गुरुवार, 9 मई 2013

जिला चिकित्सालय बना चिकित्सकों की जागीर


जिला चिकित्सालय बना चिकित्सकों की जागीर

(श्रीकांत बर्वे)

सिवनी (साई)। अच्छी खासी, प्रतिमाह मोटी तनख्वाह सहित अन्य सुविधाओं के बावजूद जिला चिकित्सालय में पदस्थ डॉक्टर सरे-आम शासन और मुख्यमंत्री के दिशा निदेंशों की धज्जियॉं उड़ाने में कोई कोर कसर न छोड़, अपने-अपने निजि चिकित्सकीय व्यवसाय में डूबे हुए हैं।
 इंदिरा गॉंधी जिला चिकित्सालय में पदस्थ सभी सरकारी डॉक्टर अपनी-अपनी निजि क्लिनिक खोल-कर बैठे हैं। बताया जाता है कि ये डॉक्टर सरकारी अस्पताल में अपनी नौकरी की मात्र खानापूर्ति कर रहे हैं। सरकारी डॉक्टर अस्पताल के निर्धारित समय पर (विलंब से आकर), चंद मरीजों को आनन-फानन में देख, समय से पूर्व ही अपने गंतव्य निजि चिकित्सालयों में जा बैठते हैं। मरीजों की लंबी कतार बगैर जॉंच के खड़ी की खड़ी रह जाती है। दर्द और मर्ज से परेशान ये मरीज मजबूरन सरकारी डॉक्टरों की निजि क्लिनिकों का रूख करते है। निजि क्लिीनिकों में सरकारी डॉक्टरों द्वारा मनमानी फीस ली जाती है, जो प्रत्येक मरीज- ‘‘हाथ पकड़ आला लगाने‘‘ की 100 रूपये से लेकर 150 रूपये तक होती है। यह रकम आम मजदूर की शासन द्वारा प्रतिदिन हाड़-तोड़ मेहनत के लिए निर्धारित राशि के बराबर है। कहॉं पूरे दिन की मजदूरी और कहॉं एक मरीज के हाथ को छूने मात्र की फीस!!?
जिला चिकित्सालय के वर्षों से यहॉं पदस्थ चिकित्सक एक समानांतर चिकित्सा व्यवस्था बना चुके हैं। बताया जाता है कि अपने रसूख के बल पर वरिष्ठ डॉक्टर जिनकी ड्यूटी वार्डाें में होती है, वे वार्डों को जूनियर डॉक्टरों के हवाले छोड़ चले जाते हैं।
निजि चिकित्सा व्यवसाय में आकंठ डूबे सरकारी डॉक्टरों ने अपने क्लिनिकों के साथ निजि तौर पर अपनी पैथॉलाजी भी खोल रखी है, जहॉं मंहगी दरों पर खून, थूक, पेशाब आदि की जांच की जाती है। कुल मिलाकर देखा जाए तो इस तरह से ऐसे हर डॉक्टर की प्रतिदिन की अघोषित आय 15 से 20 हजार प्रतिदिन आंकी जा रही है।
प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह लाख घोषणाऐं करें, स्वास्थ्य सुविधा पूरी तरह से निःशुल्क घोषित करंे, पर वह सब उक्त माहौल के चलते चरमराती देखी जा रही है।

नशैलों के लिए जुहू बीच बना दलसागर!


नशैलों के लिए जुहू बीच बना दलसागर!

