मंगलवार, 28 जून 2011

कहां जाती हैं पकड़ी गई गायें!


कहां जाती हैं पकड़ी गई गायें!

(लिमटी खरे)

गाय को भारत गणराज्य में माता का दर्जा दिया गया है। सनातन पंथी अनेक धर्मावलंबी लोग आज भी गाय की रोटी (गौ ग्रास) निकालकर ही भोजन ग्रहण करते हैं। गाय से दूध मिलता है जिसके अनेक उत्पाद हमारे जीवन में उपयोगी हैं, वहीं गाय का गोबर भी अनेक कामों में आ जाता है। आदि अनादि काल से पूज्यनीय इस गौ माता को आक्सीटोन नामक जहर की नजर लग गई है। किसानों की कामधेनू अब वाकई उसके लिए धनोपार्जन का साधन बन चुकी है। कत्लखाने जाने वाली गायों को पुलिस पकड़ लेती है किन्तु ये गायें उसके बाद अब जाती कहां हैं, यह शोध का विषय ही है। सरकारों द्वारा दी जाने वाली इमदाद के बावजूद भी गौशालाओं की स्थिति बद से बदतर हो चुकी है। गोवंश के नाम पर राजनीति करने वाली भाजपा शासित राज्यों में भी गायों की दुर्दशा दिल दहलाने वाली है।

आदि अनादि काल से गाय का हमारे समाज और दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण रोल रहा है। ऋषि मुनियों के आश्रम से लेकर आज तक के ग्रामीण अंचलों में गाय का रंभाना हमारे दिल के तार हिला देता है। भगवान श्री कृष्ण की लीलाएं भी गाय बिना अधूरी ही लगती है। ग्वाला समुदाय का प्रतिनिधित्व किया था उन्होंने। अभी ज्यादा दिन नहीं बीते जब महानगरों को छोड़कर शेष शहरों, कस्बों, मजरों और टोलों में अलह सुब्बह अम्मा, दूध ले लोकी पुकार कमोबेश हर घर में सुनाई दे जाती थी। शहरों के उपनगरीय इलाकों, मजरों टोलो और साथ लगे गांव से दूध वाले सुबह शहरों की ओर रूख करते दूध देते फिर सूरज चढ़ते ही बाजार से सौदा (किराना और अन्य जरूरत का सामान) लेकर गांव की ओर कूच कर जाते।

गाय का दान करने के बारे में कुरीतियां भी बहुत हैं। मुंशी प्रेमचंद द्वारा गोदाननामक उपन्यास लिखा गया जिसने तहलका मचा दिया था। सनातन पंथियों के अनेक संस्कारों में गोदान का बड़ा ही महत्व माना गया है। गाय का दूध बहुत ही पोष्टिक माना गया है। गाय की सेवा पुण्य का काम है। राह चलते लोग गाय के पैर पड़ते दिख जाया करते हैं। हिन्दुस्तान में गायों को एक ओर पूजा जाता है तो दूसरी ओर गाय का मांस भी खाया जाता है।

शहरों में आवार मवेशियों की धर पकड़ के लिए स्थानीय निकाय ही पाबंद हुआ करते थे। नगर पंचायत, नगर पालिका, नगर निगमों और ग्राम पंचायतों के कर्मचारी आवारा घूमते मवेशियों को पकड़कर उन्हें एक स्थान विशेष जिसे कांजी हाउसकहा जाता था, में बंद कर दिया करते थे। बाद में जुर्माना अदा करने पर पशु मालिक अपने जानवर को छुड़ाकर ले जाता था। नई पीढ़ी को तो इस कांजी हाउस के बारे में जानकारी ही नहीं होगी क्योंकि शहरों के कांजी हाउस पर तो कब का अतिक्रमण या बेजा कब्जा हो चुका है। हां इसमें पशुओं के लिए खुराक की व्यवस्था आज भी हो रही है।

कत्लखानों में गाय या बैल के मांस को लेकर जब तब राजनैतिक दलों और समुदायों में टकराव के उपरांत कानून व्यवस्था की स्थिति निर्मित हो जाती है। गायों के परिवहन के दौरान पुलिस द्वारा गायों को पकड़ा जाता है बाद में इन पकड़ी गई गायों का क्या होता है, इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं होता है। न गाय के परिवहन की गुप्त सूचना देने वाले और न ही गाय के नाम पर राजनीति करने वाले गैर सरकारी या राजनैतिक संगठन। इन गायों को पकड़ने के बाद इन्हें गोशालाओं में दे दिया जाता है। उसके बाद गोशालाओं में इन गायों के साथ क्या सलूक होता है, इस बारे में कोई कुछ भी नहीं जानता।

गोशालाओं का संचालन बहुत ही पुण्य का काम है। गौशाला संचालकों द्वारा शहरों की शाकाहारी होटलों का बचा हुआ जूठन, सब्जी मण्डी का बेकार माल आदि ले जाकर इन गायों को खिलाया जाता है। समाज सेवी बढ़ चढ़कर इनके संचालन में आर्थिक सहयोग दिया करते हैं। इतना ही नहीं सरकार द्वारा भी गौशालाओं को अनुदान दिया जाता है। हालात देखकर लगने लगा है मानो गौशाला का संचालन अब पुण्य के काम के स्थान पर कमाई का जरिया बन चुका है।

