गुरुवार, 22 सितंबर 2011

अंग्रेजी का नया ककहरा

अंग्रेजी का नया ककहरा
भ्रष्टाचार हिन्दुस्तान में किस कदर बढ़ चुका है इसकी बानगी है अंग्रेजी का नया यह ककहरा
 

कहां गया आपदा प्रबंधन सिस्टम!

कहां गया आपदा प्रबंधन सिस्टम!



(लिमटी खरे)




किसी भी अनहोनी के लिए भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का गठन किया गया है। इसके अधिकारी ही जब स्वीकार करने लगें कि उनकी तैयारियों में गंभीर खामियां हैं तो फिर भारत गणराज्य की जनता को किसके भरोसे छोड़ा जाए! ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टेंडर्ड, आवास एवं शहरी विकास निगम (हुडको) के साथ ही साथ भारत सरकार की भवन सामग्री एवं तकनीकि प्रोत्साहन परिषद द्वारा भूकंपरोधी निर्माण के लिए बाकायदा दिशा निर्देश तैयार किए हैं। इन गाईड लाईन का पालन सुनिश्चित कराना स्थानीय निकायों का काम है, जो भवन निर्माण की अनुज्ञा देते हैं। इन दिशा निर्देशों का कितना पालन हो रहा है यह जगजाहिर है। कागज के महज कुछ टुकड़ों (रिश्वत) के आगे सब कुछ बेमानी ही साबित होता है। व्यवस्था में बैठे लोग किस तरह लोगों को मौत के मुंह में ढकेल रहे हैं और सरकारें मूकदर्शक बनी बैठी हैं। जर्जर इमारतें और भूकंप न सह पाने वाले मकानों अर्थात विनाश के इन व्यापक हथियारों के साथ भारत गणराज्य की एक सौ इक्कीस करोड़ जनता असुरक्षित सांसे ले रही हैं। रियाया बेचैन है पर शासक नीरो के मानिंद चैन की बंसी बजा रहे हैं।


सिक्किम और पूर्वोत्तर राज्यों सहित दिल्ली में भी भूकंप ने जिस कदर तबाही मचाई है वह देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मीडिया में आने वाली तस्वीरों को देखकर रूह कांपना स्वाभाविक ही है। अभी लातूर, कच्छ, जबलपुर, दिल्ली आदि के भूकंप की तबाही से लोग उबर नहीं पाए हैं। कहा जाता है कि नर्मदा घाटी पूरी तरह से भूकंप के निशाने पर है। धरती डोलती है और लोग दहशत जदा हो जाते हैं। अपने अपने परिचितों की पूछ परख के लिए फोन घड़घड़ाने लगते हैं। सरकार आनन फानन इमदाद का एलान कर देती हैै। सवालय यह है कि यह इमदाद आखिर आती कहां से है। जाहिर है जनता के गाढ़े पसीन की कमाई से।


सिक्किम सहित पूर्वोत्तर क्षेत्र में आए भूकंप को पैमाने पर 6.8 मापा गया है। इसमें मरने वालों की तादाद का आंकड़ा सौ पहुंच रहा है। लगभग पांच लाख की आबादी वाले सिक्किम में जन जीवन अस्त व्यस्त हो गया है। खबर है कि रविवार को आए भूकंप में अब तक तीन हजार से ज्यादा लोगों को सुरक्षित बचाया जा सका है। भूकंप के झटके मिजोरम, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, दिल्ली आदि में ज्यादा महसूस किए गए। इस भूकंप ने सौ साल पुरानी मालदा जेल की दीवारों में एक सौ से ज्यादा दरारें ला दी हैं।