(शरद खरे)

सिवनी (साई)। दलसागर का सौंदर्यीकरण नगर पालिका द्वारा अवश्य कराया जा रहा है, पर नगर के सुबह-शाम से देर रात के नशेलचियों को क्या कहा जा सकता है, जो अपने शौक के मद्देनजर इसे मुंबई का जुहू बीच बनाने पर आमदा हैं। मुंबई, गोआ न जा सकें तो क्या दलसागर के सुरम्य तटों में इसका अनुभव तो किया ही जा सकता है। इसी सोच को ये अंजाम देने पर उतारू हैं।
नगर के हृदय स्थल पर मौजूद, गौड़ राजा दलपत शाह के ऐतिहासिक राजकाल में निर्मित यह तालाब दलसागर न केवल अपने आकार-प्रकार के चलते बल्कि जैव विविधताओं की मौजूदगी के कारण सिवनी नगर की पहचान माना जाता है। समय पर जिले में पदस्थ रहे जिला कलेक्टरों ने इसके सौंदर्य को संचित करने का प्रयास भी किया है। तालाब के सौंदर्यीकरण, गहरीकरण बीच में मौजूद टापू के विकास, नौकाविहार आदि की सुविधाऐं भी शासन स्तर और जनसहयोग से मुहैय्या कराई गई। इन सभी कार्यों के प्रयासों पर अमल भी हुआ, परन्तु रख-रखाव व निगरानी की मुकम्मल व्यवस्था न होने के कारण, नतीजा वही ‘‘ढाक के तीन पात‘‘। व्यवस्था परिवर्तन होते ही फिर से अव्यवस्था अपने ढर्रे पर आ जाती है। दलसागर- गाड़ियां धोने, धोबी घाट और शौचालय में बदल कर रह जाता है।
एक बार फिर नगर पालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी और जिला प्रशासन के तालमेल से दलसागर के सौंदर्यीकरण का बीड़ा उठाया गया है। पूर्व से प्रस्तावित चारों ओर वाकर्स-वे, फव्वारे, लाईटिंग, और बाउण्ड्री दीवार का निर्माण प्रगति पर है। इन सब सुविधाओं का लाभ भले ही शहर के नागरिक नहीं उठा रहे हैं, पर इसका फायदा मयकश यानि शराब के शौकीन खुले आम बेखौफ होकर उठाते देखे जा सकते हैं। अल-सुबह या सांझ ढले से देर रात्रि, दलसागर के विभिन्न घाटों पर इनका जमावड़ा देखा जा सकता है। इस झील के किनारों पर देशी और विदेशी शराब की दुकानें हैं। हालांकि इस शराब सेवन के लिए अहाते बने हैं, पर शराब खोर अपनी फितरत को प्राकृतिक आनंद देने के चलते और उमस भरी गर्मी से निजात पाने खुली और ठण्डी हवा के झोंको का आनंद लेने दलसागर के तीरे, खुले में बैठ, शराबखोरी करते देखे जा सकते हैं।
दल सागर के खुले हुए और लहरों के थपेड़े वाले खुली ठण्डी हवा के किनारे मुंबई के जुहूबीच या गोवा के समुद्री तटों का नजारा दे स्वास्थ्य के लिए सुबह-शाम सैर करने वालों से अधिक इन जुनूनी मयकशों को अपनी ओर अधिक आकर्षित कर रहे हैं। वैसे समझा जा सकता है कि ऐसे माहौल में कौन सभ्य शहरी इसका उपयोग करना चाहेगा।
सौंदर्यीकरण और नगर विकास के लिए संकल्पित पालिका अध्यक्ष, प्रशासन और पुलिस से यह अपेक्षा व्यक्त की जाती है कि वह ‘‘दलसागर ओपन बार‘‘ की ओर संज्ञान ले अन्यथा इनकी सारी कवायद व्यर्थ ही साबित होगी.....

गुड़िया के मामले में हुकुम का मौन आश्चर्यजनक!


अपराधियों को प्रश्रय . . . 2

गुड़िया के मामले में हुकुम का मौन आश्चर्यजनक!

कहीं झाबुआ पावर प्रबंधन को बचाने में तो नहीं लगे हैं कुंवर शक्ति सिंह!

