सोमवार, 1 जून 2009

1 june 2009

कई मामलों में अनोखी है 15वीं लोकसभा

14वीं लोकसभा ने देखे उतार चढ़ाव

(लिमटी खरे)
आजाद हिन्दुस्तान में पंद्रहवीं लोकसभा के गठन के साथ ही अनेक रिकार्ड उभरकर सामने आए हैं। कहीं सबसे कम उम्र का संसद सदस्य चुना गया है, तो कहीं कमसिन को देश में मंत्री बनाया गया है। इस बार आपराधिक रिकार्ड वाले सांसदों की तादाद भी पिछली मर्तबा से कहीं अधिक है।
इस बार 300 सांसद करोड़पति चुने गए हैं, जो पिछली मर्तबा की तुलना में लगभग दुगने हैं। इस बार सांसदों की संपत्ति में भी कई गुना बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। पिछली मर्तबा चुने गए सांसदों की संपत्ति पिछली बार से कहीं अधिक है। इनमें से 52 सांसद उत्तर प्रदेश से चुने गए हैं, जिनकी घोषित संपत्ति एक करोड से अधिक है।
सांसदों में सबसे अमीर संसद सदस्य विजय वाडा के सांसद राजगोपाल हैं। कांग्रेस जैसी आदर्शवादी पार्टी के इस सांसद की कुल घोषित संपत्ति 295 करोड है। सबसे कम संपत्ति वाले संसद सदस्य छत्तीसगढ़ से चुने गए संयुक्त मध्य प्रदेश के पूर्व गृहमंत्री चरण दास महंत हैं।
आपराधिक छवि का इस बार बोलबाला दिखाई दे रहा है। पिछली बार आपराधिक रिकार्ड वाले 128 सांसदों ने संसदीय सौंध तक पहुंचने की जुर्रत की थी, तो इस बार उनकी संख्या बढकर 153 हो गई है। मजे की बात तो यह है कि आपराधिक छवि वाले संसद सदस्यों की सबसे अधिक संख्या भाजपा में है। भाजपा के 43 सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं।
इस बार सबसे कम उम्र के सांसद बनने का सौभाग्य लक्ष्यद्वीप के कांग्रेस प्रत्याशी मुहम्मद हमदुल्ला सईद को मिला है, इनकी उम्र महज 26 साल है। वहीं दूसरी ओर बिहार में हाजीपुर से चुनाव जीते जनता दल यूनाईटेड के रामसुंदर व्यास की उम्र 88 साल है।
इस बार युवा अथाZत 40 साल से कम वालों के संसद में पहुंचने की संख्या में दुगना इजाफा हुआ है। इस बार 88 सांसद ऐसे हैं, जिनकी उम्र 40 साल से कम है। इनमें से कांग्रेस के सांसद सबसे अधिक है। कांग्रेस में 40 साल से कम उम्र वालों की तादाद 27 है। बावजूद इसके इस बार सांसदों की औसत उम्र पिदले बार 52.6 के मुकाबले बढकर 53.04 हो गई है।
देश की पहली नागरिक महिला है, लोकसभाध्यक्ष पद पर मीरा कुमार का नाम लगभग तय हो गया है, तो भला संसद में महिलाएं कैसे पीछे रह जातीं। इस बार संसद में पिछले बार 45 के मुकाबले 59 महिलाएं चुनकर लोकसभा में पहुंची हैं। इसमें भी कांग्रेस ने ही बाजी मारी है। कांग्रेस में इनकी संख्या 23 है।
वैसे इस बार लोकसभा सदस्यों को पूर्व लोकसभाध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी के लोकसभा के पहले दिन (04 जून 2004 को ) कहे वक्तव्य को अमल में लाया जाना चाहिए। सोम दा ने कहा था -``दिन का काम खत्म हो जाने के बाद हर दिन हमं खुद से पूछना चाहिए, कि आज हमने देश और लोगों के लिए क्या किया? हमें चुनकर भेजने वाले लोगों के भरोसे के साथ क्या हमने न्याय किया?``
स्पष्टवक्ता और अपने कर्मों के प्रति ईमानदार रहे सोमदा की इस अपील को तो तेरहवीं लोकसभा के सदस्यों ने अंगीकार नहीं किया, किन्तु इस बार नए चुने लोगों से अपेक्षा की जा सकती है, क्योंकि इसमें तरूणाई की तादाद ज्यादा है।
वहीं दूसरी ओर 14वीं लोकसभा में घटी अनेक घटनाओं ने देश के लोकतंत्र को शर्मसार किया है। संसद में पैसे के बदले सवाल, सदन में नोट लहराने और कबूतरबाजी में संसद के लिप्त होने की शर्मनाक घटनाएं भी भारत के लोकतांत्रिक इतिहास की साक्षी बनीं जिससे सदन की गरिमा तार तार हुए बिना नहीं रही। लगभग छ: दशकों से देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा ने तमाम उतार चढ़ाव देखे हैं, किन्तु 14वीं लोकसभा जैसा गरिमाहीन प्रदर्शन कभी नहीं देखा होगा।
