सोमवार, 26 नवंबर 2012

दिल्ली में कुर्सी तोड़ने वाले नेता होंगे राज्यों में सक्रिय!


दिल्ली में कुर्सी तोड़ने वाले नेता होंगे राज्यों में सक्रिय!

अंबिका को पंजाब भेजने की तैयारी!

हरिप्रसाद को बंग्लुरू, अहमद को बिहार तो वासनिक जा सकते हैं महाराष्ट्र

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। राज्यों से उठकर दिल्ली पहुंचकर सियासी बियावान में विचरण करते करते मलाई खाने के आदी हो चुके कांग्रेस के नेताओं के लिए यह बुरी खबर है कि कांग्रेस आलाकमान ने दिल्ली में खींसे निपोरते कुर्सी तोड़ने वाले नेताओं को उनके राज्यों में ही सक्रिय करने का फैसला लिया है। सरकार से हटाए गए कुछ नेता और संगठन में बैठे असफल या पुअर परफार्मेंस वाले नेताओं को जल्द ही उनके राज्यों में अहम जिम्मेवारी से नवाजा जा सकता है।
सूचना प्रसारण मंत्रालय के प्रभार से मुक्त हुईं अंबिका सोनी का शनी भारी होता दिख रहा है। माना जा रहा था कि अंबिका सोनी को केंद्र सरकार से लाल बत्ती वापस लेने के उपरांत उनकी सेवाएं संगठन में कुछ महत्वपूर्ण ओहदों पर ली जाएगी, वस्तुतः एसा हुआ नहीं। अंबिका को राहुल की अगुआई वाली समितियों में भी सम्मानजनक ओहदा नहीं मिला है। एआईसीसी से भी अंबिका का पत्ता लगभग कटा ही हुआ है। वहीं कुछ अन्य कांग्रेसी नेताओें को उनके गृह प्रदेश में वापसी का तानाबाना भी बुना जा रहा है।
कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ (बतौर सांसद श्रीमति सोनिया गांधी को आवंटिस सरकारी आवास) में पदस्थ एक कारिंदे ने पहचान उजागर ना करने की शर्त पर समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि दरअसल, दिल्ली विशेषकर केंद्र में सत्ता की मलाई चखने के उपरांत कोई भी नेता अपने सूबे की तरफ ध्यान नहीं दे रहा है, यही कारण है कि राज्य स्तर पर कांग्रेस का संगठन आईसीसीयू में पड़ा हुआ है।
उक्त कारिंदे का कहना था कि हर एक नेता जो लोकसभा से चुना जाता है वह अपने अपने सूबे में सारा ध्यान महज अपने संसदीय क्षेत्र तक ही सीमित रखता है, शेष राज्य में कांग्रेस की बुरी स्थिति से उसे कोई लेना देना नहीं होता है। वहीं राज्य सभा से चुने गए सदस्य तो अपने अपने चुने हुए राज्यों की तरफ मुंह मोड़कर भी नहीं देखते हैं। प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह का उदहारण देते हुए उक्त कारिंदे ने कहा कि जब पीएम को ही अपने राज्य सभा से चुने जाने वाले राज्य से लेना देना नहीं है तो बाकी की कौन कहे?
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के मुख्यालय में चल रही चर्चाओं पर अगर यकीन किया जाए तो पूर्व केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी के पुअर परफार्मेंस और मीडिया में कांग्रेस तथा सरकार के खिलाफ हमले ना रोक पाने के चलते अपना पद गंवाने वाली अंबिका सोनी इन दिनों गुमनामी के अंधेरे में ही हैं। अंबिका सोनी की पूछ परख काफी हद तक कम हो चुकी है। अकबर रोड स्थित उनके आवास में आजकल सन्नाटा पसरा हुआ है। सरकार से हटने के उपरांत अंबिका संगठन में शीर्ष पद पाने की जोड़तोड़ में लगीं थीं किन्तु कांग्रेस की हाल ही मे घोषित समितियों ने अंबिका को खासा झटका दिया है। अंबिका को इन समितियों में जगह नहीं मिली है। उन्हें संचार और प्रचार समिति में रखा गया है। अंबिका की मनःस्थिति यह देखकर समझी जा सकती है कि अंबिका को मनीष तिवारी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, दीपेंद्र हुड्डा जैसे अपेक्षाकृत कनिष्ठों को रिपोर्ट करना होगा। कल तक कांग्रेस अध्यक्ष की आंखों का नूर बनीं अंबिका सोनी अब कहां हैं किसी को नहीं पता।
सोनिया गांधी के आवास के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि अंबिका सोनी का उपयोग अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में करने के बजाए उन्हें अब पंजाब कांग्रेस की कमान सौंपने पर गंभीरता से विचार कर रही हैं सोनिया गांधी। अंबिका सोनी को राष्ट्रीय परिदृश्य से हटाने की मुहिम में लगे नेताओं ने सोनिया गांधी को यह भी समझाया है कि पंजाब में अमरिंदर सिंह और रजिंदर कौर के बीच चल रहे हाट एण्ड कोल वार से निपटने अंबिका से बेहतर और कोई नहीं हो सकता।
सूत्रों की मानें तो नेताओं ने सोनिया गांधी को समझाया है कि अंबिका सोनी के पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बनने से दोंनों ही गुटों के साथ ही साथ बागियों पर भी लगाम कसी जा सकेगी क्योंकि अंबिका की पीठ पर दस जनपथ का विश्वस्त होने की मुहर जो लगी होगी। इस तरह अंबिका के पंजाब जाने से पंजाब की कांग्रेस में अमन चैन की बहाली संभव हो सकेगी।
उधर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के आला दर्जे के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को यह भी बताया कि दिल्ली में रहकर कुर्सियां तोड़ने वाले अनेक नेताओं को उनके गृह सूबों की जवाबदेही सौंपने की तैयारी भी अंतिम दौर में ही है। इन नेताओं को यह कहकर इनके गृह राज्यों में भेजा जा रहा है कि वहां कांग्रेस के संगठन को मजबूत करें, वस्तुतः इन नेताओं को इनका जमीनी आधार दिखाने की यह कवायद राहुल गांधी के एक करीबी नेता ने की है।
वैसे पूर्व में 2008 में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी को त्यागपत्र दिलवाकर कांग्रेस आलाकमान ने देश के हृदय प्रदेश भेजा था। मध्य प्रदेश में उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव लड़ा और कांग्रेस औंधे मुंह ही गिरी। अब राज्यों की कमान केंद्र में बैठे हाई प्रोफाईल नेताओं के हाथों में सौंपने से क्या हल निकलनेगा यह तो कांग्रेस आलाकमान ही जाने पर पिछले असफल प्रयोगों से इस मामले में कांग्रेस को कोई सफलता मिले इसमें संशय ही लग रहा है।
एआईसीसी के भरोसेमंद सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया साई न्यूजको बताया कि मध्य प्रदेश के प्रभारी महासचिव बी.के.हरिप्रसाद की मध्य प्रदेश में कमजोर पकड़ और विशेषकर लखनादौन नगर पंचायत के चुनावों में कांग्रेस के प्रत्याशी का बी फार्म से पहले ही नाम वापस लेना, शराब व्यवसाई निर्दलीय तौर पर सिवनी विधानसभा से चुनाव मैदान में उतरकर कांग्रेस के प्रत्याशी को पहली बार जमानत जप्त करवाने वाले दिनेश राय की मां के पक्ष में कांग्रेस का समर्थन देने की असफल कोशिश के चलते अब उनकी केंद्र से छुट्टी तय मानी जा रही है। सूत्रों की मानें तो हरिप्रसाद को जल्द ही बंग्लुरू कांग्रेस अध्यक्ष बनाकर भेजा जा सकता है।
बंगाल और झारखण्ड के प्रभारी शकील अहमद को भी मीडिया में कांग्रेस के पक्ष को रखने में असफल रहने पर घर बिठाने की तैयारी की जा रही है। एआईसीसी सूत्रों ने साई न्यूज को बताया कि शकील अहमद को प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कमान सौंपकर उन्हें बिहार भेजा जा सकता है। उधर, लाल बत्ती से हटाए गए मुकुल वासनिक को भी उनके गृह प्रदेश महाराष्ट्र में कांग्रेस की कमान सौंपने की तैयारियां हो चुकी हैं।

