मंगलवार, 20 सितंबर 2011

नेपाली आज भी है विदेशी भाषा!



नेपाली आज भी है विदेशी भाषा!

(लिमटी खरे)

देश को दिशा देने का काम भारत सरकार का होता है। जिस तरह भारत सरकार का मानव संसाधन और विकास मंत्रालय विद्यार्थियों को शिक्षित करने की नीति और उनके कोर्स में क्या शािमल हो इस बात की चिंता करता है उसी तरह सूचना और प्रसारण मंत्रालय लोगों को जागरूक रखने में अहम भूमिका निभाता है। जब सूचना प्रसारण मंत्रालय में ही लाल फीताशाही के बेलगाम घोेड़े दौड़ रहे हों तब फिर भला किससे उम्मीद की जाए। इंफरमेशन एण्ड ब्राडकास्टिंग मिनिस्ट्री का अभिन्न अंग है ऑल इंडिया रेडियो। आज भी गांव गांव में इसकी प्रासंगिकता को नकारा नहीं जा सकता है। एआईआर ने अपनों को ही पराया बना दिया है। सिक्किम राज्य जो भारत गणराज्य का अभिन्न अंग है वहां की आधिकारिक भाषा को विदेशी भाषा का दर्जा दिए हुए है एआईआर।


आज के दौडते भागते युग में देश के बारे में बच्चों और युवा होती पीढी का सामान्य ज्ञान काफी हद तक कमजोर माना जा सकता है। देश में कितने राज्य और उनकी राजधानियों के बारे में सत्तर फीसदी लोगों को पूरी जानकारी न हो तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। किस सूबे की आधिकारिक भाषा क्या है, इस बात की जानकारी युवाओं को तो छोडिए भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय के आला अधिकारियों को भी नहीं है।

सिक्किम भारत देश का हिस्सा है। चीन भी इस बात तो स्वीकार कर चुका है, कि सिक्किम भारत गणराज्य का ही एक अंग है। भारत गणराज्य के सूचना प्रसारण मंत्रालय और प्रसार भारती के अधीन काम करने वाला ऑल इंडिया रेडियो (एआईआर) इस राय से इत्तेफाक रखता दिखाई नहीं देता है। एआईआर की विदेश प्रसारण सेवा में एआईआर को आज भी विदेशी भाषा का दर्जा दिया गया है, जबकि सिक्किम की आधिकारिक भाषा नेपाली ही है। इतना ही नहीं 1992 में संविधान की आठवीं अनुसूची में नेपाली को शामिल किया जा चुका है। एआईआर की हिम्मत तो देखिए इसकी अनदेखी कर एक तरह से एआईआर द्वारा संविधान की ही उपेक्षा की जा रही है।

भारत गणराज्य के गणतंत्र की स्थापना के साथ ही 1950 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में विदेशों में कल्चर प्रोपोगंडा करने की गरज से विदेश प्रसारण सेवा का श्रीगणेश किया गया था। इस सेवा का कूटनीतिक महत्व भी होता था, इसमें विदेश प्रसारण सेवा के तहत वहां बोली जाने वाली भाषा में प्रोग्राम का प्रसारण किया जाता था। एआईआर ने वहां की भाषा के जानकारों की अलग से नियुक्ति की थी।

मजे की बात तो यह है कि विदेश प्रसारण सेवा में काम करने वाले अधिकारियों कर्मचारियों के वेतन भत्ते और सेवा शर्तें भारत में काम करने वाले कर्मचारियों से एकदम अलग ही होते हैं। 50 के दशक में जिन देशोें को विदेश प्रसारण सेवा के लिए चिन्हित किया था, उनमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान, आस्टेªलिया, ईस्ट और वेस्ट आफ्रीका, न्यूजीलेंड, मारीशस, ब्रिटेन, ईस्ट और वेस्ट यूरोप, नार्थ ईस्ट, ईस्ट एण्ड साउथ ईस्ट एशिया, श्रीलंका, म्यामांर, बंग्लादेश आदि शामिल थे।

एआईआर द्वारा नेपाली भाषा को विदेशी भाषा का दर्जा दिए जाने के बावजूद भी अनियमित (केजुअल) अनुवादक और उद्घोषकों को भारतीय भाषा के अनुरूप भुगतान किया जा रहा है, जो समझ से परे ही है। बताते हैं कि कुछ समय पहले केजुअल अनुवादक और उद्घोषकों द्वारा भुगतान लेने से इंकार कर दिया गया था। बाद में समझाईश के बाद मामला शांत हो सका था।

उधर पडोसी मुल्क नेपाल जहां की आधिकारिक भाषा नेपाली ही है, ने भारत के ऑल इंडिया रेडियो के इस तरह के कदम पर एआईआर के मुंह पर एक जबर्दस्त तमाचा जड दिया है। नेपाल में उपराष्ट्रपति पद की शपथ परमानंद झा द्वारा हिन्दी में लेकर एक नजीर पेश कर दी। इतना ही नहीं नेपाल सरकार ने एक असाधारण विधेयक पेश कर लोगों को चौंका दिया हैै। इस विधेयक में देश के महामहिम राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद की शपथ मातृभाषा में लिए जाने का प्रस्ताव दिया गया था।

