शुक्रवार, 26 जून 2009

रूपहले पर्दे के स्याह धब्बे

(लिमटी खरे)

हालीवुड का नाम जेहन में आते ही विश्व के सबसे शक्तिशाली सिनेमा के संसार का चित्र जीवंत हो जाता है। हर कोई हालीवुड में जाकर एक बार परफारमेंस दिखाने को आतुर दिखता है। वहीं दूसरी ओर हिन्दुस्तान के वालीवुड में काम करना हर भारतीय का सपना ही है।वालीवुड का क्रेज सत्तर के दशक के पहले उतना अधिक नहीं था, इसका कारण भारत की पुरातन संस्कृति का जिंदा होना था। तब मायानगरी लोगों के लिए आकर्षण और जिज्ञासा का विषय हुआ करता था। अस्सी के दशक के आरंभ में जैसे ही एशियाड के दौरान 1982 में रंगीन टेलीविजन ने भारत में पदार्पण किया और उसके बाद एक के बाद एक वर्जनाएं टूटती ही चली गईं। उसके बाद हिन्दुस्तान में पश्चिमी संस्कृति हावी होती चली गई।पहले महिलाओं की अदाकारी में भी पुरूष ही दाड़ी मूंछ मुंडाकर काम किया करते थे। उस दौरान महिलाओें का घर की दहलीज से बाहर कदम रखना अथवा पुरूषों के साथ घुलना मिलना वर्जित माना जाता था। भारत सदा से ही पुरूष प्रधान देश रहा है, इसीलिए यहां इस तरह की संस्कृति का जन्म हुआ है।आज की पीढी निश्चित तौर पर इसे दखियानूसी विचारधारा का घोतक मानती है, किन्तु आज जो फूहड़ प्रदर्शन चल रहा है, क्या वह हूबहू पश्चिमी संस्कृति है? जाहिर है नहीं यह वेस्टर्न कल्चर का बिगड़ा हुआ स्वरूप है। आज की संस्कृति में टूटती सामाजिक मर्यादाएं और वर्जनाएं क्या उचित मानी जा सकती हैंत्रबहरहाल आज पर्दे पर हम नायक नायिकाओं को उन गढ़े हुए रोल में अदाकारी करते देख उनके जैसा बनने की चाहत दिल में पालते है, किन्तु असल जिंदगी में वे क्या कर रहे हैं, जब यह बात हमारे सामने उजागर होती है तो हमारा मुंह कसैला होना स्वाभाविक ही है।गेंगस्टर के नायक शाइनी आहूजा पर उनकी ही नौकरानी ने बलात्कार का आरोप लगा दिया। वह बलात्कार था या आपसी सहमति यह पुलिस की जांच का विषय है, किन्तु शादी शुदा शाईनी ने अगर इस तरह की नापाक हरकत की है तो इसके लिए निश्चित रूप से हमारी वर्तमान गंदी सड़ांध मारती दिग्भ्रमित संस्कृति ही पूरी तरह जिम्मेदार है। आने वाले दिनों में शाईनी के इस कृत्य को बढ़ा चढ़ा कर इस कदर प्रस्तुत किया जाएगा कि लोग इसके मूल की कहानी को भूल ही जाएंगे। पहले शादीशुदा मर्द अन्य ओरतों की ओर देखने से गुरेज ही करते थे, किन्तु टीवी सीरियल में हमेशा दिखाए जाने वाले ``एक्सट्रा मेरेटल अफेयर्स`` ने आज सारी परिभाषाएं ही बदलकर रख दी हैं।वालीवुड में देह शोषण की बात यह कोई नई नहीं है। सबसे पहले 2004 में प्रीति जैन नामक एक माडल ने फिल्मकार मधुर भण्डारकर पर देह शोषण का आरोप लगाया था। इसके बाद यह अनवरत सिलसिला शक्तिकपूर, आदित्य पंचोली, अमन वर्मा महेश भटकर आदि के रास्ते होकर चलता ही जा रहा है।वालीवुड में ``कािस्ंटग काउच`` के चर्चे चटखारे लेकर किए जाते हैं। यह सच है कि वालीवुड के सुनहले पर्दे के दूसरी और कालिख ही कालिख पुती हुई है। यह वह हमाम है जिसमें कमोबेश हर कोई शख्स नंगा ही खड़ा है। जिसकी चोरी पकड़ी गई वही चोर करार दिया गया है बाकी सब साहूकार बने बैठे हैं।मीडिया ने भी अपनी पाठक संख्या या टीआरपी बढ़ाने की गरज से ``पेज थ्री`` आरंभ कर दिया है, जिसमें सेलिब्रिटीज को रात की रंगीनियों में कैद कर लोगों के सामने परोसा जाता है। कल तक देश प्रेम का जज्बा जगाने वाली खबरों से अटा पड़ा मीडिया और फिल्म जगत आज क्या परोस रहा है?निश्चित तौर पर हमारी सराउंडिंग (आसपास का माहौल मिलने जुलने वाले) जैसी होगी हमारी सोच वैसी ही बनेगी। वालीवुड के बारे में जिस तरह की बातें मीडिया हमारे सामने लाएगा हमारी मानसिकता वालीवुड के बारे में वैसी ही बनेगी। रूपहले पर्दे पर ``गुड ब्वाय`` का किरदार निभाने वाले निजी जिंदगी में रातों रात ``बेड ब्वाय`` कैसे बन जाते हैं इसका उदहारण पिछले लगभग पांच सालों से देखने को मिल रहा है।एसा नहीं कि वालीवुड की तारिकाएं कास्टिंग काउच से अछूती हों। बदनामी के डर से वे अपना मुंह बंद रखने को मजबूर हैं। नीतू चंद्रा ने तो खुद को इससे दूर रखकर यह तक कह डाला था कि वालीवुड में कािस्ंटग काउच चरम पर है। अब देखना यह है कि शाईनी के बाद कौन सा चेहरा बेनकाब होता है, क्योंकि अब तक के हादसों से सबक लेकर वालीवुड के सुधरने की उम्मीद करना तो बेमानी ही होगा।]

