मंगलवार, 11 जनवरी 2011

महंगाई पर प्रधानमंत्री की बैठक बेनतीजा

महंगाई पर प्रधानमंत्री की बैठक बेनतीजा

नई दिल्ली (ब्यूरो)। प्याज समेत अन्य खाद्य पदार्थाे की कीमतों के आसमान छूने से चिंतित प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा महंगाई का समाधान खोजने के लिए मंगलवार बुलाई गई उच्च स्तरीय बैठक बेनतीजा रही। बुधवार को बैठक फिर होने की संभावना है। करीब दो घंटे चली इस बैठक में महंगाई पर अंकुष लगाने के विभिन्न उपायों पर विचार विमर्ष किया गया।

बैठक में विŸा मंत्री प्रणव मुखर्जी, गृह मंत्री पी चिदंबरम, खाद्य मंत्री षरद पवार और योजना आयोग के अध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया मौजूद थे। उद्योग मंडलों के साथ पहले से निर्धारित बजट पूर्वक बैठक में भाग लेने के लिए श्री मुखर्जी बैठक के बीच में ही चले गए थे।

पामोलिन तेल घोटाले में सुनवाई को अनुमति

पामोलिन तेल घोटाले में सुनवाई को अनुमति

नई दिल्ली (ब्यूरो)। केेंद्रीय सतर्कता आयुक्त के गले की फांस बने करोड़ों रुपये के पामोलिन तेल घोटाला मामले में आगे की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार को अनुमति दे दी। इस मामले में मुख्य सतर्कता आयुक्त पी जे थॉमस और तत्कालीन मुख्यमंत्री के करूणाकरन कथित तौर पर लिप्त बताए जाते हैं।

न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति आर एम लोढ़ा की पीठ ने करूणाकरन की अपील को उनके निधन के मद्देनजर समाप्त मानते हुए केरल सरकार को मामले की सुनवाई करने की अनुमति दे दी। करूणाकरन का गत 23 दिसंबर को निधन हो गया था। केरल सरकार ने पूर्व में सुप्रीम कोर्ट से पामोलिन तेल आयात मामले में सुनवाई पर लगी रोक वापस लेने के लिए याचिका दायर की थी। इस मामले में थॉमस एक आरोपी हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने तीन अगस्त 2007 को इस मामले की केरल में सीबीआई की एक अदालत में चल रही सुनवाई पर रोक लगा दी थी। पामोलिन आयात मामले में आठ आरोपी हैं। 2000 में करूणाकरन और थॉमस सहित राज्य सरकार के सात अन्य अधिकारियों के खिलाफ मामले में आरोपपत्र दाखिल किया गया था। थॉमस उन दिनों केरल में खाद्य सचिव थे।

पीएम के गले में अजगर की तरह लिपटे हैं थामस

राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरूण जेतली ने कहा कि पामोलिन आयात घोटाले के आरोपी पीसी थामस को प्रधानमंत्री ने केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के पद पर नियुक्ति षर्मनाक है। जेटली ने कहा कि आज यह स्थिति है कि वर्तमान सीवीसी प्रधानमंत्री के गले में अजगर की तरह लिपटे हुए हैं। प्रधानमंत्री के बारे लोग कहते हैं कि वह अर्थषाóी हैं और ईमानदार हैं, लेकिन मनमोहन सिंह विचित्र प्रकार के ईमानदार व्यक्ति हैं, जो आजादी के बाद देष की सबसे भ्रश्ट सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं।

आखिर क्‍या है मिशन सिब्‍बल

सिब्बल सही या सोनिया!