अब सवाल यह उठता है कि 1992 में आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने के 18 साल बाद भी इस मामले को लंबित कर लापरवाही क्यों बरती जा रही है। यह अकेला एसा मामला नहीं है, जबकि हिन्दी को मुंह की खानी पडी हो। वैसे भी हिन्दी देश की भाषा है। लोगों के दिलोदिमाग में बसे महात्मा गांधी, पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर आज तक के निजाम हिन्दी को प्रमोट करने के नारे लगाते आए हैं, पर हिन्दी अपनी दुर्दशा पर आज भी आंसू बहाने पर मजबूर है।

लोग कहते हैं कि दिल्ली हिन्दी नहीं अंग्रेजी में कही गई बात ही सुनती है। हिन्दी सहित भारतीय भाषाओं के प्रोत्साहन के लिए अब तक करोडों अरबोें रूपए खर्च किए जा चुके हैं, दूसरी ओर सरकारी तंत्र द्वारा हिन्दी को ही हाशिए पर लाने से नहीं चूका जाता है। हिन्दी भाषी राज्यों में ही हिन्दी की कमर पूरी तरह टूट चुकी है। ईएसडी के प्रोग्राम में ‘‘प्रेस रिव्यू‘‘ नाम का प्रोग्राम होता है। इसमें भारतीय अखबारों में छपी खबरों और संपादकीय का जिकर किया जाता है। विडम्बना देखिए कि इसमें हिन्दी में छपे अखबरों को शामिल नहीं किया जाता है। यद्यपि एसा कोई नियम नहीं है कि इसमें सिर्फ आंग्ल भाषा में छपे अखबारों का ही उल्लेख किया जाए पर यह हिन्दुस्तान है मेरे भाई और यहां अफसरों की मुगलई चलती आई है, और आगे भी अफसरशाही के बेलगाम घोडे अनंत गति से दौडते ही रहेंगे।

बड़े बाबुओं की कमाई पर अंकुश की तैयारी


बड़े बाबुओं की कमाई पर अंकुश की तैयारी

मोटी कमाई वाले टीसी अब झांकेंगे बगलें

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। बड़े बाबू एकाध की गुंजाईश हो तो देख लो, अरे बाबू साहब लेडीज़ साथ में है, जाना अर्जेंट है, जैसे जुमलों के साथ रेल में बिना आरक्षण सफर करने वाले यात्रियों से मोटी कमाई करने वाले टीटीई पर भारतीय रेल लगाम कसने की तैयारी पूरी कर चुकी है। आने वाले दिनों में रेलगाड़ी में टिकिटों की कालाबजारी पर काफी हद तक अंकुश लगने की उम्मीद जाताई जा रही है।

गौरतलब है कि चलती ट्रेन में टीटीई जिसे लोग प्यार से बड़े बाबू पुकारते हैं बादशाह होता है। आरएसी टिकिटों के बाद बची खाली बर्थ एवं रास्ते से होने वाली बोर्डिंग को वह पैसा लेकर बर्थ दे देता है। भारतीय रेल के आला अधिकारियों को इस तरह की अनेकों शिकायतें मिलती रहीं हैं। रेल के आला अधिकारियों में चल रही खुसुर पुसर के अनुसार टीटीई की मोटी कमाई का हिस्सा उस जोन के बाहर नहीं आ पाता है। इन आला अधिकारियों को हिस्सा न मिल पाने से इन्होंने टीटीई पर अंकुश लगाने की व्यवस्था सुनिश्चित कर दी है।

उल्लेखनीय होगा कि वर्तमान में चलित रेल गाड़ी में उद्घोषणा की व्यवस्था की गई है जिसमें खाली बर्थ के बारे में जानकारी दी जाती थी। यह योजना पूरी तरह विफल ही साबित होने लगी तब रेल्वे बोर्ड के आला अधिकारियों ने नई व्यवस्था सुनिश्चित करते हुए बर्थ की खाली स्थिति को डिस्पले स्क्रीन पर प्रदर्शित किया जाना प्रस्तावित है। माडल के तौर पर इस योजना के लिए कुछ जोन चुने गए हैं। अगर यह योजना सफल रही तो इसे पूरे देश में लागू किया जा सकता है।

कम होती नहीं दिख रहीं शीला पुत्र की मुश्किलें


कम होती नहीं दिख रहीं शीला पुत्र की मुश्किलें

दस लाख रूपए की रकम बनी संदीप दीक्षित के गले की फांस

जयेश माथुर ने नोटों का बैग क्यों दिया था सांसद को?

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। दिल्ली की कुर्सी पर तीसरी बार बैठने का रिकार्ड बनाने वाली मुख्यमंत्री के सांसद पुत्र संदीप दीक्षित की मुश्किलें कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। भोपाल एक्सप्रेस पर एसी फर्स्ट क्लास में उनकी सीट पर मिले दस लाख रूपए के बैग को लेकर अब पुलिस ने रंग दिखाना आरंभ कर दिया है। इस रकम के दावेदारों को खोजने के लिए पुलिस अभियान भी चलाने वाली है। इस रकम पर दावा करने वाले आर्किटेक्ट जयेश माथुर के बयान को भी पुलिस संदेहास्पद ही मान रही है।

