बुधवार, 9 मार्च 2011

1000वीं पोस्‍ट


सुरक्षा बलों के मुकाबले नक्सलियों का ज्यादा है रक्षा बजट!
नक्सलियों ने बढ़ाई अपनी ‘लेवी‘

व्यापारियों, अफसरों और स्थानीय लोगों से होती है चौथ वसूली

(लिमटी खरे)

सुरक्षा बलों के बढ़ते दबाव, हथियार और गोला बारूद के दामों मंे आई तेजी के चलते नक्सलवादियों ने अपनी उगाही की राशि का प्रतिशत बढ़ा दिया है। पिछले दिनों केंद्रीय गृह मंत्रालय के हाथ लगी खुफिया खबरों के बारे में सूत्रों की सूचनाओं पर अगर यकीन किया जाए तो नक्सलियों द्वारा पिछले दिनों ली जाने वाले दस फीसदी हिस्से की रकम को बीते दो साल पहले दो फीसदी तो अब बढ़ाकर पंद्रह फीसदी कर दिया है।

कहा तो यह भी जा रहा है कि संभवतः नक्सलवादियों के केंद्रीय नेतृत्व को शायद कुछ ज्यादा धन की आवश्यक्ता पड़ गई हो या फिर छोटे नक्सली गिरोहों की करामात हो यह बढ़ा हुआ हिस्सा। देखा जाए तो नक्सलप्रभावित इलाकों में सरकारी कर्मचारियों विशेषकर पुलिस, राजस्व और वन विभाग के कारिंदों, व्यापारियों और स्थानीय लोगों से कमीशन या संरक्षण राशि के रूप में ली जाने वाली लेवी ही इन संगठनों की आय का सबसे बड़ा स्त्रोत है।

एक अनुमान के अनुसार नक्सली हर साल दो हजार करोड़ रूपयों से अधिक की चौथ वसूल किया करते हैं। यह राशि न केवल नक्सल प्रभावित इलाकों में काम कर रहे ठेकेदारों द्वारा दी जाती है, वरन् औद्योगिक घरानों से भी इसे बाकायदा वसूल किया जाता है, जिसमें राष्ट्रीय स्तर की अनेक प्रतिष्ठित कंपनियों का शुमार है। पिछले सालों में झारखण्ड के तत्कालीन मुख्यमंत्री मधु कोड़ा द्वारा भी नक्सलियों को नियमित आर्थिक इमदाद उपलब्ध कराने की बात जांच में समाने आई थी। नक्सल प्रभावित राज्यों में सूबों की सरकारों द्वारा प्रत्यक्ष और परोक्ष तौर पर नक्सलवादियों को सुविधाएं और संसाधन उपलब्ध कराने की शिकायतें जब तब मिला ही करती हैं।

पिछले साल अप्रेल माह में माओवादियों को हथियार और गोला बारूद बेचने के संदेह में उत्तर प्रदेश के आधा दर्जन लोगों को गिरफ्तार किया गया था। इनमें से दो लोग सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स (सीआरपीएफ) के प्रधान आरक्षक थे। उस दर्मयान सूचना मिली थी कि दंतेवाड़ा अटैक (जिसमें 76 सुरक्षा कर्मी मारे गए थे) के बाद सीआरपीएफ रामपुर के गु्रप सेंटर में बड़ी तादाद में कारतूसों की तस्करी की जा रही थी। इन लोगों के पास से पांच हजार से ज्यादा जिंदा कारतूस, इनसास राइफल्स की 26 मेग्जीन, दशमलव टूफाईव बोर गन, एसएलआर, एके 47 के अलावा और भी बंदूकों के कारतूसों की बरामदगी इस बात की ओर चीख चीख कर इशारा कर रही थी कि सुरक्षा बल के जवान ही नक्सलियों को हथियार सप्लाई करने का काम कर रहे हैं।

इसके अलावा नक्सल प्रभावित इलाकों में पुलिस के जवानों की हालत बहुत ही दयनीय है। बताते हैं कि इन इलाकों में नक्सवादियों का इतना खौफ है कि पुलिस के जवानों को थाने के अंदर या बाहर अपनी यूनिफार्म पहनने की इजाजत नहीं है। जब तब थानों से बंदूक और कारतूस लूट लिए जाते हैं। पुलिस के जवान हाथ पर हाथ रखे बैठे रह जाते हैं। कितनी बड़ी विडम्बना है कि अपने ही देश में एक तरफ पुलिस के जवान वर्दी का रोब गांठकर लोगों को हलाकान किए हुए हैं वहीं दूसरी ओर पुलिस के ही जवान नक्सल प्रभावित इलाकों में दुम दबाकर बैठे रहते हैं। पुलिस जिसे जनता की रक्षा के लिए तैनात किया गया है, वही पुलिस नक्सलियों के आगे घुटने टेककर अपनी ही यूनिफार्म पहनने से बचती रहती है। सरेआम थानों में आकर नक्सलियों द्वारा उनके सामने से हथियार लूट लिए जाते हैं।

