मंगलवार, 10 अगस्त 2010

फोरलेन विवाद का सच ------------05

आखिर क्या बला है सीईसी

आज सिवनी के हर नागरिक के मानस पटल पर एक ही बात कौंध रही है कि आखिर उत्तर दक्षिण गलियारे का काम सिवनी जिलें में चंद किलोमीटर के लिए रोका क्यों गया है? आखिर एसा कौन सा कारण है कि जिसके चलते बलशाली शक्तिशाली नेतागण भी अपने धुटने टेकने पर मजबूर हैं? लिए दिए हर मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय और उसकी साधिकार समिति (सीईसी) की दुहाई देकर अपनी खाल बचाई जा रही है। सीईसी आखिर किस बला का नाम है, इस बारे में सिवनी की जनता जानने बेसब्री से आतुर दिख रही है। फिजां में जितने मुंह उतनी बात की तर्ज पर सीईसी को एक हौआ बना दिया गया है।

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के सिवनी जिले से केंद्र सरकार की महात्वाकांक्षी उत्तर दक्षिण सडक परियोजना जाएगी थवा नहीं इस बात को लेकर संशय अभी भी बरकरार है। इसी बीच अब माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित साधिकार समिति (सीईसी) की भूमिका को लेकर ही बहस आरंभ हो गई है। फोरलेन मामले में आरोप प्रत्यारोपांे के दौर के मध्य अब सीईसी के गठन, अधिकार, अनुशंसाएं आदि को लेकर ही तरह तरह की बातें फिजां में तैरना आरंभ हो गया है। सीईसी के कार्य अधिकार आदि को लेकर बनी भ्रम की स्थिति से फोरलेन विवाद के मूल मुद्दे से भटकने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है।
 
कानून विदों के बीच चल रही चर्चाओं के अनुसार सीईसी का गठन माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सिविल रिट पिटीशन क्रमांक 202/95 एवं 171/96, जो कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है के लिए 9 मई 2002 को किया गया था। इसका कार्यालय नई दिल्ली के लोधी रोड स्थित संेट्रल गर्वेंमेंट आफिस प्रांगड (सीजीओ केम्पस) के पर्यावरण भवन में कमरा नंबर 106 में बनाया गया है।
 
वन एवं पर्यावरण विभाग के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि सीईसी के तत्कालीन मेम्बर सेकेरेटरी एम.के.जेवरजखा के हस्ताक्षरों से 03 जून 2002 को जारी परिपत्र क्रमांक 1-1 / सीईसी / सुको / 2002 में सीईसी के गठन अधिकार आदि का सविस्तार से उल्लेख किया गया है। इस पत्र में साफ तौर पर उल्लेख किया गया है कि सीईसी का गठन माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सिविल रिट पिटीशन 202/95 एवं 171/96 की सुनवाई के 09 मई 2002 के आदेश के तहत किया गया है।
 
इस समिति में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अनुमोदन के उपरांत सचिव भारत सरकार पी.वही.जयकृष्णन को अध्यक्ष के अलावा एन.के.जोशी अतिरिक्त महानिदेशक वन, को वन मंत्रालय के प्रतिनिधि की हैसियत से शामिल किया गया है। इनके अतिरिक्त गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) में रणथम्बोर फाउंडेशन के वाल्मीक थापर एवं सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता महेंद्र व्यास को सदस्य की हैसियत से शामिल किया गया था। एम.के.जेवरजखा जो उस वक्त वन विभाग के महानिरीक्षक पदस्थ थे को, समिति का सदस्य सचिव बनाया गया था।
 
उक्त पत्र की कंडिका तीन में सीईसी के अधिकार और कार्यप्रणाली को बताया गया है। जिसके मुताबिक उपरोक्त वर्णित प्रकरणों में शासन द्वारा प्रस्तुत किए गए शपथ पत्रों आदि का परीक्षण करने के उपरांत सीईसी इन्हें माननीय न्यायालय के समक्ष रखेगी। किसी को भी अगर सरकार या किसी अन्य अथारिटी के किसी आदेश पर कोई गिला शिकवा है तो वह माननीय न्यायालय के आदेश के साथ इस समिति के पास राहत के लिए जा सकता है। यह समिति माननीय न्यायालय के आदेश के उपरांत प्रकरण के निराकरण के लिए बाध्य होगी।
 