-----------------------------

कहां गईं टिकिट बिकने की शिकायतें!

0 आत्म मंथन में भी नही हो रहा टिकिटों के बिकने का जिकर

0 अपनी पीठ ठोंकर अनियमितताओं पर धूल डाल रही है कांग्रेस

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, दिल्ली सहित अन्य राज्यों में बीते साल हुए विधानसभा चुनाव और देश के आम चुनावों में पार्टी फंड में कथित तौर पर चन्दा दिलवा कर कांग्रेस की टिकिट दिलाने वाले घालमेल की शिकायतों अब ठंडे बस्ते के हवाले कर दी गई हैं। ये शिकायतें जितनी तेजी से उठी थीं, उससे दुगनी गति से दफन कर दी गई हैं।कांग्रेस के राष्ट्रीय मुख्यालय में चल रही चर्चाओं के अनुसार पार्टी के कुछ रसूखदार दलालनुमा नेताओं ने इस बार चुनावों में टिकिट का घालमेल जमकर किया। इसमें मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, उड़ीसा आदि राज्यों में टिकिट बिकने की खबरें पहले जमकर उछलीं थीं।पार्टी के उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि आम चुनाव के पूर्व पार्टी ने लोकसभा सीटों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया था। इनमें से ``अ`` श्रेणी की लोकसभा सीट को सबसे अधिक धनराशि मुहैया करवाई गई थी। इसके उपरांत गुणोत्तर क्रम में ब और स श्रेणी के संसदीय क्षेत्रों को उससे कम राशि दी गई थी।सूत्र बताते हैं कि इन दलालों ने पार्टी फंड के नाम पर टिकिट बेचकर पैसे बनाए ही बनाए साथ में पार्टी से चुनाव लड़ने के लिए सहायता के तौर पर रूपयों की हेराफेरी भी कर डाली। उत्तर प्रदेश के एक सांसद जिनके नाम पर पार्टी के बहीखाते में 25 लाख रूपए दर्ज हैं, वे आवक हैं, क्योंकि रकम उन्होंने ली ही नहीं। अल्पसंख्यक कोटे के इन सांसद ने अपनी शिकायत पार्टी मुखिया के पास दर्ज करा दी है। यही आलम एक अन्य मुस्लिम सांसद का है जिनके खाते में पार्टी से पांच लाख रूपए की सहायता दर्ज है।पार्टी के एक नेता ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर कहा कि अगर कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी टिकिट बिकने और पार्टी फंड के बंदरबांट की शिकायतों पर समय रहते कदम उठा लेतीं तो कांग्रेस पार्टी सवा दो सौ से अधिक सीटों पर विजयश्री का परचम फहराती। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सुप्रीमो को उनकी किचिन केबनेट के सदस्य जिस रंग का चश्मा लगाकर सियासत दिखा रहे हैं, वे उसी रंग में सियासत को देख रही हैं, यही कारण है कि एक के बाद एक करके कांग्रेस के हाथ से देश के सूबे फिसलते ही जा रहे हैं।

