गुरुवार, 21 नवंबर 2013

शराब व्यवसाई का मस्ज़िद का सरपरस्त बनना निंदनीय: रानू

शराब व्यवसाई का मस्ज़िद का सरपरस्त बनना निंदनीय: रानू

(अय्यूब कुरैशी)

सिवनी (साई)। शराब कारोबार से जुड़े दिनेश राय उर्फ मुनमुन का एक मस्ज़िद का सरपरस्त बनना या सरपरस्त बताना निंदनीय है। या तो शराब कारोबारी दिनेश राय शराब का कारोबार बंद करें या फिर मस्ज़िद के सरपरस्त पद से अपने आप को विलग करें। उक्ताशय की बात नगर कांग्रेस मंत्री शाहिद खान रानूद्वारा जारी विज्ञप्ति में कही गई है।
नगर कांग्रेस मंत्री शाहिद खान रानू के हस्ताक्षरों से जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि लखनादौन नगर पंचायत के पूर्व अध्यक्ष दिनेश राय उर्फ मुनमुन को लखनादौन की एक मस्ज़िद का सरपरस्त बनाना या सार्वजनिक जगहों पर सरपरस्त बताना निंदनीय है, क्योंकि धार्मिक स्थलों का और खास तौर पर मस्ज़िदों का किसी ओहदे में ऐसे व्यक्ति को रहने का कोई अधिकार नहीं है जो शराब जैसे व्यवसाय से जुड़ा हो।
नगर कांग्रेस मंत्री शाहिद खान रानूने आगे कहा है कि दिनेश राय उर्फ मुनमुन के अंदर अगर जरा सी भी नैतिकता है तो यह स्पष्ट कर दें कि वह किसी मस्ज़िद के सरपरस्त नहीं हैं या यह स्पष्ट कर दें कि शराब व्यवसाय से उनका या उनके परिवार का कोई सरोकार नहीं है।
शाहिद खान रानूने अपनी विज्ञप्ति में कहा है कि महज राजनीति के लिए धार्मिक संस्थाओं से जुड़ना निंदनीय कृत्य है, क्योंकि कोई धर्म समाज में नशा जैसी बीमारी फैलाने और घरों को तबाह करने वालों को सरपरस्त बनाने की इजाजत नहीं देता। इसलिए समय रहते दिनेश राय उर्फ मुनमुन मस्ज़िद के सरपरस्त पद से हट जाएं या शराब का व्यवसाय बंद कर दें ताकि उन पर कोई उंगली न उठा सके।

गौरतलब है कि बीते दिनों दिनेश राय के समर्थकों के हवाले से मीडिया में यह बात उछली थी कि दिनेश राय उर्फ मुनमुन शराब का कारोबार नहीं करते हैं, पर दिनेश राय उर्फ मुनमुन द्वारा अपने नामांकन के साथ चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार सोशल मीडिया को जो मेल आईडी दी है उस आईडी में दिनेश राय को म्युनिस्पिल काउंसिल लखनादौन का अध्यक्ष और लिकर कांट्रेक्टर बताया गया है।

दुर्घटनाएं और ट्रामा यूनिट

दुर्घटनाएं और ट्रामा यूनिट

(शरद खरे)

सिवनी में पिछले दिनों एक के बाद एक दुर्घटनाएं घटी हैं। इनमें कुछ लोगों की जान भी गई है। सिवनी में फोरलेन है और फोरलेन पर वाहनों की गति पर नियंत्रण रखना संभव नहीं प्रतीत होता है। सिवनी जिले के लिए राहत की बात है कि अनेकानेक षणयंत्रकारियों जिनमें सिवनी जिले के जयचंदभी शामिल थे और हैं, के रहते हुए भी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल की स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे का मुंह आज भी सिवनी से नहीं मोड़ा गया है। इस सड़क को बंद कराने में न जाने कितने षणयंत्रकारियों द्वारा अपने अपने स्तर पर दांव पेंच चलाए गए, सिवनी के लोगों को आक्रोशित आवेशित कर सड़कों पर उतारा गया, कांग्रेस की शह पर भाजपा तो भाजपा की शह पर कांग्रेस को तबियत से कोसा गया, इस षणयंत्र में ठेकेदारों से सांठगांठ कर लाखों रूपए वसूलने की चर्चाएं भी सिवनी की फिजां में हैं, अपने अपने निहित स्वार्थ और व्यवसायों को भी लोगों की भावनाओं की भट्टी पर चढ़ाकर पकाया गया, और न जाने क्या क्या किया गया इस षणयंत्र के तहत।
क्या हमारा घर परिवार नहीं है, जो हम चौबीसों घंटे आंदोलन करें और बाकी लोग घर में बैठे रहें‘‘, ‘हमें क्या लेना देना है यार‘, ‘भाजपा को क्यों नहीं कोसते, क्या लोगों को कांग्रेस ही चोर नजर आती है‘, कल तक तो बड़ी बड़ी बातें करते थे, आज खामोश क्यों हो?‘, ‘भाजपा के विधायकों को क्यों नहीं घेरते?‘, ‘जब एक बार तय हो गया था कि किसी नेता के पास नहीं जाना है तो फिर राहुल गांधी की चिरौरी करने क्यों गए?‘ आदि जैसे जुमले आज भी सिवनी की फिजां में तैर रहे हैं। 2008 के दिसंबर में बुने गए षणयंत्र के ताने बाने का निष्कर्ष आज भी जर्जर फोरलेन के रूप में सिवनी वासियों के सामने है।
एनएचएआई के नियम कायदों के अनुसार फोरलेन पर वाहनों की गति अन्य सड़कों की तुलना में काफी अधिक ही हुआ करती है। दिल्ली से चंडीगढ़ हाईवे हो या दिल्ली जयपुर, इन हाईवे पर ओव्हर लोडेड ट्रक भी हांफते हुए नहीं बल्कि हिरण की तरह कुलांचे भरते नजर आते हैं। कमोबेश यही आलम स्वर्णिम चतुर्भुज और उत्तर दक्षिण तथा पूर्व पश्चिम गलियारे में जहां जहां सड़क का निर्माण हो चुका है, वहां है। सिवनी जिले में भी लगभग साठ किलोमीटर से ज्यादा सड़क का निर्माण फोरलेन के रूप में हो चुका है। इस सड़क पर वाहन तेज रफ्तार से चल रहे हैं। इन वाहनों की अंधी रफ्तार के कारण भागने से दुर्घटनाओं में भी इजाफा हुआ है। सिवनी जिले में एक के बाद एक सड़क दुर्घटनाओं से लगने लगा है कि एनएचएआई का चतुष्गामी हाईवे लोगों के लिए काल बनता जा रहा है। अगर सिवनी जिले की सीमा में दुर्घटनाओं की तादाद ज्यादा है तो निश्चित तौर पर यह चिंता का विषय इसलिए है क्योंकि इससे लोगों पर खतरा मण्डराने लगा है।
अगर यह सत्य है तो निश्चित तौर पर सिवनी में सड़क के निर्माण में ही कहीं न कहीं खामी होने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है। हो सकता है लोगों ने अपनी सहूलियत के हिसाब से फोरलेन के डिवाईडर तोड़ लिए हों (इसका एक नायाब उदाहरण, लखनादौन में बार एॅसोसिएशन के अध्यक्ष दिनेश राय के स्वामित्व वाले राय पेट्रोलियम के सामने का टूटा डिवाईडर है, जिसे दुरूस्त कराने या उस पर किसी पर जुर्माना लगाने का साहस भी एनएचएआई नहीं जुटा पा रही है, हो सकता है एनएचएआई भी इसे चुनावी मुद्दा बनने की राह ही देख रहा हो)।
सिवनी में एनएचएआई ने कुछ मार्ग के कुछ हिस्से को बनाकर आरंभ कर दिया है और इसका टोल भी वसूला जाने लगा है। एनएचएआई के मापदण्डों के हिसाब से सिवनी जिले में जगह जगह सड़क किनारे दुर्घटना के उपरांत प्राथमिकोपचार के लिए स्वास्थ्य केंद्र, एंबूलेंस, हाईवे पेट्रोल आदि की व्यवस्था की जानी चाहिए। विडम्बना ही कही जाएगी कि एनएचएआई के हाईवे पेट्रोल लिखे वाहन में टोल प्लाजा के कर्मचारियों के लिए खाना, किराना और दूध ढुलते बारापत्थर से रोजाना देखा जा सकता है।