(लिमटी खरे)

कांग्रेस की अंदरूनी संस्कृति बड़ी ही अजीब है। कांग्रेस अध्यक्ष अपना राग मल्हार गाती हैं तो उनके कुनबे के अन्य लोग अपनी ढपली अपना राग बजाते रहते हैं। कहीं किसी पर कोई नियंत्रण नहीं है। कांग्रेस की नीति रीति और कांग्रेस के नताओं के बयान में जमीन आसमान का अंतर होता है। जब विवाद बढ़ता है तब कांग्रेस के प्रवक्ता अपना रटा रटाया जुमला ‘‘यह उनके निजी विचार हो सकते हैं।‘‘ कहकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। देखा जाए तो हर सियासी दल के पास अपने प्रवक्ताओं की फौज होती है, प्रवक्तओं के अक्षम होने पर दीगर नेताओं द्वारा बयानबाजी की जाना आम बात है। सवाल यह है कि अगर प्रवक्ता अक्षम है तो उन्हें शोभा की सुपारी बनाकर बिठाने का क्या तात्पर्य हो सकता है?

हाल ही में कांग्रेस के महासचिव राजा दिग्विजय सिंह ने महाराष्ट्र के एटीएस चीफ हेमंत करकरे से बातचीत पर सियासत गर्मा दी। कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता इस मामले में अपना मुंह सिले रहे। हायतौबा मचने पर उन्होंने गेेंद एक बार फिर दिग्गी राजा के पाले में ढकेलकर वह सारी बयानबाजी को उनके नितांत निजी विचार बता डाले। जब दिग्गी राजा से पूछा गया कि उन्होंने करकरे से बातचीत के सबूत देने के लिए कांग्रेस मुख्यालय के बजाए कांस्टीट्यूशनल भवन का उपयोग क्यों किया? के जवाब में वे बोले क्या मैं कांग्रेसी नहीं हूं? अरे जनाब आपको कांग्रेसी मानने से इंकार करने की हिमाकत कौन कर सकता है। किन्तु कांग्रेस के उन प्रवक्ताओं को कौन समझाए जो कहे जा रहे हैं कि ये विचार कांग्रेस के नहीं दिग्विजय सिंह के निजी हैं।

बहरहाल अभी वह मामला ठंडा भी नहीं हुआ कि मानव संसाधन मंत्रालय का भारी भरकम प्रभार संभाले कपिल सिब्बल ने संचार मंत्री के बतौर नियंत्रक महालेख परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट को ही सिरे से खारिज कर दिया है। कितने आश्चर्य की बात है कि भारत गणराज्य के एक जिम्मेदार मंत्री होते हुए कपिल सिब्बल यह कह रहे हैं कि टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले में 1.76 लाख करोड़ रूपए का नुकसान नहीं हुआ है। वे कहते हैं कि सरकारी खजाने को एक पैसे का भी नुकसान नहीं झेलना पड़ा है।

अगर सिब्बल सही हैं, तो फिर पूर्व दूरसंचार मंत्री ए.राजा को अपने पद से त्यागपत्र क्यों देना पड़ा और कपिल सिब्बल को दूरसंचार विभाग का नया मंत्री क्यों बनाया गया? क्या यह सच नहीं है कि राजा ने 2008 में नियमों को बलाए ताक रख 2001 की दरों पर 122 कंपनियों को लाईसेंस प्रदाय किया था? इसमें आरकाम, टाटा सहित जीएसएम आपरेटर्स को 6.2 मेगाहर्टज से अधिक का स्पेक्ट्रम उपलब्ध कराया गया था।

सिब्बल उवाच का सबसे अधिक असर वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी पर पड़ेगा जो इन दिनों बजट सत्र के दौरान संसद को चलने देने के लिए विपक्ष के साथ मान मनौअल में जुटे हैं। विपक्ष के तरकश में सिब्बल का छोड़ा नया तीर आ चुका है। विपक्ष मांग कर सकता है कि जब सरकार खुद परोक्ष तौर पर मान चुकी है कि इसमें घपला हुआ है, तब सिब्बल की नई तान पर उनका त्यागपत्र लिया जाए।

