बुधवार, 9 नवंबर 2011

सरताज हो गए हरवंश!


सरताज हो गए हरवंश!

(लिमटी खरे)

यह समझना बहुत मुश्किल है कि देश के हृदय प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार चल रही है या फिर कांग्रेस विधायक ठाकुर हरवंश सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार। प्रदेश सरकार जिस तरीके से कांग्रेस को तवज्जो दे रही है उससे तो लगने लगा है कि एमपी में कांग्रेस की छाया सरकार काम कर रही है। मध्य प्रदेश के स्थापना दिवस पर कांग्रेस के नेताओं को शिवराज सिंह ने जिस तरह तवज्जो दी उससे लगा मानो शिवराज सिंह चौहान की गलत नीतियों का विरोध न करने पर भाजपानीत सरकार अब कांग्रेस के सामने साष्टांग दण्डवत कर रही हो। हाल ही में भगवान शिव के सिवनी जिले में आदिवासी बहुल्य लखनादौन विधानसभा में हुए तेंदूपत्ता वितरण प्रोग्राम में भाजपा सरकार के वन मंत्री कांग्रेस के झंडे तले काम करते दिखे। मुख्य वनसंरक्षक लल्लन चौधरी ने आदिवासी विधायक शशि ठाकुर की सरेआम उपेक्षा कर कांग्रेस के विधायक हरवंश सिंह ठाकुर की गजब की चरण वंदना का प्रमाण दिया है।

वर्ष 2003 के दिसंबर माह में राजा दिग्विजय सिंह के कथित सुशासन और वास्तविक कुशासन का समूल नष्ट किया था भाजपा की तेज तर्रार नेत्री उमा भारती ने। उमा के नेतृत्व में भाजपा सरकार सत्ता पर काबिज हुई। उस वक्त कांग्रेस के इशारों पर ठुमके लगाने वाले अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों ने तत्काल ही अपना बोरिया बिस्तर बांधा और प्रतिनियुक्ति पर केंद्र में कांग्रेसनीत संप्रग सरकार की शरण ली। केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय के साफ निर्देशों कि प्रतिनियुक्ति पर पांच साल से ज्यादा रहने वाले अफसरान पर कार्यवाही होगी को धता बताते हुए आज दर्जनों अधिकारी प्रतिनियुक्ति की मलाई चख रहे हैं। दरअसल नियम कायदे अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी ही बनाते हैं अतः वे इसकी काट भी निकाल ही लेते हैं।

शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ न जाने कितने ब्रम्हास्त्र कांग्रेस के हाथ आए पर कांग्रेस ने उनका इस्तेमाल ही नहीं किया। कहा जा रहा है कि शिवराज सिंह चौहान अपनी कुर्सी बचाने के लिए कांग्रेस के लंबरदारों को हर माह निश्चित मात्रा में मदद दे रहे हैं ताकि भाजपा का विरोध तो हो पर छद्म तरीके से। इस तरह की नूरा कुश्ती से कांग्रेस के आलंबरदार अपने हित साध लेते हैं और जनता तथा आलाकमान को जताने के लिए सांकेतिक विरोध भी हो जाता है। डंपर कांड में लोकायुक्त में चल रहे प्रकरण का खात्मा आश्चर्यजनक तरीके से चंद दिनों में ही लगवा दिया गया। मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी इस मामले में मूक दर्शक बनी बैठी रही।

गणतंत्र दिवस पर भी शिवराज सिंह चौहान दरियादिली दिखाते हैं। वे कांग्रेस के विधायकों को जिला मुख्यालय में ध्वाजारोहण को पाबंद करते हैं। शिवराज की दरियादिली तारीफेकाबिल है पर अपने विधायकों का तिरस्कार कर विरोधियों को महिमामण्डित करने से पार्टी में उनका विरोध बढ़ता है। मध्य प्रदेश स्थापना दिवस पर भी कमोबेश यही कुछ नजारा देखने को मिला। भगवान शिव के जिले सिवनी में जिला मुख्यालय के कार्यक्रम को केवलारी के कांग्रेस विधायक हरवंश सिंह ठाकुर से करवाकर जिला मुख्यालय की विधायक श्रीमति नीता पटेरिया को केवलारी विधानसभा के एक कस्बे छपारा में मुख्य अतिथि बनवा दिया गया। हरवंश सिंह ठाकुर के इशारे पर ठुमके लगाने वाली जिला भाजपा भी इस मामले में मौन ही साधे रही।