गौवंश के नाम पर राजनीति करने वाली भारतीय जनता पार्टी द्वारा शासित नगर निगम दिल्ली का ही उदहारण लिया जाए तो अनेक चौंकाने वाले तथ्य सामने आ सकते हैं। दिल्ली नगर निगम ने जितनी गाय पकड़ी हैं, उनमें से नब्बे फीसदी गाय काल का ग्रास बनी हैं। यह आलम तब है जब दिल्ली नगर निगम द्वारा गौशालाओं के संचालन के लिए छः करोड़ रूपए सालाना से अधिक का अनुदान देता है।

दिल्ली मेें आवारा पशुओं विशेषकर गोवंश को लेकर बहुत ही बड़ा खेल खेला जाता है। दिल्ली में आवारा घूमते मवेशी विशेषकर गाय के लिए गौ सदन बने हैं जिनमें हरेवली का गोपाल गौसदन, सुल्तानपुर डबास का श्रीकिसन गौसदन, सुरहेड़ा का डाबर हरे किसन गौ सदन, रेवला खानपुर का मानव गौसदन, घुम्मनहेड़ा का आचार्य सुशील गौ सदन आदि प्रमुख हैं। आंकड़ों पर अगर गौर फरमाया जाए तो वर्ष 2008 में मई से अक्टूबर तक छः माह की अवधि में इन गोशालाओं में 11 हजार 26 गाय पकड़कर भेजी गई थी, जिनमें से 10 हजार 716 गाय असमय ही काल के गाल में समा गईं।

इसी तरह वर्ष 2007 के आंकड़े दिल दहला देने वाले हैं। इस साल कुल 10574 गायों को पकड़ा गया था। इस साल कुल 10793 गाय मर गईं थीं। है न हैरानी वाली बात। इसका तात्पर्य यही हुआ कि इस साल पकड़ी एक भी गाय जीवित नहीं बची और तो और पिछले साल पकड़ी गई गायों में से भी 119 गाय मर गईं। इस मामले में दिल्ली की अतिरिक्त जिला सत्र न्यायधीश कामिनी ला ने 2004 में इस गोशालाओं का निरीक्षण कर रिपोर्ट तैयार की थी, पर सरकार ने इस मामले में कोई कदम नहीं उठाया है।

दिल्ली में सरकार द्वारा गोशालाओं को प्रत्येक गाय के लिए बीस रूपए प्रति गाय प्रति दिन के हिसाब से अनुदान दिया जाता है। वर्ष 2007 - 2008 और 2008 - 2009 में दिए गए अनुदान के हिसाब से गोपाल गौसदन को एक करोड़ तेईस लाख और सत्यासी लाख, श्री किसन गोसदन के लिए एक करोउ़ तीस लाख और एक करोड़ उन्नीस लाख रूपए, डाबर हरे किसन गोसदन को एक करोड़ 22 लाख और 86 लाख, मानव गोसदन को 70 और 28 लाख, आचार्य सुशील गोसदन को 96 और 73 लाख रूपए अनुदान दिया गया था।

सरकारी इमदाद और जनकल्याणकारी लोक कल्याणकारी पुण्य का काम करने वाले लोगों के द्वारा गायों को अगर बचाया नहीं जा पा रहा है तो यह निश्चित तौर पर चिंता का विषय ही कहा जाएगा। इस मामले में गैर सरकारी संगठनों के अलावा नगर निगम के अफसरों और गोशाला संचालकों की भूमिका संदिग्ध ही मानी जा सकती है।

फेरबदल तय करेगा मनमोहन और सोनिया का कद


फेरबदल तय करेगा मनमोहन और सोनिया का कद

सत्ता और संगठन में टकराव के चलते अहम है फेरबदल पर नजर

सोनिया को किनारे करने की तैयारियों में मनमोहन मण्डली

प्रणव का उप प्रधानमंत्री बनना तय

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार में जल्द ही जो होगा वह किसी ने सोचा भी नहीं होगा। संसद के सत्र के पहले संभावित मंत्रीमण्डल फेरबदल से यह तय हो जाएगा कि मनमोहन और सोनिया में किसका कद बड़ा है? कांग्रेस के आला नेताओं के सामने यह बात साफ होकर उभर जाएगी कि सोनिया अब भी ताकतवर बची हैं या उन्होंने मनमोहन सिंह के सामने घुटने टेक दिए हैं।

