारी है। घने कोहरे के कारण दर्जनों गाड़िया विलम्ब से चल रही हैं। ताज नगरी आगरा में भयानक ठंड के कारण पर्यटक भी परेषान हैं। लखनऊ, सुल्तानपुर और कई अन्य जिलों में शीतलहरी के कारण कक्षा आठ तक विद्यालयों को बारह जानवरी तक बन्द रखने के निर्देष जिलाधिकारियों ने दिये हैं। मौसम विभाग के अनुसार आने वाले दिनों में तापमान और कम हो सकता है। इसके साथ ही कुछ स्थानों पर बारिष होने की भी संभावना है।
शिमला से साई ब्यूरो मीना जायस्वाल ने बताया कि प्रदेश के अनेक भागों में बर्फबारी के कारण बाधित हुई यातायात व्यवस्था, विद्युत जल तथा आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति के लिए किए गए प्रबंधों की मुख्य सचिव राजवंत संधु ने शिमला में एक उच्च स्तरीय बैठक में समीक्षा की। बैठक में बताया कि चौपाल के लिए कल पावंटा साहिब होते हुए एक बस भेजी गई जबकि रामपुर तथा किन्नौर के लिए वाया धामी बसें भेजी जा रही हैं। कुल्लू जिले के पतलीकुहल तक सड़क पर यातायात बहाल कर दिया गया है। जबकि शाम तक मनाली तक यातायात बहाल कर दिया गया। 
प्रदेश में बीते दिनों हुई बर्फबारी के बाद अभी भी जनजीवन सामान्य नहीं हो पाया है। विभिन्न क्षेत्रों मंे यातायात व संचार सुविधाएं अभी भी बाधित हैं। राजधानी शिमला के कई इलाकों मे अभी भी बिजली और पानी की आपूर्ति बाधित है। शिमला के उपरी इलाकों में अभी भी बस सेवाएं शुरू नहीं हो पाई हैं और कुफरी, नारकण्डा, सराहन तथा सांगला शेष राज्य से कटे हैं। वहीं कुल्लू, चंबा, किन्नौर और लाहौल स्पीति जिले के अनेक क्षेत्रों का संपर्क भी देश के अन्य भागों से कटा हुआ है। हालांकि राजधानी शिमला सहित प्रदेश के अधिकांश भागों में आज दिन की शुरूआत खिली धूप से हुई है जिससे जनजीवन के सामान्य होने की उम्मीद है। मौसम विभाग के मुताबिक आगामी 24 घंटों के दौरान राज्य में मौसम आमतौर पर साफ रहेगा।

बिस्किट के लिए आदिवासियों को नचाया: बवाल


बिस्किट के लिए आदिवासियों को नचाया: बवाल



(सुनीता अर्गल)

पोर्ट ब्लेयर (साई)। निश्छल, भोले और मासूम आदिवासियों को रूपए और बिस्किट के लालच में नचाने का एक सनसनीखेज मामला प्रकाश में आया है। अंडमान द्वीप में बिस्किटों और चंद सिक्कों के लिए जरावा आदिवासियों को विदेशी पर्यटकों के सामने नचाने का मामला सामने आया है।
टूरिस्टों के आगे नाचते जरावा आदिवासियों के इस विडियो पर बवाल हो गया है। हैरत की बात यह है कि यह मामला यहां से सैर करके लौटे ब्रिटेन के एक पत्रकार ने खोला है। ब्रिटेन के अखबार ऑब्जर्वर ने यह रिपोर्ट और विडियो जारी किया है। ब्रिटिश मीडिया में जारी इस विडियो में दिखाया गया है कि पर्यटकों को जरावा आदिवासियों के क्षेत्र में ले जाकर उन्हें जनजाति का नाच दिखाया जाता है।
विडियो में आदिवासियों की सुरक्षा के लिए तैनात एक पुलिसवाला आदिवासी महिलाओं से कह रहा है कि अगर वे विदेशी टूरिस्टों के सामने नाचेंगी, तो वह खाना देंगे। रिपोर्ट में बताया गया है कि आदिवासी इलाके में घूमने के लिए जाने वाले टूरिस्ट वाइल्ड लाइफ सेंचुरी की तरह आदिवासियों के लिए सड़क के किनारे केले और बिस्किट फेंकते हैं।
जरावा आदिवासी भारत में अंडमान द्वीप पर ही पाए जाते हैं। अब इनकी संख्या 403 के आसपास ही बची है। सुप्रीम कोर्ट ने इनके संरक्षण को लेकर पहले ही कई कदम उठाने के आदेश दे रखे हैं। जरावा आदिवासियों के संरक्षण के लिए कोर्ट का साफ निर्देश है कि उनके रिहायशी इलाके तक जाने वाली सड़क पर आम लोगों को न जाने दिया जाए।