इस बार प्रश्न पूछने से संबंधित हुए स्टिंग आपरेशन में भाजपा के चंद्र प्रताप सिंह, अन्ना साहेब, एम.के.पाटिल, प्रदीप गांधी, संरेश चंदेल और मनोज कुमार तो राजद के मनोज कुमार, बसपा के लाल चंद, राजाराम पाल और नरेंद्र सिंह कुशवाह तथा कांग्रेस के रामसेवक सिंह को अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी।
इसके अलावा शिवराज सिंह चौहान, उमर अबदुल्ला, भुवन चंद खण्डूरी, प्रेम कुमार धूमिल, मायावती, मुलायम सिंह यादव, भूपेंद्र कुमार हुड्डा जहां सूबों के निजाम (मुख्यमंत्री) बने वहीं सुशील मोदी बिहार के उपमुख्यमंत्री बने। इसके साथ ही साथ सूबों में मंत्री बनने वालों की फेहरिस्त तो इससे कहीं लंबी है।
कबूतरबाज सांसद बाबू भाई कटारा और नोट के बदले सवाल पूछने वाले सांसदों को तो लोकसभा की संसदीय सौंध से उठाकर बाहर कर दिया गया किन्तु सदन में हवा में नोट लहराने वाले सांसद को चेतावनी देकर ही बरी कर दिया गया। आज भी देश की जनता को यह पता नहीं है कि आखिर उन लहराने वाले नोटों को किसकी तिजोरी में से निकालकर लाया गया था।
इसके पहले पी.व्ही.नरसिंहराव सरकार के कार्यकाल में भी झारखण्ड मुक्ति मोर्चा और अजीत सिंह के नेतृत्व वाले जनता दल पर समर्थन के लिए लालच देने के आरोप लगे थे, किन्तु इस बार तो सांसद नोट की गडि्डयां हाथ में लहराते नज़र आए, जो कि अपने आप में अद्भुद ही कहा जा सकता है।
सांसद अपने दिल पर हाथ रखकर सोचें कि चौदहवीं लोकसभा में सत्र कितने दिन चले। कार्यवाही चली कम (1,738 घंटे 45 मिनिट और बाधित (423 घंटे) ज्यादा हुई। इसके लिए सत्ता या विपक्ष के सदस्यों को दोष देकर सांसद अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो सकते हैं, वस्तुत: यह देश की जनता द्वारा दिए गए जनादेश का घोर अपमान था।
इसके लिए कड़ा कानून बनाकर जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सार्वजनिक धन के आपराधिक दुरूपयोग का मामला दायर किया जाना चाहिए। सवाल यह है कि अपने ही खिलाफ कानून बनाने की हिमाकत आखिर कौन कर पाएगा। कितने आश्चर्य की बात है कि इस बार संसद ने न्यूनतम बैठकों (332) का रिकार्ड कायम किया है।
इस लोकसभा में 41 सांसदों ने त्यागपत्र दिया तो 25 सदस्य अन्य कारणों से सदस्य नहीं रह पाए, और 11 की सदस्यता रद्द की गई। अंतिम समय में लोकसभा की 39 सीटें रिक्त थीं। कांग्रेस के सांसद एम.के.सुब्बाराव की नागरिकता पर ही सवालिया निशान लगे।
बहुप्रतिक्षित महिला आरक्षण बिल इस लोकसभा में परवान न चढ़ सका। हलांकि सूचना का अधिकार और राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना जैसे बेहतरीन कानून बनाए गए, किन्तु लगभग चार दर्जन विधेयक अधर में ही लटके रहे। इस लोकसभा में अनेक सदस्यों ने अंतिम समय अपने अपने राज्यों मेंं विधानसभाओं में किस्मत आजमाने में ही भलाई समझी और संसद के अंतिम सत्र में वे गायब ही रहे।
देश के इतिहास में पहली बार एसा हुआ कि गणतंत्र दिवस परेड पर देश के वज़ीरे आला वहां उपस्थित नहीं रहे। संसद के अंतिम सत्र के अंतिम दिन प्रधानमंत्री डॉ.एम.एम.सिंह का संदेश पढ़कर सुनाया गया। संसदीय इतिहास में यह संभवत: पहला मौका रहा होगा जबकि किसी पूरे सत्र के दौरान देश के प्रधानमंत्री ने शिरकत न की हो।
इतना ही नहीं सोमनाथ चटर्जी के रूप में पहली बार कोई वामदल (44 सदस्यों वाली माकपा) का नेता लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज हुआ। सोमदा ने अपने कर्तव्यों का निर्वहन पूरी ईमानदारी से किया। सांसदों के व्यवहार से क्षुब्ध होकर सोमदा की टिप्पणी कि इन सांसदों ने तो जनता का एक पैसा दिया जाना चाहिए और न ही इन्हें दुबारा चुनकर आना चाहिए, वास्तव में जनता के दर्द को पूरी तरह रेखांकित करने के लिए काफी कही जा सकती है। सोमदा को निष्पक्षता की कीमत पार्टी की सदस्यता खोकर चुकानी पड़ी जो वाकई एक नज़ीर कही जा सकती है।