गर्मागर्म खाने से महरूम हैं माननीय!


गर्मागर्म खाने से महरूम हैं माननीय!

(शरद खरे)

नई दिल्ली (साई)। देश के नीति निर्धारकों की उम्मीदों पर एक बार फिर पानी फिर गया। दरअसल, जैसे ही देश की सबसे बड़ी पंचायत यानी संसद का शीतकालीन सत्र आरंभ हुआ वैसे ही माननीय संसद सदस्यों का गुस्सा उस वक्त सातवें आसमान पर आ गया जब उन्होंने पाया कि संसद के मुख्य भवन की केंटीन की रसाई में अब भी ताला लगा हुआ था। डायनिंग हाल में ठंडे नाश्ते और भोजन से माननीयों का कुंह कसैला होना स्वाभाविक ही था।
शीत सत्र के आरंभ होते ही संसद के सदस्यों को पूरी पूरी उम्मीद थी कि इस बार उन्हें कम से कम गरमा गरम भोजन खाने को मिल सकेगा। उनकी इच्छाओं पर कुठाराघात ही हो गया। पिछले चार माह से गोलाकार भवन वाली संसद के मुख्य भवन की रसाई बंद पड़ी हुई है। इस रसाई के बंद होने का कारण अग्निशमन विभाग द्वारा इसे आरंभ करने की अनुमति ना दिया जाना ही बताया जा रहा है।
सांसद इस बात को समझ नहीं पा रहे हैं कि एक तो मेन बिल्डिंग का किचन बंद क्यों किया गया और दूसरा यह कि इसे बंद किया गया तो चार महीने में दूसरी व्यवस्था क्यों नहीं की गई। फिलहाल खाना लाइब्रेरी में बनता है और वहां से सुबह ही संसद में लाकर रख दिया जाता है। ठंढे खाने को तो स्टाफ किसी तरह हीटरों पर गर्म कर देता है मगर रोटी उसे ठंढी ही सर्व करनी पड़ती है। खाने के अलावा सुबह और शाम के नाश्ते का हाल तो और बुरा है। ठंड में उन्हें ठंढा खाने से बेहतर लोग बिना खाए रहना ज्यादा पसंद करते हैं।
पूरे संसद परिसर में तीन जगह लाइब्रेरी, रिसेप्शन और एनेक्सी में किचन चल रहे हैं। मगर सेशन के दौरान काम की मुख्य जगह मेन भवन होता है। इसलिए सांसदों को वहां से कहीं और जाकर खाने में बहुत टाइम लगता है। सबसे बुरा हाल सिक्युरिटी और दूसरे स्टाफ का है। उन्हें लंच के लिए कई बार आधे घंटे का वक्त भी नहीं मिलता। इतने कम समय में वे संसद से बाहर जाकर नहीं खा सकते। उनके लिए मेन बिल्डिंग के जिस बड़े हॉल में खाने का इंतजाम था उसे बंद कर दिया गया है। इन चीजों से नाराज एक सांसद ने टिप्पणी की कि लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने जितना खर्च अपनी विदेश यात्राओं पर किया है उसके छोटे से हिस्से से ही एक शानदार किचन बन सकता था।