ज्ञातव्य है कि मंगलवार 13 सितम्बर को दक्षिण दिल्ली के सांसद और मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित के पुत्र संदीप दीक्षित एसी फर्स्ट क्लास से निजामुद्दीन से हबीजगंज के लिए रवाना हुए थे। अगले दिन रेल की सफाई के दौरान उनकी सीट पर एक बैग मिला था जिसमें दस लाख रूपए की राशि निकली थी। रेल्वे पुलिस ने इस रकम को अपने कब्जे में कर लिया था।

मामला जैसे ही उछला वैसे ही सांसद संदीप दीक्षित ने कहा कि न तो वह बैग ही उनका है और न ही उसमें रखे रूपए उनके हैं। पुलिस सूत्रों के अनुसार सांसद संदीप दीक्षित ने दस लाख रूपए अपने मित्र जयेश माथुर के बताए थे। उल्लेखनीय होगा कि जयेश माथुर उसी रेल के एसी सेंकड में यात्रा कर रहे थे। मामला तब और उलझ गया जब उस बैग में सांसद संदीप दीक्षित की दवाएं भी पुलिस ने जब्त की।

व्याप्त चर्चाओं के अनुसार दस लाख रूपए की रकम मामूली नहीं होती है। साथ ही साथ एसी सेकंड में सफर करने वाले जयेश ने आखिर उस बैग को सांसद संदीप दीक्षित के पास क्यों छोड़ा? साथ ही साथ इतनी बड़ी रकम उन्होंने कहां से निकाली? इतना ही नहीं उस बैग में सांसद संदीप दीक्षित की दवाएं कहां से आ गईं?

रेल्वे पुलिस के सूत्रों का कहना है कि जयेश माथुर ने भोपाल के गोविंदपुरा अनुविभागीय दण्डाधिकारी की अदालत में इस रकम की सुपुर्दगी का आवेदन लगाया है। जयेश का तर्क है कि उनके पिता की सेवानिवृत्ति के उपरांत मिली राशि से वे भोपाल में एक फ्लेट लेने वाले थे। उन्हें यह कहां खरीदना था? इसके लिए पूर्व में उन्होंने क्या औपचारिकताएं पूरी की थीं? पिता किस पद से और कब सेवानिवृत हुए थे? पिता को इतनी बड़ी रकम कैसे मिली? जैसे प्रश्नों का जयेश ने खुलासा नहीं किया है।

रेल्वे पुलिस के सूत्रों ने आगे कहा कि अभी पुलिस ने अपनी रिपोर्ट पेश नहीं की है। वैसे प्रशासन इस रकम के ब्योरे के साथ विभिन्न स्थानों पर नोटिस भी लगाने वाली है ताकि अगर इस रकम का कोई और दावेदार आता है तो उस पर भी विचार हो सके। सूत्रों ने कहा कि सांसद इस प्रयास मे हैं कि नोटिस में इस बात का उल्लेख न हो कि उक्त राशि सांसद संदीप दीक्षित की यात्रा के दौरान उपयोग की गई बर्थ पर पर मिली है।

कहा जा रहा है कि पुलिस ने उक्त रकम को संदीप दीक्षित के कथित मित्र जयेश माथुर को सौंप दिया है। पुलिस ने जयेश से यह लिखित रूप में ले लिया है कि अगर इसका कोई दावेदार आया तो वे इस रकम को पुलिस को वापस लौटा देंगे।

कार्यकारी अध्यक्ष की दौड़ में दिग्विजय सिंह


ये है दिल्ली मेरी जान



लिमटी खरे

कार्यकारी अध्यक्ष की दौड़ में दिग्विजय सिंह

कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी को रहस्यमय बीमारी हो गई है। सोनिया कांग्रेस को ज्यादा समय देने की स्थिति में फिलहाल नहीं हैं। कांग्रेस में चर्चा चल पड़ी है कि अगर एसा है तो अब कार्यकारी अध्यक्ष बना ही दिया जाए। लाख टके का सवाल है कि किसे? दो नाम उभरकर सामने आ रहे हैं। पहला है अहमद पटेल का, जिनके नाम की वकालत अंबिका सोनी, गुलाम नवी आजाद, सलमान खुर्शीद और शायद प्रणव मुखर्जी भी कर रहे हैं। दूसरा नाम आता है राजा दिग्विजय सिंह का। दिग्गी राजा के लिए लाबिंग करने वालों में नेता कम हैं पर ब्यूरोक्रेट्स की तादाद बेहद ज्यादा है। आला नेताओं की पेशानी पर पसीना है क्योंकि अहमद अगर इस पद पर आए तो ज्यादा असर नहीं पड़ेगा पर कहीं दिग्गी राजा को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया तो बड़े नेताओं को वे पानी भरवा ही देंगे।