अब तो सरकार और सोनिया गांधी की नीयत पर ही संदेह होना स्वाभाविक ही है। लागों को लग रहा था कि भले ही सरकार द्वारा जेपीसी की मांग स्वीकार न की जाए, पर इस मामले की ईमानदारी से जांच अवश्य ही करवाई जाएगी। इसी तारतम्य में जो भी तथ्य उभरकर सामने आएंगे उन्हें सरकार जनता के समक्ष रखेगी, किन्तु अब सिब्बल के इस बयान से तो लगने लगा है कि मानो कुछ हुआ ही नहीं है, बेचारे ए.राजा की नौकरी मुनाफे में ही चली गई।

वैसे कपिल सिब्बल का बयान दूरसंचार मंत्री की हैसियत से आया है, और उन्होंने कैग के प्रतिवेदन पर उंगली उठाई है। अगर सिब्बल सही हैं, तो फिर कैग जैसा ईमानदार संगठन भी भ्रष्टाचार के दलदल का एक नगीना बन गया है, और अगर एसा है तो फिर कैग की विश्वसनीयता ही नहीं रह जाती है। प्रधानमंत्री को चाहिए कि इसकी जांच अवश्य करवाएं वह भी टाईम फ्रेम में बांधकर। जांच में जो भी गलत साबित हो उसे जनता के सामने लाया जाए बिना किसी राजनैतिक नफा नुकसान को सोचे हुए, क्योंकि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ही इकलौती एसी संस्था बची है, जिस पर लोगों का भरोसा अभी तक कायम है। सीबीआई और केंद्रीय विजलेंस की कारगुजारियों से तो लोगों के मानस पटल पर इनका होना न होना बराबर ही माना जा रहा है। वैसे भी जब भारत गणराज्य के मंत्री जैसे जिम्मेदार पद पर बैठा शख्स जब संवैधानिक संस्थाओं की ओर उंगली उठाएगा तो इससे इन संस्थाओं की साख में इजाफा तो होने से रहा।

हो सकता है कि सिब्बल को यह मशविरा दिया गया हो कि तमिलनाडू में जल्द ही विधानसभा चुनाव है और टूजी का मसला वहां स्थानीय स्तर पर उठापटक कर सकता हैै, इसलिए इस मामले के पटाक्षेप का प्रयास किया जाए। डीएमके के दबाव में आकर कांग्रेस किसी भी स्तर पर आ सकती है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है, किन्तु कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि गठबंधन धर्म के पहले कांग्रेस का राजधर्म है, जिसकी तह में देश की सेवा करना वह भी सच्चाई और ईमानदारी के साथ है।

पिछले साल ही स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से भारत के वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह ने कामन वेल्थ गेम्स के बारे में कहा था कि इसे राष्ट्रीय पर्व के तौर पर लेना चाहिए, प्रधानमंत्री बेहतरीन छवि के कारण उनकी अपील के बाद इसमें हुए भ्रष्टाचार पर चीत्कार कुछ कम हुआ। लोगों को लगा कि जल्द ही जांच हो जाएगी, किन्तु अब लोगों को लगने लगा है कि प्रधानमंत्री की अपील महज दिखावा ही थी। कांग्रेस को लगने लगा है कि देश का मीडिया और अन्य सियासी दल उनकी छवि के चलते खामोश रह सकते हैं। प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह को यह नहीं भूलना चाहिए कि देश सब कुछ बर्दाश्त कर सकता है किन्तु उनकी छवि की कीमत पर भ्रष्टाचार, अनाचार, दुराचार कतई बर्दाश्त नहीं कर सकता है।

पिछले कुछ माहों से कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी भी भ्रष्टाचार पर काफी संजीदा प्रतीत हो रही हैं। बार बार वे भ्रष्टाचार पर बोलती नजर आ रही हैं। सोनिया के इस स्वरूप से देश की जनता के मन में एक बार आस जगी थी कि हो सकता है कि सवा सौ साल पुराने सियासी दल द्वारा देश को आज आकंठ भ्रष्टाचार में दलदल में फंसाने के बाद उसका ही एक अध्यक्ष रहनुमा बनकर आया है, जो देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करा सकेंगी।

