बेबस मनमोहन और शर्मसार देश
मिस्त्र से सीख लें मनमोहन
खुद को निरीह असहाय बताकर जिम्मेदारी से बच नहीं सकते वजीरे आजम
(लिमटी खरे)
सुप्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह दिनकर की मशहूर कविता की पंक्तियां हैं ‘‘जब नास मनुस का छाता है, तब विवेक मर जाता है।‘‘ इसी तर्ज पर भारत गणराज्य की कांग्रेसनीत केंद्र सरकार चल रही है। कामन वेल्थ गेम्स में हजारों करोड़ रूपयों की होली खेली गई, प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह ने इसे राष्ट्रीय पर्व के तहत मनाने का आव्हान किया। टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले पर चिल्लपों मची। संचार मंत्री आदिमत्थु राजा को हटाकर मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल को नया संचार मंत्री बनाया गया। संचार मंत्री ने कैग की कार्यप्रणाली पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया। देश के साथ ही साथ केंद्र और प्रधानमंत्री मूकदर्शक बने सब कुछ देखते सुनते रहे। इतना ही नहीं विश्व की ताकतवर महिलाओं की फेहरिस्त में शामिल कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और युवराज राहुल गांधी ने इस मामले में अपने अपने मुंह सिल रखे हैं। आखिर वे देश वासियों को क्या संदेश देना चाह रहे है? क्या यह कि उनके राज में भ्रष्टाचारियों के लिए सारे दरवाजे खुले हुए हैं?
कांग्रेसनीत संप्रग सरकार के दूसरे कार्यकाल में प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह अपने आप को बेहद बेबस, निरीह, असहाय प्रदर्शित करने पर तुले हुए हैं। देखा जाए तो भारत गणराज्य में सबसे ताकतवर पद है प्रधानमंत्री का और उस पद पर वे छः साल से अधिक समय से काबिज हैं। डॉ.सिंह के पिछले कार्यकाल, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा को देखकर देश की जनता ने कांग्रेस पर भरोसा जताकर दूसरी बार उन्हें प्रधानमंत्री बनाया है। विडम्बना है कि इस बार मनमोहन किसी का भी मन नहीं मोह सके हैं।
यक्ष प्रश्न तो यह है कि आखिर वजीरे आजम चाहते क्या हैं? देश के हर राजनेता के मन में प्रधानमंत्री बनने की महात्वाकांक्षा कुलबुलाती रहती है। मन मोहन सिंह तो दूसरी बार प्रधानमंत्री बन चुके हैं। कांग्रेस में नेहरू गांधी परिवार के प्रधानमंत्री बनने के मिथक को भी वे तोड़ चुके हैं। अब संभवतः उनके मन में और कोई अभिलाषा या महात्वाकांक्षा शेष नहीं रही होगी। इन परिस्थितियों में मनमोहन सिंह अपनी मण्डली या मंत्रीमण्डल पर लगाम कसने से क्यों कतरा रहे हैं? डॉ.मनमोहन सिंह आजाद भारत के प्रधानमंत्री जैसे जिम्मेदार पद पर आसीन हैं, देश की निगाहें उन पर टिकी हुई हैं, अपने आप को असहाय बताकर वे अपनी जिम्मेदारियों से वे कतई नहीं भाग सकते हैं।
अस्सी के दशक में कांग्रेस में इक्कीसवीं सदी के स्वप्न दृष्टा के तौर पर स्थापित हो गए थे, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी, आज इटली मूल की निवासी उनकी अर्धाग्नीं श्रीमति सोनिया गांधी के हाथों है कांग्रेस की कमान वह भी पिछले बारह सालों से। इन बारह सालों में छः साल से अधिक समय से केंद्र में कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबध्ंान की सरकार काबिज है। इसी दौरान भ्रष्टाचार, घपले घोटालों का महाकुंभ आयोजित होता रहा और देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली गरीबों की हिमायती होने का ढोंग करने वाली कांग्रेस चुपचाप सब कुछ देखती, सुनती, सहती रही।
प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह कहते हैं कि भ्रष्टाचार के चलते अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि धूमिल हुई है, सरकार को शर्मिंदा होना पड़ा है। क्या प्रधानमंत्री यह नहीं जानते कि देश की छवि पर कालिख किसने लगाकर देश को शर्मसार होने पर मजबूर किया है। देश को सरकार चला रही है, और सरकार के मुखिया हैं डॉ.मनमोहन सिंह।
जिस तरह किसी घर में घर का कोई सदस्य अगर अनाचार करे तो मुखिया यह कहकर अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता कि वह काबू से बाहर हो गया है, हमें शर्मिंदगी उठानी पड़ रही है उसके कारण। मुखिया अगर यह देखे की घर का कोई सदस्य गलत व्यवहार कर रहा है, या उसके खिलाफ शिकायतें आ ही हैं, तो सबसे पहले वह उस सदस्य को समझाईश देता है, फिर भी अगर आचरण न सुधरे तो दण्ड देता है, फिर भी अगर नहीं सुधरा तो उसे घर से बाहर निकाल दिया जाता है, ताकि सामाजिक व्यवस्थाओं के अनुरूप एक परिवार को चलाया जा सके।