२०१४ के चुनाव नहीं होगे मनमोहनी

घपले, घोटाले, भ्रष्टाचार के मकड़जाल में उलझी कांग्रेस उहापोह में है कि अगले आम चुनाव वह किसके नेतृत्व में लड़े। मनमोहन सिंह की ईमानदार छवि आज भी ईमानदार ही बनी है पर उन्हें भ्रष्टाचार का ईमानदार संरक्षक माना जा रहा है। उधर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी अभी तख्त संभालने की स्थिति में नहीं हैं। कांग्रेसियों का कहना है कि जनता मनमोहन सिंह में नरसिंहराव का अक्स देख रही है। नरसिंहराव ने आठ साल तक कांग्रेस को सत्ता से दूर रखा तो अब मनमोहन सिंह तीन गुना यानी चोबीस साल कांग्रेस को सत्ता के गलियारे से बाहर रखने का पुख्ता प्रबंध कर चुके हैं। पार्टी के अदूरदर्शी प्रबंधकों ने अनेक महत्वपूर्ण मुद्दे न केवल सरकार के हाथ से फिलसाए वरन् इन मुद्दों पर सरकार को मुंह की खाने पर मजबूर भी किया। कांग्रेस में नए साफ सुथरी छवि वाले नेता की तलाश तेज हो गई है।

स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह मनमोहन


वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह की तबियत कुछ दिनों पहले नासाज थी। उनका इलाज हुआ और स्वास्थ्य आधार पर चिकित्सकों द्वारा उन्हें मांसाहार से दूर रहने की सलाह दी गई थी। पिछले कुछ माहों से मनमोहन सिंह पूरी तरह शाकाहारी ही हो चुके हैं। हाल ही की उनकी बंगाल यात्रा में उन्होंने अपने शाकाहार के वृत को तोड़कर वहां की प्रसिद्ध हिलिश मछली का स्वाद चखा। दरअसल शेख हसीना की ओर से आयोजित रात्रि भोज में उन्हें हिलिश माछ परोसी गई। वजीरेआजम अपने आप को रोक नहीं पाए और उन्होंने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह होते हुए इसका मजा लिया। चिकित्सकों के अनुसार मछली का सेवन वैसे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है किन्तु कुछ मामलों में यह अपवाद भी है। वैसे मनमोहन अपने साथ एक पेटी भर हिलिश मछली लेकर वहां से वापस आए हैं।
पहली ईंट रखने के पहले ही बंद हो गई योजना
मध्य प्रदेश की सतपुड़ा की वादियों में पनाह पाने वाले सिवनी और छिंदवाड़ा जिले की महात्वाकांक्षी पेंच व्यपवर्तन सिंचाई परियोजना ने इक्कीस साल में दम तोड़ दिया है। इसका विस्तृत प्राक्कलन १९८४ में तैयार किया गया था, उस समय इसकी लागत ९१.६ करोड़ रूपए आंकी गई थी। इस योजना पर वास्तविक काम १९८८ में आरंभ हुआ। १४ साल तक राजनैतिक मकड़जाल में उलझी इस योजना की लागत १९९८ में लगभग छः गुना बढ़कर ५४३.२० करोड़ रूपए हो गई थी। इस परियोजना का आश्चर्यजनक पहलू यह है कि केंद्र और प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता रहते हुए भी क्षेत्रीय सांसद कमल नाथ ने इसे अब तक केंद्र की अनुमति दिलवाने में नाकामी ही हासिल की है। बताया जाता है कि इस परियोजना की बढ़ी लागत से घबराकर प्रदेश सरकार ने इसे बंद करने की गुहार केंद्र से की है। सूत्रों ने कहा कि नई भूअर्जन नीति में मुआवजा चार गुना हो जाने से इसकी लागत काफी अधिक बढ़ जाएगी।


अजीत का वार चारों खाने चित्त पवार

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सुप्रीमो शरद पवार इन दिनों दहशत में हैं। वे अपनी राजनैतिक विरासत अपनी पुत्री सांसद सुप्रिया सुले को सौंपना चाह रहे हैं। सुप्रिया हैं कि अब तक राजनीति में कोई छाप नहीं छोड़ पाई हैं। पवार के भतीजे अजीत महाराष्ट्र में मंत्री हैं। भले ही वे सूबाई राजनीति तक सीमित हों पर अब वे सुप्रिया पर कई गुना भारी पड़ चुके हैं। सूबाई निजाम पृथ्वीराज चव्हाण भी उनसे खौफ खाते हैं। राकांपा के अधिकांश विधायक भी अजीत के समर्थन में हैं। राकांपा के आला नेता प्रफुल्ल पटेल, छगन भुजबल, आर.आर.पाटिल भी शरद पवार से अजीत की शिकायत कर चुके हैं। माना जा रहा है कि अगर अजीत ने राकांपा से नाता तोड़ा तो पार्टी का नामलेवा भी नही बचेगा। इन परिस्थितियों में सुप्रिया की नासमझी से चिंतित पवार को चिंता सता रही है कि उनके कमजोर पड़ते ही पार्टी की लगाम कही अजीत न थाम लें।


लखटके सांसद!

दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित के सांसद पुत्र संदीप दीक्षित की सीट पर लावारिस हालत में मिले बैग ने दस लाख रूपए उगले। बाद में सांसद ने कहा कि यह पैसा उनके मित्र का है। दीक्षित ने पुलिस में अपने बयान दर्ज करवा दिए हैं पर प्रश्न तो प्रश्न हैं जो अभी भी खड़े ही हैं। अगर यह रकम संदीप दीक्षित की है तो वे इसके स्त्रोत को अवश्य ही उजागर करें। अगर वे किसी अन्य की रकम ले जा रहे थे तो इतनी बड़ी रकम ले जाने का जोखम उन्होंने क्यों उठाया? क्या सांसद संदीप दीक्षित किसी के लिए पैसे लाने ले जाने का काम करते हैं? इतनी बड़ी रकम आखिर किस बैंक से निकाली गई? क्या इतनी बड़ी रकम निकासी के वक्त बैंक द्वारा इसकी सूचना आयकर विभाग को दी थी?