--------------------------------------

. . . मतलब निरंकुश हो गए हैं मनमोहन!

0 सोनिया ने मनमोहन को लिखा खत, वादे याद दिलाए

नई दिल्ली। देश की सबसे शक्तिशाली महिला अगर डॉ. मनमोहन सिंह को देश के सबसे शक्तिशाली संवैधानिक पद पद बिठाएं और फिर खतो खिताब के जरिए उनसे बात करें तो यही माना जाएगा कि मनमोहन दूसरी पारी में पूरी तरह निरंकुश हो गए हैं, और अब सोनिया को उनसे बातचीत के लिए पत्रों का सहारा लेना पड़ रहा है।गौरतलब होगा कि माना जाता है कि सरकार का रिमोट कंट्रोल सोनिया गांधी के पास ही है। अगर चुनावी वादे याद दिलाने के लिए सोनिया गांधी ने मनमोहन को खत लिखा है तो इसके पीछे कोई न कोइ्रZ कहानी जरूर है। या तो यह पब्लिसिटी स्टंट है या फिर खतो खिताब के बाजीगर कुंवर अजुZन सिंह के किसी जहर बुझे तीर को निष्फल करने का कोई नया पैंतरा।बहरहाल कांग्रेस के आम कार्यकर्ता को हर महीने खत लिखने वाली कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इस महीने पार्टी के एक खास कार्यकर्ता को पत्र लिखा है। सोनिया ने यह खत लिखा है प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को। इसमें प्रधानमंत्री को कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र में किए गए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून बनाने के वादे की याद दिलाई है। सोनिया ने लिखा है कि यूपीए के पिछले कार्यकाल में बनाए राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून की तर्ज पर यह कानून भी बनाया जाए। सोनिया खाद्य सुरक्षा को यूपीए के दूसरे कार्यकाल की प्रमुख योजना बनाना चाहती हैं। देश में इस साल मॉनसून के लेट हो जाने के कारण खरीफ की फसल पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ने की आशंका के बीच सोनिया का यह पत्र बहुत ही अहम है। हालांकि इस समय देश के सरकारी गोदाम अनाजों से ठसाठस हैं, मगर गरीबों के पास इसे खरीदने के लिए पैसा नहÈ। विÜव बैंक के मुताबिकए भारत में 45 करोड़ 60 लाख लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं।स्थिति की गंभीरता का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया के कुल गरीबों में एक तिहाई भारतीय हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में 20 करोड़ लोगों को दोनों वक्त भोजन उपलब्ध नहÈ होता है। 50 प्रतिशत कुपोषण के शिकार हैं। इनमें 20 फीसदी की हालत बहुत ही गंभीर है। इस पृष्ठभूमि में यूपीए सरकार द्वारा कानून बनाकर 25 किलोग्राम गेहूं या चावल 3 रुपये प्रति किलो के हिसाब से उपलब्ध करवाना क्रांतिकारी कदम माना जा रहा है। सोनिया और प्रधानमंत्री द्वारा संयुक्त रूप से जारी कांग्रेस के घोषणा पत्र में किए वादे में कहा गया है कि खाने को अधिकार बनाया जाएगा।कानून बनाकर सब लोगों खासतौर से समाज के कमजोर तबके के लोगों को पूरा भोजन देने की गारंटी होगी।