शिव प्रभात का गुण्डा राज!
(लिमटी खरे)
एक समय देश के हृदय प्रदेश को शांति का टापू कहा जाता रहा है। पिछले दो दशकों में आपराधिक गतिविधियों में मध्य प्रदेश ने सारे रिकार्ड ही ध्वस्त कर दिए हैं। इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में जबसे मध्य प्रदेश में भाजपा का शासन विशेष तौर पर शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री और प्रभात झा प्रदेश भाजपाध्यक्ष बने हैं तबसे मध्य प्रदेश में गुण्डा राज चरम पर है। एमपी में वन और खनन माफिया बेहद ताकतवर हो गया है। मध्य प्रदेश में कानून और व्यवस्था नाम की चीज नहीं बची है। विपक्ष में बैठी कांग्रेस भी इसके विरोध की महज रस्म अदायगी ही कर रही है। खनिज माफिया के होसले इतने बुलंद हैं कि धुरैड़ी के दिए सरेराह ही भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी नरेंद्र कुमार को टेक्टर से कुचलकर उनकी इहलीला ही समाप्त कर दी गई। मध्य प्रदेश में राजनेताओं और माफिया की दबंगई का इससे घिनौना स्वरूप और कुछ नहीं हो सकता है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, गृहमंत्री उमा शंकर गुप्त, एमपीबीजेपी प्रेजीडेंट प्रभात झा ने घटना की निंदा कर रस्म अदायगी कर ली है। मामला अब ठंडे बस्ते के हवाले करने की कवायद आरंभ हो जाएगी। विपक्ष में बैठी कांग्रेस भी घडियाली आंसू बहाकर चुप्पी साध लेगी। जल्द ही सब कुछ सामान्य हो जाएगा और फिर खनिज माफिया का नंगा नाच एक बार फिर आंरभ हो जाएगा।
अपने कर्तव्यों को तीज त्योहार से बड़ा समझने वाले 2009 बेच के भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी नरेंद्र कुमार के लिए गुरूवार का दिन काल बनकर आया। होली के दिन खनिज माफिया ने उनकी हत्या कर दी। गृह मंत्री उमा शंकर गुप्त खुद स्वीकार कर रहे हैं कि उनकी हत्या हुई है। बावजूद इसके अब तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं की जा सकी है। मध्य प्रदेश में कानून और व्यवस्था राजनेताओं के घर की लौंडी बनी हुई है। पुलिस की खाकी वर्दी को नेता अपने हिसाब से चला रहे हैं। विधायकों पर हत्या या हत्या के प्रयासों के संगीन आरोप लग रहे हैं। चाल चरित्र और चेहरे का जुमला मुंह में लिए भाजपा चुपचाप सब कुछ देख सुन रही है। कांग्रेस भी मूकदर्शक बनकर इस काम में भाजपा का साथ दे रही है।
हालात देखकर अगर यह कहा जाए कि शांति का टापू मध्य प्रदेश भी अब बिहार और उत्तर प्रदेश की राह पर चल पड़ा है तो अतिश्योक्ति नहीं होगा। सूबे के आधा दर्जन विधायकों पर हत्या के आरोप लग चुके हैं। आरटीआई एक्टिविस्ट शाहला मसूद मामले में विधायक ध्रुव नारायण सिंह पर षणयंत्र में शामिल होने का आरोप लगा है। इसके पहले भाजपा के कमल पटेल, आशारानी सिंह, अनूप मिश्रा और जितेंद्र डागा पर हत्या के आरोप लगे हैं। वहीं कांग्रेस के ब्रजेंद्र सिंह राठोर पर भी हत्या का आरोप लगा था।
ब्रजेंद्र राठोर पर पूर्व मंत्री सुनील नायक की हत्या का आरोप लगा है। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय से जमानत लेकर काम चलाया है। वहीं कमल पटेल पर दुर्गेश जाटव हत्याकांड का आरोप है। वे इसके लिए जेल की हवा भी काट चुके हैं। आशारानी सिंह पर अपनी नौकरानी तिज्जी बाई की हत्या का आरोप है। दो माह जेल में बिताने के बाद उन्हें जमानत मिल गई है। जितेंद्र डागा पर भोपाल विकास प्राधिकरण के मुख्य कार्यकारी आधिकारी मदन गोपाल रूसिया की हत्या का आरोप है।