वैसे भी सरकार की गलत नीतियों और अपने पथ प्रदर्शकों (राजनैतिक सलाहकारों) की अदूरदर्शिता के चलते प्रभावित हुई अपनी छवि से सोनिया गांधी काफी निराश और हताश दिखाई दे रही हैं। अब वे सियासी बातों में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रही हैं। इसका सीधा सीधा फायदा वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने उठा लिया है। कैबनेट के फेरबदल में मनमोहन सिंह अपने सलाहकार नंबर वन प्रणव मुखर्जी के साथ मिलकर एसा संदेश देंगे कि सत्ता का शीर्ष केंद्र 10 जनपथ नहीं वरन् 7 रेसकोर्स ही है, इसलिए अब कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता सोनिया के दरबार में हाजिरी लगाना छोड़ दें।

उधर चतुर सुजान प्रणव मुखर्जी अपने विरोधियों के शमन के लिए भी मनमोहन का इस्तेमाल करना चाहेंगे। मुखर्जी को गृह मंत्री पलनिअप्पम चिंदम्बरम फूटी आंख नहीं सुहाते हैं। इस लिहाज से उनकी कुर्सी हिलना तय है। उप प्रधानमंत्री बनने के बाद विभाग चुनने की उन्हें आजादी होगी। कहा जा रहा है कि उप प्रधानमंत्री बनने के बाद वित्त, विदेश या गृह विभाग उनकी प्राथमिकता में ही होगा। प्रणव अगर चाहेंगे तो योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया को वित्त मंत्रालय की कमान दी जा सकती है। उद्योग लाबी प्रणव को अतिरूढ़ीवादी मानती है और वह प्रणव की वित्त मंत्रालय से रूखसती चाह रही है।

गृह मंत्रालय का भार कपिल सिब्बल, गुलाम नवी आजाद में से किसी को दिया जा सकता है। अंत में अगर दोनों में से किसी पर सहमति नहीं बनी तो फिर एस.एम.कृष्णा को यह जवाबदारी दी जा सकती है। कानून मंत्री बनने के लिए गुलाम नवी आजाद गोटियां बिछा रहे हैं तो पीएम पवन कुमार बंसल को इस पर बिठाना चाह रहे हैं।

मध्य प्रदेश कोटे से आए कमल नाथ को रेल मंत्रालय की कमान सौंपी जा सकती है। साथ ही चार बार राज्य सभा का सुख भोग चुके सुरेश पचौरी को पांचवी बार फिर राज्य सभा से भेजकर उन्हें संसदीय कार्य मंत्रालय की कमान सौंपी जा सकती है, किन्तु पचौरी की दस जनपथ में निष्ठा उनके आड़े आ सकती है। माना जाता है कि वे अहमद पटेल खाते में आते हैं। कांग्रेस के सियासी जानकार अब मंत्रीमण्डल फेरबदल पर नजरें टिकाए हुए हैं, ताकि इसके बाद वे अपनी नई निष्ठा की रणनीति तय कर सकें।

प्रभात के नाम पर काम कर रहे सरकारी मुलाजिम


प्रभात के नाम पर काम कर रहे सरकारी मुलाजिम

मध्य प्रदेश सरकार का कार्यालय बना संगठन का दफ्तर

(ब्यूरो कार्यालय)

नई दिल्ली। यूं तो देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में मध्य प्रदेश सरकार के अनेकों कार्यालय कार्यरत हैं, किन्तु इनमें से एक प्रमख कार्यालय राज्य शासन के काम के अलावा मध्य प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष प्रभात झा का अघोषित कार्यालय भी बना हुआ है, जहां से सांसद विधायक की सेवा टहल के साथ ही साथ मीडिया मैनेजमेंट का काम भी संपादित किया जा रहा है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में मीडिया के बीच मध्य प्रदेश सरकार की छवि को निखारने के लिए पाबंद इस कार्यालय को अघोषित तौर पर मध्य प्रदेश के भाजपाध्यक्ष प्रभात झा के कार्यालय के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। मध्य प्रदेश से आने वाले भाजपा सांसद विधायक एवं अन्य पदाधिकारियों के लिए इस कार्यालय से बाकायदा सरकारी वाहन भी मुहैया करवाया जाता है। यह अलहदा बात है कि बाद में वाहन की लाग बुक सरकारी तौर तरीकों से भर दी जाती है। मीडिया के लोगों को मिलने वाली सुविधाओं आदि के बारे में यह कार्यालय पूरी तरह खामोशी अख्तियार किए हुए है।

बताया जाता है कि उक्त कार्यालय में पदस्थ एक कर्मचारी द्वारा प्रभात झा के लाईजनिंग आफीसर के बतौर काम किया जा रहा है। कार्यालय से फोन पर अनेक मर्तबा लोगों ने उनके श्रीमुख से यह भी सुना कि वे प्रभात झा के कार्यालय से बोल रहे हैं। दिल्ली में अब इस बात पर शोध चल रहा है कि क्या आखिर प्रभात झा ने दिल्ली में अपना कार्यालय मंहगे और पॉश व्यवसायिक इलाके में बनाया हुआ है।

क्या उमा का फरमान मानेगी भाजश?


क्या उमा का फरमान मानेगी भाजश?