दीदी ने कांग्रेस को दिखाई औकात!

कल तक पश्चिम बंगाल पर शासन का सपना देखते वक्त कांग्रेस की चिरौरी करने वाली ममता बनर्जी अब कांग्रेस को आंख दिखाने से नहीं चूक रही हैं। हाल ही में प्रणव मुखर्जी के निज सचिव मनोज पंत को पदोन्नति मिली और वे संयुक्त सचिव हो गए। इस स्तर के अधिकारी को मंत्री का निज सचिव नहीं बनाया जा सकता। दादा ने अपने गृह जिले के कलेक्टर को इसके चुना। जब इसके लिए ममता की सहमति की आवश्यक्ता पड़ी तो ममता बिफर गईं और लिख दी केंद्र सरकार को पाती। ममता का कहना है कि वैसे भी सूबे में आईएएस अफसरों की कमी है। आप दिल्ली में जमे अफसरों को वापस भेजो। मनोज पंत की घर वापसी के बजाए दादा ने उन्हें वाशिंग्टन में पदस्थापना दिला दी। गौरतलब है कि कार्मिक विभाग के साफ निर्देश हैं कि पांच साल से ज्यादा समय के लिए प्रतिनियुक्ति होने पर उसके खिलाफ कार्यवाही की जाएगी।


चमचागिरी को मूल मंत्र माना सूचना केंद्र ने

मध्य प्रदेश सरकार की छवि के निर्माण के लिए पाबंद दिल्ली स्थित जनसंपर्क विभाग के कार्यालय सूचना केंद्र द्वारा इन दिनों अपने मूल काम को छोड़कर अपना भाजपाईकरण कर लिया है। कभी यह भाजपा के अनुषांगिक संगठनों की विज्ञप्तियों का प्रचार प्रसार करता नजर आता है तो कभी सांसद विधायकों के धरने प्रदर्शन को कव्हर करता नजर आता है। सूचना केंद्र के वाहनों को पत्रकारों के बजाए सांसदों की तीमारदारी में लगाया जाता है। इतना ही नहीं कभी अपने किसी आला अधिकारी के परिजन की प्रदर्शनी की खबर जारी करता है तो कभी किसी कर्मचारी को मिले पुरूस्कार की खबर और फोटो। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस कार्यालय द्वारा अब भेदभाव करना आरंभ कर दिया गया है। हिन्दी दिवस पर इसी तरह का एक नजारा देखने को मिला जब तीन लोगों को पुरूस्कार मिला पर खबर जारी हुई एक ही की।


क्यों नाराज हैं चतुर्वेदी और नाथ

मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के जिलाध्यक्षों की घोषणा करने में सूबे के कांग्रेसी निजाम कांतिलाल भूरिया को मानो पसीना आ रहा हो। बमुश्किल कुछ जिलों की घोषणा अवश्य कर दी गई किन्तु अब भी कमल नाथ की सांसदी वाले छिंदवाड़ा और सत्यव्रत चर्तुवेदी के छतरपुर और टीकमगढ़ जिलों के जिलाध्यक्षों की घोषणा अब तक नहीं हो पाई है। माना जाता है कि मध्य प्रदेश के इन दोनों ही क्षत्रपों का एकाधिकार अपने अपने कार्यक्षेत्र में है। इनकी इच्छा के बिना पत्ता भी यहां नहीं हिल पाता है। कांग्रेस के आला नेता इस बात पर शोध कर रहे हैं कि आखिर एसी कौन सी बात है कि देश प्रदेश में अपनी लंगोट घुमाने वाले ये क्षत्रप अपने ही घरों में एक नाम पर आम सहमति नहीं बनवा पा रहे हैं।


पलनिअप्पम का शनि है भारी

केंद्रीय गृह मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बर इन दिनों खासे परेशान चल रहे हैं। लगता है उनके गृहों की चाल कुछ तिरछी है या फिर उनका शनि पूरी तरह भारी हो चुका है। अव्वल तो अण्णा हजारे के साथ वार्ता में वे बुरी तरह अपमानित हुए। फिर इसके बाद मनमोहन सिंह ने उनकी ओर से नजरें फेर लीं। एक के बाद एक ब्लास्ट से पार्टी भी उनसे खफा है। ममता बनर्जी द्वारा प्रणव मुखर्जी को ठेंगा दिखाने के बाद अब तमिलनाडू की मुख्यमंत्री जय ललिता ने चिदम्बरम को उनकी जगह दिखा दी। जब वे अपने चुनाव क्षेत्र शिवगंगा में विजलेंस मानीटरिंग समिति की बैठक में भाग लेने गए तब प्रोटोकाल के बावजूद उनकी अगवानी में कोई नहीं पहुंचा। कहा जा रहा है कि जयललिता का निर्देश था कि वहां कोई न जाए। बेचारे चिदम्बरम मियां अपना सा मुंह लेकर वापस आ गए।