तीन चार सालों में सोनिया गांधी ने युवराज राहुल गांधी के साथ सादगी का प्रहसन किया। चाटुकार मीडिया ने उसे खूब हवा दी। कम ही ईमानदार पत्रकार होंगे जिन्होंने इस बात को रेखांकित किया होगा कि दिल्ली से मुंबई की सोनिया गांधी की यात्रा इकानामिक क्लास में अवश्य ही हुई किन्तु उनके लिए बीस सीट खाली रखी गईं थीं। इन बीस सीट का भोगमान किसने भोगा, यह बात आज भी किसी को नहीं पता।

इसी तरह युवराज राहुल गांधी ने शताब्दी में यात्रा की। यात्रा के लिए पूरी की पूरी एक बोगी बुक करवा दी गई थी। आलम यह था कि उसके आगे और पीछे के डिब्बे वाले यात्री एक दूसरे के डिब्बे में नहीं जा पा रहे थे। यह थी कांग्रेस की नजर में देश के भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी की सादगी की नौटंकी। मंदी के दौर में मंत्रियों ने पांच सितारा होटलों में रातें रंगीन की, वह भी सरकारी खर्चे पर। न तो प्रधानमंत्री डॉ.एम.एम.सिंह, न सोनिया गांधी, न वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने आज तक यह पता कर जनता को बताने का प्रयास किया है कि उन होटलों का बिल किस मद से किसने भुगतान किया है?

कुल मिलाकर नब्बे के दशक की गूंगी गुडिया कही जाने वाली कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी को भी सियासी कीचड़ के रंगे हुए सियारों ने अपनी तरह ही बना लिया है। रही राहुल गांधी की बात तो राहुल का भी इसी दिशा में प्रशिक्षण जारी है। सच ही कहा है किसी ने देश में जनसेवक खाएंगे मोती और उन्हें चुनने वाली जनता खाएगी दाना।

प्रियंका की नजरों से सोनिया देख रहीं हैं सियासत

मतलब प्रियंका हैं सोनिया की असली सलाहकार

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी के सलाहकारों में नंबर वन अहमद पटेल हैं, या महासचिव दिग्विजय सिंह? इस प्रश्न पर समूचा देश उलझा हुआ है, किन्तु हकीकत यह है कि सोनिया गांधी उसी रंग से सियासी दुनिया देख रही हैं, जिस रंग का चश्मा उनकी पुत्री प्रियंका वढ़ेरा उन्हें लगा रही हैं।

कांग्रेस की सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ के उच्च पदस्थ सूत्रों का दावा है कि सोनिया गांधी के लिए सियासी बिछात, जमीनी हकीकत और नेताओं की पोल पट्टी कोई और नहीं उनकी ही अपनी बेटी प्रियंका उपलब्ध कराती हैं। कल तक सियासी गलियारों में चर्चाओं में रहने वाली प्रियंका वढ़ेरा ने एकाएक अपने आप को समेट लिया है। अब वे अपने पति राबर्ट वढ़ेरा और बच्चों के साथ सुर्खियों से दूर ही रह रही हैं।

कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर कहा कि प्रियंका द्वारा निजी गुप्तचर एजेंसियों के माध्यम से केंद्रीय मंत्रियों, सूबों में कांग्रेस की इकाईयों के बारे में मालुमात की जाती है, फिर उसे अपने सूत्रों के द्वारा क्रास चेक भी किया जाता है। जब जानकारी पुख्ता हो जाती है तब वे उसे अपनी मां के सामने परोस देती हैं। उन्होंने कहा कि एसा लंबे समय से नहीं हो रहा है, यह सिलसिला पिछले आठ दस माहों से ही आरंभ हुआ है।

उधर सोनिया के करीबी सूत्रों का भी यह दावा है कि नेहरू गांधी परिवार की छटवीं पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करने वाले राहुल को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने के लिए भी भविष्य का रोड़मेप प्रियंका द्वारा ही तैयार किया जा रहा है। यही कारण है कि वे सियासी से चमक दमक से अपने आप को दूर रखते हुए अमेठी और रायबरेली में ही चुनावों के दौरान शिरकत करती हैं।



