मंगलवार, 29 मार्च 2011

सरकार ने मलेरिया उन्नमूलन को प्राथमिकता सूची से हटाया

कैसे बचा जाएगा इस जानलेवा राक्षस से


15 सालों में एड्स जितनी जानें लेता है, उतनों को मलेरिया एक साल में निगल जाता है

हर साल 25 लाख से ज्यादा जानें जाती हैं इस भयावह बीमारी से

अज्ञानता है मच्छर पनपने का सबसे बड़ा कारण

(लिमटी खरे)

कम ही लोग जानते होंगे कि जब भारत को आजादी मिली थी अर्थात 1947 में मलेरिया जैसी घातक जानलेवा बीमारी ने देश में आठ लाख से ज्यादा लोगों की इहलीला समाप्त कर दी थी। तब से 2006 तक लगभग आठ लाख 12 हजार लोग इसकी चपेट में आकर जान गंवा चुके हैं। चाहे प्रदेश हो, महानगर हो, संभाग हो, जिला हो या छोटा सा कस्बा लोग आज भी इसके आगोश में हैं।
दरअसल मादा एनाफिलीस मच्छर जब इंसान के काटती है, तब वह एक विशेष तरह का वायरस मनुष्य के अंदर प्रविष्ठ करा देती है। यही वायरस मलेरिया को जन्म देता है। इस मादा मच्छर के पास इंसानी त्वचा को भेदने के लिए एक विशेष तरह का हथियार होता है। शोध बताता है कि इसके पास पतले डंक के अंत में सुईनुमा जुड़वा अस्त्र होता है।
यह मादा इंसान के शरीर में इसे प्रविष्ठ कराकर रक्त वाहनियों की तलाश करती है। नहीं मिलने पर यह क्रम जारी रखती है। नस मिलने पर यह मादा इंसान का कुछ रक्त चूसलेती है, और फिर डंक को बाहर निकालने के पहले इसमें एक विशेष तरह का एंजाईम उसमें छोड़ देती है। शोधकर्ताओं की मानें तो यह मादा मच्छर दो दिन में ही 30 से 150 तक अंडे देती है। इन अंडों को सेने के लिए उसे मानव रक्त की आवश्यक्ता होती है।
मलेरिया का स्वरूप विश्व भर में इतना विकराल हो गया है कि इसे दुनिया की तीसरे नंबर की सबसे बड़ी महामारी का दर्जा मिल गया है। कहा जाता है कि एड्स से 15 सालों में जितनी जानें जाती हैं, उतनी जान मलेरिया रोग के कारण महज एक साल में ही चली जाती हैं। मलेरिया का सबसे अधिक प्रकोप पांच साल से कम के बच्चों पर होता है। औसतन हर साल दुनिया भर में 25 लाख से अधिक लोग इस भयानक बीमारी से अपने प्राण गंवा देते हैं।
विश्व हेल्थ आर्गनाईजेशन (डब्लूएचओ) का प्रतिवेदन साफ तौर पर बताता है कि मलेरिया के मरीजों की वृद्धि की दर हर साल 16 फीसदी आंकी गई है। यह तथ्य निश्चित रूप से चिंता का विषय कहा जा सकता है। मलेरिया कितनी गंभीर बीमारी है यह इस बात से ही साफ हो जाता है कि हर साल विश्व भर में 2 अरब डालर से ज्यादा इस पर खर्च कर दिया जाता है। इतना ही नहीं मलेरिया को लेकर होने वाले शोधों पर हर साल छः सौ लाख डालर खर्च किया जाता है।
भारत सरकार इस रोग को लेकर कितनी संजीदा है, यह इस बात से साफ हो जाता है कि देश के स्वास्थ्य बजट का 25 फीसदी हिस्सा मलेरिया की रोकथाम के लिए सुरक्षित रखा जाता है। भारत सरकार के स्वास्थ्य महकमे द्वारा नब्बे के दशक के उत्तरार्ध तक राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम को प्रथक से चलाया जाता था। इसके तहत देश के हर जिले मंे मलेरिया नियंत्रण की एक प्रथक यूनिट हुआ करती थी।
