सोमवार, 6 सितंबर 2010

सरकार के मुंह पर रहमान का साढ़े पांच करोड़ का तमाचा

चलाचली की बेला में चिदम्बरम


भारत गणराज्य के गृह मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बरम की रूखसती की बेला आ गई है। एक के बाद एक हर मोर्चे पर नाकामी का सेहरा अपने सर बांधने वाले चिदम्बरम के खिलाफ कांग्रेस में भी अंदर ही अंदर रोष और असंतोष के स्वर खदबदाने लगे हैं।



कांग्रेस के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि चौथी बार कांग्रेस की कमान संभालने वाली राजमाता श्रीमती सोनिया गांधी को बताया गया है कि चिदम्बरम खुद ही पार्टी लाईन के खिलाफ जाकर अल्पसंख्यकों और कांग्रेस के बीच बनी दूरी को पाटने के बजाए उसे गहरा करने का ही उपक्रम कर रहे हैं। पार्टी के महासचिव राजा दिग्विजय सिंह, सलमान खुर्शीद आदि ने चिदम्बरम के खिलाफ खुला मोर्चा खोल रखा है। उधर वन्य जीव और पर्यावरण के नए पहरूआ बनकर उभरे वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने नियमागिरी की पहाडियोंमें वेदांता पर रोक लगाकर चिदम्बरम की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। मुंबई में हुए अब तक के सबसे बड़े आतंकी हमले के उपरांत कुर्सी संभालने वाले गृह मंत्री के कार्यकाल में नक्सलवाद, अलगाववाद, माओवाद, आतंकवाद का नया चेहरा सामने आया है। नक्सलवादियों ने जहां एक ओर बर्बरता का नया इतिहास लिखा है, वहीं सरकार इन सभी पर काबू पाने में असफल ही रही है। माना जा रहा है कि जल्द ही सोनिया गांधी सरकार में कांग्रेस के मंत्रियों के पत्ते फेंटने वाली हैं, और उसमें चिदम्बरम के स्थान पर कोई दूसरा शख्स गृह मंत्रालय की कमान संभाल सकता है।



सरकार के मुंह पर रहमान का साढ़े पांच करोड़ का तमाचा

कामन वेल्थ गेम्स की तैयारियों में भ्रष्टाचार की गूंज चारों ओर जमकर मची हुई है। कांग्रेसनीत संप्रग सरकार के प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह कह रहे हैं कि इसे राष्टन्न्ीय पर्व के तौर पर देखा जाना चाहिए। कांग्रेस कहती है कि भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच गेम्स के उपरांत की जाएगी, तब दोषियों को सजा दिलाई जाएगी। कामन वेल्थ गेम्स के बिगडने से दुनिया भर में भारत की छवि क्या बनेगी इसकी चिंता है सरकार और कांग्रेस को। गेम्स के लिए थीम सांग बनाने हेतु आस्कर विजेता ए.आर.रहमान को साढ़े पांच करोड़ रूपए का पैकेज दिया गया था, कि वे वक्का वक्का से बेहतर सांग तैयार करें। रहमान ने गाना तैयार किया, गाना गया गया, पर सभी के चेहरों पर लटकी मायूसी साफ जाहिर कर रही थी कि ए.आर.रहमान ने सरकार के मुंह पर साढ़े पांच करोड़ रूपए का जबर्दस्त तमाचा जड़ दिया है। कहते हैं कि उद्यघाटन समारोह को गरिमामय और आकर्षक बनाने के लिए अब किंग खान यानी शाहरूख को न्योता देने की तैयारियां की जा रही हैं। शाहरूख खान को बुलाने का मतलब जनता की जेब पर एक बार फिर डाका डालकर करोड़ों रूपए निकालना। अरे भई अगर थीम सांग पसंद नहीं आया तो दूसरा बनवाया जाए या फिर आयोजन समिति से इसकी राशि वसूली जाए!



तेरा तुझको अर्पण, का लागे मोरा

सरकार इस बात पर संतोष जता रही है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास का रथ द्रुत गति से दौड़ रहा है, पर जमीनी हकीकत इससे उलट ही नजर आ रही है। नक्सलवादी नेताओं का मानना है कि अगर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास की किरण प्रस्फुटित हो जाएगी तो उनका अस्तित्व ही संकट में पड़ जाएगा। यही कारण है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास की किरण अब तक नहीं पहुंच सकी है। नक्सलवादियों द्वारा सरकार के द्वारा इस क्षेत्र के विकास के लिए भेजी जाने वाली इमदाद को हड़पकर उसका उपयोग सरकार के खिलाफ ही मोर्चा खोलने में किया जा रहा है। अपनी गतिविधियों को संचालित करने के लिए नक्सलवादियों को धन की आवश्यक्ता होती है, और कहा जा रहा है कि यह धन नक्सलवादियों द्वारा सरकार की योजनाओं पर सीधे सीधे डाका डालकर ही जुगाड़ा जा रहा है। सच ही है तेरा तुझको अर्पण का लागे मोरा।



