रविवार, 13 जून 2010
अब लगेंगे शिकायत के भी पैसे!
मोबाईल सेवा प्रदाता मचा रहे लूट
सरकार ने आंख पर बांध रखी है पट्टी
सावधान! टोल फ्री के चक्कर में लुट न जाना
(लिमटी खरे)
सरकार ने आंख पर बांध रखी है पट्टी
सावधान! टोल फ्री के चक्कर में लुट न जाना
(लिमटी खरे)
बाजार में बिक रही वस्तुओं में छोटा सा स्टार लगाकर शर्तें लागू का प्रचलन आज का नहीं बरसों पुराना है, ताकि उपभोक्ता उन पर किसी तरह का क्लेम न कर सके। हाल ही में मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियों ने भी अपने उपभोक्ताओं को लूटने की नई योजना पर काम करना आरंभ कर दिया है। अगर आप अपनी मोबाईल की सेवा में काल ड्राप, नेटवर्क कंजेशन, या अन्य किसी समस्या से परेशान हैं और आप अपने सेवा प्रदाता के कस्टमर केयर के पास अपनी शिकायत दर्ज कराने जा रहे हैं, तो थोडा रूकिए, अब ये काल पहले की तरह निशुल्क नहीं हैं, इन पर अब पचास पैसा प्रति काल की दर से चार्ज किया जाने लगा है।
ठगा उपभोक्ता जब अपना मोबाईल का बेलेंस चेक करता है तो वह हर बार के पचास पैसे कम पाता है। उपभोक्ता अपनी शिकायत दर्ज कराए तो किसके पास और अब तो शिकायतें भी सशुल्क हो गईं हैं। अपने स्वार्थाें, वेतन भत्तों और सुविधाओं को बढाने वाले जनसेवकों को इस बात से कोई लेना देना नहीं है कि उपभोक्ता पर क्या गुजरेगी। देश और सूबों की सरकारों का बस अगर चले तो वे तो पुलिस थानों में शिकायत दर्ज कराने पर बाकायदा शुल्क लेकर रसीद काटना भी आरंभ कर दे। वैसे भी अस्पतालों में रोगी कल्याण और अन्य निधियों में बाकायदा शुल्क लेकर पर्ची दी जाती है, इतना ही नहीं उसी काउंटर के उपर लिखा होता है -‘‘इस अस्पताल में इलाज का कोई पैसा नहीं लिया जाता है।‘‘
बहरहाल मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियों का यह प्रयास निश्चित तौर पर उन्हें सुकून देने में काफी हद तक सहायक साबित होगा। अपने लक्ष्य के लिए मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियां तरह तरह की आकर्षक योजनाओं का प्रलोभन देकर उपभोक्ताओं को फंसाने से नहीं चूकतीं हैं, बाद में जब उपभोक्ता कंपनी की सेवाओं से उकता कर हलाकान हो जाता है, तब वह कंपनी के कस्टमर केयर में अपनी शिकायत दर्ज कराने के पहले सौ मर्तबा सोचेगा, कि उसकी शिकायत का पैसा भी उसे भरना होगा। सीधा से बिजनिस का फंडा है जितनी खराब सेवाएं, उतनी अधिक शिकायतें और जितनी अधिक शिकायतें उतनी सेवा प्रदाता कंपनी की कमाई।
सरकार और मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियों की इस अंधेरगर्दी में टेलीकॉम रेग्युलेटरी अथॉरिटी (ट्राई) ने भी अपनी सहमति जताकर देश के करोडों मोबाईल उपभोक्ताओं की जेब पर सेवा प्रदाता कंपनियों को डाका डालने के मार्ग प्रशस्त कर दिए हैं, जो अनुचित ही है। सेवा प्रदाता कंपनियों के खराब नेटवर्क की समस्या और सर्विस से जूझता उपभोक्ता आखिर अपनी शिकायत लेकर जाए तो जाए कहां। क्या ट्राई को यह नहीं मालुम कि उपभोक्ता द्वारा सेवा प्रदाता कंपनियों के कस्टमर केयर में घंटों ‘‘आप कतार में हैं‘‘ का केसट सुनकर दूसरी ओर से आने वाली मधुर आवाज सुनने या उनसे बतियाने के लिए अपना समय खराब नहीं किया जाता है। कुछ सेवा प्रदाता कंपनियों के कस्टमर केयर में बैठे कारिंदे तो आपके द्वारा कही बात को ही दुहरा कर आपकी सहन शक्ति की परीक्षा लेने का प्रयास भी करते हैं। ट्राई की सहमति पर आश्चर्य इसलिए है कि बिना उपभोक्ताओं का पक्ष सुने वह अपनी सहमति कैसे दे सकती है।
मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियों का यह कहना कि कस्टमर केयर में आने वाले अस्सी फीसदी काल बेकार होते हैं, एकदम बकवास है। आज के दौडते भागते युग में किसे इतनी फुर्सत है कि वह आधे पोन घंटे तक अपने मोबाईल को इंगेज रखकर सेवा प्रदाता कंपनी के कस्टमर केयर से बात करेगा। इसी आधार पर सेवा प्रदाता कंपनियों ने अब तक के अपने प्रचारित टोल फ्री नंबर्स को बिना किसी उदद्योषणा के सशुल्क बना दिया है। अनेक उपभोक्ताओं को तो इसका भान ही नहीं है कि कस्टमर केयर पर बात करना अब सशुल्क हो गया है।
एसे तो मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियां अपने उत्पादों या योजनाओं के बारे में अपने उपभोक्ताओं को हर दस मिनिट में एक एसएमएस भेजकर परेशान करती रहती हैं, पर इतने बडे फैसले के उपरांत उसे लागू करने के बाद भी सरकारी उपक्रम बीएसएनएल, एमटीएल सहित निजी क्षेत्र की मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियों ने एक भी एसएमएस भेजने की जहमत नहीं उठाई है। इस मामले में सरकार के साथ ही साथ ट्राई की चुप्पी आश्चर्यजनक ही कही जाएगी।
सरकार और टेलीकॉम रेग्युलेटरी अर्थारिटी को चाहिए कि पहले से लुटे पिटे उपभोक्ता को लूटने के सारे रास्ते बंद करने हेतु इस मसले पर एक बार फिर गंभीरता से विचार करे। उपभोक्ताओं की शिकायतों को निश्चित समयावधि में सुनकर उनके निपटारे की व्यवस्था सुनिश्चित किया जाना अत्यावश्यक है, वरना आने वाले समय में मोबाईल उपभोक्ताओं के बीच सेवा प्रदाता कंपनियों के साथ ही साथ ट्राई की साख बिगडते देर नहीं लगेगी।
यह क्या हो रहा है चिदम्बरम जी
घुसपेठ के मामले में अव्वल रहा 2009
गृह मंत्रालय की आंतरिक रिपोर्ट में खुलासा
पाक में आतंकी मजबूत हुए
(लिमटी खरे)
गृह मंत्रालय की आंतरिक रिपोर्ट में खुलासा
पाक में आतंकी मजबूत हुए
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली 13 जून। देश को अस्थिर करने के मामले में पडोसी देश पाकिस्तान की करतूतों में तेजी से इजाफा हुआ है। पिछले साल पाकिस्तान की ओर से आने वाले घुसपैठियों की तादाद में रिकार्ड इजाफा हुआ है। भारत की सीमा पर चोकस सिपाही भी इन घुसपैठों को रोकने में नाकामयाब रहे हैं। पाकिस्तान में आतंकवादियों ने अपने ठिकानों को बहुत सशक्त, समृद्ध और सुरक्षित बना लिया है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय की आंतरिक रिपोर्ट कुछ इसी तरह का खुलासा कर रही है। आंतरिक प्रतिवेदन में कहा गया है कि पकिस्तान की ओर जम्मू काश्मीर के रास्ते घुसपैठ को जबर्दस्त बढावा दिया जा रहा है। मंत्रालय के सालाना प्रतिवेदन में कहा गया है कि पाकिस्तान में आतंकवादियों को प्रशिक्षण देने का काम अनवरत जारी है। वर्ष 2008 में जहां घुसपैठ की घटनाएं 342 थी, वह 2009 में बढकर 485 हो गई है।
प्रतिवेदन इशारा कर रहा है कि पिछले सालों की तुलना में देश में अशांत करने की कवायद कुछ ज्यादा ही हुई है। इसमें हिंसक घटनाओं की संख्या बढी है। इतना ही नहीं नागरिकों और सुरक्षा कर्मियों को मौत के घाट उतारने की वारदातों में इजाफा हुआ है। इसकी चपेट में नक्सलप्रभावित सूबे विशेषकर आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ, झारखण्ड, उडीसा, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र इनके निशाने पर रहे हैं।
मजे की बात तो यह है कि इतना सब होने के बाद भी केंद्रीय गृह मंत्रालय का यह वार्षिक प्रतिवेदन स्थिति को पूरी तरह नियंत्रण में ही बता रहा है। देश में विदेशी ताकतें आकर तांडव मचा रही हैं। देश की आर्थिक राजधानी पर अब तक का सबसे बडा आतंकी हमला होता है, संसद पर हमले होते रहे हैं। नक्लसवादी पूरे शबाब पर हैं, अमन चेन कहीं नही है, फिर भी पलनिअप्पम चिदंबर के नेतृत्व वाला केंद्रीय गृह मंत्रालय स्थिति नियंत्रण में बताकर बरगलाने से नहीं चूक रहा है।
500वीं पोस्ट
मतलब आडवाणी ने किया था बाजपेयी को कमजोर!
