बुधवार, 22 जून 2011

अर्श से फर्श पर ‘महाराजा‘


अर्श से फर्श पर महाराजा

(लिमटी खरे)

छः दशकों के लंबे सफर के बाद शान से सर उठाने वाला महाराजाकंगाल हो गया है। एयर इंडियाके कंगाल और उसके ही समकक्ष अन्य एयर लाईंस के मालामाल होने पर अनेकों प्रश्न मानस पटल पर घुमड़ना स्वाभाविक ही है। केंद्र सरकार ने अपनी रियाया का मुंह पोंछकर लाखों करोड़ रूपए महाराजा की झोली में डाले पर नतीजा सिफर ही रहा। दिल्ली की सड़कों का सीना रौंदने वाली डीटीसी की यात्री बसों के प्रबंधन में भी कमोबेश यही समस्या आई और ब्लू लाईन ने इनका स्थान ले लिया। लोग डीटीसी की बस में सफर करना पसंद भी नहीं किया करते थे। बाद में जब डीटीसी ने ब्लू लाईन को सड़कों से हटाकर शानदार लो फ्लोर बस सड़कों पर उतारीं तो आज उसकी रोजाना की कमाई करोड़ों रूपयों से अधिक पहुंच चुकी है। किलर ब्लू लाईन को प्रमोट भी शीला सरकार ने ही किया और कोर्ट के निर्देश पर उनको बाहर भी शीला सरकार ने ही किया। जरूरत इच्छा शक्ति की है, चाहे वह बलात ही किसी के उपर लादी जाए।
  
साठ साल का उमर दराज हो चुका है महाराजा। छः दशकों से हवा में कलाबाजियां खाने के बाद भी शान से आसमान का सीना चीरने वाले एयर इंडिया को लाजवाब कहा जाता था। विलासिता के उपभोगियों की पहली पसंद था यह। वैसे तो सरकार अपने कर्मचारी को साठ साल की उमर पूरी करने पर सेवा निवृत कर देती है, पर यही सेवा निवृत सरकारी कर्मचारी किसी निजी कंपनी में जाकर तीन चार गुनी पगार पर अपने जीवन के सारे अनुभवों के माध्यम से उस कंपनी को लाभ पहुंचाने से नहीं चूकता है। महाराजा का साठ साल का होना सरकार के लिए गर्व की बात होना चाहिए किन्तु आर्थिक बदहाली ने एयर इंडिया की कमर तोड़ रखी है।

एयर इंडिया की आर्थिक कंगाली के चलते सरकार तेल कंपनियों ने ही उसकी तेल आपूर्ति को घटा दिया है। एयर इंडिया की अनेक उड़ाने रद्द हो चुकी हैं। एयर इंडिया और मध्य प्रदेश सड़क परिवहन निगम की हालत कमोबेश एक सी ही कही जासकती है। महाराजा की आर्थिक हालत आसमान से जमीन पर कैसे आ गई? इस बारे में दिल्ली परिवहन निगम का उदहारण सबसे उपयुक्त होगा। एक समय में डीटीसी की यात्री बस स्टेटस सिंबल बनी हुई थीं। नब्बे के दशक के आने तक दिल्ली की सैर करने वालों के लिए डीटीसी की बस का सफर आज की मेट्रो के सफर से कम नहीं था। लोग वापस जाकर अपने संस्मरणों में डीटीसी की सिटी बस का जिकर करना शान समझते थे।

डीटीसी में अधिकारियों कर्मचारियों के साथ ही साथ मंत्री विधायकों ने डीटीसी को घुन की तरह खाना आरंभ किया और सड़कों पर ब्लू लाईन बस सेवा के परिवहन के मार्ग प्रशस्त कर दिए। ब्लू लाईन बस सेवाओं में अस्सी फीसदी बस इन्हीं बाहुबलियों, धनपतियों के संरक्षण में ही दौड़ रही थीं। डीटीसी की खटारा बस खाली ही इक्का दुक्का सवारियों के साथ सड़कों पर दिखाई दे जाती थीं। ब्लू लाईन संचालकों और डीटीसी के चालकों की आपसी सांठगांठ के चलते सौ दो सौ रूपयों के लालच में डीटीसी की बस धीरे धीरे रंेगा करती थीं। इस तरह डीटीसी का बट्टा पूरी तरह बैठ चुका था।