(पीयूष भार्गव)

सिवनी (साई)। सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य विकासखण्ड घंसौर से निकलकर जिला पंचायत के उपाध्यक्ष का सफर तय करने वाले कुंवर शक्ति सिंह का घंसौर में हुए गुड़िया रेप कांड में चुप रहना अनेक आश्चर्य को जन्म दे रहा है। क्षेत्र में हुकुम के नाम से मशहूर कुंवर शक्ति सिंह का दबदबा मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड में अच्छा खासा बना हुआ है।
ज्ञातव्य है कि गत 17 अप्रेल को घंसौर की एक दुधमुंही चार साल की बच्ची के साथ मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के वेल्डर फिरोज ने दुष्कर्म किया था। मामला दबा रहा पर जब समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के जरिए मामला देश की राजधानी दिल्ली के प्रमुख समाचार पत्रों की वेब साईट्स पर उछला तब जाकर प्रशासन ने इस पर संज्ञान लिया।
आनन फानन उसे जबलपुर फिर एयर एंबूलेंस से नागपुर ले जाया गया। गुडिया के मामले में मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड ने काफी लापरवाही बरती, उसके इलाज की बात भी जिला प्रशासन द्वारा इन्हीं के द्वारा उठाने की बात हुई, अंततः गुड़िया को बचाया नहीं जा सका।
संयंत्र प्रबंधन के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि हुकुम की बात संयंत्र प्रबंधन ने अब तक कभी नहीं काटी है। इसका कारण हुकुम का क्षेत्र और सिवनी जिले के मीडिया पर खासा प्रभाव ही माना जा सकता है। सूत्रों की मानें तो अगर कुंवर शक्ति सिंह चाहते तो वे संयंत्र प्रबंधन पर दबाव बनवाकर गुड़िया को संयंत्र के खर्च ही जबलपुर से एयर एंबूलेंस के माध्यम से सीधे दिल्ली ले जा सकते थे, जहां उसका बेहतर इलाज हो सकता था।
सूत्रों का कहना हैै कि वस्तुतः हुकुम के द्वारा एसा कोई प्रयास नहीं किया गया कि गुड़िया को किसी तरह की मदद मिल सके। वहीं नागपुर से समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया ब्यूरो से आशीष कौशल ने अवश्य बताया कि नागपुर के केयर अस्पताल में भर्ती गुड़िया को देखने कुंवर शक्ति सिंह अवश्य गए थे।
सूत्रों का यह भी कहना है कि चूंकि संयंत्र प्रबंधन को यह भरोसा है कि क्षेत्र में आदिवासियों के साथ संयंत्र प्रबंधन ने जो दोयम दर्जे का व्यवहार किया है उसे दबाने में हुकुम सक्षम हैं और सिवनी के मीडिया पर उनकी पकड़ के चलते कहीं भी इन बातों को तवज्जो नहीं मिलेगी अतः संयंत्र का अधिकांश काम हुकुम के इशारों पर ही होता है।
गुड़िया के मसले में कुंवर शक्ति सिंह का ना तो कोई आधिकारिक बयान आया और ना ही उनके प्रयासों को मीडिया में भी स्थान ही मिला। शक्ति सिंह के करीबी सूत्रों ने साई न्यूज को बताया कि अपना मौन वृत तोड़कर शक्ति सिंह 6 मई नहीं 19 अप्रेल को ही घंसौर वापस लौट आए थे।

लाईन बदलने के नाम पर करोड़ों के वारे न्यारे!


लाईन बदलने के नाम पर करोड़ों के वारे न्यारे!