समिति के अधिकारों के संबंध में उक्त पत्र की कंडिका क्रमांक पांच का अनुच्छेद अ कहता है कि समिति किसी व्यक्ति, राज्य या केंद्र शासित प्रदेश की सरकार या किसी भी आफीशियल से कोई भी दस्तावेज मांग सकती है। अनुच्छेद ब में साफ तौर पर कहा गया है कि समिति किसी को भी बुलाकर उससे साक्ष्य, दस्तावेज या शपथ पत्र ले सकती है।
 
समिति के सदस्यों के वेतन भत्ते, एवं अन्य स्टाफ का व्यय भी केंद्र सरकार के मत्थे ही मढा गया है। समिति किसी को भी अपने स्पेशल इंवाईटी के तौर पर समायोजित कर सकती है। राज्यों के मुख्य सचिव और प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) इसके विशेष आमंत्रित होंगे। अंत में लिखा गया है कि समिति अपना प्रतिवेदन साल में चार बार अर्थात त्रेमासिक तौर पर अनिवार्य रूप से माननीय न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करेगी।
 
सिवनी में फोरलेन विवाद में अब नित नए मोड आने आरंभ हो गए हैं। रही सही कसर केंद्रीय साधिकार समिति अर्थात सीईसी के बारे में अफवाहों ने निकाल दी है। समूचे मामले को देखकर लगता है कि अब फोरलेन विवाद अपने मूल से भटकाव की स्थिति में ही पहुंचने लगा है। कल तक जिला कलेक्टर के आदेश को निरस्त कराने से क्या होगा? कहने वाले आज साल भर बाद उसी आदेश को निरस्त कराने की बात कहने लगे हैं।

केवलारी विधायक एवं मध्य प्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष ठाकुर हरवंश सिंह ने भी जिला कलेक्टर के आदेश को ही रद्द करवाने की बात कही है। चर्चाओं के अनुसार सडक बचाने वाले ठेकेदारों द्वारा जिला मुख्यालय को छोडकर कभी डेढ सौ किलोमीटर दूर उच्च न्यायालय जबलपुर तो कभी हजार किलोमीटर दूर दिल्ली की दौड क्यों लगाई जा रही है? जबकि यहां ‘‘बगल में बच्चा, गांव में ढिंढोरा‘‘ की कहावत को ही चरितार्थ किया जा रहा है।

0 सीबीएसई पर हावी शिक्षा माफिया (9)

सीधी से आए प्राचार्य द्वय ने किया था अरूणाचल का फिजीकल वेरीफिकेशन

सिवनी। जिला मुख्यालय में संचालित होने वाले अरूणाचल पब्लिक स्कूल (पूर्व में टाईनी टाट्स स्कूल) को सीबीएसई बोर्ड द्वारा दी गई सीनियर सेकन्डरी की सशर्त अनुमति के मसले में शाला केंद्रीय शिक्षा बोर्ड अर्थात सीबीएसई के मापदण्डों को पूरा करती है, अथवा नहीं यह निरीक्षण करने इंचार्ज कमेटी के सदस्य के तौर पर सीधी के दो शालाओं के प्राचार्य को दायित्व सौंपा गया था। इन प्राचार्य द्वारा शाला का निरीक्षण कर अपना प्रतिवेदन सीबीएसई बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय अजमेर को सौंप दिया है।

सीबीएसई बोर्ड उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि एस एस - 00490 - 0910 क्रमांक के पंजीयन नंबर वाले अरूणाचल पब्लिक स्कूल (पूर्व में टाईनी टाट्स स्कूल) को कक्षा दसवीं तक के लिए सीबीएसई बोर्ड से मिश्रित अस्थाई मान्यता देने की कार्यवाही में कागजी घोडे दौडाने के उपरांत फिर शाला के रिकार्ड, भवन, स्टाफ, विद्यार्थी एवं सुविधाओं के वास्तविक निरीक्षण के लिए सीबीएसई बोर्ड द्वारा दो सदस्यीय टीम का गठन किया गया था।