रही बात गंभीर दुर्घटना में घायलों को तत्काल चिकित्सा मुहैया कराने की, तो इसके लिए सड़क निर्माण के ठेकेदार को बाकायदा ट्रामा यूनिट की स्थापना फोरलेन पर ही की जानी चाहिए थी। यह सिवनी का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि यहां के नपुंसक नेतृत्व के कारण सिवनी में सड़क निर्माण के ठेकेदार मलाई खा रहे हैं और दुर्घटनाओं में घायल लोग दम तोड़ रहे हैं। बताते हैं कि ट्रामा यूनिट की स्थापना जिला चिकित्सालय के ब्हाय रोगी कक्ष के पीछे अंदर घुमावदार रास्ते के बाद की जा रही है। एनएचएआई के अधिकारियों के साथ ही साथ चिकित्सा विशेषज्ञों को इस बात का भान बेहतर तरीके से होगा के दुर्घटना में घायल के लिए एक एक सेकंड का समय कीमती होता है। हर शहर में जहां दुर्घटनाओं की संभावनाएं ज्यादा होती हैं वहां ट्रामा सेंटर की स्थापना मुख्य मार्ग पर इस तरह से की जाती है ताकि दुर्घटना आदि में घायल मरीज को बिना किसी विध्न के तत्काल चिकित्सकीय मदद उपलब्ध हो सके।

रविवार, 17 नवंबर 2013

सिवनी विधानसभा में भाजपा ने खोया आपा!

सिवनी विधानसभा में भाजपा ने खोया आपा!

नरेश दिवाकर की सभा में तलवार बाजी के बाद अब निर्दलीय के समर्थकों की हुई पिटाई

(अय्यूब कुरैशी)

सिवनी (साई)। विधानसभा चुनाव में मतदान की तिथि जैसे जैसे करीब आती जा रही है, वैसे वैसे अब करो या मरो की स्थिति सभी के सामने निर्मित होती जा रही है। गत दिवस पुसेरा में भाजपा के प्रत्याशी नरेश दिवाकर के जनसंपर्क के दौरान हुई तलवार बाजी के बाद अब आज सुबह बस स्टैंड पर एक कार्यक्रम के दौरान भाजपा के नेताओं ने निर्दलीय प्रत्याशी के समर्थकों की धुनाई कर दी।
प्राप्त जानकारी के अनुसार एक नेशनल चैनल के द्वारा आज निजी बस स्टैंड पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम में कांग्रेस के राजकुमार खुराना, भाजपा के नरेश दिवाकर एवं निर्दलीय दिनेश राय उपस्थित थे। कार्यक्रम के दौरान उत्साहित कार्यकर्ताओं द्वारा अपने अपने नेताओं के समर्थन में नरेबाजी की जा रही थी।
बताया जाता है कि इस नारेबाजी से क्रुद्ध होकर भाजपा के कुछ नेताओं द्वारा निर्दलीय प्रत्याशी के समर्थन में नारेबाजी कर रहे कार्यकर्ताओं के साथ तू तू मैं मैं आरंभ कर दी गई। बात धीरे धीरे बढ़ी तो भाजपा के नेताओं ने छोटी पुलिस लाईन निवासी अर्पित दुबे की मौके पर ही तबियत से धुनाई कर दी।
प्रत्यक्ष दर्शियों के अनुसार भाजपा नेताओं के चेहरे पर बौखलाहट साफ दिखाई दे रही थी। इस बौखलाहट के चलते भाजपा के नेताओं द्वारा निर्दलीय के समर्थक को बेतहाशा पीटा गया।
गौरतलब है कि भाजपा के सिवनी विधानसभा क्षेत्र के प्रत्याशी नरेश दिवाकर की उपस्थिति में मारपीट की यह दूसरी घटना है। इसके पूर्व पुसेरा ग्राम में उनके जनसंपर्क के दौरान ही भाजपा के कार्यकर्ताओं ने मसल पॉवर का प्रदर्शन कर वहां तलवार बाजी कर दी थी, जिसमें कुछ लोग घायल हो गए थे।
आज घटी इस घटना में उभय पक्षों ने कोतवाली सिवनी में जाकर आवेदन देकर एक दूसरे के विरूद्ध कार्यवाही के लिए पुलिस से आग्रह किया है। भाजपा के नेताओं या कार्यकर्ताओं द्वारा इस तरह आपा खोने की प्रतिक्रिया बहुत अच्छी नहीं कही जा रही है।