संशय में हैं भाजश के पांचों विधायक

उमा के निर्णयों से नाराज हैं कार्यकर्ता

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में जनाधार के साथ भारतीय जनता पार्टी के वोट बैंक में सेंध लगाने वाली भारतीय जनशक्ति पार्टी के 29 जून को दिल्ली में भाजपा में विलय की तैयारियां तो आरंभ हो गई हैं किन्तु उमा की यह कोशिश परवान चढ़ पाएगी इसमें संशय ही लग रहा है। भाजश के पांचों विधायक किस शर्त पर भाजपा में शामिल होंगे इस बारे में अभी खुलासा नहीं हो सका है। विधायकों को यह चिंता भी सताए जा रही है कि कहीं अगली बार उनका टिकिट ही न काट दिया जाए!

गौरतलब है कि भाजपा से बाहर का रास्ता दिखाने के बाद उमा भारती ने हाशिए में जाने से बचने की गरज से भारतीय जनशक्ति पार्टी का गठन किया था। उस समय भाजपा से नाता तोड़ने वाले मदन लाल खुराना, प्रहलाद सिंह पटेल, संघ प्रिय गौतम ने भाजश को थामा और मध्य प्रदेश में इसका जनाधार बढ़ाया। भाजपा में वापसी के लिए लालायित उमा भारती ने लोकसभा चुनावों के दौरान भाजश को अचानक ही अखाड़े से बाहर कर सभी को चौंका दिया था। इसके बाद वे टीकमगढ़ से खुद भी विधानसभा चुनावों में चारांे खाने चित्त गिर गईं थीं। बाद में युवा तुर्क प्रहलाद पटेल की भाजपा में सम्मानजनक वापसी हो गई और उन्हें असंगठित मजदूर संगठन का नेशनल प्रेजीडेंट बना दिया गया।

भाजपाध्यक्ष नितिन गड़करी ने अध्यक्ष बनते ही पार्टी छोड़कर गए नेताओं की घर वापसी की मुहिम आरंभ की। इसी के तहत जसवंत सिंह, प्रहलाद पटेल और खुराना के भाजपा में वापसी के मार्ग प्रशस्त हुए। इसके बाद उमा भारती के लिए गड़करी को एड़ी चोटी एक करनी पड़ी। मध्य प्रदेश के भाजपा नेता अब केंद्रीय नेतृत्व पर दबाव बना रहे हैं कि उमा की भाजश को एमपी में नेस्तनाबूत कर दिया जाए। भाजपा के चतुर सुजान नेता जानते हैं कि भाजश को छोड़कर जाने वाली उमा भारती के लिए भाजश के नेताओं को भाजपा में वापसी के लिए मनाना टेड़ी खीर ही साबित होने वाला है।

भाजश के विधायकों के बीच चल रही चर्चाओं के अनुसार बिना किसी से मशविरा किए उमा भारती ने भाजश के भाजपा में विलय की बात सोच कैसे ली, जबकि वे खुद आध्यात्मिक चिंतन के लिए काफी पहले ही भाजश को छोड़कर जा चुकी हैं। चर्चाओं के अनुसार इन पांच में से किसी एक विधायक को शिवराज सिंह चौहान द्वारा मंत्रीमण्डल में स्थान दिया जा सकता है, इसके अलावा निगम मण्डलों के माध्यम से भी विधायकों को लाल बत्ती से नवाजा जा सकता है। भाजश नेताओं के साथ सबसे बड़ी समस्या यह आ रही है कि अगर भाजश का भाजपा में विलय हो गया तो फिर वे भविष्य में भाजश का गठन नहीं कर पाएंगे, साथ ही अगले विधानसभा चुनावांे में अगर उनका टिकिट ही काट दिया गया तो उनकी राजनैतिक हत्या हो जाएगी।

अण्णा बाबा अगर मोहरा नहीं तो फिर . . .!


ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)

अण्णा बाबा अगर मोहरा नहीं तो फिर . . .!
सियासी दल विशेषकर कांग्रेस का आरोप है कि बाबा रामदेव और अण्णा हजारे के आंदोलन के पीछे संघ, भाजपा और कुछ अन्य ताकतें हैं। सवाल यह है कि पर्दे के पीछे चाहे जो हो, पर मुद्दा सही है या गलत! अगर सही है तो फिर इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि पर्दे के पीछे कौन है। वहीं दूसरी ओर अगर इन दोनों ही के आंदोलनों को करंट संघ या भाजपा की बेटरी से मिल रहा हो तो फिर भाजपा शासित सूबों में सूबाई लोकपाल बना देना चाहिए जो राज्य संवर्ग के अधिकारियों कर्मचारियों पर अपना डंडा चलाए। जिस तरह सूचना का अधिकार कानून भारत की संसद द्वारा 15 जून 2005 को पारित किया था, किन्तु इसी भारत गणराज्य की गोवा और तमिलनाडू सरकार द्वारा इसे इससे आठ वर्ष पूर्व अर्था 1997 में ही अपने सूबों में लागू कर दिया था। कांग्रेस इसका विरोध करती है तो करती रहे, जिन सूबों में कांग्रेस से इतर सरकारें हैं, वहां तो राज्य स्तरीय लोकपाल बन जाएं, ताकि देश के नागरिकों को कांग्रेस रहित राजनैतिक दलों में पारदर्शिता का अनुभव हो सके।