मनोरंजन कर में कमी की पुरजोर मांग!


मनोरंजन कर में कमी की पुरजोर मांग!

(सुनील सोनी)

पणजिम (साई)। दुनिया भर के फिल्म निर्माताओं ने भारत में मनोरंजन कर में कमी करने और कला थिएटरों के लिए अनुकूल वातावरण विकसित करने की मांग की है। गोवा में पणजी में ४३वें अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह के दौरान सिनेमा के उभरते रुझान और चुनौतियों के बारे में फिल्म निर्माताओं ने सिनेमा की विभिन्न विधाओं के प्रदर्शन और वितरण सुविधाओं की कमी पर अफसोस जताया।
मौके पर भारत में मनोरंजन टैक्स अधिक होने पर इफ्की के निर्देशक शंकर मोहन ने सहमति जतायी। सिनेमा राज्य का विषय होने के कारण केन्द्र सरकार इस पर कोई स्वतंत्र भूमिका नहीं ले सकती है ऐसा उन्होने कहा। हांलाकि फिल्मकर्मी पैन लनिल, अंजलि मैनन और शाहजी एन। करूण ने कहा कि फिल्म का आशय अच्छा हो तो फिल्म दर्शक स्वीकार करते हैं। फिल्म विशेषज्ञ ईरा भास्कर ने कहा कि फिल्म कर्मियों को अब वैश्विकरण और तकनीकी आधुनिकता का सामना करना पडेगा।

शिवाजी पार्क बनाम शिवसेना!


शिवाजी पार्क बनाम शिवसेना!

(दीपक अग्रवाल)

मुंबई (साई)। शिवसेना के नेता मनोहर जोशी के एक बयान से सियासी पारा एक बार फिर उफनाने को तैयार है। मुंबई के शिवाजी पार्क में बाल ठाकरे का स्मारक बनाने का मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है। शिवसेना ने रविवार को कहा कि शिवाजी पार्क में बालासाहेब ठाकरे का स्मारक बनकर रहेगा। यदि इसके आड़े कोई कानून आता है, तो भी वह अपना रुख नहीं बदलेगी।
शिवसेना नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर जोशी ने कहा, शिवाजी पार्क में बालासाहेब के स्मारक के निर्माण में कोई कानून आता है तो भी हमें परवाह नहीं है। उन्होंने यह बात कालिदास ऑडिटोरियम में शोकसभा के बाद संवाददाताओं से कही। शिवाजी पार्क में दिवंगत ठाकरे के स्मारक के निर्माण की मांग उठाने वाले जोशी पहले नेता थे जहां शिवसेना प्रमुख रैलियों को संबोधित किया करते थे।
जोशी ने यह बात मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण के उस बयान का उल्लेख करते हुए की जिसमें उन्होंने शिवसेना की स्मारक संबंधी मांग के बारे में कहा था कि राज्य सरकार कानून का उल्लंघन करते हुए कुछ भी नहीं करेगी। चव्हाण ने कहा था, बाल ठाकरे के स्मारक के लिए उन्हें अभी तक कोई प्रस्ताव नहीं मिला है। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं किया जाएगा जिससे कानून का उल्लंघन होता हो।श्
इस बीच महाराष्ट्र कांग्रेस ने रविवार को आरोप लगाया कि जोशी कोहिनूर भूमि स्थित अपनी संपत्ति से ध्यान बंटाने के लिए ठाकरे के स्मारक निर्माण को लेकर इतने अड़े हुए हैं। महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमिटी के प्रवक्ता सचिन सावंत ने एक विज्ञप्ति में कहा, कानून हाथ में लेने की उनकी भाषा निंदनीय है। वह लोकसभाध्यक्ष रह चुके हैं। हमें उनसे ऐसी उम्मीद नहीं थी।

लाजपत ने लूट लिया जनसंपर्क ------------------ 19

अंधा बांटे रेवड़ी चीन्ह चीन्ह कर देय

(रमेश मिश्रा चंचल)