पप्पू सोनी ने अर्पित दुबे और अर्पित दुबे द्वारा पप्पू सोनी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाई है। पुलिस ने मुलाहजा करवाया है जिसमें चोटें सामान्य हैं। अतः पुलिस इंवेस्टीगेशन का मामला नहीं बनता है। उभय पक्ष चाहें तो कोर्ट में वाद पेश कर सकते हैं। इस मामले में कोर्ट के आदेश से ही इंवेस्टीगेशन हो सकता है।
अमित दाणी,

नगर निरीक्षक, कोतवाली सिवनी

बागी निष्कासित पर धर्मेंद्र, संजय पर कांग्रेस मौन!

बागी निष्कासित पर धर्मेंद्र, संजय पर कांग्रेस मौन!

(अखिलेश दुबे)

सिवनी (साई)। देर से ही सही जिला कांग्रेस कमेटी द्वारा विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के प्रत्याशी के खिलाफ बगावत करने वालों को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निष्कासित कर दिया है। नाम वापसी 11 नवंबर को थी, पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ कमर कसने वाले कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को निष्कासित करने में संगठन को शायद पसीना आ रहा था, संभवतः यही कारण है कि पांच दिन बाद यह निर्णय लिया गया है।
पार्टी प्रवक्ता ओम प्रकाश तिवारी के हस्ताक्षरों से जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि प्रदेश कां्रगेस के निर्देशानुसार जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हीरा आसवानी ने जिले की चारों विधानसभा क्षेत्रों के कांग्रेस के प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले कांग्रेस कार्यकर्ताओं को प्राथमिक सदस्यता से तत्काल निष्कासित कर दिया है।
कांग्रेस द्वारा बरघाट विधानसभा से सीता मर्सकोले, सिवनी विधानसभा से आशा यशपाल भलावी, केवलारी विधानसभा से सतीश नाग, शक्ति सिंह, लखनादौन विधानसभा से नेपाल सिंह, राजेश्वरी उईके के नाम शामिल हैं। इसकी सूचना प्रदेश कांग्रेस कमेटी को भेज दी गई है।

वहीं, दूसरी ओर सिवनी में 14 नवंबर को राजग के उप प्रधानमंत्री एल.के.आडवाणी की जनसभा में भाजपा की सदस्यता लेने वाले जिला कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष धर्मेंद सिंह ठाकुर तथा कमल नाथ प्रशंसक फोरम के संजय चौधरी के बारे में कांग्रेस ने इन पंक्तियों के लिखे जाने तक निष्काशन जैसा कोई कदम नहीं उठाया है, जिसके बारे में तरह तरह की चर्चाएं सिवनी की सियासी फिजां में तैर रहीं हैं।

कांग्रेस भाजपा ने सदा ही छला है केवलारी के निवासियों को!

कौन समझेगा सिवनी की प्रसव वेदना. . .4

कांग्रेस भाजपा ने सदा ही छला है केवलारी के निवासियों को!

विमला वर्मा, नेहा सिंह, हरवंश सिंह जैसे कद्दावरों ने किया प्रतिनिधित्व, सालों से जान हथेली पर लेकर चल रहे ग्रामीण

(महेश रावलानी/पीयूष भार्गव)