हाल ही आदिवासी बाहुल्य लखनादौन विधानसभा के मुख्यालय लखनादौन में हुए तेंदूपत्ता बोनस वितरण कार्यक्रम में गजब का ही नजारा देखने को मिला। इस कार्यक्रम से स्थानीय भाजपा विधायक और संगठन ने पर्याप्त दूरी बनाकर रखी गई। यह कार्यक्रम चूंकि लखनादौन विधानसभा के तेंदूपत्ता संग्राहकों के लिए था इसलिए स्थानीय विधायक को तवज्जो देना प्रशासन का पहला कर्तव्य था। इस कार्यक्रम में मंच पर मुख्य अतिथि थे शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ अनेक मर्तबा परोक्ष तौर पर जहर उगल चुके प्रदेश सरकार के वन मंत्री सरताज सिंह चौहान, अध्यक्षता कर रहे थे कांग्रेस के सिवनी जिले के केवलारी के विधायक हरवंश सिंह ठाकुर और विशिष्ट अतिथि थीं सिवनी की विधायक श्रीमति नीता पटेरिया।

वस्तुतः प्रोटोकाल के मुताबिक इस कार्यक्रम की अध्यक्षता स्थानीय विधायक श्रीमति शशि ठाकुर को करना चाहिए थी। समूचा संगठन और विधायक इस कार्यक्रम के दौरान लखनादौन के रेस्ट हाउस में विरोध स्वरूप बैठा रहा। सिवनी की विधायक का लखनादौन के कार्यक्रम में दिलचस्पी लेना समझ से परे ही है। वैसे भी श्रीमति नीता पटेरिया और श्रीमति शशि ठाकुर के बीच अनबन किसी से छिपी नहीं है। श्रीमति नीता पटेरिया के पति डॉ.एच.पी.पटेरिया सिवनी में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के करंट चार्ज में थे। उस समय सिवनी के ईयर मार्क बंग्लों (कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक, जिला एवं सत्र न्यायधीश, मुख्य अभियंता सिंचाईं, मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत एवं मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी) में से सीएमओ के बंग्ले में वे निवास करने चली गईं थीं। जब श्री पटेरिया का करंट चार्ज हटा और उनके स्थान पर श्रीमति शशि ठाकुर के पति श्री ठाकुर सीएमओ बनकर आए तब भी श्री पटेरिया ने सीएमओ का ईयर मार्क बंग्ला डेढ़ साल होने को आया रिक्त नहीं किया। मजबूरी में श्री ठाकुर को किराए के मकान में निवास करना पड़ा। सहृदय और कुशल प्रशासक श्री ठाकुर ने बाद में स्वास्थ्य विभाग के ही एक अन्य आवास को अपना आशियाना बनाया हुआ है। वर्तमान में भी सीएमओ के ईयर मार्क बंग्ले में श्रीमति नीता पटेरिया ने अपना निवास बनाया हुआ है।

बहरहाल, लखनादौन में संपन्न हुए इस कार्यक्रम के पहले वनमंत्री सरताज सिंह बर्रा स्थित कांग्रेस विधायक हरवंश सिंह ठाकुर के निवास पर जलपान हेतु गए। इसके बाद वे मार्ग में छपारा में नीता पटेरिया के आवास पर कुछ देर रूके। कहा जा रहा है कि सरताज सिंह जब सिवनी से कार्यक्रम के लिए रवाना हुए थे तब उनकी भाषा कुछ और थी। बाद में जब वे हरवंश सिंह के आवास से निकले तब उनके सुर ही बदल गए थे। सरताज सिंह ने अधिकारियों से यह पूछने की जहमत भी नहीं उठाई कि कार्यक्रम में मंच पर आसंदी पर कौन कौन बैठेगा? न ही कार्यक्रम में जब भाजपा की ही विधायक शशि ठाकुर नहीं दिखीं तब भी उन्होंने इस बारे में जानकारी चाही।

सिवनी में पदस्थ मुख्य वन संरक्षक लल्लन सिंह वैसे भी हरवंश सिंह ठाकुर के निकट के बताए जाते हैं। भाजपा में चल रही चर्चाओं को अगर सही माना जाए तो यह कार्यक्रम भी कांग्रेस के विधायक हरवंश सिंह ठाकुर के इशारों पर ही तय किया गया है। इस कार्यक्रम में स्थानीय विधायक शशि ठाकुर की उपेक्षा सामान्य बात नहीं है। कल तक हरवंश सिंह को पानी पी पी कर कोसने वालीं परिसीमन में विलुप्त हुई सिवनी लोकसभा सीट की अंतिम सांसद और सिवनी विधायक श्रीमति नीता पटेरिया को हरवंश सिंह के साथ एक मंच पर ठहाके लगाते देख लोग अचंभित थे। लोगों में चर्चा होना स्वाभाविक ही है कि अब हरवंश नीता जुगलबंदी क्या रंग दिखाएगी?