भोपाल (साई)। यह जुमला जनसंपर्क संचालनालय मध्य प्रदेश पर इन दिनों खूब फबता है, सरकार का पैसा हो और उसकी निगरानी करने के लिए ऐसे अधिकारी को नियुक्त कर दिया जाता है जो निष्पक्ष और इमानदार व् चरित्रवान हो, यदि वाही अधिकारी लूटने पर आ जाए तो परिणाम वही होता है जो इस मामले में सामने आया है। संचालनालय बड़े से बड़े प्रकाशन समूह को भी पच्चीस पचास हजार का विज्ञापन देने में आनाकानी करता है पर अधिकारियो की काली करतूत का एक नायाब नमूना देखिए, एक ऐसी वेबसाइट को 15 लाख रूपये का विज्ञापन दे दिया जिसका नामो निशान न के बराबर है। न सिर्फ 15 लाख का विज्ञापन दे दिया बल्कि ४० दिन के अंदर एकमुश्त रकम भी अदा कर दी।
मध्य प्रदेश जनसंपर्क के सैकड़ों करोड़ के बजट की जो बंदरबांट होती है उसमें सरकारी कर्मचारी, अधिकारी और पत्रकार आपस में मिलकर ऐसी मलाई काटते हैं कि देखनेवाला भौचक्का रह जाए। यह मामला जुड़ा है एमपीपोस्ट।कॉम वेबसाइट से। साइटों की रैंकिंग निर्धारित करनेवाली एलेक्सा में अगर उनकी साइट की रैंकिंग देखी जाए तो वह 26 लाख पर नजर आती है।
फिर भी संचालनालय ने न जाने किस नियमावली के तहत विज्ञापन के नाम पर एकमुश्त पंद्रह लाख रूपये का भुगतान कर दिया। मध्य प्रदेश जनसंपर्क के आदेश क्रमांक डी-72316 एमपी पोस्ट के नाम जारी किया गया ,यह 17 अगस्त 2012 को जारी किया गया है जिस पर 15 लाख रूपये की राशि स्वीकृत की गई है। साइट को विज्ञापन देने के एक सप्ताह के अंदर ही 15 लाख रूपये का बिल जनसंपर्क में जमा करा दिया गया एवं 25 अगस्त को बिल जमा कराते ही कार्रवाई करते हुए लगभग ४०-४५ दिन के भीतर जनसंपर्क विभाग ने भुगतान भी कर दिया, 11 अक्टूबर 2012 को उन्हें 14 लाख 70 हजार ई ट्रांसफर के जरिए एकमुश्त अदा कर दिया गया।(सन्दर्भ के लिए अटैच्ड फोटो देखे )
सवाल यह है की एक अदना सी वेबसाइट को आखिर किस आधार पर पंद्रह लाख का विज्ञापन दिया गया, मध्य प्रदेश जनसंपर्क में वेबसाइटों को लेकर कोई नियम कानून नहीं है और अपनों को उपकृत करने के लिए मध्य प्रदेश जनसंपर्क के विज्ञापन वेबसाइटों को भरपूरी मात्रा में बांटे जाते हैं। लेकिन इस मामले में कई गंभीर सवाल खड़े होते हैं। एक तो यह साइट कोई ऐसी विशेषज्ञता वाली वेबसाइट नहीं है और न ही इसकी दर्शकों की संख्या इतनी बड़ी है कि जनसंपर्क उसके जरिए लोगों तक पहुंचने के लिए एक विज्ञापन के ऐवज में 15 लाख रूपये का भुगतान कर दे।
जनसंपर्क विभाग में इस गोरखधंधे के सामने आने आने के बाद सरकार और संबंधित मंत्री की जिम्मेदारी बनती है कि वह जनसंपर्क द्वारा जारी इस विज्ञापन की जांच करवाएं कि आखिर किस आधार पर जनता के 15 लाख रूपये एमपीपोस्ट।कॉम को जारी किये गये।साथ ही चुनाव वर्ष के लिए मुख्यमंत्री द्वारा जनसंपर्क बजट को बढाने के बाद स्वयं मुख्यमंत्री ने भी नहीं सोचा होगा की पार्टी एवं सरकार के पक्ष में भुनाने के लिए बढाए गए बजट की ये अधिकारी इस तरह बंदरबांट कर देंगे।
बहरहाल देखना यह है की इस गोरखधंधे के उजागर होने के बाद मध्य प्रदेश लोकायुक्त , स्वयं मुख्यमंत्री या सम्बंधित जनसंपर्क मंत्री में से अपनी तरफ से संज्ञान लेकर इस आर्थिक अपराधिक कृत्य की जांच करानी चाहिए वह भी इनकी अधिकारियो की नियुक्ति से आज दिनांक तक जारी विज्ञापनों की जांच गंभीरता से करवा कर उनके विरुद्ध विधि सम्मत कार्यवाही तत्काल प्रभाव से करनी चाहिए ताकि इस तरह की घटनाओ की पुनरावृत्ति न हो।
(मीडिया मंच डॉट काम से साभार)

कैग मामले में पलटे सिंह


कैग मामले में पलटे सिंह

(महेश रावलानी)