सिवनी (साई)। भारत गणराज्य को आज़ाद हुए साढ़े छः दशक होने को हैं। सरकारें चाहे कांग्रेस की रही हों या भाजपा की, या किसी भी दल की, सभी ने विधानसभा क्षेत्र केवलारी में छलावा ही किया है। आज भी यहां के अनेक गांवों के वाशिंदे सड़क के अभाव में बारिश के माहों में रेल्वे की पटरी पर से ही आने जाने को मजबूर हैं। घर में चाहे कोई बीमार हो, बच्चों को स्कूल जाना हो या फसल को बेचने बाजार जाना हो, सभी रेल्वे की पटरी वाले पुल पर से जाने को मजबूर हैं। रूह तो तब कांप उठती है जब इसी बीच अगर सामने से रेलगाड़ी आ जाए।
देखा जाए तो रेल्वे की पटरी पर चलना गैर कानूनी है, पर मजबूर ग्रामीण क्या करें? उन्हें तो रोजमर्रा के काम निपटाने ही हैं। सुश्री विमला वर्मा और नेहा सिंह के कार्यकाल में आधुनिक भारत ने गति पकड़ ली थी, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है, किन्तु मीडिया में विकास पुरूष होने का दावा करने वाले शलाका पुरूष हरवंश सिंह ठाकुर ने चार बार यहां परचम लहराया और फिर भी सड़क या पुल का न बन पाना अपने आप में आश्चर्य जनक ही माना जा सकता है।
अगर आप केवलारी विधानसभा के कुछ गांवों की सैर करें तो उन रास्ते पर, जहां हर कदम पर मौत अपने पंख फैलाए खड़ी है। इस इंतजार में कि कब चलने वाले के कदम डगमगाएं और कब वो उसे अपने आगोश में समेट ले। लोग दावा करते हैं कि इस रास्ते पर चलने की हिम्मत करना तो दूर, इसे देख कर ही आपकी रूह कांप जाएगी, लेकिन फिर भी लोग चलने को मजबूर हैं। ये जानते हुए भी कि इस रास्ते पर उठने वाला हर क़दम मौत का कदम है।
सैकड़ों फीट की ऊंचाई पर रेल की पटरियों के बीच मौत का खेल जारी है। हर क़दम के साथ दिल की धड़कन घटती-बढ़ती है। हर गुज़रती ट्रेन के साथ ज़िंदगी की रेस जारी है। कोई साइकिल लिए, कोई खाली हाथ, तो कोई अपने बस्ते के साथ इस सफर पर है।
मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में केवलारी विधानसभा के कंडीपार गांव के लोगों की यही नियती है, यही तक़दीर है। बारिश का मौसम शुरू होते ही इस गांव को पास के कस्बे से जोड़ने वाली इकलौती कच्ची सड़क कीचड़ में कुछ ऐसे गुम हो जाती है कि क्या गाड़ी और क्या पैदल, इस सड़क से गुज़रना ही नामुमकिन हो जाता है। और बस इसी वजह से हर साल कंडीपार के लोग इसी तरह जान हथेली पर लेकर मौत का ये पुल पार करते हैं।
कंडीपार के वाशिंदों को यहां एक नहीं, बल्कि रोज़ाना तीन-तीन ऐसे मौत के पुलों से होकर गुज़रना होता है। इस इम्तेहान में वो पास हो गए तो ठीक, लेकिन फेल हुए तो सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही नतीजा और वो है मौत। वैसे इस गांव के तमाम लोग पुलों के इम्तेहान को लेकर इतने खुशकिस्मत भी नहीं हैं। कुछ ऐसे भी हैं, जो पुल के ऊपर से निकले तो थे मंज़िल की तलाश में, लेकिन पीछे से आती ट्रेन ने उन्हें कहीं और पहुंचा दिया।
मौत का ये रास्ता आखिर खत्म कहां होता है? ये रास्ता जहां ख़त्म होता है वहां पहुंच कर डर ख़त्म नहीं होता बल्कि और बढ़ जाता है, क्योंकि इस रास्ते के ख़ात्मे के साथ ही शुरू हो जाता है मौत का इससे भी ख़तरनाक खेल। हादसे का शिकार नौजवान गोविंद सूर्या ने कहा, ‘‘मैं पुल से गुज़र रहा था। ट्रेन आ गई। हड़बड़ाहट में नीचे गिर गया। रीढ़ की हड्डी टूट गई।‘‘
वहीं, दूसरी ओर कंडीपार की निवासी शीलावती का कहना है कि साहब, धड़-धड़ होवत है, जब तक बच्चा नहीं आवत। कंडीपार की निवासी स्कूल में पढ़ने वाली श्रद्धा इनवाती के अनुसार, ट्रेन आती है, तो दौड़ कर निकल जाती हूं।

मुश्किल एक, दर्द अलग-अलग
ये दर्द है उस नौजवान का जो ज़िंदगी और मौत की रेस में अपनी बाज़ी हार गया। खुशकिस्मती से ज़िंदगी तो बच गई, लेकिन ज़िंदगी जीने लायक भी नहीं रही। एक डर है उस मां का, जो हर रोज़ हज़ार मन्नतों के बाद अपने कलेजे के टुकड़ों को तैयार कर स्कूल तो भेजती है, लेकिन जब तक बच्चे लौट कर घर नहीं आते, तब तक निगाहें दरवाज़े से हटती नहीं है। एक यह तकलीफ़ है उस नन्हीं गुड़िया की, जिसे हर रोज़ स्कूल जाने के लिए ज़िंदगी और मौत से पकड़म-पकड़ाई खेलनी पड़ती है।

क़दम पटरी पर, जान हथेली पर
मध्य प्रदेश के सिवनी ज़िले के इस गांव कंडीपार के बाशिंदों के पास दूसरा कोई चारा भी नहीं है। एक बार बारिश हुई नहीं कि गांव से बाहर जानेवाली इकलौती कच्ची सड़क चलने के काबिल नहीं रह जाती और तब पूरे गांव को हर काम के लिए बस इसी तरह तीन-तीन रेलवे पुलों के ऊपर से होकर गुज़रना पड़ता है, जान हथेली पर लेकर। मगर, धड़धड़ाती रेल गाड़ियों के बीच रोज़ाना मौत से दो-दो हाथ करते ये भोले-भाले गांववाले हर रोज़ खुशकिस्मत नहीं होते। एक बार जो इस इम्तेहान में फेल हो जाता है, समझ लीजिए कि उसकी ज़िंदगी ही उससे हमेशा-हमेशा के लिए रूठ जाती है।

यूं रूठ गई गोविंद की क़िस्मत
अब नौजवान गोविंद सूर्या को ही लीजिए। आज से कोई आठ साल पहले गोविंद इसी तरह रेलवे पुलिस के ऊपर से स्कूल जा रहा था। लेकिन बीच रास्ते में जो कुछ हुआ, वो गोविंद के लिए कभी ख़त्म होने वाला दर्द बन कर रह गया। पीठ में बस्ता टांगे मासूम गोविंद अभी पुल के बीचों-बीच पहुंचा ही था कि अचानक सामने से ट्रेन के आ गई। अब ना तो वो पीछे लौट सकता था और ना ही आगे बढ़ सकता था। कुछ देर के लिए तो गोविंद की सांसें ही थम गई और अगले ही पल वो डर के मारे पुल के ऊपर से सीधे नीचे जा गिरा। गोविंद के रीढ़ की हड्डी टूट गई और वो नदी के बीच ही बेहोश हो गया।