चीन से आते ही दिल्ली तलब होंगे शिवराज

मध्य प्रदेश के निजाम शिवराज सिंह चौहान चीन की यात्रा पर हैं। वहां से वापसी के बाद वे अपने मंत्रीमण्डल का अंतिम फेरबदल करेंगे। इस फेरबदल के लिए चीन यात्रा के पूर्व सारी प्राथमिक तैयारियां की जा चुकी हैं। नई टीम शिवराज से बिदा होने वाले चार मंत्रियों गौरी शंकर बिसेन, नारायण सिंह कुशवाह, पारस जैन एवं राघवजी ने अपनी अपनी कुर्सी बचाने की जुगत लगा ली है। इन नेताओं ने संघ और भाजपा के आला नेताओं को सिद्ध कर लिया है। वैसे अभी पितरों की समाप्ति तक भाजपाध्यक्ष नितिन गड़करी भी सर्जरी के उपरांत आराम फरमाएंगे। इसलिए २० सितम्बर को चीन से वापसी के बाद शिवराज को दिल्ली तलब कर उन्हें अपने मंत्रीमण्डल की प्रस्तावित सूची पर एक बार फिर विचार करने को कहा जा सकता है।


खाली होने लगा कांग्रेस मुख्यालय

सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस का अकबर रोड़ स्थित मुख्यालय अब खाली होने लगा है। कांग्रेस कोषाध्यक्ष मोती लाल वोरा ने एक प्रस्ताव दिया है कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के एक दर्जन से अधिक विभागों और एक सेल को २४ अकबर रोड़ से कहीं और स्थानांतरित कर दिया जाए। वैसे भी कांग्रेस का मुख्यालय गुरूद्वारा रकाबगंज रोड़, जवाहर भवन और ९९, साउथ एवेन्यू में भी लगता है। एमपीसीसी से हटाए गए मुखिया सुरेश पचौरी के कार्यालय को भी रकाबगंज रोड़ में संचालित किया जा रहा है। कांग्रेस संदेश से हटाए गए अनिल शास्त्री को भी हिन्दी विभाग के लिए अकबर रोड़ से इतर कमरा खोजने के निर्देश दे दिए गए हैं। मुख्यालय के प्रबंधक इस बात से परेशान हैं कि हर कोई महासचिव और सचिव खुद के लिए स्वतंत्र कमरे की मांग कर रहा है।


हिन्दी का माखौल उड़ा हिन्दी दिवस पर

मौका हिन्दी के प्रोत्साहन के लिए पुरूस्कारों का था। पुरूस्कार भी दिए जा रहे थे उन्हें जिन्होंने हिन्दी में बेहतरीन काम किए हैं। पुरूस्कार पाने वाले लोग अपने आप को गोरवान्वित महसूस कर रहे थे। अचानक ही हिन्दी की चिन्दी तब उड़ती नजर आई जब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री के.जी. बालाकृष्णन ने अपना उद्बोधन आरंभ किया। बालाकृष्णन ने अपने उद्बोधन में हिन्दी के विकास का जिकर किया। वक्ता हक्का बक्का थे क्योंकि समूचा उद्बोधन अंग्रेजी भाषा में था। श्रोता अंग्रेजी में हुए उद्बोधन पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए खुसर पुसर करते रहे। हिन्दी दिवस पर मुख्य वक्ता का अंग्रेजी में उद्बोधन सुनने के बाद लोगों को लगने लगा कि हिन्दी की दुर्दशा का कारण आखिर क्या है?


ब्लेक लेबल के लिए ब्लेक में रिश्वत!

क्या शराब के ब्रांड को प्रमोट करते हुए कभी सरेआम देखा है किसी ने! नहीं ना, पर सेना में अपने ब्रांड की पैठ बनाने के लिए डिएगो कंपनी ने सेना के अफसरों को एक दो नहीं तीन करोड़ रूपए की रिश्वत दी है। दरअसल कुछ सालों से सेना की केंटीन में मिलने वाली शराब में जानी वाकर ब्लेक लेबल को शामिल किया गया है। इस मंहगी शराब के बाजार और केंटीन के दामों में भारी अंतर है। अमरिका प्रतिभूति और व्यापार आयोग के प्रतिवेदन में कहा गया है कि कंपनी ने सेना में अपना व्यापार करने के लिए यह रिश्वत दी है। एआईसी ने डिएगो पर विदेशी भ्रष्ट और व्यापार अधिनियम के तहत अस्सी करोड़ की शस्ति आहूत की है। जब शराब की बिकावली बढ़ाने के लिए सेना ही रिश्वत लेने लगे तो देश तो भगवान भरोसे होगा ही।


पुच्छल तारा

भ्रष्टाचार के खिलाफ अण्णा हजारे का आंदोलन अभी थमा नहीं है। लोग आज भी अण्णा के समर्थन में मेल और एसएमएस की बौछार पर बौछार किए हुए हैं। देहरादून से अर्जुन कुमार ने एक एसएमएस भेजा है। अर्जुन लिखते हैं कि एक पत्रकार ने अण्णा से पूछा कि अण्णा यह बताईए कि कफन में जेब क्यों नहीं होती है? अण्णा मुस्कुराए और बोले -च्च्प्यारे इतनी सी बात नहीं पता। अरे सीधी सी बात है, मौत रिश्वत नहीं मांगती इसलिए कफन में जेब नहीं होती है।च्च् इस एसएमएस को पढ़ने के बाद शायद देश के भ्रष्ट लोग समझ सकें कि जो वे कमा रहे हैं उसे वे साथ नहीं ले जा पाएंगे फिर पैसों को लेकर यह मारामारी आखिर क्यों?

