सूर्यनारायण के कहर में तड़पते प्यासे
पशु पक्षी!
(लिमटी खरे)
गर्मी इस साल भी अब पूरे शबाब पर है।
गर्मी के मौसम में वैसे भी पेयजल की मांग बढ़ जाती है। गर्मी के इस मौसम में आदमी
से लेकर जीव जंतु, पशु पक्षी भी छांव और पानी की तलाश में ही फिरते देखे जा सकते हैं। वन्यजीव
भी पानी की तलाश में ही जंगल से निकलकर बाहर आ जाते हैं। हाल ही में बखारी के पास
रामगढ़ में तेंदुआ घर में घुस गया था, वह भी शायद पानी की ही तलाश में जंगल से
निकलकर बाहर आया था। गांव देहात में इस तरह की घटनाएं घटना आम बात है।
सिवनी जिले विशेषकर जिला मुख्यालय मेें
मूक बधिर पशु पक्षी गर्मी में पानी के लिए तरसते देखे जा सकते हैं। आदि अनादि काल
की कथाओं में इस बात का उल्लेख मिलता है कि लोग अपने अपने घरों में या आसपास पानी
भण्डारण के लिए गड्ढ़े खोदा करते थे ताकि निस्तार का पानी वहां एकत्र हो जो पशु
पक्षियों के काम आए। कालांतर में यह गड्ढ़े मच्छरों के लिए उपजाऊ माहौल तैयार करने
लगे तब इन्हें बनाना बंद कर दिया गया।
सिवनी शहर में पशु पक्षियों के लिए पानी
मुहैया करवाना वैसे तो नगर पालिका परिषद के जिम्मे है पर वह अपने कर्तव्यों के
निर्वहन में पूरी तरह असफल ही नजर आ रहा है। जीव जंतुओं, पशु पक्षियों की रक्षा के लिए कृत
संकल्पित समाज सेवा का दावा करने वाली संस्थाएं भी मौन ही हैं। कुछ जगहों पर दयालु
प्रवृत्ति के लोगों ने पक्षियों के लिए अवश्य ही पानी की व्यवस्था की है। शहर में
कमोबेश हर पानी के स्त्रोत चाहे वह हेण्ड पंप हो या सार्वजनिक नल, उसके पास पशुओं की भीड़ देखी जा सकती है।
हर नागरिक के जेहन में यह बात अवश्य ही
कौंधती होगी कि सिवनी शहर में आवारा पशुओं को पकड़कर रखने के लिए बरघाट नाके के पास
एक कांजी हाउस बनाया गया था। वह स्थान आज किसके कब्जे में है, वहां कितने जानवरों को रखा गया है, इस बारे में शायद ही दावे के साथ कोई
बता सके। यह भी संभव है कि जिस वार्ड में यह है उस वार्ड के पार्षद को भी इसकी
जानकारी ना हो।
एक दशक पहले तक नगर पालिका परिषद द्वारा
भले ही रस्मअदायगी के लिए ही सही पर अपनी हाका गेंग को इस बात के लिए पाबंद किया
जाता था कि वह शहर में घूम रहे आवारा मवेशियों को पकड़कर उन्हें कांजी हाउस मंें
बंद करे। बाद में पशु के मालिक को जब वह उसे छुड़ाने आता था, तब समझाईश देकर और जुर्माना करके पशु
उसे सौंप दिया जाता था। अब यह सब कुछ समाप्त हो गया है। शहर भर में आवारा मवेशी या
तो सड़कों पर बैठे आवागमन बाधित करते नजर आते हैं या फिर किसी के घर की दहलान में
घुसकर प्लास्टिक की बाल्टियां तोड़ते नजर आते हैं।
शहर में इस समय गाय, बैल, गधे के अलावा भारी तादाद में स्वाईन
फ्लू के संवाहक सूअर घूमते दिख जाते हैं, जो नालियों में सनकर लोगों के घरों के