पटरी मौत, पटरी पर ज़िंदगी
गोविंद की ज़िंदगी तो बच गई, लेकिन उसके जिस्म के तमाम हिस्से अब भी ठीक से काम नहीं करते। पढ़ाई छूट गई और वो ज़िंदगी खुद पर बोझ बन गई। ये कहानी अकेले गोविंद की नहीं है, गोविंद के अलावा और भी बदकिस्मत हैं, जो इन पुलों का शिकार हो चुके हैं। इस गांव की एक बुजुर्ग महिला तो ट्रेन की टक्कर के बाद अपनी जान से ही चली गई, जबकि एक गर्भवती महिला ने दहशत के मारे पटरी के बगल में ही अपने बच्चे को जन्म दिया।
इतना होने के बावजूद आज़ादी से लेकर अब तक ना तो गांववालों को एक अदद पक्की सड़क मिली और ना ही उनकी किस्मत खुली। पांच किलोमीटर की एक सड़क बनाने में कितने दिन लगते हैं? एक महीना दो महीना या साल दो साल? लेकिन हमारे देश में इतनी ही लंबाई की एक सड़क ऐसी है, जो पिछले 66 सालों में नहीं बन सकी। लिहाज़ा जिन्हें इस सड़क से होकर गुज़रना था, वो रोज़ सिर पर कफ़न बांध कर सफ़र करते हैं।

पांच किलोमीटर, 66 साल
पांच किलोमीटर का ये एक ऐसा फ़ासला है जिसे पिछले 66 सालों में भी हम पाट ना पाए। देश के तमाम नेता, नौकरशाह, खुदमुख्तार और बयान बहादुर मिलकर भी पिछले 66 सालों में फकत पांच किलोमीटर का रास्ता भी इस गांव को नहीं दे पाए। वो रास्ता जिसपर जिसपर जिंदगी बेखौफ अपने कदम बढ़ाती। और बस इसी एक कमी की वजह से इस गांव के लोग हर साल पूरे चार महीने इसी तरह जान हथेली पर लेकर मौत के रास्ते हो कर गुज़रने को मजबूर हैं।
अगर इस गांव को उनका पांच किलोमीटर लंबा रास्ता मिल जाता तो ना तो बारिश में ये सड़क यूं कीचड़ में गुम हो जाती और ना ही ना ही इस सड़क से बचने के लिए यहां के बाशिंदों को मौत को छू कर निकलना पड़ता। मगर, अफ़सोस। कंडीपार गांव का यही सच है।

खाली गई गांववालों की हर कोशिश
ऐसा भी नहीं है कि इस गांव के लोगों ने इस पांच किलोमीटर को फासले को पूरा करने की कोशिश ना की हो। लेकिन हर बार उनकी कोशिश नेताओं के झूठे वादों और सरकारी दफ्तरों की फ़ाइलों में गुम होती रही। केवलारी विधानसभा पर कांग्रेस सबसे ज्यादा समय तक काबिज रही है बावजूद इसके क्षेत्र समस्याओं के मकड़जाल से मुक्त नहीं हो सका है। क्षेत्र में कांग्रेस की सुश्री विमला वर्मा तो भाजपा की ओर से श्रीमति नेहा सिंह (अब कांग्रेस में) के बाद हरवंश सिंह ठाकुर चार बार इस क्षेत्र के विधायक रहे हैं। इतने दिग्गज नेताओं के हाथों में क्षेत्र की कमान होने के बाद भी क्षेत्र के लोगों की सुध आज तक किसी ने लेना मुनासिब नहीं समझा है।

शनिवार, 16 नवंबर 2013

आश्वासन के बाद आश्वासन: नहीं मिल पाया केवलारी को नगर पंचायत का दर्जा

कौन समझेगा सिवनी की प्रसव वेदन . . .3

आश्वासन के बाद आश्वासन: नहीं मिल पाया केवलारी को नगर पंचायत का दर्जा

(लिमटी खरे)

विधानसभा क्षेत्र केवलारी के मुख्यालय केवलारी के लोगों को इस बात की पीड़ा सालती होगी कि आश्वासन दर आश्वासन मिलने के बाद भी केवलारी को नगर पंचायत का दर्जा नहीं मिल पाया है। इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व लगभग बीस सालों तक कांग्रेस के जाने माने क्षत्रप हरवंश सिंह ठाकुर के द्वारा किए जाने के बाद भी केवलारी आज भी विकास के लिए तरस रहा है। केवलारी में युवाओं का मानना है कि अब तो अण्णा हजारे जैसे आंदोलनों के सहारे ही केवलारी को नगर पंचायत का दर्जा दिलवाया जा सकता है।
ग्राम पंचायत केवलारी के पास आय के साधन बेहद सीमित हैं। संभवतः यही कारण है कि केवलारी में न तो पक्की सड़कों का जाल बिछ पाया और न ही यहां जल निकासी के लिए नालियां ही उचित तरीके की हैं। साफ सफाई और प्रकाश की व्यवस्था तो है पर केवलारी आज भी कस्बाई शक्ल से अपने आप को निकालने के लिए कसमसा रहा है।
केवलारी विधानसभा के डेढ़ दर्जन से ज्यादा गांव में आज भी आज़ादी के साढ़े छः दशकों के बाद भी बिजली का न होना अपने आप में इस क्षेत्र के विकास की गाथा कहने के लिए पर्याप्त माना जा सकता है। इतना ही नहीं अनेक गांव के लोगों विशेषकर स्कूली बच्चों को कभी रेल की पातों पर से जान हथेली पर रखकर सफर तय करना होता है, तो कभी नदी में नाव की सवारी गांठनी होती है। यह है केवलारी विधानसभा के विकास की तस्वीर!
केवलारी से मण्डला मार्ग पर बैनगंगा नदी पर पुल निर्माण न हो पाने से जब तब मार्ग अवरूद्ध हो जाया करता है। इस पुल में बड़ी बड़ी दरारें हैं, जिन्हें विभाग द्वारा भर तो दिया गया है, पर पुल में धपड़े उखड़े अलग ही दिखाई पड़ रहे हैं। इसके अलावा केवलारी उगली मार्ग पर सागर नदी का पुल भी केवलारी के वाशिंदों के लिए परेशानी का सबब् ही बना हुआ है। इस रपटे पर से बारिश के समय राहगीर जान हथेली पर रखकर ही आना जाना किया करते हैं। राजा दिग्विजय ंिसंह के शासनकाल में एक बार यह बात भी सामने आई थी कि झांसी से लखनादौन के राष्ट्रीय राजमार्ग को पलारी, उगली, पाण्डिया छपारा, लालबर्रा, बालाघाट होकर गोंदिया तक बढ़ा दिया जाए, ताकि दूरी और यातायात के दबाव को कम किया जा सके। पता नहीं क्यों यह योजना परवान नहीं चढ़ पाई! केवलारी उगली मार्ग पर सागर नदी के रपटे पर से दिन रात हल्के और भारी वाहनों का आवागमन जारी रहता है, पर इस रपटे को ऊंचा कर नया पुल बनाने की जहमत किसी ने नहीं उठाई।