प्रियंका के लिए प्रायोजित हुए थे टीवी शो

पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान अपनी दादी स्व.श्रीमति इंदिरा गांधी की साड़ी पहनना, उनके जैसे हेयर स्टाईल बनाना, और प्रियंका की आदतों को प्रियदर्शनी स्व.श्रीमति इंदिरा गांधी से जोड़ने के फीचर भी मीडिया में जमकर उछले। माना जा रहा है कि सोनिया के करीबी प्रबंधकों ने चुनावों के दौरान कोशिश की थी कि प्रियंका में इंदिरा गांधी का अक्स ढूंढकर सामने लाया जाए ताकि देश में कांग्रेस को इससे फायदा हो सके। बताते हैं कि बाद में प्रियंका की आपत्ति के उपरांत ये फीचर आगे परवान नहीं चढ़ सके।

अविनाश वाचास्‍पति और गिरीश बिल्‍लोरे को सलाम

हिन्‍दी ब्‍लॉंगिंग का एक नया कीर्तिमान अविनाश वाचस्‍पति और गिरीश बिल्‍लौरे मुकुल के नाम



रविवार 9 जनवरी 2011 का दिन हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग के सम्‍मेलनीय इतिहास में स्‍वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो गया है। इस दिन खटीमा (उत्‍तराखंड) में हिन्‍दी ब्‍लॉगरों के सम्‍मेलन का जीवंत प्रसारण इंटरनेट के जरिए पूरे विश्‍व में सफलतापूर्वक विभिन्न एग्रीगेटर्स, खासकर ब्लॉगप्रहरी (दिल्ली), सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक,ट्विटर, गूगल-बज्ज आदि के जरिये किया गया।

हिन्‍दी ब्‍लॉगरों के सम्‍मेलनीय स्‍वरूप को चहुं ओर इसकी सकारात्‍मकता के साथ प्रवाहित करने वाले चर्चित ब्‍लॉग नुक्‍कड़ के मॉडरेटर और ब्‍लॉगर, साहित्‍यकार, व्‍यंग्‍यकार अविनाश वाचस्‍पति ने जबलपुर के मशहूर ब्‍लॉगर गिरीश बिल्‍लौरे ‘मुकुल’ के साथ मिलकर इन पलों को पूरे विश्‍व में प्रसारित करके ऐतिहासिक बना दिया है। इससे साबित होता है कि धुन के धनी जब चाहते हैं तो प्रत्‍येक परिस्थिति को अपने अनुकूल बना नेक कार्यों को सर्वोत्‍तम अंजाम तक पहुंचा देते हैं।

इस अवसर पर साहित्‍य शारदा मंच के तत्‍वावधान में उत्‍तराखंड स्थित खटीमा के ब्‍लॉगर, कवि डॉ. रूपचन्‍द्र शास्‍त्री ‘मयंक’ की दो पुस्‍तकें सुख का सूरज और नन्‍हे सुमन का लोकार्पण डॉ. इन्द्रराम, सेवानिवृत्‍त प्राचार्य राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय काशीपुर के कर कमलों द्वारा किया गया । अविनाश वाचस्‍पति जी इस समारोह के मुख्‍य अतिथि रहे। एक साथ कई पायदानों पर सफलतापूर्वक सफर करने वाले अविनाश वाचस्‍पति और गिरीश बिल्‍लौरे के इस कारनामे को, हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग विधा के चितेरे करोड़ों दर्शकों ने लगातार 6 घंटे तक इस जीवंत प्रसारण का भरपूर आनंद लिया और इसके साक्षी बने।