ब्रम्हपुत्र मेल दुर्घटनाग्रस्त: 5 की मौत


ब्रम्हपुत्र मेल दुर्घटनाग्रस्त: 5 की मौत



(सोनाली वर्मा)

रांची (साई)। झारखंड के साहेबगंज में बुधवार सुबह करीब छह बजे ब्रह्मपुत्र मेल हादसे का शिकार हो गई. इस हादसे में पांच लोगों की मौत हो गई है जबकि पांच अन्य लोग जख्मी हुए हैं। ब्रह्मपुत्र मेल असम के डिब्रूगढ से दिल्ली आ रही थी। ब्रह्मपुत्र को दूसरे ट्रैक पर पहले से खड़ी मालगाड़ी ने टक्कर मार दी।
जिस जगह ये हादसा हुआ है वो साहेबगंज से बीस किलोमीटर दूर करनपुरातो स्टेशन के नजदीक है। हादसे में मारे गए लोगों के परिवार को रेलवे ने पांच लाख रुपये मुआवजा देने का एलान किया है। रेल मंत्री ने हादसे की जांच के आदेश देते हुए कहा है कि दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
ये हादसा खराब होने की वजह से मेन ट्रैक पर खड़ी मालगाड़ी की वजह से हुआ। डिब्रूगढ़ से दिल्ली आने वाली ब्रह्मपूत्र मेल लूप लाइन से गुजर रही थी। ब्रह्मपूत्र मेल बगल से गुजर रही थी इसी बीच मालगाड़ी ट्रैक पर पीछे की तरफ खिसक गई और ब्रह्मपुत्र मेल के एक स्लीपर कोच से जा टकराई और ये हादसा हो गया। हादसे की वजह से ब्रह्मपुत्र मेल की एस नाइन बोगी को नुकसान हुआ है। हादसे में जिन लोगों की मौत हुई है वो सभी इसी बोगी में बैठे थे।

कटहल: गुणकारी फ़ल


कटहल: गुणकारी फ़ल



(डॉ दीपक आचार्य)

अहमदाबाद (साई)।। ग्रामीण अँचलों में सब्जी के तौर पर खाया जाने वाला कटहल कई तरह के औषधिय गुणों से भरपूर है। कटहल का वानस्पतिक नाम आर्टाेकार्पस हेटेरोफ़िल्लस है। कटहल के फ़लों में कई महत्वपूर्ण प्रोटीन्स, कार्बाेहाईड्रेड्स के अलावा विटामिन्स भी पाए जाते है।
सब्जी के तौर पर खाने के अलावा कटहल के फ़लों का अचार और पापड भी बनाया जाता है। पातालकोट के आदिवासियों के अनुसारे पके फ़लों का ज्यादा मात्रा में सेवन करने से दस्त होने की संभावना होती है। कटहल की पत्तियों की राख अल्सर के इलाज के लिये बहुपयोगी होती है।
पके हुए कटहल के गूदे को अच्छी तरह से मैश करके पानी में उबाला जाए और इस मिश्रण को ठंडा कर एक गिलास पीने से जबरदस्त स्फ़ूर्ती आती है, वास्तव में यह एक टॉनिक की तरह कार्य करता है। यही मिश्रण यदि अपचन से ग्रसित रोगी को दिया जाए तो उसे फ़ायदा मिलता है। फ़ल के छिल्कों से निकलने वाला दूध यदि गाँठनुमा सूजन, घाव और कटे-फ़टे अंगों पर लगाया जाए तो आराम मिलता है।
डाँग- गुजरात के आदिवासी कटहल की पत्तियों के रस का सेवन करने की सलाह मधुमेह (डायबिटीस) के रोगियों को देते है। यही रस उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिये भी उत्तम है। कटहल पेड की पत्तियों की कलियां कूट कर गोली बना लें और इस गोली को चूसने से स्वरभंग व गले के रोग में फायदा होता है।

(साई फीचर्स)

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