सूत्रों ने स्पष्ट तौर पर बताया कि इस निरीक्षण दल के प्रथम सदस्य के तौर पर सीधी के जयंत प्रोजेक्ट के केंद्रीय कारखाने में संचालित केंद्रीय विद्यालय संगठन के प्राचार्य और सीधी के ही जिंगुर्धा प्रोजेक्ट के डी.ए.वी.पब्लिक स्कूल के प्राचार्य को पाबंद किया गया था। बताया जाता है कि दोनों प्राचार्य से युक्त इस जांच दल ने कब आकर अरूणाचल पब्लिक स्कूल (पूर्व में टाईनी टाट्स स्कूल) का स्थल निरीक्षण, फिजीकल वेरीफिकेशन किया और क्या पाया यह बात न तो विद्यार्थियों को ही पता है और न ही उनके पालकों को।

अगर सीर दीवान सिवनी में संचालित अरूणाचल पब्लिक स्कूल (पूर्व में टाईनी टाट्स स्कूल) के किसी विद्यार्थी को विद्यालय प्रशासन के कृत्यों से असंतोष होता तो अपना असंतोष या विरोध इस निरीक्षण जांच दल के समक्ष दर्ज करा सकते थे, किन्तु कहा जाता है कि विद्यालय प्रशासन ने विद्यार्थियों और उनके पालकों को एसा कोई मौका दिया ही नहीं गया।

सूत्रों ने आगे कहा कि इसी तारतम्य में सीर दीवान सिवनी में संचालित अरूणाचल पब्लिक स्कूल के प्रबंधक को सीबीएसई बोर्ड द्वारा पत्र क्रमांक सीबीएसई / एफी / एसएस - 00490 - 0910 (1030442) / 2009 दिनांक सात जुलाई 2007 को जारी किया गया था। इस पत्र में उक्त शाला के लिए फ्रेश कंपोजिट प्रोवीजनल एफीलेशन अर्थात नवीन मिश्रित अस्थाई मान्यता को सीनियर सेकन्डरी स्तर तक स्टेट बोर्ड से स्विच ओवर विषय से जारी किया गया था।

अरूणाचल पब्लिक स्कूल (पूर्व में टाईनी टाट्स स्कूल) को एफीलेशन विभाग के डिप्टी सेकेरेटरी जोसफ एम्मूअल के हस्ताक्षरों से जारी इस पत्र में उल्लेख किया गया है कि उक्त शाला के आवेदन दिनांक 26 मई 2008 के तारतम्य में उन्हें निर्देशित किया गया है कि वे शाला को यह जानकारी दें कि शाला को 01 अप्रेल 2009 से 31 मार्च 2012 तक की तीन साल की अवधि के लिए सशर्त प्रोवीजनल एफीलेशन दिया गया है। इस पत्र में 29 शर्तों के साथ यह अस्थाई मिश्रित मान्यता प्रदाय की गई है। जिसमें भूखण्ड का रकबा, कक्षा, स्टाफ, विद्यार्थियों की संख्या, क्लास रूम का साईज, खेल का मैदान, प्रयोगशालाओं की संख्या, पुस्तकालय में किताबों का साईज और संख्या, कम्पयूटर लेब, सदा चालू रहने वाला ब्राडबेण्ड इंटरनेट कनेक्शन आदि का कडाई से पालन सुनिश्चित करने को कहा गया है।

सूत्रांे ने आगे बातया कि कंडिका 28 में साफ तौर पर संलग्न एनेक्सचर ए का उल्लेख करते हुए इन शर्तों को भी मानना शाला की बाध्यता बताया गया है। एनेक्सचर ए में 11 शर्तों का पृथक से उल्लेख किया गया है। इन अतिरिक्त शर्तों का पालन भी 07 जुलाई 2009 से तीन माह अर्थात 07 अक्टूबर 2009 तक हो जाना चाहिए था।

अरूणाचल पब्लिक स्कूल (पूर्व में टाईनी टाट्स स्कूल) को एफीलेशन विभाग के डिप्टी सेकेरेटरी जोसफ एम्मूअल के हस्ताक्षरों से जारी पत्र में उल्लेख किया गया है कि बिना अस्थाई अनुमति के अगर शाला द्वारा नवमी और दसवीं में विद्यार्थियों को प्रवेश दिया जाता है तो आने वाले किसी भी परिणाम के लिए शाला प्रबंधन स्वतः ही जिम्मेदार होगा।