इस संबंध में यह भी उल्‍लेखनीय है कि इस जीवंत प्रसारण को अब भी http://bambuser.com/channel/girishbillore/broadcast/1313259 पर देखा और सुना जा रहा है। इसे टीम वर्क का अन्‍यतम उदाहरण बतलाते हुए अविनाश वाचस्‍पति ने इसका श्रेय जबलपुर के गिरीश बिल्‍लौरे, दिल्‍ली के पद्मसिंह के उनमें अपने प्रति विश्‍वास के नाम करते हुए कहा है कि इस सजीव प्रसारण से हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग के शिखर पर पहुंचने के प्रयासों में अभूतपूर्व तेजी देखने में आएगी।

इस अवसर पर खटीमा में मौजूद रहे, प्रख्‍यात हिदी ब्‍लॉगर लखनऊ के रवींद्र प्रभात (परिकल्‍पना) , दिल्‍ली के पवन चंदन (चौखट) , राजीव तनेजा (हंसते रहो) , धर्मशाला के केवलराम (चलते चलते), बाराबंकी के रणधीर सिंह सुमन (लोकसंघर्ष) , खटीमा के रावेन्‍द्र कुमार रवि, डॉ. सिद्धेश्‍वर सिंह और आसपास के क्षेत्रों यथा बरेली, पीलीभीत, हल्‍द्वानी इत्‍यादि के साहित्‍यकार, कवि, प्रोफेसरों और हिन्‍दी ब्‍लॉगजगत के प्रेमियों सोहन लाल मधुप, बेतिया से मनोज कुमार पाण्डेय (मंगलायतन) ,शिवशंकर यजुर्वेदी, किच्छा से नबी अहमद मंसूरी, लालकुऑ (नैनीताल) से श्रीमती आशा शैली हिमांचली, आनन्द गोपाल सिंह बिष्ट, रामनगर (नैनीताल) से सगीर अशरफ, जमीला सगीर, टनकपुर से रामदेव आर्य, चक्रधरपति त्रिपाठी, पीलीभीत से श्री देवदत्त प्रसून, अविनाश मिश्र, डॉ. अशोक शर्मा, लखीमपुर खीरी से डॉ. सुनील दत्त, बाराबंकी से अब्दुल मुईद, पन्तनगर से लालबुटी प्रजापति, सतीश चन्द्र, मेढ़ाईलाल, रंगलाल प्रजापति, नानकमता से जवाहर लाल, सरदार स्वर्ण सिंह, खटीमा से सतपाल बत्रा, पी. एन. सक्सेना, डॉ. गंगाधर राय, सतीश चन्द्र गुप्ता, वीरेन्द्र कुमार टण्डन आदि उल्‍लेखनीय हैं।

कार्यक्रम का संचालन श्री रावेन्द्र कुमार रवि द्वारा किया गया।

पाला से परेशान किसानों की सुध लेने वाला कोई नहीं

नुकसानी पर मुआवजे का हल्ला केवल झूठी हमदर्दी

(मनोज मर्दन त्रिवेदी)