उधर गृह मंत्रालय के अंदरखाने से छन छन कर बाहर आ रही खबरें बताती हैं कि नक्सलवादियों ने अपनी रणनीति को बदलना आरंभ कर दिया है। अब नक्सलवादियों ने देशी हथियारों पर से अपनी नजरें हटा ली हैं। विदेशी अत्याधुनिक तकनीक के हथियार इस समय नक्सलियों की पहली पसंद बने हुए हैं। नक्सली अब विदेशी हथियार खरीदने का जतन कर रहे हैं। अब तक तो सुरक्षा बलों और पुलिस से लूटे हथियारों पर ही निर्भर थे नक्सली।

झारखण्ड में यद्यपि भाकपा (माओवादी) अभी भी शीर्ष नक्सली समूह माना जाता है, फिर भी अन्य छोटे छोटे समूह भी अब लेवी वसूलने के काम को बखूबी अंजाम देने लगे हैं। पैसा कमाने और संगठन चलाने के लिए इनके द्वारा अपहरण, लूटपाट, चौथ वसूली के अलावा नशे के कारोबार में भी पैर पसारना आरंभ कर दिया गया है। इसी सबके चलते झारखण्ड से ही नक्सलियों द्वारा हर साल पांच सौ करोड़ रूपयों से ज्यादा का राजस्व जमा कर लिया जाता है।

एक मोटे अनुमान के अनुसार नक्सल प्रभावित झारखण्ड, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, बिहार, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में इनके द्वारा वसूली जाने वाली चौथ की रकम दो हजार करोड़ रूपयों से अधिक की है। वसूल की गई रकम का इस्तेमाल नक्सलवादियों द्वारा ग्रामीणों में अपने प्रति विश्वास जमाने के अलावा प्रमुख तौर पर हथियारों की खरीदी में किया जाता है। अपने शरीर की भूख मिटाने के लिए भी नक्सलियों द्वारा इस धन का उपयोग खुले तौर पर किए जाने की खबरें हैं, किन्तु इस तरह के काम में अभी छोटे स्तर पर संचालित होने वाले समूहों का ही नाम चर्चाओं में आ रहा है।

अगर देखा जाए तो आंतरिक तौर पर सुरक्षा बलों के काम करने के लिए केंद्र या राज्यों की सरकारों द्वारा जो बजट आवंटित किया जाता है उससे कहीं अधिक का बजट नक्सलवादियों द्वारा इनके खिलाफ लड़ने में खर्च किया जाता है। एसा नहीं कि यह अघोषित राजस्व नक्सलवादी कहां से जुटाते हैं इस बारे में शासकों को पता न हो, फिर भी निहित स्वार्थों के चलते शासक भी चुप्पी साधने पर मजबूर ही हैं।

केंद्र में सालों से मलाई चखने वाले अधिकारी होंगे मूल काडर में वापस

नपेंगे एमपी के चार दर्जन अफसरान
 
प्रतिनियुक्ति पर हैं सूबे के 70 अफसरान
 
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। अपने मूल काडर को छोड़कर देश की राजधानी दिल्ली में मलाई चखने वाले अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों की अब खैर नहीं है। केंद्र सरकार के कार्मिक विभाग (डीओपीटी) ने इन अधिकारियों की मश्कें कसना आरंभ कर दिया है। पांच साल का समय प्रतिनियुक्ति के लिए पर्याप्त माना गया है।
 
कार्मिक विभाग के आला दर्जे के सूत्रों का कहना है कि अपने आवंटित सूबे के बजाए अधिकारियों को दिल्ली में रहना ज्यादा भा रहा है। राज्यों अफसरों की कमी होने के बाद भी ये दिल्ली में या तो रूके रहना चाहते हैं या फिर मंत्रालय इन्हें रोकने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाते हैं। यह मामला प्रधानमंत्री तक गया और पीएम के साफ निर्देशों के बाद कार्मिक विभाग ने सख्त आदेश जारी कर ही दिए हैं।
 