उधर मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में अरी थाना के तहत आने वाले ग्राम नवेगांव में भूगर्भीय हलचल महसूस की जा रही है। कहा जा रहा है कि खेत की मेड़ के पास जमीन से अजीब तरह की गड़गड़ाहट की आवाजें आ रहीं हैं। लोगों का कहना है कि जमीन के अंदर एसी आवाजें आ रहीं हैं मानो अंदर ही अंदर कुछ उबलकर खदबदा रहा हो। पहले भी मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में रानी अवंती बाई सागर परियोजना के डूब वाले इलाके में 6 अप्रेल 2009 को चाईम्स एविएशन के एक विमान के गिरने की खबर से सनसनी फैल गई थी। इसके पहले इसी साल मकर संक्रांति के दिन इसी जिले के अरी के पास के जंगलों में सेना के एक विमान के क्रेश होने की खबर भी पंख लगाकर उड चुकी है। इस विमान का तो आज तक पता नहीं चल सका है, यह विमान सेना का था या अन्य किसी निजी या सरकारी उपक्रम का यह तो पता नहीं चल सका है, पर यह एक किंवदंती बनकर रह गया है।


जबलपुर एवं सिवनी जिला प्रशासन की हर कोशिश नाकाम रही। बाद में उस विमान के प्रशिक्षु पायलट रितुराज के परिजनों ने ही उसका शव और विमान को बरगी बांध से खोजकर बाहर निकाला था। विडम्बना देखिए कि नर्मदा घाटी पर बसे जाबलिऋषि के जबलपुर में भी आपदा से निपटने कोई ठोस व्यवस्था नहीं थी।


बहरहाल, हाल ही में आए भूकंप में हुई क्षति के बाद राहत और बचाव कार्य में आई तरह तरह की बाधाओं ने साफ कर दिया है कि प्राकृतिक आपदाओं के प्रति हम कितना संजीदा हैं और हमारी व्यवस्था एवं तैयारियां इस मामले में कितनी कारगर हैं। जानकारों का मानना है कि भारत गणराज्य में साढ़े सात रिएक्टर तीव्रता वाला भूकंप का खतरा सदा ही मंडराता है। देश के अनेक हिस्से चार और पांच तीव्रता वाले जोन में हैं।


इन परिस्थितियों में दशकों बाद भी भारत गणराज्य की सरकार द्वारा आपदा नियंत्रण, राहत और बचाव कार्य में सदा ही ढील डाली गई है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण भी लचर व्यवस्था तंत्र के आगे बौना ही साबित हो रहा है। किसी को भी इसके नियम कायदों की परवाह कतई नहीं है। लापरवाह और भ्रष्ट एवं सड़ांध मारते तंत्र ने सारे रिकार्ड ही ध्वस्त कर दिए हैं। सरकारें अपनी कुर्सी के चारों पाए सुरक्षित रखने की जुगत में नैतिकता को कब का ताक पर रख चुकी है।


भारत गणराज्य की सरकार के भवन सामग्री एवं तकनीक प्रोत्साहन परिषण एवं आवास एवं शहरी विकास निगम अर्थात हुड़को के दिशा निर्देशों का सरेआम माखौल उड़ रहा है। किसी को परवाह नहीं है कि इसका पालन सुनिश्चित कर सके। कितने आश्चर्य की बात है कि इसके लिए जिम्मेदार शहरी विकास मंत्रालय की कमान संभालने वाले भी इस मामले में एक शब्द बोलना मुनासिब नहीं समझ रहे हैं। विपक्ष को मानो सन्निपात हो गया है। वह भी खामोशी के साथ रियाया के साथ होने वाले अन्याय में मूक दर्शक बनकर बराबरी से अपनी हिस्सेदारी जता रहा है।


सरकार भूकंप के कारण और निवारण एवं राहत एवं बचाव कार्य में तेजी लाने की गरज से अरबों रूपए खर्च करती है। इस तरह के हादसों से साफ हो जाता है कि सरकार द्वारा जनता के गाढ़े पसीने से अर्जित धन को पानी में ही बहा दिया जाता है। संबंधित अधिकारी मोटी पगार लेकर कुर्सी तोड़ रहे हैं। यह मामला चूंकि जानलेवा है इसमें अनेक कालकलवित हुए हैं अतः सरकार संवेदना तो प्रकट करती है पर इतना साहस नहीं जुटा पाती कि भूकंप के जोन में भूकंपरोधी मकान न बनाने के लिए जिम्मदार अफसरान के खिलाफ संज्ञेय अपराध दर्ज कर कार्यवाही करे।