कुल मिलाकर भाजपा के वन मंत्री सरताज सिंह के इस तेंदूपत्ता संग्राहकों को बोनस वितरण कार्यक्रम से भाजपा के अंदर ही अंदर असंतोष की खिचड़ी खदबदाने लगी है। सरताज सिंह चौहान इस बार पूरी तरह हरवंशमय ही दिखे। भाजपा को आदिवासियों की सरेआम की गई उपेक्षा का भोगमान अवश्य ही भोगना पड़ सकता है। आने वाले समय में सियासी गलियारों में यह चर्चा आम हो जाए कि मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार को कांग्रेस के नेता ही हांकरहे हैं तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

झाबुआ पावर के जमीन अधिग्रहण के साथ ही सख्त हुए नियम


0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . . 10

झाबुआ पावर के जमीन अधिग्रहण के साथ ही सख्त हुए नियम

झाबुआ पावर को लाभ दिलाने नियमों को लागू करने में हो रहा था विलंब

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। देश की नामी गिरामी कंपनी थॉपर ग्रुप के सहयोगी प्रतिष्ठान झाबुआ पावर को लाभ दिलाने मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार भी आतुर दिख रही है। कंपनी के द्वारा आदिवासी बाहुल्य घंसौर तहसील में कोयला आधारित पावर प्लांट लगाने के लिए जमीन अधिग्रहण को युद्ध स्तर पर करवाने के पीछे सरकार की मंशा कुछ और समझ में आ रही है। जमीन अधिग्रहण के उपरांत एमपी गर्वमेंट ने जमीन के डायवर्शन के नियमों को अपेक्षाकृत कठोर कर दिया है।

झाबुआ पावर लिमिटेड पर घंसौर में आदिवासियों की जमीने माटी मोल खरीदने के आरोप लग रहे हैं। वहीं दूसरी और पड़ोसी जिले छिंदवाड़ा में सरकार के स्तर पर बनने वाली पेंच व्यपवर्तन परियोजना में जमीन के मुआवजे को लेकर सरकार द्वारा कहा जा रहा है कि मुआवजा अधिक होने से यह योजना प्रभावित हो रही है। एक तरफ तो छिंदवाड़ा के किसानों को सरकार द्वारा ज्यादा मुआवजा नहीं दिया जा रहा है वहीं दूसरी ओर सिवनी जिले के केवलारी विधानसभा क्षेत्र की घंसौर तहसील के किसानों को चुटकी भर मुआवजा दिया जाकर उनका माखौल उड़ाया जा रहा है।

गौरतलब है कि वर्तमान में मध्य प्रदेश में जमीन के उपयोग परिवर्तन अर्थात डायवर्शन के लिए कोई नियम नहीं है। सूबे में अफसरों की मनमर्जी पर डायवर्शन का काम संपादित होता आ रहा है। घंसौर में कृषि की भूमि के औद्योगिक उपयोग के लिए लिए जाने पर भी शासन प्रशासन मौन ही साधे हुए है। कृषि भूमि को अकृषि के प्रयोजन का बनाया जा रहा है। कृषि भूमि वह भी आदिवासी या अनुसूचित जनजाति के लोगों से लेने पर कंपनी को ढेर सारी औपचारिकताओं से होकर गुजरना पड़ता किन्तु बताते हैं कि झाबुआ पावर लिमटेड कंपनी ने लक्ष्मी मैया की कृपा से शार्ट कट ही अपना लिया।

इसके पूर्व घंसौर में हुई जनसुनवाई में जिला प्रशासन की ओर से अतिरिक्त जिला कलेक्टर अलका श्रीवास्तव की देखरेख में संपन्न हुई थी। इस जनसुनवाई के बारे में भी जिला प्रशासन ने उस वक्त मौन साध रखा था। जिला प्रशासन ने किन उद्देश्य या दबाव में मौन साधा था यह तो वह ही जाने किन्तु आनन फानन में जनसुनवाई महज औपचारिकता को पूरा करने के उद्देश्य से ही की गई दिख रही थी। इस जनसुनवाई का निचोड़ क्या निकलकर आया इस मामले में भी जिला प्रशासन ने चुप्पी ही साध ली थी।

देश की मशहूर कंपनी थापर ग्रुप के सहयोगी प्रतिष्ठान झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा घंसौर में बारह सौ मेगावाट के कोयला आधारित पावर प्लांट के पहले चरण में छः सौ मेगावाट का पावर प्लांट लगाए जाने के मसले में मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार का अतिसहयोगात्मक रवैया संदेहास्पद इसलिए माना जा रहा है क्योंकि कंपनी के संचालक कांग्रेस की चौखटों को चूमते नजर आते हैं।

(क्रमशः जारी)

एसपीजी ने बनाई सरकार से दूरी


बजट तक शायद चलें मनमोहन . . . 22

एसपीजी ने बनाई सरकार से दूरी

सोनिया की यात्राएं गुप्त रख रही हैं सुरक्षा एजेंसी

बिना सुरक्षा कवच करतीं हैं सोनिया विदेश यात्राएं!