कांटों भरा ताज पहना है खण्डूरी ने


कांटों भरा ताज पहना है खण्डूरी ने

एक तीर से कई निशाने साध लिए भाजपा आला नेताओं ने

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। उत्तराखण्ड में जिस चतुराई से निशंक को बाहर का रास्ता दिखाया गया उससे भाजपा के आला नेता हत्प्रभ थे। आखिर कौन एसा मास्टरमाईंड था जो नितिन गड़करी के अति विश्वस्त रमेश पोखरियाल को मात दे गया। धीरे धीरे परतें खुलने लगीं और फिर सामने आया कि पूरी व्यूह रचना भगत सिंह कोशियारी के इशारों पर ही सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटेकी तर्ज पर रची गई थी।

निशंक के हाथों से फिसली सत्ता की बागड़ोर और कमान को देखकर भाजपा के आला नेताओं ने उनके स्थान पर कोश्यिारी या खण्डूरी में से एक को सत्तासीन करने का विचार बनाया था। भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों का दावा है कि कोश्यारी ने बड़ी ही चतुराई से अपने मार्ग का कांटा निकाल दिया है। उन्होंने इस संक्रमण काल में सत्ता की बागडोर सेना से सेवानिवृत हुए खण्डूरी को सौंपने में अपनी सहमति जता दी। सूत्रों का कहना है कि इस साल दिसंबर तक आचार संहिता लागू हो सकती है। वर्तमान में पितर फिर नौ दिनों का दुर्गा उत्सव। इसके बाद दीपावली और अन्य अवकाश। इस तरह खण्डूरी को अपना जलवा दिखाने के लिए चार दर्जन से भी कम दिन बचते हैं।

उधर कोश्यारी के करीबी सूत्रों का कहना है कि चतुर सुजान कोश्यारी ने एक ही तीर से कई निशाने साध लिए हैं। अगर वे सीएम की कुर्सी संभालते तो उन्हें लोकसभा से त्यागपत्र देना पड़ जाता। फिर किसी ने उन्हें स्व.प्रमोद महाजन की नीति सुझाई। ज्ञातव्य है कि प्रमोद महाजन ने अपनी चालों से केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज को दिल्ली का निजाम बनवा दिया था। उस समय सुषमा के हाथ से केंद्रीय मंत्री पद गया, सांसदी गई और तीन महीने में ही दिल्ली में भाजपा सत्ता से उठकर विपक्ष में बैठ गई। बताते हैं यह बात कोश्यारी को जम गई। अगर चुनाव में हार हुई तो खण्डूरी अपने आप ही साईज में आ जाएंगे। निशंक का तो विरोध तेज है ही तब सूबे में वे ही इकलौते मीर बचेंगे।

अम्मा वर्सेस अण्णा!


अम्मा वर्सेस अण्णा!

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। देश की राजनैतिक राजधानी में आजकल अम्मा वर्सेस अण्णा की चर्चाएं चटखारे लेकर हो रही हैं। अम्मा यानी जयललिता अब अण्णा हजारे की गांधीगिरी और अनशन की बीमारी से हलाकान नजर आ रही हैं। अन्नादुरै जयंती पर 15 सितम्बर को जब हजारों मछुआरों ने अम्मा की इमदाद लेने से इंकार किया तो जयललिता का पारा सातवें आसमान पर ही पहुंच गया।

बताते हैं कि अम्मा ने अपने दूतों को मामले का पता लगाने रवाना किया। बाद में जो परिदृश्य अम्मा के सामने आया उससे अम्मा को लगने लगा कि अण्णा हजारे की अनशन और गांधीगिरी की संक्रामक बीमारी इतनी जल्दी उत्तर से दक्षिण तक कैसे पहुंच गई। अम्मा के दूतों ने उन्हें बताया कि जब मछुआरों से अनशन तोड़ने की बात कही गई तो उन्होंने कहा कि बात कहीं भी और कभी भी हो जाएगी। समस्या बातचीत की नही है पर अनशन जारी रहेगा।

दूतों ने अम्मा को बताया कि मछुआरे इस बात पर खफा हैं कि आखिर अम्मा ने विधानसभा में राजीव गांधी के हत्यारों की सजा माफ करवाने का प्रस्ताव कैसे कर दिया। इतना ही नहीं कुडनकूलम में प्रस्तावित परमाणु बिजलीघर परियोजना को जनता के विरोध के बाद भी रद्द क्यों नहीं किया जा रहा है। अम्मा के करीबी सूत्रों का दावा है कि अम्मा अब कांग्रेस के रणनतिक प्रबंधकों को पानी पी पी कर कोस रहीं हैं जिन्होंने अण्णा मामले में गलत कदम उठाए और अण्णा को रातों रात हीरो बनवा दिया। अण्णा की आग की चिंगारी कम समय में ही समूचे देश में फैल चुकी है।