मालू की अभिनव पहल

मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के इंजीनियरिंग सेल के प्रदेशाध्यक्ष प्रसन्न चंद मालू ने एक अभिनव पहल की है, जिसकी प्रशंसा मुक्त कंठ से होना चाहिए। मूलतः सर गोविंदराम सक्सेरिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालाजी एण्ड साईंस इंदौर (जीएसटीआई) से पास आउट प्रसन्न मालू द्वारा सिवनी जिले के निर्धन बच्चों के लिए इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए निशुल्क वातावरण बनाया जाना प्रशंसनीय कहा जाएगा। प्रसन्न मालू द्वारा अपने सहपाठी सुनील डांडीर जो कि टन्नबा इंजीनियरिंग कालेज भोपाल के प्रबंध निदेशक हैं, से अनुरोध किया कि सिवनी जिले के गरीब प्रतिभावान बच्चों को उनके इंजीनियरिंग कालेज में निशुल्क अध्ययन की सुविधा प्रदान करे। मालू के अनुरोध को डांडीर ने स्वीकारा और पहले दो फिर बाद में पांच बच्चों को निशुल्क तौर पर अपने कालेज में अध्ययन हेतु निशुल्क व्यवस्था प्रदान कर दी। प्रसन्न मालू की तरह सिवनी में अनेक संपन्न लोग होंगे जिनके संपर्क में न जाने कितने कालेज, स्कूल के संचालक होंगे पर किसी ने भी सिवनी के बच्चों के हित में इस तरह की बात नहीं सोची होगी। सिवनी के संपन्न लोगों को प्रसन्न मालू की सकारात्मक सोच से प्रेरणा लेकर और भी बच्चों के सुनहरे भविष्य के मार्ग प्रशस्त करना चाहिए।



कांग्रेस अध्यक्ष पद पर राजमाता का कापीराईट

सवा सौ साल पुरानी और भारत गणराज्य पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस पर आजादी के उपरांत नेहरू गांधी परिवार की छाया जबर्दस्त तरीके से पड़ी है। जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, संजय गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और फिर राहुल गांधी के इर्द गिर्द ही कांग्रेस की धुरी घूमती रही है। कांग्रेस में की पोस्ट पर सदा ही गांधी नेहरू परिवार के सदस्य का जलजला रहा है। दरी और झंडे उठाने वाले कांग्रेसी उमर दराज होकर अपनी कमर झुका चले पर उन्हें उनकी निष्ठा का फल कभी भी नहीं मिला। कांग्रेस में गणेश परिक्रमा करने वाले नेताओं को ही सम्मान और पद से नवाजा जाता रहा है। विश्व की ताकतवर महिलाओं में शुमार कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी 1998 से लगातार कांग्रेस अध्यक्ष पद पर काबिज हैं। देखा जाए तो उन्हें तीसरी बार अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद नैतिकता के नाते ही सही इस पद को त्याग देना चाहिए था। कहा जा रहा है कि अभी वे एक दशक तक और इस पद पर बनी रहेंगी, ताकि कांग्रेस की नकेल नेहरू गांधी परिवार के हाथों में ही रहे।



युवराज ने जाना रियाया का हाल

कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री और कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी ने अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी की ओर रूख किया है। कई माह बाद युवराज को अपनी रियाया के बारे में जानने की सूझी है। बताते हैं कि अपने अघोषित राजनैतिक गुरू कांग्रेस महासचिव राजा दिग्विजय सिंह के मशविरे के बाद राहुल गांधी ने अपने संसदीय क्षेत्र में दिलचस्पी लेना आरंभ कर दिया है। दरअसल राहुल गांधी और सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र की बदहाली को विपक्ष द्वारा मुद्दे के तौर पर तैयार करवाना आरंभ कर दिया है, जिससे आने वाले समय में कांग्रेस की राजमाता और युवराज को होने वाली परेशानी के मद्देनजर राजा दिग्विजय सिंह ने अमेठी वासियों के दुखदर्द को अपना दुखदर्द बनाने का मशविरा दे दिया है। हाल ही में एक महिला की फरियाद पर राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के मुसाफिर खाना कोतवाली जाने के साथ ही साथ पुलिस से कार्यवाही की गुजारिश की। राहुल गांधी द्वारा जिस शालीनता से पुलिस के साथ व्यवहार किया उससे कोतवाली में उपस्थित पुलिस कर्मी प्रभावित हुए बिना नहीं रहे।



विकलांग मंत्रालय बनाने की सिफारिश

मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष के.जी.बालकृष्णन ने देश में विकलांगों के लिए प्रथक से एक मंत्रालय बनाने की सिफारिश की है। बालकृष्णन का कहना है कि विकलांगों के लिए नियम कायदे तो बहुतेरे बन चुके हैं किन्तु वे कानून जमीनी स्तर पर लागू हुए हैं या नहीं इस बारे में सुध लेने की फुर्सत किसी को भी नहीं है। देश भर के लगभग सवा दो करोड़ विकलांग लोगों के लिए बने कानूनों में ढिलाई बरतने पर राज्य सरकारों के प्रति अपनी तल्ख नाराजगी जाहिर करते हुए बालकृष्णन ने कहा कि विकलांगों के हितों को ध्यान में रखकर बनाए गए कानूनों को लागू करने के लिए प्रभावी निगरानी प्रणाली को विकसित किया जाना आवश्यक है। बालकृष्णन का मानना सही है कि अधिकांश विकलांग गरीब और असहाय तबके से हैं, अतः इसके लिए प्रथक से मंत्रालय बनाया जाकर कानून का पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए। बालकृष्णन का कहना है कि समाज भी इनके प्रति पूर्वाग्रह से ही ग्रसित नजर आ रहा है।