केवलारी अंचल के निवासियों के सामने अनेक समस्याएं आज भी बरकरार हैं। यहां के निवासियों को रोजी रोजगार के लिए महानगरों की ओर कूच करने पर मजबूर होना पड़ रहा है। यह स्थिति तब निर्मित होती रही जबकि केवलारी क्षेत्र को अतिविशिष्ट विधानसभा क्षेत्र की सूची में स्थान मिला। केवलारी क्षेत्र को विकासशील बनाने के नाम पर चुनाव के दौरान जनप्रतिनिधियों द्वारा समय समय पर अनेक वायदे किए गए, पर अमली जामा एक बार भी नहीं पहनाया जा सका। वहीं कान्हीवाड़ा उप तहसील का मामला भी आज भी झूला ही झूल रहा है।

चुनाव आते ही बढ़ी युवा बेवड़ों की तादाद!

चुनाव आते ही बढ़ी युवा बेवड़ों की तादाद!

(अय्यूब कुरैशी)

सिवनी (साई)। शासन प्रशासन भले ही इस बात का दावा करे कि चुनाव के दौरान अवैध शराब के विक्रय पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, पर चुनाव की रणभेरी बजते ही शराब के आधिक्य में सेवन करने वालों की तादाद तेजी से बढ़ गई है। यौवन की दहलीज पर कदम रखने वाले युवाओं के शराब के नशे में चूर होने की खबरें चुनाव की घोषणा के साथ ही तेजी से बढ़ी हैं।
पिछले कुछ समय से जिला चिकित्सालय सहित अनेक चिकित्सकों या निजी चिकित्सालयों में शराब के आधिक्य में सेवन के कारण बीमार होकर भर्ती होने वालों की खासी तादाद सामने आई है। इनमें से अधिकांश युवाओं की आयु सोलह से पच्चीस तीस साल के बीच की है।
आबकारी विभाग के सूत्रों का कहना है कि चुनाव के मद्देनजर प्रशासन ने वेयर हाउस, शराब दुकानों आदि में सीसीटीवी कैमरे लगावा दिए हैं। वहीं, कहा जा रहा है कि गांव गांव बिकने वाली अवैध शराब या मतदाताओं को प्रलोभन के बतौर वितरित की जाने वाली शराब पर आबकारी विभाग द्वारा कोई लगाम नहीं लगाई जा सकी है।
ज्ञातव्य है कि आचार संहिता लगते ही संवेदनशील जिला कलेक्टर भरत यादव के निर्देश पर आबकारी विभाग और पुलिस विभाग के सहयोग से चलाए गए अभियान में कुछ जगहों पर अवैध शराब के परिवहन के प्रकरण अवश्य ही दर्ज किए गए, किन्तु पिछले एक पखवाड़े में अवैध शराब पकड़ने की खबरें न तो आबकारी विभाग, न पुलिस और न ही जनसंपर्क विभाग द्वारा बताई गई हैं।
यक्ष प्रश्न तो यह खड़ा हुआ है कि अगर इन विभागों द्वारा किसी तरह की अवैध शराब नहीं पकड़ी गई तो फिर शराब के आधिक्य में सेवन के प्रकरण अस्पतालों में कैसे पहुंच रहे हैं। दस नवंबर की रात बरघाट रोड निवासी 32 वर्षीय विजय को, इसके अगले दिन कान्हीवाड़ा क्षेत्र के मटियाटोला निवासी 30 वर्षीय मनोज, 12 नवंबर को छिंदवाड़ा निवासी 28 वर्षीय मनोज, 13 नवंबर को लखनवाड़ा क्षेत्र के 25 वर्षीय प्रदीप आदि को शराब का अधिक सेवन करने पर बेहोशी की हालत में चिकित्सालय में भर्ती कराया गया था।

संवेदनशील जिला कलेक्टर भरत यादव से जनापेक्षा है कि चुनावों को मद्देनजर रखते हुए कम से मतदान तक आबकारी एवं पुलिस विभाग को ताकीद किया जाए कि जिले भर में अवैध रूप से शराब के विक्रय पर नजर रखकर पकड़ा धकड़ी की जाए, एवं पकड़े गए लोगों से यह अवश्य ही पूछा जाए कि उन्होंने भारी मात्रा में शराब कहां से ली है। साथ ही साथ हॉटल ढाबों में सघन चेकिंग अभियान चलाया जाकर वहां परोसी जा रही शराब पर प्रतिबंध भी लगाया जाए।

खूनी संघर्ष से होगा गलत संस्कृति का आगाज़!