हालात साफ साफ इशारा कर रहे हैं कि एक ओर जहां कांग्रेस के शासन काल में मध्य प्रदेश में वन माफिया ताकतवर होकर उभरा था वहीं अब शिव प्रभात के राज में एमपी में खनिज माफिया की पौ बारह हो रही है। खनिज माफिया के तार इतने मजबूत हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का तख्ता पलट की कोशिशों के बाद शिवराज को मजबूरी में इनके खिलाफ मुंह खोलना पड़ा था। वहीं कांग्रेस ने शिवराज पर खनिज माफिया को संरक्षण देने के आरोप लगाकर अपना कर्तव्य पूरा कर लिया है।
2009 बैच के भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी नरेंद्र कुमार वर्तमान में परिवीक्षा अवधि में बतौर अनुविभागीय अधिकारी पुलिस मुरैना में पदस्थ थे। कहा जाता है कि नरेंद्र कुमार ने अवैध उत्खनन और खनिज माफिया के खिलाफ हल्ला बोल दिया था। राजनैतिक सरपरस्ती में चलने वाले इस धंधे के आगे नरेंद्र और मध्य प्रदेश पुलिस बौनी साबित हुई। मुरैना जिले में अवैध उत्खनन का आलम यह है कि वर्ष 2007 में तत्कालीन जिलाधिकारी आकाश त्रिपाठी और तत्कालीन जिला पुलिस अधीक्षक हरी सिंह यादव पर भी खनिज माफिया ने जमकर हमला बोल दिया था। उस वक्त हुई गोलीबारी में उक्त दोनों ही अधिकारी बाल बाल बच गए थे। जब जिले का मुखिया कहलाने वाला कलेक्टर और जिले में कानून और व्यवस्था का रखवाला एसपी ही खनिज माफिया द्वारा घेर लिया गया हो तब भला बाकी की क्या बिसात।
याद पड़ता है कि मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में जब नक्सलवादी सर उठा रहे थे तब वहां पुलिस ने सख्ती की। नक्सलियों ने प्रतिकार स्वरूप एक अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक पर हमला बोल दिया। इसके बाद पुलिस ने उन्हें इस कदर खदेडा कि वे सालों तक बिल में घुसे रहे। इसके बाद दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में तत्कालीन परिवहन मंत्री लिखी राम कांवरे की गला रेतकर इन नक्सिलयों ने नृशंस हत्या कर दी थी। फिर पुलिस ने कमान संभाली और उसके बाद बालाघाट में कोई बड़ी वारदात को नक्सली अंजाम नहीं दे पाए।
कहने का तात्पर्य महज इतना है कि अगर शासन प्रशासन किसी बात को ठान ले तो माफिया की इतनी ताकत नहीं कि वह सर उठा सके। विडम्बना ही कही जाएगी कि माफिया के आगे मध्य प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा घुटने टेके खड़ी नजार आ रही है। सरकार तो माफिया से अपनी कीमत वसूल रही होगी किन्तु विपक्ष में बैठी कांग्रेस की आखिर क्या मजबूरी है? दरआल, माफिया के आगे विपक्ष में बैठी कांग्रेस शांत इसलिए है क्योंकि कांग्रेस के युवा विधायक संजय पाठक भी खनिज व्यवसाय से जुड़े हैं और उन पर खनिज माफिया होने का आरोप भी है।