फिर मिलेगा कुंवारा प्रधानमंत्री देश को!
कांग्रेस के चतुर सुजान महासचिव राजा दिग्विजय सिंह के वक्तव्यों से कांग्रेस की भविष्य की रणनीति के बारे में अंदाजा लगाने में आसानी हो जाती है राजनैतिक भविष्यवक्ताओं को। राजा के हाल ही के वक्तव्यों से साफ हो गया है कि राहुल पीएम भी बनेंगे और घर भी बसाएंगे। कांग्रेस के अंदर अब यह बहस छिड़ गई कि राहुल घर पहले बसाएंगे या फिर अटल बिहारी बाजपेयी के बाद दूसरे कुंवारे ही प्रधानमंत्री बनेंगे। गांधी सरनेम वाले दो अन्य लोगों में से राहुल के चचेरे भाई वरूण ने तो सात फेरे ले लिए और दूसरे कांग्रेस के पूर्वोत्तर का काम संभालने वाले अनीष गांधी जिनका राहुल से खून का रिश्ता तो नहीं है पर सरनेम समान है ने भी मायावती के तारणहार सतीश मिश्रा की रिश्तेदार से। अब बच गए हैं राहुल। राहुल की कोलंबियाई मित्र के चर्चे तो हर कांग्रेसी की जुबान पर हैं। कांग्रेसी कहते हैं कि जब उनके पिता राजीव ने इटली की बहू लाई गई तो राहुल भला क्यों पीछे रहें। राहुल के करीबी सूत्रों का कहना है कि राहुल दबे पांव कोलंबिया जाते आते रहते हैं और इसकी भनक उनकी मां सोनिया तक को नहीं लग पाती है।

कमल नाथ को कोसा गौर ने!
कल तक केंद्रीय मंत्री कमल नाथ के साथ गलबहियां डालकर घूमने वाले मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं वर्तमान नगरीय प्रशासन मंत्री बाबू लाल गौर अब कमल नाथ को आंखें दिखाने लगे हैं, जिसकी चर्चा अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में होने लगी है। एआईसीसी में गौर के हालिया बयान का हवाला देकर तरह तरह की चर्चाएं आकार लेने लगी हैं। गौर ने हाल ही में कहा है कि केंद्र सरकार द्वारा भोपाल, रायपुर, चंडीगढ़ को तो विशेष पैकेज दे रही है, पर जब संस्कारधानी जबलपुर की बारी आती है तो कांग्रेसनीत केंद्र सरकार द्वारा सौतेला व्यवहार आरंभ कर दिया जाता है। गौरतलब है कि वर्तमान में केंद्र में शहरी विकास मंत्रालय का प्रभार कमल नाथ के पास है एवं उनका संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा भी जबलपुर संभाग में ही आता है। महाकौशल में कमल नाथ को सर्वमान्य नेता की हैसियत से पहचाना जाता है, इन परिस्थितियांे में वे अपने संभाग के साथ ही सौतेला व्यवहार कर रहे हैं। अब कांग्रेस और भाजपा में बाबू लाल गौर की इस बयान बाजी के मायने खोजे जा रहे हैं।

ठीक नहीं हैं दीदी और राजमाता के रिश्ते
कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और त्रणमूल की सुप्रीमो सुश्री ममता बनर्जी के बीच सब कुछ ठीक ठाक नहीं है। संप्रग सरकार के दो साल पूरे होने पर आयोजित भोज का त्रणमूल ने अघोषित तौर पर बायकाट कर दिया। टीएमसी के सभी मत्री उस दिन राजधानी दिल्ली में थे, पर सुदीप बंदोपाध्याय को छोड़कर सभी ने इस भोज में जाना उचित नहीं समझा। माना जा रहा है कि जिस तरह सोनिया गांधी द्वारा ममता बनर्जी के शपथ ग्रहण का बहिष्कार किया था उसी तर्ज पर ममता ने कांग्रेस के गाल पर करारा तमाचा मारा है। यद्यपि मीडिया में इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं आया पर कांग्रेस के प्रबंधक इस बात को अच्छी तरह समझ चुके हैं। ममता का खौफ पार्टी पर भी इस कदर है कि रेल मंत्री का प्रभार पाने वाले मुकुल राय ने जब पदभार ग्रहण किया तब उन्हें ममता का कमरा ही मिला और ममता की कुर्सी पर जब बैठने की बारी आई तो उनके मंुह से बरबस ही निकल पड़ा -‘‘न बाबा न, आमी जोतो खुद दीदी आमा के बोलबे न आउरा आमी कैबिनेट पाबो न और उपेरे बोसबो न‘‘ अर्थात जब तक दीदी नहीं कहेंगी और कैबनेट मंत्री नहीं बनूंगा उस पर बैठूंगा नहीं।

