0 फोरलेन विवाद
सुप्रीम कोर्ट में अब 21 को होगी सुनवाई
0 किस बात की राह देख रहे हैं सिवनी के जनप्रतिनिधि
(लिमटी खरे)नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार की महात्वाकांक्षी परियोजना स्विर्णम चतुभुZज के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे का हिस्सा मध्य प्रदेश के सिवनी जिले से होकर जाएगा या नहीं इस बात से अभी कुहासा छट नहीं सका है। सर्वोच्च नयायलय में 1995 में लगाई गई एक याचिका की 31 जुलाई को हुई सुनवाई के बाद अब अगली तारीख 21 अगस्त दी गई है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार 1995 में 202 नंबर पर पंजीबद्ध याचिका में याचिका कर्ता गोदावर्मन थि्रमुलपड़ ने केंद्र सरकार को पार्टी बनाते हुए वन एवं पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने का मामला दायर किया था। 31 जुलाई को हुई सुनवाई में आदेश दिया गया है कि इस मामले की सुनवाई 21 अगस्त को फारेस्ट बैंच के समक्ष की जाए।
बताया जाता है कि वाईल्ड लाईफ ट्रस्ट की जिस याचिका क्रमांक 1124 का बार बार जिकर किया जा रहा है, वह कहीं अस्तित्व में है ही नहीं। इसी याचिका के कारण समूचा बवाल खड़ा हुआ है। याचिका कर्ता ने मध्य प्रदेश शासन और जिला कलेक्टर सिवनी से सिवनी जिले के मोहगांव से लेकर खवासा तक के वनों की कटाई रोकने का आग्रह किया था।
गौरतलब होगा कि इसी आधार पर तत्कालीन जिला कलेक्टर सिवनी पिरकीपण्डला नरहरि ने 18 दिसंबर 2008 को इस क्षेत्र में गैर वन और वन क्षेत्र की कटाई पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया था। आरोपित है कि जिलाधिकारी का उक्त आदेश जुलाई माह तक दबाया गया था।
प्राप्त जानकारी के अनुसार मोहगांव से लेकर खवासा तक के मार्ग निर्माण का काम अथवा वन या गैर वन क्षेत्र में वृक्षों की कटाई रोकने के संबंध मेें माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अभी तक कोई आदेश जारी नहीं किया गया है। इस संबंध में तरह तरह की अफवाहें फैला कर मामले को भ्रमित किए जाने का कुित्सत प्रयास भी बड़े पैमाने पर किया जा रहा है।
राजधानी दिल्ली में चल रही चर्चाओं के अनुसार सिवनी जिले के सांसद और विधायक सहित अन्य नेता शायद इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि इस मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय कब स्थगन दे, या फिर न्यायालय प्रशासन से कहे, ``काम क्यों चालू नहीं करते!`` इसके पीछे कारण बताया जा रहा है कि हर कोई जिलाधिकारी के 18 दिसंबर 2008 के उस आदेश को चुनौति देने के बजाए इसमें माननीय सर्वोच्च न्यायलय या केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ को जवाबदार बताने का प्रयास कर रहा है।
विधि के एक वरिष्ठ ज्ञाता ने मामले को समझकर अपनी राय देते हुए कहा कि मामले की तह में जाना जरूरी है। अगर काम को जिला कलेक्टर के आदेश से रोका गया है, तो सर्वोच्च न्यायलय की चौखट चूमने का ओचित्य समझ से परे है। बेहतर होगा कि जिलाधिकारी के उक्त आदेश को खारिज करवाने की दिशा में पूरी ताकत झोंंकी जाए।
शनिवार, 1 अगस्त 2009
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