उधर, मध्यप्रदेश के मुरैना में खनन माफिया का शिकार बने आईपीएस अफसर नरेंद्र कुमार के पिता केशव देव का साफ कहना है कि उनके बेटे की हत्या में राजनेताओं का हाथ है और पुलिस का रुख भी असहयोगात्मक है। उन्होंने भाजपा के एक विधायक पर भी अंगुली उठाई और कहा कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को सब पता है। उन्घ्होंने आशंका जताई कि उनके द्वारा खुले आम यह सच कहने के बाद उनकी बहू को भी खतरा हो सकता है। केशव का यह भी कहना है कि मौत से एक दिन पहले नरेंद्र ने उन्हें बताया था कि वह खनन माफिया के खिलाफ काम कर रहे हैं और उन पर ऐसा नहीं करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि मघ्य प्रदेश के एक भाजपा विधायक ने उनकी पुत्रवधू पर गलत काम करने के लिए दबाव डाला था। इनकार करने पर उनका तबादला करवा दिया गया। 15 दिन तक तो भोपाल सचिवालय में संबद्ध रखा गया और कोई काम भी नहीं लिया गया। जब उनसे उस विधायक का नाम बताने के लिए कहा गया तो उन्होंने कहा कि यह सब मुख्घ्यमंत्री के संज्ञान में है और नाम बताया तो उनकी बहू को खतरा हो सकता है।
नरेंद्र के पिता ने सोची समझी साजिश बताया है लेकिन मध्य प्रदेश के गृह मंत्री उमा शंकर गुप्ता ने कहा कि यह गलत है। उन्होंने कहा कि नरेंद्र की मौत के पीछे खनन माफिया का हाथ नहीं है। उनकी मौत के मामले में ड्राइवर को गिरफ्तार किया गया है। जांच हुए बिना ही उमा शंकर गुप्त ने खनिज माफिया को क्लीन चिट देना अपने आप में अनेकों अनुत्तरित प्रश्न छोड़ रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह पर खनिज माफिया को संरक्षण देने के संगीन आरोप हैं। मध्य प्रदेश राज्य के गृह मंत्री जैसे जिम्मेदार पद पर बैठे गुप्ता अगर खनिज माफिया के बचाव में आ रहे हों तब सूबे में कानून और व्यवस्था की क्या स्थिति होगी इस बात का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।
वैसे नरेंद्र के पिता की पीड़ा को समझा जा सकता है। नरेंद्र के पिता केशव देव का कहना है कि अवैध खनन को रोक रहे उनके बेटे को ईमानदारी की सजा मिली है। उनका कहना है कि स्थानीय पुलिस अगर मदद करती तो शायद ये घटना नहीं होती। उन्होंने कहा कि उन्हें घटना की जानकारी तक पुलिस विभाग की ओर से नहीं दी गई। जब वह ग्वालियर पहुंचे तब भी उन्घ्हें कुछ बताने के बजाय सीधे बेटे का शव सौंप दिया गया। केशव देव ने मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है। नरेंद्र के पिता की जांच की मांग को न्यायोचित ठहराया जा सकता है।
नरेंद्र की मौत पर मध्य प्रदेश में राजनीति भी शुरु हो गई है। मध्य प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय सिंह ने कहा है कि मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार के संरक्षण में माफिया अपनी समानांतर सरकार चला रहे हैं। राज्य में जो भी उनके हितों के रास्ते में आ रहा है वो बेखौफ होकर उसे रास्ते से हटा रहे हैं। यह घटना इस बात का प्रमाण है कि सरकार माफिया के सामने कितनी कमजोर हो गई है। जबकि गृह मंत्री उमा शंकर गुप्ता इसे आईपीएस की मौत का राजनीतिकरण करने की विपक्षी साजिश बता रहे हैं।
आईपीएस अफसर नरेंद्र की मौत पर सियासी रोटियां सेंकने की निंदा की जाना जरूरी है। कांग्रेस को अगर लगता है कि सरकार कमजोर हो गई है और माफिया बेखौफ। तो कांग्रेस इसके लिए क्या कर रही है? कांगेस का संगठनात्मक ढांचा गांव गांव तक है, कांग्रेस इसके खिलाफ गांव से ही जेहाद का आगाज क्यों नहीं करती है? उत्तर साफ है हमाम में सब नंगे हैं! कांग्रेस का विरोध महज दिखावे से ज्यादा नहीं है।
(साई फीचर्स)