पुरानी सर्विस लाईन साथ ले जा रहे हैं कारिंदे: अर्थिंग भी नहीं डल रही करीने से

(संजीव प्रताप सिंह)

सिवनी (साई)। सिवनी शहर में बिजली के मीटर बाहर करने और नई सर्विस लाईन डालने के नाम पर करोड़ों की चपत सीधे सीधे मध्य प्रदेश विद्युत मण्डल को लगाई जा रही है। विद्युत मण्डल ने इस काम के लिए महज एक नोडल अधिकारी तैनात किया है, जिसके पास ना लाईन स्टाफ है और ना ही कोई अन्य सहायक। इन परिस्थितियों में वह अकेला घरों घर जाकर यह सुनिश्चित करने से रहा कि काम विद्युत मण्डल के मापदण्डों के हिसाब से हुआ अथवा नहीं।
समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया की टीम को शहरवासियों ने बताया कि घरों में मीटर बाहर करवाने और सर्विस लाईन का काम चल रहा है। लोगों की शिकायत है कि इस काम को अंजाम देने वाले कारीगरों द्वारा अनेक घरों में नई सर्विस लाईन को इस तरह डाला गया है कि वह घरों में दीवाली दशहरे की झालरों के मानिंद दिख रही है।
लोगों की यह शिकायत आम हो गई है कि सर्विस लाईन बदलने पर पुरानी सर्विस लाईन को इस काम को अंजाम देने वाले अपने ही साथ ले जा रहे हैं। ज्ञातव्य है कि जब बिजली का कनेक्शन लिया जाता है तब सर्विस लाईन खरीदकर लाने की जवाबदेही उपभोक्ता पर ही आहूत होती है। इस सर्विस लाईन का क्या उपयोग किया जा रहा है इस बारे में कहा नहीं जा सकता है। कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि पुरानी सर्विस लाईन को इस काम को अंजाम देने वाले ठेकेदरों द्वारा बेच दिया जा रहा है।
वहीं, दूसरी ओर नई सर्विस लाईन के डालने पर अर्थिंग का काम भी मानक आधार पर नहीं किया जा रहा है। अनेक उपभोक्ताओं की शिकायत है कि अर्थिंग में डलने वाली तांबे की तार, कोयला, नमक आदि भी उसमें नहीं डलवाया जा रहा है। अर्थिंग के नाम पर महज खाना पूरी के लिए एक तार जमीन में एकाध फिट ही गाड़ा जा रहा है।
मध्य प्रदेश विद्युत मण्डल के संभागीय यंत्री कार्यालय के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि इस काम को अंजाम देने के लिए डीई कार्यालय में एक नोडल अधिकारी बनाया गया है। श्री मण्डलोई को इसका प्रभार दिया गया है। सूत्रों की मानें तो उनके पास ना तो कोई लाईनमेन है और ना ही अन्य कोई स्टाफ।
सूत्रों ने साई न्यूज को आगे बताया कि सिवनी शहर के लगभग इक्कीस हजार उपभोक्ताओं में से सोलह हजार उपभोक्ताओं को आरएपी डीआरपी योजना के तहत सर्विस लाईन बदलने और मीटर बाहर करने के लिए चिन्हित किया गया है। इस काम का ठेका गुजरात के अहमदाबाद की मेसर्स मांटे कार्लो को प्रदाय किया गया है।
सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को यह भी बताया कि इस काम को अंजाम देने के लिए सर्विस लाईन की मद में 1200 रूपए तथा मीटर बाहर करवाने की मद में आठ सौ रूपए प्रतिमीटर का व्यय रखा गया है। लगभग दो हजार रूपए हर मीटर के लिए विद्युत मण्डल द्वारा मेसर्स मांटे कार्लो को प्रदाय किए जा रहे हैं।
सोलह हजार मीटर के लिए विद्युत मण्डल द्वारा दो हजार रूपए प्रति मीटर की दर से लगभग तीन करोड़ बीस लाख रूपए की राशि खर्च की जा रही है। कंगाल विद्युत मण्डल यह राशि निश्चित तौर पर उपभोक्ता की जेब से ही निकालेगा, पर इस खेल में मालामाल हो सकते हैं, गुजरात के मेसर्स मांटे कार्लो और विभाग के अफसर!

सूर्यनारायण के कहर में तड़पते प्यासे पशु पक्षी!