दुनिया का चौधरी अमेरिका और विकास का पहेरूआ जापान भूकंप की सबसे ज्यादा मार झेलते हैं। भारत गणराज्य की तुलना में वहां भूकंप का आंकड़ा कहीं ज्यादा है। आंकड़ों पर अगर नजर डाली जाए तो भूकंप तो वहां बहुतायत में आते हैं पर जान माल के मामले में वह भारत से कई गुना कम है। कहने का तात्पर्य महज इतना है कि वे इसके प्रति सालों पहले ही सचेत हो चुके थेट और उन्होंने इससे निपटने के प्रबंध सुनिश्चित कर लिए थे। दसियों मंजिलों की विशाल इमारतों में भी भूकंप का बहुत ज्यादा प्रभाव इन देशों में नहीं पड़ता है।


भारत गणराज्य में अपनी कुर्सी बचाने की जुगत में लगे शासकों द्वारा अपनी ही रियाया के दुखदर्द को भुला दिया है। शासक अपने ही में मगन दिख रहे हैं। भारत में कहने को तो आपदा प्रबंधन के अनेक उपाय और प्रबंध हैं पर वे सदा ही नाकाफी साबित होते हैं। कुछ साल पहले जब मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ में भरी बस्ती के बीच प्लास्टिक के एक गोदाम में आग लग गई थी तब उसे बचाने के लिए प्रशासन को भारी मशक्कत करनी पड़ी थी। गोदाम इतनी सकरी गली में था कि वहां फायर ब्रिगेड नहीं पहुंच पा रही थी। सच है कि आपदा प्रबंधन के न्यूनतम संतोषजनक स्तर तक पहुंचने के लिए भारत गणराज्य को अभी दो दशकों तक और इंतजार करना ही होगा!

अरबों खर्च कर भी नहीं बचा पा रहे बेटियां

अरबों खर्च कर भी नहीं बचा पा रहे बेटियां


मध्य प्रदेश में बढ़ा लिंगानुपात


बेटी बचाओ अभियान में पलीता लगा रहे शिव के गण


ज्योतिरादित्य का क्षेत्र लिंगानुपात में अव्वल


सुषमा के संसदीय क्षेत्र में 897 है लिंगानुपात


(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। बेटियों को बचाने के लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मंशाओं पर उनके आला अधिकारी ही पानी फेरते नजर आ रहे हैं। मध्य प्रदेश सरकार की महात्वाकांक्षी लाड़ली लक्ष्मी को अन्य प्रदेशों ने भी अंगीकार कर लिया है। मध्य प्रदेश के डेढ़ दर्जन से भी अधिक जिलों में लिंगानुपात काफी कम है जिससे शिवराज सिंह चौहान सरकार के बेटी बचाओ अभियान को संदेह की नजरों से देखा जा रहा है।

केंद्रीय महिला एवं बाल विकास विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार मध्य प्रदेश में सबसे कम लिंगानुपात वाला संभाग ग्वालियर एवं चम्बल संभाग ही है। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव वाले क्षेत्र में लिंगानुपात का बढ़ना चिंताजनक ही माना जा रहा है। इसमें अव्वल जिला भिण्ड है, जहां एक हजार बालकों की तुलना में बालिकाओं की संख्या महज 838 है। इसी तरह मुरेना में 839, ग्वालियर में 862, दतिया में 875, शिवपुरी में 877 है।