शनैः शनैः मलेरिया की इकाईयों में कार्यरत सरकारी कर्मियों को शिक्षकों की तरह ही जनसंख्या, पल्स पोलियो आदि के काम में बेगार के तौर पर उपयोग किया जाने लगा। आज हर जिले में जिला मलेरिया अधिकारी जैसा महत्वपूर्ण पद किसी किसी चिकित्सक या अन्य अधिकारी को बतौर प्रभार दिया गया है। अपने मूल काम से इतर जब इनको इस तरह की जिम्मेवारी दी जाती है तो अधिकारी भी इसे बेगार समझकर ही काम करते हैं।
इसके चलते देश भर में एक बार फिर मलेरिया बुरी तरह पैर पसारने लगा है। सरकार द्वारा चलाए जा रहे समग्र स्वच्छता अभियान में भी भ्रष्टाचार का दीमक पूरी तरह लग चुका है। मलेरिया फैलने की मुख्य वजह अज्ञानता मानी जा सकती है। अज्ञानता के चलते साफ सफाई रख पाने तथा छोटे छोटे पानी के स्त्रोतों के कारण मच्छरों को प्रजनन का उपजाउ माहौल मिल जाता है।
पिछले दो दशकों से ज्यादा समय हो गया याद नहीं पड़ता इस दौर में मच्छरों को मारने के लिए डीडीटी या बीसीजी पावडर का छिड़काव किया गया हो। इतना ही नहीं नगर निगम या पालिकाओं की मच्छर भगाने वाली फागिंग मशीन तेल और दवा पीने का ही काम करती है, इसके छिड़काव हो रहा हो एसे प्रमाण कहीं भी नहीं मिलते। मलेरिया पीड़ितों की जांच के लिए रक्त पट्टिकाएं बनाने का काम भी इतिहास की ही बात हो चुका है।
अब तक मलेरिया के लिए टीकाकरण की कोई वेक्सीन इजाद नहीं की जा सकी है। वैसे हाल ही में हुए शोध ने वैज्ञानिकों को खासा उत्साहित कर रखा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि चिंपाजी के वायरस मलेरिया वेक्सीन की खोज में अहम भूमिका निभाएगा।  आक्सफोर्ड विश्विद्यालय के वैज्ञानिक चिंप वायरस की खोज मंे तेजी से जुटे हैं, जिससे मलेरिया की वेक्सीन इजाद की जा सकेगी।
इन वैज्ञानिकों की माने तो आने वाले पांच सालों में दुनिया में मलेरिया से निपटने की वेक्सीन हमारे हाथ होगी। वैज्ञानिकों का दल चिंपाजी के एक खास तरह के वायरस जिसे अडेनोवायरस का नाम दिया गया है, के साथ मलेरिया जीन को जोड़कर पैरासाईट (एक खास तरह का वायरस जो मलेरिया का प्रमुख कारक है) को नष्ट करने का प्रयास कर रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर यह शोध कामयाब रहा तो यह पैरासाईट एनाफिलीस के मानव शरीर में डंक प्रवेश के समय ही मर जाएगा।
वैसे पांच सालों बाद भी अगर मलेरिया का कोई टीका इजाद करने में वैज्ञानिक कामयाब रहे तो निश्चित रूप से यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि होगी,, क्योंकि हर साल मलेरिया जैसी घातक बीमारी से लड़ने के लिए समूचे विश्व में अरबों खरबों रूपए व्यय किए जाते हैं। किन्तु भारत सरकार को चाहिए कि वह अपने स्वास्थ्य बजट का 25 फीसदी हिस्सा इस रोग से निपटने मंे खर्च अवश्य कर रही है, मगर इस राशि का कितना दुरूपयोग हो रहा है, इस पर भी बारीक नज़र रखे। सरकार को चाहिए कि मलेरिया महकमे से पगार पा रहे सरकारी मुलाजिमों को उनके मूल काम को करने के लिए स्वतंत्र करे, साथ ही इस विभाग के सेवानिवृत अनुभवी अधिकारियों कर्मचारियों की सेवाएं भी इस महामारी से निपटने के लिए अवश्य ले।