इस तरह का कोई भी कदम प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह द्वारा अब तक नहीं उठाया गया है। केंद्र सरकार के बेलगाम मंत्री दिल खोलकर भ्रष्टाचार कर रहे हैं। सरेआम अनाचार, दुराचार, भ्रष्टाचार का नंगा नाच नाचा जा रहा है। कानून और व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। सरकारी कार्यालयों में जनता के पैसे की होली खेली जा रही है। जमाखोर और कालाबाजारियों की मौज है, मंहगाई पुराने सारे रिकार्ड ध्वस्त करती जा रही है। जनता की कमर टूटी पड़ी है। देश में किसान आत्महत्या पर मजबूर हैं। यह सब हो रहा है और कांग्रेसनीत संप्रग सरकार के मुखिया डॉ.मनमोहन सिंह और सत्ता की चाबी अपने पास रखने वाली कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी दोनों ही नीरो के मानिंद चैन की बंसी बजा रहे हैं।
आज के वर्तमान हालातों को देखकर कांग्रेस महासचिव गठबंधन की मजबूर राजनीति को मंहगाई का कारण बता रहे हैं। ये वही राहुल गांधी हैं, जिनके हवाले कांग्रेस आने वाले समय में देश को सौंपने का सपना देख रही है। राहुल गांधी परोक्ष तौर पर नारा बुलंद कर रहे हैं कि ‘‘गठबंधन की मजबूरी है महंगाई बहुत जरूरी है।‘‘ राहुल गांधी सांसद हैं, वैसे भी पूर्व प्रधानमंत्रियों के परिवार के वंशज होने के कारण उन्हेें मंहगाई छू भी नहीं पा सकी है, वे आम आदमी की रोज की जरूरतों से वाकिफ कतई नहीं माने जा सकते हैं। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि आजादी के उपरांत कांग्रेस ने देशवासियों के सीने पर जो मूंग दली है उसके मंगौड़े तल रहे हैं आज के समय में कांग्रेस के सरमायादार।
हमारी नितांत निजी राय में अगर प्रधानमंत्री खुद को बेबस, असहाय, शर्मसार महसूस कर रहे हैं तो बेहतर होगा कि वे अपनी पुरानी छवि को बरकरार रखने के लिए नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए त्यागपत्र देकर एक नजीर पेश करें। निचले स्तर पर भ्रष्टाचार की खबरें आम हो चुकी हैं, किन्तु अब तो शीर्ष पर ही भ्रष्टाचार ने अपने आप को बेहतर तरीके से स्थापित कर लिया है। देश के अंतिम आदमी की पेशानी पर परेशानी और बेबस होने की लकीरें साफ दिखाई पड़ने लगी हैं। हालात किस कदर बिगड़ गए हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब देश में भी मिस्त्र जैसी बगावत और क्रांति की चेतावनियां दी जाने लगी हैं। वहां के शासकों के तानाशाह बनने के कारण लोग सड़कों पर उतर आए हैं। हिन्दुस्तान की हुकूमत भी तानाशाहों सा ही बर्ताव करने पर आमदा है। मंहगाई पर नियंत्रण का जिम्मा आखिर किसका है? जाहिर है केंद्र सरकार का। वजीरे आजम या वित्त मंत्री खुद के हाथ में जादू की छड़ी न होने की बात कहकर अपनी जिम्मेदारी से बचना चाह रहे हैं।
देश में सुबह उठने से रात को सोने तक के दौरान आम आदमी पर हुए करारोपण से इकठ्ठे किए गए राजस्व को नौकरशाहों, जनसेवकों और व्यवसाईयों ने जमकर लूटा है। इसी लूट के धन को उन्होंने विदेशों में जमा कर दिया है। सरकार को पता है कि वे कौन कौन सी सफेद कालर हैं, जिन पर हाथ डालने से देश की अर्थव्यवस्था दुरूस्त की जा सकती है, किन्तु क्या करें हमाम में सब नंगे हैं, की तर्ज पर उनमें से कुछ कालर सरकार में भी शामिल हैं। लोकतंत्र की सबसे बड़ी अनवरत लूट का हिस्सा विदेशों के बैंक में जमा है, जिससे वहां की अर्थव्यवस्था सुदृढ हो रही है, किन्तु हिन्दुस्तान में अर्थव्यवस्था को घुन चट कर गया है।
आज देश जय प्रकाश नारायण की तलाश कर रहा है। युवाओं को एक नेतृत्व की आवश्यक्ता है। इक्कीसवीं सदी के स्वयंभू योग गुरू बाबा रामदेव ने देश के प्रदूषित राजनैतिक वातावरण को शुद्ध करने के लिए एक विशेष महायज्ञ करने का आगाज किया है। जन जागरण अभियान के माध्यम से बाबा रामदेव ने इसे आरंभ किया है। बाबा रामदेव के राजनैतिक मंसूबे तो वे ही जाने किन्तु वर्तमान में उनके कदम ताल को देखकर उनका स्वागत किया जाना चाहिए। बाबा रामदेव के इस यज्ञ में हर देश वासी को समिधा डालना होगा, तभी भ्रष्टाचार, घपले, घोटाले, अनाचार, बलात्कार, योनाचार, कदाचार जैसे राक्षसों को देवताओं की इस भारत भूमि से बाहर खदेड़ा जा सकता है।
कुल मिलाकर प्रधानमंत्री जैसे जिम्मेदार ओहदे पर बैठे किसी भी शख्स को शर्मसार होने की बात कहना कहीं से भी न्यायसंगत नहीं माना जा सकता है। अगर प्रधानमंत्री ही बेबस है तो देश किस रास्ते पर चल चुका है, इस बात का अंदाजा लगाकर ही रीढ़ की हड्डी में सिहरन पैदा हो जाती है। सिर्फ नाम के लिए पदों पर चिपके रहने की बजाए शासकों को चाहिए कि वे सत्ता की मलाई का मोह त्याग दें, वरना हालात बेकाबू होते देर नहीं लगेगी और आने वाले समय में भावी पीढ़ी इन नेताओं का नाम बहुत आदर के साथ तो कतई नहीं लेने वाली।