कांग्रेस की बोलती बंद की अण्णा ने
काले धन, भ्रष्टाचार और लोकपाल को लेकर देश में तूफान मचा हुआ है। बाबा रामदेव ने एक सिरे पर मोर्चा संभाला था, तो दूसरे सिरे पर अण्णा हजारे बेटिंग को उतरे थे। कांग्रेस ने सधे कदमों से बाबा रामदेव को तो मीडिया की सुर्खियों से बाहर ही कर दिया। अब बाबा रामदेव खबरों से बाहर होकर बस अपने सहयोगी नेपाली मूल के आचार्य बाल किसन के स्वामित्व वाले आस्था चेनल पर ही दिख रहे हैं। रही बात अण्णा हजारे की तो अण्णा का पड़ला बेहद भारी दिख रहा है। हाल ही में एक समाचार चेनल ने अपने स्टूडियो में अण्णा और केजरीवाल को बुलाया, साथ ही लाईव रखा कांग्रेस के नेताओें को। अण्णा ने अपनी सादगी के साथ कांग्रेस के नेताओं को धोकर रख दिया। समूचे देश ने देखा कि कांग्रेस के नेता किस कदर झूठ बोलने पर आमदा हो रहे थे। भाई दीपक चौरसिया ने बड़ी ही सफाई के साथ पूरा प्रोग्राम संचालित किया। अंत में हर किसी की जुबान पर आ गया था कि अण्णा ने आखिर बंद ही कर दी भ्रष्टाचार में आकण्ठ डूबी सवा सौ साल पुरानी और देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस की बोलती।

च्यूईंग गम से मचा जबर्दस्त बवाल!
वित्त मंत्री के कार्यालय में डेढ़ दर्जन स्थानों पर गोंद जैसा चिपचिपा पदार्थ अर्थात च्यूईंग गम का मिलना देश के ताकतवर और महफूज वित्त मंत्रालय की सुरक्षा में सेंध के सवालिया निशान छोड़ गया है। सूत्रों की मानें तो उप प्रधानमंत्री बनने की तमन्ना मन में पालने वाले वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने पिछले साल सात सितम्बर को वजीरे आजम को पत्र लिखकर इसकी गोपनीय जांच करवाने का आग्रह किया था। इंटेलीजेंस ब्यूरो को जांच में कुछ नहीं मिला। जांच में ये च्यूईंग गम काफी पुराने पाए गए। इससे साफ है कि सरकारी कार्यालयों में साफ सफाई सतही तौर पर ही की जाती है। दूसरी बात यह कि आजकल तम्बाखू खाने और पीने (बिड़ी सिगरेट आदि) का विकल्प निकोटिन युक्त च्यूईंग गम आ गया है। लोग धूम्रपान करने के बजाए जेब में इन नशीली च्यूईंग गम को रखते हैं। सामान्य च्यूईंग गम की तरह कुछ देर में ही ये बेस्वाद हो जाती हैं तब इन्हें थूककर दूसरी चबाने का दिल करता है। कहा जा रहा है कि आला अफसरान ही इस तरह की च्यूईंग गम के बेस्वाद होने पर उसे टेबिल के नीचे चिपका दिया करते होंगे और फिर मच गया बवाल। वैसे कुछ मंत्रियों के मुंह सदा ही चलते दिखते हैं इस तरह की नशीली च्यूईंग गम के कारण!

मोम की तासीर परख रहीं हैं कोनिमोझी
द्रमुक सांसद कोनिमोझी तिहाड़ जेल में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में बंद हैं। जेल की सलाखों के पीछे वे अब तक का अपना समय साहित्य पढ़ने में बिता रहीं थीं। उनकी सुरक्षा के मद्देनजर उनसे मिलने आने वाले लोगों में से कुछ ही लोगों को तिहाड़ जेल प्रशासन द्वारा मिलने की अनुमति दी जा रही है। जेल की चारदीवारी अच्छे अच्छों के कस बल ढीले कर देती है यह बात हर कोई जानता है। इन दिनों कोनिमोझी जेल के अंदर खाली समय में अन्य महिला कैदियों की तरह मोमबत्ती बनाना सीख रहीं हैं। जेल के अंदर कैदियों को प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि रिहाई के बाद वे इस फन का उपयोग कर सम्मान के साथ जीवन यापन कर सकें। कोनिमोझी के पास आकूत दौलत होने की खबरें हैं, इस लिहाज से वे मोमबत्ती बनाने में तो कतई दिलचस्पी नहीं ले रही होंगी। यह हो सकता है कि वे मोम की तासीर को परख रही हों।