उधर किलर ब्लू लाईन यात्री बस दिन दूनी रात चौगनी आय ला रही थी। बाद में कोर्ट की फटकार के बाद इन्हें सड़कों से हटाने का काम आरंभ हुआ। चूंकि इसमें उन्हीं नेता मंत्री विधायकों के आर्थिक हितों पर कुठाराघात हो रहा था इसलिए बुझे मन से टालमटोल के जरिए यह काम आरंभ किया गया। बिल्ली के भाग से छींका इस तरह टूटा कि बीच में ही कामन वेल्थ गेम्स का आयोजन हो गया और फिर क्या था। सरकार को न चाहते हुए भी फटाफट इस काम को अंजाम देना पड़ा। आज डीटीसी की रोजना की कमाई तीन करोड़ रूपयों से कहीं अधिक है। अब आप ही अंदाजा लगाईए कि जिसकी कमाई दस लाख पहुंचने में परेशानी हो रही हो वह तीन करोड़ से अधिक की रोजाना आय लेकर आ रहा हो।

कभी मध्य प्रदेश में कामधेनू समझी जाने वाली मध्य प्रदेश सड़क परिवहन निगम की यात्री बसें अब ढूंढे से नहंी मिलती। मुख्यमंत्रियों, परिवहन मंत्रियों, सांसद, विधायकों आदि ने मिलकर इसे बंद करवा ही दिया। इनके स्थान पर अब अनुबंधित बस सड़कों पर दौड़ रही हैं। इन अनुबंधित बस में कितने के पास वैध परमिट हैं यह बात कोई नहंी जानता। अनुबंध के नाम पर स्लीपर कोच बस सड़कों पर दौड़ रही हैं, पर जिला प्रशासन, पुलिस, परिवहन विभाग को यह दिखाई नहीं दे रहा है, या दिखाई भी दे रहा है तो वह किसी न किसी दबावमें खामोशी अख्तियार किए हुए हैं। इनमें से सत्तर फीसदी बस किसी न किसी नेता के रिश्ते नातेदार के दबाव में ही चल रही हैं।

केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अधीन काम करने वाला एयर इंडिया की टांगे आखिर उखड़ने कैसे लगीं? इसका प्रमुख कारण नागरिक उड्डयन मंत्रियों की नीतियां ही रहीं हैं। निजी एयरलाईंस ने अपने आप को प्रतिस्पर्धा में आगे रखने के लिए जो जतन किए उसमें विभाग के इन निजामों का प्रत्यक्ष या परोक्ष समर्थन रहा है। आश्चर्य की बात तो यह है कि कड़ी प्रतिस्पर्धा में भी निजी एयर लाईंस मुनाफा कमा रही हैं, पर एयर इंडिया की कमर बुरी तरह टूटी हुई है। निजी एयर लाईंस बिना किसी की मदद के सरपट दौड़ रही हैं, तो एयर इंडिया सरकारी इमदाद के सहारे किसी तरह अपने आप को खींच रही है।

आलम यह है कि हजारों करोड़ की सरकारी मदद के बाद भी कर्मचारियों अधिकारियों को मनमाफिक वेतन नहीं मिल पाता। आए दिन कर्मचारी हड़ताल पर चले जाते हैं। पिछले दिनों पायलट्स की दस दिनी हड़ताल से एयर इंडिया को करोड़ों का घाटा हुआ है। आवाज उठने लगी है कि इस तरह की घाटे वाली कंपनी को बेच ही दिया जाना चाहिए, पर यक्ष प्रश्न तो यह है कि इस बीमार लड़खड़ाती कर्ज में डूबी कंपनी को खरीदने का साहस आखिर जुटाएगा कौन? तीन अरब डालर के घाटे में चल रही इस कंपनी को संकट से उबारने के लिए सरकार ने अब तक हजारों करोड़ रूपयों की मदद दी जा चुकी है।

इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार में बैठे जनसेवक और लोकसेवकों ने किस तरह जनता के गाढ़े पसीने की कमाई को दोनों हाथों से लूटा है। सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि निजी एयर लाईंस कंपनियों को कमाई करवाने के लिए उन्हें लाभ के मार्ग प्रदान किए गए। घरेलू उड्डयन बाजर पर कभी एकाधिकार रखने वाली कंपनी अब महज 16 फीसदी की हिस्सेदारी ही रखती है। कहते हैं कि महाराजा तो काफी पहले ही कंगाल हो चुका था। महाराजा को तो कभी का दिवालिया घोषित कर देना चाहिए था, पर सरकार को न जाने क्या सूझी कि समय समय पर लाखों करोड़ का चढ़वा एयर इंडिया की झोली में डालती रही।