खूनी संघर्ष से होगा गलत संस्कृति का आगाज़!

(शरद खरे)

सिवनी विधानसभा के पुसेरा गांव में भारतीय जनता पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी नरेश दिवाकर के जनसंपर्क के दौरान खूनी संघर्ष की खबर आना और उस बारे में भारतीय जनता पार्टी द्वारा खण्डन न किया जाना इस बात को दर्शा रहा है कि उक्त खबर में दम है। खबर अगर सही है तो इसका स्वागत तो नहीं किया जा सकता है। नरेश दिवाकर दो बार सिवनी विधानसभा के विधायक रहे हैं। उनके जैसे वरिष्ठ विधानसभा प्रत्याशी से इस तरह की उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वे अपने सहयोगियों या चुनाव प्रचार के दौरान साथ चलने वाले भाजपा कार्यकर्ताओं को इस तरह की हरकतों को अंजाम देने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। पर यह हुआ है इसलिए उन पर भी इसके छींटे अगर जाएं तो गलत नहीं कहा जा सकता है।
याद पड़ता है कि उनके विधायक रहते हुए एक बार कुरई (परिसीमन के पूर्व कुरई क्षेत्र सिवनी विधानसभा का अंग हुआ करता था) में नरेश दिवाकर ने अपना आपा खोया था और एक वनाधिकारी को झापड़ रसीद कर दिया था। इस संबंध में कुरई थाने में प्राथमिकी भी दर्ज कराई गई थी। बाद में आपसी सुलह से मामला सुलझ गया बताया जाता है। पर घटना तो कारित हुई थी वह भी एक वनाधिकारी के साथ मारपीट की, वह भी तत्कालीन सिटिंग एमएलए नरेश दिवाकर के द्वारा।
पुसेरा में घटी घटना के बाद, भाजपा द्वारा इस संबंध में अब तक अपना पक्ष नहीं रखा जाना दुर्भाग्यपूर्ण ही माना जाएगा। इसका कारण यह है कि सिवनी जिला देश प्रदेश के सबसे शांत जिलों की फेहरिस्त में शामिल है। सिवनी में गुण्डागर्दी को कभी भी प्रश्रय नहीं दिया गया है। पुसेरा में तलवार बाजी हुई वह भी चुनाव प्रचार के दरम्यान। इस मामले में महज निंदा करने से काम नहीं चलने वाला। इसके लिए प्रशासन को कड़ा रूख अख्तियार करना ही होगा। प्रशासन के साथ ही साथ निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए भारत सरकार की ओर से सामान्य, व्यय, पुलिस न जाने कितने प्रेक्षकों को यहां तैनात किया गया है। यह बात उनके संज्ञान में आई ही होगी, अब इंतजार है तो उनके कदम का।
सिवनी के इतिहास में चाहे चुनाव रहा हो या कोई अन्य आयोजन, कभी भी इस तरह की गुण्डागर्दी के उदाहरण कम ही मिलते हैं। याद पड़ता है कि लखनादौन के करीब, बीबी कटोरी में एक बार लोकसभा चुनाव के दौरान जून 1991 में एक दल के प्रत्याशी पर बंदूक की नोक पर मतपेटियां लूटने के आरोप लगे थे। उस समय संचार के साधन सीमित थे, किन्तु बावजूद इसके जून 91 में सिवनी का नाम राष्ट्रीय क्षितिज पर उछला। 12 जून 1991 को मतपेटियां लुटने की खबर ने तत्कालीन जिला प्रशासन को हलाकन कर दिया था।
इसके बाद सिवनी जिले में बूथ केप्चरिंग की घटना का कोई प्रमाण नहीं है। अब लगने लगा है कि सांसद या विधायक का पद वाकई लाभ का है। यही कारण है कि लोगों द्वारा ज्यादा से ज्यादा तादाद में सांसद विधायक बनने की चाहत पैदा हो रही है। एक और बात उभरकर सामने आ रही है कि अमीरजादों के मन में जरूर सांसद विधायक बनने की बलवती इच्छाएं कुलाचें भर रही हैं। अमीरों के पास हर साधन होता है। फिर पता नहीं वे किस बात के लिए इस सियासी कीचड़ में कूदने का जतन करते हैं।
गौरतलब है कि सिवनी जिले में पिछले एक दशक में बंदूक संस्कृति का आगाज़ हुआ है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। सिवनी में बात बात पर लड़ाई झगड़े होना आम बात हो चुकी है। इसका कारण शराब और अन्य नशा ही माना जा सकता है। नशे में व्यक्ति को अच्छे बुरे का भान नहीं होता है, और वह कुछ भी कर गुजरने को अमादा होता है। सिवनी में अवैध रूप से शराब एवं अन्य नशे बेचे जाने की खबरें आम हैं। इसकी रोकथाम के लिए पाबंद लोगों के द्वारा भी इस संबंध में कोई कार्यवाही नहीं किया जाना भी अनेक संदेहों को जन्म देता है।
देर रात जिला मुख्यालय से सटे हॉटल ढाबों में शराब के जाम छलकते रहते हैं, और पुलिस हाथ पर हाथ रखे ही बैठी रहती है। कम से कम चुनाव के दरम्यान तो पुलिस को इस संबंध में सख्ती बरतना चाहिए था। कुछ समय पूर्व नगर कोतवाल रहे श्री कालरा (वर्तमान एसडीओपी मण्डला) ने एक के बाद एक करके हॉटल ढाबों में शराब परोसने पर प्रतिबंध लगा दिया था। उस समय दूर से ही पीली बत्ती आती देख हॉटल ढाबों के संचालकों की सांस अटक जाया करती थी।
बहरहाल, पुसेरा में जो भी कुछ हुआ है उसका प्रतिकार प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के अलावा अन्य निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी नहीं किया है। लगता है मानो सभी एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं, वरना क्या कारण है कि एक गांव में एक दल के जनसंपर्क के दौरान कार्यकर्ता खून खराबे पर उतारू हों और दूसरे दल उसका विरोध न करें? हो सकता है वे भी इसी संस्कृति के पोषक हों और उनकी मंशा भी कमोबेश इसी तरह की हो कि साम, दाम, दण्ड भेद की नीति को अपना कर येन केन प्रकरणेन विधायक का पद हासिल कर लिया जाए। अगर यह नहीं है तो उन्हें इसका प्रतिकार अवश्य ही करना चाहिए था, जो उन्होंने नहीं किया।