सूर्यनारायण के कहर में तड़पते प्यासे पशु पक्षी!

(लिमटी खरे)

गर्मी इस साल भी अब पूरे शबाब पर है। गर्मी के मौसम में वैसे भी पेयजल की मांग बढ़ जाती है। गर्मी के इस मौसम में आदमी से लेकर जीव जंतु, पशु पक्षी भी छांव और पानी की तलाश में ही फिरते देखे जा सकते हैं। वन्यजीव भी पानी की तलाश में ही जंगल से निकलकर बाहर आ जाते हैं। हाल ही में बखारी के पास रामगढ़ में तेंदुआ घर में घुस गया था, वह भी शायद पानी की ही तलाश में जंगल से निकलकर बाहर आया था। गांव देहात में इस तरह की घटनाएं घटना आम बात है।
सिवनी जिले विशेषकर जिला मुख्यालय मेें मूक बधिर पशु पक्षी गर्मी में पानी के लिए तरसते देखे जा सकते हैं। आदि अनादि काल की कथाओं में इस बात का उल्लेख मिलता है कि लोग अपने अपने घरों में या आसपास पानी भण्डारण के लिए गड्ढ़े खोदा करते थे ताकि निस्तार का पानी वहां एकत्र हो जो पशु पक्षियों के काम आए। कालांतर में यह गड्ढ़े मच्छरों के लिए उपजाऊ माहौल तैयार करने लगे तब इन्हें बनाना बंद कर दिया गया।
सिवनी शहर में पशु पक्षियों के लिए पानी मुहैया करवाना वैसे तो नगर पालिका परिषद के जिम्मे है पर वह अपने कर्तव्यों के निर्वहन में पूरी तरह असफल ही नजर आ रहा है। जीव जंतुओं, पशु पक्षियों की रक्षा के लिए कृत संकल्पित समाज सेवा का दावा करने वाली संस्थाएं भी मौन ही हैं। कुछ जगहों पर दयालु प्रवृत्ति के लोगों ने पक्षियों के लिए अवश्य ही पानी की व्यवस्था की है। शहर में कमोबेश हर पानी के स्त्रोत चाहे वह हेण्ड पंप हो या सार्वजनिक नल, उसके पास पशुओं की भीड़ देखी जा सकती है।
हर नागरिक के जेहन में यह बात अवश्य ही कौंधती होगी कि सिवनी शहर में आवारा पशुओं को पकड़कर रखने के लिए बरघाट नाके के पास एक कांजी हाउस बनाया गया था। वह स्थान आज किसके कब्जे में है, वहां कितने जानवरों को रखा गया है, इस बारे में शायद ही दावे के साथ कोई बता सके। यह भी संभव है कि जिस वार्ड में यह है उस वार्ड के पार्षद को भी इसकी जानकारी ना हो।
एक दशक पहले तक नगर पालिका परिषद द्वारा भले ही रस्मअदायगी के लिए ही सही पर अपनी हाका गेंग को इस बात के लिए पाबंद किया जाता था कि वह शहर में घूम रहे आवारा मवेशियों को पकड़कर उन्हें कांजी हाउस मंें बंद करे। बाद में पशु के मालिक को जब वह उसे छुड़ाने आता था, तब समझाईश देकर और जुर्माना करके पशु उसे सौंप दिया जाता था। अब यह सब कुछ समाप्त हो गया है। शहर भर में आवारा मवेशी या तो सड़कों पर बैठे आवागमन बाधित करते नजर आते हैं या फिर किसी के घर की दहलान में घुसकर प्लास्टिक की बाल्टियां तोड़ते नजर आते हैं।