आदिवासी विरोधी कांग्रेस!
भले ही कांग्रेस द्वारा आदिवासियों के हितों को साधने के लाख दावे किए जाएं किन्तु जमीनी हकीकत कुछ और बयां करती है। मध्य प्रदेश के महाकौशल और सतपुड़ा क्षेत्र का नब्बे प्रतिशत हिस्सा आदिवासी बाहुल्य है। इस हिस्से में मण्डला को छिंदवाड़ा और जबलपुर को बालाघाट से रेल मार्ग से जोड़ने के लिए अमान परिवर्तन के काम को केंद्रीय रेल मंत्रालय ने हरी झंडी दे दी है। महाकौशल का नेतृत्व कांग्रेस के मंत्री कमल नाथ के सशक्त हाथों में है। 2000 से आरंभ हुई बालाघाट जबलपुर आमन परिवर्तन की योजना में फच्चर फंसा दिया गया है। मार्ग में बाघ आ गए हैं। यही स्थिति मण्डला से छिंदवाड़ा रेल परियोजना में होने वाला है। इसके पहले उत्तर दक्षिण फोरलेन गलियारे में धमाल मचा चुके हैं बाघ। मजे की बात तो यह है कि यह बाघ इतना होशियार है कि यह कमल नाथ की कर्मभूमि छिंदवाड़ा जिले को छूता भी नहीं है। कांग्रेसनीत केंद्र सरकार आदिवासियों को न तो सड़क से और न ही रेल मार्ग से जोड़ने की इच्छुक दिख रही है। मामले को अब राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के हवाले कर दिया गया है।

अब गैस घोटाले में फंसी कांग्रेस
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की कांग्रेसनीत सरकार की दूसरी पारी किसी अशुभ महूर्त में ही आरंभ हुई है, यही कारण है कि एक के बाद एक सरकार के घपले और घोटाले उजागर होते जा रहे हैं। टूजी, कामन वेल्थ जैसे बड़े घोटालों के सदमे से अभी कांग्रेस उबरी नहीं कि उस पर अब गैस घोटाले के छींटे पड़ गए हैं। कैग ने अपने प्रतिवेदन में तेल और गैस अनुबंधों में निजी कंपनियों को अनुचित फायदा पहुंचाकर राजकोष में सेंध लगाने का आरोप लगाया है। यह घोटाला अब तक के घोटालों में सबसे बड़ा बताया जा रहा है। मीडिया को संबोधित करने वाले मंत्री समूह ने भी इस मामले में चुप्पी साध ली है। चारों तरफ से घपलों घोटालों और भ्रष्टाचार से घिरे प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह बुरी तरह उलझकर रह गए हैं। कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और युवराज राहुल गांधी ने इस मामले में अपना मुंह सिल कर रखा हुआ है। कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथवाला जुमला अब कांग्रेस का हाथ आम आदमी की गर्दन परके मानिंद चरितार्थ होता दिख रहा है।

शिव ने ली राहत की सांस
भाजपा में वापसी के बाद पहली मर्तबा मध्य प्रदेश आईं उमा भारती के ढीले पड़े तेवरों को देखकर सूबे के निजाम शिवराज सिंह चौहान ने राहत की सांस ली हैै। मध्य प्रदेश आईं उमा भारती को लेकर भाजपा पूरी तरह चाक चौबंद रही। दिल्ली में बैठे उमा विरोधी भी उनके एक एक कदम और वक्तव्यों पर नजरंे गड़ाए थे। उमा ने बहुत ही नपे तुले शब्दों का प्रयोग कर यह जरूर कह दिया कि उन्होंने पार्टी नहीं छोड़ी थी, उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया था। कांग्रेस महासचिव राजा दिग्विजय सिंह के साथ उनके तल्ख रिश्ते जगजाहिर हैं। दिग्गी राजा को आड़े हाथों लेते हुए उमा ने कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को वाहन तो दिग्गी को उनकी स्टेपनी करार दे दिया। कांग्रेस और भाजपाईयों द्वारा उमा के इस वक्तव्य के निहितार्थ ढूंढे जा रहे हैं कि उमा की नजरों में राहुल गांधी की औकात किस गाड़ी की तरह है?

बुढ्ढा होगा तेरा बाप, मैं तो बेटे का दादा बनूंगा!
सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के साथ जो भी घटता है वह खबर बन जाता है। चाहे मंुबई के आतंकी हमले के बाद उन्हें नींद का न आना हो या कुली फिल्म में पुनीत इस्सर के हाथों घायल होना। इन दिनों सोशल नेटवर्किंग वेब साईट पर उनका ट्वीट कि एशवर्या मां बनने वाली हैं, के चलते वे चर्चाओं में हैं। हाल ही में बुढ्ढा होगा तेरा बाप के प्रोमो में वे इसी बात को दोहराते दिखते हैं, फिर अचानक ही अभिषेक के पिता बनने की खबर। बिग बी के प्रशंसकों के पांव तो जमीन पर ही नहीं पड़ रहे हैं। चेनल्स पर बिग बी भी इस बात की पुष्टि करते दिखते हैं। किसी का ध्यान इस ओर नहीं गया कि बिग बी चाहते हैं कि उनका वंश आगे बढ़े सो वे कहते दिखते हैं कि हमने एश्वर्य से कहा कि बेटा पैदा करो। हजारों लाखों लोगों के चहेते और पयोनियर अमिताभ बच्चन खुद ही जब बेटा और बेटी में फर्क जतलाकर बेटा पैदा करने की अपील सार्वजनिक तौर पर करेंगे तो भला फिर सरकार के बेटी बचाओ अभियान पर पलीता तो लगना ही है।