लिंगानुपात के मामले में छटवीं पायदान पर कांग्रेस प्रवक्त सत्यव्रत चतुर्वेदी के प्रभाव वाला छतरपुर है जहां 884, सागर में 896, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कर्मभूमि एवं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज के संसदीय क्षेत्र विदिशा में 897, रायसेन में 899, अशोकनगर में 900, टीकमगढ़ में 901, श्योपुर में 902, पन्ना में 907, राजधानी भोपाल में 911 तो होशंगाबाद में 912 का आंकड़ा सामने आया है।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सालों साल विदिशा से सांसद रहे हैं। उनके उपरांत विदिशा संसदीय सीट को सुषमा स्वराज की झोली में डाल दिया गया है। विदिशा में लिंगानुपात इतना कम होने से शिवराज सिंह चौहान के बेटी बचाओ अभियान की सफलता में संदेह के बादल मण्डराने लगते हैं। वहीं दूसरी ओर सिंधिया परिवार के दबदबे वाले ग्वालियर चंबल संभाग में लिंगानुपात सर्वाधिक रहना भी आश्चर्य का ही विषय माना जा रहा है।

बिना इंजन दौड़ रही भारतीय रेल!

बिना इंजन दौड़ रही भारतीय रेल!

भ्रष्टाचार की शिकायतों का सिरमोर बना रेल महकमा

सीवीसी को मिलीं एक तिहाई शिकायतें रेल की

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। पहले लालू प्रसाद यादव फिर ममता बनर्जी और अब दिनेश त्रिवेदी ये हैं इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में भारतीय रेल के चालक। इन तीनों के ही राज में भारतीय रेल पटरी से पूरी तरह उतर चुकी है। केंद्रीय सतर्कता आयोग को मिली कुल शिकायतों में एक तिहाई से अधिक शिकायतें सिर्फ भारतीय रेल की ही मिली हैं। वर्ष 2010 की वार्षिक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है। सीवीसी को मिली 25 हजार 359 शिकायतों में से आठ हजार 330 शिकायतें रेल्वे की हैं।

केंद्रीय सतर्कता आयोग के वर्ष 2010 के सालाना प्रतिवेदन में कहा गया है कि उसे जो शिकायतें मिली हैं उनमें भारतीय रेल सबसे उपर है। इसके उपरांत 6520 के साथ बैक दूसरे तो 1836 के साथ तेल विभाग तीसरी पायदान पर है। दूरसंचार महकमे की भी 1572 शिकायतें मिली हैं। प्रतिवेदन दर्शाता है कि इन 8 हजार 330 शिकायतों में अधिकांश शिकायतें कर्तव्य के निर्वहन न करने की हैं। आयोग द्वारा जिन 1646 मामलों में कार्यवाही के निर्देश दिए हैं उनमें से 321 मामले रेल्वे के खिलाफ वाले हैं।

गौरतलब है कि इक्कीसवीं सदी के स्वयंभू प्रबंधन गुरू लालू प्रसाद यादव ने सुर्खियां बटोरने के चक्कर में भारतीय रेल को प्रयोग शाला बना दिया था। कभी वे स्लीपर कोच में 72 के बजाए 84 बर्थ का आदेश देते तो कभी कुल्हड़ में चाय बेचने का तुगलकी फरमान। इसके बाद रेल मंत्री बनीं ममता बनर्जी ने भारतीय रेल को अपने पीछे पीछे पश्चिम बंगाल में झोंक दिया था। बंगाल की निजाम बनने के चक्कर में रेल के आला अधिकारी नस्तियों पर उनके हस्ताक्षर लेने उनके पीछे पीछे पश्चिम बंगाल की सैर ही करते रहे।

अण्णा के आगे चारों खाने चित्त अम्मा!

अण्णा के आगे चारों खाने चित्त अम्मा!


विरोध से घबराई अम्मा ने लगाई पीएम से गुहार


सरकार पर बरसकर कई निशाने साधे जयललिता ने


(लिमटी खरे)


 नई दिल्ली। अण्णा हजारे का जादू आज भी लोगों के सर चढ़कर बोल रहा है पर जनसेवकों पर कहर बनकर टूट रहा है। पिछले दिनों 15 सितम्बर को अन्नादुरै की जयंती पर जब जयललिता की इमदाद लेने से हजारों मछुआरों ने मना किया तब अम्मा के कान खड़े हो गए। ये लोग अम्मा से बातचीत को तैयार थे पर अनशन तोड़ने को नहीं। इनका विरोध कुडनकुलम परमाणु परियोजना के खिलाफ था।