अब मध्य प्रदेश में बढ़ेगा कमल नाथ का जनाधार

और रसूखदार होंगे निष्ठावान

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। केंद्र में भूतल परिवहन मंत्री बने कमल नाथ का जनाधार अब मध्य प्रदेश में तेजी से बढ़ने की उम्मीद है। कमल नाथ के नए विभाग से उनके समर्थक मायूस अवश्य होंगे किन्तु आने वाले समय में उन्हें कमल नाथ के कद का असली अंदाजा हो जाएगा।
गौरतलब होगा कि पिछले पांच सालों में कमल नाथ ने मध्य प्रदेश को कुछ खास नहीं दिया। इसका कारण शायद प्रदेश में अनेक क्षत्रपों की उपस्थिति हो सकता है। अब पूर्व केंद्रीय मंत्री कुंवर अजुZन सिंह के सक्रिय राजनीति से पाश्र्व में ढकेले जाने के उपरांत लगता है कमल नाथ प्रदेश में अपनी सक्रियता बढ़ा देंगे।
नाथ समर्थकों के लिए खुशखबरी हो सकती है कि जल्द ही उन सभी का रसूख तेजी से बढ़ सकता है। बताया जाता है कि पिछले पांच सालों में कमल नाथ के कट्टर समर्थक माने जाने वाले अंतिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं ने दोहरी निष्ठा अपनाना आरंभ कर दिया था। एसा नहीं कि खुद कमल नाथ को इस बात का पता न हो। कमल नाथ के करीबी सूत्रों का कहना है कि इस अग्नि परीक्षा की घडी में जो समर्थक उनके साथ रहे अब उनके पुरूस्कृत होने का समय आ गया है।
मध्य प्रदेश में सड़कों के फैलते जाल को व्यवस्थित कर कमल नाथ अब अपने समर्थकों का दायरा और बढ़ा सकते हैं। कार्यभार ग्रहण करने के बाद अधिकारियों से रूबरू कमल नाथ के तीखे तेवरों का व्यापक असर देखने को मिल रहा है। दिल्ली से लेकर मैदानी अफसरान में हडकम्प की स्थिति बन गई है।
बताया जाता है कि मैदानी पदस्थापना वाले अफसरान अब इस बात को लेकर संशय में हैं कि कहीं उनकी कार्यप्रणाली और कारगुजारियों की शिकायत नाथ समर्थकों द्वारा मंत्री से न कर दी जाए। वैसे उनके विरोधी भी तेजी से सक्रिय हो गए हैं। कार्यभार ग्रहण करने के उपरांत मीडिया से रूबरू कमल नाथ ने कहा था कि वे इस तरह की जिम्मेदारी चाहते थे, जिसमें देश के अंदर रहकर ही काम किया जा सके। उनके इस वक्तव्य को लोग इस तरह भी हवा दे रहे हैं कि चूंकि वे अपने संसदीय क्षेत्र को समय नहीं दे पाते थे अत: उन्होंने यह विभाग अपनाना बेहतर समझा, जबकि वास्तविकता इससे उलट ही हैं
कमल नाथ कहीं भी रहें, वे अपने संसदीय क्षेत्र के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। वैसे भी वे देश में रहें या विदेश में, अपने संसदीय क्षेत्र के सतत संपर्क में ही रहते हैं, इसलिए उनके विरोधियों द्वारा किए जा रहे दुष्प्रचार की हवा जल्द ही निकलने की उम्मीद है।