अण्णा और रामदेव मामले में गांधी परिवार की चुप्पी आश्चर्यजनक!
पिछले दो माहों से हाट टापिक है अण्णा हजारे और बाबा रामदेव का आंदोलन। पुलिस ने बर्बरता के साथ दिल्ली के रामलीला मैदान में बाबा रामदेव के समर्थकों को खदेड़ा। कमोबेश हर समाचार चेनल ने इसे लाईव दिखाया। सुबह होते ही इलेक्ट्रानिक मीडिया के सुर बदल गए थे। रात की कहानी के बाद बाबा रामदेव का स्त्रीवेश धारण कर भागना ही प्रमुखता पा रहा था। इस मामले में भाजपा ने भी रामदेव के सुर में सुर मिलाया पर कंधे से कंधा नहीं मिला सकी भाजपा। इसलिए भाजपानीत उत्तराखण्ड सरकार के राज में बाबा रामदेव का अनशन तुड़वाकर उन्हें हाशिए पर ढकेल दिया गया। समूचे मामले में कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और युवराज राहुल गांधी की चुप्पी संदिग्ध ही लग रही है। अगर राहुल को कल देश की बागडोर संभालना है (जैसा कांग्रेस को लग रहा है) तो निश्चित तौर पर इतने संगीन मामले में उन्हें संज्ञान अवश्य ही लेना था, पर क्या किया जा सकता है, दोनों ही के बारे में जगजाहिर है -‘‘जितनी चाबी भरी राम ने, उतना चले खिलौना . . . ।‘‘

प्राचार्य मांग रहे भीख!
झारखण्ड मंे एंग्लो इंडियन बाहुल्य गांव है मैक्लुस्कीगंज। इस गांव में ब्रितानी और आस्टेªलियन लोगों की खासी तादाद है जो आजादी के बाद वापस अपने देश जाने के बजाए हिन्दुस्तान की संस्कृति में ही रच बस गए। रांची जिले के इस गांव में आस्टेªलिया मूल के एक व्यक्ति डी.आर.कैमरून ने अपनी संपत्ति में शामिल गेस्ट हाउस और बंग्ला एक पूंजीपति जगदीश पांडेय को इस शर्त पर बेचा था कि पाण्डेय द्वारा कैमरून को एक कमरा आजीवन निशुल्क रहने के लिए उपलब्ध कराया जाएगा। बाद में संपत्ति के लालच में जगदीश पाण्डेय ने एक बाथरूम में उनका आशियाना बना दिया। बाद में वे वहां से बेदखल कर दिए गए। भटकते भटकते कैमरून कोलकता जा पहुंचे। लोगों के आश्चर्य का तब ठिकाना नहीं रहा जब लोगों ने उन्हें सैंट थामस स्कूल के सामने भीख मांगते देखा। दरअसल किसी जमाने में कैमरून इस स्कूल के प्राचार्य हुआ करते थे। वक्त का फेर और मुकद्दर किसे कब कहां किस हाल में पहुंचा दे कहा नहीं जा सकता है।

पुच्छल तारा
कांग्रेस के महासचिव राजा दिग्विजय सिंह सदा ही सुर्खियों में बने रहते हैं अपनी बयानबाजी के लिए। कांग्रेस के इन महासचिव के बारे में मजाक से युक्त एक पर्चा डाक से प्राप्त हुआ है। फेकिंग न्यूज डॉट काम से साभार बताने वाला यह पर्चा लिखता है कि वोडा फोन कंपनी ने दिग्विजय सिंह के परफारमेंस से प्रभावित होकर उन्हे अपना ब्रांड एक्बेसेडरऔर कस्टमर केयर हेडबनाने का निर्णय लिया है। कंपनी के सीईओ ने एक पत्रकार वार्ता में इसके तीन कारण गिनाए हैं। पहला तो यह दिग्विजय सिंह अपनी क्षमताओंसे हमारे शिकायती ग्राहकों और प्रतिद्वंदी कंपनी को ठगघोषित कर देंगे। दूसरा दिग्विजय सिंह की हरकतें हमारे वर्तमान और पूर्व आईकान की हरकतों से काफी मेल खाती हैं। कंपनी का पबमालिक के पीछे पीछे चलता है, उसी तरह दिग्विजय सिंह भी राहुल गांधी के पीछे पीछे हर जगह चले जाते हैं। जिस तरह नया ब्राण्ड आईकान अण्डाकार चेहरे वाले जूजूकी तरह दिग्विजय क्या बोलते हैं किसी को समझ में नहीं आता है। तीसरा फोन से दिग्विजय सिंह का पवित्र रिश्ता है। दिग्विजय सिंह को लगातार ही फोन आते रहते हैं, कभी हेमन्त करकरे का तो कभी किसी और का. . .। सीईओ ने दावा किया है कि एसे में राजा दिग्विजय सिंह वोडाफोन कंपनी को नई उचाईयों तक अवश्य ले जाएंगे।