सूत्रों ने बताया कि कंडिका 3 में सीबीएसई बोर्ड की अस्थाई मान्यता मिलने के उपरांत शाला प्रबंधन अपने प्रांगण में सीबीएसई बोर्ड के अलावा किसी अन्य बोर्ड के विद्यार्थीयों को तैयार नहीं करेगा। इसकी कंडिका 4 काफी हद तक महत्वपूर्ण मानी जा सकती है जिसमें बोर्ड ने साफ तौर पर हिदायत दी है कि बोर्ड इस बात की अनुमति कतई नहीं देता है जिसमें प्रापर्टी अथवा स्कूल का सौदा एक सोसायटी से दूसरी सोसायटी या प्रबंधन को किसी तरह के अनुबंध या सेल डीड के आधार पर किया जाए। न ही उस प्रांगड मंे शाला का संचालन ही बंद किया जा सकता है। यदि इस तरह का कोई मामला प्रकाश मंे आता है तो बोर्ड अपनी मान्यता तत्काल प्रभाव से निरस्त कर सकता है।

अरूणाचल पब्लिक स्कूल (पूर्व में टाईनी टाट्स स्कूल) को एफीलेशन विभाग के डिप्टी सेकेरेटरी जोसफ एम्मूअल के हस्ताक्षरों से जारी पत्र की कंडिका 5 कहती है कि जिस राज्य में यह स्कूल स्थापित है उस राज्य के समान कर्मचारियों के वेतन और भत्ते सुनिश्चित करना और समय समय पर उन्हें रिवाईज करना शाला प्रबंधन की जिम्मेवारी है। कंडिका छः में भी कमोबेश यही बात कही गई है कि कर्मचारियों की सेवा शर्तें राज्य शासन के नियम कायदों के हिसाब से कडाई से पालन की जाएं। कर्मचारियों शिक्षकों का नियुक्ति पत्र स्थाईकरण पत्र राज्य शासन के नार्मस के हिसाब से होना आवश्यक है।

सूत्रों का कहना है कि इसकी कंडिका 7 कहती है कि कम से कम पांच या छः लोग जिसमें कम से कम दो लोग जो केंद्रीय विद्यालय या जवाहर नवोदय विद्यालय के प्राचार्य स्तर के अधिकारी हों को शाला प्रबंध समिति में रखना अत्यावश्यक है। कंडिका आठ में कहा गया है कि शाला को शिक्षकों का 1ः1.5 का अनुपात पहली से पांचवी, अर्थात प्रायमरी, छटवी से दसवीं अर्थात सेकण्डरी और ग्यारहवीं बारहवीं अर्थात सीनियर सेकण्डरी के लिए पालन करना अत्यावश्यक है।

अरूणाचल पब्लिक स्कूल (पूर्व में टाईनी टाट्स स्कूल) को एफीलेशन विभाग के डिप्टी सेकेरेटरी जोसफ एम्मूअल के हस्ताक्षरों से जारी पत्र में कंडिका 9 कहती है कि शाल प्रबंधन को कार्यस्थल पर महिलाओं का सेक्ुसअल हरासमेंट रोकने के लिए एक समिति का गठन करना आवश्यक है, जो माननीय सर्वोच्च न्यायायल की क्रिमनल रिट पिटीशन विशाख और अन्य बनाम राजस्थान राज्य, नंबर 666 - 70, / 1992 एवं अन्य दिनांक 13 अगस्त 1997 के द्वारा बताए गए नार्मस के हिसाब से हो।

सूत्रों के अनुसार कंडिका 10 में 1500 रूपए प्रतिवर्ष के हिसाब से तीन साल के लिए सीबीएसई को साढे चार हजार रूपए मात्र ही जमा कराना होगा। इसके अलावा शाला को अपने रिजर्व फंड को बनाने के लिए भी गाईड लाईन दी गई है, जिसमें शाला के प्रंबधक और सीबीएसई बोर्ड के संयुक्त नाम से खाता खोलकर जमा कराना आवश्यक होगा।

इसके अनुसार पांच सौ बच्चों तक साठ हजार रूपए, पांच सौ एक से साढे सात तो विद्यार्थियों तक अस्सी हजार रूपए, सात सौ इक्यावन से एक हजार बच्चों तक एक लाख रूपए तक एवं एक हजार से अधिक बच्चों के लिए सौ रूपए प्रति छात्र यह फंड जमा कराना होगा। इस जमा राशि पर मिलने वाला ब्याज किसी भी सूरत में शाला प्रबंधन द्वारा निकाला नहीं जा सकता है।

(क्रमशः जारी)

फिर उठाया पाक ने अपना सर

पाकि फिर नापाक हरकतों पर उतारू