प्रधानमंत्री कार्यालय के सूत्रों का कहना है कि तमिलनाडू की मुख्यमंत्री जयललिता की गुहार वाली पाती पीएमओ को मिली है जिसमें जयललिता ने कहा है कि जब तक इस परियोजना को लेकर जनता की शंका कुशंका का पूरा समाधान न हो जाए तब तक के लिए रोक देना चाहिए। सूत्रों ने बताया कि जयललिता ने पत्र में आगे कहा है कि तमिलनाडू के लोगों के मन में डर समाया हुआ है कि अगर इस परमाणु संयंत्र में भी जापान के फुकुशिमा जैसा हादसा हुआ तब क्या होगा?


जयललिता ने अपने पत्र में कांग्रेसनीत केंद्र सरकार पर अपनी जिम्मेदारी से भागने का आरोप लगाया है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि सरकार तमिलनाडू के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है। जयललिता का सीधा आरोप है कि इस मामले के उछलने और जनता के अनशन, डर दहशत के बाद भी अब तक केंद्र सरकार के किसी मंत्री या अफसर ने तमिलनाडू की ओर रूख नहीं किया है।

क्या जयेश के पास अपना बैग नहीं था!

क्या जयेश के पास अपना बैग नहीं था!

बैग सांसद का रूपए जयेश के कैसे

अपने बैग में क्यों नहीं रखे माथुर ने दस लाख

(लिमटी खरे)


नई दिल्ली। भले ही पुलिस ने भोपाल एक्सप्रेस के एसी फर्स्ट क्लास की बर्थ पर से मिले दस लाख रूपए दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित के सांसद पुत्र संदीप के मित्र जयेश को सौंप दिए हों किन्तु इस मामले को लेकर चर्चाओं का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है। राजधानी दिल्ली में इन दस लाख रूपयों को लेकर कयास लगाए जाने आरंभ हो गए हैं।


रेल्वे पुलिस के सूत्रों का कहना है कि सबसे पहले सांसद संदीप दीक्षित ने उस बैग को एवं उसमें रखे रूपयों को अपना मानने से इंकार कर दिया था। बाद में संदीप दीक्षित का कहना था कि वह राशि उनके आर्कीटेक्ट मित्र जयेश माथुर के थे। जब रेल्वे कोच अटेंडेंट भगवान दास ने गुरूवार को प्रातः दस लाख रूपए एसी फर्स्ट क्लास के कोच से बरामद किए थे तो पुलिस के भी हाथ पांव फूल गए थे। इस ईमानदार भगवान दास को प्रोत्साहन स्वरूप अब तक कुछ न मिल पाना भी चर्चाओं में है।


पुलिस सूत्रों का कहना है कि जयेश ने बयान दिया है कि दस लाख तो उनके हैं किन्तु वह बैग सांसद संदीप दीक्षित का है। अब सवाल यह उठता है कि पहले सांसद संदीप दीक्षित ने इस बात से इंकार क्यों किया कि न तो वह राशि उनकी है और ना ही बैग? बाद में उस बैग में से सांसद संदीप दीक्षित की दवाएं भी बरामद हुईं। यक्ष प्रश्न तो यह है कि क्या जयेश माथुर बिना सामान के ही यात्रा कर रहे थे? उन्होंने अपनी इतनी बड़ी रकम सांसद संदीप दीक्षित के बैग में आखिर क्यों रखी। और अगर रखी थी तो क्या इसकी जानकारी सांसद संदीप दीक्षित को नहीं थी? अगर थी तो पहले वे इस बात से क्यों मुकरे कि वह बैग उनका नहीं है? शुरूआती दौर में ही सांसद संदीप दीक्षित को बता देना चाहिए था कि बैग उनका था जिसमें उनके मित्र जयेश माथुर ने दस लाख रूपए रखे थे। वस्तुतः एसा हुआ नहीं।