पीलीभीत में नहीं है गांधी प्रतिमा

राष्ट्रपिता मोहन दास करमचंद गांधी को महात्मा गांधी की उपाधि ऐसे ही नहीं दी गई थी। बापू ने आधी लंगोटी में उघारे बदन ही ब्रितानियों को खदेड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। नेहरू गांधी परिवार का अभिन्न अंग रहीं मेनका गांधी और वरूण गांधी का पीलीभीत से लगाव किसी से छिपा नहीं है। आपको यह जानकर अश्चर्य होगा कि पीलीभीत जिला मुख्यालय देश का इकलौता ऐसा जिला मुख्यालय है जहां महात्मा गांधी की एक भी प्रतिमा मौजूद नहीं है। पीलीभीत में बापू के नाम पर दो सभागार और एक स्पोर्टस कांपलेक्स अवश्य ही है। पूर्व कलेक्टर और वर्तमान कांग्रेसी नेता इंदु प्रकाश एरन ने यहां गांधी स्टेडियम की स्थापना करवाई किन्तु प्रतिमा का प्रस्ताव था ही नहीं। अब गांधी की प्रतिमा लगना और भी दुष्कर हो गया है क्योंकि यूपी गर्वनर्मेंट ने किसी भी महापुरूष की प्रतिमा या मूर्ति स्थापना के पूर्व अनुमति की बाध्यता को लागू कर दिया है। पीलिभीत देश का संभवतः इकलौता जिला होगा जहां बापू की प्रतिमा ही नहीं लगी हो।



बिग बी का अंग्रेजी डर!

भारत पर राज करने वाले ब्रितानियों का डर उस वक्त के हर भारतवासी के मन में था। आजादी के बाद शनैः शनैः वह डर समाप्त हो गया। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन को अंग्रेज नहीं पर उनके द्वारा बोली जाने वाली अंग्रेजी भाषा का डर जबर्दस्त तरीके से सताता रहा है। ‘नमक हलाल‘ सिनेमा में अवश्य ही दर्शकों ने अमिताभ बच्चन को ‘‘आई केन टाक इन इंगलिश, आई केन वाक इन इंगलिश, आई केन लाफ इन इंगलिश, बिकाज इंगलिश इज ए वेरी फनी लेंग्वेज‘‘ बोलते हुए सुना होगा, किन्तु बिग बी अंग्रेजी से बहुत ही खौफ खाते थे। अपने ब्लाग पर अमिताभ लिखते हैं कि वे एक जमाने में अंग्रेजी ग्रामर से बहुत ही डरा करते थे। इसी कारण से उन्होंने कालेज में बीए आनर्स ें अंग्रेजी में दाखिला लेने से इंकार कर दिया था। अब भले ही अमिताभ द्वारा फर्राटेदार अंग्रेजी में लोगों से बातचीत की जाती हो पर सच्चाई यह है कि स्कूल कालेज के जमाने में बिग बी को अंग्रेजी से बहुत ही ज्यादा डर लगा करता था।



पीएम लांघने वाले थे खर्च की निर्धारित सीमा

ख्यातिलब्ध पत्रकार खुशवंत सिंह ने अपने 95 साल के जीवन में राजनैतिक तौर पर न जाने कितने उतार चढ़ाव देखे होंगे। राजधानी दिल्ली के वाशिंदे होने के कारण सत्ता को भी उन्होने काफी करीब से देखा। सत्ता को चलाने वालों ने भी खुशवंत सिंह के साथ गलबहियां डाली होंगी, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। खुशवंत सिंह की हाल ही में बाजार में आई किताब ‘एब्सेल्यूट खुशवंत: द लो डाउन आन लाईफ, डेथ एंड मोस्ट थिंग्स इन बिटवीन‘, में वे लिखते हैं कि प्रधानमंत्री ने 1999 में उनसे चुनाव के दौरान टेक्सियों के किराए के लिए दो लाख रूपए नकद लिए थे, यह राशि पीएम के दमाद ने खुशवंत सिंह से ली थी। चुनाव हारने के बाद मनमोहन सिंह ने राशि को खुशवंत सिंह को लौटा दिया। सवाल यह उठता है कि 1999 में अगर महज टेक्सियों के लिए ही दो लाख रूपए खर्च करने की योजना हो तो चुनाव पर कुल कितना व्यय किया होगा मनमोहन सिंह ने उस वक्त। क्या इस तरह के खर्च चुनाव में खर्च की निर्धारित सीमा को पार नहीं किया होगा?