नई दिल्ली (साई)। टेलिकॉम घोटाले और सीएजी रिपोर्ट पर चल रहे घटनाक्रम ने उस वक्त नया मोड़ ले लिया जब पूर्व सीएजी अधिकारी आर. पी. सिंह ने कहा कि उन्होंने कभी यह दावा नहीं किया था कि पब्लिक अकाउंट कमिटी (पीएसी) के चेयरमैन मुरली मनोहर जोशी ने कैग की रिपोर्ट को प्रभावित किया। 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन से 1.76 लाख करोड़ रुपये के नुकसान के आकलन को गलत बताने वाले सिंह ने कहा कि उनके बयान को एक अखबार ने गलत तरीके से प्रचारित किया।
23 नवंबर को एक अखबार ने सिंह के हवाले से लिखा था कि 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में नुकसान का फॉर्म्युला जोशी ने सुझाया था। इसके बाद ही नुकसान का आकलन बढ़ाकर कैग ने 1.76 लाख करोड़ रुपये कर दिया। सिंह के इस कथित खुलासे के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पहली बार पूरे मामल में हमला बोलते हुए 2जी स्कैम के आंकड़े को बीजेपी की साजिश करार दिया था। परोक्ष रूप से सोनिया ने कैग पर भी निशाना साधा था। सिंह के ताजा बयान से 2जी स्कैम को बीजेपी की साजिश साबित करने में जुटी कांग्रेस और सरकार की मुहिम को थोड़ा झटका लगा है।
सिंह ने रविवार को साफ किया कि उन्होंने रिपोर्ट को लेकर पीएसी चेयरमैन मुरली मनोहर जोशी पर कभी सवाल नहीं खड़े किए। जोशी पर आरोप लगाने से इनकार करते हुए कैग के पूर्व अधिकारी ने कहा, वह ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि उनके पास इस बात का कोई दस्तावेजी सुबूत नहीं है।
पूर्व सीएजी अधिकारी ने अपने ऊपर कांग्रेस का मोहरा होने के आरोप का भी खंडन किया। उन्होंने कहा कि उनका यूपीए के साथ न तो कोई रिश्ता है और न ही नेताओं से कोई बातचीत हुई है। उन्होंने कहा कि मैंने राजनीति से प्रेरित होकर कुछ भी नहीं कहा है।
गौरतलब है कि सिंह ने कैग और पीएसी के बीच मिलीभगत का अप्रत्यक्ष आरोप लगाया था। उन्होंने दावा किया था कि कैग ने नवंबर 2010 में 2जी घोटाले पर संसद को रिपोर्ट सौंपी थी, लेकिन इसके पहले से ही कैग और पीएसी के अधिकारियों के बीच बहुत अच्छे संबंध थे। उन्होंने यह भी कहा था कि कैग के अधिकारी 22 अप्रैल 2011 को मुरली मनोहर जोशी से मिलने उनके घर गए थे। हालांकि, जोश ने इस बारे में कहा था कि बतौर पीएसी चेयरमैन उन्होंने कैग को बुलाया था, उसके अधिकारियों को नहीं।
पिछले साल सितंबर में सीएजी के डीजी (पोस्ट ऐंड टेलिकम्युनिकेशन्स) पद से रिटायर होने वाले सिंह ने कहा था कि उनके वरिष्ठ अधिकारियों ने लिखित आदेश दिया था जिसकी वजह से उन्होंने 2जी स्पेक्ट्रम में 176 लाख करोड़ के अनुमानित घाटे वाली रिपोर्ट में दस्तखत करने पड़े। आरपी सिंह कैग की उस टीम की अगुआई कर रहे थे जिसने 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन का ऑडिट किया था।

रेल्वे देगी चोरी गए पर्स के एवज में साठ हजार!


रेल्वे देगी चोरी गए पर्स के एवज में साठ हजार!

(महेंद्र देशमुख)

नई दिल्ली (साई)। रेल्वे की वातानुकूलित श्रेणी में एक यात्री के चोरी गए पर्स के संबंध में उपभोक्ता फोरम द्वारा महत्वपूर्ण फैसला देकर नजीर पेश की है। एक उपभोक्ता मंच ने यहां भारतीय रेलवे को एक महिला यात्री का पर्स चोरी होने पर 60,000 रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है। 2009 में आंध्र प्रदेश राजधानी एक्सप्रेस ट्रेन से सिकदंराबाद से दिल्ली की यात्रा के दौरान इस महिला का पर्स चोरी हो गया था। पर्स में नकद रुपये और कीमती चीजें थीं।
नई दिल्ली जिला उपभोक्ता विवाद निवारण मंच ने 2004 में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण मंच द्वारा बनाए गए कानून का हवाला देते हुए रेलवे को महिला को हुए नुकसान की भरपाई करने का आदेश दिया। न्यायिक खंडपीठ के प्रमुख सी. के. चतुर्वेदी ने कहा कि सबूतों से पता चलता है कि शिकायतकर्ता महिला राजधानी एक्सप्रेस के एक आरक्षित कंपार्टमेंट में सफर कर रही थीं और ट्रेन में एक कोच अटेंडेंट भी था।
इस तरह की परिस्थिति में यात्री के सामान का गायब होना रेल प्रशासन की लापरवाही को दिखाता है। चतुर्वेदी ने रेलवे को महिला के नकद पैसों और गहनों की चोरी के लिए 40,000 रुपये नकद और प्रताड़ना के लिए 20,000 रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि इस लिहाज से एक कानून बनाया हुआ है कि आरक्षित कंपार्टमेंट में चोरी होने पर रेल प्रशासन इसका जिम्मेदार होगा। इसे देखते हुए हम रेलवे को अपने कामकाज में लापरवाही का दोषी पाते हैं।
14 अगस्त, 2009 को राजधानी ट्रेन में यात्रा कर रही दिल्ली की रहने वाली अर्चना राज का पर्स चोरी होे गया था। पर्स में 10,000 रुपये नकद, 25,000 रुपये की सोने की एक चेन और दूसरी कीमती चीजें थीं। महिला ने रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी।