जेठमलानी के मामले में होने लगे हैं खुलासे
. . . तो आडवाणी के कहने पर खडे हुए थे जेठमलानी
(लिमटी खरे)
जेठमलानी के मामले में होने लगे हैं खुलासे
. . . तो आडवाणी के कहने पर खडे हुए थे जेठमलानी
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली 13 जून। प्रसिद्ध अधिवक्ता राम जेठमलानी को राज्यसभा का टिकिट देने के मामले में भारतीय जनता पार्टी में विद्रोह के स्वर मुखर होने लगे हैं। अब भाजपाई दबी जुबान से राम जेठमलानी और बाजपेयी की युती के चलते पूर्व प्रधानमंत्री और भाजपा के मौखटा रहे अटल बिहारी बाजपेयी के बीच खुदी खाई के बारे में नित नए तथ्यों को उजागर करते जा रहे हैं। अटल बिहारी बाजपेयी के खिलाफ 2004 में निर्दलीय के तौर पर चुनाव लडने वाले जेठमलानी के बारे में असंतोष और रोष की स्थिति गहराती ही जा रही है।
भाजपा में चल रही बयार के अनुसार राम जेठमलानी सिंधी समाज के होने के बाद भी गांधीनगर से आडवाणी के खिलाफ चुनाव मैदान में नहीं उतरे जबकि गांधी नगर और गुजरात में सिंधी समाज के लोगों की तादाद बहुत ज्यादा है। इससे उलट वे 2004 में अटल बिहारी बाजपेयी के खिलाफ लखनउ से चुनावी समर में उतरे थे। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि आडवाणी और जेठमलानी की युती के चलते जेठमलानी ने अटल बिहारी के खिलाफ चुनाव मैदान में कमान संभाली थी।
भाजपा के सूत्रों की माने तो राजग के पीएम इन वेटिंग एल.के.आडवाणी पिछले कुछ सालों से राम जेठमलानी पर खासे महरबान हैं। इस बार भी उन्हें राज्यसभा के रास्ते संसदीय सौंध तक पहुंचाने में आडवाणी ने एडी चोटी एक कर दी। आडवाणी ने दांव फेंका था कि जेठमलानी को मध्य प्रदेश से राज्य सभा में भेजा जाए, किन्तु सुषमा स्वराज और शिवराज के विरोध के चलते आडवाणी की चल नहीं पाई।
आडवाणी के करीबी सूत्रों का दावा है कि इसी महीने पांच तारीख को एक नेता नुमा व्यक्ति ने आडवाणी के आवास से बाबू लाल मरांडी को फोन पर इस बात के लिए तैयार किया जा रहा था कि अगर मरांडी सहयोग करें तो जेठमलानी को झारखण्ड से बतौर निर्दलीय उम्मीदवार राज्य सभा में पहुंचाया जा सकता है। इस पर मरांडी ने साफ इंकार कर दिया था। जेठमलानी पर मेहरबान आडवाणी ने अंततः सभी के पुरजोर विरोध के बावजूद भी जेठमलानी को राजस्थान से भाजपा का घोषित उम्मीदवार बनवाने में सफलता हासिल कर ही ली।
एसा नहीं कि आडवाणी की इन चालों का अटल बिहारी बाजपेयी को भान न हो। 2006 में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री केलाश जोशी की पुस्तक ‘‘अध्यक्ष जी‘‘ के विमोचन समारोह में जब एल.के.आडवाणी भाषण देने खडे हुए उस वक्त अटल बिहारी बाजपेयी लघु शंका को बाहर गए थे। वापस आने पर जब उनकी बारी आई तो उन्होंने इशारों ही इशारों में कहा था कि उनके पहले आडवाणी ने उद्बोधन में क्या कहा उन्हें नहीं पता, पता नहीं आडवाणी कब क्या कह जाते हैं। अटल की इस बात से आडवाणी की पेशानी पर बल साफ दिखाई दे रहे थे।
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