आंगन को गंदा करते नजर आते हैं। नगर पालिका परिषद के सफाई कर्मी कभी कभी नालियों
पर मेहरबान होकर कचरा निकलकर नालियों के किनारे रख दिया करते हैं। यह कचरा दो चार
दिन तक टेक्टर और ट्रली की रास्ता देखता रहता है। जब तक टेक्टर ट्राली आती है तब
तक सुअरों की फौज इस कचरे को दुबारा नाली में ही ढकेल देती है।
अभी प्रोढ़ होती पीढ़ी को याद होगा कि शहर
के अंदर ना जाने कितने स्थानों पर मवेशियों के लिए पीने के पानी की व्यवस्था हेतु
पक्के सीमेंटेड टांके बनवाए गए थे। इन टांकों में पालिका प्रशासन द्वारा हर रोज
पानी भरा जाता था ताकि मूक पशु पक्षी गर्मी में पानी के लिए भटकते ना रह जाएं।
लगता है कि आज के जनसेवक वाकई निष्ठुर हो चले हैं।
सिवनी की विधायिका श्रीमति नीता पटेरिया, केवलारी के विधायक हरवंश सिंह ठाकुर ने
नगर पालिका के साथ ही साथ ग्राम पंचायतों को पेयजल के लिए टेंकर्स दिए। इन टेंकर्स
की कीमतों में भारी अंतर है। क्या श्रीमति नीता पटेरिया, शशि ठाकुर, कमल मस्कोले और हरवंश सिंह ठाकुर ने अब
तक पशु पक्षियों के पानी के लिए कोई प्रयास किए हैं। आखिर ये जनसेवक पशु पक्षियों
की तरफ देखें भी क्यों? आखिर पशु पक्षी इन विधायकों के वोटर्स नहीं हैं।
जिला प्रशासन चाहे तो लोक स्वास्थ्य
यांत्रिकी विभाग को निर्देश दे कि शासन की योजना के तहत खुदने वाले नलकूपों के लिए
प्लेटफार्म बनाते समय पानी की निकासी के मध्य एक टांका अवश्य ही बनाए जिसमें हेण्ड
पंप से पानी भरने के दौरान व्यर्थ बहा पानी एकत्र हो सके। अगर सरकारी तौर पर
खुदवाए गए हेण्ड पंप के पास इस तरह के कुछ बड़े टांके बन जाएं तो निश्चित तौर पर
मूक मवेशियों को पानी का अच्छा साधन मुहैया हो सकता है। चूंकि इन हेण्ड पंप का
उपयोग रोजाना ही होता है, अतः व्यर्थ पानी रोजना ही टंकी से होकर बह जाएगा। इस तरह बहते पानी में
मच्छरों के पनपने की आशंका कम ही होती है।
पालिका प्रशासन द्वारा नगर के एतिहासिक दलसागर तालाब में फव्वारा चलाया जा रहा
है। इससे किसी की आंखों को सुख और सुकून मिल रहा है या नहीं यह तो नहीं कहा जा
सकता है, पर
कचहरी चौक पर स्थित उद्यान में फव्वारा कभी कभार चलता ही दिखता है। पालिका प्रशासन
अगर चाहे तो सीमेंट की कम उंचाई वाली टंकियां अथवा कुछ पक्के टांके तत्काल बनवाकर
उनको दलसागर, बुधवारी
तालाब से भर सकता है। यह काम एक छोटी मोटर लगाकर भी किया जा सकता है। इस काम में
दिन भर में महज एक ही टेंकर इन टांकों को भर सकता है। हमें यह कहने में कोई संकोच
नहीं है कि सकारात्मक सोच के अभाव में पशु पक्षियों की ओर देखने वाला कोई भी नहीं
है। अभी गर्मी का आगाज हुआ है। लगभग दो माह तक गर्मी पूरे शबाब पर होगी। इस
दर्मयान पशु पक्षियों के लिए पानी की व्यवस्था करना भी मनुष्य का ही काम है। वैसे
इंसानों को सिवनी में पीने का पानी नसीब नहीं है तो फिर भला जानवरों की कौन सोचे!