केजरीवाल बम से परेशान है कांग्रेस


ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)

केजरीवाल बम से परेशान है कांग्रेस

घपले, घोटाले, भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी कांग्रेस के खिलाफ माहौल बनाने में विपक्षी पार्टियां विशेषकर भाजपा पूरी तरह असफल ही रही है। विपक्षी दलों के मौखटे भी अब उतरने लगे हैं। संसद या विधानसभाओं में सत्ताधारी दलों के खिलाफ आवाज उठाने में सियासी पार्टियां पूरी तरह असफल साबित हुई हैं। कहा जाता है कि विपक्ष अब सत्ताधारी दल के पैरोल (मासिक वेतन) पर रहकर उसका छद्म विरोध करता है। इसी के चलते जब समाजसेवी अण्णा हजारे ने आवाज उठाई तब सियासी दल घबरा गए। अण्णा से टूटकर अलग हुए अरविंद केजरीवाल की पार्टी बनाने की घोषणा से सियासी दलों की पेशानी पर पसीने की बूंदे छलकने लगी हैं। केजरीवाल ने आम आदमी की पार्टी का एलान किया है। कांग्रेस को इसमें आपत्ति है, कांग्रेस का कहना है कि आम आदमी का नारा कांग्रेस का है। सवाल यह है कि आम आदमी का नारा कांग्रेस का हो सकता है पर आम आदमी की परवाह कर रही है क्या कांग्रेस?

हल्दिया के चलते छूटी जोशी की रेल!
भूतल परिवहन मंत्री सी.पी.जोशी वैसे तो राहुल गांधी की खासे दुलारे माने जाते हैं। त्रणमूल कांग्रेस के सरकार से बाहर होने के उपरांत रेल मंत्रालय का प्रभार सी.पी.जोशी को दे दिया गया। सी.पी.जोशी के पास भूतल परिवहन मंत्रालय जैसे अहम विभाग का प्रभार भी था। जोशी की रेल कैसे छूटी इस बारे में पतासाजी जारी है। प्रधानमंत्री कार्यालय के सूत्रों ने बताया कि बतौर भूतल परिवहन मंत्री जोशी का कार्यकाल संतोषजनक नहीं है। उपर से रेल मंत्रालय का प्रभार मिलने के उपरांत जोशी ने रेल मंत्रालय का प्रभार अघोषित तौर पर योजना आयोग के उपध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया के एक भरोसेमंद गजेंद्र हल्दिया के हवाले कर दिया था। गजेंद्र हल्दिया प्रोटोकाल को दरकिनार कर रेल्वे की बैठकों में बजाए बोर्ड अध्यक्षों के पास बैठने के सीधे जाकर सी.पी.जोशी के बाजू में बैठ जाया करते थे। फिर क्या था, इस बात की सूचना बरास्ता अहमद पटेल पहुंच गई कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के पास और रेल्वे प्लेटफार्म से जोशी की रेल छूट गई।

बनर्जी पर किसी ने नहीं दिखाई ममता!
त्रणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी भले ही अपनी काबलियत के भरोसे पश्चिम बंगाल की सत्ता हासिल करने की दुहाई दें पर यह वाम दलों की असफलता ज्यादा आंकी जा रही है। सियासी गलियारों में ममता बनर्जी को अपरिपक्व राजनेता के बतौर देखा जा रहा है। सदगी भले ही ममता का सबसे खतरनाक हथियार हो, किन्तु खुदरा क्षेत्र में एफडीआई मामले में ममता बनर्जी के कदमताल से साफ हो गया कि वे वाकई में राजनीतिक तौर पर मेच्योर कतई नहीं हैं। इस मामले में अविश्वास प्रस्ताव गिरने से यह भी साफ हुआ है कि संसदीय कार्य मंत्री कमल नाथ के प्रबंधन कौशल को कोई चुनौति नहीं दे सकता है। कहा जा रहा है कि ममता बनर्जी ने इस मसले में सिर्फ नवीन पटनायक और सीपीआई के गुरूदास गुप्ता से भर बात की थी। ममता ने ना तो जयललिता और ना ही सुषमा स्वराज से इस संबंध में बात की।

मुसलमान नाराज हैं नेताजी से!
कहा जाता है कि मुसलमानों के बल पर उत्तर प्रदेश की सत्ता हासिल की थी मुलायम सिंह यादव ने। अब वही मुसलमान नेताजी से खासे नाराज बताए जा रहे हैं। अखिलेश के मुख्यमंत्री बनते ही उत्तर प्रदेश दंगों से दहल गया। दंगा प्रभावित फैजाबाद में आसिम आजमी को दौरा करने से रोक दिया गया। आजमी ने भी मुलायम को धमकाना आरंभ कर दिया है। आजम खान भी अखिलेश से खासे नारज चल रहे हैं। शही इमाम भी समाजवादी पार्टी के शासन के तौर तरीकों से नाराज हैं। शाही इमाम ने साफ तौर पर कह दिया है कि सूबे के तीस फीसदी मुस्लिम अगर समाजवादी पार्टी की सरकार बनवाने में मदद कर सकते हैं तो वे अगले आम चुनावों में अपना हाथ खींच भी सकते हैं। वहीं, कांग्रेस के आला नेता उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों का समाजवादी पार्टी से हो रहे मोहभंग पर बरीक नजर रखे हुए हैं।