आज एयर इंडिया पर संकट इतना गहरा गया है कि तेल कंपनियां अब महाराजा को तेल देने को तैयार नहीं हैं। प्रश्न यह खड़ा हो गया है कि तेल कंपनियांे का उधार और नए आर्डर किए गए विमानों की कीमत आखिर कौन चुकाएगा? अब तक एयर इंडिया सरकार के बजाए उसके नुर्माइंदों के लिए कामधेनू बन गया था। नए उड्डयन मंत्री वायलर रवि की प्राथमिकताएं इसे संकट से उबारने की हैं। रवि को यह नहीं भूलना चाहिए कि जितनी राशि एयर इंडिया की झोली में डाली गई है, उससे स्कूल, कालेज, सड़कें बनाई जा सकती थीं। राष्ट्र निर्माण को आज पैसों की दरकार है। एयर इंडिया को लूट खसोट का चौराहा न बनने दिया जाए। अगर कुशल प्रबंधन से इसे नहीं उबारा गया तो राष्ट्र के लोगों का मुंह पोंछकर सरकारो ने इसकी जो मदद की है, वह अकारत ही चली जाएगी, हजारों करोड़ रूपयों का निवेश निरर्थक हो जाएगा।

कांग्रेस भाजपा का महाकौशल के साथ सौतेला व्यवहार!


कांग्रेस भाजपा का महाकौशल के साथ सौतेला व्यवहार!

रेल परियोजना में फंस रह नित नए पेंच

फोरलेन के झटके से उबर नहीं पाया सिवनी

कमल नाथ सहित कांग्रेस और भाजपा के जनसेवकों का मौन संदिग्ध

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। केंद्र में सत्तारूढ़ कांग्रेसनीत संप्रग सरकार और मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार द्वारा महाकौशल विशेषकर मण्डला, बालाघाट और सिवनी जिले के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जा रहा है। एक तरफ काल्पनिक बाघ करीडोर की भेंट स्वर्णिम चतुर्भंज का उत्तर दक्षिण गलियारा चढ़ गया तो अब बालाघाट से जबलपुर के अमान परिवर्तन की योजना भी बाघ ही की भेंट चढ़ती दिख रही है।

वर्ष 2000 मंे जबलपुर से बालाघाट की अमान परिवर्तन की योजना आरंभ की गई थी। इस योजना का काम 2006 तक ठीक ठाक गति से चलता रहा। इसके बाद इसके मार्ग में पड़ने वाली सिवनी जिले की जमीन को वन्य प्राणियों के लिए आरक्षित जतला दी जाकर इसे रेल्वे को सौंपने से इंकार कर दिया गया। इस मामले में मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह सरकार ने दो साल तक नस्ती अपने पास रखकर इसे अब केंद्र के पाले में फेंक दिया है। राज्य सरकार की ओर से इस महात्वाकांक्षी योजना के प्रस्ताव को राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के पास भेज दिया है। गौरतलब होगा कि इसके पहले स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे में सिवनी जिले में काल्पनिक बाघ करीडोर के कारण निर्माण कार्य तीन सालों से रूका हुआ है।

इस रेल परियोजना के पूरा होने से मण्डला, बालाघाट और सिवनी जिले को लाभ होना था। इसमें सिवनी जिले की 30 हेक्टेयर जमीन का फच्चर फंस गया है। केंद्रीय शहरी विकास मंत्री कमल नाथ का वर्चस्व माना जाता है महाकौशल में। कमल नाथ समर्थक छाए हुआ हैं मण्डला, सिवनी, जबलपुर और बालाघाट जिलों में। बावजूद किसी ने भी इस बात को कमल नाथ की जानकारी में लाना अपना कर्तव्य नहीं समझा और न ही कमल नाथ ने इस मामले में स्वतः ही कोई संज्ञान लिया है।

 महाकौशल में जबलपुर से भाजपा के राकेश सिंह, नरसिंहपुर से कांग्र्रेस के उदय प्रताप, मण्डला से कांग्रेस के बसोरी सिंह, छिंदवाड़ा से कांग्रेस के कमल नाथ तो बालाघाट से भाजपा के के.डी.देशमुख सांसद हैं। फोरलेन मामला हो या फिर अमान परिवर्तन का, हर मामले में कांग्रेस और भाजपा के सांसदों का मौन किसी मिलीभगत की ओर ही इशारा करता है।
यहां उल्लेखनीय होगा कि केंद्रीय मंत्री कमल नाथ ने कुछ दिनों पूर्व मण्डला नैनपुर, सिवनी, छिंदवाड़ा के अमान परिवर्तन का श्रीगणेश भी मण्डला से किया था। इस अमान परिवर्तन में भी रिजर्व फारेस्ट का हिस्सा आएगा इस कारण मण्डला से बरास्ता सिवनी, छिंदवाड़ा अमान परिवर्तन का काम आने वाले दशकों में पूरा होने की उम्मीद बेमानी ही है। साथ ही बालाघाट में कटंगी तिरोड़ी लाईन हेतु भी वे बालाघाट आए थे, किन्तु किसी भी नेता ने उनका ध्यान नैनपुर के आसपास के इस विवादित हिस्से की ओर आकर्षित करना मुनासिब नहीं समझा और न ही भाजपा ने भी इस बारे में कोई मांग करने की जहमत ही उठाई।