चुनाव से इतर अगर कोई और समय होता तो सियासी दलों के प्रवक्ता तो मानो टूट पड़ते एक दूसरे पर। दुख की बात तो यह है कि इस घटना के बाद न तो किसी ने विज्ञप्ति जारी कर जिला एवं पुलिस प्रशासन से कठोर कदम उठाने की मांग की है और न ही मंशा ही दिखाई है। जो प्रत्याशी यह चाह रहे हैं कि वे विधानसभा में सिवनी की आवाज बनें उन्हें यह सोचना अवश्य होगा कि अगर कल इस तरह की कोई घटना घटित होती है तो क्या वे इसी तरह मौन रहकर सिवनी के निवासियों का हित साधेंगे! अपना अच्छा बुरा सोचने के लिए हर प्रत्याशी स्वतंत्र है पर यह सिवनी की शांत फिजां में घुल रहे गुण्डागर्दी के जहर का मामला है, इसके लिए उन्हे आगे आकर आवाज बुलंद करना ही होगा। साथ ही साथ सभी प्रत्याशियों और उनके समर्थकों से अपील है कि वे आपा न खोएं और धैर्य व संयम का परिचय देते हुए सिवनी की गौरवशाली परंपरा को बदस्तूर कायम रखने में सहयोग प्रदान करें।

शुक्रवार, 15 नवंबर 2013

कमल नाथ की सभा का व्यय जुड़ सकता है रजनीश और राजकुमार के खाते में!

कमल नाथ की सभा का व्यय जुड़ सकता है रजनीश और राजकुमार के खाते में!

(अखिलेश दुबे)

सिवनी (साई)। 13 नवंबर को सिवनी और केवलारी विधानसभा में संपन्न हुई केंद्रीय मंत्री कमल नाथ की सभा का व्यय भी सिवनी से कांग्रेस प्रत्याशी राजकुमार खुराना और केवलारी के कांग्रेस प्रत्याशी रजनीश सिंह के खाते में जोड़ा जा सकता है। भारत निर्वाचन आयोग के निर्देशों के बाद यह कवायद की जा सकती है।
ज्ञातव्य है कि मध्य प्रदेश के जनसंपर्क संचालनालय द्वारा 13 अक्टूबर को जारी समाचार में कहा गया था कि मध्यप्रदेश में इस साल होने वाले विधानसभा निर्वाचन के दौरान उम्मीदवारों को चुनाव खर्च के मामले में बेहद सतर्क रहना होगा। निर्वाचन व्यय पर आयोग और विभिन्न टीमों की लगातार निगरानी रहेगी। उम्मीदवारों की निर्वाचन अभियान संबंधी प्रत्येक गतिविधियाँ भी वीडियोग्राफर के केमरे में दर्ज हांेगी।
विज्ञप्ति में आगे कहा गया था कि चुनाव के दौरान राजनैतिक दलों के स्टार प्रचारकों का दौरा, रैली, सभाओं पर भी विशेष निगाह रखी जायेगी। यदि उम्मीदवार स्टार प्रचारक के साथ यात्रा करता है तो पचास प्रतिशत यात्रा खर्च प्रत्याशी के चुनाव खर्च में जोड़ा जायेगा। यदि उम्मीदवार स्टार प्रचारक के साथ पंडाल सभा करता है और सभा में अपने नाम के साथ उसका फोटो या पोस्टर प्रदर्शित होता है तो सभा का खर्च भी प्रत्याशी के खाते में जोड़ा जायेगा। स्टार प्रचारक के साथ यात्रा खर्च में उन्हीं को छूट मिलेगी, जो परिचारक, सुरक्षा एवं चिकित्सा कर्मी, प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का कोई प्रतिनिधि, कोई व्यक्ति या दल का सदस्य जो चुनाव क्षेत्र का प्रत्याशी तथा प्रत्याशी के चुनाव अभियान में सम्मिलित नहीं है।

जुड़ेगा प्रत्याशी के व्यय में खर्च: गुप्ता
इस संबंध में अभी स्थिति स्पष्ट नहीं हो सकी है। मीडिया सर्टिफिकेशन और मीडिया मानीटरिंग समिति की प्रभारी बबीता मिश्रा ने बताया कि इस बारे में समूची जानकारी व्यय प्रेक्षक दे पाएंगे। इस संबंध में सिवनी के व्यय प्रेक्षक श्री गुप्ता से (9425827384) जब चर्चा की गई तो उन्होंने बताया कि आयोग के निर्देश पर स्टार प्रचारकों के कार्यक्रमों की वीडियोग्राफी करवाई जा रही है। सिवनी एवं केवलारी विधानसभा में 13 जून को हुई केंद्रीय मंत्री की सभा की सीडी तैयार हो गई है एवं आज संपन्न एल.के.आडवाणी की सभा की वीडियोग्राफी वे देखेंगे और निर्धारित करेंगे कि प्रत्याशी के खाते में व्यय जोड़ा जाए अथवा नहीं। उन्होंने कहा कि अगर स्टार प्रचारक द्वारा अभ्यार्थी के पक्ष में प्रचार किया जाता है, तो आधा खर्च प्रत्याशी के खाते में चला जाएगा।