शहर में इस समय गाय, बैल, गधे के अलावा भारी तादाद में स्वाईन फ्लू के संवाहक सूअर घूमते दिख जाते हैं, जो नालियों में सनकर लोगों के घरों के आंगन को गंदा करते नजर आते हैं। नगर पालिका परिषद के सफाई कर्मी कभी कभी नालियों पर मेहरबान होकर कचरा निकलकर नालियों के किनारे रख दिया करते हैं। यह कचरा दो चार दिन तक टेक्टर और ट्रली की रास्ता देखता रहता है। जब तक टेक्टर ट्राली आती है तब तक सुअरों की फौज इस कचरे को दुबारा नाली में ही ढकेल देती है।
अभी प्रोढ़ होती पीढ़ी को याद होगा कि शहर के अंदर ना जाने कितने स्थानों पर मवेशियों के लिए पीने के पानी की व्यवस्था हेतु पक्के सीमेंटेड टांके बनवाए गए थे। इन टांकों में पालिका प्रशासन द्वारा हर रोज पानी भरा जाता था ताकि मूक पशु पक्षी गर्मी में पानी के लिए भटकते ना रह जाएं। लगता है कि आज के जनसेवक वाकई निष्ठुर हो चले हैं।
सिवनी की विधायिका श्रीमति नीता पटेरिया, केवलारी के विधायक हरवंश सिंह ठाकुर ने नगर पालिका के साथ ही साथ ग्राम पंचायतों को पेयजल के लिए टेंकर्स दिए। इन टेंकर्स की कीमतों में भारी अंतर है। क्या श्रीमति नीता पटेरिया, शशि ठाकुर, कमल मस्कोले और हरवंश सिंह ठाकुर ने अब तक पशु पक्षियों के पानी के लिए कोई प्रयास किए हैं। आखिर ये जनसेवक पशु पक्षियों की तरफ देखें भी क्यों? आखिर पशु पक्षी इन विधायकों के वोटर्स नहीं हैं।
जिला प्रशासन चाहे तो लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग को निर्देश दे कि शासन की योजना के तहत खुदने वाले नलकूपों के लिए प्लेटफार्म बनाते समय पानी की निकासी के मध्य एक टांका अवश्य ही बनाए जिसमें हेण्ड पंप से पानी भरने के दौरान व्यर्थ बहा पानी एकत्र हो सके। अगर सरकारी तौर पर खुदवाए गए हेण्ड पंप के पास इस तरह के कुछ बड़े टांके बन जाएं तो निश्चित तौर पर मूक मवेशियों को पानी का अच्छा साधन मुहैया हो सकता है। चूंकि इन हेण्ड पंप का उपयोग रोजाना ही होता है, अतः व्यर्थ पानी रोजना ही टंकी से होकर बह जाएगा। इस तरह बहते पानी में मच्छरों के पनपने की आशंका कम ही होती है।
पालिका प्रशासन द्वारा नगर के एतिहासिक दलसागर तालाब में फव्वारा चलाया जा रहा है। इससे किसी की आंखों को सुख और सुकून मिल रहा है या नहीं यह तो नहीं कहा जा सकता है, पर कचहरी चौक पर स्थित उद्यान में फव्वारा कभी कभार चलता ही दिखता है। पालिका प्रशासन अगर चाहे तो सीमेंट की कम उंचाई वाली टंकियां अथवा कुछ पक्के टांके तत्काल बनवाकर उनको दलसागर, बुधवारी तालाब से भर सकता है। यह काम एक छोटी मोटर लगाकर भी किया जा सकता है। इस काम में दिन भर में महज एक ही टेंकर इन टांकों को भर सकता है। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि सकारात्मक सोच के अभाव में पशु पक्षियों की ओर देखने वाला कोई भी नहीं है। अभी गर्मी का आगाज हुआ है। लगभग दो माह तक गर्मी पूरे शबाब पर होगी। इस दर्मयान पशु पक्षियों के लिए पानी की व्यवस्था करना भी मनुष्य का ही काम है। वैसे इंसानों को सिवनी में पीने का पानी नसीब नहीं है तो फिर भला जानवरों की कौन सोचे!