क्रिकेट की नर्सरी पर संकट के बादल!
सुनील गावस्कर और सचिन तेंदुलकर जैसे क्रिकेट जगत के हरनफनमौला जिस जगह से खेलकर महान स्टार बने उस क्रिकेट की नर्सरी पर खतरा मंडराने लगा है। यह शिवाजी पार्क ही क्रिकेट की नर्सरी हुआ करता रहा है। शरद पवार के करीबी सूत्रों का कहना है कि पंवार के दबाव के चलते ही सरकार ने शिवाजी पार्क में बाला साहेब ठाकरे की अंत्येष्ठी की इजाजत दी थी। अब हजारों शिवसैनिक ना केवल रोजना शिवाजी पार्क जाकर वहां ठाकरे को श्रृद्धांजली दे रहे हैं, वरन् उनकी मांग यह भी हो गई है कि शिवाजी पार्क को ठाकरे का स्मारक बना दिया जाए। शरद पंवार अब कह रहे हैं कि ठाकरे के स्मारक के बतौर उनके निज निवास मातोश्री ही उपयुक्त होगा। यह ठाकरे का निजी निवास था, राजनेता कभी भी सरकारी संपत्ति को हड़पने का मौका कभी नहीं चूकते हैं। अब सरकार की पेशानी पर पसीना छलक रहा है कि शिवाजी पार्क के मामले में किया जाए तो क्या?

भाई ने भाई को जाना मेरी जां खूब पहचाना
पुराना गाना है भाई ने भाई को जाना . . .। इसी तर्ज पर एक केंद्रीय मंत्री ने अपने भाई को उपकृत करने में कोई कसर नहीं रख छोडी है। केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र काडर के 1975 बैच के अधिकारी बी.एस.मीणा को बोर्ड ऑफ इंडस्ट्रीज एण्ड फाईनेंशियल रिकंस्ट्री (बीआईएफआर) का सदस्य बना दिया है। मीणा पिछले साल 31 मार्च 2011 को सेवानिवृत हुए थे। अब मीणा 1965 की आयु तक इस पद पर बने रहेंगे। सेवानिवृति के बीस माह बाद मीणा को सदस्य बनाने से सियासी हल्कों में तरह तरह की चर्चाएं आरंभ हो गईं। चर्चाएं आखिर हो भी क्यों ना! दरअसल, बी.एस.मीणा के अपने भाई नमोनारायण मीणा केंद्र सरकार में राज्य मंत्री हैं। नमोनारायण मीणा अगर सिर्फ केंद्र में मंत्री भर होते तो कोई बात नहीं, पर बीआईएफआर सीधे सीधे नमोनारायण मीणा के नियंत्रण में आता है, इसलिए कहा जा रहा है कि भाई ने भाई को जाना, मेरी जां खूब पहचाना . . . .।

हाशिए में ढकेल दी गईं अंबिका!
पूर्व केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी के पुअर परफार्मेंस और मीडिया में कांग्रेस तथा सरकार के खिलाफ हमले ना रोक पाने के चलते अपना पद गंवाने वाली अंबिका सोनी इन दिनों गुमनामी के अंधेरे में ही हैं। अंबिका सोनी की पूछ परख काफी हद तक कम हो चुकी है। अकबर रोड स्थित उनके आवास में आजकल सन्नाटा पसरा हुआ है। सरकार से हटने के उपरांत अंबिका संगठन में शीर्ष पद पाने की जोड़तोड़ में लगीं थीं किन्तु कांग्रेस की हाल ही मे घोषित समितियों ने अंबिका को खासा झटका दिया है। अंबिका को इन समितियों में जगह नहीं मिली है। उन्हें संचार और प्रचार समिति में रखा गया है। अंबिका की मनःस्थिति यह देखकर समझी जा सकती है कि अंबिका को मनीष तिवारी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, दीपेंद्र हुड्डा जैसे अपेक्षाकृत कनिष्ठों को रिपोर्ट करना होगा। कल तक कांग्रेस अध्यक्ष की आंखों का नूर बनीं अंबिका सोनी अब कहां हैं किसी को नहीं पता।

फिसलती ही जा रही नेताओं की जुबान
राजनेता पता नहीं क्यों अपनी जुबान पर काबू रखने में पूरी तरह से असफल ही साबित हो रहे हैं। कभी कोई कुछ कहता है तो कभी कोई कुछ। भाजपाध्यक्ष नितिन गड़करी द्वारा स्वामी विवेकानंद के बारे में विवादित बयान के बाद अब मध्य प्रदेश के कबीना मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के बयान चर्चाओं में हैं। विजयवर्गीय ने भगवान राम की तुलना रावण से तो कृष्ण की तुलना कंस से कर मारी। मध्य प्रदेश भाजपा के निजाम प्रभात झा ने हृदय प्रदेश के निजाम शिवराज सिंह चौहान की तुलना देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से करते हुए कह दिया कि जवाहर लाल चाचा नेहरूतो शिवराज सिंह मामाके रूप में पहचाने जाते हैं। कांग्रेस और भाजपा दोनों एक दूसरे की विरोधी पार्टी हैं किन्तु फिर भी नेताओं की तुलना कर प्रभात झा भी चर्चाओं में आ गए हैं।