भाजपा के कायाकल्प का जिम्मा उठाया संघ प्रमुख ने

अगले माह हो सकता है व्यापक फेरबदल

5 की बैठक में भागवत दिखा सकते हैं अनेक नेताओं को आईना

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। राजग के पीएम इन वेटिंग और मजबूत नेता निर्णायक सरकार की धज्जियां उडने के बाद अब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन राव भागवत ने भाजपा के कायाकलप का बीड़ा उठाया है। वे दिल्ली में भाजपा के आला नेताओ के साथ विचार विमार्श के उपरांत पांच जून को नागपुर में होने वाली संघ के शीर्ष नेताओं की बैठक में इसका खाका रखने की तैयारी कर रहे हैं।
संघ प्रमुख के करीबी सूत्रों का कहना है कि दरअसल संघ के शीर्ष नेताओं में भी भाजपा को लेकर तरह तरह के मत हैं। कोई नरेंद्र मोदी के अहसानों तले दबा है तो कोई अरूण जेतली के। किसी को आड़वाणी पसंद हैं तो किसी को राजनाथ। इन परिस्थितियों में भाजपा के मसले में कोई कठोर फैसला संघ नहीं ले पा रहा है।
सूत्रों के अनुसार संघ मुख्यालय नागपुर में 5 जून को शीर्ष नेताओं की बैठक आहूत की गई है, जिसमें स्वयं मोहन भागवत, भैया जी जोशी, सुरेश राव जोशी, सुरेश सोनी, मदन दास देवी, सुरेश सोनी आदि के शामिल होने की संभावना है।
सूत्रों ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार में लगभग सवा छ: साल और सूबों में भाजपा के शासन होने के चलते संघ और भाजपा के आला नेताओं के रिश्ते अब वैचारिक के स्थान पर कारोबारी ज्यादा हो गए हैं, जिसे लेकर संघ प्रमुख चिंतित नजर आ रहे हैं। संघ के आला नेताओं की पसंद (कारण चाहे जो भी हो) अलग अलग होने के चलते संघ भाजपा के मामले में फैसला लेने में अपने आप को असहाय ही पा रहा है।
सूत्रों के अनुसार कुछ दिनों पूर्व संघ प्रमुख ने सुरेश राव जोशी, सुरेश सोनी, भैया जी जोशी, एवं मदन दास को भाजपा के कथित लौह पुरूष आडवाणी के पास यह संदेशा लेकर भेजा था कि संघ का मन आडवाणी, राजनाथ सहित समूची भाजपा में परिवर्तन लाने का है। संघ प्रमुख के ये दूत आडवाणी की बातों में ही उलझकर बिना किसी निर्णय के बेरंग लौट गए थे। सूत्रों ने इस बात के संकेत भी दिए कि जुलाई माह में भाजपा में व्यापक स्तर पर फेरबदल का ताना बाना भी बुना जा रहा है।