सिवनी -: जनवरी माह के प्रथम सप्ताह में कड़ाके की ठण्ड और पाला पडऩे से कृषकों की फसलें बुरी तरह नष्ट हो गई है, सभी राजनैतिक दलों सहित कृषक हितेषी संगठनों द्वारा नुकसानी की मांग मुआवजे के रूप में किसानों को देेने की मांग की है, और राजनैतिक दल के नेताओं द्वारा किसानों को हुई नुकसानी ने खेतो में जाने का अवसर प्रदान कर दिया है लगभग सभी राजनैतिक दल के नेता क्षेत्रों में भ्रमण कर किसान हितेषी बनने का स्वांग रचा रहे हैं भोला भाला किसान उनकी इस झूठी संवेदना से भावविभोर हो रहा है,हालांकि वह यह बात भी जानता है कि नुकसानी पर संवेदना जताने आ रहे नेतागण झूठी संवेदनाएं ही दे रहें हैें किसानों का इससे कोई भला होने की संभावना नहंीं है । पिछले वर्ष फरवरी माह के अंतिम सप्ताह में रबी की फसल ओला वृष्टि से चौपट हो गई थी, जिसमें केवलारी विधानसभा क्षेत्र के एवं सिवनी विधानसभा क्षेत्र के कृषकों को भारी नुकसानी हुई थी। केवलारी विधायक ठाकुर हरवंशसिंह ने क्षति ग्रस्त क्षेत्र का दौराकर मुआवजे की मांग की थी, केवलारी विधानसभा क्षेत्र की राजनीति कर रहे डॉ. ढालङ्क्षसह बिसेन भी कहां पीछे रहने वाले थे उन्होंने ने भी भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ ओला वृष्टि से बरबाद फसल का मुआयना किया था। सिवनी विधायक श्रीमती नीता पटेरिया, बंडोल कलारबांकी क्षेत्र के अनेक ग्रामों में प्रशासनिक अधिकारियों के साथ ओला वृष्टि से हुई क्षति को देखने खेतों में पहुंची एवं उन्होंने प्रशासनिक अधिकारियों को सख्त निर्देश दिये थे कि किसानों की क्षति का मुआवजा उन्हें एक सप्ताह के भीतर दिया जाये ओवर बुरी तरह चौपट हुई फसल के कारण ग्राम में राहत काल प्रारंभ किये जाये शासन की जन कल्याणकारी योजनाएं प्रभावित ग्रामों में अधिकतम संचालित की जाये परंतु किसानों के लिए वे सारे वायदे, झूठे साबित हुए न उन्हें मुआवजा मिला और न कोई योजनाएं लाभ पहुंचाने वाली संचालित हुई , फिर इसके पश्चात सावंरदेही नामक फौजी कीट से खरीब की फसल बर्बाद हुई, और कृषक हितेषी बनने वाले सभी नेताओं ने सरकार से मुआवजे की मांग की । यहांतक की नुकसानी राजस्व मंत्री स्वयं खेतों में देखकर गये, केवलारी विधायक ठाकुर हरवंशसिंह, डॉ. ढालसिंह बिसेन, श्रीमती नीता पटेरिया, कमल मर्सकोले,सभी ने मुआवजा देने के लिए मुख्यमंत्री को लिखा और नुकसानी का सीधा आंकलन कराकर किसानो को मुआवजा दिलाने की बात कही थी, परंतु जब क्षेत्रीय पटवारियों ने नुकसानी का आंकलन दर्शाया तो नुकसानी इतनी निकली जितने में किसानों को मुआवजा नहीं दिया जा सकता था। हालांकि इसके पश्चात बेमौसम बरसात भी हुई और नुकसानी बढ़ी भी परंतु किसानों को नुकसानी का मुआवजा नहीं मिला। राजस्व अमला किसानों की नुकसानी के आंकलन में जानबुझ कर ऐसा कर रहा है ऐसा प्रतीत होता है जानकार, जानकारों के अनुसार किसानों को मुआवजा की राशि नुकसानी के अनुसार सीधे चैक से भुगतान होना होती है, जिसमें राजस्व अमले की काई फायदा होने की संभावना नहीं होती है समझा जा रहा है कि अपना कोई फायदा न होने के कारण राजस्व अमले के अधिकारियों द्वारा नुकसानी के आंकलन में कंजुसी दिखाई जाती है, कड़ाके की ठण्ड और पाले से हुई नुकसानी ने नेताओं को किसान के पक्ष में झूठी हमदर्दी दिखाने का अवसर अवश्य प्रदान कर दिया परंतु उन्हे मुआवजा प्राप्त हो जायेगा इसकी कोई गारंटी नहीं है और नेता भी अभी होहल्ला के पश्चात जो मौन धारण करेंगे तो फिर किसानों को मुआवजा मिला या नहीं इसकी उन्हे परवाह नहंी रहेगी। सीधे तौर पर कहा जा सकता है कि, नेताओं द्वारा अभी किया जा रहा हो हल्ला पटवारियों की कलम से कमजोर पड़ जता है।