फिर वही दिल लाया हूं!
राहुल गांधी को कांग्रेस ने चुनाव समन्वय समिति की जवाबदेही सौंप दी हो पर कार्यकर्ताओं में उस्ताह और जोश का संचार अब भी नहीं हो पाया है। इसका कारण राहुल गांधी के इर्द गिर्द एक बार फिर से सोनिया गांधी के टेस्टेड किन्तु उबाऊ चेहरों का होना है। कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ के सूत्रों ने बताया कि राहुल गांधी की इस नई ताजपोशी के बाद के समीकरणों से सोनिया गांधी बहुत ज्यादा उत्साहित नजर नहीं आ रही हैं। सोनिया गांधी को लगने लगा है कि राहुल गांधी की रीलांचिंग भी फुस्स हो गई है। सूत्रों ने कहा कि सोनिया गांधी को बताया गया है कि दरअसल, राहुल के लिए बड़े रोल की मांग कर रहे पार्टी नेता और कार्यकर्ता उन्हें ऐसी भूमिका में देखना चाहते हैं जहां वे नेताओं, कार्यकर्ताओं और आम लोगों से मिलने के लिए उपलब्ध हों। सोनिया इस बारे में विमर्श कर रहीं हैं कि राहुल को लांच करने में उनसे कहीं गल्ति तो नहीं हुई क्योंकि वही पुराने थकेले नेताओं से घिरे राहुल क्या कार्यकर्ताओं के पास जाकर कहेंगे फिर वही दिल लाया हूं।

आरएसएस के रंग में रंगता जनसंपर्क
मध्यप्रदेश जनसंपर्क पूरी तरह से आरएसएस के रंग में रंगता जा रहा ह।ै न केवल उसके रंग रूप में भगवा भारी हो चला है बल्कि अब अंदरखाने में विज्ञापन के मामले में भी उन्हीं वेबसाइटों को तरजीह दी जा रही है जिनके ऊपर भगवा रंग चढ़ा है। अब विज्ञापन के लिए बाकायदा आरएसएस की सहमति वाला सर्टिफिकेट लाना जरूरी हो गया है। जनसंपर्क विभाग का काम समाचार और विज्ञापन जारी करना है किन्तु अंधा बांटे रेवडी चीन्ह चीन्ह कर देयकी तर्ज पर जनसंपर्क द्वारा जनसंपर्क मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा की सिफारिशों को दरकिनार कर मनमर्जी के आधार पर एक वेब साईट को एक ही बार में 15 लाख रूपए का विज्ञापन जारी कर दिया। हो हल्ला हुआ पर समरथ को नहीं दोष गोसाईंकी तर्ज पर मामला ठंडे बस्ते के हवाले कर दिया गया। छोटे मझौले अखबारों के एक गुट ने आव्हान किया है कि इस सब गफलतों के विरोध में विधानसभा सत्र के चलते जनसंपर्क मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा की अर्थी निकाली जाएगी।

नामलेवा नहीं बचा पंकज पचौरी का!
प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह के मीडिया एडवाईजर पंकज पचौरी लंबे समय से गुमनामी में जीवन बसर कर रहे हैं। हरीश खरे के उपरांत हाई प्रोफाईल मीडिया पर्सन पंकज पचौरी को प्रधानमंत्री ने अपनी पीआर बनाने के लिए चुना। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के आंखों के तारे पुलक चटर्जी ने जैसे ही प्रधानमंत्री कार्यालय में कदम रखा वैसे ही पीएमओ में सत्ता की धुरी सिमटकर पुलक चटर्जी के इर्द गिर्द ही आ गई। सूत्रों ने आगे कहा कि एक समय था जब संजय बारू और हरीश खरे रोजाना ही मनमोहन सिंह से अनेक बार मिलकर उन्हें पल पल की खबरों से आवगत कराते थे, पर अब समय बदल गया है। पीएमओ के सूत्रों ने कहा कि कई महीनों से डॉ.मनमोहन सिंह और पंकज पचौरी के बीच संवादहीनता की स्थिति बन चुकी है। कहा जा रहा है कि पंकज पचौरी की पीएमओ में उपस्थिति महज औपचारिक ही बची है। मनमोहन सिंह भी अब पंकज पचौरी की याद नहीं कर रहे हैं।

पुच्छल तारा
बाबा रामदेव, अण्णा हजारे और अरविंद केजरीवाल का नाम आते ही सियासी दलों विशेषकर कांग्रेस के नेताओं के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इन दिनों अरविंद केजरीवाल ने धूम मचा रखी है। केजरीवाल ने नई पार्टी का गठन किया तो नेताओं को मानों सांप सूंघ गया। बालाघाट से शकुंतला गुप्ता ने एसएमएस भेजा है। शकुंतला लिखती हैं कि कांग्रेस की केंद्र सरकार के पास सीबीआई का ब्रम्हास्त्र है। सीबीआई के आला अधिकारी इन दिनों खासे परेशान हैं। कोई नेता केजरीवाल की तो कोई बाबा की तो कोई अण्णा के कदमों की सूचनाएं देने के लिए सीबीआई को पाबंद कर रहा है। वहीं देश पर आतंकी साया मंडरा ही रहा है। इन परिस्थितियों में  सीबीआई अफसर मजबूरी में यही कह रहे होंगे कि पहले तय कर लो, सूचना अण्णा, बाबा या केजरीवाल की चाहिए या फिर आतंकवादियों के बारे में सूचनाएं एकत्र की जाएं।