आडवाणी जी का दिवा स्वप्न


आडवाणी जी का दिवा स्वप्न
(संजय दृष्टि)
आडवाणी जी मंझे हुए राजनैतिक खिलाड़ी की तरह यह सब जानते थे कि भाजपा बदले हुए राजनेतिक परिदृश्य में अकेले के दम पर सत्ता हासिल कर पाना लगभग असम्भव है। और इस उद्देश्य के लिए उन्हें विभिन्न दलों में स्वीकार्य होना उनकी रजनैतिक मजबूरी। बदलते हुए समय को भांपते हुए उन्होंने अपना केसरिया चोला उतारना उचित समझा और धर्मनिरपेक्ष छवि को बनाने के प्रयास में जुट गए। अब आडवाणी सर्वधर्म सम्भाव की सोच पर चलते हुए उन्होंने पार्टी की विचारधारा से अलग सोच बनाते हुए मुस्लिम तुष्टीकरण की राहत पकड़ी और अपने गृह नगर (पाकिस्तान) जाकर पाकिस्तान के प्रणेता मोहम्मद अली जिन्ना की मज़ार पर घड़ियाली आंसू बहाए। और अपने तथा कथित मुस्लिम भाईयों पर किये गये कृत पर अफसोस जताया। यह बात अलग है कि उनके इस कृत्य से संघ और पार्टी को नाराज ही नहीं किया बल्कि पार्टी अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष से भी हाथ धोना पड़ा और उसके बाद जो उनकी गत हुई सब जानते हैं।
अब आडवाणी जी नया शगूफा की देश में फैले भ्रष्टाचार के मुद्दे से वह इतने आहत हैं कि इसके लिए देशभर में भ्रष्टाचार के विरोध में यात्रा करेंगे और जनमानस को जागृत करेंगे। अब भला आडवाणी जी से पूछिए कि देश की जनता को अन्ना हजारे ने जागृत कर दिया है और देश की जनता इतनी मूर्ख नहीं है जितना की राजनेता लोग समझते हैं। अन्ना के आंदोलन ने नेताओं को दिखा दिया है कि जन जनता तक हो जाए तो सरकार को भी झुकना पड़ता है और समझौता करना पड़ता हे। अन्ना ने सरकार के खिलाफ एक माहौल बना दिया है जिसको कि आडवाणी जी भुनाना चाहते हैं। उन्हें शायद यह नहीं पता कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती।
आडवाणी जी की यात्रा से शायद संघ और उनकी पार्टी भी इत्तफाक नहीं रखती पर लगता है कि आडवाणी जी का अंतिम प्रयास है। जिसको सफल बनाने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकते हैं। यात्रा का समय, स्थान और मार्ग निश्चित करना अभी बाकी है। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आडवाणी जी यात्रा देश के उत्तर भाग से  शुरू करेंगे या दक्षिण से। दोनों ही तरफ भाजपा शासित राज्य हैं एक तरफ उत्तराखण्ड तो दूसरी तरफ कर्नाटक। दोनों ही राज्यों में अभी हाल ही में भाजपा ने नेतृत्व परिवर्तन किया है। कारण भ्रष्टाचार में लिप्त मुख्यमंत्री और उनकी सरकार। अभी इन राज्यों में मामला थमा नहीं है। और कर्नाटक ने तो परिस्थितियां पार्टी के काबू में नहीं हैं। आंध्र प्रदेश में रेड्डी बंधुओं के भाजपा से संबंध जगजाहिर हैं जिनके ऊपर भी कानूनी कार्रवाई चल रही है, तो क्या पार्टी नेतृत्व उनको इस यात्रा में सहयोग देगा। गुजरात में निर्भर करता है नरेन्द्र मोदी पर बदले हुए परिवेश में नरेन्द्र मोदी आडवाणी से राजनैतिक रूप में बड़े नेता बनकर उभर रहे हैं। अभी मोदी जी की उम्र भी उनके साथ है और उनका भविष्य भी उज्जवल है तो क्या नरेन्द्र मोदी इस यात्रा में आडवाणी जी का साथ देंगे। यह यक्ष प्रश्न है। इसी तरह मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की भी स्थितियां कुछ अलग हैं वहां भी शिवराज सिंह चौहान और रमन सिंह ने अपने-अपने तरीके से जनता में पैठ बना ली है और शायद ही वह इस यात्रा का मन से समर्थन करे।
देश अभी राम मंदिर की यात्रा के कटु अनुभव भी पूरी तरह उभर नहीं पाया है और   बदलते समय में जनता किसी भी प्रकार से राजनेताओं द्वारा किए जा रहे नित नये स्वांग में आने वाली नहीं है। उन्हें पता है कि किसी भी प्रकार की यात्राओं से समस्याओं का हल नहीं निकलने वाला है। समस्या जस की तस रहती है। असल में आडवाणी जी खुद भाजपा में अपनी जमीन तलाश रहे हैं। पार्टी में अगली पीढ़ी ने कमान सम्भाल ली है। अब आडवाणी जी अपनी अधूरी अभिलाषा को लेकर क्या करें ? उनकी जीवन भर की राजनीति बेकार होती नजर आ रही है। उनका प्रधानमंत्री बनने का दिव्य स्वप्न और तिरंगे झंडे में लपेटे जाने की अभिलाषा इस जन्म में तो पूरी होना असम्भव लगता है। सपने सपने रहते हैं हकीकत हकीकत होती है।