प्राप्त जानकारी के अनुसार अब पांच साल से अधिक प्रतिनियुक्ति पर रहने वाले अफसरांे के खिलाफ न केवल अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाएगी, वरन् पांच साल से अधिक वाला सेवाकाल उनके कार्यकाल के सेवाकाल में नहीं जोड़ा जाएगा, इतना ही नहीं उनकी वेतनवृद्धि भी रोकी जाकर पेंशन भी कम करने का प्रावधान किया गया है। अगर कोई अफसर पांच साल की अवधि से ज्यादा समय प्रतिनियुक्ति पर काटता है तो इसकी जवाबदेही उसके उच्चाधिकरियों पर आहूत की गई है।
 
केंद्र के इस सख्त आदेश के बाद अब राज्यों से आए भारतीय प्रशासनिक, पुलिस और वन सेवा के अधिकारियों का बोरिया बिस्तर बंधना तय माना जा रहा है। वहीं दूसरी और देश की नीति निर्धारक सबसे ताकतवर आईएएस लाबी ने इस मामले में प्रधानमंत्री पर दबाव बनाने का मन बना लिया है। माना जा रहा है कि जल्द ही लाबी के आला पदाधिकारियों द्वारा पीएम से मिलकर इन नियमों को शिथिल करने के मसले पर चर्चा की जाएगी।
छोटा मोटा वल्लभ भवन बन गया था दिल्ली में

2003 में जब उमा भारती के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई तब कांग्रेस की मानसिकता वाले अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों ने खतरे को भांपते हुए सूबे से निकलने में ही भलाई समझी। अपने संपर्कों का लाभ उठाकर अफसरान ने केंद्र में प्रतिनियुक्ति ले ली, ताकि उमा भारती के कोप से बचा जा सके। इस बात को आठ साल बीतने को हैं, पर न तो शिवराज सिंह ने इसकी सुध ली और ना ही केंद्र सरकार ने इन्हें वापस भेजने में कोई दिलचस्पी दिखाई। यही कारण है कि सूबे में अधिकारियों की कमी के चलते ही राज्य स्तर की सेवाओं के अधिकारियों को महत्वपूर्ण कमान सौंपी गई है।
यह है लेखा जोखा

केंद्र सरकार के पास अखिल भातीय सेवा के पांच हजार छः सौ नवासी अफसर हैं जिनमें से चार हजार पांच सौ चौंतीस काम कर रहे हैं। केंद्र सरकार के पास इनमें से कुल सात सौ चौदह आईएएस अफसर प्रतिनियुक्ति पर हैं। मध्य प्रदेश के बावन अफसर दिल्ली में प्रतिनियुक्ति पर हैं। इस तरह सवा सात फीसदी भागीदारी है मध्य प्रदेश की केंद्र में आईएएस प्रतिनियुक्ति में और लगभग दस फीसदी सभी अखिल भारतीय सेवाओं में।
इन पर गिर सकती है गाज

एमपी काडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा में राघवेंद्र सिंह सिरोही, अल्का सिरोही, सुषमा नाथ, के.एम.आचार्य, जेमनि कुमार शर्मा, अजय आचार्य, सुमित बोस, डी.आर.एस.चौधरी, विमल जुल्का, आर,गोपालकृष्णन, स्नेहलता कुूमार, स्वदीप सिंह, लवलीन कक्कड़, राजन कटोच, एंथोनी जे.सी.डिसा, डॉ.अमर सिंह, अमिता शर्मा, अरूणा शर्मा, डी.के.सामन्तरे, सुरंजना रे, अजय नाथ, जे.एस.माथुर, राघव चन्द्रा, रश्मि शुक्ला शर्मा, एम.गोपालरेड्डी, प्रवीर कृष्ण, गौरी सिंह, आई.सी.पी.केशरी, मनु श्रीवास्तव, प्रमोद अग्रवाल, नीलम शमी राव, ब्ही.एल.कान्ता राव, दीप्ति गौड़ मुखर्जी, पल्लवी जैन, फैज अहमद किदवई, केरेलिन खोंगवार देशमुख।
 
भारतीय पुलिस सेवा के अफसरान में यशोवर्धन आजाद, रीना मित्रा, विवेक जोहरी, आलोक पटेरिया, सुधीर कुमार सक्सेना, संजीव कुमार सिह, राजीव टंडन, एस.के.पाण्डेय, एस.एल.थौसेन, प्रज्ञा ऋचा श्रीवास्तव, अनन्त कुमार सिंह, मनीष शंकर शर्मा, जयदीप प्रसाद, योगेश देशमुख, सालोमन के.मिंज।

भारतीय वन सेवा के डॉ.राजेश गोपाल, असित गोपाल और प्रकाश उन्हाले।

भारत में जनमा था एटीम का जनक