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। अति विशिष्ट का दर्जा पा चुकीं कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी की सुरक्षा में लगी स्पेशल प्रोटेक्श ग्रुप (एसपीजी) ने भी अब मनमोहन सरकार से आंख मिचौली खेलना आरंभ कर दिया है। सरकार से तनख्वाह पाने वाले एसपीजी के अधिकारियों ने सोनिया गांधी के देश विदेश के भ्रमण के बारे में सरकार को जानकारी देना बंद कर दिया है। मजे की बात तो यह है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय से यात्रा देयक और दैनिक अग्रिम (टीए, डीए) पाने वाले ये अफसरान आखिर कहां का भ्रमण बताकर सरकार की आंख में धूल झोंक रहे हैं।

हाल ही में यह मामला तब उजागर हुआ जब कांग्रेस की राजमाता और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी के बारे में सूचना के अधिकार में जानकारी चाही गई। जानकारी में यह पता लगाने का प्रयास किया गया था कि सोनिया गांधी पर उनके विदेश दौरों में पिछले दो सालों में सरकार ने कितना खर्च किया। राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की अध्यक्ष सोनिया गांधी के बारे में माहिती संबंधी यह पत्र लंबे समय तक जानकारी के लिए संसदीय कार्य मंत्रालय, सांख्यिकी तथा कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और अंत में प्रधानमंत्री कार्यालय की सीढ़ियां चढ़ने उतरने के बाद हांफकर वापस आ गया।

किसी के पास भी राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की अध्यक्ष सोनिया गांधी की विदेश यात्राओं के बारे में जानकारी नहीं है। यह बात तभी संभव हो सकती है जब विदेश यात्राओं के दौरान सोनिया गांधी अपने सुरक्षा कवच यानी एसपीजी के घेरे में न रहें। अगर सोनिया गांधी के साथ एसपीजी के अधिकारी जाते हैं तो निश्चित तौर पर वे अधिकारी केंद्रीय ग्रह मंत्रालय से यात्रा और दैनिक भत्ते अवश्य ही लेते होंगे। इन परिस्थिति में एसपीजी के अधिकारियों द्वारा देयक में साफ तौर पर उल्लेखित किया जाता होगा कि वे श्रीमति सोनिया गांधी के सुरक्षा कवच बनकर विदेश गए थे।

(क्रमशः जारी)

आरटीओ को जेब में रखने का ‘आईडिया‘


एक आईडिया जो बदल दे आपकी दुनिया . . .  18

आरटीओ को जेब में रखने का आईडिया

नंबर प्लेट पर पंजीयन के बजाए आईडिया के चिपके हैं स्टीकर

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। मशहूर उद्योगपति आदित्य बिरला के स्वामित्व वाली निजी क्षेत्र की मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनी आईडिया सेल्यूलर के कारिंदों ने परिवहन और यातायात पुलिस को जेब में रखने का नया आईडिया निकाला है। देश भर में अनेक जिलों में आईडिया के सेल प्रमोशन के चलते दो पहिया वाहनों पर आईडिया के कर्मचारी नंबर प्लेट पर आईडिया के स्टीकर लगाकर यातायात नियमों का सरेआम माखौल उड़ाते नजर आ रहे हैं।

मनमानी और उपभोक्ताओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करने के लिए मशहूर आईडिया सेल्युलर के जिलों में पदस्थ टीम मैनेजर्स पर कंपनी ने सिम बेचने का भारी भरकम टारगेट फिक्स किया हुआ है। आरोपित है कि टीम मैनेजर्स द्वारा ग्राहकों को लुभाने के लिए आकर्षक मनगढंत स्कीम के माध्यम से ग्राहकों को लुभाकर अपने जाल में फंसाया जाता है। बाद में जब ग्राहक स्कीम के तहत सेवाएं चाहता है तब आईडिया के कारिंदे उसे इधर उधर झूला ही झुलाते नजर आते हैं।

आईडिया के जिलों में तैनात कर्मचारियों ने परिवहन विभाग और यातायाप पुलिस की आंखों में भी धूल झोंकने का काम किया जा रहा है। आईडिया के अधिकांश कर्मचारियों की निजी दो पहिया वाहनों पर भी नंबर प्लेट पर आईडिया का ही स्टीकर चस्पा मिलता है। एक सुधि पाठक ने मध्य प्रदेश से एक तस्वीर भेजी है जिसमें नंबर प्लेट के स्थान पर आईडिया का स्टीकर साफ दिखाई पड़ रहा है।

(क्रमशः जारी)